वोटर लिस्ट शुद्धिकरण से क्यों बौखला गया विपक्ष?
मदन अरोड़ा.बिहार में एस आई आर (विशेष वोटर लिस्ट शुद्धिकरण) लागू होने के बाद हुए चुनावों के परिणामों ने भारतीय राजनीति में एक नए विमर्श का दरवाज़ा खोल दिया है. यह पहला मौका था जब बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट के शुद्धिकरण की प्रक्रिया को लेकर विपक्ष ने आरोपों की बौछार की, लेकिन परिणाम और आखिरी सूची आते ही उसका पूरा नैरेटिव धराशायी हो गया. बिहार में विपक्ष ने दावा किया था कि एस आई आर के नाम पर लाखों मतदाताओं के नाम काट दिए जाएंगे, लेकिन जब अंतिम ड्राफ्ट व अंतिम वोटर सूची जारी हुई, तो आश्चर्यजनक रूप से विपक्ष ने एक भी लिखित आपत्ति दर्ज नहीं करवाई. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जब यह तथ्य सामने आया, तो जजों ने भी हैरानी जताते हुए पूछा— “अगर इतनी बड़ी साजिश थी, तो फिर कोई औपचारिक आपत्ति क्यों नहीं?”
बिहार में विपक्ष द्वारा फैलाया गया ‘वोट कटाई’ का नैरेटिव टिक नहीं पाया, लेकिन इसके बाद जो हलचल बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश और दक्षिणी राज्यों में दिख रही है, वह साफ संकेत देती है कि एस आई आर केवल एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के वोट-बैंक गणित को झकझोरने वाला बदलाव है.
सीमावर्ती जिलों की विसंगति और बंगाल की चिंता
पश्चिम बंगाल उन राज्यों में है जहां एस आई आर को लेकर सबसे ज्यादा विरोध दिख रहा है। इसके पीछे कारण भी गंभीर है. पिछले 20-25 वर्षों में बंगाल के 9 सीमावर्ती जिलों में मतदाता संख्या में 40–50 फीसदी की उछाल आई है, जबकि बाकी जिलों में यह वृद्धि सिर्फ 6 फीसदी के आसपास रही.
यह आंकड़ा प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि से कई गुना अधिक है. स्पष्ट है, यह बदलाव घुसपैठ की वजह से आया है.
इसी पृष्ठभूमि में समझ आता है कि टीएमसी इस प्रक्रिया से सबसे अधिक असहज क्यों है। बंगाल–बांग्लादेश सीमा पर लगातार भीड़ बढ़ रही है. कई अवैध प्रवासी मीडिया से बात करते हुए बता रहे हैं कि:
* वे बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में घुसे,
* टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उन्हें आधार और वोटर आईडी दिलवाए,
* वे टीएमसी को वोट देते रहे,
* अब एस आई आर में मांगे जा रहे दस्तावेज़ उनके पास नहीं हैं.
जाहिर है, अगर ये नाम वोटर सूची से हटते हैं तो इसके राजनीतिक असर गहरे होंगे. सिर्फ यही नहीं, वोटर सूची से बाहर होते ही ये लोग भारतीय कानूनों के तहत जेल और डिपोर्टेशन की प्रक्रिया में आ जाएंगे. यही कारण है कि सीमा पर वापस लौटने वालों की संख्या अचानक बढ़ रही है.
1993 की ममता बनाम 2025 की ममता
इस पूरे विवाद का सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि 1993 में जब ममता बनर्जी कांग्रेस में थीं, तब उन्होंने घुसपैठ के खिलाफ सबसे आक्रामक आवाज उठाई थी. 21 जुलाई 1993 को उनकी रैली में पुलिस फायरिंग में 13 कार्यकर्ता मारे गए थे और वे खुद घायल हुई थीं. तब ममता दावा करती थीं कि घुसपैठ से बंगाल का जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ रहा है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है.
आज वही ममता बनर्जी उन लोगों को बचाने के लिए आंदोलन कर रही हैं जो खुद स्वीकार कर रहे हैं कि वे अवैध रूप से आए और गैरकानूनी दस्तावेज़ों के आधार पर मतदाता बन गए.
राजनीति में समय बदलता है, पर सिद्धांतों का इतना उलटफेर शायद ही कभी देखने को मिलता है.
टीएमसी की मंशा: डेटा पर कब्ज़ा या फर्जी मतदाताओं को बचाना?
चुनाव आयोग द्वारा एस आई आर को जारी रखने के निर्णय के बाद टीएमसी ने पहले इसे रोकने की मांग की.जब आयोग नहीं माना तो ममता ने नया नैरेटिव गढ़ा— “बीएलओ काम के दबाव में आत्महत्या कर रहे हैं.”
यह दावा जितना भावनात्मक था, उतना ही राजनीतिक. ममता ने प्रस्ताव रखा कि वे अपने सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं को “मदद” के लिए लगाने को तैयार हैं ताकि एस आई आर फॉर्म अपलोड करने में सहायता मिल सके.
लेकिन इस प्रस्ताव के पीछे वास्तविक मंशा यह बताई जा रही है कि:
* टीएमसी अपने फर्जी वोटरों के डेटा को हेरफेर करना चाहती थी,
* कई जगहों पर एक ही पिता के नाम और एक ही एपिक नंबर वाले 10–15 फॉर्म जमा करवाए जा रहे थे,
* कई फर्जी रिश्ते बनाकर (बेटा–बेटी–पोता–पोती) वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने का प्रयास हो रहा था.
चुनाव आयोग ने तुरंत इसे भांप लिया और डेटा ऑपरेटर भर्ती के लिए टेंडर जारी कर दिया. यानी फॉर्म अपलोड करने का अधिकार सरकारी ठेकेदारों को मिलेगा, किसी राजनीतिक दल को नहीं. इसके साथ ही आयोग ने सभी जिलाधिकारियों से बीएलओ की मौतों पर विस्तृत रिपोर्ट (एफ आई आर, पोस्टमार्टम, पुलिस जांच रिपोर्ट) मांग ली है.
यह कदम टीएमसी के नैरेटिव को पूरी तरह ध्वस्त कर गया.
एस आई आर कैसे काम करता है? सिस्टम का डर विपक्ष को क्यों?
यह समझना जरूरी है कि एस आई आर प्रक्रिया में बीएलओ का काम बेहद सीमित है. वे सिर्फ फॉर्म बांटते हैं और मतदाता द्वारा जमा किए गए फॉर्म को सिस्टम में अपलोड करते हैं. बीएलओ दस्तावेजों को सत्यापित या रिजेक्ट नहीं कर सकते.
जांच का पूरा काम:
* दिल्ली स्थित चुनाव आयोग,
* राज्य स्तर के सर्वर,
* और ए आई आधारित सत्यापन प्रणाली द्वारा किया जाता है.
इसलिए अगर कोई फर्जी दस्तावेज़ जमा कर दे, गलत पहचान बताए या 2000–2005 की आधार सूची में दर्ज नामों से मेल न खाए, तो सिस्टम उसे ऑटोमेटिकली हटा देगा.
यही वह बिंदु है जो कई राजनीतिक दलों को असहज कर रहा है.
कानूनी सजा भी बड़ी है
एस आई आर में फर्जी दस्तावेज देने पर:
* एक वर्ष की जेल,
* और आई ए एफ एक्ट 2025 के तहत 10 लाख रुपये तक जुर्माना और 5साल की सजा का प्रावधान है.
साफ है—फर्जी वोटरों की पूरी संरचना अब कानूनी खतरे में है.
यही वजह है कि राहुल, अखिलेश और ममता एक सुर में बोल रहे हैं
. ममता बनर्जी
* एंटी–एस आई आर मार्च निकाल रही हैं.
* “भारत को हिला देने” की धमकी दे रही हैं.
* बीएलओ मौतों को राजनीतिक मुद्दा बनाया जा रहा है.
* फर्जी फॉर्मों को वैध कराने की कोशिश उनकी चिंता साफ है,सीमावर्ती जिलों में लाखों वोट प्रभावित हो सकते हैं.
. राहुल गांधी
* ‘वोट चोरी’ नैरेटिव बिहार में फेल हुआ
* अब दिल्ली में बड़ी रैली की तैयारी
* चुनाव आयोग को राजनीतिक एजेंडा चलाने वाला बताने का प्रयास. उनकी चिंता— कई राज्यों में कांग्रेस का मुस्लिम वोट बैंक सीधे प्रभावित होगा.
. अखिलेश यादव
* हर विधानसभा में हजारों वोट कटने के दावे
* यूपी में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या नेटवर्क को लेकर पहले से संवेदनशीलता उनकी चिंता, पश्चिम यूपी की वोट संरचना बदलने का डर.
डीएमके, वाम दल और केरल की राजनीति क्यों विचलित?
दक्षिण भारत में बांग्लादेशी घुसपैठ उतनी व्यापक नहीं, लेकिन शहरी क्षेत्रों में फर्जी पहचान बनवाने का नेटवर्क मजबूत है. विशेषकर चेन्नई, बेंगलुरु, कोच्चि में अवैध प्रवासी मजदूरों के लिए फर्जी दस्तावेज बनवाकर उन्हें मतदाता सूची में शामिल किया गया.
एस आई आर इस पूरे नेटवर्क को खत्म कर देगा. इससे शहरी वोट बैंक सीधे प्रभावित होगा.
सिर्फ वोट की लड़ाई नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला भी है
1. अवैध घुसपैठ का संबंध आतंकी नेटवर्क से कई आतंकी मॉड्यूल्स में पकड़े गए आरोपियों की पहचान “भारतीय मतदाता” के रूप में मिली है,यह चिंताजनक है.
2. सीमावर्ती जिलों में हिंसा की बैकलाइन जिन जिलों में अवैध घुसपैठ ज्यादा है, वहीं राजनीतिक हिंसा और पत्थरबाजी की घटनाएं भी अधिक होती हैं.
3. डिपोर्टेशन अब आसान होगा क्योंकि दस्तावेज़ आधारित पहचान स्पष्ट हो जाएगी.
4. वोटर सूची का शुद्धिकरण सैन्य–नागरिक सुरक्षा दोनों को मजबूत करेगा।
चुनावी गणित में बड़ा बदलाव
1. पश्चिम बंगाल में 60–70 सीटों पर सीधा असर
जहां अवैध मतदाताओं का वोट प्रतिशत चुनाव जीत-हार तय करता है.
2. उत्तर प्रदेश के 25–30 संवेदनशील क्षेत्र प्रभावित
रोहिंग्या–बांग्लादेशी नेटवर्क वाले जिलों में वोट संरचना बदलेगी.
3. बिहार का मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर मिसाल
विपक्ष की तरफ से एक भी आपत्ति न आने से सरकार और चुनाव आयोग की स्थिति मजबूत हुई.
4. 2026–27 के चुनावों में यह मुद्दा केंद्रीय बन सकता है.
एस आई आर केवल तकनीकी दस्तावेज़ प्रक्रिया नहीं,यह भारत के लोकतंत्र की बुनियादी सफाई है. विपक्ष इसे ‘वोट कटाई’ बताकर उग्र आंदोलन कर रहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि वोटर सूची शुद्धिकरण चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है,उसे कोई नहीं रोक सकता.
असल सवाल यह है, अगर दस्तावेज़ सही हैं तो डर कैसा? और अगर दस्तावेज़ ही नहीं हैं, तो व्यक्ति मतदाता कैसे बन गया?
यही वह प्रश्न है जो कुछ दलों को बेचैन कर रहा है. वोट बैंक की राजनीति जिस संरचना पर खड़ी थी, एस आई आर उस नींव को ही चुनौती दे रहा है.
आने वाले महीनों में यह सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि भारत की राजनीतिक दिशा तय करने वाला सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है.