मन की बात

caa, एनपीआर एनआरसी को लेकर देश में बवाल मचा है।क्या वास्तव में ये भारतीय मुसलमानों के समानता के अधिकार का हनन करते हैं तो इसका सीधा जवाब है नहीं और यही वजह है कि कांग्रेस सहित विपक्षी दलों और अपने आपको भारतीय मुसलमानों का नुमाइंदा माननेवाले स्वयंभू मुस्लिम नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल करने के बावजूद निर्णय का इंतजार करने के बजाय देश को आग में झोंकने का काम किया ।ये जानते हैं कि उन्हें राम मंदिर पर आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की तरह caa के मामले में भी छाती पीटने के अलावा कुछ हासिल होने वाला नहीं इसलिए मुस्लिम वोटों को अपने पाले में डालने और उनका मसीहा बनने की होड़ में सब पूरी ताकत के साथ भ्रम फैला और उन्हें सड़कों पर लाने में जुटे हैं।याद करें किस तरह से सांसद में कांग्रेस और विपक्षी दलों के वकील नेता caa को संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लघंन और मुसलमानों के अधिकारों का हनन बता रहे थे।टीवी चैनल की डिबेट में caa की खिलाफत कर रहे हैं पर आपको सिब्बल,सिंघवी जैसे सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील टीवी पर इसे समानता के अधिकार के हनन बताते हुए नहीं दिख रहे जबकि कांग्रेस मरते दम तक इसके विरोध की बात कर रही है।साफ है कि इन बड़े वकीलों को पता है कि एक राजनीतिक दल के नेता के रूप में भले ही इसके समानता के अधिकार के हनन का स्यापा कर लें लेकिन हकीकत में यह कहीं भी संविधान के वर्णित अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता।भारतीय संविधान देश के अधिकारों की रक्षा की बात करता है विदेशी मुसलमानों की नहीं और इसीलिए एकीकृत भारत में बंटवारे के बाद जब कई हिन्दू और सिख परिवार किन्हीं कारणों से भारत नहीं आ पाए और बंटवारे के बाद बने पाकिस्तान में रह गए उनके अधिकारों की रक्षा की बात तो की गई ,उनके कभी भी भारत आने पर उन्हें भारत की नागरिकता की बात तो की गई लेकिन जो मुसलमान एक मुस्लिम राष्ट्र बनाने और उसका नागरिक बनने के लिए पाकिस्तान गए उनके अधिकारों की बात कहीं नहीं की गई।भारतीय संविधान ऐसे मुस्लिमों को किसी तरह के अधिकार की बात नहीं करता जो अलग राष्ट्र की मांग के साथ पाकिस्तान चले गए थे इसलिए ये मुसलमानों के समानता के अधिकारों का किसी तरह से उल्लंघन नहीं वरन उन भारतीयों के अधिकारों की रक्षा करता है जो पाकिस्तान को मुस्लिम राष्ट्र बनाने नहीं किसी मज़बूरी में वहां रह गए और अल्पसंख्यक बन गए।याद करें नेहरू लियाकत समझौते को ।इस समझोते में दोनों देशों के अल्पसंख्यकों के संरक्षण की बात की गई थी कहीं भी पाकिस्तानी मुसलमानों के संरक्षण की बात नहीं है।दोनों देशों में अपने यहां अल्पसंख्यकों को समान अधिकार देने ,उनके साथ समानता का व्यवहार करने और उनके हर अधिकारों की रक्षा करने,धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करने का समझौता किया गया था।उस समय के एकीकृत पाक में अल्पसंख्यक कौन थे हिन्दू, सिख, बुद्ध,पारसी ,जैन और ईसाई कहीं भी भारत से आए मुसलमानों को अल्पसंख्यक नहीं माना गया था और न ही उनके हितों की रक्षा की बात की गई थी और भारत में अल्पसंख्यक के रूप में मुसलमानों के साथ समान व्यवहार और उनके हितों की संरक्षण की बात की गई थी।इसके अलावा बंटवारे के समय पाकिस्तान रह गए हिन्दू, सिख,जैन बुद्ध की बात समय समय पर की जाती रही लेकिन खलीफा राज की स्थापना के लिए पाकिस्तान चले गए मुसलमानों के हितों की बात नहीं की गई और न ही ऐसे मुसलमानों को नेहरू लियाकत समझौते में अल्पसंख्यक मान उनके हितों की रक्षा की बात शामिल की गई।क्योंकि पाकिस्तान गए मुसलमानों को भले ही मुजाहिद्दीन माना गया हो उन्हें अंगीकार मुसलमानों के रूप में किया गया था ,अल्पसंख्यक के रूप में नहीं।इसलिए caa न तो भारतीय कहे जाने वाले किसी मुसलमान के साथ भेदभाव करता है और न ही समानता के अधिकार का किसी तरह से हनन करता है ।यही वजह है कि कांग्रेस और विपक्षी दलों ने कोर्ट के निर्णय का इंतजार करने बजाय अधिक से अधिक मुसलमानों को अपने अपने पाले में डालने की होड़ में caa को मुसलमानों के साथ भेदभाव और समानता के अधिकारों का भ्रम फैला धर्म के नाम पर मुसलमानों को सड़कों पर उतार दिया जबकि ये अच्छी तरह से जानते हैं कि कोर्ट का निर्णय आते ही उनकी सारी पोल खुल जाएगी पर तब तक हिन्दू मुसलमानों के बीच की खाई लंबी हो चुकी होगी।देश के सभी लोगों को सड़कों पर उतरने के बजाय कोर्ट के निर्णय का इंतजार करना चाहिए।हालांकि मैं जानता हूं कि जो लोग राम मंदिर पर आए निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण और पक्षपाती बता रहे थे,caa पर आने वाले निर्णय को भी ऐसा ही बताएंगे क्योंकि यह किसी भारतीय मुसलमान के साथ न तो भेदभाव करता है और न ही समानता के अधिकार का हनन ।यह केवल तीन इस्लामिक देशों के अल्पसंख्यकों जो मूल रूप से भारतीय ही हैं और लंबे समय से देश में रह रहे हैं को संरक्षण का काम कर रहा है।मदन अरोड़ा
मुंबई उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाडी का पहला मंत्रिमंडल विस्तार आज होने जा रहा है। सबकी नजरें इस विस्तार पर टिकी हैं, आखिर किस दल से कितने मंत्री बनेंगे। चर्चा है कि पहली बार विधायक बने आदित्य ठाकरे भी राज्यमंत्री के तौर पर कैबिनेट में शामिल हो सकते हैं। साथ ही अजित पवार को डेप्युटी सीएम या कोई बड़ा विभाग मिलने की सुगबुगाहट है। माना जा रहा है कि आज 36 मंत्री शपथ ले सकते हैं जिनमें से शिवसेना के पास मुख्यमंत्री के अलावा 16 मंत्री होंगे। वहीं, एनसीपी के 14 और कांग्रेस के 12 मंत्री होंगे। शपथ ग्रहण समारोह के लिए विधानभवन में विशेष रूप से पंडाल बनाया गया है। इसके साथ ही करीब 5 हजार लोगों को आमंत्रित किया गया है। अभी तक की जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के अशोक चव्हाण, केसी पडवी, विजय वडेट्टिवर, अमित देशमुख, सुनील केदार, यशोमती ठाकुर, वर्षा गायकवाड़, असलम शेख, सतेज पाटिल और विश्वजीत कदम मंत्रीपद की शपथ लेंगे। ये हो सकते हैं मंत्रिमंडल में शामिल एनसीपी: अजित पवार, धनंजय मुंडे, जयंत पाटील, छगन भुजबल, जीतेंद्र अव्हाड, नवाब मलिक, दिलीप वलसे पाटील, हसन मुश्रीफ, बालासाहेब पाटील, दत्ता भरणे, अनिल देशमुख, राजेश टोपे और डॉ. राजेंद्र शिंगणे। शिवसेना: अनिल परब, प्रताप सरनाईक, रविंद्र वायकर, सुनील राऊत, उदय सामंत, भास्कर जाधव या वैभव नाईक, आशीष जैस्वाल या संजय रायमुलकर, बच्चू कडू, संजय राठोड शंभुराजे देसाई, प्रकाश अबिटकर, संजय शिरसाट, अब्दुल सत्तार, तानाजी सावंत, गुलाबराव पाटील, दादा भुसे, सुहास कांदे। मंत्रिमंडल विस्तार के लिए विधायकों के नाम फाइनल करने के लिए रविवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस की विशेष बैठकें हुईं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोराट विशेष रूप से दिल्ली गए। वहीं एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मुंबई में पार्टी नेताओं के साथ बैठक की। गृह मंत्री पर उद्धव लेंगे फैसला! दिल्ली में बैठक खत्म होने के बाद थोराट ने कहा कि कांग्रेस ने अपनी सूची में सभी क्षेत्रों और समाजों के नेताओं का संतुलन बनाने की कोशिश की है। कांग्रेस की तरफ से 12 मंत्री होंगे, जिनमें से 10 कैबिनेट मंत्री होंगे। उधर, एनसीपी नेता जयंत पाटिल ने कहा कि हमने अपने मंत्री बनने वाले विधायकों की सूची मुखयमंत्री को भेज दी है। गृहमंत्री कौन होगा? इसके जवाब में जयंत पाटिल ने कहा कि मंत्रालयों का बंटवारा करना सीएम का विशेषाधिकार है। अजित को मिल सकता अहम ओहदा एनसीपी नेता अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ गृहमंत्री पद देकर उद्धव ठाकरे सरकार में नंबर-टू की पॉवर दिए जाने की उम्मीद है। एनसीपी नेता धनंजय मुंडे को वित्त मंत्रालय, जयंत पाटिल को जल संसाधन, छगन भुजबल को ग्राम विकास और जीतेंद्र अव्हाड को सामाजिक न्याय मंत्रालय दिया जा सकता है। इनके अलावा एनसीपी से शपथ लेने वालों में नवाब मलिक, दिलीप वलसे पाटील, हसन मुश्रीफ, बालासाहेब पाटील, दत्ता भरणे, अनिल देशमुख, राजेश टोपे, डॉ. राजेंद्र शिंगणे के नाम शामिल हो सकते हैं। उद्धव कैबिनेट में अभी ये मंत्री कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष बालासाहेब थोराट और कांग्रेस के ही नितिन राउत, शिवसेना के एकनाथ शिंदे और सुभाष देसाई, एनसीपी के जयंत पाटिल और छगन भुजबल 28 नवंबर को उद्धव ठाकरे के साथ शपथ ले चुके हैं। बता दें कि विभागों के बंटवारे के समय जयंत पाटील के पास वित्त, नियोजन, गृह निर्माण, स्वास्थ्य, सहकार व व्यापार, अन्न व आपूर्ति, ग्राहक संरक्षण, कामगार, अल्पसंख्यक विभाग मंत्रालय था जबकि, छगन भुजबल को ग्राम विकास, जलसंपदा, सामाजिक न्याय, राज्य उत्पादन शुल्क, स्किल डिवेलपमेंट, अन्न व औषधि प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी दी गई थी। महाविकास आघाडी सरकार में विभागों के बंटवारे में गृह मंत्रालय शहरी विकास और पीडब्लूयूडी शिवसेना, वित्त मंत्रालय, ग्रामीण विकास, सिंचाई एनसीपी और कांग्रेस को राजस्व एवं कृषि मंत्रालय मिला है।
कोलकाता, 07 दिसंबर 2019,पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ कहते हैं कि ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि मैं सदन में जाता हूं और वहां गेट बंद मिलता है. स्पीकर ने लंच पर बुलाया था लेकिन वे खुद वहां नहीं थे. सदन खाली था. कुछ लोगों ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था. वहां कोई क्लास-4 कर्मचारी भी नहीं था जो मेरे स्वागत के लिए खड़ा हो. मुझे लगता है कि स्वच्छ भारत अभियान सबसे पहले पश्चिम बंगाल के विधानसभा से शुरू होना चाहिए. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ये बातें कोलकाता में चल रहे इंडिया टुडे कॉनक्लेव ईस्ट में कहीं. राज्यपाल धनकर ने कहा कि लोग मुझपर आरोप लगाते हैं कि मैं सीएम ममता और सरकार के काम में रुकावट पैदा करता हूं. लेकिन होता इसका उलटा है. यहां तो मैं रिसीविंग एंड पर हूं. वो लोग मेरे सामने समस्याएं खड़ी कर रहे हैं. प. बंगाल के 5-6 मंत्री कहते हैं- मैं पर्यटक हूं पश्चिम बंगाल के पांच-छह सीनियर मंत्री कहते हैं कि अगर आपको सीएम से मिलना है तो 'दीदी के' बोलो. आप यहां पर्यटक हैं. आप यहां घूमने आए हैं. इन सबके बारे में और लोगों की समस्याओं के बारे में मैंने कई पत्र भेजे हैं सीएम को. लेकिन मुझे कोई रिस्पॉन्स नहीं मिलता. सीएम ने बुलबुल तूफान में अच्छा काम किया तो मैंने पत्र लिखकर उनके काम की तारीफ की. लेकिन ऐसे में मीडिया में हेडिंग बन जाती है कि मैं सीएम की तारीफ करता हूं. लेकिन अगर सरकार ये चाहे कि मैं बतौर राज्यपाल सीएम की तारीफ करता रहूं तो मैं उसके लिए नहीं बैठा हूं. प. बंगाल में लोकतंत्र खत्म हो चुका है राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा कि प. बंगाल में लोकतंत्र खत्म हो चुका है. वीसी रूम बंद हो जाता है. विधानसभा का गेट बंद हो जाता है. मैं शहरों के दौरे पर जाता हूं तो मुझे वहां अधिकारी, कर्मचारी...कोई मिलता ही नहीं है. ये लोकतंत्र का खात्मा नहीं है तो क्या है? ये वैसा ही काम है जैसा औरंगजेब ने शिवाजी के साथ किया था. मैं ममता को औरंगजेब नहीं कह रहा. लेकिन प. बंगाल की आयरन लेडी औरंगजेब की तरह काम कर रही हैं. लोग आरोप लगाते हैं कि मैं समानांतर सरकार चला रहा हूं. लेकिन अगर मैं समानांतर सरकार चलाता तो ये सब नहीं होता.
महाराष्ट्र में अस्सी घंटे के भीतर ही मुख्य मंत्री देवेन्द्र फडणवीस के इस्तीफा देने के साथ ही राज्य की राजनीति में करीब एक महीने भर से चल रहे शह और मात के खेल का दौर खत्म हो गया है।इसके साथ ही अब यक्ष सवाल ये है कि राजनीतिक अवसरवाद का एक और उदाहरण पेश करते हुए शिवसेना ,कांग्रेस और एनसीपी की बनने जा रही बेमेल सरकार का भविष्य क्या होगा।शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार भले ही बना ली हो,लेकिन स्थायित्व पर फिलहाल प्रश्नचिन्ह ही है।जिन दलों को अपना न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय करने में ही 15 दिन लग गए,वे सरकार कैसे चलाएंगे।यह समझना ज्यादा कठिन नहीं है।अब तक महाराष्ट्र में शिवसेना रिमोट कंट्रोल से राजनीति करती आई है।पहली बार उसका रिमोट कंट्रोल अब एनसीपी के शरद पवार के पास है।अपनी शर्तें मनवा कांग्रेस ने भी जता दिया है कि उसका सरकार चलाने में पूरा दखल रहने वाला है ।थपफ्ला अवसर है जब ठाकरे परिवार के किसी व्यक्ति को मातोश्री से बाहर आ दूसरे दलों की चौखट पर आना पड़ा है और अपनी मनमर्जी के विपरित दूसरों की शर्तों पर सहमति जताने के लिए विवश होना पड़ा है।अवसरवादी गठजोड़ों ने बता दिया है कि अब सिद्धांतवादी राजनीति का दौर खत्म हो गया है।अब सता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल किसी भी सीमा तक नीचे जा सकते हैं।मोदी को रोकने के नाम पर जिस तरह से धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता की परिभाषा बदली गई है ,उस पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।सता की लालसा अछूतों को भी गले लगाने के लिए मजबुर कर देती है यह इस नए गठजोड़ ने साबित कर दिया है।कांग्रेस और एनसीपी के निशाने पर सांप्रदायिक पार्टी के रूप में रही पार्टी शिवसेना अब धर्मनिरपेक्ष हो गई है।जिस सोनिया गांधी और उनके आगे नतमस्तक होने वाले नेताओं को बाल ठाकरे तंज कसा करते थे ,आज उन्हीं के बेटे उद्धव ठाकरे कुर्सी के लिए सोनिया के आगे नतमस्तक हो रहे हैं।अपनी विचार धारा से समझौता कर रहे हैं।इसकी कल्पना कभी बाल ठाकरे ने नहीं की होगी। इस तरह से कांग्रेस से हाथ मिलाना कई शिवसेना विधायकों को नागवार गुजरा है और उन्होंने अपना विरोध भी उद्धव ठाकरे के सामने जता दिया है। इन नेताओं ने ठाकरे को चेताया है कि हिंदुत्व की लाइन से हटना पार्टी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।आगे भविष्य में चुनावों में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।फिलहाल सीएम की कुर्सी पर बैठने को लालायित ठाकरे इसकी अनदेखी कर रहे हैं लेकिन राजनीति के पंडितों का मानना है कि बेमेल गठजोड़ कर शिवसेना ने न केवल अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है ,राज्य में हिंदूवादी वोटरों को बीजेपी की तरफ जाने का रास्ता खोल अपने नए सियासी दुश्मन को मजबूत बनाने का काम ही किया है।शिव सेना के इस कदम से अब बीजेपी को उसकी ब्लैकमेलिंग से निजात मिल गई है और अब वह अपने बलबूते चुनाव लड़ बहुमत वाली सरकार बना सकेगी। शिवसेना का वजूद हिंदूवादी वोटरों पर ही टिका हुआ है ।हिंदुत्व वादी मुद्दे छोड़ने से उसका वोटर उससे दूर ही होगा और विकल्प होगा बीजेपी।कोई आश्चर्य नहीं होगा कि जो विधायक कांग्रेस के साथ गठजोड़ का विरोध कर रहे हैं वे निकट भविष्य में शिवसेना को छोड़ बीजेपी का दामन थाम ले।ऐसे विधायकों की संख्या 20 बताई जा रही है जो आगे जाकर ज्यादा भी हो सकती है तीनों पार्टियों अपना अपना हित साधने के लिए बेमेल गठजोड़ की सरकार चलाने के लिए इकट्ठा हुए है ऐसे में जब भी इनके आपसी हित टकराएंगे सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगी।कांग्रेस का तो इतिहास सरकारें गिराने का रहा है।आज तक जिस भी सरकार में यह जूनियर पार्टनर रही या बाहर से समर्थन दिया उसे समय से पूर्व गिराने का काम कांग्रेस करती आ रही है।कर्नाटक की कुमार स्वामी की सरकार का हश्र सबके सामने है।ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि तीन पहियों वाली ये बेमेल सरकार कब तक चल पाएगी।सरकार को सपा भी समर्थन दे रही है।यह वही पार्टी है जो बाबरी मस्जिद गिराने के लिए बीजेपी के साथ शिवसेना को भी दोषी ठहराती रही है।जिसने कारसेवकों जिसमें बीजेपी और शिवसेना दोनों के कार्यकर्ता थे को गोलियों से कतलेआम करवा दिया था।शिवसेना से हाथ मिला अब वह मुसलमानों के पास किस मुंह से वोट लेने जाएगी।कांग्रेस और एनसीपी को भी अपने मुस्लिम तो शिव सेना को अपने हिन्दू वोटरों को चुनावों में इसका जवाब तो देना ही होगा कि उनकी भावनाओं को ताक पर रख बेमेल सरकार क्यों बनाई गई।लबोलुआब यही है कि सरकार आपसी हितों की टकराहट से जल्द गिरेगी और अब भले ही बीजेपी के हाथों से सता निकल गई हो ,भविष्य में जब भी चुनाव होंगे उसे इसका पूरा लाभ मिलेगा और वह सता में वापसी अपने दम पर करेगी। बड़ा सवाल उभर कर यह भी आ रहा है कि क्या भविष्य में शिव सेना अपने पुराने मुद्दों राम मंदिर,समान नागरिक संहिता,एनआरसी,जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने और वीर सावरकर को भारत रत्न के साथ कांग्रेस और एनसीपी के साथ चुनाव लड़ेगी या इन्हें महाराष्ट्र विकास अघाडी के मिनिमम कार्यक्रम के तहत चुनाव में उतरेगी और यह भी क्या आगामी विधान सभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी गठजोड़ करेंगी या पल्ला झाड़ लेंगी।मदन अरोड़ा
महाराष्ट्र में अस्सी घंटे के भीतर ही मुख्य मंत्री देवेन्द्र फडणवीस के इस्तीफा देने के साथ ही राज्य की राजनीति में करीब एक महीने भर से चल रहे शह और मात के खेल का दौर खत्म हो गया है।इसके साथ ही अब यक्ष सवाल ये है कि राजनीतिक अवसरवाद का एक और उदाहरण पेश करते हुए शिवसेना ,कांग्रेस और एनसीपी की बनने जा रही बेमेल सरकार का भविष्य क्या होगा।शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार भले ही बना ली हो,लेकिन स्थायित्व पर फिलहाल प्रश्नचिन्ह ही है।जिन दलों को अपना न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय करने में ही 15 दिन लग गए,वे सरकार कैसे चलाएंगे।यह समझना ज्यादा कठिन नहीं है।अब तक महाराष्ट्र में शिवसेना रिमोट कंट्रोल से राजनीति करती आई है।पहली बार उसका रिमोट कंट्रोल अब एनसीपी के शरद पवार के पास है।अपनी शर्तें मनवा कांग्रेस ने भी जता दिया है कि उसका सरकार चलाने में पूरा दखल रहने वाला है ।थपफ्ला अवसर है जब ठाकरे परिवार के किसी व्यक्ति को मातोश्री से बाहर आ दूसरे दलों की चौखट पर आना पड़ा है और अपनी मनमर्जी के विपरित दूसरों की शर्तों पर सहमति जताने के लिए विवश होना पड़ा है।अवसरवादी गठजोड़ों ने बता दिया है कि अब सिद्धांतवादी राजनीति का दौर खत्म हो गया है।अब सता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल किसी भी सीमा तक नीचे जा सकते हैं।मोदी को रोकने के नाम पर जिस तरह से धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता की परिभाषा बदली गई है ,उस पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।सता की लालसा अछूतों को भी गले लगाने के लिए मजबुर कर देती है यह इस नए गठजोड़ ने साबित कर दिया है।कांग्रेस और एनसीपी के निशाने पर सांप्रदायिक पार्टी के रूप में रही पार्टी शिवसेना अब धर्मनिरपेक्ष हो गई है।जिस सोनिया गांधी और उनके आगे नतमस्तक होने वाले नेताओं को बाल ठाकरे तंज कसा करते थे ,आज उन्हीं के बेटे उद्धव ठाकरे कुर्सी के लिए सोनिया के आगे नतमस्तक हो रहे हैं।अपनी विचार धारा से समझौता कर रहे हैं।इसकी कल्पना कभी बाल ठाकरे ने नहीं की होगी। इस तरह से कांग्रेस से हाथ मिलाना कई शिवसेना विधायकों को नागवार गुजरा है और उन्होंने अपना विरोध भी उद्धव ठाकरे के सामने जता दिया है। इन नेताओं ने ठाकरे को चेताया है कि हिंदुत्व की लाइन से हटना पार्टी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।आगे भविष्य में चुनावों में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।फिलहाल सीएम की कुर्सी पर बैठने को लालायित ठाकरे इसकी अनदेखी कर रहे हैं लेकिन राजनीति के पंडितों का मानना है कि बेमेल गठजोड़ कर शिवसेना ने न केवल अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है ,राज्य में हिंदूवादी वोटरों को बीजेपी की तरफ जाने का रास्ता खोल अपने नए सियासी दुश्मन को मजबूत बनाने का काम ही किया है।शिव सेना के इस कदम से अब बीजेपी को उसकी ब्लैकमेलिंग से निजात मिल गई है और अब वह अपने बलबूते चुनाव लड़ बहुमत वाली सरकार बना सकेगी। शिवसेना का वजूद हिंदूवादी वोटरों पर ही टिका हुआ है ।हिंदुत्व वादी मुद्दे छोड़ने से उसका वोटर उससे दूर ही होगा और विकल्प होगा बीजेपी।कोई आश्चर्य नहीं होगा कि जो विधायक कांग्रेस के साथ गठजोड़ का विरोध कर रहे हैं वे निकट भविष्य में शिवसेना को छोड़ बीजेपी का दामन थाम ले।ऐसे विधायकों की संख्या 20 बताई जा रही है जो आगे जाकर ज्यादा भी हो सकती है तीनों पार्टियों अपना अपना हित साधने के लिए बेमेल गठजोड़ की सरकार चलाने के लिए इकट्ठा हुए है ऐसे में जब भी इनके आपसी हित टकराएंगे सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगी।कांग्रेस का तो इतिहास सरकारें गिराने का रहा है।आज तक जिस भी सरकार में यह जूनियर पार्टनर रही या बाहर से समर्थन दिया उसे समय से पूर्व गिराने का काम कांग्रेस करती आ रही है।कर्नाटक की कुमार स्वामी की सरकार का हश्र सबके सामने है।ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि तीन पहियों वाली ये बेमेल सरकार कब तक चल पाएगी।सरकार को सपा भी समर्थन दे रही है।यह वही पार्टी है जो बाबरी मस्जिद गिराने के लिए बीजेपी के साथ शिवसेना को भी दोषी ठहराती रही है।जिसने कारसेवकों जिसमें बीजेपी और शिवसेना दोनों के कार्यकर्ता थे को गोलियों से कतलेआम करवा दिया था।शिवसेना से हाथ मिला अब वह मुसलमानों के पास किस मुंह से वोट लेने जाएगी।कांग्रेस और एनसीपी को भी अपने मुस्लिम तो शिव सेना को अपने हिन्दू वोटरों को चुनावों में इसका जवाब तो देना ही होगा कि उनकी भावनाओं को ताक पर रख बेमेल सरकार क्यों बनाई गई।लबोलुआब यही है कि सरकार आपसी हितों की टकराहट से जल्द गिरेगी और अब भले ही बीजेपी के हाथों से सता निकल गई हो ,भविष्य में जब भी चुनाव होंगे उसे इसका पूरा लाभ मिलेगा और वह सता में वापसी अपने दम पर करेगी। बड़ा सवाल उभर कर यह भी आ रहा है कि क्या भविष्य में शिव सेना अपने पुराने मुद्दों राम मंदिर,समान नागरिक संहिता,एनआरसी,जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने और वीर सावरकर को भारत रत्न के साथ कांग्रेस और एनसीपी के साथ चुनाव लड़ेगी या इन्हें महाराष्ट्र विकास अघाडी के मिनिमम कार्यक्रम के तहत चुनाव में उतरेगी और यह भी क्या आगामी विधान सभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी गठजोड़ करेंगी या पल्ला झाड़ लेंगी।मदन अरोड़ा
संविधान दिवस पर लोकतंत्र का चीरहरण होते होते बच गया।भगवान का लाख लाख शुक्रिया।लोकतंत्र को बचाने के लिए देश को सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ शरद पवार,सोनिया गांधी और उद्धव ठाकरे का ऋणी होना चाहिए कि उन्होंने लोकतंत्र को बचाने के लिए लंबा जद्दोजहद किया ।ये लड़ाई सता हासिल करने के लिए नहीं,पूरी तरह से लोकतंत्र को बचाने के लिए पूरी शिद्दत और देशहित में लड़ी है।सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी को झतका देते हुए फैसला दे लोकतंत्र को बचा लिया,अगर उसने कहीं बीजेपी को कोई राहत दे दी होती तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता।शिवसेना,कांग्रेस और एनसीपी का इसके लिए आभार जताया जाना चाहिए कि उन्होंने सता के लिए नहीं देश हित में अपनी अपनी दुश्मनी और विचार धारा को तिलांजलि देते हुए बीजेपी को सत्ता से दूर कर लोकतंत्र को बचा लिया,अगर ये सता हासिल करने में नाकाम हुए होते तो लोकतंत्र का चीरहरण हो जाता ।हमारे देश की विडम्बना है कि जब कोई फैसला हमारे पक्ष में जाता है तो लोकतंत्र और संविधान की रक्षा होती है और ये देश हित में होता है और जब मनमाफिक कोई चीज नहीं होती तो भले ही वह पूरी तरह संवैधानिक क्यों न हो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है।ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है कि हम हर चीज को अपने तरीके से देख और व्यक्त कर सकते हैं।मानवाधिकार को देखने का हमारा नजरिया अनेकता में एकता वाला है।जब सुरक्षाबलों पर आतंकवादी,नक्सलवादी और बदमाश हमला करते हैं और हमारे जवान शहीद होते हैं तो कोई हमलावरों पर मानवाधिकार की बात नहीं करता लेकिन अगर कोई आतंकवादी,नक्सलवादी या बदमाश मारा जाता है तो उसके मानवाधिकार का मुद्दा उठा कोर्ट तक में याचिकाएं दायर कर दी जाती हैं।हमारे देश में बदमाशों ,अपराधियों को जीने का अधिकार है लेकिन देश को बचाने में लगे सुरक्षा बलों के जवानों को जीने का नहीं केवल अपराधियों राष्ट्रद्रोहियों के हाथों मारे जाने का अधिकार हैं क्योंकि वे मरने के लिए ही तो सुरक्षा बलों में आते हैं।यही वजह है कि जब सुरक्षा बलों के जवान शहीद होते हैं तो जेएनयू जैसे शिक्षण संस्थानों में जश्न मनाया जाता है और जब कोई आतंकवादी मारा जाता है तो उसे श्रद्धांजलि दी जाती है।उसकी मौत को लेकर कोर्ट में याचिकाएं तक लगाई जाती हैं,पर शहीद परिवार को न्याय दिलाने के लिए कथित मानवाधिकारवादी कभी आगे नहीं आते।ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि हम मोब्लिंचिंग को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं।कोई अपराधी अगर हिन्दू भीड़ के हाथों मारा जाए तो मोब्लिंचिंग होती है और अगर कोई हिन्दू पिता दूसरे धर्म के लोगों की भीड़ से अपनी बेटी की इज्जत बचाते हुए मार दिया जाए तो न ही ये मोब्लिंचिंग हैं और न ही इससे देश असहिष्णु होता है।मंदिरों पर हमला कर उसमें तोड़फोड़ सही है लेकिन यदि किसी गिरजाघर में उसके ही पूर्व कर्मचारी चोरी कर लें,कोई शराबी उसका कोई कांच तोड़ दे तो देश अल्पसंख्यकों के रहने लायक नहीं रह जाता।हमने धर्मनिरपेक्षता को भी बहुत ही खूबसूरती के साथ परिभाषित किया है।जो हिन्दुओं की बात करे,जो देश में संविधान के अनुरूप समान नागरिकता कानून बनाने की बात करे,जी देश से अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालने की बात करे,जो देश में नागरिकों की पहचान के लिए एनआरसी लागू करे,जो प्रलोभन देकर धर्मपरिवर्तन के खिलाफ कानून लाने,जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून की बात करे वो सांप्रदायिक और जो संविधान की भावनाओं की हत्या कर वोटों के लिए एक धर्म विशेष के तुष्टिकरण कर लाभ पहुंचाए,जो आंख बन्द कर प्रलोभन देकर धर्मपरिवर्तन को सही ठहराए,जो संविधान की भावनाओं को रोंद समान नागरिक कानून बनाने,घुसपैठियों को वोटों के लिए बसाए रखने की वकालत करे,जो एक धर्म विशेष की राजनीति करे वे धर्मनिरपेक्ष बाकी सब सांप्रदायिक।हमारे लोकतंत्र ने भी अभिव्यक्ति की आजादी को भी अपने तरीके से व्यक्त करने की पूरी छूट दी है।आप देश के खिलाफ नारे लगाए,आप देश के खिलाफ कुछ भी लिखें ये अभिव्यक्ति की आजादी है।आप जेएनयू जैसे शिक्षण संस्थानों में विचारधारा विशेष से जुड़े हैं तो आपको वहां आपको अपने भाषण पिलाने की पूरी छूट है पर अगर आप उस विचारधारा यानी वामपंथी नहीं है तो आपको बोलने का कोई अधिकार नहीं है।आपके खिलाफ प्रदर्शन,धक्कमुकी सब अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किए जा सकते हैं।ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि कल तक जिसे धुर सांप्रदायिक और हिंदूवादी पार्टी बता निंदा की जाती थी ,वह शिवसेना अब सता हासिल करने के लिए कांग्रेस और एनसीपी की गंगा में डुबकी लगा धर्मनिरपेक्ष हो गई है।अब वह न हिंदूवादी पार्टी है और न ही बाबरी मस्जिद विध्वंस की दोषी।शिवसेना को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण पत्र कोई और नहीं वहीं कांग्रेस और एनसीपी दे रही है जो उस पर इसका दोषारोपण करती थी।सता में भागीदारी मिलते ही कांग्रेस और एनसीपी के लिए शिवसेना वाशिंग मशीन से धुलने के बाद निर्विवाद रूप से एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी हो गई है।मंगलवार को शिवसेना को पिछले तीस सालों से सांप्रदायिक पार्टी बताने वाले एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा,शिवसेना कभी सांप्रदायिक पार्टी नहीं थी,वह तो बनी ही महाराष्ट्र के विकास के लिए है।उस पर बीजेपी के साथ रहने की वजह से ही साम्प्रदायिकता का आरोप लगता रहा।लोकतंत्र की खूबसूरती के चलते ही हिंदुत्व भी अब सच्चा और झूठा हो गया है।महाराष्ट्र विकास अघाडी का नेता चुने जाने के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा कि उनके हिंदुत्व में झुठापन नहीं है वे अब भी हिंदूवादी है।उनके बयान से यह आभास मिलता है कि जब वे रामलला हम आएंगे,मन्दिर वहीं बनाएंगे का नारा लगाते थे,जब वे समान नागरिकता कानून,जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने,बाबरी मस्जिद गिराने का श्रेय लेते थे।एनआरसी की वकालत करते थे ,तब वे झूठे हिंदुत्व की बात करते थे।तब भी वे झूठे हिंदुत्व की बात करते थे जब वीर सावरकर को भारतरत्न की मांग करते थे।अब इन सब मुद्दों को तिलांजलि देने के बाद उनके हिंदुत्व में झुठापन नहीं रहा है।लोकतंत्र में हर चीज को अपने नजरिए से देखना और बयां करना ही तो इसकी खूबसूरती है।जो शिवसेना कभी कांग्रेस और एनसीपी के लिए अछूत थी एक दूसरे को पानी पी पीकर कोसा करते थे ,आज सता के लिए गलबहियां हो रहे हैं तो ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती ही तो है।इसी से ही तो लोकतंत्र की सुरक्षा सुरक्षित होती है।अगर ये तीनों दल सता में न आए होते तो लोकतंत्र की हत्या हो गई होती।मदन अरोड़ा
सुप्रीम कोर्ट ने 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद मामले में मोदी सरकार को बड़ी राहत देते हुए दूसरी बात क्लीन चिट दी है।cji रंजन गोगोई,जस्टिस sk कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने एकमत से इस मामले में दायर सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा न तो वह सेब की तुलना संतरे से कर सकती है और न ही हवा में जांच का आदेश दे सकती है।ये टिप्पणी लड़ाकू विमान की कीमतों की तुलना एक ख़ाली एयरक्राफ्ट से कर रहे राहुलऔर केवल बयानों और बिना सबूत और साक्ष्य वाली मीडिया रिपोर्ट के आधार पर याचिकाओं के पेश किए जाने के संदर्भ में की गई है।सुप्रीम कोर्ट ने इस डील से जुड़े विवाद को अपनी तरफ से अंत कर दिया है। कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने एकमत से पिछले 14 दिसम्बर को दिए अपने फैसले को बरकरार रखते हुए साफ कर दिया है कि इस मामले में अब न तो कोई एफआईआर दर्ज करने की जरूरत है और न ही किसी तरह की जांच की।लेकिन कांग्रेस अब भी इस मुद्दे को अपने सियासी फायदे के लिए जिंदा रखना चाहती है।राहुल जस्टिस केएम जोसेफ की टिप्पणी का हवाला दे रहे हैं कि उन्होंने इस डील में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत जांच की गुंजाइश छोड़ी है और इस आधार पर कांग्रेस जेपीसी की जांच की मांग कर रही है।जबकि जस्टिस जोसेफ ने ये टिप्पणी अलग से बिना सरकार की स्वीकृति के सीबीआई के किसी मामले में एफआईआर दर्ज किए जाने को लेकर की है।उन्होंने कहा कि साक्ष्य मिलने पर सीबीआई सरकार की पूर्व अनुमति से एफआईआर दर्ज कर सकती है। कोर्ट में जितनी याचिकाएं और पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गई वे अब तक बिना किसी साक्ष्य के हवा में की गई है।जस्टिस जोसेफ की इस टिप्पणी केबावजुद तीनों जजों ने एकमत से फैसला सुनाते हुए मोदी सरकार को पूरी तरह से क्लीन चिट दी है।वास्तव में देश की सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर काफी सियासत हो चुकी है और अब देश की सुरक्षा को और बेहतर बनाने पर ध्यान देने की जरूरत है।पूर्व वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने फैसले के बाद अपने बयान में कहा भी है किदेश की सुरक्षा को ताक पर रख सियासी फायदे के लिए विवाद को पैदा किया गया।तमाम प्रक्रिया वायुसेना की अगुवाई वाली कमेटी की देखरेख में पूरी की गई।उन्होंने कहा कि विमान की कीमतों को लेकर कहीं भी सरकार का कोई दखल नहीं था ।कीमतें अधिकारियों ने तय की थी और ये कीमतें यूपीए सरकार की तुलना में कम थी।दरअसल राहुल गांधी और कांग्रेस राफेल एयरक्राफ्ट की कीमतों की लड़ाकू राफेल विमान की कीमतों से तुलना कर देश की जनता की आंखों में धूल झोंकने का काम करती रही और इसी पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम सेब की तुलना संतरे से नहीं कर सकते।कोर्ट ने तीनों जजों ने एकमत से कहा कि जहां तक राफेल विमान की कीमत का सवाल है,उपलब्ध साक्ष्य व तथ्यों से हम संतुष्ट हैं।यह कोर्ट का काम नहीं है कि वह राफेल की कीमतों का आकलन करें और कीमत तय करे।सिर्फ इसलिए कि कुछ लोगों ने शंका जताई हो,इस आधार पर कोर्ट इसका आकलन नहीं कर सकता।उपलब्ध दस्तावेज पर गौर करने और अच्छी तरह से जांच के बाद हमारा मानना है कि सेब की तुलना संतरे से नहीं हो सकती।विमान की जो कीमत बताई गई है,वह तुलनात्मक रूप से कम है।विमान में क्या लैस किया जाएगा और क्या नहीं और कीमतों में आगे क्या जोड़ा जाएगा,यह देखना उचित अथाॅरिटी का काम है। इसे लेकर विशेषज्ञों से भी जानकारी ली गई है।पीठ की तीन बड़ी टिप्पणियां,कई सरकारों ने राफेल डील पर बात की ।तब सवाल क्यों नहीं उठे।डील पर विशेषज्ञों की राय ली गई और इसके बाद ही विमान खरीद का निर्णय लिया गया।फैसला लेने की पूरी प्रक्रिया कानूनी आधार पर सही है।इसमें कहीं कोई संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है।इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि हम हवा में जांच के आदेश नहीं दे सकते। रिलायंस के संबंध में कोर्ट ने कहा कि औफसेट पार्टनर चुनने का अधिकार सप्लायर का है और वह उस पर निर्भर करता है कि किसे चुनता है।इसमें कोई और पहलू नहीं है।डील में किसी को फायदा पहुंचाया गया इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं ये बात कोर्ट पूर्व में कह चुका है।फैसले के बाद बीजेपी ने कहा है कि ये केवल सियासी फायदा उठाने के लिए एक ईमानदार पीएम मोदी कि छवि खराब करने का मामला नहीं है । इसे उठाने के लिए राहुल गांधी के पीछे वे ताकते खड़ी हैं जो डील हथियाने में नाकामयाब रही और इसी के चलते कांग्रेस सरकार ने इस डील को सिरे चढ़ाने के बजाय ठन्डे बस्ते में डाल दिया जबकि वायुसेना पिछले तीस सालों से लड़ाकू विमान की मांग कर रही थी।मालूम हो कि डसॉल्ट के बाद इटली की युरो फाइटर बनाने वाली कंपनी के टेंडर लगे थे।जिसे राफेल से ज्यादा कीमतों के चलते डील से हटाया गया था। कुछ लोग कांग्रेस और वामपंथी नेता और उनके समर्थक सवाल कर रहे हैं कि जब बोफोर्स की जांच हो सकती है तो इसकी क्यों नहीं।ये भी कहा जा रहा कि बोफोर्स पर सवाल उठाए गए और इसने कारगिल में अपनी क्षमता दिखाई।इसमें गौर करने वाले तथ्य ये हैं हैं कि बोफोर्स का मामला राजीव गांधी सरकार के रक्षा मंत्री वीपी सिंह ने उठाते हुए इसकी जांच की मांग करते हुए अपना इस्तीफा दिया था।बोफोर्स की कीमत और उसकी क्षमता पर किसी ने भी शुरू से लेकर अंत तक कोई सवाल नहीं उठाया था।सवाल इसमें ली गई घूस को लेकर उठाए गए था।इसकी जांच राहुल के कथित मामा को घूस दिए जाने और उसमें से कुछ राशि कांग्रेस नेताओं को दिए जाने की बात सामने आने और स्वीडन में इसे लेकर बोफोर्स के चार अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के बाद जांच करवाए जाने के आदेश कोर्ट ने दिए थे।जबकि राफेल मामले में सारी बस्ते हवा में हैं।फ़्रांस की कोर्ट में भी ये मामला उठा लेकिन इसमें कुछ गलत नहीं पाया गया।वहां की एक यूनियन इस मामले को कोर्ट में ले गई थी। मदन अरोड़ा 15 नवंबर 2019
अयोध्या में खुदाई करने वाली टीम के सदस्य रहे ए स आई के पूर्व निदेशक पद्मश्री केके मुहम्मद ने कम्युनिस्ट इतिहासकारों का चेहरा बेनाब करते हुए फैसले के बाद कहा कि अब मैं दोषमुक्त महसूस कर रहा हूं।उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने लोगों को बरगलाया।जिससे मामला पेचीदा होता चला गया।वे कहते हैं ,70 के दशक में और उसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश से हुई खुदाई में अयोध्या में मंदिर के अवशेष मिले।अवशेष बताते हैं कि विवादित परिक्षेत्र में कभी भव्य विष्णु मंदिर था।वे मानते हैं कि जिस तरह से मुसलमानों के लिए मक्का मदीना का महत्व है,उसी तरह से आम हिन्दू के लिए राम व कृष्ण जन्मभूमि महत्वपूर्ण है।मुहम्मद कहते हैं अलग अलग कालखंडों में लिखे गए ग्रन्थों भी हमें किसी नतीजे पर पहुंचने में मदद करते हैं।मुगल सम्राट अकबर के कार्यकाल 1556-1605 में अबुल फजल ने आईने अकबरी लिखी।तब मस्जिद वजूद में आ चुकी थी।वे लिखते हैं कि वहां चैत्र महा में बड़ी संख्या में हिन्दू श्रद्धालु पूजा करने के लिए आते थे।जहांगीर के कार्यकाल 1605-1628 में अयोध्या आए ब्रिटिश यात्री विलियम फींस ने भी अपने यात्रा वृतांत में लिखा है कि वहां विष्णु के उपासक पूजा करने आते थे।इसके बाद पादरी टेलर ने भी इस स्थल पर हिन्दुओं के पूजा अर्चना करने का जिक्र किया है ।जबकि नमाज के बारे कुछ नहीं लिखा है। मुहम्मद कहते हैं कि पैगंबर मोहम्मद का अयोध्या से कोई संबंध नहीं मिला और न ही उनके बाद आए चार खलीफाओं का कोई संबंध सामने आया है।किसी अन्य मुस्लिम गुरु ,औलिया का कोई संबंध नहीं मिला है।सिर्फ एक मुगल राजा का नाम ही अयोध्या से जुड़ा है।जो मुसलमानों के लिए उतनी आस्था का विषय नहीं हो सकता।जितना कि हिन्दुओं का राम का नाम जुड़ा होने के कारण। मुहम्मद विवाद बढ़ाने के लिए कम्युनिस्ट इतिहासकारों को जिम्मेदार ठहराते हैं जो गलत तथ्य दे मुस्लिमों को बरगलाते रहे और विवाद को हावय देने का काम किया।वे विवाद बढ़ाने के लिए कम्युनिस्ट इतिहासकार इरफान हबीब,रोमिला थापर और आरएस शर्मा को जिम्मेदार ठहराते हैं। मुहम्मद कहते हैं कि अयोध्या की खुदाई में मानवीय गतिविधियों का कार्यकाल 1200-1300 ईसा पूर्व मिला है।हो सकता है कि अयोध्या में अन्य इलाकों में खुदाई से कार्यकाल और भी ज्यादा पीछे चला जाए।लेकिन,कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने इसी के आधार पर यह साबित करने की कोशिश की , कि अयोध्या में मानवीय गतिविधियों के सबूत ही नहीं मिलते।। समझा जा सकता है कि कम्युनिस्ट इतिहासकार अपनी विचारधारा के चलते देश को कैसा भ्रमित और गुमराह करने वाला इतिहास पढ़ाते आ रहे है।ये कथित इतिहासकार देश में हकीकत से कोसों दूर अपने एजेंडे वाला इतिहास परोसने में लगे हैं। मालूम हो खुदाई के बाद जब केके मुहम्मद ने मस्जिद के नीचे मंदिर के प्रमाण होने की बात कही थी तो इन्हें जान से मारने की धमकियां दी गई थी। मदन अरोड़ा
नई दिल्ली लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'भारत का डिवाइडर इन चीफ' यानी 'प्रमुख विभाजनकारी' बताने वाली मशहूर अंतरराष्ट्रीय पत्रिका टाइम ने अब नतीजों के बाद उन पर एक और आर्टिकल छापा है। 28 मई को टाइम की वेबसाइट पर छपे इस आर्टिकल का शीर्षक 10 मई के मैगजीन के कवर पेज के शीर्षक से बिल्कुल उलट है। ताजा आर्टिकल का शीर्षक है- 'मोदी हैज यूनाइटेड इंडिया लाइक नो प्राइम मिनिस्टर इन डेकेड्स' यानी 'मोदी ने भारत को इस तरह एकजुट किया है जितना दशकों में किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया'। इस आर्टिकल को मनोज लडवा ने लिखा है जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 'नरेंद्र मोदी फॉर पीएम' अभियान चलाया था। आर्टिकल में लिखा गया है, 'उनकी (मोदी) सामाजिक रूप से प्रगतिशील नीतियों ने तमाम भारतीयों को जिनमें हिंदू और धार्मिक अल्पसंख्यक भी शामिल हैं, को गरीबी से बाहर निकाला है। यह किसी भी पिछली पीढ़ी के मुकाबले तेज गति से हुआ है।' आर्टिकल में लडवा ने लिखा है, 'मोदी की नीतियों की कटु और अक्सर अन्यायपूर्ण आलोचनाओं के बावजूद उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल और इस मैराथन चुनाव में भारतीय वोटरों को इस कदर एकजुट किया, जितना करीब 5 दशकों में किसी भी प्रधानमंत्री ने नहीं किया।' पीएम मोदी पर टाइम का यह आर्टिकल मैगजीन के इसी महीने 10 मई के अंक में प्रकाशित पत्रकार आतिश तासीर की कवर स्टोरी से बिल्कुल जुदा है। उसमें तासीर ने लिंचिंग के मामलों और यूपी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने समेत कई बातों को लेकर मोदी सरकार की आलोचना की थी। बीच चुनाव में आए उस अंक ने भारत में काफी सुर्खियां बटोरी। मोदी समर्थकों ने जहां टाइम की कवर स्टोरी की कड़ी आलोचना की, वहीं मोदी विरोधियों ने उसे हाथो हाथ लिखा। पीएम मोदी की तारीफ वाला टाइम का ताजा आर्टिकल उसकी वेबसाइट पर अभी सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले आर्टिकल में टॉप पर है। आर्टिकल में पीएम मोदी का एक विडियो भी लगाया गया है, जिसमें वह इस बात पर जोर देते दिख रहे हैं कि किसी से किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं होगा।
संभावित हार से मोदी विरोधिओं में हाहाकार मचा है और इसका ठीकरा ईवीएम पर फोड़ मोदी की जीत को लेकर देश में भ्रम और उन्माद फैलाने की कोशिशें की जा रही है।एग्जिट पोल को लेकर कहा जा रहा है कि इसकी आड़ में ईवीएम को बदला जाएगा । बड़ा सवाल ये है कि क्या ईवीएम को चुनाव में इनकी जटिल प्रक्रिया के चलते बदला जाना सम्भव है।क्या कांग्रेस भी ईवीएम में बदलाव कर चुनाव जीतती रही है ।एक सवाल यह भी किया जा रहा है कि पिछले पांच सालों में ही इस पर सवाल कजों उठ रहे हैं ।पहले मोदी सरकार में ही इन पर अंगुली क्यों उठ रही है तो जवाब ये है कि क्योंकि ईवीएम पर सवाल उठाने वाले इसी ईवीएम की वजह से सत्ता की मलाई खा रहे थे और बीजेपी चुनाव हार रही थी।बीजेपी ने 2009में इस पर सवाल uthaay लेकिन जब उसे समझा दिया गया तो उसने सवाल उठाना बन्द कर दिया पर वर्तमान में बीजेपी विरोधी पार्टीयां लगातार मिल रही हार को पचा नहीं पा रही हैं और मोदी की जीत को छल कपट की बता अपनी कमजोरी छिपा रही हैं।विपक्ष ईवीएम की जटिल प्रक्रिया के बावजूद फर्जी जानकारियां फैला इस पर सवाल खड़े कर रही हैं।कभी कहा जा रहा है कि 20 लाख ईवीएम चीन से बदलने के लिए मंगवाई गई हैं जबकि भारत के अलावा हमारी तरह की ईवीएम कहीं और बनती ही नहीं है और बदलने के लिए इनमें सारा डाटा,यूनिक नंबर डालना होगा जो पीठासीन अधिकारी की डायरी में नोट होने के साथ ही उम्मीदवारों के पास भी होता है जो किया जाना असंभव है साथ ही मतदान के बाद सभी ईवीएम कड़े सुरक्षा में उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में उनके हस्ताक्षरित सील में बंद की जाती हैं जिनकी सुरक्षा तीन स्तरीय सुरक्षा और सीसीटीवी कैमरे की नजर में होती है।चुनावी प्रक्रिया के दौरान ईवीएम की एक्स्ट्रा और आरक्षित मशीनों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है कार्मिकों का प्रशिक्षण दिया जाता है इस दौरान के वीडियो बना झूठा दावे किए जा रहे हैं कि ईवीएम बदलने के लिए लेजाई जा रही है ये सभी ईवीएम भी स्ट्रॉन्ग रूम में ही रखी जाती हैं।पुलिस ने आजमगढ़ और जोनपुर से दो युवकों को इन्हीं गलत और झूठे दावे कर लोगों को भ्रमित कर उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया है।विचारणीय बिंदु यह है कि बूथों पर कौनसी ईवीएम भेजी जाएगी यह पूर्व निर्धारित नहीं होता।हर ईवीएम का यूनिक नंबर अलग होता है।सभी पीठासीन अधिकारी डायरी में यूनिक नंबर,कितने वोट पोल हुए सभी का ब्यौरा डायरी में लिखता है और यह समस्त जानकारी उम्मीदवारों और चुनाव एजेंट के पास होती है उपयोग में लाई गई ईवीएम की पूरी लिस्ट उम्मीदवार के पास होती है। मतदान खत्म होने के बाद पीठासीन अधिकारी चुनाव एजेंटों के सामने क्लोज बटन दबाकर ईवीएम बन्द कर उस पर सील लगाता है जिस पर सभी के हस्ताक्षर होते हैं और सभी की उपस्थिति में गिनती कर कड़े पहरे में स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है ।गिनतीके लिए ईवीएम को सभी के सामने स्ट्रॉन्ग रूम से निकाला जाता है और जिनके सील पर हस्ताक्षर होते हैं उनके सामने सील को तोड़ा जाता है । ऐसे में इन ईवीएम में कैसे किसी तरह की गड़बड़ी कैसे हो सकती है सोचा और समझने की जरूरत हैmadan arora 22 may 2019
नई दिल्ली, 27 अप्रैल 2019, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कश्मीर को लेकर रुख वही है, जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का था. लेकिन वक्त से हिसाब से परिस्थितियां बदलती हैं. मोदी, अटल की नीति से अलग भी सोच सकते हैं. जहां अटल बिहारी वाजपेयी की नीतियों की प्रशंसा उनके विरोधी भी करते थे, वहीं मोदी हमेशा विपक्षी दलों के निशाने पर रहते हैं. आजतक के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कश्मीर को लेकर मोदी ने दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 'इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत' के सिद्धांत पर ही चलने का वचन दोहराया, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि घाटी के मुट्ठीभर राजनीतिक परिवारों को राज्य को भावनात्मक तौर पर ब्लैकमेल नहीं करने दिया जाएगा. कश्मीर की जनभावना के साथ किसी को भी खिलवाड़ करने नहीं दिया जाएगा. देश के चुनाव में सेना भी नरेंद्र मोदी चुनावी जनसभाओं में कई बार दोहरा चुके हैं कि उनके चुनावी मुद्दे में सेना, सीमा और आतंकवाद का मुद्दा अछूता नहीं रहेगा. तभी प्रधानमंत्री मोदी ने इस इंटरव्यू में खुलकर कहा, 'इस बार भी मेरा मुद्दा गरीबों को घर, गैस, बिजली देने का है. मैं यही बात बोलता हूं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा भी बड़ा मुद्दा है. ये नगर निकाय का चुनाव नहीं है, ये देश का चुनाव है. देश के चुनाव में सेना भी है, सीमा भी है और आतंकवाद भी मुद्दा है.' 370, 35-ए पर रुख स्पष्ट जब पीएम मोदी से सवाल पूछा गया कि बीजेपी के घोषणा पत्र में कहा गया है कि 370 और 35-ए को हटाया जाएगा. तभी पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) की ओर से कहा गया कि इससे कश्मीर भारत से अलग हो जाएगा. क्या इन अनुच्छेदों को संविधान से हटा पाना मुमकिन है? पीएम मोदी ने कड़े शब्दों में कहा, 'ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने का कोई हक ही नहीं है. यह कोई एग्रीमेंट है क्या? जम्मू-कश्मीर हजारों साल से हिंदुस्तान की तपस्या का केंद्र रहा है. हम मानते हैं कश्मीर का सबसे बड़ा नुकसान 370 और 35ए जैसी धाराओं ने किया है. हमने संकल्प पत्र में इन धाराओं को लेकर अपनी नीति स्पष्ट की है.' प्रधानमंत्री ने कहा, 'कश्मीर को लेकर पहले से समझ है. इसके लिए 5 साल शासन में रहने की ज़रूरत नहीं.' मोदी ने ये बात उस सवाल के जवाब में कही जब उनसे पूछा गया कि क्या 2014 से केंद्र की सत्ता में होने के बाद क्या आपको समझ आया कि कश्मीर मुद्दे को डील करने के लिए सबसे अच्छा रास्ता कौन सा है.. पीडीपी के साथ जाना महामिलावट पीएम मोदी ने इस मौके पर जम्मू कश्मीर में सांगठनिक जिम्मेदारी के तहत बिताए अपने दिनों को याद किया. मोदी ने कहा, 'मैं वहां संगठन के लिए काम करता था. मैं राज्य के हर जिले का दौरा करने वाला रहा. इसलिए मैं वहां के बारे में अच्छी तरह जानता हूं.' हालांकि, प्रधानमंत्री ने राज्य में अस्थिरता के लिए घाटी के राजनीतिक परिवारों के दोहरी भाषा बोलने के लिए जिम्मेदार ठहराया. मोदी ने कहा, मुट्ठीभर परिवारों ने जम्मू कश्मीर को इमोशनल ब्लैकमेलिंग करने का रास्ता चुना हुआ है. मोदी ने बीजेपी और पीडीपी के जम्मू और कश्मीर में रहे पूर्व गठबंधन को धुर विरोधी विचारधाराओं की ‘महामिलावट’ का नाम दिया. मोदी ने कहा, 'मुफ्ती साहब के वक्त हमें उम्मीद थी, लेकिन वह हमारी महामिलावट थी. तेल और पानी का मिलन था. और वो हमने कहकर किया कि हम दो अलग-अलग ध्रुव है, हमारा कोई मेल नहीं बैठेगा. लेकिन जनादेश ऐसा था कि साथ मिले बिना कोई चारा नहीं था. लोकतंत्र का तकाजा आया तो हमने छोड़ भी दिया.” इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत मोदी ने कश्मीर की जटिल समस्या को सुलझाने के लिए दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सिद्धांत को ही सबसे अच्छा रास्ता बताया. मोदी ने कहा, सिर्फ अटल जी का फॉर्मूला ही कारगर हो सकता है- ‘इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत.’ लेकिन प्रधानमंत्री ने साथ ही घाटी के हाई प्रोफाइल परिवारों पर पूरे राज्य को भावनात्मक ब्लैकमेल करने का आरोप भी लगाया. प्रधानमंत्री ने जम्मू और कश्मीर की मुख्य धारा की पार्टियों को चुनौती के लहजे में कहा कि वे श्रीनगर और दिल्ली में एक ही सुर में बोलने की हिम्मत दिखाएं. मोदी ने कहा, मुट्ठी भर परिवार हैं जो कश्मीर में एक भाषा बोलते हैं और दिल्ली में आकर दूसरी बात करते हैं. ये दोगलापन उजागर करना मेरा काम है और मैं कर रहा हूं. उनमें ये हिम्मत होनी चाहिए कि जो कश्मीर में बोलें वही दिल्ली में आकर भी बोलें. वे दो भाषा बोल रहे हैं और एक्सपोज हो रहे हैं. पीएम का दावा महंगाई रुकी प्रधानमंत्री मोदी ने इंटरव्यू में कहा कि उनके कार्यकाल में महंगाई का ना बढ़ना मजबूत अर्थव्यवस्था का प्रतीक है. 2014 में यूपीए के सत्ता से बाहर होने में महंगाई दर का ऊंचा होना भी एक अहम कारण था. मोदी ने नोटबंदी और गुड्स एवं सर्विस टैक्स (GST) के अमल पर सरकार की आलोचना को खारिज किया. अर्थव्यवस्था के मौजूदा प्रबंधन को लेकर मोदी ने कहा, ‘मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं.’ मोदी ने कहा, 'आप 2014 पर लौटकर देखिए तो महंगाई सुर्खियां बनती थीं. आज मंहगाई की चर्चा ही नहीं है.' प्रधानमंत्री ने हैरानी जताई कि विपक्ष से कभी नहीं पूछा जाता कि कैसे मौजूदा सरकार ने पांच साल के कार्यकाल में महंगाई को काबू में रखा. मोदी ने कहा, 'आप कांग्रेस से कभी नहीं पूछते कि 2014 के बाद कीमतों में कैसे गिरावट आई. पूछा जाता तो उनके लिए जनता के सामने झूठ बोलना बड़ा मुश्किल होता.' बदल गईं 'दीदी' हाल में अभिनेता अक्षय कुमार को दिए इंटरव्यू में मोदी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से उन्हें कुर्ते गिफ्ट में देने का जिक्र किया था. मोदी ने कहा कि व्यक्तिगत संबंध और व्यवहार अलग बात होती है और राजनीतिक विचारधारा की लड़ाई अलग. मोदी ने इस संबंध में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के ब्लॉग का जिक्र किया. मोदी ने कहा, 'आडवाणी जी ने बहुत अच्छा ब्लॉग लिखा. हम किसी को अपना दुश्मन नहीं समझते और यही हमारी मूल चरित्र है.' मोदी ने ममता बनर्जी में आए बदलाव पर हैरानी जताते हुए 2009 के दिनों को याद किया कि किस तरह वे अवैध बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने की बात करती थीं. साथ ही हिंसा के खिलाफ़ आह्वान करती थीं और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन के तहत चुनाव की मांग करती थीं. मोदी ने कहा, 'अब वही ममता दीदी हैं. वहां चुनाव में आए दिन हत्याएं हो रही हैं. इस पर मुझे हैरानी होती है कि कौन सी ममता दीदी हैं. ये चिंता की बात है. वे इतना बदल जाएंगी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. मैंने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि ममता जी को लेकर मेरा आकलन गलत निकला.' साध्वी प्रज्ञा के समर्थन में पीएम प्रधानमंत्री ने भोपाल से बीजेपी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को लेकर पूछे सवाल पर खुद के गुजरात सीएम रहते हुए अपने पर लगाए आरोपों का हवाला दिया. मोदी ने कहा, 'मुझ पर इतने आरोप लगे थे और एक हवा बना दी गई थी. अगर तब के अखबार, ऑनलाइन मीडिया निकालोगे तो मेरे खि‍लाफ लाखों पेज पाओगे. और उसी के प्रभाव में अमेरिका ने मुझे वीजा देने से इनकार कर दिया था. लेकिन जब सच सामने आया तो वही अमेरिका मुझे न्योता देने के लिए सामने आया. ये झूठ फैलाने का कांग्रेस का मॉडस आपरेंडी है.' प्रधानमंत्री ने साध्वी प्रज्ञा के लिए कहा कि कोर्ट ने भी कह दिया है कि वे चुनाव लड़ सकती हैं. मोदी ने कहा, 'हिन्दू आतंक का नाम देकर भारत की जो हजारों साल की विरासत है उसे बदनाम किया गया. इसे सामने से ललकारना है. जैसे कि उन्होंने चौकीदार को चोर कहा. मैंने चौकीदार बनकर सामने से ललकारा. इनका मुंह तभी बंद होगा.' विरोधियों का फोकस ईवीएम की ओर मुड़ा प्रधानमंत्री ने कहा कि तीन चरण के मतदान के बाद उनके विरोधियों का फोकस ईवीएम की ओर हो गया है. मोदी ने कहा, तीन चरण के मतदान के बाद उनकी बंदूक की नोक जो है बदल गई है. अब उनकी गालियां ईवीएम को जा रही हैं. मैं ईश्वर का आभारी हूं कि अब गालियां 50%-50% हो रही हैं. 50% मोदी को और 50% ईवीएम को. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंडिया ने इंडिया टुडे को ये इंटरव्यू शुक्रवार को वाराणसी लोकसभा सीट से अपना नामांकन भरने वाले दिन दिया.
नई दिल्ली, काशी से दूसरी बार चुनावी मैदान में उतरे पीएम मोदी ने आज तक से खास बातचीत की. राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर 2019 चुनाव लड़ने की बात पर पीएम ने यह सवाल कांग्रेस से पूछने के लिए कह दिया. मोदी ने बातचीत में कहा कि अगर मेरा भाषण 40 मिनट का है तो उसमें 3 से 4 मिनट राष्ट्र सुरक्षा पर बात होती है. बाकी समय में रोजगार, किसान, इंफ्रास्ट्रक्चर पर बातें करता हूं. मीडिया टीआरपी के लिए इसे मुद्दा बनाती है. मोदी ने कहा कि सेना का हतोत्साहित करके देश को कांग्रेस कैसे आगे बढ़ाएगी. वह आज तक के News Director राहुल कंवल से बात कर रहे थे. मोदी ने कहा कि 2008 में मुंबई हमला, सीआरपीएफ, जयपुर, पुणे में हुए हमले के वक्त विपक्ष सो रहा था. वे आंतक के खिलाफ क्यों नहीं खड़े हुए. मोदी ने कहा कि श्रीलंका में ईस्टर के दिन जो घटना हुई वह दुखद है. हम आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वालों में से हैं. हम आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने वालों में से हैं. उनसे डरने वाले नहीं हैं. मोदी ने कहा कि भारत से कुछ लोग पाकिस्तान दोस्ती के लिए जाते हैं. पाकिस्तान से कहा जाता है कि मुझे हटा दो सब ठीक हो जाएगा. अब पाकिस्तान मुझे हटाने के बारे में सोचेगा, ऐसा नहीं होगा. वहीं, एग्जीक्यूटिव एडिटर और एंकर श्वेता सिंह के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में पीएम मोदी ने चुनाव में राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ज्यादा बात करने पर भी जवाब दिया. 2014 का चुनाव रोजगार, विकास जैसे मुद्दों पर था, लेकिन आज जो चुनाव प्रचार हो रहा है, वो मुख्य रूप से राष्ट्रवाद पर केंद्रित हो गया है, ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में पीएम मोदी ने कहा कि इस बार भी मेरा मुद्दा गरीबों को घर, गरीबों को गैस, गरीबों को बिजली ही है. मैं हर बार वही बात बोलता हूं, लेकिन, राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा है. ये कोई म्यूनिसिपैलिटी का चुनाव नहीं है. ये पूरे देश का चुनाव है. इसमें सेना भी है, सीमा भी है और आतंकवाद भी है. कोई इससे मुंह नहीं छिपा सकता. इसीलिए चुनाव में इसकी चर्चा होती है.

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