वामपंथियों को रास नहीं आ रहा अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

अयोध्या में खुदाई करने वाली टीम के सदस्य रहे ए स आई के पूर्व निदेशक पद्मश्री केके मुहम्मद ने कम्युनिस्ट इतिहासकारों का चेहरा बेनाब करते हुए फैसले के बाद कहा कि अब मैं दोषमुक्त महसूस कर रहा हूं।उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने लोगों को बरगलाया।जिससे मामला पेचीदा होता चला गया।वे कहते हैं ,70 के दशक में और उसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश से हुई खुदाई में अयोध्या में मंदिर के अवशेष मिले।अवशेष बताते हैं कि विवादित परिक्षेत्र में कभी भव्य विष्णु मंदिर था।वे मानते हैं कि जिस तरह से मुसलमानों के लिए मक्का मदीना का महत्व है,उसी तरह से आम हिन्दू के लिए राम व कृष्ण जन्मभूमि महत्वपूर्ण है।मुहम्मद कहते हैं अलग अलग कालखंडों में लिखे गए ग्रन्थों भी हमें किसी नतीजे पर पहुंचने में मदद करते हैं।मुगल सम्राट अकबर के कार्यकाल 1556-1605 में अबुल फजल ने आईने अकबरी लिखी।तब मस्जिद वजूद में आ चुकी थी।वे लिखते हैं कि वहां चैत्र महा में बड़ी संख्या में हिन्दू श्रद्धालु पूजा करने के लिए आते थे।जहांगीर के कार्यकाल 1605-1628 में अयोध्या आए ब्रिटिश यात्री विलियम फींस ने भी अपने यात्रा वृतांत में लिखा है कि वहां विष्णु के उपासक पूजा करने आते थे।इसके बाद पादरी टेलर ने भी इस स्थल पर हिन्दुओं के पूजा अर्चना करने का जिक्र किया है ।जबकि नमाज के बारे कुछ नहीं लिखा है। मुहम्मद कहते हैं कि पैगंबर मोहम्मद का अयोध्या से कोई संबंध नहीं मिला और न ही उनके बाद आए चार खलीफाओं का कोई संबंध सामने आया है।किसी अन्य मुस्लिम गुरु ,औलिया का कोई संबंध नहीं मिला है।सिर्फ एक मुगल राजा का नाम ही अयोध्या से जुड़ा है।जो मुसलमानों के लिए उतनी आस्था का विषय नहीं हो सकता।जितना कि हिन्दुओं का राम का नाम जुड़ा होने के कारण। मुहम्मद विवाद बढ़ाने के लिए कम्युनिस्ट इतिहासकारों को जिम्मेदार ठहराते हैं जो गलत तथ्य दे मुस्लिमों को बरगलाते रहे और विवाद को हावय देने का काम किया।वे विवाद बढ़ाने के लिए कम्युनिस्ट इतिहासकार इरफान हबीब,रोमिला थापर और आरएस शर्मा को जिम्मेदार ठहराते हैं। मुहम्मद कहते हैं कि अयोध्या की खुदाई में मानवीय गतिविधियों का कार्यकाल 1200-1300 ईसा पूर्व मिला है।हो सकता है कि अयोध्या में अन्य इलाकों में खुदाई से कार्यकाल और भी ज्यादा पीछे चला जाए।लेकिन,कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने इसी के आधार पर यह साबित करने की कोशिश की , कि अयोध्या में मानवीय गतिविधियों के सबूत ही नहीं मिलते।। समझा जा सकता है कि कम्युनिस्ट इतिहासकार अपनी विचारधारा के चलते देश को कैसा भ्रमित और गुमराह करने वाला इतिहास पढ़ाते आ रहे है।ये कथित इतिहासकार देश में हकीकत से कोसों दूर अपने एजेंडे वाला इतिहास परोसने में लगे हैं। मालूम हो खुदाई के बाद जब केके मुहम्मद ने मस्जिद के नीचे मंदिर के प्रमाण होने की बात कही थी तो इन्हें जान से मारने की धमकियां दी गई थी। मदन अरोड़ा

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