गठबंधन के लिए सातवें चरण में बागी बनेंगे 'विलन'?

लखनऊ यूपी में लोकसभा चुनाव अब सातवें और आखिरी चरण की ओर बढ़ चुका है। इस चरण की 13 सीटें यूपी से लेकर दिल्ली तक पक्ष-विपक्ष का सिक्का तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी। एसपी-बीएसपी को इस चरण में बीजेपी की चुनौती से पहले बागियों से जूझना पड़ रहा है। कुछ पाला बदलकर दूसरे दलों से उम्मीदवार हैं तो कुछ उदासीन पड़े हुए हैं। यह वह चरण हैं जहां गठबंधन को जीत के लिए कोर वोटरों से आगे भी हिस्सेदारी बढ़ानी पड़ेगी। मोदी लहर में हुए पिछले लोकसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो इस चरण का अधिकतर सीटों पर एसपी-बीएसपी अलग-अलग अपना झंडा गाड़ती रही हैं। धुर जातीय गणित पर लड़ी जाने वाली इन सीटों पर दोनों ही पार्टियों के साथ आने से उनके रणनीतिकारों की जीत की उम्मीद और बढ़ गई है। लेकिन, समस्या अपने ही है। नजीर के तौर पर देवरिया सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार नियाज अहमद ही गठबंधन के लिए चुनौती बने हुए हैं। नियाज पिछली बार यहां बीएसपी से उम्मीदवार थे। घोसी सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार बालकृष्ण चौहान भी बीएसपी से गए हैं। चंदौली में गठबंधन का खेल बिगाड़ रहीं कांग्रेस उम्मीदवार शिवकन्या कुशवाहा मायावती के खास रहे बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी हैं। पिछली बार वह गाजीपुर से एसपी की उम्मीदवार थीं। रार्बट्सगंज से बीजेपी उम्मीदवार पकौड़ी लाल पिछली बार एसपी के उम्मीदवार थे। बिना मैदान में उतरे भी बढ़ा रहे मुसीबत गठबंधन के लिए उनकी ही पार्टी के कई चेहरे बिना चुनाव लड़े भी मुसीबत बन रहे हैं। चंदौली से आखिरी वक्त तक एसपी से एक बड़े सवर्ण चेहरे को टिकट मिलने की चर्चा थी। लेकिन, बाजी लगी दूसरे के हाथ। सूत्रों का कहना है कि चंदौली ही नहीं गाजीपुर तक उनकी उदासीनता एसपी को नुकसान कर सकती है। अखिलेश के धुर विरोधियों में शुमार अफजाल अंसारी की बीएसपी से गाजीपुर में उम्मीदवारी को लेकर भी एसपी में असमंजस की स्थिति है। इसे दूर करने के लिए अखिलेश को खुद गाजीपुर रैली करनी पड़ी। बलिया सीट जो समाजवादियों का गढ़ रही है, वहां भी एसपी के उम्मीदवार चयन को लेकर सवाल खड़े हुए हैं। महराजगंज से अपनी बहन तनुश्री त्रिपाठी के लिए एसपी से टिकट मांगने वाले निर्दलीय विधायक अमन मणि त्रिपाठी इस समय कांग्रेस की रैलियों में दिख रहे हैं। उपचुनाव में गोरखपुर में बीजेपी की जीत का सिलसिला तोड़ने वाले प्रवीण निषाद बीजेपीई हो चुके हैं। केवल अंकगणित से नहीं चलेगा काम! सीधी लड़ाई में एक-एक वोट के हिसाब वाले चुनाव में आखिरी चरण में महज अंकगणित के भरोसे रहना गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा। इस चरण की 13 सीटों में 8 सीटों पर बीजेपी को 2014 में एसपी-बीएसपी के कुल वोटों से अधिक वोट मिले थे। इसमें मीरजापुर, कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, सलेमपुर, बांसगांव, रार्बट्सगंज और वाराणसी शामिल है। बलिया और घोसी सीट पर भी बीजेपी व एसपी-बीएसपी के कुल वोटों में मामूली ही अंतर था। हालांकि, उपचुनाव में गोरखपुर सीट जीतकर गठबंधन अंकगणित की ताकत दिखा चुका है। लेकिन, आम चुनाव में फैक्टर, मुद्दे और माहौल अलग हैं। इसलिए, यहां जीत के लिए यादव, दलित, मुस्लिम से आगे भी वोटरों को जोड़ने पर ही बात बनेगी।

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