आंदोलनकारी हिंसा करें तो सही, पुलिस बलप्रयोग करें तो गलत, चढ़ूनी मुखर, फिलवक्त टिकैत तमाशाई
हिसार। करनाल के बसताड़ा टोल प्रकरण पर तीनों कृषि सुधार कानून विरोधी आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच हुए टकराव के बाद मनोहर बने रहने वाले मुख्यमंत्री पहली बार लाल हैं। होना भी चाहिए, क्योंकि आंदोलनकारी अराजकता की हद कर चुके हैं। रेखांकित कर लें कि अराजकता के पीछे प्रमुख कारण हरियाणा में आंदोलन के दो प्रमुख चेहरे राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढ़ूनी के बीच हरियाणा के आंदोलनकारियों के नेतृत्व को लेकर छिड़ी जंग भी है। दोनों एक दूसरे के प्रति मुखर भले न हों, लेकिन अपनी भड़ास जरूर जाहिर कर देते हैं। इस बार चढ़ूनी केंद्र में हैं।
आंदोलनकारियों द्वारा पुलिस बल के जवानों पर हमला करने के बाद पुलिस ने स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए बलप्रयोग किया। आंदोलनकारियों ने पथराव किया। आंदोलनकारी भी घायल हुए। पुलिस के जवान भी। कुछ आंदोलनकारी हिरासत में लिए गए तो चढ़ूनी ने पूरे हरियाणा में यातायात बाधित करा दिया। चढ़ूनी ने बसताड़ा प्रकरण के विरोध में आंदोलनकारियों की बैठक बुलाई, जिसे पंचायत का नाम दिया गया। लेकिन टिकैत उस पंचायत में नहीं गए। एक दिन पहले ही घायल आंदोलनकारियों को देखने अस्पताल पहुंच गए। उनकी दो तस्वीरें वायरल हुईं। एक घायल युवा सिख आंदोलनकारी के साथ और दूसरी करनाल के एक कांग्रेस नेता के भाई के साथ। चढ़ूनी ने भी पंचायत में साफ कह दिया कि आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चे की नौ सदस्यीय कोर टीम या तो कोई फैसला ले, अन्यथा हरियाणा के किसान अब लाठियां नहीं खाएंगे। इसपर न तो राकेश टिकैत की, न संयुक्त किसान मोर्चे के किसी नेता की प्रतिक्रिया आई। इस घटनाक्रम के बाद हरियाणा में आंदोलनकारियों का एक बड़ा वर्ग अपने स्वजातीय राकेश टिकैत की जय जयकार कर रहा था।
चढ़ूनी भी जानते हैं कि आंदोलनकारी जितना अराजक होंगे, वह उनके नायक के रूप में उभरेंगे। बसताड़ा प्रकारण के दो दिन पहले चढ़ूनी अपने चार पांच सौ समर्थकों के साथ अंबाला की शाहाबाद अनाज मंडी में सभा कर रहे थे। भारतीय किसान यूनियन (भाईचारा गुट) के प्रदेश अध्यक्ष नरपत राणा भी अपने पंद्रह बीस समर्थकों के साथ वहां पहुंच गए। उन्होंने चढ़ूनी को काले झंडे दिखाए। इसके बाद चढ़ूनी समर्थकों ने विरोधी गुट के किसानों को दौड़ा दौड़ाकर बुरी तरह पीटा। लेकिन जब आंदोलनकारियों ने पुलिस पर हमला किया और पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की तो चढ़ूनी इसे अलोकतांत्रिक बताने लगे। यद्यपि आंदोलनकारियों की तरफ से अराजक आचरण आए दिन होता रहता है, लेकिन बीते एक महीने से कुछ शांति थी। कारण, राकेश टिकैत तस्वीर से बाहर थे और चढ़ूनी को संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं ने तब से उपेक्षित कर रखा है, जब से उन्होंने पंजाब में चुनाव लड़ने का सुझाव दिया है। लेकिन इस बीच जो घटनाक्रम हुए उसमें अराजकता का प्रदर्शन करने का अवसर मिल गया और चढ़ूनी ने इसका श्रेय हाथोहाथ लिया।
बसताड़ा प्रकरण की शुरुआत के पहले ही इसकी स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी था। करनाल में भारतीय जनता पार्टी की प्रदेशस्तरीय बैठक थी। मुख्यमंत्री मनोहरलाल और प्रदेश भाजपाध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ सहित लगभग दो सौ प्रतिनिधियों को पहुंचना था। चढ़ूनी ने आंदोलनकारियों से भाजपा का कार्यक्रम न होने देने का आह्वान किया। कार्यक्रम स्थल करनाल शहर में था। पुलिस ने जबरदस्त नाकेबंदी की थी। एसडीएम ने कह रखा था कि नाका किसी भी हालत में नहीं टूटना चाहिए। जो नाका तोड़े, उसका सिर फोड़ दो। जब आंदोलनकारी भाजपा की बैठक को बाधित करने में असफल रहे तो उन्होंने शहर के बाहर स्थित बसताड़ा टोल पर यातायात बाधित कर दिया। इसके बाद पुलिस पर हमला हुआ और टकराव हो गया।
एक दिन बाद यमुनानगर में भाजपा के पूर्वांचल प्रकोष्ठ की बैठक थी। वहां भी आंदोलनकारियों ने उपद्रव किया। राकेश टिकैत इस समय हरियाणा से इतर अन्य प्रदेशों में घूम रहे हैं। चढ़ूनी को लगता है कि आंदोलनकारियों को उकसाकर वह हरियाणा के आंदोलनकारियों के नेता के रूप में फिर स्थापित हो सकते हैं। ऐसा भी नहीं कि टिकैत अराजकता का समर्थन नहीं करते। करते हैं, वह चढ़ूनी को क्रेडिट भी नहीं देना चाहते, फिर भी निश्चिंत हैं, क्योंकि वह जानते हैं कि जिस दिन वह चाहेंगे, हरियाणा के आंदोलनकारी उनके पीछे खड़े हो जाएंगे। उन्हें पता है कि हरियाणा के आंदोलनकारियों का विरोध तीनों कृषि कानूनों से नहीं है, हरियाणा की चौधर को लेकर है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल क्यों है, इसे लेकर है। पांच वर्ष पहले जाट आंदोलन का कारण भी यही था और इस आंदोलन के मूल में भी यही कारण है। सो, वह जब चाहेंगे सरकार के विरोध में कोई भी बहाना लेकर आह्वान करेंगे। अराजकता होगी और चढ़ूनी जो आज खुश हो रहे हैं, फिर पीछे चले जाएंगे।
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