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डायबिटीज के घावों के लिए रामबाण बनेगी ये पट्टी, मिला राष्ट्रीय पेटेंट

नई दिल्ली,डायबिटीज के मरीजों के घावों के लिए आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई यह पट्टी रामबाण साबित हो सकती है। यह स्वदेशी ड्रेसिंग पुराने घाव वाले रोगियों के लिए किफायती लागत पर उपलब्ध होने के साथ-साथ प्रभावकारी भी होगी। प्रमुख बात यह है कि इसे 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत बनाया है। इसे राष्ट्रीय पेटेंट मिल चुका है। इसे चूहे के इन विट्रो और इन-विवो मॉडल पर परीक्षण किए जाने बाद के मान्य किया गया है। आईआईटी कानपुर के डॉ विवेक वर्मा ने आयोडीन और साइट्रिक एसिड जैसे कई योजक अणुओं को जोड़कर विकसित किया है। यह पट्टी समुद्री शैवाल अगर से प्राप्त एक प्राकृतिक बहुलक (नेचुरल पॉलीमर), अगारोज के माध्यम से विकसित की गई है। इस अनूठी घाव ड्रेसिंग में सेरिसिन, आयोडीन और साइट्रिक एसिड जैसे कई सक्रिय अणुओं को जोड़ने की भूमिका का मूल्यांकन पुराने घावों के संबंध में उनके उपचार और रोकथाम के गुणों के परिप्रेक्ष्य में 'अगर' के साथ किया गया है। यह आविष्कार विशेष रूप से संक्रमित मधुमेह के घावों के उपचार के लिए 'अगर' ड्रेसिंग पट्टियां प्रदान करता है। घाव की गंभीरता और प्रकार के आधार पर इस ड्रेसिंग को एक पट्टी (सिंगल लेयर), दोहरी पट्टी (बाइलेयर) या अनेक पट्टी (मल्टी-लेयर) वाली हाइड्रोजेल फिल्मों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता विकसित होने की यह प्रक्रिया प्रौद्योगिकी तैयारी स्तर के तीसरे चरण में है। वर्तमान में 5 मिमी व्यास के छोटे आकार के गोलाकार घाव के साथ चूहे के मॉडल पर इस मरहम पट्टी (ड्रेसिंग) का परीक्षण किया गया है। इसमें अभी सिंगल लेयर ड्रेसिंग शामिल है। अगला चरण में खरगोशों या सूअरों जैसे बड़े जानवरों के बड़े घावों के उपचार में इसकी प्रभावशीलता को जांचा जाएगा। अंतिम चरण में नैदानिक परीक्षण शामिल होंगे। इन चरणों के पूरा हो जाने के बाद इस प्रौद्योगिकी का बाजार में एकल या सभी संघटकों से भरी हुई एकल बहुपरत मरहम पट्टी (ड्रेसिंग) सामग्री के रूप में व्यावसायीकरण किया जा सकता है। डॉ विवेक वर्मा के अनुसार, इस उन्नत मरहम पट्टी (ड्रेसिंग) में घावों की उन्नत देखभाल के लिए वाणिज्यिक उत्पाद में परिवर्तित होने की पूरी क्षमता है और यह प्रतिस्पर्धी कीमत पर पुराने घावों के उपचार और देखभाल के लिए एक प्रभावशाली पट्टी का उत्पादन करवा सकता है।

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