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PM मोदी ने बिना नाम लिए नेपाल-श्रीलंका को चीन को लेकर किया आगाह

नई दिल्ली 30 जुलाई 2020 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रवि‍न्‍द जुगनाथ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की एक बिल्डिंग का उद्घाटन किया. इस वर्चुअल कार्यक्रम में पीएम मोदी ने मॉरीशस के साथ साझेदारी की अहमियत को जाहिर करते हुए पड़ोसी देशों को आगाह भी किया. पीएम मोदी ने इसके बाद बिना किसी देश का नाम लिए कहा, "अगर विकास की खोज में गलत रणनीतियां या गलत पार्टनर चुने जाते हैं तो वैश्विक महाशक्तियों का ब्लॉक बन जाएगा. इतिहास ने हमें सिखाया है कि विकास के नाम पर हुई साझेदारियों ने कई देशों को निर्भर होने पर मजबूर कर दिया. इससे औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी शासन को उभार मिला. विश्व में कई देशों का दबदबा बन गया." पीएम मोदी ने कहा कि भारत सिर्फ दूसरे देशों के विकास में उनकी मदद करना चाहता है. भारत का विकास मानवता केंद्रित है. भारत विकास कार्यों के लिए जिन देशों के साथ साझेदारी कर रहा है, वो सम्मान, विविधता, भविष्य की चिंता और सतत विकास के मूल्यों पर आधारित है. भारत के मूल सिद्धांतों में से एक है कि वह अपने पार्टनर का सम्मान करता है. हमारा सहयोग किसी शर्त के साथ नहीं आता है और ना ही किसी राजनीतिक और आर्थिक हित से प्रेरित होता है. पीएम मोदी का ये संदेश नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों को चीन को लेकर आगाह करने के तौर पर देखा जा रहा है. श्रीलंका और नेपाल विकास परियोजनाओं के नाम पर चीन से भारी-भरकम कर्ज ले रहे हैं. पिछले कुछ वक्त में नेपाल का भी चीन के प्रति झुकाव बढ़ा है जबकि भारत से सीमा विवाद को लेकर मनमुटाव बढ़ रहा है. भारत से चल रहे सीमा तनाव के बीच चीन ने नेपाल में 30 करोड़ डॉलर की रेल परियोजना पर काम तेज कर दिया है. रणनीतिक रूप से अहम ये रेलवे लाइन ल्हासा से काठमांडू तक जाएगी और फिर भारत-नेपाल सीमा के नजदीक लुम्बिनी से भी इसे जोड़ा जाएगा. हालांकि, अभी से इस परियोजना की लागत को चिंता जताई जा रही है. चीन के कर्ज को लेकर हमेशा से विश्लेषक आशंका जाहिर करते रहे हैं कि वह आर्थिक मदद के जरिए कई देशों की रणनीतिक पूंजियों पर कब्जा जमा लेता है. दिसंबर 2017 में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने चीन के कर्ज के जाल में फंसकर हंबनटोटा बंदरगाह और इसके आस-पास की 15000 एकड़ जमीन 99 सालों के लिए चीन को सौंप दी थी. उस वक्त श्रीलंका की सरकार ने अपने इस कदम का यह कहकर बचाव किया था कि वह बंदरगाह को बनाने के दौरान लिए गए चीनी कर्ज को चुका नहीं सकी इसलिए उसके पास कोई और रास्ता नहीं बचा था. इसके बावजूद, वह श्रीलंका से कर्ज लेना नहीं छोड़ रहा है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 13 मई को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे की बीच बातचीत हुई थी. चीन श्रीलंका को 50 करोड़ डॉलर का कर्ज देने के लिए तैयार है ताकि वो अपनी माली हालत सुधार सके. श्रीलंका भारत से कर्ज अदायगी की मोहलत बढ़ाने के लिए अपील कर रहा है हालांकि, अभी तक इसे लेकर कोई फैसला नहीं किया जा सका है. हाल ही में, चीन ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल के साथ एक वर्चुअल बैठक की और कहा कि वे कोरोना महामारी में साझी लड़ाई के अलावा चीन की बेल्ट ऐंड रोड परियोजना पर भी सहयोग बढ़ाएं. चीन ने अपनी और पाकिस्तान की आर्थिक साझेदारी की मिसाल देते हुए अफगानिस्तान और नेपाल को भी इसी रास्ते पर चलने की सलाह दी थी. इस बैठक को दक्षिण एशिया में चीन की सक्रिय भूमिका के तौर पर देखा जा रहा है. जाहिर है कि इससे भारत की चिंताएं बढ़ेंगी. इन चुनौतियों को समझते हुए भारत केवल मॉरीशस ही नहीं बल्कि मालदीव्स और श्रीलंका के साथ भी आर्थिक सहयोग को नए आयाम देने की कोशिश कर रहा है. मालदीव्स के साथ पुलिस, न्याय, पुलिस, कस्टम और स्वास्थ्य समेत कई क्षेत्रों में 18 समझौते हुए हैं. दिसंबर 2018 में मालदीव्स के राष्ट्रपति सोली ने जब भारत की यात्रा की थी तो 1.4 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता का ऐलान किया गया था, उसे तेजी से पूरा किया जा रहा है. पीएम मोदी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अफगानिस्तान, मालदीव्स, नेपाल और श्रीलंका में किए गए विकास कार्यों का भी जिक्र किया. मोदी ने कहा कि हमने नेपाल में आपातकालीन और ट्रामा हॉस्पिटल निर्माण के जरिए वहां की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने में मदद की है. वहीं, श्रीलंका को नौ प्रांतों में आपातकालीन एंबुलेंस सर्विस उपलब्ध कराई. पीएम मोदी ने नेपाल में ऑयल पाइपलाइन प्रोजेक्ट का भी जिक्र किया और कहा कि इससे नेपाल में पेट्रोलियम पदार्थों की उपलब्धता सुलभ होगी. भारत नेपाल में कई रेलवे लाइन बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है.

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