सरकार बन गई,इसका भविष्य क्या होगा
महाराष्ट्र में अस्सी घंटे के भीतर ही मुख्य मंत्री देवेन्द्र फडणवीस के इस्तीफा देने के साथ ही राज्य की राजनीति में करीब एक महीने भर से चल रहे शह और मात के खेल का दौर खत्म हो गया है।इसके साथ ही अब यक्ष सवाल ये है कि राजनीतिक अवसरवाद का एक और उदाहरण पेश करते हुए शिवसेना ,कांग्रेस और एनसीपी की बनने जा रही बेमेल सरकार का भविष्य क्या होगा।शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार भले ही बना ली हो,लेकिन स्थायित्व पर फिलहाल प्रश्नचिन्ह ही है।जिन दलों को अपना न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय करने में ही 15 दिन लग गए,वे सरकार कैसे चलाएंगे।यह समझना ज्यादा कठिन नहीं है।अब तक महाराष्ट्र में शिवसेना रिमोट कंट्रोल से राजनीति करती आई है।पहली बार उसका रिमोट कंट्रोल अब एनसीपी के शरद पवार के पास है।अपनी शर्तें मनवा कांग्रेस ने भी जता दिया है कि उसका सरकार चलाने में पूरा दखल रहने वाला है ।थपफ्ला अवसर है जब ठाकरे परिवार के किसी व्यक्ति को मातोश्री से बाहर आ दूसरे दलों की चौखट पर आना पड़ा है और अपनी मनमर्जी के विपरित दूसरों की शर्तों पर सहमति जताने के लिए विवश होना पड़ा है।अवसरवादी गठजोड़ों ने बता दिया है कि अब सिद्धांतवादी राजनीति का दौर खत्म हो गया है।अब सता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल किसी भी सीमा तक नीचे जा सकते हैं।मोदी को रोकने के नाम पर जिस तरह से धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता की परिभाषा बदली गई है ,उस पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।सता की लालसा अछूतों को भी गले लगाने के लिए मजबुर कर देती है यह इस नए गठजोड़ ने साबित कर दिया है।कांग्रेस और एनसीपी के निशाने पर सांप्रदायिक पार्टी के रूप में रही पार्टी शिवसेना अब धर्मनिरपेक्ष हो गई है।जिस सोनिया गांधी और उनके आगे नतमस्तक होने वाले नेताओं को बाल ठाकरे तंज कसा करते थे ,आज उन्हीं के बेटे उद्धव ठाकरे कुर्सी के लिए सोनिया के आगे नतमस्तक हो रहे हैं।अपनी विचार धारा से समझौता कर रहे हैं।इसकी कल्पना कभी बाल ठाकरे ने नहीं की होगी। इस तरह से कांग्रेस से हाथ मिलाना कई शिवसेना विधायकों को नागवार गुजरा है और उन्होंने अपना विरोध भी उद्धव ठाकरे के सामने जता दिया है। इन नेताओं ने ठाकरे को चेताया है कि हिंदुत्व की लाइन से हटना पार्टी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।आगे भविष्य में चुनावों में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।फिलहाल सीएम की कुर्सी पर बैठने को लालायित ठाकरे इसकी अनदेखी कर रहे हैं लेकिन राजनीति के पंडितों का मानना है कि बेमेल गठजोड़ कर शिवसेना ने न केवल अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है ,राज्य में हिंदूवादी वोटरों को बीजेपी की तरफ जाने का रास्ता खोल अपने नए सियासी दुश्मन को मजबूत बनाने का काम ही किया है।शिव सेना के इस कदम से अब बीजेपी को उसकी ब्लैकमेलिंग से निजात मिल गई है और अब वह अपने बलबूते चुनाव लड़ बहुमत वाली सरकार बना सकेगी। शिवसेना का वजूद हिंदूवादी वोटरों पर ही टिका हुआ है ।हिंदुत्व वादी मुद्दे छोड़ने से उसका वोटर उससे दूर ही होगा और विकल्प होगा बीजेपी।कोई आश्चर्य नहीं होगा कि जो विधायक कांग्रेस के साथ गठजोड़ का विरोध कर रहे हैं वे निकट भविष्य में शिवसेना को छोड़ बीजेपी का दामन थाम ले।ऐसे विधायकों की संख्या 20 बताई जा रही है जो आगे जाकर ज्यादा भी हो सकती है तीनों पार्टियों अपना अपना हित साधने के लिए बेमेल गठजोड़ की सरकार चलाने के लिए इकट्ठा हुए है ऐसे में जब भी इनके आपसी हित टकराएंगे सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगी।कांग्रेस का तो इतिहास सरकारें गिराने का रहा है।आज तक जिस भी सरकार में यह जूनियर पार्टनर रही या बाहर से समर्थन दिया उसे समय से पूर्व गिराने का काम कांग्रेस करती आ रही है।कर्नाटक की कुमार स्वामी की सरकार का हश्र सबके सामने है।ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि तीन पहियों वाली ये बेमेल सरकार कब तक चल पाएगी।सरकार को सपा भी समर्थन दे रही है।यह वही पार्टी है जो बाबरी मस्जिद गिराने के लिए बीजेपी के साथ शिवसेना को भी दोषी ठहराती रही है।जिसने कारसेवकों जिसमें बीजेपी और शिवसेना दोनों के कार्यकर्ता थे को गोलियों से कतलेआम करवा दिया था।शिवसेना से हाथ मिला अब वह मुसलमानों के पास किस मुंह से वोट लेने जाएगी।कांग्रेस और एनसीपी को भी अपने मुस्लिम तो शिव सेना को अपने हिन्दू वोटरों को चुनावों में इसका जवाब तो देना ही होगा कि उनकी भावनाओं को ताक पर रख बेमेल सरकार क्यों बनाई गई।लबोलुआब यही है कि सरकार आपसी हितों की टकराहट से जल्द गिरेगी और अब भले ही बीजेपी के हाथों से सता निकल गई हो ,भविष्य में जब भी चुनाव होंगे उसे इसका पूरा लाभ मिलेगा और वह सता में वापसी अपने दम पर करेगी।
बड़ा सवाल उभर कर यह भी आ रहा है कि क्या भविष्य में शिव सेना अपने पुराने मुद्दों राम मंदिर,समान नागरिक संहिता,एनआरसी,जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने और वीर सावरकर को भारत रत्न के साथ कांग्रेस और एनसीपी के साथ चुनाव लड़ेगी या इन्हें महाराष्ट्र विकास अघाडी के मिनिमम कार्यक्रम के तहत चुनाव में उतरेगी और यह भी क्या आगामी विधान सभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी गठजोड़ करेंगी या पल्ला झाड़ लेंगी।मदन अरोड़ा
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