taaja khabar..के. कविता ने केजरीवाल-सिसोदिया के साथ मिलकर शराब नीति में कराया बदलाव', ईडी का बड़ा दावा..फिर से मोदी' के नारों से गूंजा कोयंबटूर, फूलों की बारिश के बीच प्रधानमंत्री ने किया रोड शो..लोकसभा चुनाव में संतों को प्रतिनिधित्व की मांग

मन की बात

मदन अरोड़ा:लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही हार का ठीकरा किस पर फोड़ा जाए, इसके लिए विपक्ष ने तैयारी कर ली है।एक बार फिर राहुल गांधी और विपक्षी नेताओं के निशाने पर ईवीएम आ गई है। यह जानते हुए भी कि अब देश के आम मानस पर ईवीएम पर किए जाने वाले इस तरह के विलाप का कोई असर नहीं होता है,ईवीएम पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। देश विपक्षियों के इस तरह के प्रलाप का आदी हो चुका है ।जब भी चुनाव आते हैं, सम्भावित हार को देख राहुल गांधी और विपक्षी दल पहले से ही ईवीएम पर सवाल उठाने लगते हैं। जीते तो मतदाताओं की वफाई और हारे तो ईवीएम की बेवफाई। मतदाताओं पर ठीकरा फोड़ नहीं सकते। इसलिए हर बार बेचारी गूंगी ईवीएम पर हार की तोहमत लगा उसके पीछे अपनी नाकामियों को छुपा लिया जाता है। देश में चल रही चुनावी लहर के परिणामों को भांप राहुल गांधी ने ईवीएम के खिलाफ जेहाद शुरू कर दिया है।वे आरोप लगा रहे हैं कि पीएम मोदी ईडी,आईटी और ईवीएम के सहारे ही चुनाव जीतने की कोशिश कर रहे हैं। जनता तो उन्हें हटाने का मन बना चुकी है।सपा नेता डिम्पल यादव,शिव सेना के बड़बोले नेता संजय राउत ने भी ईवीएम पर सवाल खड़े करते हुए मतपत्रों के जरिये चुनाव करवाने की मांग शुरू कर दी है। मतपत्र जिसके जरिये बाहुबली बूथों को लूट चुनाव जितवाया करते थे।मतपत्र जिस पर मतदान टोलियों से मिलीभगत कर और जबरन ठप्पे लगा चुनाव जीते जाते थे।मतपत्र जिसकी गणना में कई कई दिन- रात लग जाया करती थी।दुनिया आगे जा रही है और जनता से ठुकराए राहुल गांधी जैसे नेता भारत को पीछे की ओर ले जाने की कवायद कर रहे हैं। 19 अप्रैल से 1 जून तक 7 चरणों में लोकसभा चुनाव होंगे। वोटों की गिनती 4 जून को होगी। इसे भी इन नेताओं ने मुद्दा बना लिया है।आरोप लगाए जा रहे हैं कि ये मोदी को चुनाव जितवाने के लिए किया गया है।ज्यादा समय मिलने से मोदी को चुनाव प्रचार का ज्यादा वक्त मिल जाएगा। तो क्या विपक्षी दलों के नेताओं पर चुनाव प्रचार पर किसी तरह की पाबंदी लगा दी गई है।चुनाव प्रचार के लिए जितना वक्त पीएम मोदी को मिलेगा ,उतना ही राहुल गांधी और अन्य नेता भी प्रचार कर पाएंगे। ये तो विपक्षी दलों के लिए ही मददगार होना चाहिए। मतदाताओं तक उन्हें अपनी बात रखने का अधिक वक्त मिलेगा।बकौल राहुल गांधी और विपक्ष जनता मोदी के जुमलों से परेशान है।मोदी ने झूठ बोलने के अलावा कुछ नहीं। किया। देश मोदी को सत्ता से हटाने के लिए तैयार बैठा है। तो 7 चरणों के चुनाव से बेचैनी क्यों हैं।क्यों ईवीएम को निशाना बनाया जा रहा है।चुनाव आयोग ने तो ज्यादा समय दे विपक्ष को मौका दिया है। अधिक से अधिक लोगों तक मोदी सरकार की कथित नाकामियों की बात पहुंचाने का।हकीकत ये है कि विपक्षी दल के नेता अपनी सम्भावित हार से घबराए हुए हैं और इसीलिए ईवीएम पर सवाल खड़े कर रहे हैं।चुनावों की तारीख का ऐलान करने के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से जुड़े तमाम सवालों और दावों को खारिज कर दिया था।उन्होंने कहा कि वोटिंग मशीनें शत प्रतिशत सुरक्षित हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने राहुल गांधी को आईना दिखाया और कहा कि देश की अदालतों ने 40 बार ईवीएम को लेकर दी गई चुनौतियों को खारिज किया है और अब तो अदालतें जुर्माना भी लगाने लगी हैं। सीईसी के अनुसार, '40 बार इस देश की संवैधानिक अदालतों ने ईवीएम से जुड़ी चुनौतियों को देखा है,परखा है..कहा गया था कि ईवीएम हैक हो सकती है, चोरी हो जाती है, खराब हो सकती हैं, नतीजे बदल सकते हैं...हर बार संवैधानिक अदालतों ने इसे खारिज कर दिया।' उन्होंने कहा, 'अदालतों ने कहा कि इसमें वायरस नहीं हो सकता, छेड़छाड़ नहीं हो सकती...अब तो अदालत ने जुर्माना लगाना शुरू कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने एक याचिकाकर्ता को 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है।' कुमार ने एक किताब दिखाते हुए कहा, 'थोड़ा पढ़ने की कोशिश करिये। हमारी वेबसाइट पर है...कोई भी विशेषज्ञ बन जाता है। उन्होंने कहा कि ईवीएम के युग में कई छोटे राजनीतिक दल अस्तित्व में आए, जबकि मतपत्रों के दौर में ऐसा नहीं था। कुमार का कहना था कि उम्मीदवारों के सामने 'मॉक पोल' होता है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, 'अधूरी हसरतों का इल्जाम हर बार हम पर लगाना ठीक नहीं, वफा खुद से नहीं होती खता ईवीएम की कहते हो। बाद में गोया परिणाम आता है तो उस पर कायम नहीं रहते।' उन्होंने कहा, 'ईवीएम 100 प्रतिशत सुरक्षित हैं। हमने बहुत सारे सुधार किए हैं। एक-एक ईवीएम का नंबर उम्मीदवारों को दिया जाएगा।'।उनके सामने सील की जाती हैं और उनके सामने ही खोली भी जाती हैं। फिर इनकी वफाई पर सवाल क्यों खड़े किए जा रहे हैं।हकीकत सबको पता है। खता ईवीएम की नहीं ,मतदाता ही विपक्ष से मुंह मोड़ चुका है।विपक्ष को अपनी हार का पता है।इसलिए ईवीएम बेवफा है।मोदी को हटाने की हसरत पूरी नहीं हो पा रही है।यही ईवीएम की खता है।
मदन अरोड़ा।लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है।मतदान में महज एक माह बचा है।श्रीगंगानगर क्षेत्र में पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होगा।दोनों राष्ट्रीय पार्टियों ने अभी तक आने पते नहीं खोले हैं।कांग्रेस में सीपीएम के साथ गठबंधन का पेच फसा है तो भाजपा में टिकट कटने से बगावत की आशंका से आलाकमान ऊहापोह में है।हालांकि उम्मीदवारों में जो सबसे सशक्त उम्मीदवार माने जा रहे हैं ।इतेफाक से वे दोनों ही एक ही जिले,एक ही कस्बे,एक ही पेशे के साथ साथ एक ही समुदाय से आते हैं। कांग्रेस में पूर्व सांसद भरत राम मेघवाल और भाजपा के सशक्त टिकटार्थी माने जा रहे कैलाश मेघवाल दोनों ही हनुमानगढ़ जिले के रावतसर कस्बे से आते हैं।दोनों ही शिक्षक रहे हैं और दोनों ही मेघवाल समुदाय से आते हैं।अभी तक दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों ने अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं।उम्मीद की जा रही है कि 20 मार्च को उम्मीदवारों की घोषणा हो सकती है।देखने वाली बात यह रहेगी कि क्या दोनों पार्टियां इस बार हनुमान गढ़ जिले से जुड़े उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतरेंगे और क्या ये दोनों एक ही कस्बे रावतसर से होंगे।क्या ये संयोग हकीकत में बदलेगा। अभी तक 1977 से 2019 तक हुए 11 चुनावों में कांग्रेस ने केवल दो बार 1998 और 1999 में श्रीगंगानगर जिले से शंकर पन्नू को अपना उम्मीदवार बनाया है। 7 चुनावों में हनुमानगढ़ जिले से ही उम्मीदवार बनते आ रहे हैं।जिनमें पूर्व सांसद मा.भरत राम मेघवाल 4 बार जबकि बीरबल राम मेघवाल 3 बार उम्मीदवार रह चुके हैं।इसके विपरीत इस अवधि में भाजपा और जनता दल ने एक बार 1989 में हनुमानगढ़ जिले से डूंगर राम पंवार को अपना उम्मीदवार बनाया जबकि 10 बार से श्रीगंगानगर जिले से ही उम्मीदवार उतारे जा रहे हैं।मौजूदा सांसद 7 बार तो इनके पिता बेगा राम तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं। भाजपा की ओर से इस बार मौजूदा सांसद निहालचंद, कैलाश मेघवाल,प्रियंका बलान और डॉ. अमरजीत कौर की प्रबल दावेदारी है।इनमें से कैलाश मेघवाल को छोड़ शेष सभी श्रीगंगानगर जिले से हैं।जबकि कांग्रेस की ओर से पूर्व सांसद भरत राम मेघवाल,विधायक विनोद गोठवाल और सोहन लाल नायक की प्रबल दावेदारी है।इनमें से सोहनलाल श्रीगंगानगर जिले से हैं।यह भी संयोग है कि मौजूदा सांसद निहाल चंद और सोहन लाल नायक भी एक ही कस्बे रायसिंहनगर से आते हैं।यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या रावतसर से अथवा फिर रायसिंहनगर के दोनों उम्मीदवारों के बीच मुकाबला होता दिखेगा।
मदन अरोड़ा।15 मार्च को देश में बड़ा भूचाल आने वाला है जो मोदी को अपने साथ बहा ले जाएगा और राहुल गांधी का राज तिलक हो जाएगा।इलेक्टोरल बांड के जिन्न से बोफोर्स से भी बड़ा घोटाला निकलेगा जो राजीव गांधी की तरह मोदी को भी ले डूबेगा।ये दिव्य स्वप्न कांग्रेस,वामपंथी और उनसे जुड़े चाटुकार मीडिया का एक वर्ग देख रहा है।हमारे देश में चुनावी चंदा अपराध की श्रेणी में नहीं आता।इलेक्टोरल बांड्स कांनून सम्मत चुनावी चंदे का एक जरिया है। जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।राजनीतिक दल चुनावी चंदे से ही चलते हैं।जब तक देश में कांग्रेस की सरकारें रही ,तब तक सर्वाधिक चंदा उसे मिलता रहा।आज जब केंद्र और अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, तो सबसे ज्यादा चंदा भी उसे मिल रहा है।जनसंघ और जब भाजपा की लोकसभा में मात्र 2 सीटें थी ,तब उसे भी अन्य छोटे दलों की तरह कम चंदा मिलता था। सत्ता के साथ चंदे के समीकरण बदलते हैं। जिस समय पश्चिम बंगाल, केरल,त्रिपुरा में वामपंथी सरकारें और संसद में उनके सांसदों की संख्या ठीकठाक हुआ करती थी ,तो उन्हें चंदा भी अच्छा खासा मिल जाया करता था ।लेकिन आज जब उनकी सरकार केवल केरल तक सिमट गई है और नाममात्र के सांसद रह गए हैं तो चंदा भी उसी के अनुरूप सिमट गया है। 48 साल तक कांग्रेस ने चंदे के रूप में जम कर खजाना भरा।अब जब वह केंद्र से बेदखल हो चुकी है और मात्र तीन राज्यों में सरकारें सिमट कर रह गई हैं, तो चंदे की कमाई भी कम हो गई है। उसकी जगह मलाई अब केंद्र में आई भाजपा खा रही है।इसी के चलते इन दलों के पेट में न केवल ऐंठन हो रही है,इन्हें चुनावी चंदे में बोफोर्स नजर आ रही है।मेरी बिरादरी के मलाई से महरूम हुए मीडिया के कुछ साथी भी इसीलिए बिलबिला रहे हैं और 15 मार्च को कयामत बता बड़ा भूचाल ला रहे हैं।एसबीआई के कोर्ट में 30 जून तक का समय मांगने पर, भाजपा सरकार के घोटाले छिपाने के आरोप लगाए जा रहे हैं।पर हकीकत क्या है!सरकार और एसबीआई पूरी स्पष्टवादिता और पारदर्शिता के साथ इलेक्टोरल बांड्स की डिटेल के साथ देश के समक्ष पूरी तथ्यात्मक जानकारी रखना चाहता है।किस साल ,किस उद्योगपति ने कुल कितने के बांड्स खरीदे,किस पार्टी को कितने राशि के बांड्स किस उद्योगपति से मिले ।इसके लिए वह अलग अलग जगहों पर ऑन लाईन और फिजिकल( रजिस्टरों में दर्ज) जानकारी के मिलान के बाद यह बताना चाहता था।जिसमें वक्त लगता और इसीलिए एसबीआई तीन माह का समय मांग रहा था।पर मोदी विरोधियों ने इस पर मोदी सरकार के घोटाले छिपाने का दुष्प्रचार शुरू कर दिया। दरअसल मोदी विरोधी चाहते हैं कि जो भी जानकारी आए, भले ही वह अस्पष्ट और आधी अधूरी आए। चुनाव से पहले और अभी सामने लाई जाए।ताकि उसके जरिये नूरा कुश्ती लड़ मोदी की छवि धूमिल कर राहुल गांधी की ताजपोशी का मार्ग प्रशस्त किया जा सके। अडानी ,अंबानी या किसी और ने किस-किस पार्टी को कितना चंदा दिया है,इसकी पूरी जानकारी सामने आने से मोदी को घेरने की योजना धरी की धरी रह जाती। अडानी,अंबानी विरोधियों का मुखौटा भी उतर जाता। इसलिए एसबीआई को समय दिए जाने का विरोध किया गया।अब जब केंद्र और अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और 10 करोड़ से अधिक सदस्यों वाली दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भी है तो स्वाभाविक रूप से चुनावी चंदा भी उसी को अधिक मिल रहा है और इसी को घोटाला बता देश की आंखों में धूल झोंकने और जनता को मूर्ख बनाने की कोशिशें हो रही हैं। ये तमाम नूरा कुश्ती मोदी को पीएम पद से हटा राहुल गांधी को पीएम बनाने की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए की जा रही है। इसके पीछे मकसद केवल मोदी की छवि धूमिल कर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करना है। चंदा लेना कोई अपराध नहीं है।सभी पार्टियां इलेक्टोरल बांड्स के जरिए चंदा ले रही हैं।किसी को कम किसी को ज्यादा चंदा मिल रहा है।स्वाभाविक रूप से पार्टियों की सत्ता में भागीदारी के अनुरूप यह चंदा जा रहा है।जब कांग्रेस सत्ता में थी तो उसे सबसे ज्यादा चंदा मिलता था।कर्नाटक,तेलंगाना और हिमाचल में सबसे ज्यादा कांग्रेस,पश्चिम बंगाल में टीएमसी ,केरल में वाम दलों तो केंद्र में सत्ता में सबसे बड़ी हिस्सेदारी की वजह से भाजपा को बड़ा चंदा जाता है। सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बांड्स को लेकर याचिका दाखिल करने वाली भाजपा विरोधी एडीआर,कांग्रेस नेता जया ठाकुर और उनके वकील प्रशांत भूषण और कांग्रेस अपने मोदी विरोधी मीडिया के साथ 15 मार्च को चुनाव आयोग की वेब साइट पर चुनावी चंदे की आधी अधूरी और अस्पष्ट आने वाली जानकारी के जरिये मोदी सरकार का नाम अडानी,अंबानी से जोड़ इसे उद्योगपतियों की सरकार साबित कर चुनावी फिजा बदलने की कवायद में लगी हैं। दरअसल विपक्षी दल और उनके समर्थक मीडिया का एक वर्ग सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में जिस तरह से एसबीआई को निशाने पर ले बड़े घोटाले के दावे कर रहा हैं। उससे कुछ भी साबित नहीं होने वाला। अलबत्ता इससे अब यह पता नहीं चल पाएगा कि किस दल को किस उद्योगपति से कितना पैसा मिला।जबकि एसबीआई चाहता था कि वो देश के सामने यह जानकारी रखे कि कुल बांड्स की कितनी बिक्री हुई।किस उद्योगपति ने कितने बांड्स खरीदे और किस सियासी दल को दिए। वह पूरी पारदर्शिता के साथ काम करना चाहता था।इसके लिए समय की जरूरत थी।यह जानकारी चुनाव बाद आती ।जिससे कांग्रेस,वामदल और उनसे जुड़े याचिकाकर्ताओं का मकसद पूरा नहीं होता। इसलिए याचिकाकर्ता केवल फौरी जानकारी सार्वजनिक करवा मोदी सरकार को निशाना बनाना चाहते हैं और अडानी,अंबानी से कांग्रेस के रिश्तों को छिपा केवल भाजपा से उनके रिश्तों के नैरेटिव को घड़ मोदी की छवि को धूमिल कर राहुल गांधी को पीएम बनाने की कोशिशों में लगे हैं।वास्तव में जो जानकारी जनता तक आनी चाहिए थी,वो अब मोदी विरोधियों की वजह से सामने नहीं आ पाएगी।मोदी विरोधी आने वाली अधकचरी जानकारी से मोदी सरकार को ही घेर सकते हैं ।किस उद्योगपति ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया है।इसे साबित नहीं कर सकते।केवल धूल में लट्ठ चलाये जाएंगे।कानूनन चंदा लेना कोई अपराध नहीं है।इसलिए किसी पार्टी पर किसी तरह के कांनून के उल्लंघन का आरोप भी नहीं लगाया जा सकता।हां, अलबत्ता इसके जरिये मोदी विरोधी हवा बनाने का काम किया जाएगा।मोदी विरोधियों के अनुसार इलेक्टोरल बांड्स एक घोटाला है तो ये घोटाला अकेले भाजपा ने नहीं ,सभी चंदा लेने वाले सियासी दलों ने किया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल चंदा लें तो सही।भाजपा ले तो घोटाला ।ये नहीं चल सकता। 29 जनवरी 2018 को योजना शुरू होने से जनवरी 2024 तक 16,518 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बांड बिके हैं। जिनमें से पार्टियों ने 12 हजार करोड़ रुपए के बांड कैश करवाए हैं।सबसे ज्यादा 6565 करोड़ रुपए भाजपा को मिले हैं।दूसरे नंबर पर कांग्रेस को 1123 करोड़ रुपए मिले हैं।4312 करोड़ रुपए के बांड अन्य दलों ने कैश करवाए।वित्त वर्ष 2023-24 की रिपोर्ट आना बाकी है। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार अडानी,अंबानी को मोदी का यार बताने वाली कांग्रेस को साल 2008-9 में अडानी की दो अलग अलग कम्पनियों से दो करोड़ रुपए मिले थे।साल 2015-16 में अंबानी की रिलाइंस कम्पनी से 19 लाख 60 हजार का चंदा मिला था। प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से साल 2013-14 में भाजपा को 41 करोड़ 37 लाख जबकि कांग्रेस को 36 करोड़ 50 लाख रुपये मिले थे(तब भाजपा के केंद्र में सत्ता में आने की प्रबल सम्भावनाएं जताई जा रही थी)। इसी तरह साल 2018-19 में भाजपा को 67 करोड़ 25 लाख जबकि कांग्रेस को 39 करोड़ रुपए मिले थे। मेरा मानना है कि 15 मार्च को किस उद्योगपति ने कुल कितना इलेक्टोरल बांड खरीदा,महज इसकी ही नई जानकारी बाहर आएगी।इसके अलावा कुछ भी नया सामने आने वाला नहीं।कुल कितने बांड बिके, किस पार्टी को कुल कितना चंदा मिला। यह जानकारी पहले से ही चुनाव विभाग और एसबीआई सार्वजनिक कर चुका है और उनकी साइट पर उपलब्ध है। जो उपलब्ध नही है ,उनमें से महज किस उद्योगपति ने कितनी राशि के कुल कितने बांड खरीदे ,यही जानकारी सामने आएगी।अडानी,अंबानी या टाटा-बिड़ला ने किस-किस पार्टी को कितना चंदा दिया।यह रहस्य ही रह जायेगा।इससे भूचाल कितना बड़ा आएगा।बांड से बोफोर्स का जिन्न निकेलगा या फर्जी चस्पा किया गया राफेल घोटाले की तरह कोई घोटाला का स्यापा किया जाएगा।इसका पता 15 मार्च की शाम को चलेगा।पर यह तय है कि 2024 में आएगा तो मोदी ही ।तब राहुल गांधी और मोदी विरोधियों का क्या बनेगा!
मदन अरोड़ा।अब पंजाब के किसानअपने ही राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की गले की फांस बनते दिख रहे हैं।अपने सियासी फायदे के लिए केंद्र और हरियाणा सरकार को मुश्किलों में डालने के उद्देश्य से पंजाब सरकार ने जिन किसानों को हजारों की सँख्या में बिना रोक टोक के हरियाणा पंजाब के शंभु बॉर्डर तक पूरे युद्धक साजो सामान के साथ पहुंचने दिया, वे अब उनके लिए मुश्किलों का सबब बनते दिख रहे हैं।बॉर्डर पर उनके द्वारा फैलाई जा रही अराजकता और जाम से आमजन को हो रही परेशानियों पर पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए पंजाब सरकार को किसानों की भीड़ और भारी वाहन वहां से हटाने के निर्देश दिए हैं।केंद्र सरकार ने भी पंजाब सरकार को किसानों को कंट्रोल करने और हरियाणा में घुसने से रोकने के लिए पत्र लिखा है।पर पंजाब सरकार और किसानों की गतिविधियों से नहीं लग रहा कि उन्हें हाई कोर्ट और केंद्र सरकार के निर्देशों की कोई परवाह है।पंजाब सरकार ने केंद्र सरकार को जवाब देते हुए कहा है कि किसानों के प्रति सहानुभूति की जरूरत है।पंजाब में कांनून व्यवस्था पूरी तरह से कंट्रोल में है।किसानों को मनाने में हमारी अहम भूमिका है।पंजाब सरकार पर किसानों को एकत्रित करने का आरोप सही नहीं है ।हमने वहां किसानों को जमा नहीं किया है।हमारी रोक के बावजूद किसान वहां अड़े हैं।पंजाब सरकार ने केंद्र सरकार को तो ये जवाब दे दिया पर क्या वह हाई कोर्ट के निर्देशों को भी इतने ही हल्के से लेकर कानूनी दिक्कतों से अपने आपको बचा पाएगी।शंभु बॉर्डर पर जब तक पंजाब सरकार सख्ती नहीं करेगी न किसानों की भीड़ कम होने वाली है और न ही वहां से भारी वाहन हटने वाले हैं।हाई कोर्ट ने हाइवे पर ट्रैक्टर और अन्य दूसरे पोकलेन, जेसीबी मशीनें नहीं हटाने के निर्देश दिए हैं ।परंतु इसके बावजूद किसान कोर्ट के आदेशों की अवमानना करते हुए हाईवे पर इनके द्वारा बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं और पंजाब पुलिस इन्हें रोकने की कोई कोशिश करती नहीं दिख रही ।अगर मान सरकार हाई कोर्ट के आदेशों की पालना नहीं करती है और किसी तरह की अराजकता फैलती है तो हो सकता है कि वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए।कारण साफ है ,जिस तरह से पंजाब की तरफ से उपद्रवी किसान जबरन हरियाणा में घुसने की कोशिश कर रहे हैं और अगर इससे हरियाणा में सड़कों पर अराजकता फैलती है।यातायात बाधित होता है और कांनून व्यवस्था भंग होती है।साथ ही पंजाब की ओर से उपद्रवियों को रोकने के लिए कोई सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाये जाते है तो केंद्र सरकार हरियाणा के अनुरोध पर पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।संविधान की धारा 356 इसे लागू करने का अधिकार केंद्र सरकार को देती है।हाई कोर्ट भी अपने आदेशों की पालना नहीं करने पर पंजाब सरकार और किसान नेताओं को दंडित कर सकती है।पंजाब सरकार ने हाई कोर्ट में कहा है कि जब तक ये किसान शांतिपूर्वक आंदोलन करते रहेंगे,हमें कोई ऐतराज नहीं है।दूसरी ओर हरियाणा सरकार ने कोर्ट में कहा है कि पंजाब सीमा से जैसी अराजकता पैदा कर जबरन घुसने के प्रयास हो रहे हैं,उससे लॉ और आर्डर की स्थिति बिगड़ सकती है।इस पर कोर्ट को ध्यान देना चाहिए। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि पंजाब सरकार इस बात का ध्यान रखे कि प्रदर्शनकारी ज्यादा संख्या में वहां न पहुंचे और बड़ी संख्या में एक जगह भीड़ के रूप में जमा न हों।कोर्ट ने कहा कि उन्हें आंदोलन करने का अधिकार है लेकिन मर्यादा में रह कर।इसका उल्लंघन करेंगे तो यह गैरकानूनी कहलायेगा। कोर्ट ने कहा कि आप वहां भीड़ के रूप में टुकड़ियों में एक किनारे आंदोलन कर सकते हैं।कोर्ट ने ये भी कहा -आपको दिल्ली जाकर आंदोलन करना है तो बसों से जाएं।कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण बात और कही कि जिस तरह से किसान ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर हाई वे पर चल रहे हैं ,वह गैर कानूनी है।अगर उन्हें अपने ट्रैक्टर ट्रॉली को कहीं ले जाना है तो ट्रक में डाल कर ले जाएं।लेकिन मोटर व्हीकल एक्ट के तहत किसान ट्रैक्टर ट्रॉली को हाई वे पर नहीं चला सकते ।आप अमृतसर से दिल्ली ट्रैक्टर ट्रॉली के साथ नहीं जा सकते।यह गैर कानूनी और गलत है।कोर्ट ने कहा आपको अपनी संवैधानिक ड्यूटी भी समझनी होगी।नियमानुसार हाई वे पर ट्रैक्टर ट्रॉली लाने पर पंजाब पुलिस को इन पर कार्रवाई करते हुए चालान करना चाहिए था।अगर उसने यह किया होता तो ये किसान ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर हरियाणा सीमा तक न पहुंच पाते। कोर्ट ने आंदोलनकारियों से कहा कि उन्हें आंदोलन के लिए दिल्ली जाना है तो बसों से जाएं।जाहिर है कि पंजाब पुलिस इन्हें दिल्ली तक जाने देना चाहती थी।इन्हें गैरकानूनी तरीके से हरियाणा सीमा तक आने दिया गया। यह माना जायेगा कि पंजाब पुलिस भी इस गैरकानूनी कृत्य में शामिल है और किसानों को प्रोत्साहित कर रही है।उनका समर्थन कर रही है। पुलिस को अब यह बताना होगा कि उसने कितनी ट्रैक्टर ट्रॉली जब्त की।अगर वह ऐसा नहीं कर पाती तो पंजाब सरकार को अगली तारीख पर कोर्ट में जवाब देना मुश्किल हो जाएगा और प्रदर्शन में उसकी मिलीभगत सामने आ जायेगी।पंजाब डीजीपी ने कोर्ट में कहा कि पंजाब पुलिस ने बॉर्डर पर किसानों को रोकने के लिए कोई अवरोध पैदा नहीं किया है।हरियाणा पुलिस ने वहां अवरोधक लगाए हैं।जिसकी वजह से प्रदर्शनकारी वहां जमा हैं।दूसरी ओर हरियाणा पुलिस ने साफ किया कि अगर प्रदर्शनकारी यहां आए और सड़कों पर किसी तरह का प्रदर्शन कर यातायात बाधित किया तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।हरियाणा सरकार ने पंजाब सरकार को उनकी ओर से हो रही हरकतों को रोकने के लिए चेताया है। जाहिर है जिस तरह की गतिविधियां शंभु बॉर्डर पर चल रही हैं,वहां अराजकता फैलाने की कोशिशें हो रही हैं। इससे दो राज्यों के बीच टकराव होता साफ दिख रहा है।कोर्ट में पंजाब सरकार ने शांति व्यवस्था बनाये रखने,भीड़ एकत्रित न होने देने और ट्रैक्टर ट्रॉली नहीं जाने देने का आश्वासन दिया है।अगर कोर्ट के आदेशानुसार भीड़ वहां से नहीं हटाई गई और ट्रैक्टर ट्रॉली और जेसीबी मशीनों को नहीं हटाया गया तो केंद्र सरकार के साथ साथ हाई कोर्ट कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं।पानी अगर सर के ऊपर से निकला तो पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट का ट्रैक्टर ट्रॉली ,जेसीबी मशीन और पोकलेन मशीनों को लेकर दिया गया आदेश केवल उन्हीं राज्यों के लिए ही नहीं है।यही नियम राजस्थान और अन्य राज्यों पर भी लागू होता है।इसलिए राजस्थान में आंदोलनों में ट्रैक्टर लाने वालों को सावचेत हो जाना चाहिए। ट्रैक्टर ट्रॉली में लोगों को भरकर लाना भी गैरकानूनी है और पुलिस उनके वाहन जब्त कर सकती है।पंजाब सरकार के लिए एक तरफ कुआं दूसरी ओर खाई वाले हालात बनते दिख रहे हैं।अब अगर पंजाब सरकार ने शंभु बॉर्डर पर जमा भीड़ को नहीं हटाया तो कोर्ट और केंद्र सरकार कोई भी कदम उठा सकती है और जिन किसानों को बॉर्डर तक जमा होने दिया ,वे पंजाब सरकार की कोई बात मानते दिख नही रहे। किसान अब मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के गले की फांस बनते दिख रहे हैं।
मदन अरोड़ा।चुनाव आते ही सियासी और विदेशी फंडिंग वाले परजीवी आन्दोलनजीवी और सियासी दल काम पर लग गए है।भोलेभाले बुजुर्गों, महिलाओं और युवाओं के कंधों पर बंदूक रख फायर किये जा रहे हैं।भारत कृषि प्रधान देश है।देश के हर राज्य में खेती होती है।एमएसपी पर खरीदी भी अधिकांश राज्यों में हो रही है।गेंहू और धान की एमएसपी पर कुल खरीदी का 50 फीसदी से ज्यादा खरीदी पंजाब में होती है।ऐसे में बड़ा और वाजिब सवाल ये है कि पंजाब से ही कथित किसान नेता लाव लश्कर के साथ दिल्ली कुछ क्यों करते हैं।इन नेताओं को बताना चाहिए कि देश के अन्य राज्यों के मुकाबले क्या केंद्र सरकार उनसे कोई भेदभाव कर रही है ।अगर हां तो क्या और अगर नहीं तो चुनाव पूर्व दिल्ली कूच क्यों!जाहिर है ये कोई किसानों का हित साधने के लिए आंदोलन नहीं है ।इनके खुद के आर्थिक और सियासी हितों से जुड़ा मुद्दा है।केवल दो घटनाओं से इसे अच्छे से समझा जा सकता है।पहला किसान संयुक्त मोर्चा अराजनैतिक के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल का वह बयान जिसमें वे कह रहे हैं ' राम लहर से मोदी का ग्राफ बहुत ऊंचा चढ़ गया है।अवसर कम हैं। हमारे पास बहुत ही कम दिन हैं। क्या हम मोदी का ग्राफ नीचे ला सकते है।दिन बहुत ही कम बचे हैं।मैं गांव-गांव जाकर लोगों को यह समझा रहा हूँ 'इसका वीडियो सामने आने के बाद डल्लेवाल बचाव में हैं और कह रहे हैं ,उनका मकसद यह नहीं था। अगर मकसद ये नहीं था तो क्या था! इसे साफ क्यों नहीं किया जा रहा।दूसरा आंदोलन स्थल पर जिस तरह से we want khalistan के प्ले कार्ड और भिंडरावाले और आतंकवादी अमृतपाल सिंह के पोस्टर लहराए जा रहे हैं।तलवारें और डंडे लहराए जा रहे हैं।थैलियों में पत्थर भर-भर कर ला पुलिस बल पर फेंक उसे उकसाया जा रहा है।पहली बार तीर कमान लिए युवक घूम रहे हैं।जिस तरह के साजो सामान और लावलश्कर के साथ डल्लेवाल और सरवन पंढेर निकले हुए हैं और उनकी तैयारियां हैं ।ऐसा लगता है कि वे किसी दुश्मन देश की सेना से युद्ध करने के लिए निकले हैं।पंढेर जैसे कथित नेता 21 वीं सदी को 18 वीं सदी समझे बैठे हैं।आतंकियों के पोस्टर और प्ले कार्ड लहराने,तलवारें लहरा पुलिस को चुनौती देने,मोदी को जान से मारने की धमकियों के सामने आ रहे वीडियो और मीडिया के कैमरों में बंद हकीकत को वे मीडिया और सरकार की आंदोलन को बदनाम करने की साजिश बता रहे हैं।जब कि ये सब डिजिटल सबूत के रूप में मौजूद है।हैरानी की बात ये है कि आंदोलन के पीछे खड़ी ताकतों के तमाम सबूत खुफिया पुलिस के पास होने के बावजूद संजय राउत जैसे नेता जो खुद पत्रकार हैं ,अपनी सियासी चालबाजी के चलते इसे खालिस्तानी बताए जाने को आंदोलन को बदनाम करने की साजिश बताते हैं।कांग्रेस ,आम आदमी पार्टी को भी इस तरह के पोस्टर लहराने और तलवारें लहराने में कुछ गलत नहीं दिख रहा और वे आंदोलन को हवा दे देश में आग लगाने के लिए घी और पेट्रोल का काम कर रही हैं।वामपंथी तो इस आंदोलन की जड़ में हैं।पिछले आंदोलन में माओवादी ही उसका नेतृत्व कर रहे थे।ये खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है।किसान आंदोलन के जरिये पंजाब और देश में आग और हिंसा फैलाने में नाकाम रहे अपने दो बड़े नेताओं दर्शनपाल सिंह और एक अन्य वामपंथी संगठन के प्रमुख को संगठन से बाहर किये जाने को लेकर जो पत्र माओवादी संगठन की सेंट्रल कमान ने भेजा, उसकी कॉपी एजेंसियों के पास है और वह पत्र बताता है कि माओवादी किसान आंदोलन की आड़ में कैसे हिंसा फैला देश का माहौल बिगाड़ चीन के हित साधने में लगे थे।चीन,खालिस्तानी और जॉर्ज सोरोस जैसे लोगों को मोदी के नेतृत्व में मजबूत और सुरक्षित होते भारत से काफी परेशानी हो रही हैं और वे अपने मनसूबे पूरे नहीं कर पा रहे हैं।खालिस्तानी ताकतें पंजाब और देश का माहौल फिर से बिगाड़ने में अब तक विफल रही हैं । मजबूत और सुरक्षित होते भारत की वजह से चीन से बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत का रुख कर रही हैं।खालिस्तानी और चीनी मंसूबों को पूरा करने के लिए भारत और पंजाब को अशांत और कमजोर किया जाना जरूरी है और यह तभी सम्भव है, जब मोदी की छवि खराब कर उसका ग्राफ नीचे लाया जा सके और इसीलिए किसान हित के नाम पर डल्लेवाल, पंढेर ,चढूनी,टिकैत जैसे कथित किसान नेताओं की जमात लगी है।अराजकता फैलाओ, देश में आग लगा हिंसा फैलाओ और मोदी का ग्राफ नीचे लाओ। किसान आंदोलन की आड़ में यही इनका हिडन एजेंडा है।लोकतांत्रिक देश में हर काम के लिए संवैधानिक तौर तरीके तय हैं।संविधान हमें बोलने,लिखने और आंदोलन करने की आजादी देता है। वोट के जरिये सरकार बदलने की आजादी देता है।लेकिन हमें आजादी तभी तक है,जिस सीमा तक अन्य को किसी तरह की परेशानी न होती हो।कांनून का उल्लंघन न होता हो।हिंसा न होती हो।किसी की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होती हों।देश की सुरक्षा और संप्रभुता खतरे में न आती हो।हर किसी को आंदोलन ,प्रदर्शन की आजादी का मतलब यह नहीं है कि इसके नाम पर रेल और सड़क मार्ग जाम करने की आजादी है।हमें दिल्ली जाकर आंदोलन ,प्रदर्शन की आजादी है लेकिन ट्रैक्टरों के काफिले के साथ जाने की आजादी नहीं है।हम दिल्ली में धरना प्रदर्शन कर सकते हैं लेकिन निर्धारित जगहों पर और दिल्ली पुलिस की परमिशन पर।लेकिन क्या ये कथित किसान आंदोलन संविधान की भावनाओं का किंचित मात्र भी पालना करता दिख रहा है। वाकई में अगर इनकी किसान हित में आंदोलन करने की नीयत होती तो ये किसान नेता दिल्ली जाते।पुलिस से परमिशन लेते और जंतर मंतर पर भूख हड़ताल,आमरण अनशन करते और सरकार को अपनी मांगे मनवाने पर मजबूर करते।हाल ही में महाराष्ट्र में एक मराठा नेता ने दो बार आमरण अनशन कर सरकार को मराठा आरक्षण देने के लिए मजबूर कर दिया।अन्न हजारे आमरण अनशन कर सरकारों को झुकाते आये हैं और इससे कभी किसी को न तो असुविधा हुई और न ही कांनून का कभी उल्लंघन हुआ।पर वे फर्जी नेता ही क्या जो अपने शरीर को मामूली सा कष्ट दें।इन्हें तो देश में आग और हिंसा का तांडव मचा अपने सियासी और आर्थिक मकसद पूरे करने है।जिस एमएसपी की मांग पर ये कथित किसान नेता अड़े हैं, उन्हें इसका रति भर भी ज्ञान नहीं है। शनिवार को सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह डल्लेवाल मीडिया पर अपना ज्ञान बघार रहे थे।पंढेर के अनुसार अगर सरकार सभी 23 फसलों पर एमएसपी दे तो उस पर मात्र 36 हजार करोड़ का खर्च आएगा। एक दो साल 2 ढाई लाख करोड़ का नुकसान भी होगा तो सरकार खरीदी फसलों को बेच उसे पूरा कर लेगी।मीडिया और सरकार देश को भ्रमित कर रहे हैं कि बजट का बड़ा हिस्सा खर्च होगा।अब इन बड़े किसान हितों की चिंता करने वाले कथित किसान नेताओं को इतना भी ज्ञान नहीं है कि सरकार का अकेले गेंहू की खरीद पर ही हर साल 2 लाख करोड़ से ज्यादा खर्च हो रहा है और वह भी तब जब सरकार उतना ही खरीदी कर रही, जितनी उसे जरूरत है।अगर केवल गेंहू की ही पूरी फसल खरीदनी पड़ गई तो यह आंकड़ा करीब डबल हो जाएगा।सरकार ने साल 2022-23 में 1062 .69 लाख मैट्रिक टन की खरीदी की। जिस पर 2 लाख 18 हजार रुपये की लागत आई।अब अगर सभी 23 फसल सरकार एमएसपी पर खरीदे तो कितना खर्च आएगा ।इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है ।पर चौ.चरणसिंह और डॉ मनमोहन सिंह से ज्यादा पढ़े लिखे और समझदार इन किसान नेताओं की समझ में नहीं आएगा कि ये दोनों पूर्व प्रधानमंत्री क्यों किसानों को एमएसपी देने के खिलाफ थे। इनकी समझ और ज्ञानता का एक सबूत और देखिए। इसी प्रेस वार्ता में सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि सरकार जिन फसलों की एमएसपी पर खरीदी करती है ,किसानों को उनकी कीमत कम मिलती है।जबकि बिना एमएसपी वाली फसलों की कीमत ज्यादा मिलती है।सवाल उठता है जब पंढेर ये मान रहे हैं कि बिना एमएसपी की फसलों के दाम ज्यादा मिलते हैं तो एमएसपी की मांग कर वे किसानों का हित कर रहे हैं या उनकी बर्बादी का रास्ता खोल रहे हैं। पंजाब के पढ़े लिखे जन्मजात किसान और किसानी के अलावा कोई और काम नहीं करने वाले किसान नेता सरदार भूपिंदर सिंह मान के अनुसार एमएसपी ही किसानों की सबसे बड़ी दुश्मन है। अगर ये किसान हित में होती तो चौ.चरणसिंह और डॉ मनमोहन सिंह इसके विरोध में नहीं होते।वे जानते थे कि एमएसपी के चक्कर में किसान उन फसलों की ओर नहीं जाएंगे जो उन्हें ज्यादा दाम दिला सकती हैं। दूसरा किसान अगर सरकारी खरीदी से बाहर निकल, खुले बाजार में जहां उसे ज्यादा दाम मिले,अपनी फसल बेचेगा तो ज्यादा मुनाफे में रहेगा। सरदार भूपिंदर सिंह मान के अनुसार इस समय दुनिया में धान को लेकर मारामारी है।किसानों की मांग एमएसपी नहीं ,उन्हें अपना माल एक्सपोर्ट करने की सुविधा दिए जाने की होनी चाहिए। किसान ही उचित दाम पर छोटे किसान भाइयों की फसल खरीद उसे देश में या विदेश जहां भी ज्यादा दाम मिले ,उसे बेचें तो इसमें सभी किसानों का भला होगा।किसान आंदोलन को लेकर सरदार भूपिंदर सिंह मान का सीधे तौर पर आरोप है कि इन किसान नेताओं के दिल में कुछ और जबकि बाहर दिखावा कुछ और किया जा रहा है।इन नेताओं के दिल में किसानों की भलाई नहीं अपने आर्थिक और सियासी हित पूरे करना, असली मकसद है।उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि जिस तरह से पंजाब में आये दिन रेलवे ट्रैक और सड़कें जाम की जा रही हैं, आने वाले दिनों में पंजाब पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा।अशांति के चलते कभी भारत का ताज कहे जाने वाला मेरा पंजाब पहले ही बर्बाद हो चुका है।युवाओं को रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ रहा है।किसानों के नाम पर इसी तरह उग्र आंदोलन चलाये जाते रहे तो प्रदेश पूरी तरह तबाह हो जाएगा।अशांत पंजाब हो या कोई और प्रदेश या देश कभी भी निवेश नहीं आता ।कोई उद्योग नहीं आएगा तो न रोजगार आएंगे और न ही विकास के जरिये खुशहाली आ पाएगी।मान कहते हैं अशांति की वजह से ही पंजाब के बड़े उद्योग बाहर जा चुके हैं।उन्हें वापस लाने के लिए प्रदेश में शांति का माहौल बनाया जाना जरूरी है। जरुरी हो तो आंदोलन हों, पर इस तरह से आये दिन रेल और सड़कों को अवरुद्ध किया जाना नई और आने वाली पीढ़ी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।जो भी समस्या हो उसका बातचीत से हल निकाला जाना चाहिए।अपनी कोई जिद्द पूरी करने के लिए पंजाब की खुशहाली को दांव पर नहीं लगाया जाना चाहिए।ये किसान नेता चाहते हैं कि हम रात को दिन कहें तो दिन कहा जाए और दिन को रात कहें तो रात कहा जाए।ऐसी जिद्द न की जानी चाहिए और न ही पूरी की जा सकती हैं।पंजाब और पश्चिम बंगाल पहले ही ऐसे नेताओं के आर्थिक और सियासी स्वार्थों की बलि चढ़ बर्बाद हो चुके हैं और अब ऐसे नेता राजस्थान सहित देश के अन्य हिस्सों को बर्बाद करना चाहते हैं।देश के हर वर्ग विशेषकर युवाओं को इनके देशघाती इरादों से सावधान रह इनके मंसूबों को फेल करने के लिए आगे आना चाहिए न कि हाथों में पत्थर ले पुलिस और सुरक्षा बलों पर बरसा ,अपना और अपने परिवार का भविष्य तबाह करना चाहिए।आंदोलन जीवी परजीवियों का घर बार ऐसे ही हिंसात्मक आंदोलनों के नाम पर चंदे और विदेशी फंडिंग से चलता है।इनके परिवार के बच्चे तो पल जाते हैं पर भोले भाले युवा और बुजुर्ग हिंसा के शिकार हो जाते हैं या फिर हमेशा के लिए जेल और कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने में पूरी जिंदगी खपानी पड़ जाती है।नेताओं का काम अपने हित साधना होता है।बिरले नेता होते है जो किसी को गलत रास्ते पर न जाने के लिए खुद सड़क पर आते हैं।उन्हें केवल अपने हितों तक मतलब रहता है।16 फरवरी को हनुमानगढ़ में जो हुआ।उसे समझाइश कर रोका जा सकता था।अगर स्थानीय विधायक गणेशराज बंसल ट्रेक्टर मार्च निकालने वाले युवाओं को समझाते तो जो अप्रिय घटना हुई ,उसे रोका जा सकता है।रेशम सिंह मानुका,रायसिंह,लखबीर सिंह,गुरप्यार सिंह,बलविंदर सिंह,गुरजीत सिंह,मनविंदर सिंह मान, गुरप्रीत सिंह, कुलदीप सिंह, रविंदर सिंह,हरदीप सिंह,मनप्रीत सिंह सहित अधिकांश युवा जिनके विरुद्ध पुलिसकर्मियों की हत्या का प्रयास जैसी संगीन धाराओं में मामले दर्ज हुए हैं ,वे विधायक समर्थक हैं।इन युवाओं ने विधान सभा चुनावों में गणेशराज बंसल को विधायक बनाने के लिए जी जान लगा दिए थे।प्रधानमंत्री के जिस संवाद कार्यक्रम का विरोध ये युवा कर रहे थे। उसमें खुद विधायक शामिल थे।विरोध प्रदर्शन की पहले से ही घोषणा की गई थी।विधायक की जानकारी में भी अवश्य रहा होगा।ऐसे में अगर वे अपने इन समर्थकों को बिना किसी हुडदंग के शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन की समझाइश करते तो ये युवक इस पर अवश्य राजी हो गए होते और ऐसे में न ये अप्रिय घटना होती और न ही इन युवकों पर संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज होता।पर शायद विधायक ने समझाइश किये जाने को जरुरी नहीं समझा और अपने समर्थकों को उनके हालात पर छोड़ दिया।यही नेताओं की जमात की खूबी होती है।मतलब निकालो और भूल जाओ।विधायकी मिल गई। अब रेशम सिंह जैसे समर्थकों की जरूरत अगले 5 साल बाद पड़ेगी।तब पता नही ये कहाँ होंगे।चुनाव में कोई और रेशम सिंह और मनप्रीत सिंह मिल जाएंगे। नेताओं की फितरत को देखते हुए उनसे सावधान रहने की जरूरत है।सभी को अपने और अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य और खुशहाल भारत के लिए ऐसे आंदोलनों और प्रदर्शनों में शामिल होने और समर्थन देने से बचना चाहिए जो आपके क्षेत्र में अशांति पैदा करते हों।आपके क्षेत्र का विकास तभी होगा, जब माहौल शांतिपूर्ण होगा।विकास होगा तो निवेश आएगा।निवेश आएगा तो रोजगार मिलेगा।आपका कारोबार भी चलेगा और बच्चों का भविष्य भी उज्ज्वल होगा।शम्भू बॉर्डर पर जो हो रहा है ।वह किसान आंदोलन नहीं, उसकी आड़ में मोदी हटाओ का छुपा हुआ एजेंडा है।ये किसान नेता और इनके विदेशी और स्थानीय सियासी आका लोकतांत्रिक तरीके से मोदी को हटाने में विफल साबित हो रहे हैं।इसलिए ऐसे अराजक आंदोलनों के जरिये देश का माहौल खराब कर सत्ता हासिल करना चाहते हैं।ऐसे देश विरोधी एजेंडाधारियों से सावचेत रहने की जरूरत है।इनकी देश को दहलाने की साजिशों को विफल करने की जरूरत है।सबसे खतरनाक बात यह है कि इसे सिख बनाम मोदी की लड़ाई बनाया जा रहा है और आंदोलन स्थल पर निहंगों की फौज को पुलिस से मुकाबले के लिए लगा दिया गया है।अगर इन्हें मोदी से कोई दिक्कत है तो आने वाले चुनाव में वोट के अधिकार से उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाएं।मोदी कुछ गलत कर रहे हैं तो मतदाताओं को समझा उनका ग्राफ नीचे लाएं न कि देश में हिंसा फैला मोदी की छवि बिगाड़ने का काम करें।
मदन अरोड़ा।शातिर मफलरमैन अरविंद केजरीवाल ने वो कर दिखाया है ,जिसके लिए वे आजकल चर्चाओं में रहते आ रहे हैं।पर इस बार जो गजबा किया है ,वो वास्तव में केजरीवाल जैसा कोई शातिर और धूर्त व्यक्ति ही कर सकता है।केजरीवाल टीम ने इस बार दिल्ली हाई के साथ ही खेला करते हुए सुप्रीम कोर्ट को ही ठेंगा दिखा दिया है।जिसे देख सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ भी अचंभित हैं। आपको कैसा लगेगा ,जब आपको पता चले कि किसी ने हाईकोर्ट की ही जमीन पर अपना आफिस बना लिया है।जी हां दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राजा अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के सबसे पॉश माने जाने वाले दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर अपनी पार्टी का जो कार्यालय बनवाया है ,वो और कहीं नहीं दिल्ली हाई कोर्ट को आवंटित सरकारी जमीन पर बनाया है।सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मुख्यमंत्री और सबसे शिक्षित पार्टी कितनी ज्ञानवान है कि उसने बकायदा अपनी सरकार की कैबिनेट की मीटिंग में प्रस्ताव स्वीकृत करा दिल्ली हाई कोर्ट की जमीन को कब्जाया है।पहले हाई कोर्ट की जमीन पर पार्टी कार्यालय बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया ।फिर उसे कैबिनेट की मीटिंग में पारित करवाया गया और फिर सरकारी दबंगई से कब्जाई गई जमीन पर कार्यालय बनाया गया।कितनी अजीब बात है कि सबसे पढ़े लिखे वालों में एक भी ऐसा समझदार मंत्री नहीं जो यह बताता कि जिस जमीन को कार्यालय के लिए आवंटित किया जा रहा है,वह हाई कोर्ट को आवंटित है और उसको आगे आवंटित नहीं किया जा सकता।वैसे भी जमीन का मामला दिल्ली सरकार के अधीन आता भी नहीं है।ये उपराज्यपाल के क्षेत्राधिकार में है।लेकिन अगर गड़बड़झाला ,घोटाला नहीं करे तो वो केजरीवाल और आम आदमी पार्टी भी क्या! दरअसल इस पूरे मामले का पता भी नहीं चलता।अगर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपनी जमीन को दिल्ली सरकार द्वारा आम आदमी पार्टी को आवंटित किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार न लगाई होती।जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया तो मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ आश्चर्यचकित रह गए।उन्होंने कहा ये तो अति हो गई।इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।सोचिए जो व्यक्ति और पार्टी हाईकोर्ट की जमीन को हथिया सकती है।जिसे न्यायपालिका का भी खौफ नहीं ।वे क्या क्या कर सकते हैं।लेकिन जितना आश्चर्य केजरीवाल द्वारा जमीन हथियाने का है उससे भी ज्यादा आश्चर्य इस समाचार को मीडिया के एक बड़े वर्ग द्वारा दबाए जाने पर हो रहा है।यही काम अगर भाजपा ने किया होता तो पूरा मीडिया गला फाड़ रहा होता ।पर पापी पेट जो केजरीवाल के दिये गए पैसे से भरा हुआ है ।वो मीडिया के एक वर्ग को केजरीवाल से जुड़ी खबरें दबाने को मजबूर कर देता है।
मदन अरोड़ा।देश के मिजाज को लेकर दो बड़े मीडिया हाउस की ओर से करवाए गए सर्वे साफ साफ कह रहे हैं..2024 में भी आ रहे हैं मोदी तीसरी बार।मोदी की टीम 400 पार के लक्ष्य को साधने के लिए अपने पुराने सहयोगियों को फिर से साथ लाने में सफल होती दिख रही है।या ये कहें कि 2019 के बाद एनडीए से अलग होने के बाद विधान सभा चुनावों में अपनी पतली हुई हालत और देश के मौजूदा मिजाज को भांप बिछड़े दल खुद ब खुद साथ आने को आतुर दिख रहे हैं।आंध्रप्रदेश में तो दोनों ही प्रमुख दल टीडीपी और वाई एस आर एनडीए के सम्पर्क में हैं।पंजाब में अकाली दल भी भाजपा से बातचीत कर रहा है।सबसे बड़ा गजब यूपी में होता दिख रहा है।सर्वे यूपी में 72 और 77 सीट दिखा रहे हैं।अखिलेश यादव के साथी रहे आरएलडी के जयंत चौधरी भी सर्वे के बाद पाला बदल एनडीए के साथ आ गए हैं।इसके बाद अब यूपी में एनडीए को 80 में से 80 आना कोई आश्चर्य नहीं होगा।मोदी के लिए 400 पार का आंकड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन असम्भव नहीं।मोदी तो असम्भव को सम्भव बनाने में माहिर माने जाते हैं।विपक्ष में जिस तरह की बौखलाहट दिख रही है।साउथ में राम लहर और मोदी लहर को कुंद करने के लिए साउथ और नार्थ को आपस में लड़ाने और संघीय ढांचे को कमजोर करने के नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं ,वो संकेत दे रहे हैं कि मोदी साउथ में पहले से बेहतर करने जा रहे हैं।जिन राज्यों में भाजपा का कभी खाता नहीं खुला ,वहां चमत्कार की उम्मीदें हिलोरे ले रही हैं। आज तक ने सी वोटर्स और टाइम्स नाउ नवभारत ने मैटराइज के साथ मिल कर सर्वे किया है।टाइम्स नाउ के अनुसार एनडीए को 366,इंडी गठबंधन को 129 जबकि अन्य को 48 सीट मिलती दिख रही हैं।जबकि आजतक के अनुसार एनडीए को 335,इंडी गठबंधन को 166 और अन्य को 42 सीट का अनुमान है।इनमें भाजपा और कांग्रेस की बात करें तो भाजपा को 304 और कांग्रेस को 71 सीट मिलती दिख रही हैं।आज तक के सर्वे में जेडीयू ,टीडीपी और अकाली दल की सीट शामिल नहीं हैं।जिन्हें अगर शामिल कर दिया जाए तो एनडीए का आंकड़ा 368 तक पहुंच जाएगा और इंडी गठबंधन में से जेडीयू की 15 सीट निकाल दें तो उसकी सीट 151 रह जाएंगी।जबकि टाइम्स नाउ के सर्वे में टीडीपी और अकाली दल को शामिल नहीं किया गया है।टाइम्स नाउ ने टीडीपी और अकाली दल को 10 सीट दी हैं।जिन्हें अगर शामिल कर दिया जाए तो एनडीए को 376 सीट मिल रही हैं।सी वोटर्स के फाउंडर यशवंत देशमुख के अनुसार अब तक के ट्रेंड को देखते हुए एनडीए और भाजपा की सीटों में और इजाफा होता दिख रहा है।कुछ राज्यों की यहां चर्चा करना जरूरी हैं।क्योंकि भाजपा और मोदी विरोधी कुछ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक लगातार ये दावा करते आ रहे हैं कि हिंदी भाषी राज्यों जिनके बूते भाजपा 303 सीट के आंकड़े छू पाई ।वहां उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा और सत्ता से भी हाथ धोना पड़ेगा।सर्वे से ऐसे पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों के सपने मिट्टी में मिलते साफ दिखाई दे रहे हैं।पहले सबसे ज्यादा सीट वाले यूपी से शुरुआत करते हैं।यहां की 80 सीट में से टाइम्स नाउ के अनुसार 77 और आजतक के अनुसार 72 सीट आ रही हैं ।जबकि 2019 में उसके पास 62 सीट थी।आरएलडी के साथ आने से यहां सीटों में और बढ़ोतरी भी मिलेगी ।ऐसी पूरी उम्मीद जताई गई है।राजस्थान,हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड,गुजरात और दिल्ली में भाजपा पहले की तरह क्लीन स्वीप कर रही है।यानि सभी सीटों पर चुनाव जीत रही है।मध्यप्रदेश में आजतक भाजपा को 27 और कांग्रेस को 2 जबकि टाइम्स नाउ 28 और 1 सीट दे रहा है।टाइम्स नाउ के अनुसार भाजपा उड़ीसा में चमत्कार कर रही है ।वह पहली बार वहां की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेडी को पीछे छोड़ 11 सीट ले जाती दिख रही है ।यहां कांग्रेस को 1 सीट मिलती दिख रही है।झारखंड,छतीसगढ़ में भाजपा अपना पुराना रिकॉर्ड दोहरा रही है।उसे क्रमशः 11 और 10 सीट मिल रही हैं।कांग्रेस का झारखंड में खाता नहीं खुल रहा।असम में भी भाजपा एक सीट की बढ़ोतरी के साथ 12 जबकि कांग्रेस को 2 सीट मिल रही हैं।हरियाणा में आजतक के अनुसार भाजपा को 7,जेजेपी को 1 और कांग्रेस को दो जबकि टाइम्स नाउ के अनुसार भाजपा 9 और कांग्रेस 1 सीट ले जाती दिख रही है।पश्चिम बंगाल की बात करें तो आजतक के अनुसार भाजपा एक सीट की बढ़ोतरी के साथ 19,टीएमसी यथावत 22 और कांग्रेस एक सीट के नुकसान के साथ 1 सीट ले रही है।जबकि टाइम्स नाउ के अनुसार यहां भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही नुकसान होता दिख रहा है लेकिन सी ए ए लागू होने पर वह पिछली बार की तुलना में अधिक सीट ले जा सकती है।अभी उसे 15,टीएमसी 26 और कांग्रेस लेफ्ट गठबंधन को 1 सीट मिल रही है। पंजाब में कांग्रेस को नुकसान होता दिख रहा है।टाइम्स नाउ के अनुसार भाजपा को 3,आप को 5,कांग्रेस को 4 और अकाली को 1 सीट ।जबकि आजतक के अनुसार भाजपा को 2,आप और कांग्रेस को 5-5 ,अकाली दल को।1 सीट मिल रही है। महाराष्ट्र की बात करें तो टाइम्स नाउ के अनुसार एनडीए को 39 और इंडी गठबंधन को 9 सीट मिल रही है।जबकि आज तक के अनुसार एनडीए को 22 सीट और इंडी गठबंधन को 26 सीट जा सकती हैं।टाइम्स नाउ के अनुसार बिहार में एनडीए को 35 और इंडी गठबंधन को 5 सीट जबकि आजतक के अनुसार एनडीए को 32 और इंडी गठबंधन को 8 सीट मिल सकती हैं।नार्थ ईस्ट में एनडीए को 10 और इंडी गठबंधन को 1 सीट आती दिख रही है।कुल मिला कर देश का मिजाज बता रहा है कि मोदी ही आएंगे तीसरी बार।जो ट्रेंड दिख रहा है और जिस तरह से विपक्ष अल्पसंख्यकों को सीएए और अन्य मुद्दों को हवा दे ,देश का माहौल खराब कर ध्रुवीकरण में लगा है । हल्द्वानी की घटना ने भी पूरे देश को झकझोर दिया है। चुनाव से पूर्व देश का माहौल इसी तरह से बिगाड़ने की कोशिशें होंगी और प्रतिक्रिया स्वरूप बहुसंख्यक मतदाता भाजपा को 350 और एनडीए को 400 करीब पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा।
मदन अरोड़ा।सियासी दलों में अनुशासनहीनता और पार्टी नेतृत्व को आंखें दिखाना आम हो चला है और यह सभी दलों में हो रहा है।अपने आपको समर्पित कार्यकर्ता कैडर वाली अनुशासित पार्टी होने का दंभ भरने वाली भारतीय जनता पार्टी भी अब इसका अपवाद नहीं रह गई है।जब पार्टी के समर्पित, संस्कारित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर बाहरी दलों के सिट्टा सेक अवसरवादी नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी में लाया जाएगा तो ऐसा ही होगा।अनुशासनहीनता भी होगी और वरिष्ठ नेताओं के साथ असभ्यता भी।जैसा श्रीगंगानगर में सभापति चुनाव को लेकर पर्यवेक्षक भेजे गए पूर्व मंत्री डॉ. रामप्रताप के साथ पार्टी के समर्पित नेताओं की उपेक्षा कर कांग्रेस विचारधारा के उधारिये लाये गए विधायक जयदीप बिहाणी और कुछ पार्षदों ने दुर्व्यवहार किया।उनसे पूछे बिना और बगैर रायशुमारी के सभापति का नाम अपने ही स्तर पर घोषित कर नामांकन भरवा दिया गया। पर्यवेक्षक बना कर भेजे गए पूर्व मंत्री डॉ रामप्रताप ने जब इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर ऐसा ही किया जाना था तो उन्हें पर्यवेक्षक बना कर भेजे जाने का औचित्य ही कहाँ रह गया।विधायक बिहाणी और कुछ पार्षदों के साथ उनकी नोंकझोंक हुई।कुछ पार्षदों ने उन पर निजी हमले करते हुए धमकी दी कि अगर उनके विधायक के साथ इस लहजे में बात करेंगे तो हम अपनी पर उतर आएंगे।पर्यवेक्षक डॉ राम प्रताप ने विधायक से मात्र इतना ही कहा था कि सभापति के नाम पर किसी तरह की सहमति उनके सामने नहीं बनी है और उन्हें पार्षदों से व्यक्तिगत बातचीत कर सभापति का नाम तय करने के लिए भेजा गया है।जो उनके सामने नहीं हुआ।अगर पार्टी के दिशा निर्देशों के अनुसार कोई कार्य अंजाम ही नहीं दिया जाना है और अपनी ही मनमर्जी की जानी है तो पार्टी आलाकमान होने का मतलब ही क्या रह जाता है।हर चुनाव चाहे वह मुख्यमंत्री का हो या सभापति का सियासी दलों के आलाकमान पर्यवेक्षक बना कर भेजते हैं और अगर आलाकमान का कोई सुझाव होता है तो वह भी बताया जाता है।पर्यवेक्षक विधायक हों या पार्षद सबसे व्यक्तिगत बातचीत कर राय जानते हैं और आलाकमान को अवगत करवाने के बाद नाम घोषित करते हैं।यही परम्परा सभी दल अपनाते आ रहे हैं।लेकिन श्रीगंगानगर में विधायक और पार्षदों ने सब कुछ अपने स्तर पर ही कर डाला ।इस पर पर्यवेक्षक डॉ रामप्रताप द्वारा ऐतराज उठाया जाना विधायक और पार्षदों को इतना नागवार गुजरा कि वे निजी हमलों पर उतर आए।सियासी दलों में बढ़ती इस तरह की घटनाओं पर मेरे जैसे लोगों को कोई आश्चर्य नहीं होता।क्योंकि जैसा आप बोओगे ,वैसा ही काटोगे।पार्टी विचारधारा के विपरीत अवसरवादी लोगों को पार्टी में लाया जाएगा तो परिणाम भी ऐसे ही सामने आएंगे।दरअसल भाजपा नेतृत्व पार्टी को विस्तार देने के चक्कर में पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं को उपेक्षित कर दूसरी विचारधारा के अनुशासनहीन, भ्रष्ट और अवसरवादी स्वार्थी लोगों को शामिल कर सता हासिल करने की हवस में इतना मगरूर होता जा रहा है कि पार्टी के मूल सिद्धातों और अपने ही नेता पीएम नरेंद्र मोदी के भ्रष्टाचार की मुहिम सबको दरकिनार करने में लगा है।चुनाव के समय अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त नेताओं और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए उन्हें पुरस्कृत किया जा रहा है और वफादारों को पीछे धकेल मानसिक रूप से तिरस्कृत किया जा रहा है।पार्टी के समर्पित कार्य करता अटलबिहारी वाजपेयी के उस दौर की यादें ताजा कर मन को तसल्ली दे रहे हैं, जब निष्ठावान कार्यकर्ताओं को सर आंखों पर बिठाया जाता था।वाजपेयी कहते थे हमारे पुराने समर्पित कार्यकर्ता चुनावों में जीत की गारंटी हैं।उनकी किसी भी स्तर पर उपेक्षा नहीं होनी चाहिए।एक भी पुराना कार्यकर्ता टूटना नहीं चाहिए।भले ही 10 नए कार्यकर्ता टूट जाएं।हम नए कार्यकर्ताओं पर जल्दी से भरोसा नहीं कर सकते।लेकिन आज की भाजपा में अरुण सिंह जैसे वरिष्ठ नेता निज हितों के चलते समर्पित कार्यकर्ताओं और नेताओं को एक कोने में बिठा भ्रष्ट और अवसरवादी लोगों को पार्टी में शामिल करवाने की कवायद में लगे हैं।चुनावों में पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहे नेताओं और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने और उन्हें पार्टी में तवज्जो दिए जाने से उनके हौसले बुलंद हैं।पार्टी में उन्हीं की सुनवाई हो रही है।सरकार में भी उनकी अनुशंसा पर काम हो रहे हैं। अवसरवादियों ,पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों के विरुद्ध अगर कार्रवाई नहीं होगी तो इसी तरह की अनुशासनहीनता भी होगी और आलाकमान के दिशा निर्देशों को भी ठेंगा दिखाया जाता रहेगा।हैरानी की बात है कि पार्टी नेतृत्व ने अभी तक पश्चिम बंगाल में हुए विधान सभा चुनाव के बाद बरसाती मेंढकों की तरह अपने नेताओं के पार्टी छोड़ वापस टीएमसी में जाने की घटना से कोई सबक नहीं लिया है।अवसरवादी नेता सत्ता की मलाई खाने के लिए आते हैं और जब सत्ता नहीं आती तो पार्टी छोड़ शासन में आई पार्टी में चले जाते हैं। पार्टी सत्ता में हो या विपक्ष में केवल पुराने और समर्पित कार्यकर्ता ही उसके साथ मजबूती के साथ खड़े रहते हैं।वे ही पार्टी की रीढ़ की हड्डी होते हैं और इस रीढ़ की हड्डी को तोड़ने का काम भाजपा में जाने अनजाने हो रहा है।आज पार्टी मोदी लहर पर सवार हो उड़ान भर रही है।राम लहर भी उसकी उड़ान को और तेजी दे रही है।जिसके चलते सत्ता सुख भाजपा को नसीब हो रहा है।लेकिन भविष्य में जब मोदी सियासत से सन्यास ले लेंगे। न मोदी लहर होगी और न राम लहर तब किसके सहारे सत्ता की उड़ान भर पाएंगे।नैया तो समर्पित कार्यकर्ता ही पार लगाएंगे। पार्टी को मजबूत बनाये रखना है तो अनुशासनहीन और पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर एक सख्त संदेश देना ही होगा।नहीं तो सब अपनी ढपली अपना रंग अलापते रहेंगे।इसलिए नेतृत्व देखे कि समर्पित कार्यकर्ताओं को उनका मान और सम्मान बराबर मिलता रहे।नहीं तो आज जहां कांग्रेस खड़ी हैं ,वहां भाजपा को पहुंचते ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
मदन अरोड़ा।बहुप्रतीक्षित श्रीराममंदिर प्राण प्रतिष्ठा में दो दिन शेष हैं।श्रीरामलला गर्भगृह में विराजमान हो चुके हैं।आज शनिवार 20 जनवरी से अस्थाई मंदिर में विराजमान श्रीरामलला के दर्शन नहीं हो सकेंगे।शुक्रवार की शाम से यहां प्रवेश बंद कर दिया गया है।यहां विराजमान श्रीरामलला अपने भाइयों व बाल हनुमान के साथ आज शनिवार को नए मंदिर के गर्भगृह में विराजित कर दिए गए हैं।उनके दर्शन भी अब 22 जनवरी से नए मंदिर में ही होंगे।22 जनवरी ऐतिहासिक पल है।श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही भारत की प्राण प्रतिष्ठा और पुनर्स्थापना होने जा रही है।500 सालों की लंबी प्रतिक्षा के बाद वह शुभ घड़ी आ गई है,जब प्रभु श्री राम अपने महल में वापिस विराजित हो रहे हैं ।देश में उत्साह और उमंग का माहौल है।पर इस शुभ घड़ी में रामद्रोही विघ्नकारियों का विघ्न जारी है।राम मंदिर पुनर्निर्माण को लेकर पिछले 500 साल से लड़ाई लड़ी जा रही थी।बाबर के समय मंदिर विध्वंस कर मस्जिद बनाई गई।अंग्रेजी हकूमत के समय भी संघर्ष हुआ।गुरुओं के निर्देश पर निहंगों ने मंदिर को मुक्त करवाने के लिए लड़ाई लड़ी और कब्जा कर वहां हवनकुंड का निर्माण कर 14 दिनों तक हवन करवाया।उनके खिलाफ उस समय अंग्रेजी हकूमत में सबसे पहली fir दर्ज हुई।आजादी के बाद कांग्रेसी और वामपंथियों ने एक के बाद एक साजिश कर श्रीराम जन्म भूमि की मुक्ति में विघ्न पैदा किये। 1984 में लाखों संतों ने भूमि मुक्त करवाने का संकल्प लिया।संघ और विश्व हिंदू परिषद ने इस लड़ाई का नेतृत्व सम्भाला।1989 में फिर इस लड़ाई को मुखर करने का संकल्प संतों ने किया तो पहली बार भाजपा ने खुले मंच से इसे अपना न केवल समर्थन दिया ,अपने चुनावी घोषणा पत्रों में इसे सबसे प्रमुख मुद्दा बनाये रखा।1989 में जन जागरण और आम जन को आंदोलन से जोड़ने के लिए भाजपा ने लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में पूरे देश में रथ यात्रा निकाली ।जिसके सारथी बने नरेंद्र भाई मोदी।भाजपा,संघ और विहिप के नेतृत्व में हुए आंदोलन के दौरान ही 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद के गुम्बद को गिरा भगवा लहराया गया।2014 में केंद्र में मोदी और 2017 में यूपी में योगी सरकार आई और श्री राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।27 साल बाद 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना अंतिम फैसला सुनाया।चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की विशेष पीठ ने मंदिर के ढांचे पर ही मस्जिद निर्माण मानते हुए विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक बताया और उस जगह पर मंदिर निर्माण के लिए अलग ट्रस्ट बनाने का आदेश केंद्र सरकार को दिया।इसी दिन श्री राम मंदिर के निर्माण का पूरा मार्ग प्रशस्त हो गया।उसी ट्रस्ट के देखरेख में आज भव्य मंदिर बन रहा है और उसके गर्भगृह और प्रथम तल का निर्माण पूर्ण हो जाने से 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है जबकि श्रीरामलला 18 जनवरी को गर्भगृह में विराजित हो गए हैं।इस लड़ाई में हजारों लोगों को कुर्बानियां देनी पड़ी।1990 में कार सेवकों पर मुलायमसिंह के निर्देश पर पुलिस ने फायरिंग की।दर्जनों कारसेवकों को अपना बलिदान देना पड़ा।2002 में गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों से भरी दो बोगियों को आग लगा दी गई।58 कारसेवक जिंदा जल गए।लेकिन 2004 में आई बेशर्म कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के रेलवे मंत्री लालू यादव इसे हादसा साबित करने पर तुले रहे।1989 से लेकर 2019 तक विपक्षी हमेशा भाजपा पर कटाक्ष करते रहे'मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे'।इसे भाजपा का राजनीतिक एजेंडा बताया जाता रहा और अब जब मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है।सनातन विरोधी और चर्च उपासक एक के बाद एक विघ्न डालने की कोशिश कर रहे हैं।कभी मंदिर निर्माण,कभी मुहूर्त तो कभी गर्भगृह प्रवेश,कभी मोदी को यजमान बनाये जाने का विरोध तो कभी प्राण प्रतिष्ठा का विरोध और अब श्रीरामलला की मूर्ति को लेकर भ्रम फैला विघ्न डाला जा रहा है।शंकराचार्यों पर लाठियां और संतों पर गोलियां चलाने वाले शंकराचार्यों के नहीं आने को मुद्दा बना प्राण प्रतिष्ठा समारोह का विरोध कर रहे हैं ।इन सब विघ्नकारियों के विरोध और डाले जा रहे विघ्न से बेपरवाह पीएम नरेंद्र मोदी प्राण प्रतिष्ठा से पहले यजमान द्वारा किये जाने वाले कठोर यम नियमों की पालना करते हुए पिछले 10 दिनों से धर्म गुरुओं द्वारा बताए गए कठोर अनुष्ठान और तप कर रहे हैं।देश के भगवान श्रीराम से जुड़े मंदिरों का दर्शन करने के साथ ही वहां भजन और सफाई कर रहे हैं। अलग अलग भाषाओं की रामायण में वर्णित लंका से अयोध्या लौटने की कथा सुन रहे हैं।वे अन्न त्याग पिछले 10 दिन से केवल नारियल पानी ले रहे हैं और बिस्तर त्याग जमीन पर कम्बल बिछा सो रहे हैं ।पर चुनाव आने पर मंदिर मंदिर जाने का आडंबर करने वाले और उनकी परम्परा वाले विपक्षी इसका भी उपहास उड़ा रहे हैं।चुनावी विफलताओं ने उन्हें भाजपा और मोदी विरोधी से श्रीराम विरोधी बना दिया है।वे मोदी और भाजपा को तो नहीं हरा पाए,प्रभु श्री राम के कामों में विघ्न डाल उन्हें हराने के कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।राउत उदयनिधि कह रहे हैं'मस्जिद विध्वंस कर राम मंदिर बनाने का समर्थन नहीं कर सकते'। सनातन ईश्वरीय सत्ता है।यह मिट नहीं सकता। मुगलों ने जबरन धर्मांतरण करवा सनातन को खत्म करने की कोशिशें की।हमारे गुरुओं और गुरु के बंदों के शीश और शरीर की बोटी बोटी काटी गई।दो साहबजादों को जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया पर सनातन को मिटा नहीं पाए।अंग्रेजों ने भी शिक्षा और चर्च के माध्यम से आदिवासियों और दलितों का धर्मांतरण कर सनातन को खत्म करने की कोशिशें की।धर्म को अफीम का नशा मानने और उससे हमेशा भयभीत रहने वाले वामपंथी इतिहासकारों ने कांग्रेसियों के साथ मिल सनातनी युवाओं को मिथ्या इतिहास पढा बरगलाने के प्रयास किये जो अभी भी जारी हैं।श्री राम मंदिर का निर्माण न हो इन वामपंथी इतिहासकारों ने सुप्रीम कोर्ट में इतिहास और मंदिर भूमि के मिथ्या तथ्य पेश किए।कांग्रेस ने प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को ही नकार दिया।लेकिन सनातनी वेग को रोक नहीं पाए।दरअसल कांग्रेस,वामपंथियों और इनके हमसफ़र अन्य विरोधियों को सनातन और भगवा में प्रभु राम की जगह भाजपा और संघ नजर आता है।इन्हें लगता है कि सनातन और भगवे के उभार को रोके बिना भाजपा को रोकना असम्भव है।इसलिए कोई अन्य मुद्दा नहीं होने के कारण सनातन पर हमले हो रहे हैं।सत्ता से वंचित और राजनीतिक रूप से असुरक्षित लोग सनातन पर हमले कर रहे हैं।सनातन का अपमान कर ,वे एक बड़ी भूल कर रहे हैं।राम मंदिर निर्माण को लेकर सनातनियों में उल्लास है।जन भावनाओं का सैलाब उभर आया है।विपक्ष इसे समझ नहीं पा रहा।जिसकी बड़ी कीमत उसे चुकानी पड़ेगी।जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।मोदी प्राण प्रतिष्ठा के लिए यम नियमों की कठिन तपस्या कर रहे हैं और विरोधी मंदिर रोको में लगे हैं।मोदी और साधु संत 22 को भव्य दिवाली मनाने की अपील कर रहे हैं।आइए 22 जनवरी को अपने घर पर भगवा फहराएं और कम से कम एक दीया प्रभु राम के नाम से जला उत्सव मनाएं।जिन्हें जलना है, उन्हें उनके रहमों कर्म पर छोड़ दें।जय श्रीराम
मदन अरोड़ा।500 साल के संघर्ष और कुर्बानियों के बाद प्रभु श्रीराम अपने घर विराजमान होने आ रहे हैं।22 जनवरी को अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है।पूरा देश ही नहीं ,दुनिया राममय हो चुकी है। परम्परागत दिवाली से भी भव्य दिवाली मनाए जाने की शुरुवात हो चुकी है।मंदिरों में अभी से दीये जलाए जाने लगे हैं।प्राण प्रतिष्ठा के दिन 22 जनवरी को देश के 5 लाख गांवों और शहरों के हर मंदिर में तो दीपोत्सव होगा ही घर घर दिवाली मनाई जाएगी।आज की सियासत में इसे विपक्ष के सुरों में बात करें तो गांधी के सबसे प्रिय प्रभु श्री राम भाजपाई हो गए हैं।22 जनवरी को श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो रही है।भाजपा और आरएसएस का अनुष्ठान हो रहा है।पूरा विपक्ष पीएम मोदी और शाह की श्री राममंदिर की गुगली में ऐसा फंस गया है कि उसे समझ में ही नहीं आया कि क्या करें,क्या न करें। विपक्ष के साथ आज वैसा होता दिख रहा है जो कबीर कह गए थे।राम नाम कड़वा लागे ,मीठे लागे दाम।दुविधा में दोनों गए,माया मिली न राम।चंद कट्टरपंथी वोटों की तिजारत की गला काट प्रतिस्पर्धा के चलते कांग्रेस और उसकी परम्परा के सारे दल श्रीराम मंदिर को लेकर हाहाकार मचा रहे हैं।पूरा विपक्ष मोदी और शाह के बिछाए श्रीराम मंदिर के जाल में फंस गया है।अयोध्या में 22 जनवरी को श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा कर भव्य श्री राम मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा।पीएम मोदी इस कार्यक्रम के मुख्य यजमान के साथ ही उद्घाटनकर्ता भी होंगे। पूरा आयोजन संघ से जुड़े विहिप के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट के आदेश और अनुमति से बने श्री राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से किया जा रहा है।देश के सभी बड़े सियासी दलों के अध्यक्षों,राज्यों के मुख्यमंत्रियों, देश विदेश की प्रमुख हस्तियों ,साधु संतों के साथ ही प्रमुख कारसेवकों को आयोजन में शामिल होने के लिए न्यौता दिया गया है।ट्रस्ट की ओर से तीन भव्य सुविधाजनक टेंट सिटी बनाने के साथ ही प्रशासन के स्तर पर भी दो लग्जरी टेंट सिटी बसाई गई हैं।इस दिन पूरे देश के मंदिरों को सजाने के साथ ही घर घर में दिवाली मनाने की अपील की जा रही हैं।घर घर अक्षत पीले चावल के साथ निमंत्रण दिए जा रहे हैं।उद्घाटन के बाद भी 46 दिनों तक प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम चलेंगे।देश भर से दो महीनों तक रामभक्तों को अयोध्या लाये जाने का कार्यक्रम है।भाजपा हर लोकसभा क्षेत्र से 10 हजार कार्यकर्ताओं को 25 मार्च तक प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर के दर्शन करवाने जा रही है।यानी मोटेतौर पर करीब करीब 5 करोड़ कार्यकर्ताओं को पार्टी 25 मार्च तक दर्शन करवाएगी।एक अनुमान के अनुसार चुनाव पूर्व तक करीब 10 करोड़ रामभक्त अयोध्याधाम में श्री रामलला के दर्शन कर देश को राममय बना, जो राम को लाएं हैं हम चुनावों में उन्हें लाएंगे का तराना गुनगुनाते मिलेंगे।यही सब विपक्ष विशेषकर कांग्रेस को विचलित कर रहा है। दरअसल कांग्रेस और विपक्ष की सोच यही रही है कि देश में हिंदुत्व की लहर किसी भी सूरत में नहीं चलनी चाहिए।इससे हिन्दुवादी ताकतों और भाजपा को संजीवनी मिलती है।भाजपा का तो उभार ही श्री राम मंदिर आंदोलन से ही हुआ है।मंदिर बनाएंगे ये हर चुनाव का प्रमुख मुद्दा रहा है।पंडित जवाहरलाल नेहरू सदैव हिन्दू धर्म के उत्थान के धुर विरोधी रहे।22 दिसम्बर 1949 को बाबरी मस्जिद में प्रभु श्रीराम और सीता माता की मूर्ति मिलने की खबर से नेहरू इतने परेशान हुए कि उन्होंने तत्कालीन संयुक्त प्रदेश जिसे अब यूपी कहा जाता है के मुख्यमंत्री जीबी पंत को मस्जिद से तत्काल मूर्तियां हटाने के निर्देश दिए।उनका मानना था कि इससे मुस्लिम समाज आक्रोशित और नाराज होगा।लेकिन फैजाबाद के तत्कालीन डीएम केके नायर ने मूर्तियां हटाने के आदेश को नहीं माना।जिस पर उन्हें हटा दिया गया।पर नायर इसके खिलाफ हाई कोर्ट चले गए और स्टे ले आये।6 फरवरी 1950 को नेहरू ने जीबी पंत को फिर पत्र लिख मूर्तियां हटाने के निर्देश दियेऔर कहा कि इससे काश्मीर के मुसलमानों में गलत संदेश जा रहा है।लेकिन उनके निर्देश सिरे नहीं चढ़ पाए।यही नहीं सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का भी नेहरू ने न केवल विरोध किया वरन उनके मना करने के बावजूद जब तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद मंदिर उद्घाटन के लिए गए तो इतने ज्यादा नाराज हो गए कि बाबू राजेन्द्र प्रसाद को पूर्व राष्ट्रपति के नाते जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थी,,नहीं दी और उन्होंने दवाओं के अभाव में एक कमरे में दम तोड़ दिया था। आज की कांग्रेस की तरह ही नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा निमंत्रण को ठुकरा दिया था।नेहरू की उसी परम्परा को सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कांग्रेस निभाती आ रही है।1949 में मूर्तियां मिलने के बाद इंदिरा गांधी के समय जब खुदाई में मस्जिद के नीचे धार्मिक चिन्हों वाले स्तम्भ मिलने लगे तो वामपंथी इतिहासकारों के कहने पर इंदिरा गांधी ने खुदाई रुकवा दी।सोनिया गांधी की सरपरस्ती में चलने वाली मनमोहन सिंह सरकार ने तो बकायदा कोर्ट में प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को ही काल्पनिक बताते हुए हलफनामा तक दे डाला।प्रभु श्री राम के अस्तित्व को नकारने वाली कांग्रेस और विपक्ष को अब प्रभु श्रीराम को लेकर देश में जो माहौल बन रहा है ,रास नहीं आ रहा।उन्हें लग रहा है कि अगर चुनावों के दौरान भी यही माहौल रहा तो मोदी को फिर से सत्ता में आने से रोकना असम्भव हो जाएगा।इसलिये जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद श्रीराम मंदिर के निर्माण की कवायद शुरू हुई तो कहा जाने लगा कि मंदिर का निर्माण भाजपा के प्रयासों से नहीं कोर्ट के आदेश से हो रहा है।जब मंदिर के उद्घाटन पर पीएम मोदी को यजमान बनाये जाने की घोषणा हुई तो विपक्षी नेताओं को न्यौता नहीं मिलने को लेकर सवाल खड़े किए जाने लगे।उन्हें लग रहा था कि मंदिर ट्रस्ट पर चूंकि विहिप का नियंत्रण है तो विपक्षियों को निमंत्रण नहीं दिया जाएगा और वे इसे लेकर अपनी राजनीति कर भाजपा और मोदी को घेरने में सफल हो जाएंगे।लेकिन मंदिर ट्रस्ट ने सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी सहित सभी राष्ट्रीय दलों के अध्यक्षों को व्यक्तिगत रूप से न्यौता दे उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। न्यौता मिलने के बाद सबसे पहले वामपंथियों ने कार्यक्रम में नहीं जाने की घोषणा कर दी।सपा के अखिलेश यादव ने भी सीधेतौर पर न्यौता ठुकराने के बजाए, ये कह दिया कि प्रभु श्रीराम सभी के हैं।जब बुलाएंगे,चले जायेंगे।लालू यादव के चिराग तेजप्रताप ने जवाब में कहा हमारे भगवान तो श्रीकृष्ण हैं।कांग्रेस की कर्ताधर्ता सोनिया गांधी इस मामले में अपनी पार्टी के रुख का खुलासा करने में देर तक झिझकती रही और अब उन्होंने भी कह दिया कि कांग्रेस का कोई भी नेता उद्घाटन समारोह में नहीं जाएगा।उनकी दुविधा यह थी कि यदि वे और मल्लिकार्जुन खड़गे समारोह में शामिल होते हैं तो पार्टी का मुस्लिम वोट बैंक जो अब कुछ समय से पुनः उसके साथ जुड़ रहा है ,उससे फिर दूर हो जाएगा।लेकिन अब जब कांग्रेस के नेता शामिल नहीं हो रहे हैं तो वे हिंदुओं के भी अपने एक बड़े हिस्से को अलग थलग कर देंगे। कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में न जाने से उससे जुड़े हिंदुओं के छिटकने की गुंजाइश नाममात्र की है।पार्टी को लगता है कि उसके साथ वही हिन्दू जुड़े हैं जो मोदी,भाजपा और आरएसएस से नफरत करते हैं।इसलिए समारोह में नहीं जाने से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा।लेकिन अगर समारोह में शामिल हुए तो उससे जुड़े कट्टरपंथी वोटबैंक हरहाल में छिटक दूसरे दलों के पास चला जायेगा।जो उसके लिए आत्मघाती साबित होगा।इसी लिए लंबे विचार विमर्श के बाद पार्टी ने न्यौते को अस्वीकार कर न जाने का फैसला लिया है।समारोह में न जाने के औचित्य को सही ठहराने के लिए पार्टी ने भाजपा को निशाने पर लेते हुए कहा है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह भाजपा और आरएसएस का कार्यक्रम है ।भाजपा ने श्री राम मंदिर का राजनीतिकरण कर चुनावों में फायदा उठाने के लिए इसका आयोजन किया है।चुनावी फायदा उठाने के लिए ही अधूरे मंदिर का उद्घाटन करवाया जा रहा है।कांग्रेस और विपक्ष किसी भी स्थिति में भाजपा को मंदिर निर्माण का श्रेय लेने से रोकने में लगे हैं।छुटभैया नेताओं से लेकर बड़े नेता तक इसके लिए बयान दे रहे हैं।पर पूरा देश भाजपा के मंदिर निर्माण के लिए किए संघर्ष सुर कुर्बानियों को भली भांति जानता है।किस तरह से इस संघर्ष के दौरान उसने अपनी राज्य सरकारों की कुर्बानी दी।छोटे से लेकर बड़े नेता अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी जेल गए ,यह सब देश की जनता को आज भी याद है।देश ने कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व को भी देखा है।जिसमें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी चुनाव आते ही मंदिर मंदिर घूमते हैं।अयोध्या में सरयू में डुबकी तो लगाते हैं लेकिन रामलला के दर्शन करने का साहस नहीं कर पाते और न हीं हिंदुओं के पक्ष में कभी खड़े होते हैं।हिंदुओं की धार्मिक यात्राओं पर पत्थर फेंके जाते हैं।इसकी आलोचना करने के बजाए इसके लिए हिंदुओं को ही दोषी ठहरा ,कांग्रेस शासित राज्यों में पीड़ितों के खिलाफ ही मामले दर्ज कर हिंसा फैलाने के आरोप मढ दिए जाते हैं।इस सॉफ्ट हिंदुत्व का चुनावों में फायदा न मिलता दिख कांग्रेस के नीतिकार पार्टी को फिर से मुस्लिमों के तुष्टिकरण वाली लाइन पर ले आये हैं।इसी के चलते ही सोनिया गांधी ने बहुसंख्यक 80 फीसदी के बजाए 20 फीसदी मुस्लिमों को चुन श्री राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के न्यौते को ठुकराया है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह के न्यौते को ठुकरा कांग्रेस और विपक्ष ने अपने ही पांवों पर कुल्हाड़ी मार पूरा चुनावी मैदान मोदी के लिए खुला छोड़ दिया है।आज देश की भावना श्रीराम मंदिर को लेकर हिलोरे मार रही है और जो जन भावनाओं की कद्र नहीं करते , जनता उन्हें उखाड़ फेंकने में कोई गुरेज नहीं करती। विपक्ष में वामपंथियों का वैचारिक दृष्टिकोण एकदम स्पष्ट है।वह हमेशा ही हिन्दू धर्म विरोधी रहा है।कांग्रेस आज दोराहे पर खड़ी, दो नावों पर सवार है।शायद उसके हालात के लिए ही कहा गया है... एकहि नाव सवार जो,सकुशल उतरा पार।जो दो-दो नौका चढ़ा ,डूब गया मझधार।देश के राममय माहौल का साफ संदेश है जो राम के हैं, वे हमारे हैं।हम उन्हें ही लेकर आएंगे।पहले 2 से 85 पर लाये।फिर दो बार बहुमत की सरकार बनाए और अबकी बार फिर राम लला वालों की ही पहले से भी ज्यादा बहुमत की सरकार बनाएंगे।
मदन अरोड़ा। ऐसे लोग सावधान हो जाएं जो आम से खास बनने के लिए किसी वीआईपी के साथ फोटो खिंचवाते हैं या उनके साथ सम्बन्धों की शेखी बघारते रहते हैं।या किसी भी वीआईपी के रिश्तेदार या घनिष्ठ हैं।अगर आपका बड़े नेताओं के साथ उठना बैठना है तो सतर्क हो जाएं।मोदी सरकार के भ्रष्टाचार और कालेधन के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस के चलते आरबीआई ने केवाईसी की सेक्शन 41 सहित 5 बड़े बदलाव कर बैंकों की हर शाखा को ईडी में बदल दिया है।अब हर बड़े लेनदेन पर न केवल नीचे से ऊपर तक निगेहबानी होगी।किसी आम से खास बने व्यक्तियों और करीबियों के नए एकाउंट खोलने से पहले बैंक मैनेजर को अपनी सीनियर से अनुमति भी लेनी होगी। आरबीआई ने बैंकों को नई गाइड लाईन जारी कर कहा है कि आप वीआईपी के नजदीकियों और उनके साथ फोटो शेयर करने वालों के एकाउंट पर निगरानी रखना शुरू करें। अगर आप भारत सरकार और राज्य सरकार के बड़े अधिकारियों के नजदीकी हैं,रिश्तेदार हैं तो आप पर निगाह रहेगी।अगर किसी बड़े सैन्य अधिकारियों के साथ या बड़े संस्थानों के अधिकारियों के साथ उठते बैठते हैं।अगर आप किसी पार्टी के पदाधिकारी हैं तो सावधान हो जाएं।ये आरबीआई की नई गाइड लाईन कह रही है।मनी लांड्रिंग को लेकर ईडी की कार्रवाई चर्चा में रहती हैं।कई लेयर में काम होता है।1989 में विकसित देशों ने भ्रष्टाचार और आतंकवाद को पोषित करने में मनी लांड्रिंग को लेकर पॉलिसी बनाई ।इसी के चलते पाकिस्तान आज प्रतिबंधित देशों की सूची में है।भारत पर भी बैंकिंग सिस्टम पर निगाह रखने की जरूरत महसूस की जा रही थी।अभी तक आम आदमी और वीआईपी में फर्क नहीं था।अब वीआईपी और उनके करीबियों पर खास निगाह रहेगी। बैंकों को उनके खातों पर निगाह रखने के आदेश दिए गए हैं।आरबीआई ने अपने 5 नियमों में बदलाव किया है।विदेशी पैसे के आने जाने,एटीएम, डिजिटल लेनदेन सब पर निगाह रहेगी।भारत में बैंकों सहित पैसे के लेनदेन करने वाली जितनी भी कम्पनियां हैं ,उन्हें निगाह रखने के निर्देश दिए गए हैं।केवाईसी के सेक्शन 41 को मॉडिफाइड किया गया है।बैंक फार्म में एक कॉलम होगा। ये व्यक्ति पॉलीटिकली एक्सपोज़ पर्सन है या नहीं।बैंक मैनेजर उसे टिक करेगा।पूरे बैंकिंग सिस्टम में उसकी जांच होगी।उसका पैसा कहां से आया ,कहां गया।इस पर पूरी निगाह होगी।ऐसे व्यक्ति का सेकंड एकाउंट खोलने के लिए मैनेजर को अपने सीनियर से अनुमति लेनी होगी।बैंक मैनेजर अपने स्तर पर ऐसे व्यक्ति का एकाउंट नहीं खोल सकेगा।पूरे साल इनके और करीबियों के लेनदेन पर निगाह रखी जायेगी।जितने बड़े लोग है ।उनकी निगरानी रखी जायेगी।आप आम आदमी से खास बन जाते हैं तो आपके एकाउंट पर नजर रखी जायेगी।मसलन वकील से जज बन गए।कोई अधिकारी बन गए।चुनाव लड़ जनप्रतिनिधि हो गए।आपके और आपके करीबियों के एकाउंट निगरानी में आ जाएंगे।ताकि अगर भ्रष्टाचार की कोई कमाई आपके,आपके किसी करीबी या रिश्तेदार के खाते में आये तो उसे पकड़ा जा सके।देश में आजकल एक नई पार्टी बन चुकी है।एसएसपी पार्टी । इसके सदस्य कोई भी पार्टी सत्ता में आये छलांग लगा उस पार्टी में शामिल हो जाते हैं।मंत्रियों और बड़े पदाधिकारियों के साथ फोटो खिंचवा उनके करीबी होने का रुतबा जताते हैं।अब ऐसे फोटो खिंचवा इतराने वालों को सावधान हो जाना चाहिए।कभी भी बैंक वाली ईडी उन्हें जेल भिजवा सकती है।
मदन अरोड़ा।एक जमाना था,जब भाजपा के नेता सीना ठोक कर अपना चाल, चरित्र और चेहरा अलग होने का दावा करते थे।राजनीति में शुचिता के झंडाबरदार होने का दम भरते थे और कांग्रेस को भ्रष्टाचार की गंगोत्री कहते थे।भाजपा की उत्पति भारतीय जनसंघ से हुई,जिसकी स्थापना 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी।आपातकाल के बाद बनी जनता पार्टी में जनसंघ का विलय हो गया । 3 साल तक सत्ता में रहने के बाद जनता पार्टी 1980 में भंग हो गई और तत्कालीन जनसंघ के सदस्यों ने अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में 6 अप्रैल 1980 को भाजपा का गठन किया।1984 के आम चुनाव में भाजपा को केवल दो ही सीट मिली।1996 में संसद में सबसे बड़ी पार्टी बनी और गठबंधन सरकार बनाई जो केवल 13 दिन ही चली।1998 के आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी ।जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।10 साल के वनवास के बाद समर्पित कार्यकर्ताओं के खून पसीने के बूते 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार देश को 30 साल बाद पूर्ण बहुमत की सरकार मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता और कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से 2019 में पहले से भी अधिक बहुमत वाली सरकार बनाने में भाजपा सफल हुई। भाजपा आदर्शों और सिद्धांतों वाली पार्टी मानी जाती है।इसका आरएसएस से वैचारिक और संगठनात्मक सम्बंध हैं।लेकिन सत्ता की निरंतरता से पार्टी के कुछ नेताओं की जिंदगी में फाइव स्टार वाली विलासितापूर्ण रहन सहन के बदलाव ने पार्टी को भी उस कांग्रेसी संस्कृति में ढालने की शुरुवात कर दी है , जिसे पार्टी भ्रष्टाचार की गंगोत्री कहते हैं। ऐसे नेताओं को भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता जैसे शब्दों से कोई परहेज नहीं रह गया है। उन्हें ये काफी कर्णप्रिय लगते हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही कहते हैं ,सौगन्ध मिट्टी की खाता हूं,देश नहीं बिकने दूंगा।न खाया है न खाने दूंगा।लेकिन सवाल ये है कि पार्टी को बिकने से कौन रोकेगा।पार्टी के नेता बिक रहे हैं ।उन्हें खरीदने वाला चाहिए।ऐसे नेता भाजपा की कब्र खोदने का काम कर रहे हैं।अलग चाल,चरित्र और चेहरे वाली पार्टी के नेता पैसे तो छोड़िए शराब और अन्य सुविधाओं के बदले टिकटें बेच रहे हैं।भ्रष्टाचारियों और चरित्रहीन लोगों को पार्टी में शामिल करवाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे ।पार्टी का पूरी तरह कांग्रेसीकरण करने में तूले हैं।हनुमानगढ़ में पिछले दो विधासनसभा चुनावों से पूर्व चुनाव के दौरान फूल कांग्रेस के चर्चा हुआ करते थे।फूल कांग्रेसी का मतलब होता था वो कांग्रेसी जो अपनी ही पार्टी को हराने के लिए भाजपा की मदद करते थे।अब उल्टा हो रहा है।अब पंजा भाजपा के लोग अपनी पार्टी को हराने के लिए कांग्रेस की मदद कर रहे हैं।इस बार पार्टी संगठन की कमान पंजा भाजपा वालों के हाथों में होने से पूरा संगठन ही पार्टी उम्मीदवार को हराने के लिए निर्दलीय बागी कांग्रेस उम्मीदवार को जिताने में लगा रहा । हद तो ये है कि पार्टी के एक राष्ट्रीय महासचिव स्तर के नेता और यहां की पंजा भाजपा के मुखिया निर्दलीय उम्मीदवार की पूरी जन्म कुंडली जानने के बावजूद उसे न केवल नव नियुक्त सी एम और डिप्टी सीएम से मुलाकातें करवा रहे हैं बल्कि उसे और उसके कांग्रेसी समर्थकों को भाजपा में शामिल करवा उन्हें सरकार की ओर से मनोनीत किये जाने वाले ओहदों पर बिठा पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओ को संगठन से दूर करने में लगे हैं।इसकी शुरुआत नगरपरिषद सभापति पद पर एक कांग्रेसी को मनोनीत कर सभापति की कारगुजारियों को दबाने के लिए की जा रही है। भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाने के बजाए उन्हें पार्टी में शामिल करवाने की कोशिश कर ये स्वार्थी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की न खाऊंगा न खाने दूंगा की प्रतिबद्धता और विश्वसनीयता को पलीता लगा पार्टी की छवि खराब करने में पूरी शिद्दत से जुटे हैं ।कहते हैं काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर बार बार चुनाव भी नहीं जीता जा सकता। भाजपा के नेतृत्व को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि अगर सरकार ने 5 साल तक अच्छा काम किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचारियों को जेल पहुंचाने में लगे है तो केवल इसे ही देख कर लोग वोट देंगे और भाजपा के नेताओं की बेईमानी और अनैतिक आचरण को भुला दिया जाएगा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अपने दो नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की सीख को दरकिनार करना भारी पड़ सकता है।लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि राजनीति तर्क नहीं विश्वसनीयता से चलती है।जो जनता नेताओं को चुनती है,उसके भरोसे पर खरा उतरना सबसे जरूरी है।जन विश्वास की कसौटी पर कसें तो मोदी,शाह,योगी के अलावा कुछ ही नेताओं को छोड़ सभी की विश्वसनीयता संकट मे है। भाजपा को भ्रष्टाचारियों को पार्टी में शामिल कर उन्हें वाशिंग मशीन से धोना भारी पड़ सकता है।पुराने,समर्पित ,खून पसीने से पार्टी को सींचने वाले कार्यकर्ताओ पर दूसरी पार्टियों के लोगों को पार्टी में शामिल कर उन्हें वरीयता देने से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा।पार्टी कमजोर होगी।पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी ने कहा था-मेरी एक बात गांठ बांध लेना ,हमारा एक भी पुराना कार्यकर्ता टूटना नहीं चाहिए।नए चाहे दस टूट जाएं क्योंकि पुराना कार्यकर्ता हमारी जीत की गारंटी है और नए पर विश्वास करना जल्दबाजी है।आज जो लोग अपनी पार्टी छोड़ भाजपा में आना चाह रहे हैं, वे केवल सत्ता के साथ जुड़ मलाई खाने और अपने गुनाहों को दफन करवाने के लिए आ रहे हैं।5 साल तक मलाई खाएंगे फिर चुनाव पूर्व उड़नछू हो जाएंगे।पीछे वही रहेंगे जिन्होंने पार्टी के लिए निस्वार्थ भाव से अपना जीवन खपाया है।इसलिए ऐसे कार्यकर्ताओं का इकबाल बनाए रखना पार्टी के मजबूत भविष्य के लिए जरूरी है।शपथ ग्रहण के बाद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का भ्रष्टाचार और महिला अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस की घोषणा उत्साहित करने और एक साफ सुथरी सरकार की आशा जगाने वाली है।पर शपथग्रहण के बाद जिस तरह के लोगों के साथ उनकी फोटो वायरल हो रही हैं ,वह चिंता पैदा करने वाली हैं। प्रदेश में पहली बार संघ और एबीवीपी निष्ठ सरकार सत्ता में आई है। उसकी साख को बट्टा न लगे ।इतिहास के पन्नों में एक दागी सरकार के रूप में दर्ज न हो । इसके लिए जरूरी है कि मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल के सदस्यों को भ्रष्ट,धूर्त और बेईमान लोगों के चंगुल में आने से बचाने के लिए उन्हें ऐसे लोगों की जानकारी दी जाए।मैंने संघ और एबीवीपी में अपना जीवन खपाया है।इसलिए मुख्यमंत्री को भ्रष्ट और धूर्त लोगों को लेकर सावचेत कर रहा हूँ।आप भी अपने अपने क्षेत्र के दागी चेहरों को सरकार के सामने लाएं।ताकि सरकार की साख पर कोई दाग न लग पाए।यह गुरुतर काम संघ और एबीवीपी निष्ठ कार्यकर्ताओं को ही करना है।क्योंकि राजनीति पर तो कालिख पुत चुकी है।
मदन अरोड़ा ,आगामी विधानसभा चुनाव में विकास एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आ रहा है।सभापति गणेशराज बंसल को शहर को मिनी चंडीगढ़ बनाने का श्रेय देते हुए उनके समर्थक उन्हें विकासदूत की पदवी से नवाज वोट मांग रहे हैं।गणेशराज बंसल गांवों में घूम-घूम कर दावा कर रहे हैं कि उन्होंने चार सवाल में शहर में विकास की गंगा बहा उसे मिनी चंडीगढ़ बना दिया है और मौका दिया गया तो वे हर गांव में उसी तरह विकास की गंगा बहा देंगे।कुछ लोग उनकी बातों पर विश्वास भी कर रहे हैं।पर पलट कर उनसे ये नहीं पूछा जा रहा है कि वे गांवों का विकास कैसे करेंगे।पैसा कहां से लाएंगे।क्या गांवों की सरकारी जमीन को बेच कर विकास करवाएंगे।जिसे बेचने की शक्ति विधायक के पास नहीं होती। शहर और ग्रामीण विकास करने के अपने अलग अलग स्त्रोत हैं।शहर के विकास के लिए उससे जुड़ी स्थानीय निकाय के पास आमदनी का अपना जरिया होता है।आमदनी का सबसे बड़ा जरिया उसकी स्थायी सम्पति से होने वाली आय और अस्थाई सम्पति को बेच उससे से आर्थिक स्त्रोत जुटाया जाता है।इसके साथ ही सम्पति टैक्स की वसूली के जरिये भी आमदनी होती है।सरकार स्थानीय निकायों को पूर्व में हो रही चुंगी टैक्स के अनुपात में कुछ राशि देती है।केंद्र सरकार भी सीवरेज जैसी योजनाओं के लिए आर्थिक मदद देती है।ग्रामीण विकास मुख्यतः पूरी तरह से सरकार की ओर से करवाये जाते हैं।जिस पार्टी की सरकार होती है ,उस पार्टी के विधायक की कार्य क्षमता, उसकी सरकार में पहुंच के हिसाब से पूरे विधान सभा क्षेत्र में कार्य होते हैं।विपक्षी पार्टी के विधायक के काम नाममात्र के होते हैं।निर्दलीय विधायक वाले क्षेत्र हमेशा पिछड़ जाते हैं।हर सरकार में उसी की पार्टी के विधायक और जहां पार्टी चुनाव हारती है,वहां हारे हुए उम्मीदवार की इच्छानुसार काम होते हैं।अधिकारियों-कर्मचारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग में भी उन्हीं की चलती है।अधिकारी भी निर्दलीय विधायक से ज्यादा सत्ताधारी पार्टी के नेताओं की ही सुनवाई करते हैं।ऐसे में हनुमानगढ़ से गणेशराज बंसल चुनाव जीत भी गए तो क्षेत्र का काम कैसे करवा पाएंगे।कैसे गांवों में विकास की गंगा बहाएंगे।कैसे कर्मचारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग करवाएगें।सबसे बडी बात आम आदमी के काम कैसे करवाएंगे। 1952 से 1985 के दौरान कामरेड शौपत सिंह विधायक रहे।सर्वाधिक जनप्रिय और ईमानदार नेता रहे।मुख्यमंत्री कोई भी रहा हो उनकी सुनवाई होती थी।लेकिन उनके कार्यकाल में विकास को ग्रहण लग जाता था।1993 तक विकास के नाम पर कोई उल्लेखनीय काम कांग्रेस के विधायक भी नहीं करवा पाए।1993 में डॉ. रामप्रताप के मंत्री बनने के बाद विकास की गंगा बहनी शुरू हुई।उन्हीं के प्रयासों से हनुमानगढ़ जिला बना।दो बड़े फ्लाईओवर ब्रिज बने।दर्जनों अंडरपास बने।गांवों में सड़क,पानी,बिजली,शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाएं पहुंची।किसानों को आखिरी छोड़ तक सिंचाई पानी नसीब होना शुरू हुआ।फतेहगढ़ माइनर के साथ ही सेम समस्या का समाधान हुआ। उन्हीं के कार्यकाल में ही शहर की तंग और बदबूदार गलियों में रहने वालों को पहली बार सीसी रोड बनवा बदबूदार माहौल से राहत दिलाने का काम भी हुआ।सीसी रोड भी होती है,यह शहर वालों ने पहली बार देखा।इसी की बदौलत डॉ. रामप्रताप को विकासदूत कहा जाने लगा। 4 साल पूर्व एक दूसरे विकासदूत अवतरित हुए।शहर की सारी सम्पति को बेच डाला ।सेंट्रल पार्क,भारतमाता चौक,भगतसिंह चौक का पुनर्निर्माण,सड़कों को चौड़ा कर लाईट लगवा 400 करोड़ खर्च करने का दावा किया।यह अलहदा बात है कि इसमें से सीधा आधा उसकी जेब में गया।कुछ सम्पति को सार्वजनिक रूप से नीलाम किया तो कभी उसी के साथी वार्ड नम्बर 56 के पार्षद द्वारा कलेक्टर को लिखित में दी गई शिकायत के अनुसार 80 प्लाटों को आधी रात को अधिकारियों को बुला फर्जी नीलामी दिखा डीपीसी से लाख दो लाख ऊपर दिखा अपने परिचितों के नाम करवा करोडों का घोटाला कर लिया।अधिकारियों ने बारम्बार उसे सरकारी सम्पति नहीं बेचने के लिए आगाह किया।ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग किया जा सके और विकास के लिए नीलम कर पैसा जुटाया जा सके।लेकिन नए अवतरित विकासदूत गणेशराज बंसल ने अपनी जेब भरने के लिए शहर की सारी सम्पति को नीलाम कर डाला।टाउन में राजा की कोठी की जगह पड़ी थी ताकि वक्त जरूरत वहां कोई सरकारी कार्यालय या डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के लिए आवास बनाये जा सकें।इसने वहां भी पार्क बना डाला।आज हालात ये हैं कि विकास के लिए कोई पैसा नहीं है। परिषद का खजाना खाली है।ठेकेदारों के 20 करोड़ फंसे हुए हैं।नगरपरिषद के सामने बन रहे महाराणा प्रताप चौक सहित कई निर्माण कार्य अधूरे पड़े हैं। शहर के लिए कोई बड़ा प्रोजेक्ट आ जाये तो उसका निर्माण नहीं हो सकता।क्योंकि उसके लिए जगह ही नहीं छोड़ी गई है।मजबूरी में वह जिले के किसी दूसरे कस्बे में जहां जगह उपलब्ध होगी लगेगा। इससे शहर में युवाओं को रोजगार मिलता जिसके आसार अब खत्म हो गए हैं।बड़ी सहभागिता वाली कोई योजना क्रियान्वित नहीं हो सकेगी क्योंकि उसमें तय हिस्सा जमा कराने के लिए पैसा नहीं है।ऐसा मिनी चंडीगढ़ बनाया है जहां मानसून में बारिश आते ही शहर की गलियां गंगा नदी बन जाती हैं। सड़कों पर विकास की गंगा नदी नहीं गंदे पानी के साथ बरसाती पानी की नदियां बहती दिखती हैं।ऐसा शानदार विकास कि सड़कें नीची और नाले ऊँचें हैं।गलियों में बहती नदियों से छुटकारा तभी मिल सकता है जब नालों और सड़कों पर करोड़ों रुपये दुबारा खर्च कर उन्हें सही किया जाए । पर अब पैसा कहां है।सो ये नदियां अब आपको हर मानसून में बहती मिलेंगी।दुकानदार परेशान हैं ।वहां से गुजरने वाले परेशान होते हैं तो होते रहे क्योंकि ये नए विकासदूत का मिनी चंडीगढ़ मॉडल है।इस मॉडल में सभापति के साथ नगर पार्षदों,कर्मचारियों ने भी खूब माल कमाया है।वे खुश हैं।जेबें जो गर्म हैं।पर कल क्या होगा जब रिटायरमेंट के समय मिलने वाला पैसा नहीं मिलेगा क्योंकि परिषद का खजाना तो आपने खत्म कर दिया है।आपको देने के लिए पैसा कहां से आएगा। राज्य की सबसे धनाढ्य नगर परिषद को बीमारू परिषद बनाने का काम कथित विकासदूत ने किया है। विकास का एक और बड़ा काम विकासदूत ने किया है।टाउन के बाजार का बेड़ा गर्क कर दिया है।आम आदमी चाहे वह टाउन का हो या जंक्शन का उसकी जिंदगी से खिलवाड़ किया ताकि अपनी जमीनों की कीमत बढ़ा वारे न्यारे कर सके।एक गम्भीर रोगी की जान बचाने के लिए एक एक मिनट काफी कीमती होता है।इस विकासदूत ने सतीपुरा में बनने वाले मेडिकल कॉलेज को नवां बाईपास के पास बनवा दिया ताकि उसकी जमीन की कीमतें ऊंची हो सके और वहां वह एक जमीन के टुकड़े को और खरीदकर करोड़ों कमा सके।सतीपुरा में मेडिकल कॉलेज के लिए सहमति बनते देख विकासदूत ने नगरपरिषद की जमीन को पार्क की जमीन बता उसकी जगह नवां बाईपास के पास जमीन आवंटित करवा दी।इससे उसका तो करोड़ों का फायदा हो गया लेकिन वहां मेडिकल कॉलेज के साथ जिला अस्पताल बनने से न केवल टाउन स्थित जिला अस्पताल का विस्तार रुक गया।अब शहर के साथ साथ जिले के मरीजों को भी करीब 7 से 8 किलोमीटर का सफर तय कर चिकित्सा के लिए नवां जाना पड़ेगा।इसका परिणाम सीधेतौर पर टाउन के मार्केट पर भी पड़ेगा।जिले के मरीज जो पहले टाउन आते थे ,खरीदारी करते थे ।पैसा टाउन के बाजार में आता था। वह अब नवां के पास बने दुकानदारों के पास जाएगा या फिर वे अपने ही नजदीक के कस्बों में खरीदारी करेंगे।इसका नुकसान टाउन के साथ जंक्शन के कारोबारियों को भी होगा।सतीपुरा में यदि मेडिकल कॉलेज बनता तो उसकी दूरी दोनों ही कस्बों टाउन जंक्शन के लिए बराबर पड़ती और जिला अस्पताल ही मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध अस्पताल होता ।इससे टाउन के अस्पताल के आसपास वाले व्यापारियों का तो फायदा होता ही आमजन को भी भारी सुविधा मिलती।लेकिन गणेशराज की चांदी के टुकड़ों की चाहत का खामियाजा व्यापारियों और आमजन को भुगतना पड़ेगा।अब शहर का विकास ही उसका सबसे बड़ा अभिशाप बनेगा। गणेशराज ने विकास के नाम पर शहर के विनाश की पटकथा लिख दी है।भविष्य में शहरवासियों को पैसों के अभाव में महाराणा प्रताप चौक जैसे आधे अधूरे,गंदगी से पटे मंजर ही दिखाई देंगे।गलियों में बरसाती और गंदे पानी की नदियां बहती दिखेंगी। कोई नया विकास की बात तो छोड़िए ,किसी नाली,सड़क की मरम्मत के लिए भी महीनों इंतजार के बाद यदि काम हो जाये तो गनीमत मानिएगा।इसके बाद भी यदि आपको गाना है तो गाते रहिए गणेशराज मेरी आवाज ।
मदन अरोड़ा,लोकतंत्र के महापर्व को मनाने का समय नजदीक आने के साथ ही ,मतदाताओं को जाति के आधार पर बांटने का खेल भी शुरू हो गया है।शांति और सौहार्द के प्रतीक रहे हनुमानगढ़ में अब जाति का जहर एक उम्मीदवार के सजातियों और उनके समर्थकों द्वारा घोल चुनाव जीतने की कोशिश हो रही है।एक जाति विशेष के दो उम्मीदवारों के खिलाफ परिवारवाद और वंशवाद का आरोप लगा मतदाताओं को भड़काया जा रहा है कि इस बार इनमें से कोई चुनाव जीत गया तो फिर किसी दूसरी जाति को मौका नहीं मिलेगा।दिलचस्प बात यह है कि वंशवाद और परिवारवाद का आरोप वो उम्मीदवार और उनके लोग लगा रहे हैं जो खुद परिवारवाद के सबसे बड़े पोषक हैं।जिसने पिछले नगरपरिषद सभापति चुनाव में अपने सजातीय को अवसर देने के बजाए उसे हरा खुद येन केन चुनाव जीत अपनी जाति के बजाए खुद को प्राथमिकता पर रखा।जो खुद और अपनी पत्नी को पार्षद और सभापति बनाता आ रहा है।।इसमें सबसे दुखद यह है कि भाजपा के जिस पार्षद को सभापति चुनाव में जिस व्यक्ति से मात मिली, स्वस्थ लोकतंत्र को तार तार करते हुए उसने आगामी विधान सभा चुनाव में पार्टी को तिलांजलि दे जाति को प्राथमिकता में रख उसी सजातीय को समर्थन की घोषणा कर दी।स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मतदाताओं को जातियों में बांट चुनाव की नैया पार करने का खेल देश और समाज के लिए बेहद खतरनाक है और ऐसे उम्मीदवारों को सबक सिखा उनसे बचने की जरूरत है।एक जाति के कुछ व्यापारी और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे उम्मीदवार के कुछ अन्य जातियों के समर्थक व्यापारी जिस तरह से मतदाताओं में जाति का जहर भरने का काम कर अपने महाभ्रष्ट उम्मीदवार के विकास का यशोगान कर मतदाताओं के विचारों को बदलने में लगे हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि उनके उम्मीदवार को ही वोट क्यों दिया जाए, जिसने मात्र 4 साल में जनता के विकास पर खर्च होने वाले पैसों से अपने परिवार का विकास किया।ये राशि कोई करोड़ दो करोड़ नहीं है। आरोप है यह करीब सौ करोड़ के आसपास है।जो अगर ईमानदारी से शहर पर लगा होता तो हनुमानगढ़ वाकई मिनी चंडीगढ़ बन गया होता । ये पैसा जो उस उम्मीदवार की जेब में गया है ,वह आपका और हम सबका है।25 नवंबर को उसे निकालने का सुअवसर आया है। लोकतंत्र के इस महापर्व के दिन का फायदा अवश्य उठाइयेगा। एक तरफ हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संत देश में जातिवाद को खत्म कर एक मजबूत भारत और मजबूत सनातन बनाने के लिए दिनरात एक कर रहे हैं।भ्रष्टाचारियों को पकड़ उन्हें उनकी असली जगह पहुंचाया जा रहा है तो कुछ निहित स्वार्थी लोग एक जाति विशेष के खिलाफ मुहिम चला और जिस भ्रष्टाचारी का समर्थन कर रहे हैं उसके भ्रष्टाचार और अपराधों की 7 दर्जन लंबी फेहरिस्त को छुपा बड़ा पाप भी कर रहे है।उम्मीदवार कोई भी हो उसके आपराधिक और भ्रष्ट कारनामे आम मतदाताओं के सामने आने चाहिए।चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों को अपने खिलाफ आपराधिक मामलों को तीन बार मीडिया में छपवाने के निर्देश दिए हैं।जिन्हें पहली बार 13 से पहले ,दूसरा 17 से पहले और अंतिम तीसरी बार 23 नवंबर से पहले मीडिया में जारी किया जाना है।चालाक उम्मीदवार अपने आपराधिक मामलों को व्यापक रूप से सार्वजनिक होने से बचने के लिए ऐसे मीडिया संस्थानों में जानकारी देंगे, जिनकी पहुंच नाममात्र की है।यह क्षेत्र के जागरूक मतदाताओं का दायित्व है कि वे उम्मीदवारों की इस साजिश को विफल कर उनकी जन्म कुंडली घर घर तक पहुंचाएं।ताकि एक ईमानदार और साफ छवि के उम्मीदवार का चुनाव मतदाता कर सकें। उम्मीदवार के समर्थन में वोट मांगने के लिए आने वालों से उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता,उसके आपराधिक मामलों की जानकारी लेने के साथ ही ये जरूर पूछिये कि एक जाति विशेष के खिलाफ जहर घोल क्षेत्र का माहौल खराब करने वालों को वोट क्यों दिया जाए।मतदान से पूर्व वोट खरीदने की मुहिम चलाई जाएगी।दलालों की खूब चांदी कुटेगी।दूसरों के वोट खरीदने के नाम पर अपने घर भरने का काम भी होगा। बाजार में हवा है एक उम्मीदवार करोड़ दो करोड़ नहीं हराम की कमाई में से 30 से 40 करोड़ खर्च करने जा रहा है। उसकी हराम की कमाई से चुनाव जीतने के मंसूबों को मिट्टी में मिलाने का काम मतदाताओं को करना है।यह तभी सम्भव होगा जब ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव में मात दी जाएगी।ऐसे उम्मीदवारों को यह अहसास करवाना जरूरी है कि मतदाता उसकी तरह बिकाऊ और बेईमान नहीं है। लोकतंत्र और देश की मजबूती के लिए जरूरी है कि बिना जाति देखे ईमानदार छवि और पढ़े लिखे उम्मीदवार को वोट दें।ऐसे उम्मीदवार के लिये अपने मताधिकार का प्रयोग करें जो आगे जाकर अपने आपको बेचे नहीं।जो सरकार में क्षेत्र की नुमायदगी कर आपके क्षेत्र और आपकी समस्याओं का निदान करवा सके। लोकतंत्र की मजबूती के लिए मतदान जरूर करिए।हम अपनी पसंद के ईमानदार जनप्रतिनिधि चुन कर लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए घर से जरूर निकलें।आपका वोट ,आपकी ताकत है।आपका वोट ही आपका और आपके क्षेत्र का भविष्य तय करेगा।इसलिए मतदान करने से पहले जरूर सोचिए आप ई वी एम का बटन सही दबा रहे हैं या नहीं।भ्रष्टाचारियों और जातियों में बांटने वालों की बटन दबा विदाई करिए।इसी से देश ,समाज और लोकतंत्र मजबूत होगा।आपका मताधिकार सही मायने में सार्थक होगा।जयहिंद
मदन अरोड़ा, सनातन के सबसे बड़े पर्व दीपोत्सव के बाद 25 नवंबर को देश के लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्यौहार है।मतदाताओं द्वारा अपने बच्चों और इलाके के उज्ज्वल भविष्य को संवारने की बारी है।एक-एक वोट अमूल्य है।इसकी ताकत और मूल्य को समझने की जरूरत है। भविष्य को संवारने वाला वोट बिकाऊ नहीं हो सकता लेकिन उसे स्वार्थी नेताओं ने बिकने वाली चीज बना दिया है।बेगैरत लोग अपनी जमीर को चंद रुपयों और शराब के बदले बेच देते हैं।।हम धर्मनिरपेक्षता और जाति विहीन समाज की बात करते हैं। लेकिन जाति के नाम पर भी खुद बिकते हैं और अपने बच्चों के साथ ही क्षेत्र,राज्य और देश के भविष्य को दांव पर लगा देते हैं।जाति देख वोट करने वाले ,शराब और चंद रुपयों और अन्य सामान लेकर जमीर बेचने वाले अपना वोट नहीं अपने आने वाली पीढ़ी का भविष्य बेचते हैं।समाज के ठेकेदार समाज का भविष्य सुधारने के बजाए समाज का चौधरी बन समाज को ही गिरवी रख अपने स्वार्थ सिद्धि में लग जाते हैं।मतदाताओं को वोटों के खरीददारों और सौदागरों से सावधान रहने की जरूरत है।शराब का नशा तो 10- 12दिन तक रहेंगे।4-5 हजार से सप्ताह भर का राशन आ जायेगा लेकिन बाद में इसके लिए जेबें तो खुद की ही ढीली करनी होंगी।चुनाव के बाद ये दलाल और समाज,जाति के ठेकेदार आपके पास नहीं आएंगे।आपकी शक्ल तक देखना पसंद नहीं करेंगे।विपदा के समय ये आपकी कोई मदद नहीं करेंगे।मदद करेगा वही जिसे आप बिना बिके अपने विवेक से वोट डाल कर आएंगे।आपके पास जब कोई वोट मांगने के लिए आये तो पहले पूछियेगा ,उसने विकास किसका किया है।विकास के नाम पर अपना विकास कितना किया है।पूछियेगा करोड़ों रुपए की सम्पति कहां से और कैसे आई।जो पैसा विकास पर लगना चाहिए था कहीं वो उनके परिवार के विकास पर तो खर्च नहीं हुआ।लोगों को एक छोटे से मकान की छत नसीब नहीं होती ।कहते हैं सर छुपाने के लिए एक छत ही काफी होती है।इनके पास दर्जनों प्लाट कहां से और कैसे, किसके लिए आ गए।खेतिहर मजदूरों को 2 बीघा जमीन नसीब नहीं होती इनके पास 3-3मुरब्बा जमीन कहां से आ गई।खेती किसानी इनका धंधा था या नहीं।नहीं रहा तो जमीन कैसे बन गई।जब जाहिरा सम्पति इतनी है तो सोचिए बेनामी सम्पति कितनी होगी।ये सब आप ही की है।जिसे बेईमानी से इन्होंने अपने पदों का दुरुपयोग कर अर्जित कर ली है।ये सवाल तो बनता ही है कि आप विधायक बन गए तो विकास किसका करेंगे।अपने परिवार का जो आपकी सम्पति को देख कर दिख रहा है।बड़ा शोर मचाया जा रहा है।वंशवाद और परिवारवाद का।राजनीतिक पार्टियां परिवार या वंश नहीं सोचती।सोचती है तो कौन जिताऊ उम्मीदवार होगा जो उसे सत्ता में ला सकेता है।परिवारवाद को खत्म कर बदलाव की बात करने वालों से ये भी पुछियेगा कि पत्नी के बाद पति ही क्यों सभापति बनेगा।क्या ये परिवारवाद नहीं है।आपका वोट बहुत कीमती है।अपने स्वार्थ के लिए अपने सिद्धांतों,विचारधारा को तिलांजलि देने वालों के झांसे में मत आइयेगा।ये हवा बनाएंगे अबकी बार बदलाव।लेकिन काम कौन आएगा।कौन सरकार का हिस्सेदार बनेगा।किसकी सरकार आयेगी।उसमें जिसकी चलेगी वही तो काम करवा पायेगा।आपके पास वार्ड के पार्षद,पंच,सरपंच सभी आएंगे।पहले पता करिएगा की ये अपने लिए कितना माल लेकर आए हैं।कहीं आपके नाम पर ये उम्मीदवारों से पैसे लेकर अपना घर तो नहीं भर रहे।उसी जनप्रतिनिधी की बात सुनियेगा जो न खुद बिकाऊ है और न जो आपको खरीदने आया है।बार- बार अपने स्वार्थ के लिए दल बदलने वालों की बातों पर ध्यान मत दीजिए।वोट वहीं करिए जहां आपका जमीर कहेगा।मतदान से पहले रुकिए,सोचिए,कौन सा उम्मीदवार आपके क्षेत्र के विकास के लिए सरकार से फंड ला सकता है।जरूरत पड़ने पर कौन किसी बड़े अस्पताल में भर्ती करवा आपके या आपके परिवार के किसी सदस्य का ईलाज में मदद कर सकता है।कौन सरकार से मिले पैसे को शत प्रतिशत विकास पर खर्च करेगा और कौन अकूत सम्पति बनाएगा।इसे लेकर मनन जरूर करिएगा।मतदान से पूर्व अपनी पीढ़ी, प्रदेश और देश के बारे में जरूर सोचिएगा।
मदन अरोड़ा ।भारतीय जनता पार्टी ने हनुमानगढ़ से पूर्व मंत्री डॉ. रामप्रताप के बेटे अमित सहू पर भरोसा जताते हुए उन्हें उम्मीदवार बनाया है।अमित सहू कांग्रेस के चौ.विनोद कुमार को चुनौती देंगे।सभापति गणेश बंसल ने भी ताल ठोक दी है।वे सोमवार को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल करेंगे।उनके मैदान में उतरने से मुकाबला रोमांचक हो गया है।अभी तक भाजपा और कांग्रेस के करीब आधा दर्जन पार्षदों को छोड़ शेष सभी बंसल के साथ खड़े हैं।मतदान का दिन आते आते इनमें से कितने किसके साथ रहेंगे।कौन भितरघात करेगा।ये अभी गर्भ में छिपा है।हालांकि इनके पास ऐसा जनाधार नहीं है ,जिससे वे किसी दूसरे को वोट दिलवा सकें।अलबत्ता वोट खरीदने में अच्छी भूमिका निभा सकते हैं।गणेश बंसल पहली बार विधान सभा चुनाव लड़ रहे हैं।उनके लिए सभी मतदान केंद्रों पर कार्यकर्ताओं को बिठाना और मतदाताओं को बूथ तक लाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। क्षेत्र में वे अभी ऐसी पहचान नहीं बना पाएं हैं कि वोटर खुद चल कर उनके लिए मतदान करने पहुंचे।कई उम्मीदवारों के लिए खुद जनता चुनाव लड़ती है ।ऐसा अभी गणेश बंसल के पक्ष में होता नहीं दिख रहा।अगले 20 दिनों में किस तरह की रणनीति बना मतदाताओं को अपने साथ जोड़ते हैं।उस पर इनकी हार जीत तय होगी।वे राजनीतिक पृष्ठभूमि के हिसाब से कांग्रेसी हैं।उनके समर्थकों में हर विचारधारा को लोग हैं।लेकिन उनमें बाहुल्य कांग्रेस विचारधारा के लोगों का होने से कांग्रेस उम्मीदवार चौ.विनोद कुमार को ही अधिक नुकसान होगा। पिछले 7 चुनावों से डॉ. रामप्रताप का चौ.आत्मा राम के परिवार के बीच मुकाबला होता आ रहा है।इस बार डॉ. राम प्रताप के बजाए उनके बेटे अमित सहू चुनौती दे रहे हैं।।पिछले 7 चुनावों में हार जीत के अंतर को देखें तो डॉ राम प्रताप ने सर्वाधिक मतों से चौ. विनोद कुमार को मात दी है। डॉ राम प्रताप 3 बार चुनाव जीते हैं और इनका अंतर 3356 से 30487 मतों का रहा है।डॉ राम प्रताप ने 1998 में चौ. विनोद कुमार के पिता कांग्रेस और हनुमानगढ़ जिले के कद्दावर नेता चौ.आत्माराम को 3356 मतों से मात दी थी।जबकि डॉ. रामप्रताप ने चौ. विनोद कुमार को 1993 में 13825 और 2013 में अब तक के सर्वाधिक 30487 मतों से पराजित किया था।इसके विपरीत चौ.विनोद कुमार चार बार चुनाव जीते।उनकी जीत का अंतर मात्र 387 से 15522 मतों का ही रहा।2008 में मतदान के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं का मतदान केंद्र पर हुए एक मामूली से झगड़े ने जीत की मुहाने पर खड़े डॉ. राम प्रताप की जीत को हार में बदल दिया और चौ. विनोद कुमार 386 मतों से चुनाव जीत गए।2018 के चुनाव में चौ.विनोद कुमार 15522 मतों से डॉ. राम प्रताप को हराने में सफल हुए थे।ये उनकी जीत का सबसे बड़ा अंतर रहा ।हनुमानगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 1957 से लेकर अब तक 30487 मतों से सबसे बड़ी जीत 2013 में डॉ. रामप्रताप और सबसे कम 386 मतों से जीत 2008 में चौ.विनोद कुमार के नाम दर्ज है।इस बार मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा है।हालांकि मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही दिख रहा है लेकिन गणेश बंसल को कमत्तर आंकना बड़ी भूल होगी।आम आदमी पार्टी का क्षेत्र में कोई वजूद नहीं है।पार्टी उम्मीदवार सचिन कौशिक विप्र वोटों तक ही सिमटते दिख रहे हैं।माकपा के रघुवीर वर्मा हर बार की तरह 3 से 4 हजार तक वोट ले जाएंगे। अभी तक जितने निर्दलीय नामांकन हुए है वे 2 हजार से नीचे ही सिमट जाएंगे।उनकी उपस्थिति का कोई उल्लेखनीय असर चुनाव परिणामों पर पड़ता नहीं लग रहा।
मदन अरोड़ा,परम्परागत रूप से जाट सीट माने जाने वाली हनुमानगढ़ विधान सभा सीट से क्या भाजपा कुछ नया करने का मन बना रही है।भाजपा के सर्वों में एक मात्र जिताऊ उम्मीदवार के रूप में डॉ.रामप्रताप का नाम आने के बावजूद उनकी उम्मीदवारी घोषित क्यों नहीं की जा रही है।लोगों के मानस में केवल डॉ. रामप्रताप ही यह सीट निकाल सकते हैं की धारणा बनी हुई है ।बावजूद इसके अभी तक उनके नाम की घोषणा नहीं होना इस चर्चा को हवा दे रही है कि पार्टी आला कमान यहां कुछ नया करने की सोच रहा है। प्रो. डॉ. सुमन चावला के कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने के बाद इस चर्चा को और बल मिला है।अभी तक दावा किया जा रहा था कि सभापति गणेश बंसल की टिकट पक्की है।प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह उनके लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं ।पर पहले गणेश बंसल के खिलाफ अमित शाह और जेपी नड्डा तक शिकायतों का पुलिंदा पहुंचाए जाने और अब प्रदेश से पार्टी से टिकट मांग रहे आवेदकों द्वारा अरुण सिंह पर टिकट बेचने का आरोप लगाए जाने के बाद उनको टिकट मिलने की संभावना पूरी तरह से खत्म हो गई दिखती है।पार्टी आलाकमान यदि किसी गैरजाट को उम्मीदवार बनाने का साहस दिखा पाया तो उसके सामने केवल दो चेहरे प्राथमिकता पर होंगे।एक 2013 में अपने दम पर विधान सभा चुनाव 2013 में करीब साढ़े 13 हजार वोट हासिल कर चुकी शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता प्रो. डॉ. सुमन चावला और दूसरे नम्बर पर मूल ओबीसी से आने वाले एडवोकेट सुरेंद्र जलांधरा ।जलांधरा का कमजोर पक्ष यह है कि वे बाहरी हैं और उनके सरकारी सेवाकाल को छोड़ दें तो 2 साल से उन्होंने यहां डेरा डाला हुआ है।जहां तक जातीय समीकरणों की बात है तो मूल ओबीसी और अरोड़ा खत्री की जनसँख्या करीब करीब बराबर है।अगर पंजाबी समुदाय की बात करें तो यह जाटों के बाद सबसे ज्यादा हैं।ऐसे में अगर भाजपा ने अगर किसी गैर जाट को टिकट दी तो इन दोनों में से ही कोई उम्मीदवार होगा। हनुमानगढ़ विधान सभा क्षेत्र में आजादी के बाद अभी तक एक ही गैर जाट चुनाव जीत पाया है।1967 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्य मंत्री मोहन लाल सुखाड़िया ने यहां से जाने माने वकील बृज प्रकाश गोयल को उम्मीदवार बनाया था और चुनाव जीतने के बाद उन्हें उपमंत्री बनाया गया।वे पहले और अंतिम विधायक के साथ ही कांग्रेस के अब तक के गैर जाट उम्मीदवार भी रहे। भाजपा की ओर से तीन गैर जाट चेहरे चुनाव में उतारे गए ।यह वह दौर था जब भाजपा क्षेत्र में अपना जनाधार बनाने के लिए संघर्ष कर रही थी।इन तीनों में से कोई भी 8 हजार से अधिक वोट नहीं ले पाया।भाजपा ने सबसे पहले 1980 में एडवोकेट रतन लाल नागौरी को कांग्रेस के चौ. आत्मा राम और कामरेड शौपत सिंह के खिलाफ उम्मीदवार बनाया।उन्हें करीब 8 हजार वोट मिले।1985 में भाजपा ने एन एम पीजी कालेज छात्र संघ अध्यक्ष रहे प्रेम बंसल को चुनाव में उतारा ।उन्हें 2600 वोट मिले।इस चुनाव में कामरेड शौपत सिंह चौथी और अंतिम बार विधायक चुने गए।1990 में डबली राठान के सरपंच चंद्र भान अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया गया ।वे भी मात्र 7 हजार मत हासिल कर पाए।इस चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार चौ.विनोद कुमार पर दांव चला जो कामयाब रहा और वे विधायक चुने गए।भाजपा ने पहली बार 1993 में डॉ. राम प्रताप के रूप में नया जाट चेहरा उतारा । जिसने पहली बार भाजपा के लिए जीत का सेहरा बांधा।उसके बाद फिर किसी गैर जाट की ओर झांकने की कोशिश नहीं की गई।डॉ रामप्रताप ने भाजपा की टिकट पर अब तक 5 चुनाव लड़े।3 जीते और 2 हारे।इस बार डॉ. राम प्रताप की उम्र को लेकर फंसे पेच के बीच भाजपा क्या किसी गैर जाट पर दांव चलने की हिम्मत दिखाएगी या अबकी बार फिर से डॉ. राम प्रताप को मैदान में उतारेगी।इसका पता 30 अक्टूबर तक चलने की संभावना है।
मदन अरोड़ा 10 अगस्त को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार लगातार फैसले ले बड़े-बड़े बदलाव कर रही है। जिनका प्रभाव एक हजार साल तक रहेगा ।अगले ही दिन अंग्रेजों के जमाने के 162 साल पुराने कानूनों को खत्म करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने 3 प्रमुख कानूनों में बदलाव के विधेयक लोकसभा में पेश कर दिए।अब दशकों तक न्याय के लिए भटकने वालों को 3 साल में ही न्याय मिल सकेगा।ट्रायल कोर्ट को तीन साल में फैसला सुनाना पड़ेगा।सालों साल तक तारीख पर तारीख का सिलसिला खत्म हो जाएगा।बदलाव से त्वरित न्याय मिलने का रास्ता खुल गया है।पुलिस,वकील यहां तक कि माननीय न्यायाधीशों तक पर शिकंजा कस दिया गया है ।कोई भी अब मनमानी नहीं कर पायेगा।तय समय सीमा में सब कुछ करना होगा।नए कानून मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों पर केंद्रित हैं। पहली बार मॉब लिंचिंग को परिभाषित करते हुए इसके लिए 7 साल से आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है।अंग्रेजों की सत्ता को बचाये रखने के लिए बनाए गए राजद्रोह के कांनून को खत्म कर दिया गया है। उसकी जगह धारा 150 के तहत देश द्रोह का कड़ा कांनून लाया गया है।इसके तहत कम से कम 7 साल से आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।आतंकवाद को पहली बार परिभाषित किया गया है।कोई भी व्यक्ति देश की एकता ,अखंडता, सार्वभौमिकता और सुरक्षा को खतरे में डालने के इरादे से कोई कृत्य करता है।हिंसा फैलाने के लिए उकसाता है , तो उसे नए कानून के तहत 7 साल से उम्र कैद तक की सजा दी जा सकेगी।इससे अब पुलिस जांच और सजा सुनाने में आसानी होगी।सरकारीऔर सार्वजनिक संपतियों को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं में कमी आएगी। केंद्र सरकार ने 1860 में बने भारतीय दंड संहिता(IPC) में बदलाव करते हुए उसकी जगह भारतीय न्याय संहिता 2023,1898 की दंड प्रक्रिया संहिता(CrPC) के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम ( एविडेंस एक्ट ) की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 लेकर आई है। नए बदलाव में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध करने वाले के लिए दंड को काफी कड़ा कर दिया गया है। उसे सबसे ज्यादा संवेदनशील और गम्भीर मानते हुए पहले चैप्टर में रखा गया है।इसके बाद मानव वध को दूसरे चैप्टर में रखा गया है।अब तक आईपीसी में पहले हल्के अपराधों को प्राथमिकता से रखा गया था।नए कानून के अनुसार 16 साल से कम उम्र की नाबालिग के साथ दुष्कर्म के लिए अलग प्रावधान लाये गए हैं।इसके तहत सजा बढ़ा कर 20 साल कर दी गई है।नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म पर फांसी तक की सजा दी जा सकेगी।12 साल से कम उम्र की नाबालिग से दुष्कर्म पर कम से कम 20 साल जेल या उम्र कैद की सजा होगी।मौत होने की स्थिति में फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है।अभी नाबालिग से दुष्कर्म पर 7 साल की न्यूनतम सजा है।चुनाव में रिश्वत देने पर एक साल की सजा दी जाएगी।पहली बार भगौड़ों के खिलाफ भी उनकी अनुपस्थिति में मामला चलाने का कांनून लाया गया है।इससे विदेशों में जाकर अपने अपराध से बचने वालों को वापस ला सजा देने में आसानी होगी।किसी भी तरह से मॉब लिंचिंग में मौत पर पहली बार कांनून बना मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।पहचान छिपा कर धोखे से महिलाओं से सम्बंध बनाने और शादी करने वाले लव जेहादियों के खिलाफ भी पहली बार कांनून बना कम से कम 7 साल की सजा का प्रावधान किया गया है।अब तक ऐसे मामले धोखाधड़ी के तहत चलाये जाते थे।इससे धर्मांतरण पर भी शिकंजा कसेगा।हेट स्पीच और धार्मिक भड़काऊ भाषण भी अपराध की श्रेणी में आ गए हैं। फेक न्यूज़ से सख्ती से निपटने के प्रावधान किए गए हैं।लोकसभा में पेश भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 की धारा 195 के तहत देश की संप्रभुता व सुरक्षा को खतरे में डालने वाली फर्जी खबर या भ्रामक जानकारी फैलाने वालों से निपटने की व्यवस्था है।नए कानून की धारा 195(1)डी में लिखा है कि कोई देश की संप्रभुता ,एकता,अखंडता,या सुरक्षा को खतरे में डालने वाली झूठी या भ्रामक जानकारी फैलाता है ,प्रकाशित करता है ,तो उसे 3 साल तक की सजा ,जुर्माना या दोनों हो सकती हैं।इससे सोशल मीडिया पर फर्जी और भ्रामक खबरें फैलाने वालों के साथ-साथ एजेंडाधारी राजदीप सरदेसाई जैसे महान पत्रकारों पर भी शिकंजा कसेगा।अब उन्हें माहौल खराब करने के लिए ट्रैक्टर पलटने से मरे आंदोलनकारी को पुलिस की गोली से मारा गया भ्रामक खबर चलाने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा।बिल को कानूनी जामा मिल जाने के बाद गरीबों को न्याय हासिल करने के लिए कोर्ट और पुलिस के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।तय सीमा में पुलिस को जांच पूरी करनी होगी।कहीं भी ज़ीरो एफआईआर धाराओं सहित लिखवाई जा सकेगी और वो 15 दिन के भीतर सम्बंधित थाने में भेजना आवश्यक होगा।पुलिस को 90 दिनों में आरोप पत्र दाखिल करना होगा और जरूरत पड़ने पर कोर्ट की इजाजत से 90 दिन का अतिरिक्त समय मिल सकेगा ।यानी 180 दिनों में आवश्यक रूप से आरोप पत्र कोर्ट में पेश करना होगा।कोर्ट को 60 दिन में चार्ज फ्रेम करना होगा और सुनवाई पूरी हो जाने के बाद 30 दिनों में फैसला सुनाना होगा।कम समय में फैसला आने से तारीख पर तारीख से छुटकारा तो मिलेगा ही पैसे की भी बचत होगी।वकीलों को फीस कम देनी पड़ेगी।इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से साक्ष्य और अपील पेश कर सकेंगे ।डिजिटल रिकॉर्ड,सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग भी साक्ष्य मानी जायेगी। किसी दस्तावेज की मूल कॉपी नहीं होने पर फोटोकॉपी भी मान्य होगी।सैकेण्डरी एविडेंस के रूप में बातचीत रिकॉर्ड कर पेश की जा सकेगी ।छोटे छोटे मामलों में जेलें भरी पड़ी हैं।फर्स्ट टाइम माइनर अपराध होता है तो अब उसे अदालत के चक्कर नहीं काटने होंगे और न ही जेल की सजा होगी।उसे सुधरने का अवसर देते हुए सामुदायिक सेवा की सजा यानि सामाजिक कार्य करवाया जाएगा।जैसे दुश्मन फ़िल्म में राजेश खन्ना को दुर्घटना में मरे व्यक्ति के घर की जिम्मेदारी दी गई थी।अब कोर्ट की सहमति से अपराधियों की सम्पति जब्त की जा सकेगी । नए बदलाव के बाद अब किसी भी सामान को जब्त करने की वीडियोग्राफी करनी होगी।गिरफ्तारी के तुरंत बाद उसके परिजनों को सूचित करना अनिवार्य कर दिया गया है।7 साल से अधिक सजा वाले मामले में फोरेंसिक जांच होगी।सरकारी कर्मचारी के खिलाफ मामला होने पर सरकारें उसे बचाने के लिए केस चलाने की अनुमति देने में आनाकानी करती हैं।कई बार सरकार अनुमति देती ही नहीं और कर्मचारी बच जाते हैं।अब कर्मचारियों को मिल रहा यह संरक्षण खत्म कर दिया गया है।सरकार को 120 दिनों में केस चलाने के मामले में यस और नो में जवाब देना होगा ।अन्यथा यह मान लिया जाएगा कि सरकार केस चलाने में सहमत है।भारतीय न्याय संहिता में अब 511 धाराओं की जगह 356 धारा रह जाएंगी।सरकारों द्वारा सजा में छूट का सियासी इस्तेमाल रोकने के भी प्रावधान किए गए हैं।मौत की सजा को आजीवन कारावास और आजीवन कारावास को 7 साल तक की सजा में बदला जा सकेगा।यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि सियासी प्रभाव वाले लोग कांनून से बच न पाएं।सरकार पीड़ित पक्ष को सुने बिना 7 साल या अधिक सजा वाले केस वापस नहीं ले पाएगी।सियासी माफियाओं को मिलने वाले सरकारी संरक्षण पर नकेल कसने का भी काम मोदी सरकार ने कर दिया है।भारतीय साक्ष्य संहिता में पूछताछ से ट्रायल तक वीडियो कॉन्फ्रेंस से करने का प्रावधान किया गया है।इससे जेल में बंद कैदियों को बार- बार अदालत ले जाने का झंझट समाप्त होगा और कैदियों के भाग जाने के मामलों में भी कमी आएगी। पर बात-बात पर सख्त सजा की मांग करने वाले सियासी और धार्मिक लोग यहां तक कि कई बड़े वकील भी नए सख्त प्रावधानों के खिलाफ खड़े हो गए हैं।जहां सख्त सजा के नए कानूनों से अपराधियों में ख़ौफ़ है ।मोदी विरोधी इससे खफा हैं।जाने माने वकील कपिल सिब्बल जो केस लटकाने में माहिर माने जाते हैं।तारीख पर तारीख ले राम मंदिर के मामले को वर्षों तक लटकाए रखा ।नए बिल से खफा हैं।उन्हें होना भी चाहिए।क्योंकि जिन अधिकांश मामलों (आतंकवादियों,देशद्रोहियों,तीस्ता सीतलवाड़ जैसी चीन से पैसे लेकर मोदी के खिलाफ प्रोपोगेंडा चलाने वाली) के वे वकील होते हैं ।अब ऐसे लोगों को अपराध करने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा।।जब अपराध कम होंगे तो स्वाभाविक रूप से मामले कम होंगे और सिब्बल जैसे वकीलों की कमाई पर भी असर पड़ेगा।इसलिए नया बिल उन्हें लोकतंत्र के खिलाफ लगता है।राजद्रोह कांनून पर बवाल काटने वाले इस कांनून के खत्म कर दिए जाने के बाद धारा 150 से खौफजदा हैं।अब देशद्रोह पूर्ण कार्य करने ,देश को तोड़ने की साजिश और दंगा फैलाने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा।आरएसएस ,हिंदूवादी संगठनों पर भड़काऊ भाषण देने और नफरत फैलाने के आरोप लगा सख्त कार्रवाई की मांग करने वाली कांग्रेस,सपा, आरजेडी, औवेसी ,भड़काऊ भाषण और धार्मिक तकरीरों को अपराध घोषित कर कम से कम 3 साल की सजा दिए जाने के प्रावधान से परेशान हैं।वे विरोध पर उतर आए हैं।उन्हें खुश होना चाहिए था कि अब आरएसएस या कोई हिन्दू नेता भड़काऊ भाषण देगा तो जेल जाएगा। लेकिन हैरानी की बात है कि संघ और हिंदुओं के बजाए औवेसी और कांग्रेस परेशान हो रही है।दलील दी जा रही है कि समुदाय विशेष के खिलाफ इसका उपयोग होगा।मोदी सरकार अब जब दंगाइयों ,समाजों में नफरत फैलाने वालों के खिलाफ कांनून लाई है तो सहयोग के बजाऐ विरोध किया जा रहा है।यह इसलिए हो रहा है क्योंकि इनकी सियासत ही विरोध और आरोप लगाने पर टिकी है।नए कानूनों से खौफ है।अच्छा है।कांनून के इकबाल के लिए यह जरूरी है।खौफ होगा तभी देश में अमन चैन और कांनून व्यवस्था बनी रहेगी।मुहब्बत की दुकान के नाम पर नफरत फैलाने वालों को बचाने की दुकानें बंद होंगी।
NDA को 318,I.N.D.I.A को 175 और अन्य को मिल सकती हैं 50 सीट मदन अरोड़ा इंडिया से हारेगा मोदी का दावा कर रहे कांग्रेस और विपक्ष के सपने मुंगेरी लाल के हसीन सपने होते दिख रहे हैं।नेहरू के बाद पीएम नरेंद्र मोदी 2024 में लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं।इंडिया टीवी और सीएनएक्स के ओपिनियन पोल में ये सामने आया है।पोल के अनुसार विपक्ष की 26 पार्टियों का गठबंधन i.n.d.i.a. भी मोदी की सत्ता में वापसी रोकने में नाकाम होता दिख रहा है।पोल के अनुसार 2024 के लोकसभा चुनाव अगर आज होते हैं तो एन डी ए को 318,26 दलों के आई.एन.डी.आई.ए.को 175 और अन्य को 50 सीट मिल सकती हैं।ऐसा तभी होगा अगर सभी 26 पार्टियां पूरे देश में हर सीट पर अपना एक सांझा उम्मीदवार उतारेंगी।सांझा उम्मीदवार नहीं उतारने की स्थिति में एन डी ए को और ज्यादा सीटें मिलना भी तय है।यानि अबकी बार 350 पार का भाजपा का दावा सही साबित हो सकता है ।पोल के अनुसार भाजपा को 290 और सहयोगियों को 28 सीट,कांग्रेस को 66 और शेष 25 पार्टी को 109 और अन्य को 50 सीट मिल सकती हैं।अन्य में बीजेडी,वाईएसआरसी,टीडीपी जैसी पार्टियां हैं जो किसी गठजोड़ में तो शामिल नहीं हैं लेकिन भाजपा की करीबी मानी जाती हैं।पोल करने वाली सीएनएक्स के निदेशक झा के अनुसार कांग्रेस को यूपी में बरेली और अमेठी की 2सीट कड़े मुकाबले में मिल सकती हैं\ बशर्ते इन पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही चुनाव लड़ें ।अन्यथा यूपी में खाता भी नहीं खुलेगा ।इससे कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन की सीट कम होंगी और भाजपा की बढ़ जाएंगी।पोल में यूपी में भाजपा को 70 और सहयोगी दलों को 3 यानि कुल 73 सीट मिलती दिख रही हैं।जबकि सपा को 4,आरएलडी को 1और कांग्रेस को 2 कुल 7 सीट जाती दिख रही हैं।पश्चिम बंगाल में भी यदि टीएमसी,कांग्रेस और लेफ्ट मिल कर चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा को 12 ,टीएमसी को 29,कांग्रेस को एक सीट मिल सकती है।लेफ्ट का खाता भी नहीं खुलेगा।बिहार में जहां तेजस्वी यादव और जेडीयू के नेता दावा कर रहे हैं कि वहां बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाएगा।भाजपा अकेले 40 में से 20 सीट ले जाती दिख रही है जबकि 4 सीट सहयोगियों को जाती दिख रही हैं । विपक्षी गठबंधन के साझा उम्मीदवारों के बावजूद जेडीयू को 7,आरजेडी को भी 7और कांग्रेस को 2 सीट मिल रही हैं।उत्तराखंड और गोवा में भाजपा सभी सीट जीत क्लीन स्वीप कर रही है।उड़ीसा में भाजपा को 8 और बीजेडी को 13 सीट जबकि कांग्रेस को शून्य सीट मिल रही है।कर्नाटक में भाजपा को 20,कांग्रेस को 7 जबकि जेडीएस को 1 सीट जाती दिख रही है।गुजरात में भाजपा को लगातार तीसरी बार सभी 26 सीट मिलने जा रही हैं और कांग्रेस फिर शून्य पर हैं।महाराष्ट्र में दोनों गठबंधनों को बराबर 24-24 सीट मिलती दिख रही हैं।बात करें झारखंड,राजस्थान,मध्यप्रदेश,छतीसगढ़,हरियाणा की जहां कांग्रेस बड़ी उम्मीदें लगाए बैठी हैं।इन राज्यों में भी भाजपा को मामूली नुकसान होता दिख रहा है।राजस्थान में भाजपा को 21,कांग्रेस को 4,मध्यप्रदेश में भी भाजपा को 24 और कांग्रेस को 5,छतीसगढ़ में भाजपा को 7 और कांग्रेस4,हरियाणा में भाजपा को 8 और कांग्रेस को 2,झारखंड में भाजपा को 12और कांग्रेस को शून्य जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा को 2 सीट मिलती दिख रही हैं।दिल्ली और पंजाब में अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़ती हैं तो दिल्ली में भाजपा को 5 और आप को 2 सीट मिल सकती हैं।पंजाब में आप को 8 और कांग्रेस को 5 सीट मिल सकती हैं ।लेकिन अलग अलग चुनाव लड़ने की स्थिति में भाजपा फिर सभी 7 सीट पर चुनाव जीत जाएगी और पंजाब में भी भाजपा और अकालीदल सीट निकाल ले जाएंगे।पूर्वोत्तर की 25 सीट में से भाजपा 21 और विपक्षी गठबंधन 4 सीट ले जा सकता है। पोल की मुख्य बातें ये हैं कि पूरे देश में न तो मोदी सरकार के खिलाफ कोई आक्रोश या नाराजगी दिख रही है और न ही विपक्ष के पक्ष में किसी तरह का माहौल बना हुआ है।दूसरी बड़ी बात यह है कि मोदी अपने वादों को वोटों में तब्दील करने में सफल होते दिख रहे हैं ।जबकि राहुल गांधी और विपक्ष अपने आरोपों को वोटों में बदलने में नाकाम साबित हो रहे हैं।भाजपा के साथ छोटे दल इसलिए जुड़ रहे हैं ताकि चुनाव में कुछ सीट ले अपना खाता खोल सकें ।जबकि कांग्रेस अन्य दलों का दामन इसलिए थाम रही है ताकि अपनी सीट बढ़ा सकें।पोल से जाहिर है कि संयुक्त विपक्ष गठबंधन भी मोदी को रोकने में विफल होता साफ दिख रहा है और अगर हर सीट पर साझा उम्मीदवार नहीं उतारा गया तो भाजपा अपने दावे के अनुसार अबकी बार 350 पार करती दिख रही है।साझा उम्मीदवार नहीं उतारने की स्थिति में इसका सबसे ज्यादा नुकसान आप और कांग्रेस को होता साफ दिख रहा है।ओपिनियन पोल से ईतर जिस तरह से बयानबाजी और एक दूसरे पर दबाव डाल अपनी मांग मंगवाने का सिलसिला चल रहा है \उसे देखते हुए नए नवेले i.n.d.i.a.का लोकसभा चुनाव से पूर्व ही बिखरना तय है \शुक्रवार को दो प्रमुख घटना चक्र हुए \गठबंधन के फ्लोर लीडर्स की बैठक में आम आदमी पार्टी और टी ऍम सी ने मंगलवार को राज्यसभा में पेश होने वाले दिल्ली संशोधन बिल के खिलाफ चर्चा और वोट करने की मांग की \जबकि कांग्रेस और कुछ अन्य दलों ने आने वाले कुछ और बिलों के खिलाफ भी चर्चा में हिस्सा ले उनके खिलाफ वोटिंग का सुझाव दिया जिसका आम आदमी पार्टी और टी एम सी ने असहमति जताई \उधर दिल्ली सरकार में मंत्री गोपाल राय ने एक बयान जारी कर साफ़ कर दिया कि आम आदमी पार्टी राजस्थान ,मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ और जनवरी 2 0 2 5 में दिल्ली विधान सभा में चुनावों अकेले चुनाव लड़ेगी \राय ने कहा कि गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए किया गया है \माना जा रहा है कि राज्यसभा में दिल्ली बिल के पास होते ही आम आदमी पार्टी i.n. d.i.a.को अलविदा कह देगी और एक नया गठबंधन आकार ले सकता है \जिसमें आम आदमी पार्टी ,टी एम सी ,सपा और बी आर एस शामिल होंगे \ओपिनियन पोल से साफ़ है कि मोदी अकेले सब पर भारी पड़ रहे हैं और यदि भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार नहीं उतारे गए तो अबकी बार 3 5 0 पार होता दिख रहा है \
मदन अरोड़ा मणिपुर में हिंसा जारी है \पिछले पांच दशक से ही राज्य हिंसा की आग में झुलस रहा है \यहां दो समुदायों के बीच वर्चस्व और अधिकारों की लड़ाई लंबे समय से चली आ रही है\मणिपुर में 16 जिले हैं \राज्य की जमीन इंफाल घाटी और पहाड़ी जिलों में बंटी है\घाटी मैतेई बाहुल्य है जो हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं\पहाड़ी जिलों में कुकी और नागा जनजातियों का वर्चस्व है \ये परिवर्तित ईसाई समुदाय से आती हैं \बता दें चार पहाड़ी जिलों में कुकी जाति का प्रभुत्व है \मणिपुर की आबादी करीब 28 लाख है \इसमें मैतेई समुदाय के लोग करीब 53फीसद हैं \बड़ी आबादी के बावजूद राज्य की भूमि क्षेत्र का मात्र 10 फीसद हिस्सा ही इनके पास है \लेकिन राजनीति और नौकरियों में मैतेई समुदाय का बोलबाला है \ये लोग मुख्यतः घाटी में बसे हुए हैं \हालिया हिंसा मैतेई को जनजाति का दर्जा दिए जाने के कोर्ट के आदेश के विरोध में शुरू हुई है \कुकी समूह मैतेई को जनजाति का दर्जा दिए जाने का विरोध कर रही है \मुख्य रूप से पहाड़ों पर रहने वाली विभिन्न कुकी जनजातियां कुल आबादी का 30 फीसद हैं \ कुकी जनजातियां मैतेई समुदाय को आरक्षण का विरोध करती आई हैं \इनका कहना है किअगर मैतेई को आरक्षण मिल गया तो वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले से वंचित हो जायेंगे \कुकी जनजातियों का मानना है कि आरक्षण मिलते ही मैतेई लोग अधिकाँश आरक्षण हथिया लेंगे \मालूम हो कि अनुसूचित जनजाति मांग समिति मणिपुर बीते दस से अधिक सालों से राज्य सरकार से आरक्षण की मांग कर रही है \मैतेई में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग हैं \मणिपुर का 1949 में भारत में विलय हुआ था और इससे पूर्व तक मैतेई को जनजाति का दर्जा हासिल था \लेकिन अभी तक किसी भी सरकार ने इस मांग को लेकर फैसला नहीं सुनाया \आखिर में मैतेई समुदाय ने हाई कोर्ट की शरण ली \कोर्ट ने इस मांग को लेकर 20 अप्रेल को राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को सिफारिश करने के निर्देश दिए \कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि 1949से पूर्व उन्हें जनजाति का दर्जा मिला हुआ था \दलील ये थी कि मैतेई को जनजाति का दर्जा इस समुदाय,उसके पूर्वजों की जमीन ,परंपरा,संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए जरूरी है \कोर्ट के फैसले के बाद कुकी समुदाय की आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ने हिंसात्मक विरोध शुरू कर दिया\हालिया हिंसा उसी का परिणाम है \कुकी समुदाय इस बात को लेकर आशंकित है कि अगर मैतेई को जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनकी सारी जमीन पर कब्जा कर लेंगे \दरअसल कुकी और नागा जनजाति समुदाय ईसाई धर्म अपना लेने के बावजूद भी आरक्षण का लाभ उठा रहा है \इन्हें कई विशेषाधिकार भी मिले हुए हैं\40 फीसद आबादी होने के बावजूद इनके कब्जे में राज्य की 90 फीसद जमीन है \जबकि 53 फीसद होने के बावजूद मैतेई समुदाय के पास मात्र 10 फीसद ही जमीन है \पहाड़ों पर सरकारी जमीनों पर भी कुकी और नागा समुदाय ने कब्जा कर रखा है \जहां बड़े पैमाने पर न केवल अफीम की अवैध खेती होती है ,वरन ड्रग का भी अवैध कारोबार भी बड़े पैमाने पर हो रहा है\आरोप है कि इससे होने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा ईसाई मिशनरी की धर्मांतरण की गतिविधियों में खर्च हो रहा है \इसी के चलते इन हिंसात्मक गतिविधियों में चर्च भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है \चर्च मणिपुर को बांटने के लिए ईसाई कुकी और नागा के लिए अलग क्षेत्र बनाये जाने की साजिश कर रहा है \इसी के तहत कुकी समुदाय उनके लिए अलग प्रशासनिक क्षेत्र की मांग कर रहा है \ इसमें कांग्रेस का पूरा वरद हस्त प्राप्त है \हालिया दंगों में 60 हजार से अधिक लोग घर से बेघर हो चुके हैं \ इनमें अधिकाँश हिंदू मैतेई ही हैं\यहां काबिले गौर है कि बहुसंख्यक होने के बावजूद मैतेई अपने ही राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन नहीं ले सकते \जबकि कुकी और नागा राज्य में कहीं भी जमीन खरीद सकते हैं \मैतेई समुदाय को अगर 1 9 4 9 से पूर्व वाला जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो वे भी घाटी के साथ पहाड़ों पर भी जमीन खरीद सकेंगे और यही विवाद और हिंसा की सबसे बड़ी वजह है \मुख्यतः मैतेई ही ईसाई कुकी समुदाय के हमलों का शिकार हो रहे है और इसमें चर्च केन्द्रीय भूमिका निभा रहा है \कुकी जनजाति समुदाय ने जंगलों की सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण कर रखा है \जिस पर अफीम की अवैध खेती के साथ-साथ इसका इस्तेमाल ड्रग की तस्करी में भी किया जा रहा है \पूर्वोतर आजादी से पूर्व से ही चर्च के निशाने पर रहा है और वहां की जनजाति समुदाय को धर्मान्तरित कर ईसाई बनाने का कार्य हो रहा है जो आजादी के बाद कांग्रेस की सरपरस्ती में फैला फूला \यही वजह है कि कभी हिंदू बाहुल्य पूर्वोतर में आज डेमोग्राफी बदल ईसाईकरण हो चुका है \चर्च की सरपरस्ती में फल फूल रहे आतंकवादी संगठन पूरे क्षेत्र को भारत से अलग करने की गतिविधियों में लगे हैं \मणिपुर में भी ये सब इसी वजह से हो रहा है \हालिया घटनाओं को हिंदू बनाम ईसाई बनाने की कोशिशें हो रही हैं \मणिपुर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष के राज्य में सैंकड़ों चर्च जला दिए जाने के आरोपों के बाद विदेशी मीडिया के साथ ही अब ब्रिटेन की संसद में एक भारत विरोधी सांसद ने भी मणिपुर में ईसाईयों पर अत्याचार के आरोप लगा दिए हैं \कहा जा रहा है कि ये राहुल गांधी की ब्रिटेन और अमेरिका यात्रा के दौरान वहां के भारत विरोधी सांसदों को ईसाई और मुसलमानों को लेकर फीड किये गए गलत जानकारी का ही परिणाम है, जिसने दो समुदायों के आपसी टकराव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू बनाम ईसाई बना दिया है \अब घटना के पीछे की साजिश को समझना होगा\जिसने पूरे भारत और मानवता को शर्मसार कर दिया \घाटी में एक अफवाह उड़ाई गई कि कुकी समुदाय के लोगों ने मैतेई समुदाय की दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर उनके साथ बदसलूकी की है \जिसके बाद गुस्साए मैतेई समुदाय के लोगों ने 4 मई को दो कुकी महिलाओं के साथ हैवानियत को अंजाम दिया\इस घटना का विडियो बनाया गया\ जिसको जारी करने के लिए संसद सत्र के शुरू होने का इन्तजार किया गया ताकि देश और दुनिया का इस शर्मसार घटना की ओर ध्यान दिलाया जा सके और संसद को इसकी आड़ में बंधक बनाया जा सके \यहाँ गौर तलब है कि मणिपुर की स्थिति कभी भी सामान्य नहीं रही \ 1970 के दशक के बाद से ही कांग्रेस के शासनकाल के दौरान हिंसा के चलते राज्य में अस्थिरता बनी रही \ ईसाई आतंकवादी गुटों का देश के खिलाफ युद्ध चलता रहा\पहले नागा और बाद में मैतेई और कुकी जनजाति के बीच संघर्ष शुरू हो गया \भाजपा को कांग्रेस से एक अस्थिर और विभाजित राज्य विरासत में मिला \पिछले करीब 2 0 सालों के दौरान हुए 1845 हत्याकांडों में 2998 लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं \इनमें 1612 हत्याकांड में 2614 लोगों की जानें यूपीए शासन काल में गई \इस दौरान मणिपुर में भी कांग्रेस की ही सरकार थी \इन हत्याकांडों में मैतेई समुदाय के लोग ही ज्यदातर निशाने पर रहे \
मदन अरोड़ा मणिपुर की देश और मानवता को शर्मसार करने वाली घटना ने सियासत और मीडिया के एक वर्ग के मुखोटे को उतार उनकी संवेदनहीनता को जगजाहिर कर दिया है \बेशर्म लोगों की सियासत ने रेप का भी बंटवारा कर क्षेत्राधिकार तय कर दिए हैं \मणिपुर की घटना पर फुल सियासत हो रही है\विपक्षी दल और खैराती मीडिया मोदी का इस्तीफा मांग रहा है \दिल की संवेदनाएं पार्टी चिन्ह और राज्य देख कर बदल रही हैं \ कितनी विचित्र और शर्मनाक बात है कि राजस्थान,पश्चिम बंगाल और छतीसगढ़ की दिलों को झकझोर देने वाली घटनाओं पर चर्चा नहीं हो सकती\ये आज के सियासी दलों और खैराती मीडिया की सच्चाई है\भाजपा शासित राज्यों में होने वाला रेप नारी सम्मान पर हमला है लेकिन गैर भाजपा शासित राज्यों में यह नारी सम्मान का प्रतीक हो गया है\ऐसा लगता है,इन राज्यों में रेप करने और महिलाओं को निवस्त्र करने का लाइसेंस मिला हुआ है \संसद ठप्प है \मणिपुर की घटना से कथित रूप से आहत विपक्ष ने इसे नियमों का बंधक बना दिया है\सरकार चाहती है, इस पर सार्थक चर्चा हो\पर विपक्ष नियम विशेष के तहत बहस पर अड़ा है \मानों अगर उनके नियमों के तहत चर्चा नहीं हुई तो नारी सम्मान खतरे में पड़ जाएगा\दरअसल विपक्ष चाहता ही नहीं कि इस मुद्दे पर बहस हो \वह केवल सियासत करना चाहता है\उसका इरादा केवल इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साध अपनी सियासत को चमकाना भर है ताकि मोदी को महिला विरोधी बता उनके महिला वोटरों को उनसे दूर किया जा सके\पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो कहा भी है कि मोदी महिला विरोधी हैं और महिलाएं उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकेंगी \प्रियंका गाँधी भी उन्हें महिला विरोधी बताने में जुटी हैं \बेटी हूँ लड़ सकती हूँ की हुंकार भरने वाली प्रियंका गांधी को राजस्थान,छत्तीसगढ़ के जिक्र भर से इसमें सियासत दिखती है\अपने राज्यों की शर्मसार कर देने वाली घटनाओं पर उनके होंठ सिले हैं \उन्हें इन राज्यों में रेप के बाद ज़िंदा जला देने वाली घटनाओं में कुछ गलत नहीं दिखता\महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर सुविधानुसार सियासत की जा रही है\मणिपुर की घटना निश्चित तौर पर शर्मसार करने वाली है \लेकिन राजस्थान,छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों पर चुप्पी उससे भी ज्यादा शर्मनाक है\मणिपुर का विडियो सामने आ गया तो सियासत शुरू हो गई\पर उन गैर भाजपाशासी राज्यों की खौफनाक घटनाओं का क्या?जिनकी विडियो नहीं बन पाई\ मालदा में दो महिलाओं के साथ मारपीट कर उनके कपड़े फाड़ चीरहरण किया गया \टी ऍम सी की संवेदनहीनता देखिये \बचाव में दलील दी जा रही है कि इन महिलाओं को लोगों ने चोरी करते हुए पकड़ा था\गोया अगर पश्चिम बंगाल में कोई महिला चोरी करते पकड़ी जाए तो उसका चीरहरण करने में कुछ भी गलत नहीं है\अगर यही भाजपा शासित राज्य में हो गया होता और उसका विडियो आ जाता तो आसमान सर पर उठा मोदी से इस्तीफा माँगा जा चुका होता\पश्चिम बंगाल में ही एक भाजपा की महिला उम्मीदवार को बालों से घसीट बूथ से बाहर फेंक दिया गया और कपड़े फाड़ निवस्त्र कर दिया गया \एक साठ वर्षीय महिला की उसके पोते के सामने रेप कर मारपीट की गई\ वहां ऐसी सैंकड़ों वारदाते हो चुकी हैं पर वे इसलिए चर्चा के लायक नहीं हैं क्योंकि उनके विडियो नहीं हैं और ज्योग्राफी के हिसाब से ममता बनर्जी के राज्य से आती हैं\पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के नेता इन घटनाओं पर सवाल उठा रहे हैं पर राजनीति की मजबूरी देखिये कि राहुल गांधी,प्रियंका गांधी,मल्लिकार्जुन खड्गे और उनके प्र्वक्ताओं के मुंह पर फेविकोल लग गया है\राजस्थान में कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जिस दिन किसी स्कूल में मासूम बच्ची के साथ रेप नहीं हो या किसी महिला के साथ गैंगरेप नहीं हुआ हो\पर ये काबिले माफ़ी हैं क्योंकि न तो इनका कोई विडियो है और बकौल कांग्रेस प्रवक्ताओं आरोपियों को तत्काल पकड़ा जा रहा है \इसलिए राजस्थान के कानून और व्यवस्था पर प्रधानमन्त्री का सवाल उठाना ,राजस्थान को बदनाम करने की सियासत है\यह अलहदा बात है कि गहलोत सरकार के ही मंत्री राजेन्द्र गुढा ने विधानसभा में अपनी सरकार को महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों पर घेरते हुए सदन में मणिपुर के बजाए राजस्थान की कानून व्यवस्था पर चर्चा करने की मांग की तो उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया\कांग्रेस की विधायक दिव्या मदेरणा भी प्रदेश की लचर कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रही हैं \पर ये लचर कानून व्यवस्था का नहीं पार्टी का अंदरूनी मामला है\अंत में इसे लेकर यही कहा जा सकता है कि जिनकी संवेदनाएं मर चुकी ,उन मुर्दों से क्या बात कीजिये \इन्हें राजनीति करनी है,वही करने दीजिये\
1980 के दशक के आतंकवादी दौर जैसी स्थिति पंजाब में फिर बनते दिखने लगी है।शायद उससे भी ज्यादा बदतर। खालिस्तानी आतंकवादियों ने जिस तरह 9 मई की रात मोहाली में स्थित पंजाब की खुफिया पुलिस के मुख्यालय पर rpg से हमला कर पंजाब सरकार और पुलिस को चुनौती दी है ,वह बहुत ही गम्भीर और चिंताजनक है।पंजाब में एक के बाद एक आतंकवादी हरकते सामने आ रही हैं और पंजाब पुलिस आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के विरोधियों को निपटाने में लगी हैं।विरोधी भी कौन जो केजरीवाल पर खालिस्तानी समर्थक होने के आरोप लगा रहे हैं।कुमार विश्वास,कांग्रेसी नेता और केजरीवाल की पूर्व सहयोगी अलका लांबा,bjp नेता तेजिंदर सिंह बग्गा ,पूर्व पत्रकार और अब bjp के नेता नवीन कुमार।ये वे लोग हैं जो केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के साथ खालिस्तानियों की नजदीकियों पर सवाल उठाते रहते हैं।केजरीवाल अपने आपको कट्टर देशभक्त होने की डींगें हांक लोगों को मूर्ख बनाने में लगे रहते हैं।उनके इस सियारी चेहरे को जो सेना पर सवाल उठाता है,जो एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाता है,जो jnu में देश के टुकड़े करने वालों के साथ खड़ा रहता है और जो चुनावों में खालिस्तानी नेता के साथ मंच सांझा करता है,खालिस्तानी नेता के घर को अपना चुनावी ठिकाना बनाता है।वह सियारी चेहरा जो हिमाचल प्रदेश में सत्ता पाने के लिए एक खालिस्तानी जो खालिस्तान जिंदाबाद कहने को सिखों का अधिकार बताता है को अपनी टीम में शामिल करता है।खालिस्तान के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलता।उसके इस चेहरे को कोई बेनकाब न कर दे इसलिए झूठे केस दायर करवा पंजाब पुलिस के जरिये सबक सिखाने में लगा है। पंजाब पुलिस प्रदेश की कानून व्यवस्था को सुधारने के बजाय केजरीवाल की मेरे हाथ में पुलिस आ जाने दो सबके दिमाग ठिकाने लगा दूंगा ।सबको जेलों में डाल दूंगा की धमकियों को अमली जामा पहनाने में लगी है।पंजाब में rdx पकड़ा जा रहा है। पंजाब से हथियार और ied लेकर जा रहे 4 आतंकवादी करनाल में पकड़े जाते हैं।9 मई को आतंकवादी rpg के साथ माहोली पहुंच जाते हैं और पुलिस मुख्यालय पर हमला कर देते हैं।29 अप्रैल को पटियाला में सरे आम नंगी तलवारें लहरा खालिस्तानी नारे लगाते हुए खालिस्तानी झंडे फहराए जाते हैं।दुकानों में घुस तलवारों से हमले की कोशिश की जाती है पर पंजाब के cm भगवंत मान और आप नेताओं को न झंडे लहराते दिखते हैं और न ही खालिस्तानी नारे सुनाई देते हैं।जिसे पूरा देश खालिस्तानी घटना मान उसकी निंदा कर रहा है, आम आदमी पार्टी के नेता और पंजाब के cm उसे bjp, कांग्रेस और अकालियों की पंजाब का अमन बिगाड़ने की साजिश बता खालिस्तानियों की हरकतों को दबाने में लगे हैं।ऐसे में पंजाब में आतंकवादियों के हौंसले तो बुलंद होने ही हैं।jk में आतंकवादियों की कमर टूटने के बाद पाकिस्तान की isi पिछले कुछ समय से पंजाब में हालात बिगाड़ने की कोशिशों में लगी है। माना जा रहा है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की एक कमजोर और अनुभवहीन,खालिस्तानियों के प्रति नरम रवैया रखने वाली सरकार बनने के बाद उसकी सक्रियता और बढ़ गई है। पंजाब के हालात को लेकर मुख्यमंत्री भगवंत मान और आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल सख्त कार्रवाई करेंगे,बख्शे नहीं जाएंगे,ऐसा सबक सिखाएंगे,किसी को शांति और आपसी भाईचारा बिगड़ने नहीं देंगे जैसे बयानों के इतर कुछ नहीं कर रहे हैं।सिख फ़ॉर जस्टिस के मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू के हरियाणा के dm कार्यालयों पर 29 अप्रैल को खालिस्तानी झंडे लगाने की धमकी भर से हरियाणा सरकार ने उसके खिलाफ uapa सहित कई धाराओं में मामला दर्ज करवा दिया।धर्मशाला में खालिस्तानी झंडे लगाने की जिम्मेदारी लेने पर हिमाचल सरकार ने पन्नू के खिलाफ uapa में मामला दर्ज कर उसकी गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल की मदद लेने की घोषणा कर दी परन्तु पंजाब में खुफिया पुलिस के मुख्यालय पर हमला करने की जिम्मेदारी लेने वाले पन्नू के खिलाफ पंजाब में कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।पन्नू लगातार बयान दे रहा है कि सिख फ़ॉर जस्टिस और खालिस्तानियों ने चुनाव में आम आदमी पार्टी की मदद की उसे 46 करोड़ रुपये की फंडिंग की।पन्नू ने cm मान को एक चिट्ठी लिख विधान सभा में खालिस्तान रेफरेंडम का प्रस्ताव जल्द पारित करने को कहा है।चिट्ठी में कहा गया बताया जा रहा है कि पन्नू ने चुनाव में की गई मदद के बदले अब खालिस्तान रेफरेंडम का प्रस्ताव लाने की बात कही गई है।आम आदमी पार्टी पन्नू की ओर से दिए जा रहे बयानों को बहरों की तरह सुन रही है।अभी तक पन्नू को लेकर आम आदमी पार्टी की ओर से एक भी बयान नहीं आया है।खालिस्तानियों को लेकर आप की रहस्यमय चुप्पी पर लगातार सवाल उठ रहे हैं और इसे खालिस्तानियों के हौंसले बढ़ने की असली वजह भी माना जा रहा है।मान और उनकी सरकार पंजाब के हालात सुधारने से ज्यादा केजरीवाल की सियासी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में लगी है।cm मान पंजाब के सरकारी खजाने से अपने आका को गुजरात और हिमाचल के दौरे करवाने में लगे हैं।खाली खजाना होने के बावजूद देश भर के अखबारों में पूरे पूरे पेज के महंगे विज्ञापन दिए जा रहे हैं ताकि जहां जहां चुनाव हैं इनका फायदा आम आदमी पार्टी को मिल सके और केजरीवाल को सके राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया जा सके।पंजाब में खत्म होते अमन चैन के बाद अब धीरे धीरे लोग महसूस कर रहे हैं कि आम आदमी पार्टी की सरकार बना उन्होंने एक बड़ी भूल कर दी है।केजरीवाल और मान जिस मॉडल की बात कर रहे थे वह केवल एक छलावा भर था।प्रदेश में न ड्रग माफिया और न ही रेत माफिया के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई है।कर्ज से डूबे किसान पूर्व की तरह आत्महत्याएं कर रहे हैं।किसानों को मुआवजा देने दूर बदले में लाठियां मिल रही हैं।महिलाओं को एक एक हजार रुपये हर महीने की बात तक नहीं हो रही है।खतरा इस बात का है कि दिल्ली की तरह राजस्व के लिए पंजाब में भी शराब की दुकानें बढ़ाई जा सकती हैं।पंजाब सरकार और पुलिस इसी तरह अगर केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने को तरजीह देती रही और खालिस्तानियों के खिलाफ सख्ती नहीं की गई तो आने वाले दिनों में प्रदेश के हालात और ज्यादा भयावह हो सकते हैं।सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि खालिस्तानी आतंकवादियों के हाथ rpg जैसे खतरनाक हथियार पहुंच चुके हैं।जिनसे बड़ी तबाही मचाई जा सकती है।पंजाब के cm भगवंत मान को सभी चीजों को छोड़ प्रदेश की कानून व्यवस्था को सुधारने की ओर ध्यान देना चाहिए।केजरीवाल लगातार दावे करते आ रहे हैं कि एक बार पुलिस मेरे को दे दो देखो कैसे कानून व्यवस्था ठीक करता हूं।अब पुलिस उसके पास है।दो महीने होने को हैं प्रदेश की कानून व्यवस्था में रति भर सुधार नहीं हुआ है।उनके पास जो चमत्कारिक नुस्खा है उसका इस्तेमाल करें। डपोलशंख की तरह डींगे हांकना अब बंद कर ,कोई चमत्कार करके दिखाएं।मदन अरोड़ा
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की ये कैसी भूमिका? दुष्ट लोगों को दूसरों के भीतर राई बराबर दोष भी दिख जाता है लेकिन खुद में मौजूद बेल के बराबर की कमी को देखते हुए भी वह अनदेखा कर देता है।भारतीय मनीषियों द्वारा कही गई इस बात पर इन दिनों पश्चिमी देशों का मीडिया और उनका अंधाधुंध अनुसरण करने वाला भारतीय मीडिया का एक खास समूह खरा उतरता दिख रहा है। किसी भी सभ्य समाज में असमय या अप्राकृतिक वजह से एक भी मौत को जायज नहीं ठहराया जा सकता है।अपनों को खोने का दर्द क्या होता है, वह वही बता सकता है , जिसने अपने प्रियजन को खोया है।लेकिन इनसे परे पश्चिमी मीडिया और भारतीय मीडिया का एक खास समूह लाशों और श्मशानों की सनसनीखेज खबरें परोस कर भारत की छवि खराब करने में लगा है।इसमें गैरभाजपा सियासी दल,एनजीओ,कथित बुद्धिजीवी वर्ग भी अपनी आहुति डाल रहे हैं। दरअसल जब भी भारत में कुछ अच्छा होने वाला होता है,देश और पश्चिमी देशों में एक ऐसा वर्ग है जो भ्रामक सूचनाओं का षड्यंत्र रचना शुरू कर देते हैं।जिससे अच्छा होने से पहले ही भय और अनिश्चितता का माहौल पैदा किया जा सके।इनफार्मेशन वारफेयर स्टडीज शोधकर्ता सुमित कुमार और लेखक एवं पालिसी कमेंटेटर शांतनु गुप्ता ने जो डेटा एकत्रित किये हैं ।उसे देखने से साफ होता है कि जबसे वेक्सीन आई है और देश कोरोना की महामारी से जैसे जैसे उबरने लगा देश और पश्चिमी मीडिया के एक खास वर्ग और सियासी लोगों ने दुष्प्रचार शुरू कर देश की छवि धूमिल करने और वेक्सीन के प्रति भ्रम फैलाने का काम शुरू कर दिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना की दूसरी लहर ने भारत को बुरी तरह प्रभावित किया है।इस दौरान भारत के मीडिया के एक खास हिस्से और पश्चिमी मीडिया ने जिस तरह से हाय तौबा मचाई उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत विरोधी एजेंडे की पोल खोल कर रख दी है। लेखक एवं पालिसी कमेंटेटर शांतनु गुप्ता के अनुसार पश्चिमी मीडिया भारत के बड़े बड़े शहरों में कोरोना मरीजों और होने वाली मौतों का बार बार उल्लेख करते हैं ताकि भारत की छवि धूमिल कर बाकी दुनिया को यह बताया जा सके कि भारत महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है।हालांकि पश्चिमी मीडिया प्रति 10 लाख जनसंख्या पर न तो कोरोना मरीजों की बात करता है और न ही मृतकों का सही आंकड़ा बताता है।क्योंकि अगर इन आंकड़ों की बात करें तो भारत की स्थिति पश्चिमी देशों की तुलना में काफी बेहतर है। शांतनु गुप्ता के अनुसार पश्चिमी मीडिया भारत को लेकर तथ्यात्मक रिपोर्टिंग में विश्वास नहीं रखता है।उसकी कोशिश भारत सरकार के विरुद्ध एक विमर्श स्थापित करने की होती है। यही वजह है कि हमारे देश को लेकर ,वे लोग जो खबरें प्रकाशित करते हैं,उसमें से सिर्फ 20 फीसद समाचार ही तटस्थ रिपोर्टिंग पर आधारित होते हैं। पिछले 14 महीनों के दौरान भारत में कोरोना महामारी को लेकर पश्चिमी मीडिया की भूमिका का पता लगाने के लिए शांतनु गुप्ता ने 550 से ज्यादा लेखों का विश्लेषण किया।उन्होंने ब्रिटिश और अमेरिकी मीडिया से जुड़े शीर्ष समाचार पत्रों,71 चैनलों द्वारा चलाये गए 550 से ज्यादा लेखों का अध्ययन किया।जिसमें चौकाने वाले तथ्य सामने आए ।खास बात यह रही कि इन समाचारों का एक बड़ा हिस्सा न केवल लोगों में डर पैदा करता है बल्कि भ्रामक भी है।50 फीसद ऐसे समाचार अकेले बीबीसी ने प्रसारित किए।।शांतनु ने अपने अध्ययन के 14 महीनों को दो हिस्सों में बांटा है।एक हिस्सा संक्रमण की दूसरी लहर से पहले मार्च 2020 से मार्च 2021का था। वहीं दूसरा हिस्सा अप्रैल2021 से मई अंत तक का है।बीबीसी,द इकोनॉमिस्ट33,द गार्जियन,वाशिंगटन पोस्ट,न्यूयार्क टाइम्स और सीएनएन ने मार्च 2020 से अप्रैल 2021 के बीच 553 लेख लिखे और दिखाए।अकेले बीबीसी ने 275 समाचार दिखाए।न्यूयार्क टाइम्स ने जहां इस दौरान 91 आलेख लिखे,वहीं वाशिंगटन पोस्ट ने 69 समाचार और सम्पादकीय के माध्यम से भारत में कोरोना महामारी को विभत्स रूप से दिखाया।सिर्फ दो फीसद समाचारों में भारत सरकार के प्रयासों की सराहना की गई। जबकि 76 फीसद समाचारों की हैडिंग डराने वाली और दुर्भावना से प्रेरित थी। अप्रैल 2021 से पहले बीबीसी की 60 फीसद हैडिंग भ्रामक थी जबकि अप्रैल 2021 में इसकी संख्या 82 फीसद हो गई।वाशिंगटन पोस्ट और सीएनएन की बात करें तो अकेले अप्रैल 21 में ही दोनों ने 50 फीसद से ज्यादा आलेख में कोरोना महामारी को लेकर भारत सरकार की आलोचना की गई। इनफार्मेशन वारफेयर स्टडीज के शोधार्थी सुमित कुमार ने भारतीय मीडिया के कुछ वेबसाइट की सूची तैयार की।जिसमे इंडियन एक्सप्रेस ने 182 ,लोकसत्ता ने 172,नवभारत टाइम्स ने 236,हिंदुस्तान टाइम्स ने 123,टाइम्स ऑफ इंडिया ने 287,द वायर ने 78,स्क्रॉल ने 122, न्यूज़ लुंडरी ने 54,द हिन्दू ने 128 लेख वेक्सीन के विरोध में लिखे। जब इटली,फ्रांस,अमेरिका,ब्राजील और यूरोप के अन्य देशों में लाशों का अंबार लग रहा था ,कितने मीडिया समूह ऐसे थे जिन्होंने लाशों और कब्रिस्तानों की इतनी आक्रामक रिपोर्टिंग की।बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के पता नहीं कहां से पश्चिमी और देश के एक खास हिस्से के मीडिया को यह मालूम पड़ गया कि दूसरी लहर कुम्भ मेले और पश्चिम बंगाल के चुनावों की वजह से भयावह हुई। दूसरे प्रदर्शनों की भीड़ से इन्हें संक्रमण के प्रसार का खतरा नहीं दिखता।सवाल ये है कि जहां कुम्भ का आयोजन नहीं हुआ और चुनाव भी नहीं थे वहां कोरोना के हालात भयावह क्यों हुए।महाराष्ट्र में तो चुनाव नहीं थे फिर वहां सबसे ज्यादा संक्रमण क्यों फैला और कुल मौतों का करीब 30 फीसद मौत वहां कैसे हुई।उत्तरी अमेरिका और यूरोप में 87 देश आते हैं।इनकी संयुक्त आबादी से ज्यादा भारत की आबादी है।लेकिन किसी भी मीडिया समूह ने इन देशों में हुई कुल मौतों की भारत में हुई मौतों से तुलना नहीं कि क्योंकि वहां भारत से कई गुना ज्यादा मौतें हुई हैं।जनस्वास्थ्य सुविधाओं में पिछड़े होने के बावजूद भारत ने अल्प संसाधनों के साथ मृत्यु दर को स्थिर रखा है।ये पहलू दिखाने के बजाए लगातार उत्तरप्रदेश को हाई लाइट किया जाता रहा ।गंगा में मिली लाशों और दफनाई गई लाशों को बारम्बार दिखाया गया।पर इसी तरह से 2015 में भी गंगा में लाशें मिली इसे छिपाया गया।क्या यह हैरानी की बात नहीं कि जो मीडिया गंगा में बहती लाशें दिखा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कटघरे में खड़ा करने की पुरजोर कोशिशें करता रहा,वह एक भी ऐसा व्यक्ति सामने लाने में विफल रहा जो यह दावा करता हो कि उसके परिजन की लाश उसे न देकर प्रशासन ने लाश को गंगा में बहा दिया।बार बार खबरें दिखाई और छापी गई कि मौतों के आंकड़े प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी छिपा झूठे आंकड़े बता रहे हैं।क्या मीडिया में ऐसी खबरें चलाने वाले नहीं जानते कि जो आंकड़े राज्य सरकारें देती हैं ,केंद्र सरकार वही आंकड़े जारी करती है। जिन लोगों ने वेक्सीन को लेकर भ्रम फैला टीकाकरण अभियान को विफल करने के प्रयास किये।क्यों वेक्सीन को भाजपा की बता इसे नहीं लगाने की अपील करने,अपने राज्य में एक वेक्सीन विशेष को नहीं लगाने देने और बाद में उसी को लगाने की होड़ करने वाले मुख्यमंत्रियों के चेहरे बेनकाब करने का काम क्या मीडिया ने किया? पूरा मई 18 से 44 आयु वर्ग को वेक्सीन कैसे लगे ,कौन लगाए की जद्दोजहद में निकल गया,इसके वास्तविक गुनहगार कौन हैं क्या मीडिया ने इसे उजागर करने की कोई कोशिश की? दरअसल अगले साल यूपी में चुनाव हैं और दिल्ली का रास्ता वाया यूपी होकर जाता है।इसलिए मोदी विरोधी मीडिया के खास हिस्से के निशाने पर यूपी है।कोरोना से निपटने को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन जिस मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सराहना कर रहा हो,जो मुख्य मंत्री कोरोना से पीड़ित हो जाने के बाद भी पहली और दूसरी लहर के दौरान अपने सूबे के अस्पतालों में जा जा कर हालात का जायजा ले रहा हो और कोरोना पीड़ितों से मिल उनका कुशलक्षेम पूछ रहा हो।जिस मुख्यमंत्री ने हालात को जिस तीव्र गति से काबू पाया हो उसकी सराहना करने के बजाए उस पर निशाने साधे जाएं तो मतलब साफ है।वार भले ही आदित्यनाथ योगी पर किये जा रहे हैं लेकिन असली निशाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं।मोदी विरोधी मीडिया जानता है कि यदि मोदी को रोकना है तो योगी को हराना होगा।इसीलिए मीडिया का यह तबका पत्रकारिता की नैतिकता को ताक पर रख यूपी की लाशें ही दिखा रहा है।उसे न महाराष्ट्र दिखता है न केरल।न तमिलनाडु और न पंजाब दिखता है और न ही राजस्थान,छतीसगढ़ दिखाई देता है ।जहां सबसे ज्यादा मौते हुई और कोरोना का प्रसार हुआ।क्योंकि वहां निशाना साधने के लिए भाजपा सरकारें नहीं है। कहा जाता है कि मीडिया समाज का आईना होता है।पर निष्पक्षता के नाम पर झूठ और भ्रम की पॉलिशिंग कर इस आईने को धुंधलाने का काम मीडिया का एक हिस्सा विशेष कर रहा है। यह वही मीडिया का हिस्सा है जो 2014 चुनाव पूर्व से गला फाड़ रहा है। मोदी आ गया तो ये हो जाएगा,वो हो जाएगा।भारत रसातल में चला जायेगा।साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ जाएगा।कभी कहता है ,मोदी ने देश की अर्थ व्यवस्था को चौपट कर दिया तो कभी उन पर खून की दलाली के आरोप लगाए जाते हैं।जिन्हें मोदी को गिराने के लिए देश की छवि धूमिल करने से भी गुरेज नहीं है। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का एक स्तम्भ टूट चुका है।जरूरत इस बात की है कि इस प्रतिकूल हालात में देश के साथ खड़े हो इस टूट चुके स्तम्भ को आईना दिखा सही रास्ते पर लाया जाए। मदन अरोड़ा स्वतंत्र पत्रकार arora.madan50@gmail .com
caa, एनपीआर एनआरसी को लेकर देश में बवाल मचा है।क्या वास्तव में ये भारतीय मुसलमानों के समानता के अधिकार का हनन करते हैं तो इसका सीधा जवाब है नहीं और यही वजह है कि कांग्रेस सहित विपक्षी दलों और अपने आपको भारतीय मुसलमानों का नुमाइंदा माननेवाले स्वयंभू मुस्लिम नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल करने के बावजूद निर्णय का इंतजार करने के बजाय देश को आग में झोंकने का काम किया ।ये जानते हैं कि उन्हें राम मंदिर पर आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की तरह caa के मामले में भी छाती पीटने के अलावा कुछ हासिल होने वाला नहीं इसलिए मुस्लिम वोटों को अपने पाले में डालने और उनका मसीहा बनने की होड़ में सब पूरी ताकत के साथ भ्रम फैला और उन्हें सड़कों पर लाने में जुटे हैं।याद करें किस तरह से सांसद में कांग्रेस और विपक्षी दलों के वकील नेता caa को संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लघंन और मुसलमानों के अधिकारों का हनन बता रहे थे।टीवी चैनल की डिबेट में caa की खिलाफत कर रहे हैं पर आपको सिब्बल,सिंघवी जैसे सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील टीवी पर इसे समानता के अधिकार के हनन बताते हुए नहीं दिख रहे जबकि कांग्रेस मरते दम तक इसके विरोध की बात कर रही है।साफ है कि इन बड़े वकीलों को पता है कि एक राजनीतिक दल के नेता के रूप में भले ही इसके समानता के अधिकार के हनन का स्यापा कर लें लेकिन हकीकत में यह कहीं भी संविधान के वर्णित अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता।भारतीय संविधान देश के अधिकारों की रक्षा की बात करता है विदेशी मुसलमानों की नहीं और इसीलिए एकीकृत भारत में बंटवारे के बाद जब कई हिन्दू और सिख परिवार किन्हीं कारणों से भारत नहीं आ पाए और बंटवारे के बाद बने पाकिस्तान में रह गए उनके अधिकारों की रक्षा की बात तो की गई ,उनके कभी भी भारत आने पर उन्हें भारत की नागरिकता की बात तो की गई लेकिन जो मुसलमान एक मुस्लिम राष्ट्र बनाने और उसका नागरिक बनने के लिए पाकिस्तान गए उनके अधिकारों की बात कहीं नहीं की गई।भारतीय संविधान ऐसे मुस्लिमों को किसी तरह के अधिकार की बात नहीं करता जो अलग राष्ट्र की मांग के साथ पाकिस्तान चले गए थे इसलिए ये मुसलमानों के समानता के अधिकारों का किसी तरह से उल्लंघन नहीं वरन उन भारतीयों के अधिकारों की रक्षा करता है जो पाकिस्तान को मुस्लिम राष्ट्र बनाने नहीं किसी मज़बूरी में वहां रह गए और अल्पसंख्यक बन गए।याद करें नेहरू लियाकत समझौते को ।इस समझोते में दोनों देशों के अल्पसंख्यकों के संरक्षण की बात की गई थी कहीं भी पाकिस्तानी मुसलमानों के संरक्षण की बात नहीं है।दोनों देशों में अपने यहां अल्पसंख्यकों को समान अधिकार देने ,उनके साथ समानता का व्यवहार करने और उनके हर अधिकारों की रक्षा करने,धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करने का समझौता किया गया था।उस समय के एकीकृत पाक में अल्पसंख्यक कौन थे हिन्दू, सिख, बुद्ध,पारसी ,जैन और ईसाई कहीं भी भारत से आए मुसलमानों को अल्पसंख्यक नहीं माना गया था और न ही उनके हितों की रक्षा की बात की गई थी और भारत में अल्पसंख्यक के रूप में मुसलमानों के साथ समान व्यवहार और उनके हितों की संरक्षण की बात की गई थी।इसके अलावा बंटवारे के समय पाकिस्तान रह गए हिन्दू, सिख,जैन बुद्ध की बात समय समय पर की जाती रही लेकिन खलीफा राज की स्थापना के लिए पाकिस्तान चले गए मुसलमानों के हितों की बात नहीं की गई और न ही ऐसे मुसलमानों को नेहरू लियाकत समझौते में अल्पसंख्यक मान उनके हितों की रक्षा की बात शामिल की गई।क्योंकि पाकिस्तान गए मुसलमानों को भले ही मुजाहिद्दीन माना गया हो उन्हें अंगीकार मुसलमानों के रूप में किया गया था ,अल्पसंख्यक के रूप में नहीं।इसलिए caa न तो भारतीय कहे जाने वाले किसी मुसलमान के साथ भेदभाव करता है और न ही समानता के अधिकार का किसी तरह से हनन करता है ।यही वजह है कि कांग्रेस और विपक्षी दलों ने कोर्ट के निर्णय का इंतजार करने बजाय अधिक से अधिक मुसलमानों को अपने अपने पाले में डालने की होड़ में caa को मुसलमानों के साथ भेदभाव और समानता के अधिकारों का भ्रम फैला धर्म के नाम पर मुसलमानों को सड़कों पर उतार दिया जबकि ये अच्छी तरह से जानते हैं कि कोर्ट का निर्णय आते ही उनकी सारी पोल खुल जाएगी पर तब तक हिन्दू मुसलमानों के बीच की खाई लंबी हो चुकी होगी।देश के सभी लोगों को सड़कों पर उतरने के बजाय कोर्ट के निर्णय का इंतजार करना चाहिए।हालांकि मैं जानता हूं कि जो लोग राम मंदिर पर आए निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण और पक्षपाती बता रहे थे,caa पर आने वाले निर्णय को भी ऐसा ही बताएंगे क्योंकि यह किसी भारतीय मुसलमान के साथ न तो भेदभाव करता है और न ही समानता के अधिकार का हनन ।यह केवल तीन इस्लामिक देशों के अल्पसंख्यकों जो मूल रूप से भारतीय ही हैं और लंबे समय से देश में रह रहे हैं को संरक्षण का काम कर रहा है।मदन अरोड़ा
मुंबई उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाडी का पहला मंत्रिमंडल विस्तार आज होने जा रहा है। सबकी नजरें इस विस्तार पर टिकी हैं, आखिर किस दल से कितने मंत्री बनेंगे। चर्चा है कि पहली बार विधायक बने आदित्य ठाकरे भी राज्यमंत्री के तौर पर कैबिनेट में शामिल हो सकते हैं। साथ ही अजित पवार को डेप्युटी सीएम या कोई बड़ा विभाग मिलने की सुगबुगाहट है। माना जा रहा है कि आज 36 मंत्री शपथ ले सकते हैं जिनमें से शिवसेना के पास मुख्यमंत्री के अलावा 16 मंत्री होंगे। वहीं, एनसीपी के 14 और कांग्रेस के 12 मंत्री होंगे। शपथ ग्रहण समारोह के लिए विधानभवन में विशेष रूप से पंडाल बनाया गया है। इसके साथ ही करीब 5 हजार लोगों को आमंत्रित किया गया है। अभी तक की जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के अशोक चव्हाण, केसी पडवी, विजय वडेट्टिवर, अमित देशमुख, सुनील केदार, यशोमती ठाकुर, वर्षा गायकवाड़, असलम शेख, सतेज पाटिल और विश्वजीत कदम मंत्रीपद की शपथ लेंगे। ये हो सकते हैं मंत्रिमंडल में शामिल एनसीपी: अजित पवार, धनंजय मुंडे, जयंत पाटील, छगन भुजबल, जीतेंद्र अव्हाड, नवाब मलिक, दिलीप वलसे पाटील, हसन मुश्रीफ, बालासाहेब पाटील, दत्ता भरणे, अनिल देशमुख, राजेश टोपे और डॉ. राजेंद्र शिंगणे। शिवसेना: अनिल परब, प्रताप सरनाईक, रविंद्र वायकर, सुनील राऊत, उदय सामंत, भास्कर जाधव या वैभव नाईक, आशीष जैस्वाल या संजय रायमुलकर, बच्चू कडू, संजय राठोड शंभुराजे देसाई, प्रकाश अबिटकर, संजय शिरसाट, अब्दुल सत्तार, तानाजी सावंत, गुलाबराव पाटील, दादा भुसे, सुहास कांदे। मंत्रिमंडल विस्तार के लिए विधायकों के नाम फाइनल करने के लिए रविवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस की विशेष बैठकें हुईं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोराट विशेष रूप से दिल्ली गए। वहीं एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मुंबई में पार्टी नेताओं के साथ बैठक की। गृह मंत्री पर उद्धव लेंगे फैसला! दिल्ली में बैठक खत्म होने के बाद थोराट ने कहा कि कांग्रेस ने अपनी सूची में सभी क्षेत्रों और समाजों के नेताओं का संतुलन बनाने की कोशिश की है। कांग्रेस की तरफ से 12 मंत्री होंगे, जिनमें से 10 कैबिनेट मंत्री होंगे। उधर, एनसीपी नेता जयंत पाटिल ने कहा कि हमने अपने मंत्री बनने वाले विधायकों की सूची मुखयमंत्री को भेज दी है। गृहमंत्री कौन होगा? इसके जवाब में जयंत पाटिल ने कहा कि मंत्रालयों का बंटवारा करना सीएम का विशेषाधिकार है। अजित को मिल सकता अहम ओहदा एनसीपी नेता अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ गृहमंत्री पद देकर उद्धव ठाकरे सरकार में नंबर-टू की पॉवर दिए जाने की उम्मीद है। एनसीपी नेता धनंजय मुंडे को वित्त मंत्रालय, जयंत पाटिल को जल संसाधन, छगन भुजबल को ग्राम विकास और जीतेंद्र अव्हाड को सामाजिक न्याय मंत्रालय दिया जा सकता है। इनके अलावा एनसीपी से शपथ लेने वालों में नवाब मलिक, दिलीप वलसे पाटील, हसन मुश्रीफ, बालासाहेब पाटील, दत्ता भरणे, अनिल देशमुख, राजेश टोपे, डॉ. राजेंद्र शिंगणे के नाम शामिल हो सकते हैं। उद्धव कैबिनेट में अभी ये मंत्री कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष बालासाहेब थोराट और कांग्रेस के ही नितिन राउत, शिवसेना के एकनाथ शिंदे और सुभाष देसाई, एनसीपी के जयंत पाटिल और छगन भुजबल 28 नवंबर को उद्धव ठाकरे के साथ शपथ ले चुके हैं। बता दें कि विभागों के बंटवारे के समय जयंत पाटील के पास वित्त, नियोजन, गृह निर्माण, स्वास्थ्य, सहकार व व्यापार, अन्न व आपूर्ति, ग्राहक संरक्षण, कामगार, अल्पसंख्यक विभाग मंत्रालय था जबकि, छगन भुजबल को ग्राम विकास, जलसंपदा, सामाजिक न्याय, राज्य उत्पादन शुल्क, स्किल डिवेलपमेंट, अन्न व औषधि प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी दी गई थी। महाविकास आघाडी सरकार में विभागों के बंटवारे में गृह मंत्रालय शहरी विकास और पीडब्लूयूडी शिवसेना, वित्त मंत्रालय, ग्रामीण विकास, सिंचाई एनसीपी और कांग्रेस को राजस्व एवं कृषि मंत्रालय मिला है।
कोलकाता, 07 दिसंबर 2019,पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ कहते हैं कि ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि मैं सदन में जाता हूं और वहां गेट बंद मिलता है. स्पीकर ने लंच पर बुलाया था लेकिन वे खुद वहां नहीं थे. सदन खाली था. कुछ लोगों ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था. वहां कोई क्लास-4 कर्मचारी भी नहीं था जो मेरे स्वागत के लिए खड़ा हो. मुझे लगता है कि स्वच्छ भारत अभियान सबसे पहले पश्चिम बंगाल के विधानसभा से शुरू होना चाहिए. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ये बातें कोलकाता में चल रहे इंडिया टुडे कॉनक्लेव ईस्ट में कहीं. राज्यपाल धनकर ने कहा कि लोग मुझपर आरोप लगाते हैं कि मैं सीएम ममता और सरकार के काम में रुकावट पैदा करता हूं. लेकिन होता इसका उलटा है. यहां तो मैं रिसीविंग एंड पर हूं. वो लोग मेरे सामने समस्याएं खड़ी कर रहे हैं. प. बंगाल के 5-6 मंत्री कहते हैं- मैं पर्यटक हूं पश्चिम बंगाल के पांच-छह सीनियर मंत्री कहते हैं कि अगर आपको सीएम से मिलना है तो 'दीदी के' बोलो. आप यहां पर्यटक हैं. आप यहां घूमने आए हैं. इन सबके बारे में और लोगों की समस्याओं के बारे में मैंने कई पत्र भेजे हैं सीएम को. लेकिन मुझे कोई रिस्पॉन्स नहीं मिलता. सीएम ने बुलबुल तूफान में अच्छा काम किया तो मैंने पत्र लिखकर उनके काम की तारीफ की. लेकिन ऐसे में मीडिया में हेडिंग बन जाती है कि मैं सीएम की तारीफ करता हूं. लेकिन अगर सरकार ये चाहे कि मैं बतौर राज्यपाल सीएम की तारीफ करता रहूं तो मैं उसके लिए नहीं बैठा हूं. प. बंगाल में लोकतंत्र खत्म हो चुका है राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा कि प. बंगाल में लोकतंत्र खत्म हो चुका है. वीसी रूम बंद हो जाता है. विधानसभा का गेट बंद हो जाता है. मैं शहरों के दौरे पर जाता हूं तो मुझे वहां अधिकारी, कर्मचारी...कोई मिलता ही नहीं है. ये लोकतंत्र का खात्मा नहीं है तो क्या है? ये वैसा ही काम है जैसा औरंगजेब ने शिवाजी के साथ किया था. मैं ममता को औरंगजेब नहीं कह रहा. लेकिन प. बंगाल की आयरन लेडी औरंगजेब की तरह काम कर रही हैं. लोग आरोप लगाते हैं कि मैं समानांतर सरकार चला रहा हूं. लेकिन अगर मैं समानांतर सरकार चलाता तो ये सब नहीं होता.
महाराष्ट्र में अस्सी घंटे के भीतर ही मुख्य मंत्री देवेन्द्र फडणवीस के इस्तीफा देने के साथ ही राज्य की राजनीति में करीब एक महीने भर से चल रहे शह और मात के खेल का दौर खत्म हो गया है।इसके साथ ही अब यक्ष सवाल ये है कि राजनीतिक अवसरवाद का एक और उदाहरण पेश करते हुए शिवसेना ,कांग्रेस और एनसीपी की बनने जा रही बेमेल सरकार का भविष्य क्या होगा।शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार भले ही बना ली हो,लेकिन स्थायित्व पर फिलहाल प्रश्नचिन्ह ही है।जिन दलों को अपना न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय करने में ही 15 दिन लग गए,वे सरकार कैसे चलाएंगे।यह समझना ज्यादा कठिन नहीं है।अब तक महाराष्ट्र में शिवसेना रिमोट कंट्रोल से राजनीति करती आई है।पहली बार उसका रिमोट कंट्रोल अब एनसीपी के शरद पवार के पास है।अपनी शर्तें मनवा कांग्रेस ने भी जता दिया है कि उसका सरकार चलाने में पूरा दखल रहने वाला है ।थपफ्ला अवसर है जब ठाकरे परिवार के किसी व्यक्ति को मातोश्री से बाहर आ दूसरे दलों की चौखट पर आना पड़ा है और अपनी मनमर्जी के विपरित दूसरों की शर्तों पर सहमति जताने के लिए विवश होना पड़ा है।अवसरवादी गठजोड़ों ने बता दिया है कि अब सिद्धांतवादी राजनीति का दौर खत्म हो गया है।अब सता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल किसी भी सीमा तक नीचे जा सकते हैं।मोदी को रोकने के नाम पर जिस तरह से धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता की परिभाषा बदली गई है ,उस पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।सता की लालसा अछूतों को भी गले लगाने के लिए मजबुर कर देती है यह इस नए गठजोड़ ने साबित कर दिया है।कांग्रेस और एनसीपी के निशाने पर सांप्रदायिक पार्टी के रूप में रही पार्टी शिवसेना अब धर्मनिरपेक्ष हो गई है।जिस सोनिया गांधी और उनके आगे नतमस्तक होने वाले नेताओं को बाल ठाकरे तंज कसा करते थे ,आज उन्हीं के बेटे उद्धव ठाकरे कुर्सी के लिए सोनिया के आगे नतमस्तक हो रहे हैं।अपनी विचार धारा से समझौता कर रहे हैं।इसकी कल्पना कभी बाल ठाकरे ने नहीं की होगी। इस तरह से कांग्रेस से हाथ मिलाना कई शिवसेना विधायकों को नागवार गुजरा है और उन्होंने अपना विरोध भी उद्धव ठाकरे के सामने जता दिया है। इन नेताओं ने ठाकरे को चेताया है कि हिंदुत्व की लाइन से हटना पार्टी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।आगे भविष्य में चुनावों में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।फिलहाल सीएम की कुर्सी पर बैठने को लालायित ठाकरे इसकी अनदेखी कर रहे हैं लेकिन राजनीति के पंडितों का मानना है कि बेमेल गठजोड़ कर शिवसेना ने न केवल अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है ,राज्य में हिंदूवादी वोटरों को बीजेपी की तरफ जाने का रास्ता खोल अपने नए सियासी दुश्मन को मजबूत बनाने का काम ही किया है।शिव सेना के इस कदम से अब बीजेपी को उसकी ब्लैकमेलिंग से निजात मिल गई है और अब वह अपने बलबूते चुनाव लड़ बहुमत वाली सरकार बना सकेगी। शिवसेना का वजूद हिंदूवादी वोटरों पर ही टिका हुआ है ।हिंदुत्व वादी मुद्दे छोड़ने से उसका वोटर उससे दूर ही होगा और विकल्प होगा बीजेपी।कोई आश्चर्य नहीं होगा कि जो विधायक कांग्रेस के साथ गठजोड़ का विरोध कर रहे हैं वे निकट भविष्य में शिवसेना को छोड़ बीजेपी का दामन थाम ले।ऐसे विधायकों की संख्या 20 बताई जा रही है जो आगे जाकर ज्यादा भी हो सकती है तीनों पार्टियों अपना अपना हित साधने के लिए बेमेल गठजोड़ की सरकार चलाने के लिए इकट्ठा हुए है ऐसे में जब भी इनके आपसी हित टकराएंगे सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगी।कांग्रेस का तो इतिहास सरकारें गिराने का रहा है।आज तक जिस भी सरकार में यह जूनियर पार्टनर रही या बाहर से समर्थन दिया उसे समय से पूर्व गिराने का काम कांग्रेस करती आ रही है।कर्नाटक की कुमार स्वामी की सरकार का हश्र सबके सामने है।ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि तीन पहियों वाली ये बेमेल सरकार कब तक चल पाएगी।सरकार को सपा भी समर्थन दे रही है।यह वही पार्टी है जो बाबरी मस्जिद गिराने के लिए बीजेपी के साथ शिवसेना को भी दोषी ठहराती रही है।जिसने कारसेवकों जिसमें बीजेपी और शिवसेना दोनों के कार्यकर्ता थे को गोलियों से कतलेआम करवा दिया था।शिवसेना से हाथ मिला अब वह मुसलमानों के पास किस मुंह से वोट लेने जाएगी।कांग्रेस और एनसीपी को भी अपने मुस्लिम तो शिव सेना को अपने हिन्दू वोटरों को चुनावों में इसका जवाब तो देना ही होगा कि उनकी भावनाओं को ताक पर रख बेमेल सरकार क्यों बनाई गई।लबोलुआब यही है कि सरकार आपसी हितों की टकराहट से जल्द गिरेगी और अब भले ही बीजेपी के हाथों से सता निकल गई हो ,भविष्य में जब भी चुनाव होंगे उसे इसका पूरा लाभ मिलेगा और वह सता में वापसी अपने दम पर करेगी। बड़ा सवाल उभर कर यह भी आ रहा है कि क्या भविष्य में शिव सेना अपने पुराने मुद्दों राम मंदिर,समान नागरिक संहिता,एनआरसी,जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने और वीर सावरकर को भारत रत्न के साथ कांग्रेस और एनसीपी के साथ चुनाव लड़ेगी या इन्हें महाराष्ट्र विकास अघाडी के मिनिमम कार्यक्रम के तहत चुनाव में उतरेगी और यह भी क्या आगामी विधान सभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी गठजोड़ करेंगी या पल्ला झाड़ लेंगी।मदन अरोड़ा
महाराष्ट्र में अस्सी घंटे के भीतर ही मुख्य मंत्री देवेन्द्र फडणवीस के इस्तीफा देने के साथ ही राज्य की राजनीति में करीब एक महीने भर से चल रहे शह और मात के खेल का दौर खत्म हो गया है।इसके साथ ही अब यक्ष सवाल ये है कि राजनीतिक अवसरवाद का एक और उदाहरण पेश करते हुए शिवसेना ,कांग्रेस और एनसीपी की बनने जा रही बेमेल सरकार का भविष्य क्या होगा।शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार भले ही बना ली हो,लेकिन स्थायित्व पर फिलहाल प्रश्नचिन्ह ही है।जिन दलों को अपना न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय करने में ही 15 दिन लग गए,वे सरकार कैसे चलाएंगे।यह समझना ज्यादा कठिन नहीं है।अब तक महाराष्ट्र में शिवसेना रिमोट कंट्रोल से राजनीति करती आई है।पहली बार उसका रिमोट कंट्रोल अब एनसीपी के शरद पवार के पास है।अपनी शर्तें मनवा कांग्रेस ने भी जता दिया है कि उसका सरकार चलाने में पूरा दखल रहने वाला है ।थपफ्ला अवसर है जब ठाकरे परिवार के किसी व्यक्ति को मातोश्री से बाहर आ दूसरे दलों की चौखट पर आना पड़ा है और अपनी मनमर्जी के विपरित दूसरों की शर्तों पर सहमति जताने के लिए विवश होना पड़ा है।अवसरवादी गठजोड़ों ने बता दिया है कि अब सिद्धांतवादी राजनीति का दौर खत्म हो गया है।अब सता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल किसी भी सीमा तक नीचे जा सकते हैं।मोदी को रोकने के नाम पर जिस तरह से धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता की परिभाषा बदली गई है ,उस पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।सता की लालसा अछूतों को भी गले लगाने के लिए मजबुर कर देती है यह इस नए गठजोड़ ने साबित कर दिया है।कांग्रेस और एनसीपी के निशाने पर सांप्रदायिक पार्टी के रूप में रही पार्टी शिवसेना अब धर्मनिरपेक्ष हो गई है।जिस सोनिया गांधी और उनके आगे नतमस्तक होने वाले नेताओं को बाल ठाकरे तंज कसा करते थे ,आज उन्हीं के बेटे उद्धव ठाकरे कुर्सी के लिए सोनिया के आगे नतमस्तक हो रहे हैं।अपनी विचार धारा से समझौता कर रहे हैं।इसकी कल्पना कभी बाल ठाकरे ने नहीं की होगी। इस तरह से कांग्रेस से हाथ मिलाना कई शिवसेना विधायकों को नागवार गुजरा है और उन्होंने अपना विरोध भी उद्धव ठाकरे के सामने जता दिया है। इन नेताओं ने ठाकरे को चेताया है कि हिंदुत्व की लाइन से हटना पार्टी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।आगे भविष्य में चुनावों में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।फिलहाल सीएम की कुर्सी पर बैठने को लालायित ठाकरे इसकी अनदेखी कर रहे हैं लेकिन राजनीति के पंडितों का मानना है कि बेमेल गठजोड़ कर शिवसेना ने न केवल अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है ,राज्य में हिंदूवादी वोटरों को बीजेपी की तरफ जाने का रास्ता खोल अपने नए सियासी दुश्मन को मजबूत बनाने का काम ही किया है।शिव सेना के इस कदम से अब बीजेपी को उसकी ब्लैकमेलिंग से निजात मिल गई है और अब वह अपने बलबूते चुनाव लड़ बहुमत वाली सरकार बना सकेगी। शिवसेना का वजूद हिंदूवादी वोटरों पर ही टिका हुआ है ।हिंदुत्व वादी मुद्दे छोड़ने से उसका वोटर उससे दूर ही होगा और विकल्प होगा बीजेपी।कोई आश्चर्य नहीं होगा कि जो विधायक कांग्रेस के साथ गठजोड़ का विरोध कर रहे हैं वे निकट भविष्य में शिवसेना को छोड़ बीजेपी का दामन थाम ले।ऐसे विधायकों की संख्या 20 बताई जा रही है जो आगे जाकर ज्यादा भी हो सकती है तीनों पार्टियों अपना अपना हित साधने के लिए बेमेल गठजोड़ की सरकार चलाने के लिए इकट्ठा हुए है ऐसे में जब भी इनके आपसी हित टकराएंगे सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगी।कांग्रेस का तो इतिहास सरकारें गिराने का रहा है।आज तक जिस भी सरकार में यह जूनियर पार्टनर रही या बाहर से समर्थन दिया उसे समय से पूर्व गिराने का काम कांग्रेस करती आ रही है।कर्नाटक की कुमार स्वामी की सरकार का हश्र सबके सामने है।ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि तीन पहियों वाली ये बेमेल सरकार कब तक चल पाएगी।सरकार को सपा भी समर्थन दे रही है।यह वही पार्टी है जो बाबरी मस्जिद गिराने के लिए बीजेपी के साथ शिवसेना को भी दोषी ठहराती रही है।जिसने कारसेवकों जिसमें बीजेपी और शिवसेना दोनों के कार्यकर्ता थे को गोलियों से कतलेआम करवा दिया था।शिवसेना से हाथ मिला अब वह मुसलमानों के पास किस मुंह से वोट लेने जाएगी।कांग्रेस और एनसीपी को भी अपने मुस्लिम तो शिव सेना को अपने हिन्दू वोटरों को चुनावों में इसका जवाब तो देना ही होगा कि उनकी भावनाओं को ताक पर रख बेमेल सरकार क्यों बनाई गई।लबोलुआब यही है कि सरकार आपसी हितों की टकराहट से जल्द गिरेगी और अब भले ही बीजेपी के हाथों से सता निकल गई हो ,भविष्य में जब भी चुनाव होंगे उसे इसका पूरा लाभ मिलेगा और वह सता में वापसी अपने दम पर करेगी। बड़ा सवाल उभर कर यह भी आ रहा है कि क्या भविष्य में शिव सेना अपने पुराने मुद्दों राम मंदिर,समान नागरिक संहिता,एनआरसी,जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने और वीर सावरकर को भारत रत्न के साथ कांग्रेस और एनसीपी के साथ चुनाव लड़ेगी या इन्हें महाराष्ट्र विकास अघाडी के मिनिमम कार्यक्रम के तहत चुनाव में उतरेगी और यह भी क्या आगामी विधान सभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी गठजोड़ करेंगी या पल्ला झाड़ लेंगी।मदन अरोड़ा
संविधान दिवस पर लोकतंत्र का चीरहरण होते होते बच गया।भगवान का लाख लाख शुक्रिया।लोकतंत्र को बचाने के लिए देश को सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ शरद पवार,सोनिया गांधी और उद्धव ठाकरे का ऋणी होना चाहिए कि उन्होंने लोकतंत्र को बचाने के लिए लंबा जद्दोजहद किया ।ये लड़ाई सता हासिल करने के लिए नहीं,पूरी तरह से लोकतंत्र को बचाने के लिए पूरी शिद्दत और देशहित में लड़ी है।सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी को झतका देते हुए फैसला दे लोकतंत्र को बचा लिया,अगर उसने कहीं बीजेपी को कोई राहत दे दी होती तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता।शिवसेना,कांग्रेस और एनसीपी का इसके लिए आभार जताया जाना चाहिए कि उन्होंने सता के लिए नहीं देश हित में अपनी अपनी दुश्मनी और विचार धारा को तिलांजलि देते हुए बीजेपी को सत्ता से दूर कर लोकतंत्र को बचा लिया,अगर ये सता हासिल करने में नाकाम हुए होते तो लोकतंत्र का चीरहरण हो जाता ।हमारे देश की विडम्बना है कि जब कोई फैसला हमारे पक्ष में जाता है तो लोकतंत्र और संविधान की रक्षा होती है और ये देश हित में होता है और जब मनमाफिक कोई चीज नहीं होती तो भले ही वह पूरी तरह संवैधानिक क्यों न हो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है।ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है कि हम हर चीज को अपने तरीके से देख और व्यक्त कर सकते हैं।मानवाधिकार को देखने का हमारा नजरिया अनेकता में एकता वाला है।जब सुरक्षाबलों पर आतंकवादी,नक्सलवादी और बदमाश हमला करते हैं और हमारे जवान शहीद होते हैं तो कोई हमलावरों पर मानवाधिकार की बात नहीं करता लेकिन अगर कोई आतंकवादी,नक्सलवादी या बदमाश मारा जाता है तो उसके मानवाधिकार का मुद्दा उठा कोर्ट तक में याचिकाएं दायर कर दी जाती हैं।हमारे देश में बदमाशों ,अपराधियों को जीने का अधिकार है लेकिन देश को बचाने में लगे सुरक्षा बलों के जवानों को जीने का नहीं केवल अपराधियों राष्ट्रद्रोहियों के हाथों मारे जाने का अधिकार हैं क्योंकि वे मरने के लिए ही तो सुरक्षा बलों में आते हैं।यही वजह है कि जब सुरक्षा बलों के जवान शहीद होते हैं तो जेएनयू जैसे शिक्षण संस्थानों में जश्न मनाया जाता है और जब कोई आतंकवादी मारा जाता है तो उसे श्रद्धांजलि दी जाती है।उसकी मौत को लेकर कोर्ट में याचिकाएं तक लगाई जाती हैं,पर शहीद परिवार को न्याय दिलाने के लिए कथित मानवाधिकारवादी कभी आगे नहीं आते।ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि हम मोब्लिंचिंग को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं।कोई अपराधी अगर हिन्दू भीड़ के हाथों मारा जाए तो मोब्लिंचिंग होती है और अगर कोई हिन्दू पिता दूसरे धर्म के लोगों की भीड़ से अपनी बेटी की इज्जत बचाते हुए मार दिया जाए तो न ही ये मोब्लिंचिंग हैं और न ही इससे देश असहिष्णु होता है।मंदिरों पर हमला कर उसमें तोड़फोड़ सही है लेकिन यदि किसी गिरजाघर में उसके ही पूर्व कर्मचारी चोरी कर लें,कोई शराबी उसका कोई कांच तोड़ दे तो देश अल्पसंख्यकों के रहने लायक नहीं रह जाता।हमने धर्मनिरपेक्षता को भी बहुत ही खूबसूरती के साथ परिभाषित किया है।जो हिन्दुओं की बात करे,जो देश में संविधान के अनुरूप समान नागरिकता कानून बनाने की बात करे,जी देश से अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालने की बात करे,जो देश में नागरिकों की पहचान के लिए एनआरसी लागू करे,जो प्रलोभन देकर धर्मपरिवर्तन के खिलाफ कानून लाने,जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून की बात करे वो सांप्रदायिक और जो संविधान की भावनाओं की हत्या कर वोटों के लिए एक धर्म विशेष के तुष्टिकरण कर लाभ पहुंचाए,जो आंख बन्द कर प्रलोभन देकर धर्मपरिवर्तन को सही ठहराए,जो संविधान की भावनाओं को रोंद समान नागरिक कानून बनाने,घुसपैठियों को वोटों के लिए बसाए रखने की वकालत करे,जो एक धर्म विशेष की राजनीति करे वे धर्मनिरपेक्ष बाकी सब सांप्रदायिक।हमारे लोकतंत्र ने भी अभिव्यक्ति की आजादी को भी अपने तरीके से व्यक्त करने की पूरी छूट दी है।आप देश के खिलाफ नारे लगाए,आप देश के खिलाफ कुछ भी लिखें ये अभिव्यक्ति की आजादी है।आप जेएनयू जैसे शिक्षण संस्थानों में विचारधारा विशेष से जुड़े हैं तो आपको वहां आपको अपने भाषण पिलाने की पूरी छूट है पर अगर आप उस विचारधारा यानी वामपंथी नहीं है तो आपको बोलने का कोई अधिकार नहीं है।आपके खिलाफ प्रदर्शन,धक्कमुकी सब अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किए जा सकते हैं।ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि कल तक जिसे धुर सांप्रदायिक और हिंदूवादी पार्टी बता निंदा की जाती थी ,वह शिवसेना अब सता हासिल करने के लिए कांग्रेस और एनसीपी की गंगा में डुबकी लगा धर्मनिरपेक्ष हो गई है।अब वह न हिंदूवादी पार्टी है और न ही बाबरी मस्जिद विध्वंस की दोषी।शिवसेना को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण पत्र कोई और नहीं वहीं कांग्रेस और एनसीपी दे रही है जो उस पर इसका दोषारोपण करती थी।सता में भागीदारी मिलते ही कांग्रेस और एनसीपी के लिए शिवसेना वाशिंग मशीन से धुलने के बाद निर्विवाद रूप से एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी हो गई है।मंगलवार को शिवसेना को पिछले तीस सालों से सांप्रदायिक पार्टी बताने वाले एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा,शिवसेना कभी सांप्रदायिक पार्टी नहीं थी,वह तो बनी ही महाराष्ट्र के विकास के लिए है।उस पर बीजेपी के साथ रहने की वजह से ही साम्प्रदायिकता का आरोप लगता रहा।लोकतंत्र की खूबसूरती के चलते ही हिंदुत्व भी अब सच्चा और झूठा हो गया है।महाराष्ट्र विकास अघाडी का नेता चुने जाने के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा कि उनके हिंदुत्व में झुठापन नहीं है वे अब भी हिंदूवादी है।उनके बयान से यह आभास मिलता है कि जब वे रामलला हम आएंगे,मन्दिर वहीं बनाएंगे का नारा लगाते थे,जब वे समान नागरिकता कानून,जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने,बाबरी मस्जिद गिराने का श्रेय लेते थे।एनआरसी की वकालत करते थे ,तब वे झूठे हिंदुत्व की बात करते थे।तब भी वे झूठे हिंदुत्व की बात करते थे जब वीर सावरकर को भारतरत्न की मांग करते थे।अब इन सब मुद्दों को तिलांजलि देने के बाद उनके हिंदुत्व में झुठापन नहीं रहा है।लोकतंत्र में हर चीज को अपने नजरिए से देखना और बयां करना ही तो इसकी खूबसूरती है।जो शिवसेना कभी कांग्रेस और एनसीपी के लिए अछूत थी एक दूसरे को पानी पी पीकर कोसा करते थे ,आज सता के लिए गलबहियां हो रहे हैं तो ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती ही तो है।इसी से ही तो लोकतंत्र की सुरक्षा सुरक्षित होती है।अगर ये तीनों दल सता में न आए होते तो लोकतंत्र की हत्या हो गई होती।मदन अरोड़ा
सुप्रीम कोर्ट ने 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद मामले में मोदी सरकार को बड़ी राहत देते हुए दूसरी बात क्लीन चिट दी है।cji रंजन गोगोई,जस्टिस sk कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने एकमत से इस मामले में दायर सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा न तो वह सेब की तुलना संतरे से कर सकती है और न ही हवा में जांच का आदेश दे सकती है।ये टिप्पणी लड़ाकू विमान की कीमतों की तुलना एक ख़ाली एयरक्राफ्ट से कर रहे राहुलऔर केवल बयानों और बिना सबूत और साक्ष्य वाली मीडिया रिपोर्ट के आधार पर याचिकाओं के पेश किए जाने के संदर्भ में की गई है।सुप्रीम कोर्ट ने इस डील से जुड़े विवाद को अपनी तरफ से अंत कर दिया है। कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने एकमत से पिछले 14 दिसम्बर को दिए अपने फैसले को बरकरार रखते हुए साफ कर दिया है कि इस मामले में अब न तो कोई एफआईआर दर्ज करने की जरूरत है और न ही किसी तरह की जांच की।लेकिन कांग्रेस अब भी इस मुद्दे को अपने सियासी फायदे के लिए जिंदा रखना चाहती है।राहुल जस्टिस केएम जोसेफ की टिप्पणी का हवाला दे रहे हैं कि उन्होंने इस डील में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत जांच की गुंजाइश छोड़ी है और इस आधार पर कांग्रेस जेपीसी की जांच की मांग कर रही है।जबकि जस्टिस जोसेफ ने ये टिप्पणी अलग से बिना सरकार की स्वीकृति के सीबीआई के किसी मामले में एफआईआर दर्ज किए जाने को लेकर की है।उन्होंने कहा कि साक्ष्य मिलने पर सीबीआई सरकार की पूर्व अनुमति से एफआईआर दर्ज कर सकती है। कोर्ट में जितनी याचिकाएं और पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गई वे अब तक बिना किसी साक्ष्य के हवा में की गई है।जस्टिस जोसेफ की इस टिप्पणी केबावजुद तीनों जजों ने एकमत से फैसला सुनाते हुए मोदी सरकार को पूरी तरह से क्लीन चिट दी है।वास्तव में देश की सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर काफी सियासत हो चुकी है और अब देश की सुरक्षा को और बेहतर बनाने पर ध्यान देने की जरूरत है।पूर्व वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने फैसले के बाद अपने बयान में कहा भी है किदेश की सुरक्षा को ताक पर रख सियासी फायदे के लिए विवाद को पैदा किया गया।तमाम प्रक्रिया वायुसेना की अगुवाई वाली कमेटी की देखरेख में पूरी की गई।उन्होंने कहा कि विमान की कीमतों को लेकर कहीं भी सरकार का कोई दखल नहीं था ।कीमतें अधिकारियों ने तय की थी और ये कीमतें यूपीए सरकार की तुलना में कम थी।दरअसल राहुल गांधी और कांग्रेस राफेल एयरक्राफ्ट की कीमतों की लड़ाकू राफेल विमान की कीमतों से तुलना कर देश की जनता की आंखों में धूल झोंकने का काम करती रही और इसी पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम सेब की तुलना संतरे से नहीं कर सकते।कोर्ट ने तीनों जजों ने एकमत से कहा कि जहां तक राफेल विमान की कीमत का सवाल है,उपलब्ध साक्ष्य व तथ्यों से हम संतुष्ट हैं।यह कोर्ट का काम नहीं है कि वह राफेल की कीमतों का आकलन करें और कीमत तय करे।सिर्फ इसलिए कि कुछ लोगों ने शंका जताई हो,इस आधार पर कोर्ट इसका आकलन नहीं कर सकता।उपलब्ध दस्तावेज पर गौर करने और अच्छी तरह से जांच के बाद हमारा मानना है कि सेब की तुलना संतरे से नहीं हो सकती।विमान की जो कीमत बताई गई है,वह तुलनात्मक रूप से कम है।विमान में क्या लैस किया जाएगा और क्या नहीं और कीमतों में आगे क्या जोड़ा जाएगा,यह देखना उचित अथाॅरिटी का काम है। इसे लेकर विशेषज्ञों से भी जानकारी ली गई है।पीठ की तीन बड़ी टिप्पणियां,कई सरकारों ने राफेल डील पर बात की ।तब सवाल क्यों नहीं उठे।डील पर विशेषज्ञों की राय ली गई और इसके बाद ही विमान खरीद का निर्णय लिया गया।फैसला लेने की पूरी प्रक्रिया कानूनी आधार पर सही है।इसमें कहीं कोई संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है।इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि हम हवा में जांच के आदेश नहीं दे सकते। रिलायंस के संबंध में कोर्ट ने कहा कि औफसेट पार्टनर चुनने का अधिकार सप्लायर का है और वह उस पर निर्भर करता है कि किसे चुनता है।इसमें कोई और पहलू नहीं है।डील में किसी को फायदा पहुंचाया गया इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं ये बात कोर्ट पूर्व में कह चुका है।फैसले के बाद बीजेपी ने कहा है कि ये केवल सियासी फायदा उठाने के लिए एक ईमानदार पीएम मोदी कि छवि खराब करने का मामला नहीं है । इसे उठाने के लिए राहुल गांधी के पीछे वे ताकते खड़ी हैं जो डील हथियाने में नाकामयाब रही और इसी के चलते कांग्रेस सरकार ने इस डील को सिरे चढ़ाने के बजाय ठन्डे बस्ते में डाल दिया जबकि वायुसेना पिछले तीस सालों से लड़ाकू विमान की मांग कर रही थी।मालूम हो कि डसॉल्ट के बाद इटली की युरो फाइटर बनाने वाली कंपनी के टेंडर लगे थे।जिसे राफेल से ज्यादा कीमतों के चलते डील से हटाया गया था। कुछ लोग कांग्रेस और वामपंथी नेता और उनके समर्थक सवाल कर रहे हैं कि जब बोफोर्स की जांच हो सकती है तो इसकी क्यों नहीं।ये भी कहा जा रहा कि बोफोर्स पर सवाल उठाए गए और इसने कारगिल में अपनी क्षमता दिखाई।इसमें गौर करने वाले तथ्य ये हैं हैं कि बोफोर्स का मामला राजीव गांधी सरकार के रक्षा मंत्री वीपी सिंह ने उठाते हुए इसकी जांच की मांग करते हुए अपना इस्तीफा दिया था।बोफोर्स की कीमत और उसकी क्षमता पर किसी ने भी शुरू से लेकर अंत तक कोई सवाल नहीं उठाया था।सवाल इसमें ली गई घूस को लेकर उठाए गए था।इसकी जांच राहुल के कथित मामा को घूस दिए जाने और उसमें से कुछ राशि कांग्रेस नेताओं को दिए जाने की बात सामने आने और स्वीडन में इसे लेकर बोफोर्स के चार अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के बाद जांच करवाए जाने के आदेश कोर्ट ने दिए थे।जबकि राफेल मामले में सारी बस्ते हवा में हैं।फ़्रांस की कोर्ट में भी ये मामला उठा लेकिन इसमें कुछ गलत नहीं पाया गया।वहां की एक यूनियन इस मामले को कोर्ट में ले गई थी। मदन अरोड़ा 15 नवंबर 2019
अयोध्या में खुदाई करने वाली टीम के सदस्य रहे ए स आई के पूर्व निदेशक पद्मश्री केके मुहम्मद ने कम्युनिस्ट इतिहासकारों का चेहरा बेनाब करते हुए फैसले के बाद कहा कि अब मैं दोषमुक्त महसूस कर रहा हूं।उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने लोगों को बरगलाया।जिससे मामला पेचीदा होता चला गया।वे कहते हैं ,70 के दशक में और उसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश से हुई खुदाई में अयोध्या में मंदिर के अवशेष मिले।अवशेष बताते हैं कि विवादित परिक्षेत्र में कभी भव्य विष्णु मंदिर था।वे मानते हैं कि जिस तरह से मुसलमानों के लिए मक्का मदीना का महत्व है,उसी तरह से आम हिन्दू के लिए राम व कृष्ण जन्मभूमि महत्वपूर्ण है।मुहम्मद कहते हैं अलग अलग कालखंडों में लिखे गए ग्रन्थों भी हमें किसी नतीजे पर पहुंचने में मदद करते हैं।मुगल सम्राट अकबर के कार्यकाल 1556-1605 में अबुल फजल ने आईने अकबरी लिखी।तब मस्जिद वजूद में आ चुकी थी।वे लिखते हैं कि वहां चैत्र महा में बड़ी संख्या में हिन्दू श्रद्धालु पूजा करने के लिए आते थे।जहांगीर के कार्यकाल 1605-1628 में अयोध्या आए ब्रिटिश यात्री विलियम फींस ने भी अपने यात्रा वृतांत में लिखा है कि वहां विष्णु के उपासक पूजा करने आते थे।इसके बाद पादरी टेलर ने भी इस स्थल पर हिन्दुओं के पूजा अर्चना करने का जिक्र किया है ।जबकि नमाज के बारे कुछ नहीं लिखा है। मुहम्मद कहते हैं कि पैगंबर मोहम्मद का अयोध्या से कोई संबंध नहीं मिला और न ही उनके बाद आए चार खलीफाओं का कोई संबंध सामने आया है।किसी अन्य मुस्लिम गुरु ,औलिया का कोई संबंध नहीं मिला है।सिर्फ एक मुगल राजा का नाम ही अयोध्या से जुड़ा है।जो मुसलमानों के लिए उतनी आस्था का विषय नहीं हो सकता।जितना कि हिन्दुओं का राम का नाम जुड़ा होने के कारण। मुहम्मद विवाद बढ़ाने के लिए कम्युनिस्ट इतिहासकारों को जिम्मेदार ठहराते हैं जो गलत तथ्य दे मुस्लिमों को बरगलाते रहे और विवाद को हावय देने का काम किया।वे विवाद बढ़ाने के लिए कम्युनिस्ट इतिहासकार इरफान हबीब,रोमिला थापर और आरएस शर्मा को जिम्मेदार ठहराते हैं। मुहम्मद कहते हैं कि अयोध्या की खुदाई में मानवीय गतिविधियों का कार्यकाल 1200-1300 ईसा पूर्व मिला है।हो सकता है कि अयोध्या में अन्य इलाकों में खुदाई से कार्यकाल और भी ज्यादा पीछे चला जाए।लेकिन,कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने इसी के आधार पर यह साबित करने की कोशिश की , कि अयोध्या में मानवीय गतिविधियों के सबूत ही नहीं मिलते।। समझा जा सकता है कि कम्युनिस्ट इतिहासकार अपनी विचारधारा के चलते देश को कैसा भ्रमित और गुमराह करने वाला इतिहास पढ़ाते आ रहे है।ये कथित इतिहासकार देश में हकीकत से कोसों दूर अपने एजेंडे वाला इतिहास परोसने में लगे हैं। मालूम हो खुदाई के बाद जब केके मुहम्मद ने मस्जिद के नीचे मंदिर के प्रमाण होने की बात कही थी तो इन्हें जान से मारने की धमकियां दी गई थी। मदन अरोड़ा
नई दिल्ली लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'भारत का डिवाइडर इन चीफ' यानी 'प्रमुख विभाजनकारी' बताने वाली मशहूर अंतरराष्ट्रीय पत्रिका टाइम ने अब नतीजों के बाद उन पर एक और आर्टिकल छापा है। 28 मई को टाइम की वेबसाइट पर छपे इस आर्टिकल का शीर्षक 10 मई के मैगजीन के कवर पेज के शीर्षक से बिल्कुल उलट है। ताजा आर्टिकल का शीर्षक है- 'मोदी हैज यूनाइटेड इंडिया लाइक नो प्राइम मिनिस्टर इन डेकेड्स' यानी 'मोदी ने भारत को इस तरह एकजुट किया है जितना दशकों में किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया'। इस आर्टिकल को मनोज लडवा ने लिखा है जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 'नरेंद्र मोदी फॉर पीएम' अभियान चलाया था। आर्टिकल में लिखा गया है, 'उनकी (मोदी) सामाजिक रूप से प्रगतिशील नीतियों ने तमाम भारतीयों को जिनमें हिंदू और धार्मिक अल्पसंख्यक भी शामिल हैं, को गरीबी से बाहर निकाला है। यह किसी भी पिछली पीढ़ी के मुकाबले तेज गति से हुआ है।' आर्टिकल में लडवा ने लिखा है, 'मोदी की नीतियों की कटु और अक्सर अन्यायपूर्ण आलोचनाओं के बावजूद उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल और इस मैराथन चुनाव में भारतीय वोटरों को इस कदर एकजुट किया, जितना करीब 5 दशकों में किसी भी प्रधानमंत्री ने नहीं किया।' पीएम मोदी पर टाइम का यह आर्टिकल मैगजीन के इसी महीने 10 मई के अंक में प्रकाशित पत्रकार आतिश तासीर की कवर स्टोरी से बिल्कुल जुदा है। उसमें तासीर ने लिंचिंग के मामलों और यूपी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने समेत कई बातों को लेकर मोदी सरकार की आलोचना की थी। बीच चुनाव में आए उस अंक ने भारत में काफी सुर्खियां बटोरी। मोदी समर्थकों ने जहां टाइम की कवर स्टोरी की कड़ी आलोचना की, वहीं मोदी विरोधियों ने उसे हाथो हाथ लिखा। पीएम मोदी की तारीफ वाला टाइम का ताजा आर्टिकल उसकी वेबसाइट पर अभी सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले आर्टिकल में टॉप पर है। आर्टिकल में पीएम मोदी का एक विडियो भी लगाया गया है, जिसमें वह इस बात पर जोर देते दिख रहे हैं कि किसी से किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं होगा।
संभावित हार से मोदी विरोधिओं में हाहाकार मचा है और इसका ठीकरा ईवीएम पर फोड़ मोदी की जीत को लेकर देश में भ्रम और उन्माद फैलाने की कोशिशें की जा रही है।एग्जिट पोल को लेकर कहा जा रहा है कि इसकी आड़ में ईवीएम को बदला जाएगा । बड़ा सवाल ये है कि क्या ईवीएम को चुनाव में इनकी जटिल प्रक्रिया के चलते बदला जाना सम्भव है।क्या कांग्रेस भी ईवीएम में बदलाव कर चुनाव जीतती रही है ।एक सवाल यह भी किया जा रहा है कि पिछले पांच सालों में ही इस पर सवाल कजों उठ रहे हैं ।पहले मोदी सरकार में ही इन पर अंगुली क्यों उठ रही है तो जवाब ये है कि क्योंकि ईवीएम पर सवाल उठाने वाले इसी ईवीएम की वजह से सत्ता की मलाई खा रहे थे और बीजेपी चुनाव हार रही थी।बीजेपी ने 2009में इस पर सवाल uthaay लेकिन जब उसे समझा दिया गया तो उसने सवाल उठाना बन्द कर दिया पर वर्तमान में बीजेपी विरोधी पार्टीयां लगातार मिल रही हार को पचा नहीं पा रही हैं और मोदी की जीत को छल कपट की बता अपनी कमजोरी छिपा रही हैं।विपक्ष ईवीएम की जटिल प्रक्रिया के बावजूद फर्जी जानकारियां फैला इस पर सवाल खड़े कर रही हैं।कभी कहा जा रहा है कि 20 लाख ईवीएम चीन से बदलने के लिए मंगवाई गई हैं जबकि भारत के अलावा हमारी तरह की ईवीएम कहीं और बनती ही नहीं है और बदलने के लिए इनमें सारा डाटा,यूनिक नंबर डालना होगा जो पीठासीन अधिकारी की डायरी में नोट होने के साथ ही उम्मीदवारों के पास भी होता है जो किया जाना असंभव है साथ ही मतदान के बाद सभी ईवीएम कड़े सुरक्षा में उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में उनके हस्ताक्षरित सील में बंद की जाती हैं जिनकी सुरक्षा तीन स्तरीय सुरक्षा और सीसीटीवी कैमरे की नजर में होती है।चुनावी प्रक्रिया के दौरान ईवीएम की एक्स्ट्रा और आरक्षित मशीनों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है कार्मिकों का प्रशिक्षण दिया जाता है इस दौरान के वीडियो बना झूठा दावे किए जा रहे हैं कि ईवीएम बदलने के लिए लेजाई जा रही है ये सभी ईवीएम भी स्ट्रॉन्ग रूम में ही रखी जाती हैं।पुलिस ने आजमगढ़ और जोनपुर से दो युवकों को इन्हीं गलत और झूठे दावे कर लोगों को भ्रमित कर उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया है।विचारणीय बिंदु यह है कि बूथों पर कौनसी ईवीएम भेजी जाएगी यह पूर्व निर्धारित नहीं होता।हर ईवीएम का यूनिक नंबर अलग होता है।सभी पीठासीन अधिकारी डायरी में यूनिक नंबर,कितने वोट पोल हुए सभी का ब्यौरा डायरी में लिखता है और यह समस्त जानकारी उम्मीदवारों और चुनाव एजेंट के पास होती है उपयोग में लाई गई ईवीएम की पूरी लिस्ट उम्मीदवार के पास होती है। मतदान खत्म होने के बाद पीठासीन अधिकारी चुनाव एजेंटों के सामने क्लोज बटन दबाकर ईवीएम बन्द कर उस पर सील लगाता है जिस पर सभी के हस्ताक्षर होते हैं और सभी की उपस्थिति में गिनती कर कड़े पहरे में स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है ।गिनतीके लिए ईवीएम को सभी के सामने स्ट्रॉन्ग रूम से निकाला जाता है और जिनके सील पर हस्ताक्षर होते हैं उनके सामने सील को तोड़ा जाता है । ऐसे में इन ईवीएम में कैसे किसी तरह की गड़बड़ी कैसे हो सकती है सोचा और समझने की जरूरत हैmadan arora 22 may 2019
नई दिल्ली, 27 अप्रैल 2019, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कश्मीर को लेकर रुख वही है, जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का था. लेकिन वक्त से हिसाब से परिस्थितियां बदलती हैं. मोदी, अटल की नीति से अलग भी सोच सकते हैं. जहां अटल बिहारी वाजपेयी की नीतियों की प्रशंसा उनके विरोधी भी करते थे, वहीं मोदी हमेशा विपक्षी दलों के निशाने पर रहते हैं. आजतक के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कश्मीर को लेकर मोदी ने दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 'इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत' के सिद्धांत पर ही चलने का वचन दोहराया, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि घाटी के मुट्ठीभर राजनीतिक परिवारों को राज्य को भावनात्मक तौर पर ब्लैकमेल नहीं करने दिया जाएगा. कश्मीर की जनभावना के साथ किसी को भी खिलवाड़ करने नहीं दिया जाएगा. देश के चुनाव में सेना भी नरेंद्र मोदी चुनावी जनसभाओं में कई बार दोहरा चुके हैं कि उनके चुनावी मुद्दे में सेना, सीमा और आतंकवाद का मुद्दा अछूता नहीं रहेगा. तभी प्रधानमंत्री मोदी ने इस इंटरव्यू में खुलकर कहा, 'इस बार भी मेरा मुद्दा गरीबों को घर, गैस, बिजली देने का है. मैं यही बात बोलता हूं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा भी बड़ा मुद्दा है. ये नगर निकाय का चुनाव नहीं है, ये देश का चुनाव है. देश के चुनाव में सेना भी है, सीमा भी है और आतंकवाद भी मुद्दा है.' 370, 35-ए पर रुख स्पष्ट जब पीएम मोदी से सवाल पूछा गया कि बीजेपी के घोषणा पत्र में कहा गया है कि 370 और 35-ए को हटाया जाएगा. तभी पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) की ओर से कहा गया कि इससे कश्मीर भारत से अलग हो जाएगा. क्या इन अनुच्छेदों को संविधान से हटा पाना मुमकिन है? पीएम मोदी ने कड़े शब्दों में कहा, 'ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने का कोई हक ही नहीं है. यह कोई एग्रीमेंट है क्या? जम्मू-कश्मीर हजारों साल से हिंदुस्तान की तपस्या का केंद्र रहा है. हम मानते हैं कश्मीर का सबसे बड़ा नुकसान 370 और 35ए जैसी धाराओं ने किया है. हमने संकल्प पत्र में इन धाराओं को लेकर अपनी नीति स्पष्ट की है.' प्रधानमंत्री ने कहा, 'कश्मीर को लेकर पहले से समझ है. इसके लिए 5 साल शासन में रहने की ज़रूरत नहीं.' मोदी ने ये बात उस सवाल के जवाब में कही जब उनसे पूछा गया कि क्या 2014 से केंद्र की सत्ता में होने के बाद क्या आपको समझ आया कि कश्मीर मुद्दे को डील करने के लिए सबसे अच्छा रास्ता कौन सा है.. पीडीपी के साथ जाना महामिलावट पीएम मोदी ने इस मौके पर जम्मू कश्मीर में सांगठनिक जिम्मेदारी के तहत बिताए अपने दिनों को याद किया. मोदी ने कहा, 'मैं वहां संगठन के लिए काम करता था. मैं राज्य के हर जिले का दौरा करने वाला रहा. इसलिए मैं वहां के बारे में अच्छी तरह जानता हूं.' हालांकि, प्रधानमंत्री ने राज्य में अस्थिरता के लिए घाटी के राजनीतिक परिवारों के दोहरी भाषा बोलने के लिए जिम्मेदार ठहराया. मोदी ने कहा, मुट्ठीभर परिवारों ने जम्मू कश्मीर को इमोशनल ब्लैकमेलिंग करने का रास्ता चुना हुआ है. मोदी ने बीजेपी और पीडीपी के जम्मू और कश्मीर में रहे पूर्व गठबंधन को धुर विरोधी विचारधाराओं की ‘महामिलावट’ का नाम दिया. मोदी ने कहा, 'मुफ्ती साहब के वक्त हमें उम्मीद थी, लेकिन वह हमारी महामिलावट थी. तेल और पानी का मिलन था. और वो हमने कहकर किया कि हम दो अलग-अलग ध्रुव है, हमारा कोई मेल नहीं बैठेगा. लेकिन जनादेश ऐसा था कि साथ मिले बिना कोई चारा नहीं था. लोकतंत्र का तकाजा आया तो हमने छोड़ भी दिया.” इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत मोदी ने कश्मीर की जटिल समस्या को सुलझाने के लिए दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सिद्धांत को ही सबसे अच्छा रास्ता बताया. मोदी ने कहा, सिर्फ अटल जी का फॉर्मूला ही कारगर हो सकता है- ‘इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत.’ लेकिन प्रधानमंत्री ने साथ ही घाटी के हाई प्रोफाइल परिवारों पर पूरे राज्य को भावनात्मक ब्लैकमेल करने का आरोप भी लगाया. प्रधानमंत्री ने जम्मू और कश्मीर की मुख्य धारा की पार्टियों को चुनौती के लहजे में कहा कि वे श्रीनगर और दिल्ली में एक ही सुर में बोलने की हिम्मत दिखाएं. मोदी ने कहा, मुट्ठी भर परिवार हैं जो कश्मीर में एक भाषा बोलते हैं और दिल्ली में आकर दूसरी बात करते हैं. ये दोगलापन उजागर करना मेरा काम है और मैं कर रहा हूं. उनमें ये हिम्मत होनी चाहिए कि जो कश्मीर में बोलें वही दिल्ली में आकर भी बोलें. वे दो भाषा बोल रहे हैं और एक्सपोज हो रहे हैं. पीएम का दावा महंगाई रुकी प्रधानमंत्री मोदी ने इंटरव्यू में कहा कि उनके कार्यकाल में महंगाई का ना बढ़ना मजबूत अर्थव्यवस्था का प्रतीक है. 2014 में यूपीए के सत्ता से बाहर होने में महंगाई दर का ऊंचा होना भी एक अहम कारण था. मोदी ने नोटबंदी और गुड्स एवं सर्विस टैक्स (GST) के अमल पर सरकार की आलोचना को खारिज किया. अर्थव्यवस्था के मौजूदा प्रबंधन को लेकर मोदी ने कहा, ‘मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं.’ मोदी ने कहा, 'आप 2014 पर लौटकर देखिए तो महंगाई सुर्खियां बनती थीं. आज मंहगाई की चर्चा ही नहीं है.' प्रधानमंत्री ने हैरानी जताई कि विपक्ष से कभी नहीं पूछा जाता कि कैसे मौजूदा सरकार ने पांच साल के कार्यकाल में महंगाई को काबू में रखा. मोदी ने कहा, 'आप कांग्रेस से कभी नहीं पूछते कि 2014 के बाद कीमतों में कैसे गिरावट आई. पूछा जाता तो उनके लिए जनता के सामने झूठ बोलना बड़ा मुश्किल होता.' बदल गईं 'दीदी' हाल में अभिनेता अक्षय कुमार को दिए इंटरव्यू में मोदी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से उन्हें कुर्ते गिफ्ट में देने का जिक्र किया था. मोदी ने कहा कि व्यक्तिगत संबंध और व्यवहार अलग बात होती है और राजनीतिक विचारधारा की लड़ाई अलग. मोदी ने इस संबंध में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के ब्लॉग का जिक्र किया. मोदी ने कहा, 'आडवाणी जी ने बहुत अच्छा ब्लॉग लिखा. हम किसी को अपना दुश्मन नहीं समझते और यही हमारी मूल चरित्र है.' मोदी ने ममता बनर्जी में आए बदलाव पर हैरानी जताते हुए 2009 के दिनों को याद किया कि किस तरह वे अवैध बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने की बात करती थीं. साथ ही हिंसा के खिलाफ़ आह्वान करती थीं और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन के तहत चुनाव की मांग करती थीं. मोदी ने कहा, 'अब वही ममता दीदी हैं. वहां चुनाव में आए दिन हत्याएं हो रही हैं. इस पर मुझे हैरानी होती है कि कौन सी ममता दीदी हैं. ये चिंता की बात है. वे इतना बदल जाएंगी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. मैंने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि ममता जी को लेकर मेरा आकलन गलत निकला.' साध्वी प्रज्ञा के समर्थन में पीएम प्रधानमंत्री ने भोपाल से बीजेपी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को लेकर पूछे सवाल पर खुद के गुजरात सीएम रहते हुए अपने पर लगाए आरोपों का हवाला दिया. मोदी ने कहा, 'मुझ पर इतने आरोप लगे थे और एक हवा बना दी गई थी. अगर तब के अखबार, ऑनलाइन मीडिया निकालोगे तो मेरे खि‍लाफ लाखों पेज पाओगे. और उसी के प्रभाव में अमेरिका ने मुझे वीजा देने से इनकार कर दिया था. लेकिन जब सच सामने आया तो वही अमेरिका मुझे न्योता देने के लिए सामने आया. ये झूठ फैलाने का कांग्रेस का मॉडस आपरेंडी है.' प्रधानमंत्री ने साध्वी प्रज्ञा के लिए कहा कि कोर्ट ने भी कह दिया है कि वे चुनाव लड़ सकती हैं. मोदी ने कहा, 'हिन्दू आतंक का नाम देकर भारत की जो हजारों साल की विरासत है उसे बदनाम किया गया. इसे सामने से ललकारना है. जैसे कि उन्होंने चौकीदार को चोर कहा. मैंने चौकीदार बनकर सामने से ललकारा. इनका मुंह तभी बंद होगा.' विरोधियों का फोकस ईवीएम की ओर मुड़ा प्रधानमंत्री ने कहा कि तीन चरण के मतदान के बाद उनके विरोधियों का फोकस ईवीएम की ओर हो गया है. मोदी ने कहा, तीन चरण के मतदान के बाद उनकी बंदूक की नोक जो है बदल गई है. अब उनकी गालियां ईवीएम को जा रही हैं. मैं ईश्वर का आभारी हूं कि अब गालियां 50%-50% हो रही हैं. 50% मोदी को और 50% ईवीएम को. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंडिया ने इंडिया टुडे को ये इंटरव्यू शुक्रवार को वाराणसी लोकसभा सीट से अपना नामांकन भरने वाले दिन दिया.
नई दिल्ली, काशी से दूसरी बार चुनावी मैदान में उतरे पीएम मोदी ने आज तक से खास बातचीत की. राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर 2019 चुनाव लड़ने की बात पर पीएम ने यह सवाल कांग्रेस से पूछने के लिए कह दिया. मोदी ने बातचीत में कहा कि अगर मेरा भाषण 40 मिनट का है तो उसमें 3 से 4 मिनट राष्ट्र सुरक्षा पर बात होती है. बाकी समय में रोजगार, किसान, इंफ्रास्ट्रक्चर पर बातें करता हूं. मीडिया टीआरपी के लिए इसे मुद्दा बनाती है. मोदी ने कहा कि सेना का हतोत्साहित करके देश को कांग्रेस कैसे आगे बढ़ाएगी. वह आज तक के News Director राहुल कंवल से बात कर रहे थे. मोदी ने कहा कि 2008 में मुंबई हमला, सीआरपीएफ, जयपुर, पुणे में हुए हमले के वक्त विपक्ष सो रहा था. वे आंतक के खिलाफ क्यों नहीं खड़े हुए. मोदी ने कहा कि श्रीलंका में ईस्टर के दिन जो घटना हुई वह दुखद है. हम आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वालों में से हैं. हम आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने वालों में से हैं. उनसे डरने वाले नहीं हैं. मोदी ने कहा कि भारत से कुछ लोग पाकिस्तान दोस्ती के लिए जाते हैं. पाकिस्तान से कहा जाता है कि मुझे हटा दो सब ठीक हो जाएगा. अब पाकिस्तान मुझे हटाने के बारे में सोचेगा, ऐसा नहीं होगा. वहीं, एग्जीक्यूटिव एडिटर और एंकर श्वेता सिंह के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में पीएम मोदी ने चुनाव में राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ज्यादा बात करने पर भी जवाब दिया. 2014 का चुनाव रोजगार, विकास जैसे मुद्दों पर था, लेकिन आज जो चुनाव प्रचार हो रहा है, वो मुख्य रूप से राष्ट्रवाद पर केंद्रित हो गया है, ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में पीएम मोदी ने कहा कि इस बार भी मेरा मुद्दा गरीबों को घर, गरीबों को गैस, गरीबों को बिजली ही है. मैं हर बार वही बात बोलता हूं, लेकिन, राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा है. ये कोई म्यूनिसिपैलिटी का चुनाव नहीं है. ये पूरे देश का चुनाव है. इसमें सेना भी है, सीमा भी है और आतंकवाद भी है. कोई इससे मुंह नहीं छिपा सकता. इसीलिए चुनाव में इसकी चर्चा होती है.

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