taaja khabar..के. कविता ने केजरीवाल-सिसोदिया के साथ मिलकर शराब नीति में कराया बदलाव', ईडी का बड़ा दावा..फिर से मोदी' के नारों से गूंजा कोयंबटूर, फूलों की बारिश के बीच प्रधानमंत्री ने किया रोड शो..लोकसभा चुनाव में संतों को प्रतिनिधित्व की मांग

स्वास्थ्य

हेल्दी डाइट लेने के बाद भी कुछ लोगों को कमजोरी महसूस होती है। इसके पीछे शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। मोटापा, कैंसर, दिल की बीमारी, हड्डियों की कमजोरी, ना जाने कितनी ही बीमारियां न्यूट्रिशन की कमी से पैदा हो सकती हैं। आयुर्वेद का एक देसी चूर्ण इन सभी समस्याओं को खत्म कर सकता है। आयुर्वेदिक एक्सपर्ट डॉ. रोबिन शर्मा ने बताया कि इस चूर्ण में एंटीऑक्सीडेंट्स, न्यूट्रिशन और डिटॉक्सिफाइंग प्रॉपर्टीज पाई जाती हैं। जिससे स्किन और हेयर हेल्थ सुधरती है। यह पाउडर मोरिंगा के पत्तों से बनाया जाता है। ताकत देने वाला यह चूर्ण आटे में मिलाकर हफ्ते में 3 बार खाया जा सकता है। भूल जाएंगे कमजोरी डॉ. रोबिन ने बताया कि हफ्ते में 3 बार ये पाउडर लेना शुरू कर दें। मोटापा आपको छू भी नहीं पाएगा। दर्द पास नहीं फटकेगा और कमजोरी का नाम तक भूल जाएंगे। आयुर्वेद में इसे वात और कफ दोष को शांत करने वाला बताया है। यह पॉलीफेनोल से भरपूर है, जो लिवर को डिटॉक्सिफाई करता है और लिवर की कमजोरी मिटाता है। मिल जाएंगे सारे न्यूट्रिशन अगर खाना खाने के बाद भी कमजोरी रहती है तो इसका मतलब ताकत देने वाला पोषण नहीं मिल रहा है। इसमें प्रचुर मात्रा में आयरन होता है, जिस वजह से खून की कमी खत्म होती है। विटामिन ए, सी, बी1, बी2, बी3, बी6, फोलेट, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस, जिंक सभी पाए जाते हैं। डॉ. ने कहा कि इसे लेने के बाद किसी भी तरह की न्यूट्रिशनल डेफिशिएंसी से होने वाले रोग दूर होते हैं। कैंसर और डायबिटीज का इलाज मोरिंगा पाउडर में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, इसलिए यह कैंसर से बचाता है। इसे लेने से बढ़ती उम्र का प्रभाव धीमा हो जाता है। आइसोथायोसाइनेट होने की वजह से यह ब्लड शुगर लेवल कम करता है। इसलिए डायबिटिक पेशेंट आराम से इसका सेवन कर सकते हैं। दिल के लिए बेहद फायदेमंद मोरिंगा पाउडर हार्ट हेल्थ को सुधारता है। यह गंदा कोलेस्ट्रॉल बनना रोकता है, ब्लड प्रेशर कम करने वाले गुण देता है। दिल के मरीज इसे लेकर बीमारी को गंभीर बनने से बच सकते हैं। हड्डियों में भरेगा जान कैल्शियम और फास्फोरस होने के चलते इससे हमारी हड्डियों को ताकत मिलती है। इसमें एंटी इंफ्लामेटरी प्रॉपर्टीज होती हैं जो आर्थराइटिस के रोगियों को दर्द से निजात दिला सकती हैं। कुल मिलाकर हड्डियों के लिए यह बेहतरीन सप्लीमेंट है। मोरिंगा पाउडर लेने की सही मात्रा मोरिंगा पाउडर एक बार में अधिक से अधिक 4 से 5 ग्राम ही सेवन करना चाहिए। इसकी अधिकता सीने में जलन शुरू कर सकती है। आयुर्वेद के मुताबिक बहुत ज्यादा खाने से आंखों को नुकसान पहुंच सकता है। यह पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या भी घटाता है। डॉ. के मुताबिक मगर ये नुकसान सिर्फ और सिर्फ ज्यादा सेवन करने पर होते हैं। डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
किचन का धुआं शरीर के लिए आफत बन रहा है, चाहे वो मिट्‌टी का चूल्हा हो या एलपीजी से जलने वाला चूल्हा। इनसे न सिर्फ फेफड़े, बल्कि दिल और दिमाग भी बीमार हो रहे हैं। और तो और घर में मच्छरों को भगाने वाली क्वॉइल भी जाने-अनजाने जानलेवा बन रही है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक क्वॉइल 100 सिगरेट पीने जितनी खतरनाक है। हाल ही में IIT मंडी की एक रिसर्च में पारंपरिक तरीके से खाना बनाने के तरीके के नुकसान पर बात की गई है। इसके मुताबिक लकड़ी और उपले के इस्तेमाल से खाना बनाने में जो धुआं निकलता है, उससे इनडोर पॉल्यूशन होता है। चूंकि गांवों में आज भी आमतौर पर महिलाएं खाना बना रही हैं तो उनकी सेहत पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ता है। वहीं, एलपीजी से जलने वाले चूल्हे से भी वायु प्रदूषण की बात कही गई है। इसके चलते रेस्पिरेटरी डिजीज, कार्डियोवैस्कुलर डिजीज और लंग कैंसर का खतरा बढ़ रहा है। आज ‘सेहतनामा’ में जानेंगे कि खाना बनाते समय चूल्हे से निकलने वाले धुएं का हमारी सेहत पर क्या असर पड़ता है। साथ ही जानेंगे- -एलपीजी गैस से कैसे नुकसान हो सकते हैं? -मॉस्किटो क्वॉइल कितनी खतरनाक है? -किन गंभीर बीमारियों का बढ़ रहा जोखिम? -इनसे बचने के लिए क्या कर सकते हैं? आमतौर पर लोग सिगरेट के धुएं और वायु प्रदूषण को सेहत के लिए हानिकारक मानते हैं, लेकिन हमारा किचन भी कम बीमारियां नहीं देता है। गांव या दूर दराज के इलाकों में खाना बनाने के लिए इस्तेमाल हो रही लकड़ी और उपले से निकलने वाला धुआं धीरे-धीरे हमें मौत की तरफ ले जाता है। वहीं एलपीजी गैस को जलाने से निकल रहीं कई खतरनाक गैस भी गंभीर बीमारियों की वजह बनती हैं। इन्हें लेकर कई रिसर्च भी सामने आई हैं। आइए विस्तार से समझते हैं। रिसर्च में खुलासा-कितना खतरनाक है ये धुआं रिसर्च के मुताबिक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों जैसे- असम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश के लोगों को सांस, कैंसर और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा ज्यादा है, क्योंकि दूर-दराज के इलाकों में एलपीजी या दूसरे कम नुकसानदेह ईंधनों की पहुंच उतनी सुलभ नहीं है। ऐसा नहीं है कि एलपीजी के धुएं से कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन आईआईटी मंडी के रिसर्चर्स ने अपनी शोध में पाया है कि लकड़ी या उपलों से निकले वाला धुआं इसकी अपेक्षा 57 गुना अधिक नुकसानदायक है। इस रिसर्च के मुताबिक पूर्वोत्तर राज्यों में आज भी 50% आबादी खाना बनाने के लिए पारंपरिक ईंधनों पर ही निर्भर है। इसके चलते इन घरों में बेहद हानिकारक गैस एयरोसोल की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। यह सीधे श्वसन तंत्र और फेफड़ों को प्रभावित कर रही है। रिसर्च के मुताबिक एयरोसोल गैस का 29 से 79 फीसदी हिस्सा श्वसन तंत्र में ही जमा हो जाता है। इससे फेफड़ों को नुकसान पहुंचने का खतरा बढ़ जाता है। इससे बचाव किया जा सकता है। एलपीजी गैस के धुएं से होते ल्युकेमिया और लिंफोमा जैसे कैंसर स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के मुताबिक एलपीजी गैस के चूल्हों से कई हानिकारक गैस निकलती हैं। इनसे सांस की बीमारियों के अलावा भी कई खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं। इनसे ल्युकेमिया और लिंफोमा जैसे कैंसर होने का भी खतरा होता है। रिसर्च के मुताबिक एलपीजी गैस के चूल्हे का एक नॉब अगर 45 मिनट तक खुला रहता है तो इससे इतनी बेंजीन गैस निकलती है, जो एक सिगरेट के धुएं से निकलने वाली बेंजीन से कहीं ज्यादा होती है। क्या है कार्सिनोजेन, कितना खतरनाक? कार्सिनोजेन एक एक ऐसा सब्सटेंस है जो कैंसर का कारण बन सकता है। ये आमतौर पर सूरज की रोशनी में पराबैंगनी किरणों में होते हैं। इसके अलावा गाड़ियों से निकलने वाले धुएं और सिगरेट के धुएं में भी कार्सिनोजेन होता है। चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के पूर्व असिस्टेंट डायरेक्टर डॉ. मानस रंजन रे के मुताबिक ये खतरनाक सब्सटेंस लकड़ी और उपलों को जलाने पर निकलने वाले धुएं में भी होते हैं। डॉ. रे के मुताबिक लकड़ी के जलावन वाले चूल्हे में 4 घंटे तक खाना पकाया जाए तो इससे निकलने वाला धुआं 10 से 100 सिगरेट के धुएं जितना खतरनाक होता है। इससे इनडोर पॉल्यूशन होता है, जिसके चलते घर में रह रहे लोगों की सेहत खतरे में पड़ती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी जताई चिंता विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की मौत प्रदूषण से होती है। यह प्रदूषण वातावरण या हमारे किचन और मॉस्किटो क्वॉइल की वजह से भी हो सकता है। इससे मौतों के कई मामले सामने आ रहे हैं। इसमें WHO ने अस्थमा के अलावा अन्य 5 गंभीर बीमारियों को जिम्मेदार माना है। निमोनिया निमोनिया वैसे तो आम समस्या है, लेकिन इसे समय पर नियंत्रित न किया जाए तो वायु प्रदूषण के चलते काफी जोखिम भरा हो सकता है और मौत की वजह भी बन सकता है। स्ट्रोक हाल के वर्षों में स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसके पीछे वायु प्रदूषण है। इसमें अगर घर का भी प्रदूषण शामिल हो जाए तो यह और खतरनाक हो सकता है। लंग कैंसर फेफड़ों के कैंसर को आमतौर पर सिगरेट के धुएं से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इस बीच हम चूल्हे से निकल रहे धुएं पर ध्यान ही नहीं दे पाते हैं। हृदय रोग आपके घर में हो रहा वायु प्रदूषण भी हृदय रोग के जोखिम को बढ़ा रहा है। ज्यादा देर तक किचन में रहने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जो आपके हृदय, मस्तिष्क और अन्य अंगों के लिए खतरा बनता है। इससे दिल का दौरा पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। स्किन संबंधी परेशानी प्रदूषण के कारण स्किन से जुड़ी परेशानियां होने का खतरा भी बढ़ रहा है। चूंकि छोटे बच्चों की स्किन अधिक मुलायम और रिएक्टिव होती है तो उनमें इस तरह की समस्या काफी ज्यादा देखी जाती है। स्किन पर रैशेज, खुजली होने की आशंका रहती है। इसके अलावा स्किन कैंसर जैसी गंभीर समस्या भी हो सकती है। एक मॉस्किटो क्वॉइल से 100 सिगरेट के बराबर धुआं निकलता है ऐसा नहीं है कि सिर्फ चूल्हे से निकलने वाला धुआं ही हानिकारक है। अगर घर पर मच्छरों को भगाने के लिए क्वॉइल जलाते हैं तो आप कई बीमारियों को बुलावा दे रहे हैं। डॉ. रे के मुताबिक एक क्वॉइल जलाने से 100 सिगरेट के बराबर धुआं निकलता है। गौरव तिवारी
डायबिटीज के मरीजों को अपनी डाइट का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है। क्योंकि खान-पान के प्रति उनकी लापरवाही उन पर काफी भारी पड़ सकती है। अमूमन ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के समय तो ये लोग डाइट को सीरियस फॉलो करते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी इन्हें स्नैक्स के समय होती है। स्नैक्स के समय क्या खाएं, इसे लेकर इनमें सबसे बड़ा कंफ्यूजन बना रहता है।डायबिटीज के पेशेंट्स के लिए स्नैक्स के टाइम हेल्दी ऑप्शन का चुनाव करना इसलिए मुश्किल होता है, क्योंकि स्नैक्स के ज्यादातर ऑप्शन में कार्ब्स अधिक होता है जिससे शुगर लेवल स्पाइक होता है। इसलिए डायबिटीज के मरीजों को ऐसे स्नैक्स का चुनाव करना चाहिए जो फाइबर, प्रोटीन और हेल्दी फैट्स से भरपूर हो। यही वजह है इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे हेल्दी स्नैक्स के ऑप्शन बताएंगे, जिन्हें फॉलो कर आप डायबिटीज को कंट्रोल में रख सकते हैं। सेब और आलमंड बटर शाम के समय स्नैक्स में ग्रीन टे के साथ सेब को कट करके आलमंड बटर के साथ ले सकते हैं। सेब फाइबर से भरपूर होता है और आलमंड बटर में हेल्दी फैट और प्रोटीन होता है। इसका सेवन करने से लंबे समय तक पेट भरा महसूस होगा। साथ ही शुगर लेवल नियंत्रण में रहेगा। बेरीज के साथ ग्रीक योगर्ट स्नैक्स के रूप में बेरीज के साथ ग्रीक योगर्ट भी एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है। ग्रीक योगर्ट में उच्च मात्रा में प्रोटीन होने के साथ कार्ब की बहुत कम मात्रा होती है। वहीं, बेरीज में फाइबर के साथ नेचुरल स्वीटनर होता है, जो शुगर के स्तर को बढ़ने नहीं देता है। गाजर के साथ हम्मस गाजर फाइबर से भरपूर कम कैलोरी वाला फूड है। वहीं, हम्मस में प्रोटीन और हेल्दी फैट शामिल होते हैं। ऐसे में गाजर की स्लाइस के साथ हम्मस का सेवन करें। स्नैक्स की इस रेसिपी से न सिर्फ आपको पोषण मिलता है, बल्कि क्रेविंग्स भी शांत होंगी। मिक्स्ड नट्स स्नैक्स के तौर पर एक मुट्ठी नट्स का सेवन कर सकते हैं। नट्स में बादाम, अखरोट और काजू का सेवन करें। इनमें हेल्दी फैट, प्रोटीन और फाइबर होता है, जिस वजह से डायबिटीज पेशेंट्स के लिए यह परफेक्ट स्नैक माना जाता है। हालांकि, इसका सेवन करते समय कितनी मात्रा में इसका सेवन कर रहे हैं, इस बात का ध्यान जरूर रखें। एवोकाडो टोस्ट शुगर कंट्रोल में रखने के लिए एवोकाडो टोस्ट भी नाश्ते के बेहतर विकल्प में से एक है। बता दें कि एवाकाडो में मौजूद फाइबर और हेल्दी फैट शुगर के स्तर को नियंत्रण में रखने में सहायक होते हैं। डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
दुनिया की सबसे घातक बीमारियों में से एक है कैंसर। किसी माइथॉलाजिकल कहानी के शाप की तरह इसका मरीज तिल-तिल कर मरता है। आखिरी स्टेज में स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि सबसे करीबी लोग भी मौत को मुक्ति मान लेते हैं। अगर समय पर पता न चले तो कैंसर पीड़ित का घर आर्थिक और मानसिक रूप से तबाह हो जाता है और अंत में जान भी नहीं बचती। आखिर यह बीमारी होती कैसे है? पहले इसे आसान भाषा में समझ लेते हैं। कैंसर कोशिकाओं यानी सेल्स के असामान्य तरीके से बढ़ने पर होता है। आमतौर पर हमारे शरीर में कोशिकाएं एक पैटर्न में नियंत्रित तरीके से बढ़ती हैं और एक समय के बाद खुद ही नष्ट हो जाती हैं। इन मृत कोशिकाओं की जगह ले लेती हैं नई और हेल्दी कोशिकाएं। जब कैंसर होता है, तो कोशिकाओं का कंट्रोलिंग इफेक्ट खत्म हो जाता है। ऐसे में ये अनियंत्रित तरीके से कई गुना बढ़ जाती हैं। कैंसर कहां हुआ है, वह कितना ज्यादा बढ़ चुका है, इन सबके आधार पर इसे चार स्टेज में बांटा जा सकता है। ट्रीटमेंट का तरीका भी स्टेज के हिसाब से ही तय होता है। बीमारी का पता जितनी जल्दी चलता है, मरीज के ठीक होने की संभावना भी उतनी ही ज्यादा होती है। साथ ही इलाज में पैसे भी कम खर्च होते हैं। इसके लिए बेस्ट ऑप्शन है रेगुलर स्क्रीनिंग। आज हम 'सेहतनामा' में इसके बारे में जानेंगे। भारत में बढ़ रहे कैंसर से मौत के मामले दुनिया में सबसे अधिक मौतों का कारण बनने वाली बीमारियों में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज पहले नंबर पर है। उसके बाद दूसरे नंबर पर कैंसर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में कैंसर ने करीब एक करोड़ लोगों की जान ले ली। यानी दुनिया में हर 6 मौतों में से एक मौत कैंसर से हुई। भारत में भी कैंसर से होने वाली मौतों का आंकड़ा, वैश्विक आंकड़ों से खास अलग नहीं। यूनियन हेल्थ मिनिस्टर मनसुख मंडाविया ने बीते साल राज्यसभा में इससे संबंधित आंकड़े जारी किए थे। उन्होंने ICMR के हवाले से बताया था, साल 2020 में कैंसर से मरने वाले मरीजों की संख्या 7 लाख 70 हजार थी। जो साल 2021 में 7 लाख 79 हजार और साल 2022 में 8 लाख 8 हजार पहुंच गई। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी इस दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रही है। इस सोसाइटी में कैंसर स्क्रीनिंग के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट रॉबर्ट स्मिथ बताते हैं, "कैंसर स्क्रीनिंग के नतीजे तब सबसे अच्छे आते हैं, जब इसे सही गाइडलाइंस के अनुसार नियमित तौर पर किया जाए।" कैसे घट सकती हैं कैसर से होने वाली मौतें? इन आंकड़ों में तेजी से कमी आ सकती है। बस समय-समय पर स्क्रीनिंग टेस्ट करवा लिए जाएं। नियमित कैंसर जांच का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जो कैंसर छोटे होते हैं और बिना किसी लक्षण के होते हैं, उनका पता शुरुआती स्टेज में ही चल जाता है और ट्रीटमेंट भी अधिक सफल रहता है। इसके लिए जानना जरूरी है कि किस जेंडर और किस उम्र में कौन से स्क्रीनिंग टेस्ट करवाने हैं। इसके लिए हम कुछ आंकड़ों का सहारा भी ले सकते हैं। डॉक्टर्स भी इसके अनुसार ही सलाह देते हैं। जैसे भारत में ब्रेस्ट, ओरल और लंग कैंसर के सबसे ज्यादा मरीज मिलते हैं। उसमें भी पुरुषों और महिलाओं में होने वाले कैंसर के टाइप में फर्क है। डॉक्टर रजत साहा इस बारे में बताते हैं, 'महिलाएं स्तन, गर्भाशय और पित्ताशय कैंसर का शिकार अधिक होती हैं। वहीं, पुरुषों में फेफड़े और गले का कैंसर ज्यादा देखा जाता है।' डॉ. साहा दिल्ली में मैक्स सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के मेडिकल ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के एसोसिएट डायरेक्टर हैं। कैंसर स्क्रीनिंग महंगी तो सब क्यों करवानी? कैंसर स्क्रीनिंग करवाना दूसरी जांचों से महंगा पड़ता है। इसलिए जरूरी नहीं है कि आप स्क्रीनिंग करवाएं। थोड़ी सी समझदारी दिखाएं तो कम खर्च में हमारे मतलब का काम हो जाएगा। आपका काम आसान करने के लिए कुछ आंकड़ों की मदद से हमने टॉप 6 स्क्रीनिंग टेस्ट की लिस्ट तैयार की है। इतनी ही स्क्रीनिंग आपको बड़ी मुसीबत से बचा सकती हैं। आइए इन्हें सिलसिलेवार तरीके से समझने की कोशिश करते हैं। मैमोग्राम इस स्क्रीनिंग में स्तन की एक्स-रे तस्वीर ली जाती है। फिर डॉक्टर स्तन कैंसर के शुरुआती लक्षणों को समझने के लिए उसका विश्लेषण करते हैं। नियमित तौर पर मैमोग्राम कराने से डॉक्टरों को स्तनों में आ रहे बदलावों की तुलना करने का मौका मिलता है। इससे स्तन कैंसर का समय से पहले पता लगाने में आसानी होती है। कभी-कभी कैंसर के सामान्य लक्षण दिखने से तीन साल पहले तक भी इसका पता चल जाता है। सर्वाइकल कैंसर का पता कैसे लगाएं? सर्वाइकल कैंसर का जल्द पता लगाने या इसे समय पर रोकने के लिए हम इन दो टेस्ट का सहारा ले सकते हैं। इसके लिए डॉक्टर गर्भाशय के निचले हिस्से यानी सर्विक्स के आस-पास के एरिया से कोशिकाओं को इकट्ठा करते हैं। फिर सैंपल को टेस्ट के लिए भेजा जाता है। एचपीवी टेस्ट यह टेस्ट ह्यूमन पेपिलोमावायरस का पता लगाता है, जो सर्विक्स की कोशिकाओं में बदलाव लाता है। यदि एचपीवी अपने आप ठीक नहीं होता, तो यह कैंसर का कारण बन सकता है। पैप स्मीयर टेस्ट इस टेस्ट से सर्विक्स में होने वाले कोशिका परिवर्तन का पता लगाया जाता है। अगर उन बदलावों का समय पर इलाज न किया जाए तो यह सर्वाइकल कैंसर में बदल सकता है। आमतौर पर यह समस्या 18 साल की उम्र के बाद ही आती है। यह टेस्ट आपको कब करवाना चाहिए, इसके लिए डॉक्टर से सलाह जरूर लें। कोलोरेक्टल स्क्रीनिंग इस टेस्ट की सलाह आमतौर पर 45 से 75 साल की उम्र के लोगों को दी जाती है। यू.एस. प्रिवेंटिव सर्विसेज टास्क फोर्स (USPSTF) की सलाह है कि यह टेस्ट इस उम्र में महिलाओं और पुरुषों दोनों को करवाना चाहिए। जिनकी उम्र 75 पार कर गई है और कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा महसूस हो रहा है, उन्हें टेस्ट से पहले डॉक्टर से बात करनी चाहिए। इसमें फ्लेक्सिबल सिग्मायोडोस्कोपी, स्टूल टेस्ट (मल परीक्षण) और कोलोनोस्कोपी को अमूमन प्रिवेंटिव स्क्रीनिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं। कोलोनोस्कोपी में डॉक्टर पॉलीप्स या कैंसर के लिए टेस्ट करते हैं। अगर डॉक्टर को इस दौरान पॉलीप्स या कैंसर का पता लग जाता है, तो उसी वक्त उसे हटा भी सकते हैं। प्रॉस्टेट कैंसर स्क्रीनिंग इसमें प्रॉस्टेट स्पेसिफिक ब्लड टेस्ट किया जाता है, जो PSA का पता लगाता है। यह प्रॉस्टेट ग्लैंड में कोशिकाओं द्वारा बनाया गया एक खास प्रोटीन है। PSA का लेवल जितना ज्यादा होगा, प्रॉस्टेट कैंसर होने की आशंका उतनी ही ज्यादा होगी। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के मुताबिक, किसी व्यक्ति का PSA लेवल 4 ng / ml या उससे ज्यादा है तो उसे स्क्रीनिंग करानी चाहिए। जबकि कई डॉक्टरों और संस्थाओं का मानना है कि PSA लेवल 2.5 या 3 का लेवल पार होने पर ही स्क्रीनिंग शुरू कर देनी चाहिए। इसे ग्राफिक में आसान भाषा में समझें- लंग कैंसर स्क्रीनिंग USPSTF की मानें तो अगर आप बीस साल तक रोजाना एक पैकेट सिगरेट पीते हैं। या फिर लगातार 10 साल से रोज दो पैकेट सिगरेट पी रहे हैं तो आपको लंग कैंसर का पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग करवानी चाहिए। अगर आपकी उम्र 50 से 80 साल के बीच है और आप अभी स्मोक करते हैं या फिर बीते 15 साल के भीतर ही सिगरेट छोड़ी है तो भी आपको स्क्रीनिंग करवानी चाहिए। इसकी स्क्रीनिंग में लो-डोज कंप्यूटेड टोमोग्राफी (LDCT) स्कैन किया जाता है। कम से कम समय में एक्स-रे मशीन आपके फेफड़ों का फोटो लेती है। जिसका इवैल्युएशन किया जाता है। हमने 6 सबसे कॉमन स्क्रीनिंग्स के बारे में आपको बताया। यदि आप इनकी गाइडलाइंस को फॉलो करते हुए स्क्रीनिंग करवाते हैं तो बड़े खतरे को टाल सकते हैं। फैमिली के लिए भी सेफ और हेल्दी फ्यूचर तैयार करते हैं।
अंकुरित अनाज के फायदों के बारे में तो सभी जानते हैं कि इसमें हाई प्रोटीन होता है और यह ताकत देता है। लेकिन इसके और भी कई चमत्कारी फायदे हैं। अंकुरित अनाज का सेवन आपको हार्ट प्रॉब्लम और खून की कमी जैसी कई गंभीर समस्याओं से बचा सकता है। अंकुरित अनाज एक विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों को प्राप्त करने का एक बेहतरीन स्त्रोत है। अंकुरित अनाज में प्रोटीन और अमीनो एसिड की अधिक मात्रा होती है, जो मांसपेशियों को मजबूत बनाए रखने के साथ कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है। ब्लड शुगर कंट्रोल होता है अंकुरित अनाज का सेवन डायबिटीज वालों के लिए फायदेमंद है। इसका सेवन इंसुलिन के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार स्प्राउट्स में सल्फोराफेन मौजूद होता है, जो डायबिटीज टाइप को कंट्रोल करने में मददगार है। इसमें फाइबर की भी हाई मात्रा होती है। कैंसर के खतरे को कम करता है स्प्राउट जैसे अंकुरित अनाज का सेवन कैंसर पेशेंट के लिए है भी लाभकारी है और कैंसर होने के खतरे को भी कम करता है, खासतौर पर ब्रेस्ट कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर को। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार कैंसर के मरीजों के लिए इसलिए ज्यादा लाभकारी है, क्योंकि इसमें मौजूद सल्फोराफेन कैंसर सेल्स को रोकने का काम करते हैं। हेल्दी हार्ट के लिए जरूरी है स्प्राउट्स एंटी-हाइपरलिपिडेमिक की तरह काम करता है, जो हमारे हार्ट के लिए बहुत फायदेमंद है।अंकुरित अनाजों का सेवन किया जाए तो बैड कोलेस्ट्रॉल लेवल कम होता है और हार्ट हेल्दी रहता है। खून की कमी होती है दूर अंकुरित अनाज का सेवन एनीमिया के खतरे को भी कम करता है, इसमें आयरन की भी मात्रा पाई जाती है। इसलिए इसके सेवन से खून की कमी भी दूर होती है। साबुत अनाज में आयरन के अलावा विटामिन की भी हाई मात्रा पाई जाती है। आंखों के लिए है लाभकारी साबुत अनाज का सेवन आंखों के लिए भी फायदेमंद है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट प्रॉपर्टी एवं विटामिन सी दोनों ही पाया जाता है, जो आंखों के लिए विशेष लाभकारी बताया गया है। डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
सूखे मेवों में शामिल मखाने के अनगिनत हेल्थ बेनिफिट्स होते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स कैल्शियम फाइबर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो पाचन को बेहतर बना सकते हैं। इस ड्राई फ्रूट को बिना गरम किए भी खाया जा सकता है। कई लोग इसे रोस्ट करके खाना पसंद करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार इसमें एंटी एजिंग गुण मौजूद होते हैं। यह जोड़ों के दर्द में भी लाभ पहुंचा सकता है। मखाने की सबसे अच्छी बात ये है कि इसकी तासीर ठंडी बताई जाती है। इसलिए इसका सेवन किसी भी मौसम में किया जा सकता है। इन परेशानियों में कारगर है मखाना मखाने में कैलोरी की मात्रा काफी कम होती है। इसलिए इसे वजन घटाने के लिए भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इसके सेवन से किडनी और दिल के सेहत को सही रखने में मदद मिल सकती है। हड्डियों को मजबूती देने के लिए भी मखाने का उपयोग अच्छा माना जाता है। बार-बार मांसपेशियों की अकड़ने की दिक्कत में मखाना खाना फायदेमंद होता है। इसमें कैलोरी, सोडियम और फैट की मात्रा ना के बराबर होती है। इसलिए मखाना आपके बोलों और त्वचा के लिए भी कई तरह से उपयोगी होता है। इन बीमारियों के लिए फायदेमंद मखाना खाने में टेस्टी होने के साथ ही कई बीमारियों को ठीक करने में कारगर माना जाता है। आयुर्वेद के मुताबिक, इसके रोजाना सेवन से गठिया के दर्द, शारीरिक कमजोरी, शरीर की जलन, दिल की सेहत, कान में दर्द, प्रसव के बाद होने वाले दर्द, ब्लड प्रेशर कंट्रोल के लिए, अनिद्रा दूर करने के लिए, गुर्दों के रोग, गर्मी से राहत, मसूड़ों के लिए,नपुंसकता से बचने के लिए, झुर्रियों से निजात पाने के लिए और दस्त को रोकने के लिए भी इसे डाइट में शामिल किया जा सकता है। खाने का सही समय मधुमेह जैसी कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए मखाना फायदेमंद माना जाता है। रोगों को दूर भगाने के लिए रोजाना खाली पेट सुबह के वक्त 4 से 5 मखाने का सेवन आयुर्वेद में अच्छा बताया गया है। कुछ दिनों तक लगातार इनका सेवन करना कई अन्य लाभ पहुंचा सकता है। जो लोग तनाव-चिंता और अनिद्रा जैसी परेशानियों से गुजर रहे हैं, उनकी अच्छी नींद के लिए गर्म दूध के साथ सात से आठ मखाने रात में सोते वक्त खाना स्वास्थ्यवर्धक बताया गया है। (ये आर्टिकल सामान्य जानकारी के लिए है, किसी भी उपाय को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें)
सुषमा जी की उम्र 63 के करीब है। वह पहले वर्किंग थीं। करीब 15 साल पहले शुगर लिमिट से ज्यादा रहने लगी। बाकी जिम्मेदारियों को निभाने में वह हमेशा सजग रहती थीं, लेकिन अपना ख्याल रखने में बहुत पीछे। इसी वजह से शुगर को काबू रखने पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देती थीं। दवा खाना भी कई बार भूल जाती थीं। पिछले 2 वर्षों से वह डॉक्टर से नहीं मिली थीं। उनके पति का साथ पहले ही छूट चुका था और बच्चे विदेश में बस गए। पिछले 2-3 बरसों से उनके लेफ्ट हेंड में कमजोरी महसूस हो रही थी। जलन भी होती थी। धीरे-धीरे जलन में बढ़ोतरी होती गई। परेशानी इतनी बढ़ गई थी कि सुषमा जी को डॉक्टर के पास जाना पड़ा। डॉक्टर ने 2 साल पुराना पर्चा देखकर कहा कि इतना लापरवाह नहीं होना चाहिए। सुषमा जी ने बताया कि उन्हें बाएं हाथ (लेफ्ट हैंड) में कमजोरी महसूस हो रही है और अक्सर जलन भी होती है। डॉक्टर ने ब्लड शुगर की रिपोर्ट में HbA1c (शुगर की 3 महीनों की औसत रिपोर्ट) सामान्य से काफी ज्यादा पाया। बढ़ी शुगर और नसों की बीमारी शुगर काबू करने के लिए दवा की डोज बढ़ाई गई, अलग से इंसुलिन भी शुरू किया। खानपान का भी ध्यान रखने को कहा। साथ ही, उन्होंने अपने अनुभव से यह सोचा कि ये लक्षण न्यूरोपैथी के हो सकते हैं। उन्होंने सुषमा जी को एक सीनियर न्यूरॉलजिस्ट से मिलने को कहा। सुषमा जी न्यूरॉलजिस्ट से मिलीं जिन्होंने NCS (Nerve Conduction Study) टेस्ट कराने के लिए कहा। रिजल्ट में न्यूरोपैथी यानी नसों से जुड़ी हुई परेशानी होने की जानकारी मिली। डॉक्टर ने कुछ और जांच भी कराईं। न्यूरोपैथी की स्थिति में सुधार के लिए दवा दी और कहा कि दवा लेना मिस न करें। फिर 1 महीने बाद आकर मिलें। क्या गलतियां हुईं सुषमा जी से डॉक्टर से मिलने से कतरा रही थीं। जलन वाले लक्षण को सामान्य समझकर उसे टालती जा रही थीं। क्या सही किया सुषमा जी ने डॉक्टर के पास गईं और डॉक्टर की सलाह को गंभीरता से लिया। न्यूरॉलजी से कैसे अलग है न्यूरोपैथी? न्यूरोपैथी एक बीमारी का नाम है। इसका संबंध न्यूरॉन से है। यह ठीक मायोपैथी के जैसा ही नाम है जिसका मतलब होता है मांसपेशी से जुड़ी बीमारी। न्यूरोपैथी में शरीर के मुख्य हिस्से से दूर यानी हाथों और पैरों के न्यूरॉन (पेरिफेरल न्यूरॉन) खास तौर पर आते हैं। इसलिए न्यूरोपैथी को कई बार पेरिफेरल न्यूरोपैथी भी कहते हैं। वहीं न्यूरॉलजी (Neurology दो शब्द Neuron यानी नसें और logy मतलब स्टडी) में नर्व से संबंधित तमाम तरह की स्टडी, बीमारी, इलाज आते हैं। बात चाहे दिमाग की हो या फिर स्पाइन की, ऐसी सभी चीजें न्यूरॉलजी में आती हैं। दरअसल, न्यूरॉलजी में एक बीमारी के रूप में न्यूरोपैथी को पढ़ा जाता है। इसके लक्षणों और इलाज की बात की जाती है। न्यूरोपैथी को ऐसे पहचानें न्यूरोपैथी को नसों की बीमारी कह सकते हैं। इसमें नसों का सही तरीके से काम न करना, नसों का दब जाना या फिर कमजोर हो जाना जिनसे कई तरह के लक्षण उभरते हैं: दर्द जलन कमजोरी मांसपेशियों का कमजोर होना गतिशीलता में कमी सुन्नपन कंपकपी अचानक ठंड महसूस होना चलने में कठिनाई होना पकड़ कमजोर होना आदि। कितने तरह की होती है यह? कई तरह की हो सकती है न्यूरोपैथी, कुछ खास ये हैं: 1. हाथ-पैर की नसों से जुड़ी परेशानी यह न्यूरोपैथी सबसे कॉमन है। इसमें शरीर के मुख्य हिस्से से दूर वाले हिस्से में न्यूरोपैथी की परेशानी होती है। अमूमन हाथ और पैर की नसों पर बुरा असर पड़ता है। इस तरह की न्यूरोपैथी को पेरिफेरल न्यूरोपैथी कहते हैं। अक्सर डायबीटीज के गंभीर मरीजों में यह न्यूरोपैथी देखी जाती है। दरअसल, डायबीटिक न्यूरोपैथी में शुगर लेवल हाई रहने से हमारे शरीर में मौजूद खून की पतली नलियां खराब होने लगती हैं, इस वजह से ये नसों के लिए जरूरी पोषक तत्व नहीं पहुंचा पातीं। इससे नसें खराब होने लगती हैं। 2. जिन पर हमारा काबू नहीं शरीर के कुछ काम खुद ही होते हैं, इन पर हमारा काबू नहीं होता। इन्हें इनवोलेंट्री ऐक्शन कहते हैं, मसलन: दिल का धड़कना, ब्लड प्रेशर, पाचन आदि। इस न्यूरोपैथी में शरीर की वे नसें प्रभावित होती हैं जो ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट, डाइजेशन और यूरिनरी ब्लैडर को कंट्रोल करती है। परेशानी होने से इन पर कंट्रोल कम होने लगता है। इस तरह की न्यूरोपैथी को ऑटोनोमिक न्यूरोपथी कहते हैं। 3. एक या एक तरह की कई नसें हों प्रभावित एक नस या एक तरह की कई नसें प्रभावित होती हैं। इससे शरीर के किसी भाग में अचानक कमजोरी या दर्द होने लगता है। इसे फोकल न्यूरोपैथी कहते हैं। 4. खानदानी परेशानी मरीज को उनके पिता-माता या उनसे भी पहले की जेनरेशन से मिलती है। यह किसी जीन में बदलाव की वजह से उभर आती है। कई बार इस तरह की परेशानी जन्म से ही होती है। इसके मामले कम ही होते हैं। इस तरह की न्यूरोपैथी को हेरिडिटरी न्यूरोपैथी कहते हैं। क्यों होती है न्यूरोपैथी न्यूरोपैथी होने की वजह बीमारियां या शरीर में किसी जरूरी विटामिन की कमी हो सकती है। कई बार न्यूरोपैथी की वजह से कोई केमिकल भी बन सकता है। जब किसी को डायबिटीज हो और शुगर का स्तर 6 महीने या 1 साल से ज्यादा वक्त तक औसतन 300 से ज्यादा रहे। वैसे कुछ लोगों को लक्षण आने में इससे ज्यादा कम वक्त भी लग सकता है। मरीज को जब जोड़ों में ज्यादा दर्द हो, अकड़न महसूस हो यानी उस शख्स को रयूमेटाइड आर्थराइटिस की परेशानी हो। इस परेशानी को ऑटोइम्यून डिजीज कहते हैं। लेड, आर्सेनिक जैसे केमिकल घुले पानी का लगातार सेवन करने से। शहरों में जो लोग वॉटर फिल्टर का इस्तेमाल करते हैं, उनमें ऐसी परेशानी अमूमन नहीं होती। ट्यूमर की वजह से और कैंसर के इलाज में कीमोथेरपी दवा से। दरअसल, कीमोथेरपी के साइड इफेक्ट्स की वजह से कई बार नसों की कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ता है। विटामिन B-12 और कुछ लोगों में विटामिन-D की कमी की वजह से। विटामिन-B12 नसों के सही ढंग से काम करने में मददगार है, वहीं विटामिन-D से न्यूरोपैथी की दर्द में राहत पहुंचती है। लिवर और किडनी की गंभीर बीमारियों के कारण। वहीं कुछ खास तरह के इन्फेक्शन मसलन: हर्पीज, एचआईवी आदि जैसे इन्फेक्शन की वजह से भी। अगर थायरॉइड की परेशानी हो। वह शख्स हाइपोयरॉइडिज्म का मरीज हो। थायरॉइड हॉर्मोन का रोल पेरिफेरल नर्वस सिस्टम के काम करने में भी है। जब थायरॉइड ग्लैंड में थायरॉइड हॉर्मोन का उत्पादन कम होता हो। चोट या गंभीर घाव की वजह से। अगर किसी की हड्डी टूट जाए और उस टूटी हुई हड्डी के साथ मांसपेशी में मौजूद नस दब रही हो। दुर्घटना के बाद इस तरह के मामले कई बार देखे जाते हैं। इसमें फिजियोथेरपी से फायदा होता है। ज्यादा शराब पीने या दूसरे तरह का खतरनाक नशा करने से। जिन्हें नशे की बुरी लत हो, ऐसे शख्स के शरीर में अक्सर विटामिन B-12 और दूसरे तरह के कई अहम विटामिन्स, मिनरल्स की कमी हो जाती है। टीबी और मिर्गी की दवाओं के साइड इफेक्ट्स की वजह से। ऐसी दवाओं को काफी लंबे अरसे तक लेना पड़ता है। शरीर पर इन दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी उभरते हैं। नसों में खराबी को ऐसे समझें हमारे शरीर में 3 तरह की नसें मिलती हैं: 1. सेंसरी नर्व्स, 2. मोटर नर्व्स, 3. मिक्स्ड नर्व्स 1. सेंसरी नर्व्स इस तरह की नसों का काम है हमारे संवेदी अंग (जहां हमें संवेदना महसूस होती हैं: स्किन, आंख, कान और जीभ पर टेस्ट बड्स) से सूचनाओं को सेंट्रल नर्वस सिस्टम (ब्रेन और स्पानल कॉर्ड) तक पहुंचाना। सीधे कहें तो हमें गर्म, ठंडा,स्पर्श, स्वाद आदि का पता सेंसरी नर्व्स के अंगों (आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा) से दिमाग तक सूचना पहुंचाने के बाद ही चलता है। ऊपर बताए हुए अलग-अलग कारणों की वजह से सेंसरी नसें खराब होने लगती हैं तो सेंसरी न्यूरोपैथी कहलाती है। सेंसरी न्यूरोपथी के ये हैं लक्षण जब किसी शख्स में सेंसरी नर्व प्रभावित होती है तो खासकर हाथों-पैरों में सुन्नता जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं। संवेदना में कमी दर्द की शिकायत चींटियां काटने जैसा लगना जलन बिजली का झटका जैसा लगना 2. मोटर नर्व्स इस तरह की नसों का काम है ब्रेन से सिग्नल को अलग-अलग अंगों और ग्रंथियों तक पहुंचाना। उदाहरण के लिए हम जो अपने हाथ, पैर आदि को अपनी इच्छा अनुसार उठाते हैं, चलाते हैं, मैं जो अपनी उंगलियों से की-बोर्ड के बटन दबाते हुए टाइप कर रहा हूं और आर्टिकल लिख रहा हूं। ऐसे सभी काम दिमाग से भेजे गए सिग्नल और उन सिग्नल के हिसाब से अंगों, उंगलियों आदि के मूवमेंट की वजह से यह सब हो रहा है। मोटर इसलिए कहते हैं क्योंकि ये नसें हाथ-पैरों की मूवमेंट से जुड़ी हैं। मोटर न्यूरोपैथी: इस नस में गड़बड़ी की वजह से कमजोरी, मांसपेशियों की कमजोरी और चलने-फिरने में परेशानी होती है। क्या हैं मोटर न्यूरोपथी के लक्षण ताकत में कमी महसूस होना। यह कमी सामान्य से ज्यादा होगी। हाथ की ग्रिप कमजोर हो जाती है। डायबीटीज के गंभीर मरीजों को और बुज़ुर्गों को पायजामा का नाड़ा बांधने में परेशानी होने लगती है। चलते हुए अक्सर पैरों से चप्पल छूट जाती है। बार-बार होता है। ऊंची-नीची सड़कों पर बार-बार गिर जाते हैं बैलेंस बनाने में जबकि दूसरे लोग आसानी से पाते लेते हैं। सीढ़ी चढ़ने में परेशानी दूसरे लोगों की तुलना में उठकर बैठने में ज्यादा परेशानी होती है। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की परेशानी, प्राइवेट पार्ट में कम सख्ती। कई बार शरीर के किसी खास भाग में खून की मात्रा की सप्लाई में कमी होने की वजह से शरीर का इम्यून सिस्टम ही पेरिफेरल नसों पर हमला कर देता है। इससे कमजोरी और सिहरन की स्थिति बन सकती है। इसे Guillain-Barré syndrome कहते हैं। 3. मिक्स्ड नर्व्स ऐसी नर्व्स जो सेंसरी और मोटर, दोनों तरह के काम करे यानी वे नर्व्स जो शरीर के अंगों से संवेदनाओं को ब्रेन या स्पाइनल कॉर्ड तक पहुंचाएं और सूचनाएं अंगों तक लेकर जाएं। नर्व्स की संख्या के आधार पर भी न्यूरोपैथी के प्रकार अगर शरीर की 1 नस प्रभावित हो: जब शरीर की एक नस प्रभावित हो या खराब हो तो उसे मोनो न्यूरोपैथी कहते हैं। जब कई नसें हों प्रभावित: अगर किसी मरीज के शरीर में कई नसें खराब हो जाएं तो उसे पॉली न्यूरोपैथी कहते हैं। इलाज न कराएं तो क्या होगा? कई बार लोग कह देते हैं कि न्यूरोपैथी की दवा लेने या फिजियोथेरपी कराने के बाद न्यूरोपैथी की परेशानी ज्यादा बढ़ गई। दरअसल, ऐसा अमूमन होता नहीं। एक बार न्यूरोपैथी हो जाए तो यह धीरे-धीरे बढ़ती है। इलाज नहीं कराने से तो यह बढ़ती ही रहेगी। कभी-कभी दवाओं का असर होने में वक्त लगता है, इस दौरान लक्षण कुछ बढ़ सकते हैं। ऐसे में लोगों को लगता है कि इलाज के बाद भी न्यूरोपैथी के लक्षण बढ़ रहे हैं। पर दवा जारी रखने से फायदा ही होता है। न्यूरोपैथी का इलाज क्या है? पहली कोशिश तो यह हो कि न्यूरोपैथी की परेशानी हो ही नहीं। चूंकि न्यूरोपैथी की परेशानी दूसरी बीमारियों या परेशानियों पर आधारित है, इसलिए कई बार गुज़रते वक्त के साथ कुछ लक्षण आ सकते हैं। ऐसे में शुरुआत में ही इसका इलाज शुरू हो जाए तो ज्यादा परेशानी से बच सकते हैं। कौन-से टेस्ट कराएं? NCS (Nerve Conduction Study) या NCV (Nerve Conduction Velocity) कराने के लिए कहा जाता है। जांच का फैसला न्यूरो डॉक्टर ही लें तो बढ़िया है। इसी नाम की मशीन पर उस शख्स का टेस्ट किया जाता है। इसमें नसों में इलेक्ट्रिक इंपल्स की मूवमेंट को दर्ज किया जाता है। इसमें पुख्ता होने पर ही आगे के लिए अमूमन CT स्केन या MRI की जांच की जाती है। कितनी देर में टेस्ट: 20 से 30 मिनट रिपोर्ट: उसी दिन किस तरह से टेस्ट: शरीर पर कुछ इलेक्ट्रोड के पैच लगाकर खर्च: दोनों हाथों और दोनों पैरों का 2000 से 3500 रुपये। दवा इसमें डॉक्टर जांच कराने के बाद न्यूरोपैथिक मेडिसिन शुरू करते हैं जो दूसरी बीमारियों की दवाओं के साथ लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए अगर किसी को शुगर है और न्यूरोपैथी के लक्षण भी उभर रहे हैं तो उस शख्स को शुगर की दवाओं के साथ न्यूरोपैथी की दवा भी लेनी होगी। साथ ही अपनी डाइट और लाइफस्टाइल में भी सुधार करना होगा। फिजियोथेरपी कितनी कारगर? न्यूरोपैथी के इलाज में फिजियोथेरपी कारगर है। खासकर बुजुर्गों को होने वाली न्यूरोपैथी में यह काफी कारगर है। इसमें कई तरह की एक्सरसाइज करने के लिए कहा जाता है। उदाहरण के लिए हर दिन 5 से 10 बार पंजों पर खड़े होने की एक्साइरसाइज करने के लिए कहा जाता है। इसी तरह उस अंग की भी खास एक्सरसाइज कराई जाती है जिस अंग में न्यूरोपैथी की परेशानी हो। बुजुर्गों में जोड़ों में संवेदना बढ़ाने के लिए उम्र बढ़ने पर बुजुर्गों को जॉइंट्स में संवेदना कम होने लगती है। इससे चलने-फिरने में परेशानी होती है। इसके लिए बुजुर्गों को अलग-अलग दिशाओं में चलने के लिए कहा जाता है। कभी सीधी लाइन में चलना होता है तो कभी 8 बनाकर उस पर चलने के लिए कहा जाता है। इसी तरह कई बार रास्ते में कुछ बाधाएं बनाकर उन्हें पार करने को कहा जाता है। इससे जोड़ों में संवेदना बढ़ती है और मजबूती आती है। वैसे ऐसी किसी भी तरह की एक्सरसाइज के लिए फिजियोथेरपिस्ट की राय जरूर ले लें। Foot Splint इससे ऐसे लोगों की मदद होती है जिनकी पैरों की मांसपेशियां कमजोर हो गई हों। इस स्थिति में कई बार मरीज टखने (Ankle) के आगे के हिस्से को नहीं उठा पाता है। ऐसे में फुट स्प्लिंट मददगार होता है। यह प्लास्टिक या कार्बन का बना होता है, इसलिए हल्का होता है, लेकिन मजबूत भी। इसे कई बार जूते के अंदर लगाकर चलाते हैं। कीमत: 300 से 800 रुपये, ध्यान रखें कीमतों में फर्क मुमकिन है। न्यूरोपैथी के दर्द को कम करने के लिए इसके निदान के लिए फिजियोथेरेपिस्ट Transcutaneous Electrical Nerve Stimulation (TENS) का इस्तेमाल करते हैं। इसमें लो-वोल्टेज करंट को पास कराया जाता है। इससे उस शख्स को दर्द में राहत मिलती है। यह 10 से 20 दिनों या फिर इससे ज्यादा भी हो सकता है। TENS के माध्यम से लो-वोल्टेज करंट को अमूमन 15 से 30 मिनट के लिए पास कराया जाता है। कितना वक्त लग सकता है ठीक होने में? नसों की परेशानी को दूर करने में वक्त लगता है। कुछ मामलों में यह 100 फीसदी सही हो जाती है तो कुछ में हल्का सुधार होता है। वैसे ये सब न्यूरोपैथी की वजह पर ही निर्भर करता है कि गंभीर बीमारी की वजह से हुई या फिर सामान्य बीमारी के कारण। फिर भी दवाओं का असर 8 से 12 हफ्तों में दिखने लगता है। ज्यादा सुधार में 6 महीने से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है। एक्सपर्ट पैनल- डॉ. MV पद्मा श्रीवास्तव (चेयरपर्सन, न्यूरॉलजी, पारस हॉस्पिटल), प्रो. (डॉ.) मंजरी त्रिपाठी (HOD न्यूरॉलजी, AIIMS), डॉ. दलजीत सिंह (HOD, न्यूरो सर्जरी, जी.बी. पंत हॉस्पिटल), डॉ. नेहा कपूर (एसोसिएट डायरेक्टर और हेड, न्यूरॉलजी, एशियन हॉस्पिटल), डॉ. राजीव अग्रवाल (इंचार्ज, न्यूरो-फिजियोथेरपी यूनिट, AIIMS) डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।nbt se saabhaar
शकरकंद को स्वीट पोटैटो कहते हैं क्योंकि यह अंदर से बिल्कुल उसकी तरह दिखता है और बाहर से इसका रंग बैंगनी, लाल, पीला, भूरे रंग का हो सकता है। सर्दियों में जगह-जगह पर इसे भूनकर या उबालकर बेचने वाले मिल जाएंगे। सड़क पर बिक रही ये सस्ती सी चीज आपको कई भयंकर बीमारियों से बचा सकती है। इनके ट्रीटमेंट के दौरान भी इसे खाने की सलाह दी जाती है। डायबिटीज का रामबाण उपाय यह एक लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स फूड है और Diabetes UK के मुताबिक सर्दियों में डायबिटिक पेशेंट इसे आलू की जगह आराम से खा सकते हैं। संगठन के मुताबिक इसे उबालकर, भूनकर या बेक करके आराम से खा सकते हैं। कैंसर की सेल्स से बचाव इस रूट वेजिटेबल में कैंसर से बचाने वाले गुण पाए जाते हैं। एंटीऑक्सीडेंट्स कुछ प्रकार के कैंसर की सेल्स से बचाने और उन्हें मारने का काम करते हैं। ब्लैडर, कोलन, पेट और ब्रेस्ट कैंसर में इस सब्जी को खाया जा सकता है। तोंद की टेंशन खत्म अगर आपको दिन रात तोंद की फिक्र सताती है और इसे कम करने वाले फूड खोज रहे हैं तो शकरकंद मदद करेगा। इसमें फाइबर और नमी होती है जो पेट को देर तक भरा रखते हैं और आप फालती के फूड कम खाते हैं। निकलेगी पेट की गंदगी गट हेल्थ के लिए यह सब्जी बहुत हेल्दी है। इसमें सॉल्यूबल और इनसॉल्यूबल फाइबर का भंडार है जो मल को आंतों से निकलने में मदद करते हैं। कब्ज रोग में इसे खाकर आसानी से पेट साफ किया जा सकता है। नजर होगी तेज बीटा कैरोटीन इसमें कूट-कूटकर भरा है जो आंखों की ताकत बढ़ाने के काम आता है। इसी एंटीऑक्सीडेंट की वजह से किसी फूड में चटक नारंगी रंग आता है। सिर्फ 200 ग्राम शकरकंद से आंखों को जरूरत से दोगुना पोषण मिल जाएगा। दिमाग के जल जाएंगे बल्ब शकरकंद दिमाग के लिए भी अच्छा होता है। यह मस्तिष्क की इंफ्लामेशन और फ्री रेडिकल को रोकता है जो कि उम्र बढ़ने पर ब्रेन को डैमेज करते रहते हैं। इसे खाने वालों की याददाश्त को कम नुकसान पहुंचता है।
आजकल बेहद कम उम्र में लोगों को जोड़ों में दर्द और सूजन की समस्या होने लगी है। जिसकी एक वजह शरीर में बढ़ा हुआ यूरिक एसिड भी हो सकता है। जिन लोगों को हाई यूरिक एसिड की समस्या होती है उन्हें जोड़ों का दर्द और गठिया जैसी बीमारी होने लगती है। शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने पर ये जोड़ों में क्रिस्टल के रूप में जमा होने लगता है। जिससे ज्वाइंट पेन की समस्या परेशान करने लगती है। हमारे शरीर में किडनी यूरिक एसिड को फिल्टर करती है, लेकिन जब यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने लगती है तो इसे निकालने के लिए दवाएं या फिर आयुर्वेदिक उपाय करने पड़ते हैं। जिन लोगों को हाई यूरिक एसिड की समस्या रहती है वो खूब पानी पिएं, हेल्दी डाइट लें और एक्सरसाइज जरूर करें। यूरिक एसिड को कंट्रोल करने के लिए इन आयुर्वेदिक उपायों को भी अपना सकते हैं। यूरिक एसिड को कंट्रोल करने का आयुर्वेदिक इलाज काली किशमिश जिन लोगों को हाई यूरिक एसिड की परेशानी है उन्हें डाइट में काली किशमिश शामिल करनी चाहिए। इसे गठिया और हड्डियों की डेंसिटी के लिए अच्छा माना जाता है. रा में करीब 10-15 काली किशमिश को पानी में भिगो दें और सुबह इन किशमिश को चबाते हुए खा लें। किशमिश के पानी को फेंकने की बजाय पी लें। सौंठ और हल्दी सौंठ यानि सूखी हुई अदरक ये यूरिक एसिड को कंट्रोल करने में मदद करती है। सौंठ के साथ हल्दी पाउडर भी यूरिक एसिड के मरीज के लिए फायदमेंद है। सौंठ और हल्दी खाने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है. आप चाहें तो दोनों चीजों को मिलाकर पेस्ट बना लें और इसे दर्द वाली जगह पर लगा लें। गुग्गुल हड्डियों और जोड़ों के दर्द से परेशान रहने वाले लोगों के लिए गुग्गुल कारगर आयुर्वेदिक उपाय है। गुग्गल खाने से जोड़ों का दर्द और सूजन की समस्या को कम किया जा सकता है। बाजार में आपको कई प्रकार के गुग्गल मिल जाएंगे। आप चाहें तो इसकी गोलियां भी खा सकते हैं। इससे शरीर में बढ़े हुए यूरिक एसिड को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी। पुनर्नवा काढ़ा यूरिक एसिड के मरीजों के लिए आयुर्वेद में पुनर्नवा का काढ़ा काफी फायगेमंद है। ये जड़ी-बूटी जोड़ों के दर्द में राहत और सूजन की समस्या को कम करती है। पुनर्नवा पेशाब के जरिए शरीर में जमा यूरिक एसिड और दूसरे खराब पदार्थों को बाहर निकालने का काम करती है। इसके इस्तेमाल से सूजन भी कम हो जाती है। गुडुची यूरिक एसिड को नियंत्रित करने के लिए गुडुची एक अच्छी जड़ी-बूटी है। इसके सेवन ने शरीर में पित्त की मात्रा को कम किया जा सकता है। वात दोष में भी ये फायदेमंद है। गुडुची खाने से खून में से यूरिक एसिड की मात्रा को कम किया जा सकता है। जोड़ों के दर्द और सूजन से राहत पाने के लिए ये असरदार आयुर्वेदिक इलाज है।
एनसीबीआई (NCBI) के अनुसार भारत में थायराइड (Thyroid) की बीमारी पर हुए अध्ययन दर्शाते हैं कि 4 करोड़ 20 लाख लोग इस समस्या का सामना कर रहे हैं। सिर्फ यह देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाभर में थायराइड के करोड़ों मरीज हैं। यह एक सामान्य और गंभीर स्थिति है, जिससे सबसे ज्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं। महिलाओं के लिए थाइराइड का जोखिम पुरुषों की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक होता है। हर 8 में से 1 महिला थाइराइड की समस्या से ग्रसित होती है। इसका एक कारण यह है कि थायराइड बीमारी अक्सर ऑटोइम्यून प्रतिक्रियाओं से शुरू होती है। यह स्थिति महिलाओं में प्री- और पोस्ट मेनोपॉज़ दौरान अक्सर होता है। गर्भावस्था से भी यह परेशानी हो सकती है। ऐसे में यह जरूरी होता है कि आप अपने खान-पान पर विशेष ध्यान दें। शरीर में सेलेनियम, जिंक, आयोडिन और आयरन की कमी थायराइड की परेशानी का कारण बन सकती है। इसे लेकर होम्योपैथिक डॉक्टर स्मिता बोइर पाटिल ने हाल ही में अपने इस्टांपोस्ट में थायराइड मरीजों के लिए अपनी इस मेडिकल कंडीशन को नेचुरल तरीके से रिवर्स करने के उपायों को शेयर किया है। वह बताती हैं कि अधिकांश लोगों के लिए पोषक तत्वों से भरपूर आहार का पालन करना थायरॉइड फ़ंक्शन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त होता है। थायराइड को रिवर्स करने का घरेलू उपाय आयोडीनयुक्त आहार है जरूरी थायराइड फंक्शन के लिए आयोडीन का पर्याप्त मात्रा में होना महत्वपूर्ण होता है। आयोडीन थायराइड हार्मोन को बनने में मदद करता है। ट्राईआयोडोथायरोनिन (T3) और थायरोक्सिन (T4) थायराइड हार्मोन हैं जिनमें आयोडीन होता है। इसलिए आयोडीन की कमी से थायराइड की समस्या होने लगती है। इसके पूर्ति के लिए आप अपने आहार में दूध, दही, पनीर,अंडे, खाए जाने वाले समुद्री शैवाल, आयोडीनयुक्त नमक, झींगा आदि का सेवन कर सकते हैं। ​जिंक की पर्याप्त मात्रा है आवश्यक थायराइड हार्मोन के उत्पादन के लिए जिंक खनिज की भी आवश्यक होती है। T3, T4, और थायराइड-उत्तेजक हार्मोन (TSH) के संतुलन के लिए इसका पर्याप्त मात्रा में होना जरूरी होता है। इसकी पूर्ति के लिए आप कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज, तिल के बीज, अंग मांस आदि को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। ​सेलेनियम से भरपूर पदार्थों का सेवन करें सेलेनियम, थायराइड हार्मोन उत्पादन के लिए आवश्यक खनिज होता है। जो थायराइड को ऑक्सीडेटिव तनाव से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करता है। थायराइड में सेलेनियम की उच्च मात्रा होती है, जिसकी कमी होने पर थायराइड में असंतुलन पैदा होने लगता है। इससे बचाव के लिए आप सेलेनियम युक्त आहार जैसे -ब्राजील नट्स, सूरजमुखी के बीज, काजू आदि का सेवन कर सकते हैं। ​आयरन की पूर्ति करेगी समस्या का समाधान शरीर में आयरन की कमी हिमोग्लोबिन के उत्पादन को प्रभावित करती है। जिससे शरीर में कई तरह के हर्मोन्स का स्तर कम-ज्यादा होने लगता है। साथ ही T4 को T3 में बदलने के लिए थायराइड को आयरन की आवश्यकता होती है, जो थायराइड हार्मोन का सक्रिय रूप है। आयरन की कमी थायरॉइड डिसफंक्शन से जुड़ी होती है। इसकी पूर्ति के लिए आप अपने आहार में हरी सब्जियां, लीवर, सूखे अंजीर और आलूबुखारा, खजूर जैसी आयरन युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल कर सकते हैं।
नाशपाती(Pear) गर्मियों और बारिश के दिनों में सबसे ज्यादा मिलता है। इसके कई प्रकार होते हैं जिसका लुत्फ आप 12 महीने उठा सकते हैं। सेब की तरह दिखने वाला यह फल इसके तरह ही कई सारे औषधीय गुणों से भरपूर होता है। स्वाद में खट्टा-मीठा लगने वाला यह फल फोलेट, विटामिन सी, कॉपर और पोटेशियम और पॉलीफेनोल एंटीऑक्सिडेंट का एक अच्छा स्रोत माना जाता हैं। नाशपाती खाने के फायदे? के पोषक तत्व आपके शरीर को कोलेस्ट्रॉल, कब्ज, मधुमेह से बचाने के साथ ही दिल के दौरे और कुछ तरह के कैंसर से भी बचाने का काम करते है। आप कच्चे नाशपाती को कुछ महीनों तक अपने फ्रिज में रख सकते हैं। पकने के बाद यह जल्दी खराब होने लगते हैं। ऐसे में इसे 2-3 दिनों में खा लेना ही बेहतर होता है। आहार संबंधित तथ्यों की विस्तृत जानकारी रखने वाली मशहूर न्‍यूट्रिशनिस्‍ट लवनीत बत्रा हाल ही में अपने इस्टां पर नाशपाती के पोषक तत्वों के बताते हुए इसे खाने की सलाह दी है। उन्होंने लिखा है कि स्वाद से भरपूर नाशपाती में सेहत से जुड़े कई सारे फायदे छिपे हैं, जिसे आपको जरूर जानना चाहिए और अपने आहार में शामिल करना चाहिए। एक्सपर्ट देते हैं हर रोज नाशपाती खाने की सलाह ​खून में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करता है न्‍यूट्रिशनिस्‍ट बताती हैं कि नाशपाती में पेक्टिन की उच्च मात्रा होती है, जो एलडीएल, ट्राइग्लिसराइड्स और वीएलडीएल के स्तर को कम करती है। उच्च कोलेस्ट्रॉल का खतरा कम होता है। ​कब्ज से राहत दिलाने में मदद करता है नाशपाती में मौजूद पेक्टिन पोषक तत्व एक सौम्य रेचक तरह काम करते है। पेक्टिन एक प्रकार का फाइबर है, जो पाचन संबंधी परेशानियों में राहत देने का काम करता है। डायबिटीज में फायदेमंद नाशपाती में एंटी डायबिटिक गुण मौजूद होते हैं जो डायबिटीज की समस्या से बचाव कर सकते हैं। यदि आप डायबिटीज मरीज हैं, तो इसके रोज सेवन से अपने ब्लड शुगर को कंट्रोल रख सकते हैं। दरअसल, इसमें उच्च मात्रा में फाइबर होता है, जो मधुमेह रोगियों में ब्लड शुगर के स्तर को बनाए रखता है। ​कैंसर की जानलेवा बीमारी से करता है बचाव नियमित रूप से नाशपाती का सेवन करने से मूत्राशय, फेफड़े और भोजन नली में होने वाले कैंसर के खतरे से बचा जा सकता है। नाशपाती में ursolic एसिड होता है जो एरोमाटेज गतिविधि को रोकता है जिससे कैंसर से बचाव होता है। फलों में मौजूद आइसोक्वेरसिट्रिन डीएनए को सेहतमंद बनाए रखता है। ​इन बीमारियों से भी देता है प्रोटेक्शन यदि आप वेट लॉस नेचुरल तरीके से वेट लॉस करना चाहते हैं तो नाशपाती आपकी इसमें मदद कर सकता है। इसके अलावा नाशपाती आपको ब्लड प्रेशर, दिल के दौरे, इम्यूनिटी को बूस्ट करने, हड्डियों को सेहतमंद रखने, बुखार, सुजन, गले की समस्या, लीवर से संबंधित बीमारियों से बचाने का काम कर सकता है।
दिल (Heart) को मजबूत रखने के लिए कौन-सा तेल खाना चाहिए? अगर आप इसका जवाब लंबे समय से खोज रहे हैं, तो हम आपको दिल को सेहतमंद रखने वाले और गंभीर बीमारियों से बचाने वाले फुलप्रुफ कुकिंग ऑयल की लिस्ट बता रहे हैं। लेकिन इससे पहले ये बात जानना आपके लिए जरूरी है कि हर तेल के फायदे और नुकसान अलग-अलग खाना पकाने के तरीकों और लोगों पर निर्भर करता है। जैसे ,सूरजमुखी का तेल फैटी एसिड का एक अच्छा स्रोत है लेकिन मधुमेह के रोगियों के लिए सेहतमंद नहीं है क्योंकि यह ब्लड शुगर बड़ा सकता है। वहीं, कैनोला, एवोकैडो और जैतून जैसे तेलों को दिल के लिए अच्छा माना जाता है क्योंकि इनमें स्वस्थ वसा होता है। बता दें, हमेशा दो तेलों को मिलाकर इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। तेल को ज्यादा गर्म करके खाना नहीं पकाना चाहिए। इसका कारण यह है कि अधिक गर्म करने पर ये तेल अपने पौष्टिक गुणों को खो देते हैं और हानिकारक तत्व उत्पन्न करते हैं। हालांकि सूरजमुखी, नारियल, सरसों के तेल में अच्छी गर्मी सहनशक्ति होती है और इसे डीप-फ्राइंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। मोटे तौर पर आपके लिए तेल तभी सेहतमंद होगा जब आप उसका सही तरीके से इस्तमाल करेंगे। ​जैतून का तेल इसमें एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। जो ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के कारण होने वाले कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह की समस्या, पार्किंसंस रोग, अल्जाइमर रोग और मोतियाबिंद जैसे होने वाले समस्याओं के जोखिम को कम करती है। एक अध्ययन से पता चलता है कि जैतून के तेल में स्वस्थ वसा भी होता है, जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित रखता है, जिससे हृदय रोग दूर रहते हैं। सूरजमुखी का तेल एक स्टडी से पता चलता है कि सूरजमुखी के बीज में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी के साथ-साथ घाव को भरने वाले गुण भी होते हैं। सूरजमुखी के बीज में फ्लेवोनॉइड, पॉलीसैचुरेटेड फैटी एसिड और विटामिन मौजूद होते हैं, जो ह्रदय संबंधी समस्याओं से बचाव करने का काम करते हैं। सूरजमुखी के तेल में विटामिन ई होता है, जो एक एंटीऑक्सीडेंट है जो दिल के लिए अच्छा होता है। सूरजमुखी का तेल हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में भी मदद करता है। सूरजमुखी के तेल को अत्यधिक पौष्टिक और दिल को मजबूत करने वाला खाना पकाने का तेल माना जाता है। ​कैनोला तेल - कैनोला तेल उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर या हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिए सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है। इसमें मौजूद वसा सिरम कोलेस्ट्रॉल को कम करने के साथ ही गंदे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को भी कम करने में मदद करता है। इससे हार्ट संबंधी बीमारी से शरीर बचा रहता है। ध्यान रहे, अधिक मात्रा में इसका सेवन करना आपके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। ​एवोकाडो तेल - यह तेल बढ़े हुए कोलेस्ट्रोल और ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है। जो हृदय स्वास्थ के लिए सहायक है। वहीं, इसमें मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड, फाइबर, पोटेशियम, मैग्नीशियम और विटामिन ई और के मौजूद होता है। यह सभी पोषक तत्व पूरे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं।
कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) बढ़ने की समस्या तेजी से बढ़ रही है। आजकल बहुत से लोग दिल से जुड़ी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं जिसकी एक बड़ी वजह शरीर में कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ना है। वैसे बॉडी की हेल्दी सेल्स के लिए कोलेस्ट्रॉल जरूरी है लेकिन यह गुड कोलेस्ट्रॉल है जिसे HDL cholesterol के नाम से जाना जाता है। एक बैड कोलेस्ट्रॉल होता है जिसे LDL cholesterol के नाम से जाना जाता है। शरीर में इसका लेवल बढ़ना खतरे की घंटी है क्योंकि इसके बढ़ने से दिल से जुड़े रोग, स्ट्रोक और यहां तक कि हार्ट अटैक का खतरा भी हो सकता है। इस बात को ध्यान रखना चाहिए कि अच्छा कोलेस्ट्रॉल शरीर के बेहतर कामकाज के लिए जरूरी है क्योंकि यह गंदे कोलेस्ट्रॉल को अवशोषित करता है और इसे वापस लीवर में ले जाता है, जो फिर इसे शरीर से निकाल देता है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आपको खून में जमा गंदे कोलेस्ट्रॉल को कम करना है, तो अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। शरीर में अच्छा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने के लिए आप अपने खाने में कई चीजों को शामिल कर सकते हैं। भारत की फेमस न्यूट्रिशनिस्ट पूजा मल्होत्रा आपको कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों के बारे में बता रही हैं, जो यह काम आसान कर सकते हैं। स्मोकिंग न करें अगर आप एचडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाना चाहते हैं तो स्मोकिंग की गंदी आदत से छुटकारा पाने की कोशिश करें। स्मोकिंग करने से खून में एचडीएल कोलेस्ट्रॉल का लेवल दब जाता है। साथ ही यह कई अन्य गंभीर बीमारियों की वजह बनता है। खाने में हेल्दी फैट वाली चीजें शामिल करें आपको अच्छे कोलेस्ट्रॉल के लिए अपने खाने में हेल्दी फैट वाली चीजों को शामिल करना चाहिए। इसके लिए आप अपनी डाइट में नट्स, सीड्स, फैट वाली मछली, सरसों का तेल, ओलिव, एवोकाडो जैसी चीजों को शामिल कर सकते हैं। इन चीजों से बॉडी को गुड फैट मिलता है, जोकि हानिकारक नहीं है। बैड कोलेस्ट्रॉल कैसे कम करें रोजाना एक्सरसाइज करें रोजाना एक्सरसाइज करने से न केवल शरीर में जमा गंदा कोलेस्ट्रॉल कम होता है बल्कि शरीर को अनगिनत फायदे होते हैं। न्यूट्रिशनिस्ट के अनुसार, एरोबिक एक्सरसाइज, हाई-इंटेंसिटी वर्कआउट और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग भी एचडीएल कोलेस्ट्रॉल के लेवल को बेहतर बनाने में मदद करती है। कोलेस्ट्रॉल की जड़ हैं खाने की 5 पीली चीजें बैंगनी रंग के फल और सब्जियां खाएं अपने खाने में बैंगनी रंग के फल और सब्जियां शामिल करें क्योंकि उनमें एंथोसायनिन नामक एंटीऑक्सिडेंट का एक परिवार होता है, जो एचडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बेहतर बनाने में मदद करता है। ट्रांस फैट छोड़ें ट्रांस फैट खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाता है और एचडीएल यानी अच्छे कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। ध्यान रहे कि ट्रांस फैट से भरपूर चीजों के सेवन से दिल से जुड़े विकारों का खतरा भी अधिक होता है।
डायबिटीज (Diabetes) तेजी से बढ़ रही एक गंभीर समस्या है जिसका कोई स्थायी इलाज नहीं है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इसे बेहतर डाइट के जरिए कंट्रोल रखा जा सकता है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि लाइफस्टाइल में साधारण बदलाव जैसे- व्यायाम करना, फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट वाले खाद्य पदार्थों का सेवन ब्लड शुगर को कंट्रोल कर सकता है। डायबिटीज होने पर मरीज का ब्लड शुगर (Blood Sugar) बढ़ने लगता है जिससे कई घातक समस्याएं हो सकती हैं. बेहतर जीवन जीने के लिए शुगर के मरीजों शुगर को कंट्रोल रखना जरूरी है। शुगर के लिए कई तरह की दवाएं आती हैं लेकिन इसके लिए आप कुछ घरेलू या आयुर्वेदिक उपाय भी आजमा सकते हैं। केले का फूल डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए एक बेहतर उपाय साबित हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि केले के फूल में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। इसके अलावा इसमें फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट की मात्रा अधिक होती है, जिस वजह से यह शुगर कंट्रोल करने के लिए बेहतर फूड है। टाइप 2 डायबिटीज को रोकने और कंट्रोल करने के लिए यह यह बैंगनी रंग के फूल फायदेमंद माने जाते हैं क्योंकि यह शरीर में ब्लड शुगर को रेगुलेट करता है। केले के फूल के पोषक तत्व केले के फूलों में कई पोषक तत्व होते हैं, जिनमें एंटीऑक्सिडेंट, मिनरल्स और प्रोटीन शामिल हैं। यूएसडीए के अनुसार, 3.5 औंस (100 ग्राम) केले के फूल में कैलोरी: 23, कार्ब्स: 4 ग्राम, वसा: 0 ग्राम और प्रोटीन: 1.5 ग्राम होता है। साथ ही पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, जिंक और कॉपर जैसे मिनरल्स का खजाना है। ये खनिज आपके शरीर के कई कार्यों में सहायता करते हैं। ब्लड शुगर कंट्रोल करने वाले फाइबर इनमें कैलोरी की मात्र कम होती है जबकि फाइबर की मात्रा अधिक होती है। एक अध्ययन के अनुसार, इसमें पाया जाने वाला घुलनशील फाइबर शरीर में कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर लेवल कम करने जबकि अघुलनशील फाइबर कब्ज और अन्य पाचन समस्याओं को रोकने में मदद कर सकता है। केले की तुलना में नैचुरल शुगर भी कम केले के फूल में सभी आवश्यक अमीनो एसिड पाए जाते हैं, जो आपके शरीर को चाहिए। इसके सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें केले के फल और अन्य उष्णकटिबंधीय फलों की तुलना में नैचुरल शुगर कम होती है, जिस वजह से यह डायबिटीज के मरीजों के लिए एक बेहतर विकल्प है। कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर का एक साथ सफाया केले के फूल में ऐसे कई यौगिक होते हैं, जो हाई कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर लेवल को कम कर सकते हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि जिन चूहों को केले के फूल के पाउडर दिया गया था, उनमें कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर लेवल कम पाया गया था। एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि केले के फूल में पाए जाने वाले 'क्वेरसेटिन' और 'कैटेचिन' जैसे एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं, जो भोजन के बाद ब्लड शुगर लेवल को कम कर सकते हैं। ये एंटीऑक्सिडेंट कार्ब्स को अवशोषित करने वाले एंजाइम को अवरुद्ध करके काम कर सकते हैं। आंतों को बनाता है स्वस्थ और मजबूत घुलनशील और अघुलनशील फाइबर से भरपूर केले का फूल पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि फाइबर का सेवन आंत माइक्रोबायोम में सुधार कर सकता है जिससे पेट के कैंसर का जोखिम कम हो सकता है। फाइबर पेट में अच्छे बैक्टीरिया की संख्या बढ़ाने में मदद करने के लिए एक प्रीबायोटिक के रूप में भी काम करता है। कैसे करें केले के फूल का इस्तेमाल आपको बता दें कि केले के फूल केले के फल की तरह लाभदायक है। इसमें केले की तरह वो सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के बेहतर कामकाज के लिए जरूरी हैं। केले के फूल न सिर्फ डायबिटीज को बल्कि कई गंभीर बीमारियों से बचाने की क्षमता रखते हैं। आप केले के फूल को कच्चा या पकाकर खा सकते हैं. इसके अलावा आप इसका सलाद या या सूप में भी उपयोग कर सकते हैं।
आयुर्वेद सदियों से अनगिनत बीमारियों के इलाज के लिए जाना जाता है। आयुर्वेद में ऐसी कई शक्तिशाली जड़ी-बूटियां और पेड़-पौधे हैं जिनमें विभिन्न तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं। यही वजह है कि नीम और तुलसी सहित विभिन्न आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों को कई दवाओं और रोगों में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसी ही एक अनोखी जड़ी-बूटी है ब्राह्मी (Brahmi) है। ब्राह्मी भी नीम-तुलसी की तरह औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी बूटी है। इसे अंग्रेजी में Waterhyssop के नाम से भी जाना जाता है। ब्राह्मी एक छोटी रसीली जड़ी-बूटी है और यह गीली मिट्टी, उथले पानी और दलदल में उगती है। इसके फूलों सहित पूरे पौधे का औषधी के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसका स्वाद कड़वा और मीठा होता है। केरल आयुर्वेद के अनुसार, ब्राह्मी सबसे शक्तिशाली प्राचीन आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है, जिसका दिमाग तेज करने, मेमोरी बढ़ाने, यौन शक्ति बढ़ाने और स्वास्थ्य टॉनिक के रूप में उपयोग किया जाता है। यह तंत्रिका तंत्र को भी शांत करता है, खून को शुद्ध करता है त्वचा और बालों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। इम्यूनिटी सिस्टम को बनाता है मजबूत यह एक ऐसी पावरफुल जड़ी बूटी है, जो इम्तून सिस्टम को मजबूत बनाने का काम करती है। अगर आप बहुत जल्दी बीमार हो जाते हैं, तो आपको इसका इस्तेमाल जरूर करना चाहिए। विभिन्न पोषक तत्वों से भरपूर यह पौधा कई तरह से फायदेमंद है। याददाश्त को बढ़ाने में सहायक यह जड़ी बूटी याददाश्त को बढ़ाने में मदद करती है। इसका ब्रेन के हिप्पोकैम्पस हिस्से पर पॉजिटिव प्रभाव पड़ता है जो सोचने-समझने और याददाश्त के लिए जिम्मेदार होता है। तनाव और चिंता करती है कम ब्राह्मी तनाव और चिंता को कम करती है क्योंकि यह कोर्टिसोल के स्तर को कम करती है, जिसे स्ट्रेस हार्मोन के रूप में जाना जाता है। ब्राह्मी तनाव से जुड़े इस हार्मोन को कंट्रोल करती है। 6 रोगों का एक इलाज है ब्रह्मी कैंसर से लड़ने में प्रभावी ब्राह्मी एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है जो स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक है। एंटीऑक्सिडेंट फ्री रैडिकल सेल्स को को हटाने में मदद करते हैं जो आगे चलकर कैंसर कोशिकाओं में बदल सकते हैं। गठिया और सूजन का इलाज है ब्राह्मी ब्राह्मी गठिया और सूजन से निपटने का एक बेहतर उपाय है। यह गैस्ट्रिक अल्सर को शांत करने और एक इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम का इलाज करने में भी मदद करता है। ब्लड शुगर करती है कम ब्राह्मी डायबिटीज के रोगियों में ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने के लिए जानी जाती है और हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षणों को सुधारने में मदद कर सकती है।
कई बार हमें सर्दी होने या गले में खराश होने पर लौंग चबाने के लिए कहा जाता है। लौंग की तरह ही इसका तेल भी दांत दर्द के मामले में बहुत राहत देता है। साथ ही जब हम इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए काढ़ा बनाते हैं, तो उसमें भी लौंग डाल देते हैं। लौंग को वैज्ञानिक रूप से सीजिगियम एरौमेटिकम के नाम से जाना जाता है। लौंग को भारतीय किचन में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इसमें एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल, एंटीइंफ्लेमेट्री , एंटीऑक्सीडेंट और एंटीकार्सिनोजेलिक जैसे कई गुण होते हैं। वैसे तो लौंग सभी उम्र के लोगों के लिए अच्छी है, लेकिन पुरूषों की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती है। यह उनमें प्रजनन क्षमता में सुधार से लेकर पुरूषों के शरीर में टेस्टोस्टेरॉन लेवल को बढ़ाने में भी मदद कर सकती है। तो आइए , हम आपको बताते हैं पुरूषों के लिए लौंग के फायदों के बारे में। ​शुक्राणु का उत्पादन बढ़ाए- जीवनशैली के कई कारक जैसे उम्र, धूम्रपान, खराब आहार, शराब और क्रॉनिक डिसीज पुरुषों की फर्टिलिटी को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती हैं, जिससे शुक्राणुओं यानि स्पर्म काउंट कम हो जाता है। पुरूष की प्रजनन क्षमता को बनाए रखने में आहार मुख्य भूमिका निभाता है। एक अध्ययन (1) के अनुसार, लौंग में एक पॉवरफुल एंटीऑक्सीडेंट एक्टिविटी होती है, जो फ्री रेडिकल के खिलाफ जाकर प्रजनन अंगों को होने वाले नुकसान से बचाती है। इससे स्पर्म काउंट में वृद्धि होने के साथ स्पर्म की गुणवत्ता और गतिशीलता में भी सुधार होता है। ​हाइपरटेंशन का जोखिम कम करे अध्ययनों के अनुसार, महिलाओं की तुलना में पुरूषों में हाइपरटेंशन का खतरा ज्यादा रहता है। लौंग में मौजूद कार्डियोप्रोटेक्टिव एक्टिविटी न केवल कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करती है बल्कि इसका काम प्रतिरक्षा को बढ़ाने के साथ हृदय की मांसपेशियों के स्वास्थ्य को ठीक रखना भी होता है। ​कामेच्छा (libido) बढ़ाने में मदद करे- लौंग में फ्लेवेनॉइड्स, एल्कलाइड्स और सैपोनिन्स जैसे फाइटोकेमिकल्स होते हैं, जो यौन इच्छा को उत्तेजित करने या कामेच्छा को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। सैक्सुअल परफॉर्मेंस और टेस्टेस्टेरॉन के स्तर को बढ़ाने के अलावा प्रीमैच्योर इवेक्यूलेशन को रोकने के लिए भी सदियों से इसका उपयोग किया जा रहा है। एक स्टडी के अनुसार (2) लौंग तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करके यौन उत्तेजना को बढ़ाने में भी कारगार है। ​डायबिटीज को मैनेज करे कई अध्ययन बताते हैं कि पुरूषों को महिलाओं की तुलना में डायबिटीज होने का खतरा दोगुना ज्यादा रहता है। एक स्टडी (3) से पता चलता है कि लौंग में हाई एंटीहाइपरग्लाइसेमिक, हेपेटोप्रोटेक्टिव, हाइपोलिपिडेमिक और एंटीऑक्सीडेटिव एक्टिविटीज होती हैं। यह शरीर में ग्लूकोज और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने और लिवर सेल्स को डैमेज होने से रोकने में बहुत मदद करती हैं। ​डेंटल हेल्थ के लिए फायदेमंद है लौंग लौंग में एंटीजिंगिवाइटिस और एंटीप्लाक गुण होते हैं, जो दांतों को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी हैं। लौंग न केवल ओरल माइक्रोब्स को रोकने में मदद करती है , बल्कि मसूड़ों में संक्रमण , सूजन और दर्द से भी राहत दिलाती है। यह पुरूषों में सांसों की दुर्गंध और पीरियोडोंटाइटिस को रोकने का भी घरेलू नुस्खा है। एक स्टडी के अनुसार (4) , इस स्वस्थ मसाले का सेवन डेंटल हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद माना गया है। लौंग केवल पुरूषों के स्वास्थ्य में ही नहीं बल्कि उनके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार कर सकती है। किचन में मौजूद इस मसाले को पुरूषों को अपनी डेली डाइट में शामिल करना चाहिए। हालांकि, ध्यान रखना चाहिए कि लौंग एक जड़ी-बूटी है और इसका सेवन कम मात्रा में ही किया जाना चाहिए।
मधुमेह या डायबिटीज (Diabetes) एक ऐसी गंभीर बीमारी है जिसमें पीड़ित की का ब्लड शुगर या ब्लड ग्लूकोज बढ़ता रहता है। डायबिटीज का कोई पक्का इलाज नहीं है और इसे सिर्फ एक हेल्दी डाइट के जरिए कंट्रोल किया जा सकता है। अब सवाल यह पैदा होता है कि डायबिटीज के मरीजों को ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए क्या खाना चाहिए? खाने की अलग-अलग चीजों से शरीर को अलग-अलग पोषक तत्व मिलते हैं। जाहिर है डायबिटीज का मरीज हो या कोई सामान्य इंसान, उसके शरीर के बेहतर कामकाज के लिए प्रोटीन, मिनरल्स, विटामिन और अन्य सभी पोषक तत्व जरूरी हैं। लेकिन जब कार्ब्स की बात आती है, तो शुगर के मरीजों को इसके कम या छोड़ने की सलाह दी जाती है। हालांकि भोजन में तीन मुख्य प्रकार के कार्बोहाइड्रेट होते हैं: स्टार्च, शुगर और फाइबर। स्टार्च और शुगर डायबिटीज वाले लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि शरीर इन्हें ग्लूकोज में तोड़ देता है। इसी तरह रिफाइंड कार्ब्स, या रिफाइंड स्टार्च प्लेटों तक पहुंचने से पहले प्रोसेसिंग के जरिए टूट जाते हैं। इस वजह से शरीर उन्हें जल्दी अवशोषित कर लेता है और उन्हें ग्लूकोज में बदल देता है। इससे ब्लड शुगर (Blood Sugar) बढ़ जाता है। रोजाना खाई जाने वाले सफेद रंग की कुछ चीजें स्टार्च और शुगर जैसे कार्ब्स से भरी होती हैं, जिनका सेवन ब्लड शुगर को बढ़ा सकता है। पास्ता पास्ता सॉस, क्रीम, चीज़ और बहुत सारे मक्खन से बनाया जाता है। इससे आपको 1,000 कैलोरी, 75 ग्राम फैट और लगभग 100 ग्राम कार्बोहाइड्रेट मिलता है। यह मैदे से बना होता है जोकि ब्लड शुगर को बढ़ा सकता है। इससे मोटापा बढ़ने का भी खतरा होता है। आलू लगभग सभी को पसंद होता है और इसके बिना कोई भी सब्जी मजेदार नहीं लगती है। प्रति 100 ग्राम आलू में 97 किलो कैलोरी, 22.6 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.1 ग्राम वसा, 1.6 ग्राम प्रोटीन और 0.4 ग्राम फाइबर मिलता है। आलू में कुल कैलोरी का 98% कार्बोहाइड्रेट के रूप में आता है। इसमें हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है और यह डायबिटीज के रोगियों के लिए उचित नहीं है। मैदा इसमें लगभग स्टार्च (73.9%) होता है जबकि विटामिन, मिनरल्स और फाइबर की मात्रा कम होती है। मैदे से बनी कोई भी चीजों का सेवन डायबिटीज के मरीजों के लिए हानिकारक हो सकता है। मैदा का अधिक सेवन कब्ज से जुड़ा होता है। मैदे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स बहुत ज्यादा होता है। यह डायबिटीज और मोटापे से पीड़ित रोगियों के लिए ठीक नहीं है। चीनी चीनी से बने मीठे खाद्य पदार्थों में ज्यादातर शुगर और खराब कार्बोहाइड्रेट होते हैं। इनमें बहुत कम या कोई पोषण मूल्य नहीं होता है और यह ब्लड शुगर को तेजी से बढ़ा सकती हैं। चीनी से वजन बढ़ाने, हृदय रोग और स्ट्रोक का जोखिम भी अधिक होता है। चावल ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग सफेद चावल खाते हैं उनमें टाइप 2 डायबिटीज विकसित होने का खतरा बढ़ सकता है। इसका मतलब यह है कि यदि आपको प्री-डायबिटीज है, तो आपको चावल खाने पर विचार करना चाहिए। सफेद चावल में हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जिसका अर्थ है कि यह ब्लड शुगर को बढ़ा सकता है। सफेद ब्रेड सफेद ब्रेड सफेद आटे से बनी होती है, जोकि रिफाइंड स्टार्च से भरी होती है। यह चीजें चीनी की तरह काम करती है और बहुत जल्दी पच जाती है। इससे ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स अधिक होता है, जिसका अर्थ है कि जब इसे खाया जाता है, तो उनमें फाइबर की कमी होती है। डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
डायबिटीज (Diabetes) एक गंभीर बीमारी है जिसका कोई स्थायी इलाज नहीं है। इसका मतलब यह है कि अगर किसी को शुगर की बीमारी हो गई है, तो वो उसका जीवनभर पीछा नहीं छोड़ती है। डायबिटीज एक पुरानी बीमारी है, जो तब होती है जब अग्न्याशय इंसुलिन बनाने में सक्षम नहीं होता है, या जब शरीर इंसुलिन का अच्छा उपयोग नहीं कर पाता है। इंसुलिन अग्न्याशय द्वारा बनाया गया एक हार्मोन है, जो खाए जाने वाले भोजन से ग्लूकोज को रक्त प्रवाह से शरीर की कोशिकाओं में ऊर्जा पैदा करने के लिए जाने देता है। विशेषज्ञों की मानें, तो खराब दिनचर्या और खानपान के चलते डायबिटीज एक आम बीमारी बन गई है। हालांकि अगर, इसे सही तरह से मैनेज न किया जाए, तो यह खतरनाक रूप ले सकती है। डायबिटीज को सिर्फ हेल्दी डाइट और फिजिकल एक्टिविटी द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है। डायबिटीज के मरीजों को मोटापा और दिल के रोग जैसी बीमारियों का खतरा भी अधिक होता है। डायबिटीज के मरीजों को अपने खाने में ऐसे खाद्य पदार्थों को शामिल करने की आवश्यकता होती है, जिनसे उनका ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रह सके। ऐसे खाद्य पदार्थ, जो ब्लड शुगर को कम कम कर सकते हैं। अगर आप भी डायबिटीज के मरीज हैं और ब्लड शुगर को कंट्रोल करना चाहते हैं, तो आप अपने आसपास पाए जाने वाले कई पौधों के पत्ते चबा सकते हैं। कई शोध में यह साबित हो गया है कि तुलसी, जैतून और गुड़मार जैसे पौधों के हरे पत्ते चबाने से ब्लड शुगर को कंट्रोल रखने में मदद मिल सकती है। तुलसी के पत्ते पारंपरिक चिकित्सा के कुछ चिकित्सक आमतौर पर ब्लड शुगर लेवल करने के लिए तुलसी के पत्ते चबाने की सलाह देते हैं। साल 2019 में चूहों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि तुलसी के पत्तों से निकलने वाले अर्क में ब्लड शुगर लेवल कम करने की क्षमता है। परिणामों ने यह भी सुझाव दिया कि तुलसी के पत्ते हाई ब्लड शुगर के दीर्घकालिक प्रभावों का इलाज करने में मदद कर सकते हैं। 500 रुपये से भी कम में पाएं डायबीटीज से छुटकारा, यहां खरीदें असरदार आयुर्वेदिक ड्रिंक जैतून के पत्ते जैतून के पत्ते चबाने से टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है। साल 2013 के एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने 46 मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों को जैतून के पत्ते का सेवन करने को कहा। शोधकर्ताओं ने पाया कि 12 सप्ताह के बाद जैतून के पत्ते का सेवन करने वाले लोगों में इंसुलिन रेसिस्टेंट में काफी सुधार हुआ। गुड़मार के पत्ते गुड़मार को जिमनेमा सिल्वेस्ट्रे कहा जाता है जोकि एक जड़ी-बूटी है। भारत में पाई जाने वाली इस जड़ी बूटी को ब्लड शुगर लेवल कम करने के लिए जाना जाता है। साल 2013 के एक अध्ययन के अनुसार टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों में इसके सेवन से काफी सुधार देखे गए हैं। टाइप 1 डायबिटीज वाले लोग, जिन्होंने 18 महीनों के लिए इसके पत्तों का अर्क लिया उनमें इंसुलिन लेने वालों की तुलना में ब्लड शुगर लेवल में काफी गिरावट आई। स्टेविया या मीठी तुलसी अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) और अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन (एडीए) के अनुसार, स्टेविया डायबिटीज वाले लोगों के लिए फायदेमंद पौधा है। साल 2018 के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि इन मरीजों ने मीठी तुलसी का सेवन किया था, उनका ब्लड शुगर लेवल एक से दो घंटे में कम होना शुरू हो गया था।
सेहत की बात हो या स्वास्थ्य संबंधित बीमारियों की, आज के समय में लोगों ने आयुर्वेद का रुख करना शुरू कर दिया है। लोग न केवल आयुर्वेदिक चीजों को अपनी जीवन शैली का हिस्सा बना रहे हैं। बल्कि आयुर्वेद के मुताबिक बताए गए बहुत से उपाय को रोजाना अपना रहे हैं। आज हम आपके सामने एक ऐसे ही पौधे के फायदे लेकर आएं है जिसका महत्व आयुर्वेद में बहुत अधिक माना जाता है। हम बात कर रहे हैं रावोल्फिया सर्पेंटिना या भारतीय स्नेकरूट की। यह भारतीय उपमहाद्वीप और पूर्वी एशिया में पाया जाता है। आमतौर पर यह समुद्र तल से 4000 फीट की ऊंचाई पर नमी वाले जंगल या छायादार इलाके में होता है। आपको बता दें कि इस पौधे पर गुलाबी और सफेद फूल पाए जाते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक पौधे की जड़ों का उपयोग कई खतरनाक रोगों के उपचार के लिए भी किया जाता है। आइए जानते हैं इसी भारतीय स्नेक रूट के बारे में। ​भारतीय स्नेकरूट के औषधीय गुण आयुर्वेद के मुताबिक भारतीय स्नेकरूट का यह पौधा वात और कफ दोष को संतुलित करने का कार्य करता है। आपको बता दें कि पौधे के अंदर कई रसायनिक घटक है जैसे रेसेरप्राइन, अजमालिन, अजमेलिसिन, इंडोबाइन, सर्पेंटाइन, योहिम्बाइन, योहिम्बाइन, रेस्किनामाइन आदि। इसके अलावा यह पौधा अपने एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटीमाइक्रोबियल और एंटी हाइपरटेंसिव गुणों के लिए भी जाना जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं इसके सेहत पर होने वाले फायदों के बारे में। ​अस्थमा में अस्थमा जैसे रोग में भारतीय स्नेकरूट के इस पौधे की जड़ों का उपयोग बहुत फायदेमंद माना जाता है। दक्षिण भारत में दमा की समस्या से निपटने के लिए इसकी जड़ों से बना जूस या फिर इसकी जड़ों को सुखाकर तैयार किया गया पाउडर उपयोग में लिया जाता है। ​स्ट्रेस और एंग्जायटी से राहत क्या आप उन लोगों में से एक हैं जो स्ट्रेस और एंग्जायटी की समस्या से परेशान हैं। अगर हां तो आपको बता दें कि भारतीय स्नेकरूट नाम के इस पौधे की जड़ो को चूसने से आपको काफी लाभ हो सकता है। आपको बता दें कि इसके अंदर हाइपरटेंसिव गुण होते हैं जो स्ट्रेस और एंग्जायटी को कम करने का काम कर सकते हैं। इसके अलावा वह लोग जो इंसोमेनिया की समस्या से पीड़ित हैं। वह लोग भी इस पौधे को आजमा सकते हैं। ​हाई ब्लड प्रेशर करें कंट्रोल आपको जानकर शायद हैरानी हो कि भारतीय स्नेकरूट का इस्तेमाल हाई ब्लड प्रेशर की दवा बनाने के लिए किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस पौधे के अंदर रासायनिक यौगिक रेसेरप्राइन होता है, हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने का काम करता है। ​पेट से जुड़ी समस्याओं में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान होने वाली समस्याएं हो या फिर पेट से जुड़ी अन्य समस्याएं जैसे कब्ज, डायरिया आदि। इन सभी से राहत पाने के लिए भारतीय स्नेकरूट के पौधे को उपयोगी माना जाता है। आपको बता दें कि इस पौधे के जरिए न केवल पेट साफ हो जाता है, बल्कि पाचन से जुड़ी और पेट से जुड़ी प्रक्रिया को बेहतर करता है। ​हृदय के लिए यह पौधा हृदय की समस्या से भी राहत दिलाने और उनसे बचाए रखने में कारगर माना जाता है। आज के समय में खराब जीवन शैली और बेकार के खानपान के चलते हृदय रोग बेहद आम हो गए हैं। ऐसे में इस पौधे का उपयोग हृदय रोग से बचने के लिए किया जा सकता है। आपको बता दें कि इसके अंदर मौजूद गुण हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। जिससे हृदय रोग होने का खतरा भी कम हो जाता है। ​स्किन से जुड़ी समस्या में ऐसे लोग जो स्किन से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित हैं। उन लोगों के लिए भी यह पौधा बेहद फायदेमंद माना जाता है। अगर आप भी कील मुंहासे, फोड़े और खुजली की समस्या से परेशान हैं तो इस पौधे का उपयोग कर सकते हैं। ज्ञात हो कि इसके अंदर एंटी बैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो स्किन से जुड़ी समस्याओं से राहत दिलाने का काम करते हैं। ​मासिक धर्म की समस्या में ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हें मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं हैं, वह भारतीय स्नेकरूट का उपयोग कर सकती हैं। आपको बता दें कि इसके अंदर एंटीइंफ्लामेटरी और मूड बदलने वाले गुण होते हैं। ऐसे में पीरियड्स के दौरान इसके सेवन से सूजन, पेट फूलना, ऐंठन, से राहत मिलती है। इसके अलावा इस पौधे के जरिए शरीर से विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं। ​अनिद्रा की समस्या में आप शायद जानते हों कि अनिद्रा एक नींद से जुड़ा हुआ विकार है। जिसमें व्यक्ति को नींद नहीं आती और इसकी वजह से कई दूसरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अनिद्रा की वजह से आलस, थकान, भूख न लगना, मूड स्विंग्स जैसी दिक्कतें भी झेलनी पड़ सकती है। ऐसे लोगों के लिए भारतीय स्नेकरूट को इस्तेमाल में ले सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे इसकी मात्रा और सेवन से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। ​कैसे करें इस जड़ी बूटी का सेवन आप इस पौधे से बना पाउडर या टेबलेट बाजार से आसानी से खरीद सकते हैं। लेकिन अगर आप किसी तरह की दवाएं या इलाज प्रक्रिया में हैं तो इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
खराब लाइफस्टाइल के चलते डायबिटीज की समस्या आम हो गई है। पहले तो डायबिटीज 50 साल से ज्यादा उम्र के लागों को होती थी, लेकिन जेनेटिक होने के कारण अब कम उम्र के लोग भी इसका शिकार हो रहे हैं। समय रहते इसे कंट्रोल कर लिया जाए, तो इसके बढ़ने की संभावना को कम किया जा सकता है। वैसे तो डायबिटीज को नियंत्रण में रखने के लिए लोग लौकी, गिलोय जैसे घरेलू नुस्खे अपनाते हैं, लेकिन आप चाहें, तो सदाबहार के फूलों को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। इसे "एवर ब्लूमिंग ब्लॉसम" के रूप में भी जाना जाता है। सदाबहार के फूल में मौजूद हाइपोग्लेमिक गुण ब्लड शुगर को कम करने में मदद करता है। इस फूल के अर्क को लेने से बीटा- पैन्क्रियाज सेल्स से इंसुलिन का उत्पादन होना शुरू हो जाता है। यह स्टार्च के ग्लूकोज में ब्रेक होने में भी हेल्प करता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल में कमी आने लगती है। तो आइए जानते हैं क्या है सदाबहार और डायबिटीज के लिए इसका उपयोग कैसे किया जाता है। ​सदाबहार क्या है सदाबहार एक पौधा है, जो आमतौर पर भारत में पाया जाता है और यह मेडागास्कर का मूल निवासी है। यह एक झाड़ी है, जो सजावटी पौधों के रूप में और औषधी बनाने के काम आती है। फूलों के साथ चिकने, चमकदार और गहरे रंग के पत्ते टाइप 2 डायबिटीज के लिए प्राकृतिक औषधि के रूप में काम करते हैं। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार, सदाबहार के फूल और पत्तियों का इस्तेमाल ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं, तो सुबह के समय फूलों से बनी हर्बल चाय पी सकते हैं या अच्छे परिणामों के लिए इसकी 3-4 पत्तियों को चबा सकते हैं। ​मधुमेह के लिए सदाबहार के स्वास्थ्य लाभ आयुर्वेद के अनुसार, मधुमेह एक मेटाबॉलिक कफ प्रकार का विकार है, जिसमें पाचन अग्रि कम होने लगती है और ब्लड शुगर लेवल बढऩे लगता है। ब्लड शुगर में स्पाइक्स को कंट्रोल करने के लिए आयुर्वेद सदाबहार नाम के फूल का उपयोग करने की सलाह देता है। वैसे सदाबहार का उपयोग आयुर्वेद और चीनी दवाओं में लंबे समय से किया जाता रहा है। यह मधुमेह, मलेरिया, गले में खराश और ल्यूकेमिया जैसी स्थितियों को मैनेज करने के लिए हर्बल ट्रीटमेंट है। विंका रसिया में दो एक्टिव कंपाउंड होते हैं- एल्कोलॉइड और टैनिन। ऐसा माना जाता है कि पौधे में 100 से ज्यादा अल्कलॉइड होते हैं, जिनमें से विन्क्रिस्टाइन और विनब्लास्टाइन अपने औषधीय लाभों के लिए जानेजाते हैं। मधुमेह के लिए सदाबहार का उपयोग करने के तरीके पहला तरीका- सदाबहार की ताजी पत्तियों को सुखाकर पाउडर बना लें और कांच के कंटेनर में भरकर रख लें। मधुमेह को नियंत्रण में रखने के लिए सुबह खाली पेट 1 चम्मच सूखे पत्तों का चूर्ण पानी या ताजे फलों के रस में मिलाकर सेवन करें। दूसरा तरीका- सदाबहार के पौधे की 3-4 पत्तियों को दिनभर में चबाएं। ताकि अचानक से ब्लड शुगर में वृद्धि न हो पाए। तीसरा तरीका- ताजे तोड़े गए सदाबहार के फूलों को पानी में उबाल लें। इसे भीगने दें और फिर छान लें। मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए इस कड़वे तरल को सुबह खाली पेट पीएं। ब्लड शुगर लेवल काफी हद तक कम हो जाएगा। अगर आप डायबिटीज के लिए किसी दवा के साथ इस जड़ी-बूटी को लेने की सोच रहे हैं, तो ब्लड शुगर लेवल के कम होने की संभावना बहुत है। फिर भी ध्यान रखें कि ऐसा करने से पहले किसी डायबिटीज विशेषज्ञ से सलाह ले लें।
एक लंबा थका देने वाले दिन के बाद हमें एक अच्छी नींद की जरूरत होती है। रात में अच्छी नींद हमारे दिमाग और शरीर के लिए कितनी जरूरी है, सभी जानते हैं। इसलिए विशेषज्ञ भी खुद को रीचार्ज करने के लिए रात को 7-8 घंटे नींद लेने की सलाह देते हैं। हालांकि आपने रात में सोने से पहले हल्दी वाला दूध पीने के आयुर्वेदिक फायदों के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन एक और तरह का दूध है, जिसे सोने से पहले अगर रोजाना पिया जाए, तो आपको सुकून की नींद आ सकती है। हम बात कर रहे हैं 'मून मिल्क' की। यह दूध भारतीय जड़ी-बूटियों और मसालों जैसे अश्वगंधा, जायफल, हल्दी से तैयार होता है। यह न केवल हमारे दिमाग और शरीर को आराम देता है, बल्कि इम्यूनिटी को मजबूत करने में भी हेल्प करता है। हल्दी के दूध की तरह ही यह भी आपके स्वास्थ्य का रामबाण इलाज है। ​पोषक तत्वों से भरपूर है मून मिल्क यह पेय आपकी इंद्रियों को शांत करने का आदर्श तरीका है। अगर हम मून मिल्क में मिलाई जाने वाली सामग्री की बात करें, तो ये सभी जड़ी-बूटी और मसाले पोषक तत्वों से भरपूर हैं। यह आपको तनाव से दूर रखने के साथ नींद लाने के लिए बहुत अच्छे हैं। दरअसल, रात में शरीर उस शारीरिक स्थिति में चला जाता है, जहां आंतरिक उपचार प्रक्रिया शुरू होती है। इसलिए इन पोषक तत्वों को शामिल करने से प्रक्रिया को तेज करने में मदद मिलती है। ​मून मिल्क के स्वास्थ्य लाभ मून मिल्क , जो जड़ी-बूटियों वाला दूध है, इसमें अश्वगंधा को शामिल किया जाता है। यह जड़ी-बूटी पॉवरफुल एंटीइंफ्लेमेट्री गुणों के साथ कार्डियोपल्मोनरी और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। अध्ययनों में पाया गया है कि अश्वगंधा वयस्कों में तनाव और चिंता को कम करती है, जिससे नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। इंडियन जर्नल ऑफ साइकोलॉजी मेडिसिन में प्रकाशित एक ऐसी ही स्टडी में कहा गया है कि यह तनाव में रहने वाले लोगों के सामान्य स्वास्थ्य में इंप्रूवमेंट के लिए बहुत अच्छी है। ​दूध- सबसे पहले तो यह दूध है, तो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है ही। दरअसल, दूध में ट्रिप्टोफैन नामक एमिनो एसिड होता है, जो बेहतर नींद लाने के लिए जाना जाता है। दूध कई आवश्यक पोषक तत्वों जैसे प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम से भरपूर है। इसे पीने से शरीर में ताकत बनी रहती है और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है। ​हल्दी- मून मिल्क में मिलाई जाने वाली हल्दी एक एंटीऑक्सीडेंट, एंट इंफ्लेमट्री के अलावा इसमें इम्यूनिटी बूस्टिंग गुण पाए जाते हैं। माना जाता है कि हल्दी में कार्मेटिव इफेक्ट होते हैं, जो बेहतर पाचन और चयापचय के लिए बहुत अच्छे हैं। ​अश्वगंधा- यह पांरपरिक जड़ी-बूटी सदियों से अपने औषधीय गुणों के कारण जानी जाती रही है। अश्वगंधा एक एडाप्टोजेनिक जड़ी-बूटी है, जो हमारे शरीर को किसी भी तरह के तनाव और चिंता से दूर रखती है। इस जड़ी-बूटी की जड़ें आमतौर पर औषधीय बनाने के लिए इस्तेमाल होती हैं। ​जायफल- जायफल भी एक एडेप्टोजेन है, जो हमारे शरीरर के लिए सिडेटिव का काम कर सकता है। इसके सेवन से आपको तनाव से निजात तो मिलेगी ही साथ ही नींद की गुणवत्ता में भी सुधार हो सकेगा। ​मून मिल्क कैसे बनाएं- 1 कप- दूध 1 चुटकी- हल्दी आधा छोटा चम्मच- पिसा हुआ अश्वगंधा पाउडर आधा छोटा चम्मच- पिसी हुई दालचीनी 1 छोटा चम्मच- पिसा हुआ अदरक 1 चुटकी- जायफल 1 छोटा चम्मच- नारियल का तेल 1 चम्मच- शहद मून मिल्क बनाने की विधि- एक पैन में दूध को मध्यम आंच पर गर्म करें और उसमें उबाल आने दें। इसमें अश्वगंधा, दालचीनी , अदरक , हल्दी और जायफल मिलाएं। अब गैस बंद कर दें। 5-10 मिनट के लिए मसाले को दूध में डला रहने दें। अब इसमें नारियल का तेल डालें और अच्छी तरह से फेटें। आप चाहें, तो दूध में थोड़ी चीनी या शहद मिला सकते हैं। अब मून मिल्क को एक कप में डालकर उसमें शहद मिलाकर रात को सोने से पहले पी लें। अगर आप प्लांट बेस्ड डाइट पर हैं तो आप नारियल दूध, बादाम दूध, सोया दूध या अन्य किसी दूध का विकल्प भी चुन सकते हैं। नियमित रूप से मून मिल्क पीने के बाद आप 6-12 हफ्तों के भीतर अंतर महसूस करेंगे। अश्वगंधा से बना मून मिल्क सेवन करने के लिए अच्छा है, लेकिन एक दिन में जरूरत से ज्यादा पीना हानिकारक है।
हमारे शरीर के ऑर्गन या प्रक्रिया सही तरह से चल रही है या नहीं। इस बात का संकेत अक्सर हमारा शरीर देने लगता है। आपने अनुभव भी किया होगा कि बुखार होने से पहले ही आपको संकेत मिल जाते हैं। ऐसा ही कुछ संकेत देता है पेशाब का रंग। आपको बता दें कि यूरिन टेस्ट के जरिए कई बीमारियों और यूरिनरी ट्रैक्ट की दिक्कत का भी पता लगाने का काम आ सकता है। इसके अलावा लीवर, किडनी और डायबिटीज जैसी बीमारी का पता लगाने के लिए भी यूरिन टेस्ट किए जाते हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जो कभी ना कभी अपने जीवन काल में पैथोलॉजिकल यूरिन टेस्ट करा चुके हैं। इसमें यूरीन को अलग - अलग तरह से टेस्ट करके बीमारी का पता लगाया जाता है। वहीं जर्मनी के Cologne में एक रिसर्च पेपर जारी किया गया। इसमें बताया गया है कि पेशाब के रंग, बदबू और और इसके बार - बार आने के आधार पर पता चलता है कि कोई गड़बड़ है या नहीं। ज्ञात हो कि यूरीन हमारी किडनी का के उप उत्पाद होता है। ​कौन-कौन से काम करती है किडनी वेस्ट मटेरियल को शरीर से बाहर निकालना भोजन और दवाओं से विषाक्त पदार्थों को हटाना शरीर के तरल पदार्थों में संतुलन बनाए रखना शरीर में ऐसे हार्मोन को रिलीज करना जो रक्तचाप को संतुलित करता है विटामिन डी का उत्पादन करना जिससे हड्डियां स्वस्थ और मजबूत रहें रेड ब्लड सेल्स के निर्माण को नियंत्रित रखना ब्लड शुगर लेवल तुरंत करवा लें चेक, अगर यूरिन के रंग में दिखे ये बदलाव ​पेशाब का बाहर निकलना क्यों जरूरी पेशाब हमारे शरीर से न केवल विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने का काम करता है। बल्कि शरीर में तरल पदार्थों को भी संतुलित करके रखता है। इसके अलावा यह चयापचय प्रक्रिया के दौरान पैदा होने वाले पदार्थों से भी पूरी तरह छुटकारा दिलाने का काम करता है। वहीं यूरिन टेस्ट के जरिए डायबिटीज, लीवर, और मेटाबॉलिज्म संबंधी रोग का भी पता लगाया जा सकता है। एक व्यक्ति दिन भर में कितनी बार पेशाब करता है यह भी उसके स्वस्थ या अस्वस्थ होने के बारे में बताता है। हाल ही में यूके एनएचएस के द्वारा कहा गया है कि दिन में चार से आठ बार और रात में एक बार पेशाब जाना सामान्य होता है। ​क्‍या कहती है Mayo Clinic की रिपोर्ट वही Mayo Clinic की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि यूरिन का रंग हल्के पीले से लेकर गहरे एम्बर तक हो सकता है। वहीं पेशाब का रंग अक्सर तब भी बदल जाता है जब कोई व्यक्ति अधिक मात्रा में चुकंदर, जामुन फवा बीन्स का सेवन कर लेता है। इन खाद्य पदार्थों के अंदर ऐसे यौगिक पदार्थ होते हैं जो यूरिन तक पहुंच जाते हैं। इसके अलावा कई बार कुछ दवाएं भी पेशाब के रंग को हरा, पीला, नीला रंग दे सकती है। लेकिन अगर इनमें से किसी भी तरह की चीजों का सेवन नहीं किया गया है और फिर भी पेशाब का रंग अलग दिखाई देता है, तो यह किसी बीमारी का संकेत हो सकता है। ​यूरीन के 5 संकेत जो बताते हैं अस्वस्थ लाल यूरिन - लाल रंग के यूरिन का अर्थ होता है कि इसमें रक्त शामिल है। जो एक बहुत ही खतरनाक स्थिति की ओर इशारा करता है। Express.co.uk की एक रिपोर्ट में डॉक्टर फॉक्स ने ऑनलाइन ही डॉक्टर डेबोरा ली का हवाला दिया है। उन्होंने इसमें कहा है कि पेशाब के लाल रंग का मतलब यूरिनरी ट्रैक्ट में संक्रमण हो सकता है, या फिर किडनी स्टोन, ब्लड ट्यूमर का भी एक लक्षण हो सकता है। ऐसा दिखने पर पुरुषों को तो तुरंत जांच करा लेनी चाहिए। क्योंकि यह प्रोस्टेट कैंसर का भी लक्षण हो सकता है। वहीं Cleveland Clinic के अनुसार, लाल रंग का मूत्र भी लीड या मरकरी पॉइजनिंग का संकेत हो सकता है। ​नीला या हरा यूरिन यूरिन का हरा या दूसरा रंग आपको बेहद डरा सकता है। लेकिन यह भोजन के रंग की वजह से भी हो जाता है। वहीं क्लीवलैंड क्लिनिक के अनुसार कीमोथेरेपी दवाएं भी पेशाब का रंग नारंगी बना सकती हैं। इसके अलावा गाजर, विटामिन सी भी यूरिन का रंग नारंगी बना सकती है। लेकिन अगर कुछ दिनों तक बिना किसी वजह के यूरिन का रंग बदला हुआ रहता है तो आपको तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। ​डार्क ब्राउन यूरिन - पेशाब का यह रंग आमतौर पर पीलिया रोग का संकेत हो सकता है। जिसकी वजह कई हो सकती है जैसे लीवर रोग, ब्लैडर रोग, और पैनक्रियाज से जुड़ा रोग आदि। वहीं डॉक्टर ली ने Express.co.uk को बताया है कि पीलिया रोग के दौरान व्यक्ति का मल हल्का ब्राउन और यूरिन डार्क ब्राउन रंग का हो सकता है। पीलिया होने की वजह हेपेटाइटिस भी हो सकता है। साथ ही अल्कोहोलिक लिवर भी पीलिया की वजह बन जाता है। अगर किसी व्यक्ति को पीलिया होता है तो उसकी आंखों का सफेद हिस्सा पीला पड़ने लग जाता है। इसके अलावा एक अन्य क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक डार्क ब्राउन यूरिन लीवर फेलियर का संकेत हो सकता है। वहीं कोला या चाय के रंग का पेशाब किडनी की सूजन की ओर इशारा करता है। ​बादल जैसे रंग का यूरिन - बादल छाए रहने का मतलब है कि पेशाब का रंग पारदर्शी या रंग का पता नहीं चल पा रहा है। इस रंग का अर्थ होता है कि आपके यूरिनरी ट्रैक्ट में किसी तरह का संक्रमण हो चुका है। इस दौरान व्यक्ति का यूरिन गाढ़ा, बादलदार और अलग दिखाई देने लगता है। ​बदबूदार यूरिन - यूं तो पेशाब की गंद कभी अच्छी नहीं होती। लेकिन अगर यूरिन से अधिक बदबू आने लगे तो इसकी वजह मसालेदार भोजन, लहसुन और कई तरह की दवा हो सकती है। लेकिन अगर इनमें से किसी तरह की चीज का सेवन नहीं किया गया है, तो इसकी वजह पानी का कम सेवन भी हो सकता है। ऐसे में व्यक्ति को यूरिन इंफेक्शन हो सकता है। इसके अलावा डॉक्टर ली ने Express.co.uk को बताते हैं कि यह समस्या अधिकतर डायबिटीज के रोगियों में देखने को मिल सकती है। साथ ही अगर पेशाब से पॉपकॉर्न की तरह स्मेल आती है तो यह केटोन्स की वजह से भी हो सकता है। ​अन्य संकेत अगर इन सब के अलावा आपको पेशाब करने के दौरान अचानक शरीर में सनसनी महसूस होती है या फिर पेशाब में अधिक झाग देखने को मिलते हैं तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। पेशाब में आए अचानक झाग प्रोटीन की वजह से हो सकते हैं। इसका अर्थ है कि आपको गुर्दे का कोई रोग है। वहीं अगर सनसनी या दर्द होना भी एक गंभीर रोग का संकेत है। इसके लिए तुरंत डॉक्टर के पास जाएं और उपचार प्रक्रिया का पालन करें।
हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट आज इंसान के लिए सबसे गंभीर समस्या बन गई है। यूं तो हार्ट अटैक अचानक ही होता है लेकिन इसकी बहुत सी वजह हैं जिसमें खराब लाइफ स्टाइल और बेकार खान पान तक शामिल है। वैसे तो हार्ट अटैक आने का कोई निर्धारित समय नहीं होता। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे ज्यादा हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट सुबह के समय बाथरूम में आते हैं। पर अब आपको लग रहा होगा कि आखिर ऐसा क्यों होता है। बाथरूम में हार्ट अटैक आने के बहुत से कारण हैं, अगर आपको इन कारणों बारे में जानकारी हो तो आप खुद को और अपने परिवार को इससे सुरक्षित रख सकते हैं। अब हम आपको यह बताएं कि सुबह के समय बाथरूम में हार्ट अटैक क्यों आते हैं? तो इससे पहले यह तो समझ लें कि आखिर हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट क्या होता है? ​क्या होता है हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट विज्ञान के नज़रिए से देखने पर पता चलता है कि हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट का सीधा संबंध हमारे खून से होता है। खून के जरिए हमारे शरीर में ऑक्सीजन और जरूरी पोषक तत्व पहुंचते हैं। लेकिन जब आपके हृदय तक ऑक्सीजन पहुंचाने वाली , धमनियों में प्लाक जमने की वजह से रुकावट पैदा होने लगती है, तो इससे हृदय के धड़कने की रफ्तार असंतुलित हो जाती है। इससे ही हमें हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट आ जाता है। ​बाथरूम में हार्ट अटैक आने का पहला कारण सुबह के समय जब हम टॉयलेट जाते हैं तो कई बार पेट पूरी तरह साफ करने के लिए हम प्रेशर लगाते हैं। इंडियन टॉयलेट का इस्तेमाल करते वक्त लोग अधिक प्रेशर लगाते दिखाई देते हैं। यह प्रेशर हमारे दिल की धमनियों पर अधिक दबाव बनाता है। इससे हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट आ सकता है। ​बाथरूम में अटैक आने का दूसरा कारण आपने अक्सर देखा होगा कि बाथरूम का तापमान हमारे घर के अन्य कमरों के मुकाबले अधिक ठंडा रहता है। ऐसी स्थिति में शरीर के तापमान को संतुलित करने और खून के प्रवाह को बनाए रखने के लिए अधिक कार्य करना पड़ता है। यह भी दिल का दौरा पड़ने का एक कारण हो सकता है। ​तीसरा कारण सुबह के समय हमारा ब्लड प्रेशर थोड़ा ज्यादा होता है। ऐसे में हम जब नहाने के लिए अधिक ठंडा या गर्म पानी सीधा सिर पर डाल देते हैं, तो इससे ब्लड प्रेशर प्रभावित होता है। इससे हार्ट अटैक आने का जोखिम बढ़ जाता है। ​​हार्ट अटैक से बचाव के तरीके अगर आप इंडियन टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं, तो अधिक समय तक एक ही पोजिशन में ना बैठें। इस तरीके से आप हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट से बच सकते हैं। बाथरूम में नहाते समय पानी के तापमान का ध्यान रखते हुए, सबसे पहले पैरों के तलवों को भिगोएं। इसके बाद हल्का पानी सिर पर डालें। यह तरीका आपको बचा सकता है। पेट साफ करने के लिए ना तो अधिक जोर लगाएं और ना ही जल्दबाजी दिखाएं। अगर आप नहाते समय अधिक समय तक बाथ टब या पानी में रहते हैं तो इसका असर भी आपकी धमनियों पर पड़ता है। ऐसे में अधिक समय तक बाथ टब में ना बैठें। ​हार्ट अटैक के लक्षण सीने में तेज दर्द होना सांस लेने में परेशानी आना कमज़ोरी महसूस करना। डायबिटीज़ के मरीज़ों को कई बार बिना कोई लक्षण दिखे भी हार्ट अटैक आ जाता है। इसे साइलेंट हार्ट अटैक कहा जाता है। तनाव और घबराहट होना भी हार्ट अटैक का लक्षण है चक्कर या उल्टी आना भी एक लक्षण है। ​​हार्ट अटैक आने पर क्या करें अगर आपके सामने किसी व्यक्ति को हार्ट अटैक आए तो आप उसे सबसे पहले जमीन पर लेटा दें। लेटने के बाद अगर उसने अधिक टाइट कपड़े पहने हैं तो उन्हे खोल दें। लेटाते समय व्यक्ति का सिर थोड़ा ऊपर की ओर हो इस बात का खास ध्यान रखें। एंबुलेंस के लिए तुरंत फोन करें। हाथ पैरों को रगड़ते रहें। अगर मरीज को सांस लेने में परेशानी आए तो उनकी नाक को बंद करें और उसके मुंह में अपने मुंह से हवा भर दें। इससे उसके फेफड़ों में हवा भर जाएगी।
यहां हम आपको दिल की बीमारी के जोखिम को टालने के लिए एक आयुर्वेद का अचूक नुस्खा बता रहे हैं। दरअसल, यहां हम अर्जुन के पेड़ के बारे में बात कर रहे हैं जिसकी छाल (Arjun barks) का आयुर्वेद में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। खासतौर से दिल की सेहत के लिए इस पेड़ का बहुत योगदान है। इसके फायदों के बारे में हमने आयुर्वेदिक डॉक्टर से बातचीत की है। आइए, जानते हैं हमें किस तरह से लाभ पहुंचाता है अर्जन का पेड़। ​दिल की बीमारी के जोखिम को कम करती है अर्जुन की छाल अर्जुन का पेड़ जिसे अर्जुनारिष्ट भी कहा जाता है और इसका पारंपरिक रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। बेंगलुरु के जीवोत्तम आयुर्वेद केंद्र के वैद्य डॉ. शरद कुलकर्णी M.S (Ayu),(Ph.D.) ने बताया कि मुख्य रूप से इस पेड़ की छाल का प्रयोग दिल के रोगों की दवा बनाने में किया जाता है। उन्होंने हृदय स्वास्थ्य में सुधार के लिए इस पेड़ की छाल का प्रयोग बहुत फायदेमंद है। कैसे करें अर्जुन की छाल का प्रयोग डॉ. शरद कुलकर्णी के अनुसार, आप अर्जुन के पेड़ की छाल का पाउडर बनाकर इसे पानी या दूध के साथ पी सकते हैं। आप चाहें तो पानी में पेड़ की छाल को उबाल लें और फिर इसे छानकर पीएं। इसके अतिरिक्त आप इसके पाउडर को दूध में मिलाकर भी पी सकते हैं। अर्जुन का पेड़ आमतौर पर भारत में हर जगह उपलब्ध है ​हाई BP और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करती है छाल पशु अनुसंधान द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि इसकी छाल के जरिए कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड (triglyceride) और रक्तचाप के स्तर (blood pressure levels) कम किया जा सकता है। जानकारी के लिए बता दें कि ये तीनों ही हृदय रोग के लिए मुख्य फैक्टर हैं। चूहों पर किए एक शोध में पता चला है कि इस पेड़ की छाल उच्च रक्त शर्करा (blood sugar) के स्तर को भी कम करने में कारगर है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इसी तरह मधुमेह से पीड़ित चूहों पर किए अध्ययन में पाया गया कि उन्हें 15 दिनों तक अर्जुन की छाल का अर्क खिलाया गया और बाद में देखा तो उनके रक्त शर्करा के स्तर में काफी कमी आई। कम हो जाता ​कैंसर का जोखिम कुछ एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि इसके अर्क से कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है। जानवरों और टेस्ट-ट्यूब अध्ययनों से पता चलता है कि अर्जुनारिष्ट के कुछ अवयवों में कैंसर विरोधी गुण हो सकते हैं। हालांकि, फिलहाल इस क्षेत्र में मानव अध्ययन की आवश्यकता है। अस्थमा को रोकने में मददगार जानकारों की मानें तो इसमें अस्थमा विरोधी गुण (anti-asthmatic properties) भी हो सकते हैं। पशु अनुसंधान से पता चलता है कि मिश्रण के कुछ अवयवों में अस्थमा विरोधी गुण हो सकते हैं जो रोगी के शरीर में होने वाली फेफड़ों की सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं। फिर भी इस पर अभी और शोध करने की आवश्यकता है। ​यूरिन इंफेक्शन से राहत आयुर्वेदिक डॉ. के अनुसार, इसकी छाल के सेवन से यूरिन इन्फेक्शन की समस्या को भी दूर किया जा सकता है। यूरीन की रुकावट दूर करने में अर्जुन की छाल का दूध या काढ़ा फायदेमंद है। साथ ही अगर आपको यूरिन का मार्ग में किसी तरह का इनफेक्शन है तब भी ये फायदेमंद है। इसके लिए छाल को पीसकर दो कप पानी में उबालें जब जब पानी आधा रह जाए तो इसे ठंडा होने के बाद पिएं। ​खांसी और वजन कम करने में भी मददगार ग्रामीणों में इस पेड़ की छाल का प्रयोग खांसी को दूर करने के लिए आज भी किया जाता है। ये नुस्खा एक हजार साल पुराना है। अगर आप खांसी से परेशान हैं तो अर्जुन के पेड़ छाल या इससे बने पाउडर को दूध में मिलाकर पीएं और तुरंत राहत पाएं। इसके अतिरिक्त इसके ये वजन कम करने में भी मददगार है।
एंटीजन से लड़ने और अपने संपूर्ण स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली का मजबूत होना जरूरी है। इम्यून सिस्टम न सिर्फ वायरल इंफेक्शन से हमारी रक्षा करता है बल्कि इसका मजबूत होना हमारी आंत की सेहत के लिए भी जरूरी है। आप इम्यून और आंत की सेहत को बेहतर रखने के लिए आयुर्वेदिक डाइट को आजमा सकते है। अगर आप आयुर्वेदिक डाइट को डेली रूटीन में फॉलो करते हैं, तो यह न केवल आपके शरीर को अतिरिक्त स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती है, बल्कि इससे हमारा डाइजेस्ट सिस्टम में भी सुधार होता है। यहां हम आयुर्वेद के अनुसार, हेल्दी डाइट के कुछ रूल्स बता रहे हैं जो आपके समग्र शरीर के विकास में काम आंएगे। हर किसी को अपने बॉडी स्ट्रक्चर के आधार पर ही आहार लेना चाहिए, क्योंकि खान-पान का भी एक नियम होता है। यहां कुछ आयुर्वेद आहार नियम दिए गए हैं जो आपके पाचन स्वास्थ्य में सुधार करेंगे। ​भोजन के एक नियमित समय को अपनाएं जब तक कि आपका पिछला भोजन पूरी तरह से पच नहीं जाता तब तक आपको दोबारा नहीं खाना चाहिए। इसके साथ ही भोजन के बाद अनावश्यक रूप से कुछ भी खाने से बचना चाहिए। जब आपको भूख सताए तब भी भोजन करें। आमतौर पर हमें डिहाइड्रेशन के कारण भूख लगती है, इसलिए भोजन के बीच प्रोबायोटिक्स जैसे लस्सी या जूस का विकल्प चुन सकते हैं। इस तरह के डेली नियम से एक व्यक्ति को मूल रूप से शरीर के साथ फिर से जुड़ने की आवश्यकता होती है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वास्तव में भूखा रहना क्या होता है। ​भोजन के वक्त शोर न करें सुनिश्चित करें कि आप अपना भोजन आराम और शांतिपूर्ण वातावरण में करें। ज्यादातर लोग खाना खाते समय टेलीविजन, फोन या लैपटॉप देखते हैं। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार खाने खाते वक्त न तो आपस में बातचीत करने सही है और न ही किसी तरह के डिजिटल उपकरण का इस्तेमाल करना उचित है। ​अपने भोजन की मात्रा पर ध्यान दें हममें से हर कोई चार या 6 रोटी नहीं खा सकता। पेट के आकार और चयापचय दर (metabolic rates) के आधार पर हर व्यक्ति के भोजन की मांग अलग-अलग होती है। इसलिए अपनी डाइट को ध्यान में रखकर ही भोजन की मात्रा प्लेट में परोसें। ​ताजा और गर्म भोजन करें कोशिश करें कि गर्म और ताजे भोजन का ही सेवन करें। ऐसी किसी भी चीज़ से बचें जो बहुत ठंडी या लंबे वक्त से रखी हुई हो। क्योंकि पाचक एंजाइमों को अपने अधिकतम स्तर पर काम करने के लिए थोड़े गर्म तापमान की आवश्यकता होती है। ​भोजन के वक्त डिजिटल उपकरण का प्रयोग न करें सुनिश्चित करें कि आप अपना भोजन आराम और शांतिपूर्ण वातावरण में करें। ज्यादातर लोग खाना खाते समय टेलीविजन, फोन या लैपटॉप देखते हैं। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार खाने खाते वक्त न तो आपस में बातचीत करने सही है और न ही किसी तरह के डिजिटल उपकरण का इस्तेमाल करना उचित है। ​इस तरह के फूड को खाने से बचें डाइजेशन और पोषक तत्वों के अवशोषण (Nutritional absorption) को ध्यान में रखते हुए ज्यादा तली हुई और शुगर युक्त चीजों का सेवन न करें। साथ ही डिब्बा बंद सामग्री खाने से भी बचें। पैकेज्ड स्नैक्स आपके शरीर पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं। ​अपने निवालों को अच्छे से चबाएं पाचन की प्रक्रिया मुख गुहा से ही शुरू होती है जहां कुछ एंजाइम जैसे लार एमाइलेज भोजन पर काम करते हैं और इसे आगे की प्रक्रिया के लिए उपयुक्त रूप में परिवर्तित कर देते हैं। इसलिए भोजन को अच्छी तरह चबाकर खाने की सलाह दी जाती है।
नई दिल्ली,शरीर की भीतरी धमनियों (डीप वेन थ्रौमबोसिस-डीवीटी) या पैर की नसों में खून के थक्के जमने से जीवन के लिए खतरा पैदा हो सकता है। भारत के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण विकसित करने में सफलता प्राप्त की है जो रक्त प्रवाह को सहज करने में मददगार हो सकता है, जिससे डीवीटी जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है। इस उपकरण की मदद से उन मरीजों को खासतौर पर लाभ हो सकता है जो लंबे समय से चलने-फिरने में असमर्थ हैं, बिस्तर पर हैं, किसी ऑपरेशन के कारण चलना-फिरना बंद है, पैरों में लकवा है, डीवीटी से प्रभावित हैं। डीवीटी से सूजन, लाली, अंगों में अधिक तपन की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खून के थक्कों के अलग होने और अशुद्ध रक्त के वाहिकाओं के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचने के कारण फेफड़ों को भारी नुकसान हो सकता है। इससे जीवन के लिए ख़तरा पैदा करने वाली गंभीर समस्याएं सामने आ सकती हैं। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत स्वायत्त संस्थान श्री चित्रा तिरुनल चिकित्सा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, त्रिवेन्द्रम (एससीटीआईएमएसटी) के वैज्ञानिकों के एक दल ने डीवीटी निवारण हेतु इस उपकरण को विकसित किया है। इस अभियांत्रिकी दल में जीथीन कृष्णन, बीजू बेंजामिन और कोरुथु पी वर्गीज़ शामिल थे। ऐसे उपकरणों के आयात पर अब तक 2 से 5 लाख रुपये तक की लागत आती थी। देश में एससीटीआईएमएसटी द्वारा निर्मित इस उपकरण की बाज़ार में कीमत 1 लाख से भी कम होने की संभावना है। इस तरह कारगर है ये डिवाइस विकसित किया गया यह उपकरण पैरों की नसों को क्रम में सिकोड़ता और खोलता है जिससे रक्त का संचार सामान्य गति से रक्त वाहिकाओं में प्रवाहित होने लगता है। इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित किया गया है कि उपकरण नसों को सिकोड़े लेकिन रक्त वाहिकाओं पर इसका दबाव न पड़े। इसके काम करने के तरीकों की निगरानी की जा सकती है और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट द्वारा इसके दबाव को नियंत्रित भी किया जा सकता है। एक विशिष्ट सॉफ्टवेयर और सर्किट की मदद से सुरक्षित दबाव स्तर सुनिश्चित किया गया है। इस उपकरण में विद्युत आपूर्ति बाधित होने की स्थिति में पावर बैकअप का भी प्रबंध किया गया है।
इंसानी शरीर या मन भले ही बसने का सपना शहरों में देखता हो, लेकिन सच तो यह है कि उसे अपने आस-पास ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और हरियाली चाहिए होती है। ऐसा हो भी क्यों न, पेड़ों के जरिए न केवल हमें फल फूल प्राप्त होते हैं। बल्कि पेड़ पौधों पर लगने वाली पत्तियां अक्सर हमे कई बीमारियों से भी बचा कर रखती है। जबकि कुछ पौधों की पत्तियां बीमारियों से लड़ने में हमारी मदद करती है। ऐसा ही एक पौधा है पारिजात का। पारिजात के पौधे की लंबाई लगभग 20 से 30 फीट तक जाती है। इस पर लगने वाले सफेद चमेली के फूल बहुत खुशबूदार होते हैं। ज्यादातर लोग केवल पारिजात के पौधे के सिर्फ इसके फूलों की खुशबू के लिए जानते हैं। जबकि इस पौधे पर लगने वाले पत्ते आपको बहुत सी बीमारियों से राहत दिलाने के लिए जाने जाते हैं। आइए जानते हैं कैसे करें इनका उपयोग और किन बीमारियों में किया जा सकता है इस्तेमाल। स्किन का रखें ख्याल वक्त के साथ लोगों को स्किन से संबंधित कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं जैसे कील-मुंहासे और स्किन की टाइटनेस खो जाना। ऐसे में आप चाहें तो पारिजात की पत्तियों का उपयोग कर सकते हैं। आपको बता दें कि पारिजात की पत्तियों के अंदर एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह गुण ही आपको स्किन से संबंधित कई तरह की समस्याओं से बचा कर रखते हैं। साथ ही यह स्किन पर पड़ने वाला उम्र का प्रभाव भी कम कर देते हैं। ​उपयोग का तरीका इसके लिए आप जोजोबा आयल के अंदर पारिजात की पत्तियों के रस को मिलाएं। इसके बाद अपनी स्किन पर इसे लगाएं। इससे जल्दी ही आपकी स्किन बेहतर हो जाएगी। ​आर्थराइटिस में राहत आर्थराइटिस की समस्या हड्डियों और जोड़ों से संबंधित है। इस समस्या में व्यक्ति के जोड़ों में असहनीय दर्द होता है। साथ ही शरीर के जोड़ो की कार्य क्षमता भी बुरी तरह प्रभावित होती है। लेकिन इस स्थिति से निपटने के लिए पारिजात के पत्तों का उपयोग किया जा सकता है। आपको बता दें कि पारिजात के अंदर एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो अर्थराइटिस में फायदेमंद हो सकते हैं। ऐसा हम नहीं बल्कि आयुर्वेद और यूनानी कहते हैं। यही नहीं इसकी प्रमाण भी सिद्ध की जा चुकी है। कुछ ही समय पहले पारिजात के पत्तों का उपयोग चूहों पर किया गया था। जिसके परिणाम सकारात्मक आए थे। उपयोग का तरीका इसके लिए आप सबसे पहले पारिजात के पत्तों के पाउडर को पानी के अंदर डालकर पिएं। इससे आपको आर्थराइटिस के दर्द से राहत मिलेगी। आप चाहें तो पारिजात के पत्तों के रस और नारियल के तेल से जोड़ों की मालिश भी कर सकते हैं। इससे आपको दर्द से राहत मिलेगी। ​सूखी खांसी और अस्थमा में मौसम के बदलने के दौरान या कुछ उल्टा सीधा खाने की वजह से अक्सर लोगों को गले में खराश, खांसी, जुकाम जैसी समस्या होने लगती है। ऐसे में यह लोग पारिजात की पत्तियों से बनी चाय का सेवन कर सकते हैं। पत्तों के अंदर मौजूद औषधीय गुण आपको तुरंत सूखी खांसी और जुकाम से राहत देंगे। इसके अलावा इस पौधे के पत्तों में पाए जाने वाले गुण अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति की स्थिति को भी बेहतर करते हैं। ​उपयोग का तरीका - इसके लिए आपको सबसे पहले कुछ पारिजात की पत्तियां, अदरक और 2 कप पानी लेना होगा। इसे कुछ देर तक उबालने के बाद छान कर इसका सेवन करें। इससे आपको राहत मिलेगी। ​बुखार से लेकर प्लेटलेट्स में पारिजात के अंदर ऐसे बहुत से गुण पाए जाते हैं, जो आपको बुखार से राहत दिलाने का कार्य करते हैं। यानी अगर आपको बुखार है, मलेरिया, डेंगू जैसी समस्या है तो आप पारिजात के पौधे के पत्तों का उपयोग कर सकते हैं। यही नहीं इसके पत्ते डेंगू के बुखार के दौरान प्लेटलेट्स का काउंट भी बढ़ाने का कार्य करती हैं। यह बुखार के बैक्टीरिया को भी बढ़ने से रोकते हैं। इसके अलावा अगर आप कोरोना वायरस से संक्रमित हैं तो पारिजात के पौधे से बना काढ़ा आपको इस वायरस से राहत पाने में मदद कर सकता है। ​बुखार में उपयोग की विधि इसके लिए आपको केवल एक चम्मच पारिजात के पत्तियां और 2 कप पानी लेना है। अब इसे उबलने देना है। जब इसमें पानी आधा रह जाए तो बुखार होने पर इसका सेवन करें। इससे आपको तुरंत राहत मिलेगी। ​पेट के कीड़ों से छुटकारा बच्चों से लेकर वयस्कों तक बहुत से लोगों को पेट में कीड़े होने की समस्या होने लगती है। जिसकी वजह से उन्हें अन्य दूसरी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। इस स्थिति में पारिजात की पत्तों का इस्तेमाल किया जा सकता है। ज्ञात हो कि इसके अंदर डायाफोरेटिक और ड्यूरेटिक गुण होते हैं जो पेट से जुड़े किसी भी बीमारी से राहत दिलाने में कारगर सिद्ध होते हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि पेट के कीड़ों से राहत दिलाने में पारिजात के पत्तों का इस्तेमाल किया जा सकता है। उपयोग के तरीके- इसके लिए आपको केवल पारिजात के पत्तों के रस और एक ग्राम काली मिर्च के पाउडर को मिलाना है। अब इसे नियमित रूप से कुछ दिन तक पीना है। इसके जरिए आपको जल्दी ही परिणाम दिख जाएंगे
कानपुर, कोरोना के प्रारंभिक लक्षणों (हल्का बुखार, जुकाम, भारीपन, खाने में अरुचि आदि) को नजरंदाज न करके पहले दिन से ही ध्यान दिया जाए, तो संक्रमण से शीघ्र ही ठीक हुआ जा सकता है। डॉ. राम आश्रय साहु का कहना है कि यदि पहले दिन संक्रमण के बारे में सुनिश्चित होने के लिए परीक्षण करा लिया जाए, तो इससे होने वाली किसी भी अनहोनी को आसानी से टाला जा सकता है। डॉ. राम आश्रय साहु कहते हैं कि इस महामारी के बारे में पर्याप्त जागरूकता होने के बाद भी लोग जुकाम, बुखार या खांसी जैसी समस्या को टाल जाते हैं। संक्रमण के इस दौर में यदि बुखार की समस्या हो, तो उसे टालने के बजाय गंभीरता से लेना चाहिए। हालांकि, अभी भी लोग संक्रमण के लक्षण आने के चार-पांच दिन बाद चिकित्सक के पास जाते हैं और फिर कोरोना संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए जांच कराते हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट आने तक वायरस फेफड़ों को बुरी तरह क्षति पहुंचा चुका होता है। कोरोना वायरस के नेचर में हो रहे चेंजेज से व्यक्ति के संक्रमित होने के बाद भी आरटीपीसीआर या एंटीजेन से यह सुनिश्चत कर पाना कई बार कठिन होता है कि व्यक्ति संक्रमित है या नहीं और तब सीटी स्कैन से ही संक्रमण के बारे में पता चलता है। अच्छा रहे कि शुरुआती लक्षणों को संज्ञान में लेकर क्वारंटाइन में रहकर योग, पोषक आहार और चिकित्सक की सलाह पर उपचार का सहारा लिया जाए, तो दो सप्ताह की अवधि में पूरी तरह स्वस्थ हुआ जा सकता है और इसके संक्रमण को फैलने से भी रोका जा सकता है। कोरोना से लड़ने के कारगर उपाय -पानी में अजवाइन, काला नमक और हल्दी डालकर सुबह-शाम भाप जरूर लें। -चिकित्सक से संपर्क बनाए रखें। -शारीरिक दूरी, मास्क और सैनिटाइजर का इस्तेमाल करते रहें, जिससे आपके साथ आपके घरवाले भी संक्रमण से सुरक्षित रहें। -यदि आक्सीजन का लेवल गिरने लगे, तो तकिए पर पेट के बल लेट जाएं और गहरी सांस लें। इससे फेफड़ों को आक्सीजन मिलेगी और हमारा आक्सीजन लेवल गिरने नहीं पाएगा। -प्राणायाम करते रहें। -इम्युनिटी मजबूत बनाए रखें। -भोजन में राजमा, पनीर और रेशेदार अनाज शामिल करें। -मौसमी खट्टे फलों का सेवन जरूर करें। विटामिन सी की गोली लें। -हल्दी युक्‍त गुनगुना दूध लें।
गर्मियों के सीजन में लोग तमाम तरह के मौसमी फलों को अपने फ्रिज में स्टोर करने लगते हैं। क्योंकि फ्रिज में फलों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। लेकिन कुछ फलों को हमेशा रेफ्रिजरेटर में स्टोर करना सही नहीं होता है। क्योंकि फ्रिज में रखने से न सिर्फ उस खाद्य पदार्थ का स्वाद बदल जाता है, बल्कि इसका असर हमारी सेहत पर भी पड़ता है। एक्सपर्ट के अनुसार, गर्मी में आने वाले आम और तरबूज जैस मौसमी फलों को फ्रिज में बिल्कुल भी नहीं रखना चाहिए। बेशक, आप में से कई लोगों के लिए यह आश्चर्यजनक हो सकता है, लेकिन यही उचित है। बहरहाल, यहां हम आपको इसके पीछे की वजह भी बता रहे हैं। कम तामपान में रहता है खराब होने का खतरा समर सीजन में तरबूज और आम सबसे ज्यादा खाए जाने वाले फलों में आते हैं। दोनों में ही पानी की मात्रा काफी ज्यादा रहती है लिहाजा ये फल हमें सनस्ट्रोक से बचाते हैं और हाइड्रेट रखते हैं। लेकिन इन दोनों ही फलों को फ्रिज में नहीं रखना चाहिए। एक्सपर्ट का कहना है कि आम और तरबूज जैसे फलों को गर्मियों में फ्रिज से बाहर ही रखना चाहिए, क्योंकि कम तापमान में इनके खराब होने का खतरा ज्यादा रहता है। ​भूलकर भी न रखें कटे फल एक्सपर्ट के अनुसार, आम और तरबूज को काटकर फ्रिज में स्टोर नहीं करना चाहिए। इस तरह रखने पर ये फल 'चिल इंजरी' का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में इनका स्वाद भी अच्छा नहीं रहता और रंग भी फीका हो जाता है। साथ ही खुला रखने पर इनकी सतह पर बैक्टीरिया भी पनपने का डर रहता है जिससे सेहत को नुकसान पहुंच सकता है। ​रूम टेम्प्रेचर पर ही रखें ये फल एक्सपर्ट का सुझाव है कि आप तरबूज, खरबूज और आम जैसे गूदेदार फलों को मार्केट से लाकर सीधे फ्रिज में स्टोर न करें। पहले इन फलों को कुछ देर तक ठंडे पानी में रखा रहने दें। इसके बाद इन्हें रूम टेम्प्रेचर पर ही रहने दें। हालांकि, खाने से पहले इन्हें काटकर कुछ देर फ्रिज में स्टोर कर सकते हैं। क्योंकि कटे हुए फल खुले में रखने से बेस्वाद हो सकते हैं। ​फ्रिज में अलग-अलग रखें फल और सब्जियां फ्रिज में कभी भी फल और सब्जियों को एक शेल्फ में स्टोर नहीं करना चाहिए। इन्हें अलग-अलग रखना चाहिए। क्योंकि फल और सब्जियां अलग तरह की गैस रिलीज करते हैं। साथ में स्टोर करने से इनके टेस्ट पर फर्क पड़ सकता है। ​रूम में रखने से बेहतर रहते हैं फलों के एंटीऑक्सीडेंट्स यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तरबूज, खरबूजा या आम जैसे फलों को रूम टेंपरेचर में रखना ज्यादा बेहतर विकल्प होना चाहिए। बाहर रखने से इन फलों में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स सही रहते हैं जो हमारे शरीर के लिए कई तरह से लाभकारी होते हैं।
हमेशा सेहतमंद रहने के लिए हम प्रोटीन (proteins), खनिज (minerals), विटामिन (vitamins) और कार्बोहाइड्रेट (carbohydrates) जैसे जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को खाना उचित मानते हैं। लेकिन ये जानकारी बहुत कम लोगों को है कि कुछ खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों के साथ रसायन के रूप में विषाक्त पदार्थ (toxins) भी होते हैं। क्योंकि कुछ पौधे विषाक्त पदार्थों के जरिए ही फॉर्म किए जाते हैं या कहें रोपे जाते हैं। हालांकि, इनका मानव जाति पर बहुत हम प्रतिकूल या कहें नकारात्मक प्रभाव होता है। दरअसल, कुछ पौधों या जीवों के माध्यम से विषाक्त पदार्थों को अवॉइड करना मुश्किल हो जाता है। प्लांट्स के जरिए नेचुरल टॉक्सिन्स फूड को हम ठीक वैसे ही कंज्यूम करते हैं जैसे कि पौधों से मिलने वाले पोषक तत्व हमारे लिए जरूरी है। क्योंकि उनसे वाले फाइटोकेमिकल्स, खनिजों और विटामिन्स के जरिए हमारा शरीर स्वस्थ्य रहता है और हमें बीमारियों से बचाते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको भोजन में पाए जाने वाले कुछ टॉक्सिन्स पदार्थों और उन्हें कम करने के बारे में बता रहे हैं। ​प्राकृतिक विषाक्त (टॉक्सिसिटी) क्या हैं? प्राकृतिक विषाक्त (Natural toxins) पदार्थ जहरीले यौगिक होते हैं जो स्वाभाविक रूप से जीवित जीवों में पाए जाते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, हर चीज में थोड़ी बहुत टॉक्सिसिटी जरूर होती है और यह एक डोज होता है जो विषाक्त को गैर विषैले (non-toxic) से अलग करता है। हानिकारक हो सकता है सी फूड का अधिक सेवन शोध में बताया गया है कि अगर बहुत कम समय में 4-5 लीटर पानी को पिया जाता है तो ये भी जहरीला माना जाता है, क्योंकि इससे हाइपोनेट्रेमिया और सेरेब्रल एडिमा हो सकते हैं। WHO के अनुसार, महासागरों और झीलों में पाए जाने वाले सूक्ष्म शैवाल में प्राकृतिक विषाक्त पदार्थ भी होते हैं, जो मछली जैसे जलीय जीवों के लिए हानिकारक नहीं होते हैं, लेकिन जलजीवों का अधिक सेवन करना मनुष्यों के लिए जोखिम भरा हो सकता है। सी फूड ही नहीं बल्कि फलों, सब्जियों, नट्स और बीजों का अत्यधिक सेवन करना भी खतरनाक हो सकता है। ​नट्स, बीन्स और अनाज में पाया जाता है टॉक्सिन लेक्टिंस लेक्टिंस कार्बोहाइड्रेट बाइंडिंग प्रोटीन हैं, जो बीन्स, आलू, साबुत अनाज और नट्स जैसे खाद्य पदार्थों में मौजूद होते हैं। हालांकि वे फाइबर, प्रोटीन और विटामिन बी का एक बड़ा स्रोत भी हैं और मधुमेह और हृदय रोगों के जोखिम को कम करने के लिए जाने जाते हैं। लेक्टिन नाम का विषात्क प्रोटीन ही सीलिएक बीमारी, रुमेटीइड गठिया और कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों और छोटी आंतों से संबंधित समस्याओं के लिए जिम्मेदार है। (4) Apple और नाशपाती में भी हैं विषाक्त पदार्थ एक अध्ययन के अनुसार, 2500 से अधिक पौधों की प्रजातियों में साइनोजेनिक ग्लाइकोसाइड्स (Cyanogenic glycosides) जैसे रसायन यौगिक (chemical compounds) होने की जानकारी दी दई है। ये कम्पाउंड्स परिपक्व पौधों की तुलना में अंकुर और युवा पत्तियों में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इस तरह के यौगिक शाकाहारी जीवों और मनुष्य को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। मानव डिटॉक्सीफाई करने के लिए इनका सेवन कर सकते हैं। कुछ पौधे जिनमें ग्लाइकोसाइड होते हैं उनमें सेब और नाशपाती (Pear) के बीज, खुबानी की गिरी, कसावा, बांस की जड़ें और बादाम शामिल हैं। इनका अधिक सेवन करने से चक्कर आना, पेट में दर्द, सायनोसिस, ब्रेन फॉग, लॉ ब्लड शुगर, सिरदर्द गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं हो सकती हैं। प्रेग्नेंट महिलाओं को नहीं खाने चाहिए ये जलजीवी कुछ बड़ी मछलियों जैसे शार्क, स्वोर्डफिश और मार्लिन में पारा अधिक मात्रा में पाया जाता है। इन मछलियों को बड़ी मात्रा में खाने से टॉक्सिसिटी का खतरा बढ़ सकता है और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system), फेफड़े और गुर्दे से संबंधित स्थितियां पैदा हो सकती हैं। एफडीए बच्चों, गर्भवती (pregnant) और स्तनपान कराने वाली महिलाओं (Breastfeeding) को ऐसे जलजीव खाने की सलाह नहीं देता है। (4) आलू, टमाटर में पाए जाते हैं टॉक्सिन्स सोलनिन चाकोनिन ग्लाइकोकलॉइड की तरह ही सोलनिन और चाकोनीन भी पौधों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले विषाक्त पदार्थ हैं जो सोलानेसी परिवार से संबंधित हैं। ये विषाक्त पदार्थ मुख्य रूप से आलू और टमाटर में कम मात्रा में पाए जाते हैं, लेकिन हरे (green potato) और कुछ डैमेज आलू में अधिक मात्रा में पाए जा सकते हैं। सोलनिन और चाकोनीन के अधिक सेवन से Neurological और gastrointestinal problems जैसी समस्याओं का कारण बन सकती है। ​फूड स्टोरेज माइकोटॉक्सिन (Mycotoxins) कुछ प्रकार के कवक (fungi) द्वारा निर्मित जहरीले यौगिक होते हैं। कवक की वृद्धि विशेष रूप से गर्म, आर्द्र और नम स्थितियों के दौरान हो सकती है जहां फूड आइटम्स को स्टोर किया जाता है। जैसे कटाई के बाद फसल को एक भंडार ग्रह में रखा जाता है और अगर वहां नमी और गर्माहट है तो हमारे खाद्य पदार्थ कवक मायकोटॉक्सिन से दूषित हो जाते हैं। ऐसे खाद्य पदार्थ के सेवन से कैंसर की बामीर हो सकती है और इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो सकता है। ​हर्बल टी, मसाले और शहद में पाए जाते पाइरोलिज़िडिन एल्कलॉइड (पीए) जैसे टॉक्सिन्स लगभग 6000 पौधों की प्रजातियों में पाए जाने वाले कार्बनिक यौगिक हैं। पीए मुख्य रूप से हर्बल चाय, मसाले, अनाज और शहद में पाया जाता है। बड़ी मात्रा में सेवन करने पर वे डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ​भोजन में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले अन्य टॉक्सिन्स बोटुलिनम विष क्लोस्ट्रीडियम जीवाणुओं द्वारा पैदा होने वाला एक विषैला प्रोटीन है और कुछ खाद्य पदार्थों जैसे हरी बीन्स, मशरूम, चुकंदर और पालक में पाया जाता है। हाइपोग्लाइसीन एक एमिनो एसिड है जो एकी पेड़ के कच्चे फल और बॉक्स बड़े पेड़ के बीज में पाया जाता है। यदि यह एसिड हमारे शरीर में अधिक मात्रा में जाता है तो उल्टी और दस्त का कारण बन सकता है। Coumarin एक सुगंधित कार्बनिक रसायन है जो दालचीनी, टोंका बीन्स, ग्रीन टी और गाजर जैसे खाद्य पदार्थों में पाया जाता है। Coumarin की बड़ी मात्रा में धुंधली दृष्टि, मतली और भूख न लगना हो सकती है।
हमीरपुर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर समेत बुन्देलखंड में बंजर जमीन पर कैमोमाइल वनस्पति की खेती किसानों के लिये वरदान साबित हो रही है। इसे जादुई फूल कहते है जिससे असाध्य बीमारी छूमंतर होती है। कम लागत के साथ इसकी खेती के लिए अतिरिक्त सिंचाई की भी जरूरत नहीं पड़ती है। 70 फीसदी किसान कर रहे कैमोमाइल की खेती हमीरपुर जिले के मुस्करा ब्लॉक के चिल्ली गांव में 70 फीसदी किसान इस कैमोमाइल की खेती कर रहे हैं। इन दिनों खेतों में कैमोमाइल के फूल भी खिले हैं। जिन्हें देख किसान उत्साहित हैं। ब्रम्हानंद बॉयो एनर्जी फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी की सीईओ सैफाली गुप्ता ने बताया कि कैमोमाइल एक वनस्पति है जिसका आयुर्वेद में बहुत महत्व है। इस पौधे को जादुई फूल भी कहा जाता है। कैमोमाइल की खेती बुन्देलखंड के किसानों की आर्थिक स्थिति के लिए अब वरदान साबित हो रही है। बुन्देलखंड के हमीरपुर, ललितपुर समेत अन्य जिलों में कैमोमाइल की खेती को बढ़ावा देने वाले जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी धर्मजीत त्रिपाठी ने बताया कि झांसी के चार ब्लाकों के तमाम गांवों में किसान इस वनस्पति की खेती कर रहे है। जबकि हमीरपुर के अलावा महोबा और चित्रकूट में भी अब किसानों ने जादुई फूलों की खेती की तरफ कदम बढ़ाए है। इन रोगों के इलाज में होता है उपयोग बताया कि यह निकोटीन रहित होता है। जो पेट के लिए लाभदायक है। इसका फूल सादगी, सुन्दरता व शांति का प्रतीक है। निश्चित ही इसकी खेती की बुन्देलखंड में असीम संभावनाएं है। होम्योपैथिक चिकित्सक डाँ. कुंवर पाल सिंह ने बताया कि जादुई फूल त्वचा के लिए बड़ा ही गुणकारी होता है। अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, घबराहट, जलन में इसका सेवन करने से बड़ा फायदा मिलता है। चोट, मोच, खरोंच, घाव, रैसेज, पेट के विकारों के इलाज में ये फूल काम आता है। किसानों ने जादुई फूल की खेती कर कमाये लाखों रुपए ब्रम्हानंद बायो एनर्जी फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी के शेयर होल्डर चन्द्रशेखर तिवारी ने बताया कि चिल्ली, धनौरी, पहरा सहित की गांवों में जादुई फूल की खेती किसान कर रहे है। बंजर जमीन पर इसकी खेती कर किसान अब आर्थिक रूप से लगातार मजबूत हो रहे है। किसान ने बताया कि इसकी खेती में दस से बारह हजार रुपए का खर्चा आता है। लेकिन इसकी खेती से किसान को छह माह में ही 1.80 लाख रुपए की आमदनी हुई है। कम लागत में अच्छा मुनाफा होने के कारण अब किसान जादुई की खेती की तरफ रुख किया है। कई राज्यों से लोग किसानों ने खरीदते है जादुई फूल किसान चन्द्रशेखर तिवारी ने बताया कि एक एकड़ जमीन में पौने पांच क्विंटल जादुई फूल होते है जिन्हें सुखाकर राजस्थान के जयपुर और बाबा रामदेव की कम्पनी के लोगों को आपूर्ति किया जाता है। इसके अलावा मध्यप्रदेश से भी तमाम लोग इस फूल को खरीदकर ले जाते है। बताया कि जादुई फूलों की डिमांड आयुर्वेद कम्पनी में ज्यादा होने से अब यहां किसानों ने इसकी खेती का दायरा भी बढ़ाया है। क्योंकि इसकी खेती में लागत कम और मुनाफा अधिक होता है। चिल्ली में पांच सौ किसान जादुई खेती कर रहे है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में अलौकिक है जादुई फूल हमीरपुर के वैद्य दिलीप त्रिपाठी ने बताया कि जादुई फूल मधुमेह और पेट सम्बन्धी सभी बीमारी के लिए रामबाण है। इसके फूल सुखाकर नियमित चाय पीने से शुगर और अल्सर जैसी बीमारी को बड़ा फायदा मिलता है। महोबा के कुलपहाड़ में लम्बे अर्से से आयुर्वेद से इलाज करने वाले डाँ.आत्मप्रकाश ने बताया कि जादुई फूल से होम्योपैथिक में बहुत सी दवाएं बनती है। जिनसे असाध्य बीमारी का इलाज होता है। बताया कि इस फूल के तेल से भी औषधियां बनती है। साथ ही सौन्दर्य प्रसाधन में इसका प्रयोग होता है।
नई दिल्ली।कड़क चाय अदरक के बिना अधूरी होती है। सर्दियों के मौसम में अदरक का प्रयोग बढ़ जाता है। कई सब्जियों में भी अदरक का खूब प्रयोग होता है। कोरोना काल में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए काढ़ा बनाने में भी अदरक का प्रयोग होता है। कोरोना काल में पूरी दुनिया में अदरक का प्रयोग बढ़ गया है। इस साल जनवरी के बाद से अदरक की कीमतों को मानों पंख लग गए हों। भारत, चीन और यूरोप में अदरक की सबसे ज्यादा मांग है। यही कारण है कि बाजार में असली अदरक की जगह पर नकली अदरक बिकने लगा है। अगर आप अदरक खरीदने के लिए बाजार जा रहे हैं तो सावधान रहें। अदरक के रूप में पहाड़ी पेड़ की जड़ को कच्ची अदरक बताकर बेचा जा रहा है। इसमें न अदरक के गुण होते हैं और न ही अदरक जैसा स्वाद। देखने में यह नकली अदरक असली से मिलती-जुलती है। इसे सुखाकर सोंठ के रूप में भी बाजारों में बेचा जाता है। बाजार में बेची जा रही है नकली अदरक ज्ञात हो कि पहाड़ी पेड़ की जड़ अदरक से सस्ती होने से इसमें मुनाफा भी अधिक होता है, इसलिए इसे बाजारों में इन दिनों खूब बेचा जा रहा है। इतना ही नहीं अब तो इसकी खेती भी की जाने लगी है। आढ़ती भ्री पहाड़ी पेड़ का कच्ची अदरक बताकर बेचते हैं। इसको पहचान पाना काफी मुश्किल होता है। आइये हम आपको कुछ ऐसे तरीके बताते हैं, जिनसे आप नकली और असली अदरक की पहचान आसानी से कर सकते हैं। जानें पहाड़ी जड़ व अदरक के बीच का क्या है अंतर जब आप बाजार से अदरक खरीदने जाएं तो खुद तय करें। खरीदते समय यह ध्यान रखें कि अदरक की त्वचा पतली हो, जिसमें नाखून गड़ाकर देखें तो त्वचा कट जाएगी। अब इसे सूंघकर देखें और परखें कि इसकी तीखी खुशबू है या नहीं। अगर खुशबू तीखी है तो अदरक असली है। नहीं तो आप समझ जाएं कि आपको अदरक के नाम पर पहाड़ी जड़ बेचा जा रहा है। इसके अलावा असली अदरक को आप थोड़ा सा चखकर भी देख सकते हैं। इसका स्वाद आपको बता देगा कि यह असली है या नकली। अगर अदरक का छिलका बहुत कठोर होता है तो आप उसे खरीदने से बचें क्योंकि वह अदरक नहीं है। साफ दिखने वाली अदरक से भी रहें दूर यदि आप मिट्टी लगी हुई अदरक की जगह साफ अदरक खरीदना ज्यादा पसंद करती हैं तो अपनी इस आदत को बदल डालें। यह आपकी सेहत को नुकसान पहुंचाने के लिए एक जाल भी हो सकता है। दरअसल, आजकल दुकानदार अदरक को साफ करने के लिए एक प्रकार के एसिड का प्रयोग करते हैं। ऐसी अदरक एसिड से धुली होने के कारण दिखने में साफ नजर आती है। लेकिन यह साफ अदरक आपकी सेहत को नुकसान भी पहुंचा सकती है।
मधुमेह आज के दौर की उन गंभीर बीमारियों में शामिल है जिसका उपचार संभव नहीं है। यानी अगर यह बीमारी किसी व्यक्ति को हो जाए, तो केवल इंसान को जिंदगीभर इस समस्या से सिर्फ लड़ना होता है। आप दवाइयां और खाने पीने में परहेज के जरिए इसके होने वाले अन्य प्रभावों को कम कर सकते हैं, लेकिन इससे पूरी तरह छुटकारा नहीं पाया जा सकता है। ऐसे में विज्ञान और आयुर्वेद का कहना है कि इस बीमारी से बचे रहने में सूखी मेथी का उपयोग किया जा सकता है। आज हम आपको अपने इस लेख में यही बताएंगे कि किस तरह मधुमेह की समस्या से मेथी (Fenugreek Seed) आपका बचाव कर सकती है। क्या कहते हैं अध्ययन डायबिटीज पर मेथी के असर को लेकर अब तक बहुत से अध्ययन हो चुके हैं, जो इसके बहुत से फायदे बताते हैं। रिसर्च बताती है कि मेथी में प्रोबायोटिक्स गुण होते हैं। यह गुण शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बिना प्रभावित किए हुए बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। इसके अलावा खून में शुगर लेवल को भी कम करने का कार्य करते हैं, जिससे मधुमेह के खतरे से आप बचे रहते हैं। साथ ही बताया जाता है कि मेथी के दानों में अल्कलॉइड पाया जाता है, जो इंसुलिन को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसका यह गुण आगे चलकर शुगर लेवल को नियंत्रित करने का कार्य करता है। जबकि एक अध्ययन तो यह तक बताता है कि, अगर रोजाना 10 ग्राम मेथी का सेवन किया जाए तो इससे मधुमेह के कारण होने वाली समस्याओं को भी कम किया जा सकता है। आपको बता दें कि सूखी मेथी के अंदर घुलनशील फाइबर और ग्लुकोमानन फाइबर होता है। यह आंतों से ग्लूकोज को अवशोषित करने में और मधुमेह को नियंत्रित करने का भी कार्य करते हैं। इसके अलावा मेथी के अंदर मौजूद एल्कलॉइड, इंसुलिन के उत्पादन को बेहतर करते हैं और ग्लाइसेमिक स्तर के कम होने का कारण बनते हैं । आइए जानते हैं किस तरह करें मेथी के दानों का सेवन, जिससे मधुमेह और इससे होने वाले अन्य प्रभावों से बचा जा सके। मेथी की चाय आपको सुनकर भले ही अजीब लगे। लेकिन डायबिटीज की समस्या से बचने और इसके असर को कम करने के लिए यह सबसे आसान तरीका है। आपको इसके लिए पानी में मेथी के दाने डालने हैं और इन्हें 10 से 15 मिनट तक के लिए उबालना है। इसके बाद चाय की तरह ही इसे पीना है। इससे खून में शुगर लेवल नियंत्रित रहेगा। मेथी पाउडर मेथी पाउडर के 100 ग्राम की खुराक को लेकर हाल ही में एक शोध किया गया। इस शोध में मधुमेह के मरीजों को दोपहर और रात के खाने के साथ बराबर मात्रा में मेथी पाउडर दिया गया। इसके 24 घंटे बाद मधुमेह के मरीजों का शुगर लेवल और कोलेस्ट्रॉल की जांच की गई, तो इन दोनों की ही मात्रा कम पाई गई। दही और मेथी का सेवन दही और मेथी दोनों के अंदर एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। यह गुण शरीर के अंदर ग्लूकोज के स्तर को कम करने का कार्य कर सकते हैं। ऐसे में आप एक कप दही के अंदर मेथी पाउडर को डालकर खाएं। इससे आपको फायदा होगा। भिगोकर मेथी का सेवन मेथी के अंदर पाए जाने वाले पोषक तत्व ना केवल मधुमेह की समस्या में काम आते हैं, बल्कि यह पाचन क्रिया और एसिडिटी की समस्या को भी बेअसर करते हैं। अगर आप भी मेथी के जरिए इन समस्याओं से राहत पाना चाहते हैं, तो इसके लिए रोजाना 10 ग्राम मेथी के दानों को गर्म पानी में भिगोकर रखें और इसका सेवन करें। कितनी खुराक सही अध्ययनों की मानें तो एक दिन में 2- 25 ग्राम मेथी का सेवन करना सही भी है और सुरक्षित भी। हालांकि इसकी मात्रा कितनी सही है, यह लेने वाले व्यक्ति पर भी निर्भर करता है। वैसे इसकी एक समय की अधिकतम मात्रा 10 ग्राम तय की गई है। इसके अलावा मेथी के कच्चे दानों की 25 ग्राम, पाउडर की 25 ग्राम और मेथी के पके हुए बीजों की 25 ग्राम मात्रा ही सही रहती है। पर अगर आप मेथी का सेवन करना चाहते हैं तो पहले किसी डॉक्टर की सलाह जरूर लें। मेथी के सेवन से आपका मेटाबॉलिज्म, इंसुलिन और ग्लूकोज बेहतर रहता है। इसके अलावा यह उन लोगों के लिए भी फायदेमंद हैं जिन्हे मधुमेह का खतरा है, या फिर जिनकी फैमिली हिस्ट्री इस बीमारी से जुड़ी हुई है। हालांकि मधुमेह से बचने के लिए केवल मेथी ही नहीं बल्कि सही लाइफस्टाइल, खान पान और एक्सरसाइज की भी जरूरत है।
गाजियाबाद कोरोना की तीसरी लहर के लिए यूपी में गाजियाबाद शासन ने बुधवार को गाइडलाइंस जारी कर दी। बच्चों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव का अनुमान लगाकर अभी से तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। सीएमओ ने इसकी पुष्टि की है। तीसरी लहर में कई दवाओं पर रोक रहेगी। गंभीर हालत में ही बच्चों को अस्पताल में भर्ती किया जाएगा। गाइडलाइंस के अनुसार, सामान्य लक्षण होने पर डॉक्टर की निगरानी में घर में ही इलाज होगा। उल्टी, दस्त, खराश और हल्का बुखार सामान्य लक्षण बताया गया है। कुछ मामलों में मल्टी सिस्टम इंफ्लामेंट्री सिंड्रोम की भी शिकायत हो सकती है। इसके मुत‍ाबिक, कोरोना संक्रमित अधिकांश बच्चे लक्षण विहीन हो सकते हैं। लूज मोशन, हल्का बुखार, गले में खराश, उल्टी होना या पेट में दर्द जैसे लक्षण होने का अनुमान है। कुछ केस में मल्टी सिस्टम इंफ्लामेंट्री सिंड्रोम की भी शिकायत हो सकती है। बच्चों को रेमडिसिविर, आइवरमेक्टिन, फैवीपिराविर और स्टेरॉइड जैसी दवाओं को देने से मना किया गया है। गंभीर हालात होने पर ही अस्‍पताल जाएं जिन बच्चों का ऑक्सिजन लेवल 90 से कम आता है, उन्हें गंभीर निमोनिया, एक्यूट रिसपाइटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम, सैप्टिक शॉक, मल्टी ऑर्गन डिस्फंक्शन सिंड्रोम जैसी बीमारियां हो सकती हैं। ऐसे मरीजों को फौरन किसी कोविड अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। जरूरत पड़ने पर आईसीयू वॉर्ड में शिफ्ट कराया जाएगा। कुछ मामलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की सलाह के बाद स्टेरॉइड दी जा सकेगी। स्टूल टेस्ट से होगी कोरोना की पुष्टि कुछ बच्चे सामान्य पेट दर्द, बुखार, उल्टी और दस्त के भी आ सकते हैं। शुरुआत में इनका भी इलाज कोविड प्रोटोकॉल के तहत होगा। इस दौरान ही इनके स्टूल की जांच कराई जाएगी। उसमें कोरोना की पुष्टि हुई या नहीं, इसके आधार पर आगे का इलाज किया जाएगा। ज्यादातर में होंगे ऐसे लक्षण ज्यादातर बच्चे लक्षण विहीन या हल्के-फुल्के लक्षण वाले होंगे। बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, थकावट, सूंधने व स्वाद की क्षमता में कमी आना, नाक बहना, मांसपेशियों में तकलीफ, गले में खराश कुछ बच्चों में दस्त आना, उल्टी होना, पेट दर्द होना सामान्य लक्षण होंगे। ऐसे बच्चों में 38 डिग्री सेंटीग्रेट तक बुखार हो सकता है। क्या है मल्टी सिस्टम इंफ्लामेंट्री सिंड्रोम? मल्टी सिस्टम इंफ्लामेंट्री सिंड्रोम में शरीर में जहरीले तत्व उत्पन्न होने लगते हैं। कुछ ही वक्त में ये पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इसका असर महत्वपूर्ण अंगों पर पड़ता है। एक साथ कई अंग काम करना बंद कर सकते हैं और बच्चों की जान भी जा सकती है। इसमें हाथ और पैर पर लाल चकत्ते निकला, सूजन आना और पेट में दर्द के लक्षण दिख सकते हैं।
यहां हम आपके लिए कुछ ऐसे ही घरेलू टिप्स लेकर आए हैं, जिनके जरिए आप पार्लर ट्रीटमेंट का खर्च और टाइम दोनों सेव कर सकती हैं। खास बात ये है कि घर पर बालों की देखभाल के जरूरी सभी चीजें आपकी रसोई में ही आपको मिल जाएंगी। हेयर केयर होम रेमेडीज का उपयोग करना इतना भी मुश्किल और टाइम टेकिंग नहीं होता है, जितना कि आपको टीवी और सोशल साइट्स के विज्ञापनों में दिखाया जाता है। आइए, जानते हैं हर्बल तरीके से बालों को घना और लंबा बनाने के तरीके। बालों के रामबाण है अदरक अदरक के बारे में ज्यादातर महिलाओं को यही पता है कि ये गले की खराश और कोल्ड जैसी बीमारियों से बचाव की घरेलू औषधि है। लेकिन आपको बता दें कि आपके बालों को झड़ने से रोकने, इन्हें घना बनाने और बालों की ग्रोथ बढ़ाने में भी अदरक बेहद प्रभावी और कारगर उपाय है। बालों में अदरक का उपयोग करने के लिए आप दही मेहंदी शहद के साथ अदरक का पेस्ट मिक्स करें। और तैयार हेयर मास्क को 35 से 40 मिनट के लिए बालों में लगाएं। अदरक हेयर मास्क से होते हैं ये फायदे हेयर मास्क में अदरक पेस्ट मिक्स करके लगाने से सिर में डैंड्रफ, फुंसी, खुजली, सीबम, बॉइल्स इत्यादि की समस्या दूर रहती है। अदरक में पाई जाने वाली ऐंटी-इंफ्लामेट्री प्रॉपर्टीज बालों की ग्रोथ को बढ़ाने में मदद करती हैं। क्योंकि ये स्किन में आने वाली अंदरूनी सूजन को कंट्रोल करके बालों की जड़ों में रक्त प्रवाह और ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है। प्याज का रस लगाएं बालों में प्याज का रस लगाने से कई लाभ एक साथ मिलते हैं। खास बात यह है कि सिल्की और स्मूदनेस का असर एक बार प्याज का रस लगाने पर ही दिखने लगता है। बाल बहुत सॉफ्ट और सिल्की हो जाते हैं। प्याज के रस में सल्फर प्रचुर मात्रा में होता है। यह आपके बालों को डैमेज होने से बचाता है, लंबाई बढ़ाता है और नए बाल जल्दी उगाने में मदद करता है। प्याज के रस को इस तरह बालों पर लगाएं। बालों में इस तरह लगाएं प्याज का रस 2 चम्मच प्याज का रस 3 चम्मच नारियल तेल या ऑलिव ऑइल दोनों चीजों को मिलाकर धीमी आंच पर गुनगुना करें। जब ये हल्का-हल्का गर्म रह जाए तब इसे बालों की जड़ों में लगाते हुए हल्के हाथों से मसाज करें। सप्ताह में एक बार यह विधि अपनाने पर भी आपको बहुत लाभ मिलेगा। प्याज का रस बनाने के लिए आप प्याज को मिक्सी में पीस सकती हैं या फिर इसे कद्दूकस कर सकती हैं। दोनों ही प्रक्रिया के बाद प्याज के गूदे को छानकर रस अलग कर लें। इससे शैंपू करने के बाद बालों को क्लीन करने में दिक्कत नहीं होगी। नींबू और ऐलोवेरा की मसाज बालों में नींबू के रस के साथ ऐलोवेरा जेल मिलाकर मसाज करने से बालों को बहुत अधिक लाभ मिलता है। इससे बालों से जुड़ी सभी समस्याएं जैसे, डैंड्रफ, बालों का झड़ना और बालों में चिपचिपाहट रहना आदि तो दूर होती ही हैं, साथ ही बालों की ग्रोथ भी बढ़ती है। आप दो से तीन चम्मच ऐलोवेरा जेल में दो चम्मच नींबू का रस मिलाकर लिक्विड तैयार करें और इससे बालों की जड़ों में मसाज करें। सप्ताह में एक बार ऐसा करने पर ही आपको काफी लाभ मिलेगा। करी पत्ता मिक्स हेयर केयर बालों पर दो प्रकार से करी लीव्स का उपयोग किया जा सकता है। एक करी पत्ता हेयर ऑइल के रूप में और दूसरे करी पत्ता हेयर मास्क के रूप में। करी पत्ता हेयर ऑइल बनाने के लिए आप नारियल तेल में करी पत्ता मिक्स करके वॉइल करें और तेल को ठंडा होने पर सिर में मसाज करें। हेयर मास्क बनाते समय आप करी पत्ता का पेस्ट बनाकर इसे दही और हिना पाउडर के साथ मिक्स करके लगाएं। आपके रूखे और बेजान बालों में नई चमक आ जाएगी। शहद और नींबू का मिक्स बालों को क्लीन और हेल्दी बनाए रखने के लिए आपको कोई खास मशक्कत करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ सप्ताह में एक बार शहद, नींबू और सरसों तेल के मिक्स को बालों में लगाकर 30 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर शैंपू कर लें। हेल्दी बालों की शाइन बनाए रखने में यह मिक्स बहुत मददगार है। साथ ही यह बालों को स्मूद और सॉफ्ट भी बनाकर रखता है। यदि आप हर सप्ताह इस मिक्स का उपयोग करेंगी तो आपको बालों से जुड़ी किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।
हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट आज इंसान के लिए सबसे गंभीर समस्या बन गई है। यूं तो हार्ट अटैक अचानक ही होता है लेकिन इसकी बहुत सी वजह हैं जिसमें खराब लाइफ स्टाइल और बेकार खान पान तक शामिल है। वैसे तो हार्ट अटैक आने का कोई निर्धारित समय नहीं होता। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे ज्यादा हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट सुबह के समय बाथरूम में आते हैं। पर अब आपको लग रहा होगा कि आखिर ऐसा क्यों होता है। बाथरूम में हार्ट अटैक आने के बहुत से कारण हैं, अगर आपको इन कारणों बारे में जानकारी हो तो आप खुद को और अपने परिवार को इससे सुरक्षित रख सकते हैं। अब हम आपको यह बताएं कि सुबह के समय बाथरूम में हार्ट अटैक क्यों आते हैं? तो इससे पहले यह तो समझ लें कि आखिर हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट क्या होता है? ​क्या होता है हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट विज्ञान के नज़रिए से देखने पर पता चलता है कि हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट का सीधा संबंध हमारे खून से होता है। खून के जरिए हमारे शरीर में ऑक्सीजन और जरूरी पोषक तत्व पहुंचते हैं। लेकिन जब आपके हृदय तक ऑक्सीजन पहुंचाने वाली , धमनियों में प्लाक जमने की वजह से रुकावट पैदा होने लगती है, तो इससे हृदय के धड़कने की रफ्तार असंतुलित हो जाती है। इससे ही हमें हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट आ जाता है। ​बाथरूम में हार्ट अटैक आने का पहला कारण सुबह के समय जब हम टॉयलेट जाते हैं तो कई बार पेट पूरी तरह साफ करने के लिए हम प्रेशर लगाते हैं। इंडियन टॉयलेट का इस्तेमाल करते वक्त लोग अधिक प्रेशर लगाते दिखाई देते हैं। यह प्रेशर हमारे दिल की धमनियों पर अधिक दबाव बनाता है। इससे हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट आ सकता है। ​बाथरूम में अटैक आने का दूसरा कारण आपने अक्सर देखा होगा कि बाथरूम का तापमान हमारे घर के अन्य कमरों के मुकाबले अधिक ठंडा रहता है। ऐसी स्थिति में शरीर के तापमान को संतुलित करने और खून के प्रवाह को बनाए रखने के लिए अधिक कार्य करना पड़ता है। यह भी दिल का दौरा पड़ने का एक कारण हो सकता है। ​तीसरा कारण सुबह के समय हमारा ब्लड प्रेशर थोड़ा ज्यादा होता है। ऐसे में हम जब नहाने के लिए अधिक ठंडा या गर्म पानी सीधा सिर पर डाल देते हैं, तो इससे ब्लड प्रेशर प्रभावित होता है। इससे हार्ट अटैक आने का जोखिम बढ़ जाता है। ​​हार्ट अटैक से बचाव के तरीके अगर आप इंडियन टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं, तो अधिक समय तक एक ही पोजिशन में ना बैठें। इस तरीके से आप हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट से बच सकते हैं। बाथरूम में नहाते समय पानी के तापमान का ध्यान रखते हुए, सबसे पहले पैरों के तलवों को भिगोएं। इसके बाद हल्का पानी सिर पर डालें। यह तरीका आपको बचा सकता है। पेट साफ करने के लिए ना तो अधिक जोर लगाएं और ना ही जल्दबाजी दिखाएं। अगर आप नहाते समय अधिक समय तक बाथ टब या पानी में रहते हैं तो इसका असर भी आपकी धमनियों पर पड़ता है। ऐसे में अधिक समय तक बाथ टब में ना बैठें। ​हार्ट अटैक के लक्षण सीने में तेज दर्द होना सांस लेने में परेशानी आना कमज़ोरी महसूस करना। डायबिटीज़ के मरीज़ों को कई बार बिना कोई लक्षण दिखे भी हार्ट अटैक आ जाता है। इसे साइलेंट हार्ट अटैक कहा जाता है। तनाव और घबराहट होना भी हार्ट अटैक का लक्षण है चक्कर या उल्टी आना भी एक लक्षण है। ​​हार्ट अटैक आने पर क्या करें अगर आपके सामने किसी व्यक्ति को हार्ट अटैक आए तो आप उसे सबसे पहले जमीन पर लेटा दें। लेटने के बाद अगर उसने अधिक टाइट कपड़े पहने हैं तो उन्हे खोल दें। लेटाते समय व्यक्ति का सिर थोड़ा ऊपर की ओर हो इस बात का खास ध्यान रखें। एंबुलेंस के लिए तुरंत फोन करें। हाथ पैरों को रगड़ते रहें। अगर मरीज को सांस लेने में परेशानी आए तो उनकी नाक को बंद करें और उसके मुंह में अपने मुंह से हवा भर दें। इससे उसके फेफड़ों में हवा भर जाएगी। जानें किसे और क्यों होता है हार्ट अटैक, कैसे करें बचाव अगर आपके सामने किसी व्यक्ति को हार्ट अटैक आए तो आप उसे सबसे पहले जमीन पर लेटा दें। लेटने के बाद अगर उसने अधिक टाइट कपड़े पहने हैं तो उन्हे खोल दें। लेटाते समय व्यक्ति का सिर थोड़ा ऊपर की ओर हो इस बात का खास ध्यान रखें। एंबुलेंस के लिए तुरंत फोन करें। हाथ पैरों को रगड़ते रहें। अगर मरीज को सांस लेने में परेशानी आए तो उनकी नाक को बंद करें और उसके मुंह में अपने मुंह से हवा भर दें। इससे उसके फेफड़ों में हवा भर जाएगी।
डायबिटीज रोगी आमतौर पर अपने खाने को लेकर बहुत सतर्क रहते हैं। कुछ भी खाने से पहले अपने ब्लड शुगर लेवल पर इसके प्रभाव के बारे में सोचते हैं। बहुत से लोग जो डायबिटीज या किसी क्रॉनिक डिजीज से ग्रसित हैं, वे मूंगफली खाने से बचते हैं। उनका मानना है कि मूंगफली कोलेस्ट्रॉल और वजन दोनों बढ़ाती है। लेकिन ये वास्तव में सच नहीं है। जिन लोगों को ये भ्रम है, उन्हें ये जानना चाहिए कि मधुमेह रोगी के लिए भी कम मात्रा में मूंगफली का सेवन अच्छा है। इसलिए डॉक्टर भी अक्सर इस पोषक तत्व से भरपूर खाद्य पदार्थ को अपने आहार में खाने की सलाह देते हैं। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (American Medical Association) के जर्नल के एक अध्ययन के अनुसार, मूंगफली या पीनट बटर खाने से टाइप टू डायबिटीज का खतरा काफी कम हो जाता है। दरअसल, मूंगफली में अनसैचुरेटेड फैट और अन्य पोषक तत्व अच्छी मात्रा में होते हैं, जो आपके शरीर की इंसुलिन को नियंत्रित करने के लिए जाने जाते हैं। ​मधुमेह से पीड़ित लोगों को मूंगफली क्यों खानी चाहिए मूंगफली में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। इसका मतलब है कि ये ब्लड शुगर लेवल को बहुत जल्दी नहीं बढ़ाते । मधुमेह के रोगी के लिए कम ग्लाइसेमिक सामग्री वाला भोजन खाना बहुत जरूरी है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स इस बात पर आधारित है कि आपका शरीर कितनी जल्दी कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज या ब्लड शुगर में बदलता है। मूंगफली का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 13 होता है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन (British Journal of Nutrition )में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि नाश्ते में मूंगफली या पीनट बटर खाने से भूख में कमी आ सकती है और दिनभर ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है। इसके अलावा मूंगफली में पाया जाने वाला मैग्नीशियम रक्त ‘शर्करा के स्तर को बनाए रखता है। पोषक तत्व का भंडार है मूंगफली डायटिशियन ने बताया, मूंगफली में वो सभी पोषक तत्व मौजूद हैं, जो अन्य सभी नट्स जैसे अखरोट और बादाम में होते हैं। मूंगफली अन्य नट्स की तुलना में सस्ती होती है। इसके अलावा यह एंटीऑक्सीडेंट्स, फाइबर, प्रोटीन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, कैल्शियम और अन्य पोषक त्तवों से भरपूर है। मूंगफली न केवल डायबिटीज वाले लोगों के लिए बल्कि दिल से जुड़ी समस्याओं, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और सूजन से पीड़ित लोगों के लिए भी असरदार होती है। ​टाइप-2 मधुमेह वाले लोगों के लिए मूंगफली के फायदे ब्लड शुगर को कंट्रोल करे- मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, क्लिनिकल न्यूट्रिशन एंड फूड एंड बेवरेज की डायटिशियन ज्योति खनिजोह ने बताया कि मूंगफली के पौष्टिक गुण टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों को फायदा पहुंचाते हैं। मूंगफली का जीआई वैल्यू 14 होता है, जो इसे लो जीआई फूड बनाता है। इसलिए, मधुमेह रोगियों के लिए मूंगफली खाना सुरक्षित है। यह पूरे दिन रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। मूंगफली में पर्याप्त मात्रा में मैग्नीशियम होता है, इसलिए यह रक्त शर्करा को कम करने के लिए अच्छा विकल्प है। बता दें कि लगभग 28 मूंगफली में 12 प्रतिशत मैग्नीशियम होता है। जर्नल ऑफ इंटरनल मेडिसिन की एक रिपोर्ट के अनुसार, मैग्नीशियम ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करता है। ​हृदय रोग के जोखिम को कम करे अमेरिकन कॉलेज ऑफ न्यूट्रिशन (American College of Nutrition) के जर्नल के एक रिसर्च पेपर से पता चला है कि मूंगफली खाने से दिल की बीमारी का खतरा कम होता है, जो मधुमेह की एक सामान्य जटिलता है। अपने आहार में नट्स शामिल करने से हाई ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं कनी पड़ती। मूंगफली वजन कम करे मूंगफली से अपनी भूख पर काबू पाया जा सकता है। यह आपको स्वस्थ वजन बनाए रखने और ब्लड शुगर लेवल को बेहतर ढंग से नियंत्रित करती है। द जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, प्रोटीन कैलोरी बर्न करने का सबसे अच्छा तरीका है। मूंगफली में फाइबर, प्रोटीन और हेल्दी फैट सहित कई अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं जो समग्र कैलोरी को नियंत्रित कर वजन घटाना आसान बनाते हैं। ​कितनी मात्रा में करें मूंगफली का सेवन यदि मूंगफली को फलों के साथ लिया जाए, तो यह ब्‍लड शुगर को स्पाइक होने से रोकता है। जैसे अगर भोजन के बीच में फल लिया जाता है, तो फल के जीआई प्रभाव को कम करने के लिए 8-10 मूंगफली साथ में लेनी चाहिए। वहीं, अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन (American Diabetes Association) महिलाओं को लगभग 25 ग्राम और पुरुषों को प्रतिदिन 38 ग्राम मूंगफली का सेवन करने की सलाह देती है। ​​किस तरह से खाएं मूंगफली मूंगफली स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी है। इसे खाने का सबसे अच्छा तरीका है बिना नमक और चीनी के खाना। आप चाहें तो पीनट बटर के रूप में या फिर सलाद में मिलाकर भी खा सकते हैं। मधुमेह के रोगियों के लिए दिन में एक मुठ्ठी मूंगफली का सेवन पर्याप्त है। हालांकि, इसे ज्यादा मात्रा में खाने से बचें। इसकी जरूरत से ज्यादा मात्रा कब्ज और वजन बढ़ा सकती है। डायबिटीज रोगी के लिए मूंगफली कम खर्चीला विकल्प है। मूंगफली को कम मात्रा में और शुद्ध रूप में ही खाने से फायदा होगा।
इस समय की बात की जाए तो कोरोना वायरस के कारण लोगों को सांस लेने में दिक्‍कत हो रही है, जिसकी प्रमुख वजह ऑक्‍सीजन लेवल का कम होना है। वयस्‍कों और वृद्धों के लिए नॉर्मल ऑक्‍सीजन लेवल कितना होना चाहिए, इस बारे में तो सभी बात कर रहे हैं लेकिन क्‍या कोई ये जानता है कि बच्‍चों के लिए ऑक्‍सीजन लेवल कितना होना चाहिए और बच्‍चों में लो या हाई ऑक्‍सीजन लेवल कितना होना चाहिए। ​सांस लेने के लिए क्‍यों जरूरी है ऑक्‍सीजन लेवल सभी तरह की जैविक क्रियाओं के लिए एनर्जी बनाने के लिए हमारे शरीर को ऑक्‍सीजन की जरूरत पड़ती है। इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्‍साइड विषाक्‍त पदार्थ के रूप में शरीर से निकल जाती है। इसके लिए श्‍वसन तंत्र वातावरण से हवा लेकर फेफड़ों तक पहुंचाता है और फिर ऑक्‍सीजन गैस को दोनों फेफड़ों और कोशिकाओं के अंदर डालता है। हमारे फेफड़ें बाहरी हवा से ऑक्‍सीजन लेकर खून और कार्डियोवस्‍कुलर सिस्‍टम के जरिए कोशिकाओं तक पहुंचाते हैं जिससे एनर्जी बनती है। जब हम सांस लेते हैं तो ऑक्‍सीजन फेफड़ों में पहुंचता है और खून में मिल जाता है। इस तरह ऑक्‍सीजन सांस लेने की प्रक्रिया के लिए जरूरी होती है। ​बच्‍चों के लिए ऑक्‍सीजन का लो लेवल कुछ बच्‍चों को सांस लेने में दिक्‍कत आती है और खाने, रोने और खेलने से सांस लेने की प्रक्रिया और मुश्किल हो सकती है। बच्‍चों को कुछ सेकंड या मिनट के लिए ऑक्‍सीजन की कमी होने से कोई नुकसान नहीं होता है। लेकिन लो ब्‍लड ऑक्‍सीजन लेवल के बने रहने जैसे कि ऑक्‍सीजन लेवल के 88 पर्सेंट से भी नीचे जाने पर शरीर को नुकसान पहुंच सकता है। शरीर में ऑक्‍सीजन को बनाए रखने के लिए हार्ट को ज्‍यादा मेहनत करनी पड़ती है जिससे उसका साइज सामान्‍य से ज्‍यादा हो सकता है। ​कितना होना चाहिए ऑक्‍सीजन लेवल ऑक्‍सीजन शरीर के लिए एक दवा है। यदि ऑक्‍सीजन लेवल 92 पर्सेंट से ज्‍यादा हो तो इसका मतलब है कि शरीर को अपनी जरूरत के हिसाब से पर्याप्‍त ऑक्‍सीजन मिल पा रहा है। पल्‍मोनरी हाइपरटेंशन से ग्रस्‍त बच्‍चों में 95 पर्सेंट या इससे ज्‍यादा ब्‍लड ऑक्‍सीजन लेवल होना चाहिए। ​बच्‍चों में SpO2 का लेवल 7 से 9 साल की उम्र के बच्‍चों में SpO2 वैल्‍यू 89 पर्सेंट और 90 पर्सेंट के बीच होना चाहिए। अलग-अलग उम्र के बच्‍चों में इसकी वैल्‍यू 90 और 91 पर्सेंट हो सकती है। बीएमसी पीडियाट्रिक्‍स में प्रकाशित एक अध्‍ययन में 1,378 स्‍वस्‍थ बच्‍चों को शामिल किया गया था। इनमें 719 लड़के थे। सभी की SpO2 वैल्‍यू 94.5 पर्सेंट थी और उम्र एवं लिंग के आधार पर कोई भिन्‍नता नहीं देखी गई। नॉर्मल SpO2 वैल्‍यू 90 पर्सेंट है और 5 साल से कम उम्र के बच्‍चों के लिए 91 पर्सेंट और 7 साल से अधिक उम्र के बच्‍चों के लिए 90 पर्सेंट SpO2 वैल्‍यू है। डॉक्‍टर की राय वसंत कुंज स्थिज फोर्टिस अस्‍पताल के सीनियर कंसल्‍टेंट पीडियाट्रिशियन डॉक्‍टर पवन कुमार का कहना है कि स्‍वस्‍थ बच्‍चे का ऑक्‍सीजन लेवल वयस्‍कों की ही तरह 98, 99 और 100 के बीच में होना चाहिए। लेकिन अगर कोरोना ने बच्‍चे के फेफड़ों को प्रभावित कर दिया है, तो इस स्थिति में बच्‍चे को सांस लेने में दिक्‍कत हो सकती है। फेफड़ों के प्रभावित होने पर निमोनिया हो सकता है। इसमें डॉक्‍टर कोविड निमोनिया का ही इलाज देते हैं जैसे नेबुलाइजर आदि। यदि बच्‍चे का ऑक्‍सीजन लेवल 81 या 82 तक पहुंच गया है तो यह चिंता की बात है लेकिन कोरोना के आम लक्षणों में ऑक्‍सीजन लेवल कम होना शामिल नहीं है। जब तक कि फेफड़े इस इंफेक्‍शन से प्रभावित नहीं होंगे, तब तक बच्‍चे को सांस लेने या सोने में दिक्‍कत नहीं आएगी और उसका ऑक्‍सीजन सैचुरलेशन लेवल भी कम नहीं होगा।
नई दिल्ली, कोरोना महामारी के कहर के बीच रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की नई दवा ने कोरोना के खिलाफ जंग जीतने की नई उम्मीद दी है। डीआरडीओ की इस नई कोरोना रोधी दवा का इस्तेमाल आपात स्थिति में कोरोना संक्रमित मरीजों पर किया जाएगा। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने डीआरडीओ की 2-डीआक्सी-डी-ग्लूकोज (2-DG) नाम से विकसित इस दवा को मंजूरी दे दी है। इस दवा से कोरोना संक्रमित मरीजों में आक्सीजन की कमी की चुनौती को काफी हद तक कम किया जा सकता है। डीआरडीओ ने यह जानकारी दी है। क्लीनिकल ट्रायल में आक्सीजन पर निर्भरता भी कम हुई ट्रायल के दौरान दवा लेने वाले लोग बड़ी संख्या में आरटीपीसीआर टेस्ट में निगेटिव पाए गए। यह दवा अस्पताल में भर्ती मरीजों की आक्सीजन पर निर्भरता को भी काफी कम करती है। 2डीजी दवा से मरीज की रिकवरी भी अपेक्षाकृत जल्दी हुई है। डीआरडीओ के अनुसार, यह दवा कोरोना संक्रमण से जूझ रहे मरीजों के लिए बेहद लाभदायक साबित होगी। यह दवा कोरोना के मध्यम और गंभीर मरीजों को अस्पताल में इलाज के दौरान दी जा सकती है। डीआरडीओ और इनमास के वैज्ञानिकों ने विकसित किया दवा डीआरडीओ और इनमास के वैज्ञानिकों ने अप्रैल, 2020 में इस दवा को विकसित करने पर काम शुरू किया था। हैदराबाद स्थित सेंटर फार सेल्युलर एंड मॉलीक्युलर बायोलॉजी के सहयोग से लेबोरेटरी टेस्ट में पाया गया कि 2-डीजी कोरोना के वायरस सार्स-सीओवी-2 पर प्रभावकारी है। यह वायरस की ग्रोथ को भी रोकने में सक्षम है। ट्रायल के इस निष्कर्ष के बाद मई, 2020 में डीसीजीआइ और सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ने इसके दूसरे चरण के ट्रायल की अनुमति दी। डीआरडीओ और रेड्डीज लेबोरेटरीज ने इसके बाद दवा के प्रभाव का आकलन करने के लिए मई से अक्टूबर तक क्लीनिकल ट्रायल किया। इस दवा के इस्तेमाल से मरीजों की जल्दी होती है रिकवरी दवा को सुरक्षित और कोरोना मरीजों पर असरकारी पाया गया है। फेज दो का ट्रायल पहले छह और फिर 11 अस्पतालों में किया गया। इस क्रम में 110 मरीजों पर इसका असर जांचा परखा गया। ट्रायल के आधार पर आकलन में पाया गया कि 2-डीजी दवा का इस्तेमाल करने वाले मरीजों की रिकवरी अपेक्षाकृत ढाई दिन कम समय में हुई। देश के 27 अस्पतालों में इसका क्लीनिकल ट्रायल इस कामयाबी के बाद डीसीजीआइ ने इसके तीसरे फेज के ट्रायल की अनुमति दी। नवंबर से मार्च, 2021 तक दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु्, गुजरात और महाराष्ट्र के 27 अस्पतालों में इसका क्लीनिकल ट्रायल हुआ। इसमें पाया गया कि 2-डीजी दवा लेने वाले मरीज कोरोना की तय मानक दवाओं के सेवन वाले मरीजों के मुकाबले ज्यादा तेजी से रिकवर हुए और उनकी आक्सीजन पर निर्भरता भी काफी कम हुई। 65 साल से अधिक उम्र के मरीजों में भी यही ट्रेंड देखा गया। इसके बाद एक मई को डीसीजीआइ ने इस दवा के आपात इस्तेमाल की अनुमति दे दी। देश में ही आसानी से बन सकेगी दवा खास बात यह है कि 2-डीजी जनरिक दवा है और इसे देश में बड़ी मात्रा में आसानी से बनाया जा सकता है। कोरोना की दूसरी लहर में आक्सीजन की कमी के चलते गंभीर स्थिति का सामना कर रहे मरीजों की हालत को देखते हुए यह दवा भविष्य में इस हालात को रोकने में बेहद कारगर साबित हो सकती है। डीजी कैसे काम करती है? आधिकारिक जानकारी के अनुसार क्लिनिकल ट्रायल्स से पता चलता है कि ये दवा मरीजों में इस बीमारी से रिकवर होने की गति को तेज करती है और ऑक्सीजन पर निर्भरता को कम करती है। जिन मरीजों को 2-DG दवा दी गई उनमें से अधिकतर का आरटी-पीसीआर टेस्ट जल्दी नेगेटिव आया है। ड्रग कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों के लिए काफी सहायक होगी। कैसे ली जाएगी 2-DG दवा डीआरडीओ ने बताया कि यह दवा एक पाउडर के रूप में सैशे में आती है, जिसे पानी में घोलकर दिया जा सकता है। डीआरडीओ की रिसर्च लैब इंस्टीट्यूट आफ न्यूक्लियर एंड एलायड साइंसेज (इनमास) में डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज, हैदराबाद के सहयोग से विकसित इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा है। ये वायरस से प्रभावित सेल्स में जाकर जम जाती है और वायरस सिंथेसिस व एनर्जी प्रोडक्शन को रोककर वायरस को बढ़ने से रोकती है। कितने दिन में आ जाएगी 2-DG? डीआरडीओ ने बताया है कि इसे बेहद आसानी से उत्पादित किया जा सकता है, इसलिए देशभर में जल्दी ही आसानी से उपलब्ध भी हो जाएगी। क्योंकि इसमें बेहद जेनेरिक मॉलिक्यूल हैं और ग्लूकोस जैसा ही है।
देश में हर दिन लाखों लोगो कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं। ऐसे में जो लोग इस बीमारी से अपनी बचाव चाहते हैं अपने इम्यूनिटी सिस्टम को बूस्ट के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। कोई अपनी डाइट में तरह-तरह के पोषक तत्वों से समृद्ध फल शामिल कर रहे हैं कोई नारियल पानी और लेमन-पुदीना जूस को। जो लोग कोविड से बचे हुए हैं वे तो खुद को सेहतमंद रखने में कारगर हैं लेकिन जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं उन्हें तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जैसे कई लोग अपनी भूख को ही खो देते हैं और कमजोरी महसूस करने लगते हैं। लिहाजा आज हम कोविड से रिवकर हो रहे लोगों की डाइट के बारे में चर्चा कर रहे हैं। एक्सपर्ट्स की मानें तो कोरोना से जान बचाने के लिए मरीजों को पौष्टिक डाइट लेना बहुत जरूरी है। आखिर वो कौन से आहार हैं जिनके जरिए आप जल्द से जल्द कोरोना की जंग जीत सकते हैं। यहां हम आपको कोरोना से जल्द रिकवर होने के लिए ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर में लेने वाले हेल्दी फूड आइटम्स के साथ-साथ उन्हें लेने का दिनचर्या भी बता रहे हैं। ​इस डाइट को लेने से जल्द मिलेगा कोरोना से छुटकारा ब्रेकफास्ट- 4 इडली, रागी डोसा, दलिया खिचड़ी -2 कप, पोंगल- 2 कप, ढोकला- 5 पिस, अंकुरित उबला हुआ मूंग दाल (बॉअल स्प्राउट), -1/ 2 सांभर, एक कप दाल, प्याज टमाटर की चटनी, पुदीना चटनी जैसी तमाम चीजें ले सकते हैं। मिड-मॉर्निंग- 1 बाउल मिक्स्ड फ्रूट (ओरेंज, पपीता, सेब और अमरूद) मिड अफटरनून- एक कटोरी दाल का सूप ​लंच एक कटोरी ब्राउन राइस या फिर हैंड पाउंड चावल-3 (hand pounded rice), 3 कप सांबर या 1 कप मैंगो दाल ओटर काउपर करी, चाहें तो पालक या हरी सब्जी भी ले सकते हैं। इसके अलावा दही राइज, अजवाइन की रोटी, मेथी आलू, पसंद की दाल, और दही गाजर, आलू, प्याज, कद्दू और गोभी की सब्जी का सेवन भी कर सकते हैं। ​इवनिंग स्नैक्स एक कटोरी फल और हल्दी वाली चाय, एक उबला हुए स्वीट पोटेटो यानी शकरकंद उबला हुआ, एक प्ले गुड के साथ पोहा या फिर बॉम्बे टोस्ट -2 स्लाइस, ड्राई फ्रूट्स ट्रेल मिक्स आदि चीजों को आप मिड इननिंग में ले सकते हैं। ​डिनर 2 कटोपी ब्राउन राइज/ हैंड पाउंड राइज/ वरुगा चावल -या फिर दलिया की खिचड़ी ले सकते हैं। इसके अलावा ब्रोकन व्हीट पोंगल, गेहूं का डोसा, इडियप्पम, चना करी और एक कप सूखी सब्जी का सेवन कर सकते हैं। ​जल्द रिकवरी के लिए जरूरी है प्रोटीन प्रोटीन (protein) हमारे लिए बहुत ही आवश्यक हैं जिसके जरिए हम किसी भी बीमारी से जल्द रिकवर हो जाते हैं। इनमें मौजूद जरूरी अमीनो एसिड आपको हानिकारक इनफेक्शन से हमें बचाते हैं। हमारे शरीर को हर दिन 75-100 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। अपने आहार में जितनी दाल, फलियां, दूध और दूध से बने पदार्थ, सोया, नट, फल और हरी सब्जियां, को शामिल करेंगे तो हम प्रोटीीन की जरूरी मात्रा को पा सकते हैं। ​डाइट में शामिल करें ये आहार फल, सब्जियां, फलियां (lentils, beans) नट्स और साबुत अनाज जैसे मक्का, बाजरा, जई, गेहूं, ब्राउन राइस या स्टार्च वाले कंद, आलू, रतालू, कसावा जैसे खाद्य पदार्थ हमें पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान करते हैं। अपनी डाइट में आप हर दिन 2 कप फल, 2.5 कप सब्जियां, 180 ग्राम अनाज और 160 ग्राम बीन्स को शामिल कर सकते हैं। ​हाइड्रेट रहें पानी जीवन के लिए जरूरी है और इसलिए हमेशा खुद को हाइड्रेट रखें। पानी के जरिए ही फूड आइटम्स द्वारा खाए गए पोषक तत्वों का हमारे ब्लड में ट्रांसपोर्टेशन होता है। साथ ही पानी आपके शरीर के तापमान को भी नियंत्रित करता है। हर दिन 8-10 कप पानी पीना सभी के लिए जरूरी है। पानी सबसे अच्छा विकल्प है, लेकिन आप अपनी ड्रिंक में लेमन जूस को भी शामिल कर सकते हैं। ​इन ड्रिंक्स से रहें सावधान चाय और कॉफी पीना ठीक है लेकिन सावधान रहें कि बहुत अधिक कैफीन वाले पदार्थों का सेवन न करें और साथ ही मीठे फलों के रस, सिरप, फिजी जैसे पेय पदार्थों को अवॉइड करें। इनकी बजाए आप नेचुरल फ्रूट्स् को ले सकते हैं।
नई दिल्ली ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने शुक्रवार को कोरोना के लक्षणों, इलाज, होम आइसोलेशन समेत कई अहम पहलूओं पर विस्तार से बात की। उन्होंने विस्तार से समझाया कि होम आइसोलेशन में क्या करें, क्या न करें, रेमडेसिविर या आइवरमेक्टिन कब लें, इनहेलर से फायदा है या नहीं, ऑक्सिजन की कब जरूरत होगी। एम्स डायरेक्टर ने यह भी बताया कि वॉर्निंग साइन क्या हैं यानी ऐसे कौन से संकेत है जिन्हें मरीज में देखने के बाद तत्काल संभलने और अस्पताल का रुख करने की जरूरत होती है। यहां यह बात ध्यान देने की जरूरत है कि खुद ही डॉक्टर न बनें और सुझाई गई दवाओं का वैसे ही सेवन न करें। इसके लिए डॉक्टर से परामर्श बहुत जरूरी है, भले ही वह फोन पर ली गई हो या फिर ऑनलाइन कंसल्टेशन हो। बुखार, खांसी, जुकाम...कौन सी दवा लें? जो हम आम लक्षण देखते हैं कोविड में वो हैं- बुखार, जुकाम, नजला, गले में खराश, खांसी है। ऐसे में बुखार के लिए पैरासेटमॉल, जुकाम के लिए एंटी एलर्जिक ले लें कोई, खांसी के लिए कोई भी कफ सिरफ ले लें। साथ में नमक के गरारे और भांप ले सकते हैं दिन में दो दफा। इससे कई मरीजों को आराम मिलता है। अगर बुखार न उतर रहा हो तो क्या करें? कई मरीज ऐसे हैं जो कह रहे हैं कि पैरासेटमॉल से उनका बुखार नीचे नहीं आ रहा। 101-102 डिग्री बुखार रह रहा है। अगर आपका बुखार पैरासेटमॉल-650 से कम नहीं हो रहा है तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। वह कोई नेप्रोक्सॉन जैसी कोई दवा दे सकते हैं जो लंबे वक्त तक लगातार बुखार के केस में दी जाती हैं। आइवरमेक्टिन के बारे में क्या बोले डॉक्टर गुलेरिया आइवरमेक्टिन दवा को रोज ले सकते हैं 3 से 5 दिनों के लिए खाली पेट। इनहेलर को कैसे लें? जिन मरीजों को बुखार या खांसी 5 दिनों से ज्यादा वक्त से है और ठीक नहीं हो रही, वे इनहेलर ले सकते हैं जिससे आराम मिलता है। बुडेसोनाइड की 800 माइक्रोग्राम दिन में 2 बार 5 से 7 दिन या 10 दिनों तक इनहेलर के जरिए ले सकते हैं। ये दवा फेंफड़े में जाकर आराम देते हैं। रेमडेसिविर की जरूरत है या नहीं, जानें रेमडेसिविर को घर पर बिल्कुल न लें। इस दवा के अपने साइडइफेक्ट्स हैं और सिर्फ अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए यह दवा एडवाइज की जा रही है। पहले भी कहा है, आज भी कहना चाहूंगा कि रेमडेसिविर होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों यानी माइल्ड इन्फेक्शन या एसिम्प्टोमैटिक (बिना लक्षण वाले) मरीजों के लिए बिल्कुल फायदेमंद नहीं है बल्कि इसके नुकसान ही हैं। इसलिए घर पर रेमडेसिविर बिल्कुल न लें। कैसे जानें कि मेडिकल ऑक्सिजन की जरूरत है? अगर आपको लगे कि आपका ऑक्सिजन सैचुरेशन लेवल कम हो रहा है, 90 के पास आ रहा है या आपको सांस में दिक्कत आ रही है, आप खुलकर सांस नहीं ले पा रहे हैं तो तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें। यह बहुत जरूरी है ताकि आपको समय पर इलाज मिल सकेगा और अगर भर्ती करने की जरूरत हुई तो समय से भर्ती हो सकेंगे। वॉर्निंग साइन जब बिना देरी किए करें अस्पताल का रुख अगर आप खुलकर सांस नहीं ले पा रहे हैं तो यह संभलने का वक्त है। लेकिन कई बार घबराहट की वजह से आपको लगता है कि आपको सांस लेने में दिक्कत हो रही है, इसलिए अपना ऑक्सिजन सैचुरेशन लेवल देखें। अगर यह 94 से कम हो रही है तो मेडिकल सपोर्ट लेने की जरूरत है। अगर छाती में एकदम दर्द हो रहा है या भारीपन हो रहा है तो मेडिकल एडवाइज की जरूरत है। अगर केयरगिवर यह देखता है कि मरीज सुस्त ज्यादा है, रिस्पॉन्ड नहीं कर रहा है, कन्फ्यूज लग रहा है, सही से जवाब नहीं दे पा रहा है, बच्चों में भी हम यह देखते हैं तो फिर आपको बिना देर किए मेडिकल सपोर्ट और एडवाइज लेने की जरूरत है। इन वॉर्निंग साइन्स को ध्यान रखना चाहिए। कब खत्म करना चाहिए होम आइसोलेशन आखिर कब होम आइसोलेशन खत्म किया जाना चाहिए? पहली बार सिम्पटम आने के 10 दिन बाद होम आइसोलेशन खत्म कर सकते हैं। एसिम्प्टोमैटिक केस में जिस दिन टेस्ट के लिए सैंपलिंग हुई, उसके 10 दिन बाद होम आइसोलेशन खत्म कर सकते हैं। या फिर लगातार 3 दिनों तक बुखार न हो तब भी होम आइसोलेशन खत्म किया जा सकता है। अगर आपको छठे या सांतवें दिन के बाद से बुखार नहीं हुआ हो और आप 10 दिन पूरे कर लेते हो तब होम आइसोलेशन की जरूरत नहीं है। क्या होम आइसोलेशन खत्म करने के बाद टेस्ट कराने की जरूरत है? होम आइसोलेशन से बाहर आने के बाद फिर टेस्ट कराने की कोई जरूरत नहीं है। माइल्ड और एसिम्प्टोमैटिक केसेज में सातवें-आठवें दिन तक वायरस मर चुका होता है या ऐसी स्थिति में नहीं होता कि किसी दूसरे को संक्रमित कर सके। वायरस कभी कभार आरटीपीसीआर में 2-3 हफ्तों तक रह सकता है। लेकिन वह डेड वायरस है, वायरस के पार्टिकल्स हैं जो टेस्ट में डिटेक्ट होते हैं। इसलिए टेस्ट करने की जरूरत नहीं है। अगर 10 दिन हो गए हों और आप एसिम्प्टोमैटिक हैं या फिर पिछले 3 दिनों से आपको बुखार न आया हो तो आप होम आइसोलेशन से बाहर आ सकते हैं।
कोरोना वायरस महामारी पूरी दुनिया में अभी भी तेजी से अपने पैर पसार रही है। इस बीमारी से बचे रहने के लिए दुनिया भर के विभिन्न हेल्थ ऑर्गनाइजेशन रोज नई-नई गाइडलाइन और सेफ्टी टिप्स का पालन करने की सलाह दे रहे हैं। अभी तक इस बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं मिला है और हर रोज पूरी दुनिया में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है। बीते कुछ दिनों से कोरोना वायरस के मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह है कि कोरोना वायरस के जिन मरीजों का टेस्ट पॉजिटिव आया है उनमें अलग प्रकार के लक्षण देखे गए हैं। क्या हैं ये तीन लक्षण उल्टी कोरोना वायरस के जिन नए लक्षणों की बात हो रही है उनमें उल्टी का भी जिक्र किया जा रहा है। उल्टी से परेशान लोग जब डॉक्टर के पास गए तो उन्हें कोरोना वायरस की जांच के लिए भी कहा गया जिसके बाद उनका कोरोना टेस्ट पॉजिटिव निकला। ऐसे मामले तेजी से सामने आ रहे हैं और डॉक्टरों ने अब इस बारे में तैयारी शुरू कर दी है कि इसे नए लक्षणों में जल्द से जल्द शामिल किया जाना चाहिए। डायरिया दूसरा सबसे प्रमुख और नया लक्षण यह माना जा रहा है कि डायरिया से पीड़ित होने वाले लोगों में इस बात की आशंका है कि वह कोरोना से भी संक्रमित हों। ऐसे मरीजों को भी अलग-अलग प्रकार की समस्याएं देखने को मिली और जब उन्होंने कोरोना वायरस का टेस्ट करवाया तो वह पॉजिटिव पाए गए। इसलिए अगर कोई डायरिया से पीड़ित है तो उसे कोरोना वायरस की जांच करवाने के लिए जरूर कहें। उबकाई आने की समस्या कई लोगों को बार-बार उबकाई गई आने की भी समस्या हो रही है। आपको बता दें कि कोरोना वायरस के ज्यादातर मरीज बिना लक्षण वाले हैं और अब नए-नए लक्षण भी सामने आ रहे हैं। इन्हीं नए लक्षणों में उबकाई आने की समस्या को भी जोड़े जाने की बात कही जा रही है। ऐसे लोगों का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव निकला है। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इन मरीजों को उबकाई आने की समस्या के साथ-साथ बॉडी के किसी हिस्से में दर्द या फिर उन्हें बेचैनी भी महसूस हो रही थी। बार-बार उबकाई आने की समस्या नींद ना आने के कारण भी हो सकती है। फिलहाल कोरोना वायरस के मुख्य लक्षणों में बुखार, खांसी, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ, गले में खराश, छींक आना शामिल है लेकिन मौसम बदलने के साथ-साथ कोरोना वायरस के नए लक्षणों में भी काफी बदलाव देखे जा रहे हैं और यह एक चिंता का विषय है। फिलहाल ऊपर बताए गए तीन लक्षणों को अभी तक आधिकारिक रूप से कोरोना वायरस के लक्षणों में नहीं शामिल किया गया है लेकिन डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के द्वारा इस पर निगरानी रखी जा रही है ताकि इसे कोरोना वायरस के नए लक्षणों में शामिल किया जा सके और ऐसी समस्या से जूझ रहे लोगों का सही समय पर टेस्ट कराकर उन्हें ठीक करने में मदद मिले।
लहसुन एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो प्रतिदिन घर के खाने में जरूर इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, तड़का देने के लिए लहसुन का इस्तेमाल दाल और सब्जियों में अनिवार्य रूप से किया जाता है। लहसुन के अंदर मौजूद पौष्टिक तत्व हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाए रखने का कार्य करते हैं।लहसुन का सेवन कई रूपों में किया जा सकता है। इसे अगर गर्म पानी के साथ इस्तेमाल किया जाए तो यह और भी फायदा पहुंचाएगा। इससे जुड़े कुछ दिलचस्प फायदों के बारे में आपको यह जानकारी दी जाएगी कि कैसे गर्म पानी के साथ लहसुन का सेवन करने से बेहतरीन फायदा मिल सकता है। कब्ज की समस्या दूर होगी कब्ज की समस्या से यदि आप परेशान हैं तो इसे दूर करने के लिए गर्म पानी के साथ कच्चे लहसुन को चबाकर खाएं। यह पाचन क्रिया को तेजी से कार्य करने के लिए प्रेरित करेगा और आपकी कब्ज की समस्या से भी काफी हद तक राहत दिलाने के काम आ सकता है। ​पौरुष शक्ति होगी मजबूत पौरुष शक्ति को मजबूत बनाने के लिए लहसुन का सेवन गर्म पानी के साथ किया जा सकता है। गर्म पानी के साथ लहसुन का सेवन करने के कारण बॉडी डिटॉक्सिफाई होगी और टेस्टोस्टेरोन हार्मोन को बनाने में भी मदद मिल सकती है। इसका सीधा असर और पौरुष शक्ति को मजबूत बनाने पर पड़ेगा। हृदय रोग की बीमारी का खतरा होगा काम लहसुन में कार्डियोप्रोटेक्टिव एक्टिविटी पाई जाती है। इसलिए कच्चे लहसुन का सेवन करने से आप दिल की जुड़ी बीमारियों की चपेट में आने से बचे रहेंगे। इसके अलावा गर्म पानी के साथ अगर लहसुन का सेवन करते हैं तो यह ब्लड सर्कुलेशन को मेंटेन करके हृदय रोग के खतरे को भी कई गुना तक कम कर सकता है। ​एंटी बैक्टीरियल एंटी वायरल एक्टिविटी से भरपूर बारिश के दिनों में गर्म पानी के साथ लहसुन का सेवन जरूर किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि गर्म पानी पीने के कारण आपके शरीर को कई बीमारियों का खतरा कम हो जाएगा। इसके साथ-साथ लहसुन में मौजूद एंटी बैक्टीरियल एंटी वायरल एक्टिविटी बारिश के दिनों में होने वाले फंगल संक्रमण, फ्लू और संक्रामक बीमारियों के खतरे से भी आपके शरीर को बचाए रखेंगे। ​डायबिटीज का खतरा कम होता है डायबिटीज के कारण व्यक्ति को अन्य कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है क्योंकि डायबिटीज से पीड़ित होने के बाद किसी भी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ शरीर के मुकाबले काफी कमजोर हो जाती है। जबकि लहसुन में मौजूद एंटी डायबेटिक गुण डायबिटीज के कारण होने वाले जोखिम से आपके शरीर को सुरक्षा प्रदान करते हैं। ​दिमाग की कार्य क्षमता बढ़ाए लहसुन का सेवन अगर गर्म पानी के साथ किया जाए तो यह दिमाग की कार्य क्षमता को भी काफी प्रभावित करता है। यह आपके दिमाग से स्ट्रेस को दूर करेगा। इस कारण आप बड़ी आसानी से किसी भी विषय पर अपना ध्यान पूरी तरह से केंद्रित कर सकेंगे। इसके अलावा लहसुन मेमोरी पावर को भी बूस्ट करने की भी क्षमता रखता है। 2 हफ्ते तक लगातार इसका सेवन करके आप इससे होने वाले फायदे का असर खुद ही महसूस करने लगेंगे।
करोना का सीधा अटैक हमारे फेफड़ों पर हो रहा है। यदि आपने समय रहते अपने फेफड़ों की हिफाजत नहीं की तो बाद में काफी देर हो सकती है। बता दें कि यह वायरस पहले से अब कहीं ज्‍यादा मजबूत हो गया है और महत्वपूर्ण अंगों पर हमला करने लग गया है। भारत और विदेशों में देखे गए निष्कर्षों के अनुसार, जब तक रोगी में कोविड 19 के लक्षण दिखने शुरू होते हैं, तब तक उसका 25% फेफड़ा डैमेज हो चुका होता है। अगर आप कोल्‍ड ड्रिंक पीने के शौकीन हैं, तो पहले जान लें कि इसमें केवल चीनी और खाली कैलोरी के अलावा और कुछ भी नहीं होता। इसे पीने से शरीर का वजन बढ़ता है और पेट में ब्‍लोटिंग होती है। कार्बोनेटेड पेय जैसे सोडा, बीयर, स्पार्कलिंग वाइन या स्पार्कलिंग साइडर भी निर्जलीकरण में योगदान करते हैं। इसलिए, जब आप प्यासे हों, तो पानी पिएं। ​तला हुआ भोजन तली हुई चीजें पेट में ब्‍लोटिंग पैदा कर सकती हैं। इस वजह से सांस लेने में तकलीफ का अनुभव हो सकता है। तला हुआ भोजन वजन बढ़ाने का कारण बन सकता है, जिससे फेफड़ों पर दबाव बढ़ता है। तले हुए खाद्य पदार्थ अनहेल्‍द फैट से भरे होते हैं, जो खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर और हृदय रोग के जोखिम को बढ़ाते हैं। गैस और ब्लोटिंग, लंग की बीमारी वाले लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल कर सकते हैं। गोभी, ब्रोकोली, मूली और फूलगोभी जैसी सब्जियां पोषक तत्वों और फाइबर से भरी होती हैं, लेकिन अगर इन्‍हें खाने से आपके पेट में गैस बनती है, तो इन्‍हें सीमित करने का प्रयास करें। ​लिमिट में खाएं डेयरी प्रोडक्‍ट फेफड़ों की बीमारी वाले लोगों के लिए, डेयरी उत्पाद अच्‍छे नहीं माने जाते क्‍योंकि यह बीमारी के लक्षणों को और ज्‍यादा बढ़ा देते हैं। हम सभी जानते हैं कि दूध पौष्टिक होता है और कैल्शियम से भरा होता है। इसमें कैसोमोर्फिन होता है, जो आंतों में बलगम बढ़ाने के लिए जाना जाता है। बीमारी बढ़ने पर लोग अक्सर बलगम में वृद्धि का अनुभव करते हैं। ​ज्‍यादा नमक का सेवन न करें खाने में कम नमक से शायद मुंह का जायका थोड़ा बिगड़ जाए, मगर ज्‍यादा नमक आपके फेफड़ों की सेहत पर भारी पड़ सकता है। नमक से वॉटर रिटेंशन की समस्‍या पैदा हो सकती है, जो सांस लेने में समस्या पैदा कर सकता है। नमक की बजाए उसके विकल्प का उपयोग करें। भोजन के स्वाद को बढ़ाने के लिए जड़ी-बूटियों और मसालों का उपयोग करें। ​खट्टी चीजों से बनाएं दूरी यदि आपको सप्ताह में दो बार से अधिक एसिडिटी की समस्‍या होती है, तो समझ जाएं कि आपको एसिडिटी की बीमारी हो चुकी है। एसिड रिफ्लक्स फेफड़ों के रोग के लक्षणों को बढ़ाता है। अम्लीय खाद्य पदार्थों और पेय (साइट्रस, फलों का रस, टमाटर सॉस, कॉफी और मसालेदार खाद्य पदार्थों) को सीमित मात्रा में लें, जिससे एसिड रिफ्लक्स के लक्षण कम हो सकें। हर कोई अच्‍छी चीजें खाना-पीना पसंद करता है, लेकिन फेफड़ों की बीमारी के साथ, स्वस्थ भोजन करना अधिक महत्वपूर्ण है। अपना आहार बदलने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कोविड-19 मरीज जो होम आइसोलशन में हैं, उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। देश में कोविड -19 रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, इसलिए देशभर के अस्पतानल तनाव में हैं। इसी वजह से डॉक्टर्स ने ऑक्सीजन का स्तर कम होने पर खुद निगरानी करने की सलाह दी है। मंत्रालय की ओर से जारी गाइडलाइन्स के अनुसार, यदि मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो, तो वह प्रोनिंग का तरीका आपना सकते हैं। होम आइसोलेशन में रहने वाले मरीजों के लिए प्रोनिंग काफी मददगार है। इससे आईसीयू में रहने वाले मरीजों में अच्छे रिजल्ट्स देखने को मिले हैं। कोरोना की दूसरी लहर के चलते हालात बेकाबू हो चुके हैं। देशभर के अस्पतालों में ऑक्सीजन को लेकर हड़कंप मचा हुआ है। कोविड-19 मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत है, लेकिन ऑक्सीजन की कमी के चलते हर रोज न जाने कितने मरीज दम तोड़ रहे हैं। जिन मरीजों को सांस लेने में परेशानी हो रही है और जो घर में रहकर इलाज कर रहे हैं, उनके लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रोनिंग के तरीके सुझाए हैं। दरअसल, प्रोनिंग कोरोना मरीजों के लिए बहुत अच्छा तरीका है। होम आइसोलेशन में रहते हुए अगर मरीज इसे कर ले, तो अपने ऑक्सीजन लेवल में सुधार कर सकता है। तो चलिए इस आर्टिकल में जानते हैं कि प्रोनिंग क्या है और इसे कैसे करना चाहिए। प्रोनिंग की यह पोजीशन सांस लेने में आराम और ऑक्सीकरण में सुधार करने के लिए मेडिकली प्रूव्ड है। इसमें मरीज को पेट के बल लिटाया जाता है। यह प्रक्रिया 30 मिनट से दो घंटे की होती है। इसे करने से फेफड़ों में ब्लड सकुर्लेशन बेहतर होता है जिससे ऑक्सीजन फेफड़ों में आसानी से पहुंचती है और फेफड़े अच्छे से काम करने लगते हैं। ऑक्सीजनेशन में इस प्रक्रिया को 80 प्रतिशत तक सफल माना जा रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो जैसे ही मरीज को सांस लेने में तकलीफ महसूस हो, तो अस्पताल भागने के बजाय समय रहते इस प्रक्रिया को अपना लेना चाहिए। इससे हालत बिगडऩे से बचाई जा सकती है। ​कैसे करनी चाहिए प्रोनिंग- प्रोनिंग के लिए लगभग चार से पांच तकियों की जरूरत होती है। सबसे पहले रोगी को बिस्तर पर पेट के बल लिटाएं। एक तकिया गर्दन के नीचे सामने से रखें। फिर एक या दो तकिए गर्दन और छाती और पेट के नीचे बराबर में रखें। बाकी के दो तकियों को पैर के पंजों के नीचे दबाकर रख सकते हैं। ध्यान रखें इस दौरान कोविड रोगी को गहरी और लंबी सांस लेते रहना है। 30 मिनट से लेकर करीब दो घंटे के लिए इस स्थिति में रहने से मरीज को बहुत आराम मिलता है। लेकिन ध्यान रहे, 30 मिनट से दो घंटे के बीच मरीज की पोजीशन बदलना जरूरी है। इस दौरान मरीज को दाई और बाई करवट लेकर लिटा सकते हैं। ​प्रोनिंग करते समय रखें इन बातों का ध्यान- खाने के तुंरत बाद प्रोनिंग करने से बचें। इसे 16 घंटों तक रोजाना कई च्रकों में कर सकते हैं। इससे बहुत आराम मिलेगा। इस प्रक्रिया को करते समय घावों और चोट को ध्यान में रखें। दबाव क्षेत्रों को बदलने और आराम देने के लिए तकियों को एडजस्ट करें। ​प्रोनिंग कब नहीं करनी चाहिए- गर्भावस्था में महिला को प्रोनिंग करने से बचना चाहिए। गंभीर कार्डिक स्थिति में प्रोनिंग से बचें। यदि स्पाइनल से जुड़ी कोई परेशानी हो या फिर पेल्विक फैक्चर हो, तो भी प्रोनिंग करने से नुकसान हो सकता है। भोजन करने के तुरंत बाद प्रोनिंग की प्रक्रिया से बचें।
मेथीदाना और अजवाइन दोनों ही किचन में उपयोग किए जाने वाले मुख्य मसाले हैं। लेकिन इनसे मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ भी बहुत हैं। अगर इन दोनों को साथ मिलाकर लिया जाए, तो ये सोने पर सुहागा जैसा काम करते हैं। लेकिन इनके गुणों का फायदा उठाने के लिए इन्हें सही अनुपात में लेना बहुत जरूरी है। मोटापा घटाना हो या तनाव दूर करना हो या फिर अपच की समस्या का समाधान चाहते हैं, तो आज से ही अजवाइन-मेथी का पानी बनाकर पीना शुरू कर दीजिए। हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ये एक बेहतरीन डिटॉक्स ड्रिंक है। कई तरह के रोगों को दूर कर यह शरीर को चुस्त-दुरूस्त बनाता है। इतना ही नहीं याददाश्त बढ़ाने और मानसिक रोगों से छुटकारा दिलाने में आपकी काफी मदद कर सकता है। अगर आप अजवाइन-मेथी के पानी से होने वाले स्वास्थ्य लाभ नहीं जानते, तो जरूर पढि़ए हमारा ये आर्टिकल। हम यहां आपको अजवाइन और मेथी के पानी से होने वाले फायदों के बारे में बताने जा रहे हैं। इन्हें पढ़कर आप भी अपनी दिनचर्या में इस ड्रिंक को शामिल करें और रोगमुक्त बनें। ​वजन घटाने में मददगार है वजन घटाने के तमाम घरेलू उपचारों में से एक है अजवाइन-मेथी का पानी। यह एक प्राचीन नुस्खा है, जिसका इस्तेमाल लोग वजन कम करने के लिए करते आ रहे हैं। अजवाइन और मेथी दोनो में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो मेटाबॉलिज्म को मजबूत करने में मददगार हैं। इतना ही नहीं, इस ड्रिंक में फैट बर्निंग के गुण भी होते हैं, जिससे शरीर के एक्स्ट्रा फैट को आसानी से कम करने में मदद मिलती है। अगर आप तेजी से वजन घटाने की सोच रहे हैं, तो इस डिटॉक्स ड्रिंक को अपनी दिनचर्या में जरूर शामिल करें। ​नियंत्रित रहेगी ब्लड शुगर डायबिटीज में अजवाइन-मेथी का पानी रामबाण इलाज है। यदि आपका ब्लड शुगर लेवल जल्दी-जल्दी घटता या बढ़ता रहता है तो यह आपके लिए शानदार डिटॉक्स ड्रिंक है। यह बैड कोलेस्ट्रॉल के साथ सूजन को कम करने के लिए जाना जाता है। ​अपच की समस्या में सुधार कर कई लोगों को सुबह खाली पेट अजवाइन और मेथी का पानी पीते आपने जरूर देखा होगा। यह शरीर में हो रही स्वास्थ्य समस्याओं का बढिय़ा घरेलू उपचार है। सुबह-सुबह खाली पेट एक गिलास अजवाइन मेथी का पानी पीने से बॉडी स्ट्रेस दूर हो जाता है। इसमें फाइबर, मैग्नीशियम, मैग्रीज जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो कब्ज , हार्ट बर्न और मतली जैसी समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करते हैं। इसके लिए अजवाइन और मेथी को एक रात पहले पानी में भिगोकर रखना पड़ता है। सुबह उठकर इसे छान लें और पी जाएं। ​इम्यूनिटी बढ़ाए प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए अजवाइन -मेथी का पानी पी सकते हैं। इस डिटॉक्स ड्रिंक में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन सी, प्रोटीन, आयरन, विटामिन बी-1, बी-3, सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम और फास्फोरस भरपूर मात्रा में होता है। ये सभी जरूरी तत्व शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में कारगार हैं। इस ड्रिंक के सेवन से आप मौसमी सर्दी, खांसी और फ्लू से बचे रहेंगे। ​मिलेगी चमकती त्वचा- चमकती त्वचा पाने के लिए अजवाइन -मेथी का पानी बहुत अच्छा माना जाता है। नियमित रूप से इस ड्रिंक का सेवन करने से शरीर में खून शुद्ध होता है, साथ ही रक्त संचार में भी सुधार होता है। इससे त्वचा संबंधी रोगों और त्वचा पर दिखने वाले कील-मुंहासों, फाइन लाइन्स , झुर्रिंयों में कमी आती है। जिससे स्वस्थ होने के साथ दमकने लगती है।
मेथी को अंग्रेजी में Fenugreek कहा जाता है जो कि भारतीय रसोई का एक अभिन्न हिस्सा है। मेथी के बीज और पत्ते दोनों की प्रयोग तमाम तरह के व्यंजनों को तैयार करने में किया जाता है। सब्जियों में मेथी के एड होने से स्वाद तो बढ़ता ही है साथ ही इसके हेल्थ बेनिफिट्स भी हैं। मेथी के बीजों, पत्तियों और जड़ों का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है। आयुर्वेद में मेथी का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। मेथी के दाने कई तरह के ऐंटीऑक्सिडेंट्स, विटमिन्स और मिनरल्स से भरपूर होते हैं, इसलिए इनका इस्तेमाल वैकल्पिक चिकित्सा में भी किया जाता है। मेथी के दानों से कॉलेस्ट्रॉल कंट्रोल होता है। हृदय रोगों से बचाव करता है। NCBI के एक अध्ययन के अनुसार, मेथी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट, एंटीरिंकल और माइस्चरॉइजिंग गुण स्किन के लिए लाभदायक होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सबसे पौष्टिक बताई जाती है। इस आर्टिकल में हम आपको यह बताएंगे कि आखिर महिलाओं के लिए क्यों मेथी एक पौष्टिक फूड है। मेनोपॉज में दर्द को दूर करती है मेथी मेथी हड्डियों को मजबूत रखने वाली एक जड़ीबूटी है। रजोनिवृत्ति (Menopause) वो दौर जब महिलाओं का पीरियड आना बंद हो जाता है। इसके बाद अधिकतर महिलाएं कमजोर हड्डियों और जोड़ों के दर्द से पीड़ित होती हैं। ऐसे में वे मेथी का सेवन करें तो उनकी ये समस्याएं कम हो सकती हैं। मेथी एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होती है। यह हड्डियों (Bone) को मजबूत करने और सूजन के कारण उत्पन्न जोड़ों के दर्द को कम करने में मदद करती है। कसूरी मेथी में फाइटोएस्ट्रोजन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो मेनोपॉज के दौरान हो रहे हार्मोनल चेंज को कंट्रोल करता है। ​Weight loss में भी मददगार मेथी के बीज और पत्ते दोनों ही वजन घटाने (Weight loss) में मददगार हैं। इसके सेवन से आपको बार-बार भूख नहीं लगती है और इस वजह से आप अतिरिक्त कैलोरी लेने से बच जाते हैं। क्योंकि मेथी में फाइबर होता है जिससे आपका पेट काफी टाइम तक भरा रहता है। इस तरह से वेट लॉस में भी मदद करती है। इसलिए, जो महिलाएं अपना वजन कम करना चाहती हैं, वे अपनी हर रोज अपने आहार में मेथी को शामिल कर सकती हैं। ​टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ाती है मेथी मेथी महिलाओं में स्वाभाविक रूप से टेस्टोस्टेरोन के लेवल को बढ़ाती है। इसके बढ़ने से महिलाओं के सेक्सुल फंक्शन्स भी बूस्ट होते हैं। बता दें कि टेस्टोस्टेरॉन एंड्रोजन समूह का एक स्टीरॉएड हार्मोन है। जब शरीर में टेस्टोस्टेरोन की कमी होने लगती है तो आमतौर पर महिलाओं को थकान और सुस्ती महसूस होने लगती है। ​ब्रेस्ट मिल्क के प्रोडक्शन को बढ़ाती है मेथी मेथी महिलओं के एस्ट्रोजन के स्तर को बढ़ाने की क्षमता रखती है। इसके सेवन से बच्चे को दूध पिलाने वाली महिलाओं को फीड कराने में आसानी होती है। कसूरी मेथी में पाया जाने वाल एक कंपाउंड स्तनपान करने वाली महिलाओं के ब्रेस्ट मिल्क के प्रोडक्शन को बढ़ाता है। इसलिए यह नर्सिंग मरद्स के लिए हेल्थी फूड माना जाता है। इसके साथ ही ये ब्रीस्ट साइज को बढ़ाने में भी महिलाओं के लिए हेल्पफुल होती है। ​मेथी के पेस्ट लगाने से दूर होंगे पिंपल्स और ग्लोइंग रहेगी स्किन मेथी के बने फेस पैक ब्लैकहेड, पिंपल्स और रिंकल्स यानी झुर्रियों को रोकने में काफी इफेक्टिव हैं। मेथी में एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं। यह त्वचा को मॉश्चराइज करता है और साथ ही ड्राइनेस को कम करने में भी मदद करती है। मुंहासे दूर करने के लिए मुट्ठीभर मेथी के दाने को उबालकर ठंडा करें। इस पेस्ट का इस्तेमाल टोनर के रूप में करने से मुंहासे जल्दी खत्म हो जाते हैं और स्किन पर ग्लो भी बढ़ेगा। मेथी में विटामिन सी और विटामिन के पाए जाते हैं, जो डार्क सर्कल को दूर करने में भी मदद करते हैं। दो चम्मच मेथी के भिगोए हुए बीज को दूध में पीसकर आंखों के नीचे लगाएं और बाद में गर्म पानी से चेहरे को धोएं। ऐसे करने से डार्क सर्कल को हटाया जा सकता है। ​बालों को झड़ने से रोकती है मेथी मेथी के बीज में एंटी-फंगल और कई तरह के खनिज पाए जाते हैं। यह बालों को मॉश्चराइज करने के साथ-साथ डैंड्रफ दूर करने में भी मदद करती है। नारियल के तेल में मेथी के दाने मिलाकर बालों की मसाज करें और अगले दिन इन्हें धों। ऐसे करने से बाल भी लंबे और शायनी होते हैं। मेथी बाल झड़ने को भी कम कर सकती है। ​हार्मोन को बैलेंस करती है मेथी मेथी में औषधीय गुण होते हैं जो हार्मोनल असंतुलन समस्याओं के इलाज के लिए काम आते हैं। इस पतरह से यह महिलाओं को हार्मोन बैलेंस को बनाए रखने में मदद करती है।
दुनिया में कोरोना वायरस का कहर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। देश में दिन-प्रतिदिन संक्रमित लोगों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है। भारत में हर दिन लाख से ज्यादा नए मामले आने लगे हैं। जैसा कि ये बात एक्सपर्ट्स शुरुआत से कहते आए हैं कि कोविड-19 अधिकतर उन्हीं लोगों पर अटैक करता है जिनका इम्युनिटी सिस्टम कमजोर है। ऐसे में सभी लोग अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए तमाम तरह के उपाय कर रहे हैं। बता दें कि, इम्यून सिस्टम के जरिए ही हम 24 घंटे सेहतमंद रहते हैं। लिहाजा हमें अपने खान-पान में ऐसी चीजें शामिल करनी जरूरी है जिससे हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत हो सके। तनाव, चिंता, बहुत अधिक शराब जैसी चीजें हमारी इम्यून सिस्टम को कमजोर बनाती हैं। अध्ययनों के अनुसार, जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, वे नोवल कोरोनावायरस संक्रमण से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। बहरहाल, यहां हम आपको वो 4 संकेत बता रहे हैं जिनके जरिए आप खुद से ये पता कर सकते हैं कि आपका इम्यून सिस्टम वीक है या स्ट्रॉन्ग। ​1. बार-बार बीमार होना बार-बार बीमार पड़ना भी कमजोर इम्यूनिटी कम होने का संकेत है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार, अगर आपको एक साल में 4 से अधिक बार खांसी-जुकाम होता है तो ये कमजोर इम्यूनिटी का संकेत हो सकता है। नाक बहना और गले में खुजली भी उन लक्षणों में शामिल हैं, जिन्हें आमतौर पर अनदेखा कर दिया जाता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ एलर्जी अस्थमा और इम्यूनोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार, यदि आपको एक साल में 2 से अधिक बार एंटीबायोटिक दवाओं के कोर्स लेते हैं और फिर भी बैक्टीरियल संक्रमण खत्म नहीं होता तो समझ लीजिए आप इम्यूनोलॉजी विकार (immunology disorder) से ग्रसित हैं। लिहाजा आपको एक बार डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी है। ​2. नींद लेने के बाद भी थकावट महसूस करना यदि आप भरपूर नींद लेते हैं और उसके बाद भी आप सुस्त महसूस करते हैं तो समझिए आपका इम्युनिटी सिस्टम वीक है। क्योंकि जरूरत से अधिक थकान होना भी कमजोर इम्यूनिटी के लक्षण हो सकते हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, एक कम इम्यून सिस्टम को ज्यादा एनर्जी की आवश्यकता होती है। रात को कम नींद और दिन भर सिर भारी लगना भी इस ओर इशारा करता है। बता दें कि रात को सोते वक्त शरीर मेलाटोनिन हार्मोन रिलीज करता है। इस हार्मोन से कुछ इम्यून सेल्स पैदा होते हैं जो साइटोकिन्स बनाते हैं। ये साइटोकिन्स बदले में इम्यून सेल्स को एक्टिवेट करता है जो किसी भी तरह के इंफेक्शन को हराने में मददगार होते हैं। ​3. पेट की ये समस्याएं भी हैं कमजोर इम्यून सिस्टम के संकेत जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय (John Hopkins University) के अनुसार, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का एक बड़ा हिस्सा शरीर की आंत में होता है। हमारे शरीर के जठरांत्र संबंधी मार्ग (Gastrointestinal tract) में अच्छे बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडी का निर्माण करते हैं। बता दें कि, पेट के अंदर मौजूद अच्छे बैक्टीरिया पाचन में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसलिए, यदि आपको दस्त या कब्ज से पेट की समस्याएं मिलती हैं, तो यह संकेत हो सकता है कि आपके पास कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली है। अगर आप कभी बाहर का खाना खाते हैं और इसके बाद आपको पेट में जलन होती है तो यह कमजोर इम्युनिटी सिस्टम का संकेत है। इसके अलावा यदि आपको दस्त या कब्ज की परेशानी हो रही है, तो इसका मतलब भी साफ है कि आपकी आंतों में मौजूद टिश्यूज ठीक तरह से कार्य नहीं कर पा रहे हैं। ​4. मुंह में लगातार छाले होना आमतौर पर मुंह में छाले तब हो सकते हैं जब आप खाना खाते वक्त अपनी जीभ या चीक को बाइट कर देते हैं। वहीं अगर आप लगातार मुंह के छालों से परेशान हैं तो यह समस्या भी एक कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली का संकेत हो करती है। तनाव के कारण भी मुंह के छाले हो सकते हैं जिसके चलते हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। ​5. चोट उबरने में लंबा समय लगना जब कभी आप किसी वजह से चोटिल हो जाते हैं तो कई बार तो स्किन पर आप दवा लगाते हैं लेकिन बहुत बार ऐसे ही छोड़ देते हैं। ऐसे में अगर आपका इम्युनिटी सिस्टम मजबूत है तो मामूली चोट बिना किसी उपचार के ही ठीक हो जाएगी और उस जगह नई स्किन आ जाएगी। लेकिन वहीं अगर आपने अपनी चोटिल वाली जगह पर दवा लगाई फिर भी वो ठीक नहीं हुई और लंबा समय लगा तो समझिए आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है।
कोरोना महामारी में कोरोनावायरस वैक्सीन लोगों के लिए आशा की एक किरण लेकर आई है। लेकिन वैक्सीन आने के बाद भी लोग डरे और सहमे हैं। इसे लेकर घबराहट और भ्रम की स्थिति लगातार बनी हुई है। ऐसा इसलिए, क्योंकि टीकाकरण के कुछ दुष्प्रभाव भी हैं। हालांकि, सबके साथ ऐसा नहीं हो रहा, बल्कि कुछ वर्ग के लोगों में इसके गंभीर साइड इफेक्ट ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। शोधों के अनुसार, पोस्ट वैक्सीनेशन के साइड इफेक्ट लगभग सभी को हो सकते हैं, लेकिन कुछ वर्ग के लोगों में दुष्प्रभाव के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं। खासतौर से महिलाओं और युवा वर्ग में वैक्सीन का प्रभाव ज्यादा है। वहीं ऐसे लोगों की भी वैक्सीन से सेहत खराब हो रही है, जिन्हें पहले कोविड हो चुका है। इसलिए इन वर्ग के लोगों को वैक्सीनेशन से पहले और बाद में ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। वैक्सीनेशन के बाद देखे जाने वाले साइड इफेक्ट कंपकंपी महसूस होना, थकान, मितली, उल्टी, बुखार, सूजन और दर्द कोरोना वैक्सीन के कुछ साइड इफेक्ट्स हैं। कुछ लोगों ने कोविड आर्म पर टीका लगने के कई दिनों बाद तक दर्द और सूजन का अनुभव किया है। वहीं कुछ लोगों को टीकाकरण के बाद भी बुखार आ रहा है। 60 साल की उम्र से ऊपर वाले लोगों को कमजोरी और थकान की शिकायत है। इसके अलावा ज्यादातर लोग टीकाकरण की जगह पर खुजली, लालिमा और गहरी सूजन का अनुभव कर रहे हैं। डॉक्टर्स की मानें, तो लोगों को वैक्सीन लगने के बाद भी कुछ दिनों तक आराम करना चाहिए, ताकि वे जल्दी रिकवर हो सकें। महिलाओं को वैक्सीन का साइड इफेक्ट ज्यादा एक नए शोध के अनुसार, पुरूषों के मुकाबले महिलाओं को वैक्सीन के साइड इफेक्ट का खतरा ज्यादाा है। यह प्रमाणित करने के लिए Centers for Disease Control and Prevention (CDC) द्वारा किए गए अध्ययन में विभिन्न उम्र के लोगों को वैक्सीन दी गई। आयोजित टीकाकरण की कुल संख्या में 79 प्रतिशत साइड इफेक्ट्स की शिकायत महिलाओं ने की। अध्ययन के अनुसार, कोविड शॉट वाली महिलाओं में से 44 प्रतिशत ऐसी थीं, जिन्होंने एनाफिलेक्टिक प्रतिक्रियाओं की शिकायत की। बता दें कि इन महिलाओं को फाइजर शॉट दिए गए थे। डॉक्टर्स के अनुसार जब महिलाओं के शरीर में वैक्सीन पहुंचती है और काम करना शुरू करती है, तो महिलाओं का इम्यून सिस्टम तेजी से प्रतिक्रिया देता है, जिससे उन्हें साइड इफेक्ट जल्दी होता है। कोरोना पॉजिटिव हो चुके लोगों पर वैक्सीन का दुष्प्रभाव ज्यादा ZEO (कोविड लक्षण ऐप) अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों को फाइजर शॉट मिला था, उनमें से लगभग एक तिहाई को पहले कोविड हो चुका था। उन्होंने बताया कि वैक्सीन लगने के बाद उन्हें ठंड लगने के साथ पूरे शरीर में साइड इफेक्ट का असर देखने को मिला। जबकि जिन लोगों को पूर्व में कोविड नहीं था, वे टीकाकरण के बाद भी पूरी तरह से सामान्य थे। दुष्प्रभावों का ज्यादा असर युवा वर्ग पर टीकाकरण के बाद दुष्प्रभावों का सबसे ज्यादा असर युवाओं में देखने को मिला। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA)की कोच्चि शाखा द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, कोविड -10 वैक्सीन के दुष्प्रभाव भारत में बुजुर्गों की तुलना में युवाओं में ज्यादा देखने को मिले। अध्ययन में 5396 प्रतिभागियों को शामिल किया गया। जिसमें 20-29 के युवा और 80-90 वर्ष के बुजुर्ग शामिल हुए। टीका लगने के बाद 81 प्रतिशत युवाओं ने साइड इफेक्ट का अनुभव किया, जबकि मात्र 7 प्रतिशत ऐसे थे, जिनमें इसके हल्के फुल्के साइड इफेक्ट दिखे। ये 7 प्रतिशत लोग बुजुर्ग थे।
Coronavirus से लड़ते हुए देश को एक साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है। इस दौरान न सिर्फ वायरस में बदलाव आ रहा है, बल्कि प्रभावित व्यक्ति में दिखने वाले लक्षणों में भी अंतर देखा जा रहा है। COVID19 के आम लक्षणों में बुखार, थकान, स्वाद और गंध न पता चलना आदि शामिल हैं। अब बढ़ते मामलों और वायरस पर लगातार हो रही नई स्टडीज के आधार पर कोरोनावायरस के कुछ नए लक्षण सामने आए हैं, जो पेट, आंख और कान को प्रभावित कर रहे हैं। पिंक आइज़ (Pink eyes) चाइना में हुई स्टडी के मुताबिक, पिंक आईज या आंख आना (conjunctivitis) भी COVID-19 संक्रमण का लक्षण हो सकता है। इससे आंखें लाल हो जाती हैं और सूजन बढ़ने के साथ ही आंखों से पानी आने लगता है। अध्ययन में शामिल सभी संक्रमित प्रतिभागियों में से जिन 12 में वायरस का नया स्ट्रेन पाया गया, उनमें भी Pink eyes लक्षण देखने को मिला। इन सभी के टेस्ट के लिए नोज और आइज़ स्वाब का इस्तेमाल किया गया था। आंखों और कोविड-19 के बीच दिखने वाले इस संबंध को लेकर अब तक यही समझा जा सका है कि आंख यदि वायरस के संपर्क में आती है, तो उसके जरिए ये फेफड़ों तक पहुंच जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, शरीर में ये वायरस आंखों में मौजूद ocular mucous membrane के कारण प्रवेश कर पाता है और तेजी से फैलता है। हालांकि, इससे देखने की क्षमता पर असर पड़ता है या नहीं? इस बारे में अभी और अध्ययन व शोध की आवश्यकता है। सुनने की क्षमता पर असर सुनाई देना बंद होना या फिर कान में रिंगिंग साउंड आना भी कोरोनावायरस के गंभीर लक्षण हो सकते हैं। इंटरनैशनल जर्नल ऑफ ऑडियोलॉजी (International Journal of Audiology) में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, कोविड-19 श्रवण-संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकता है। एक या दोनों कानों में रिंगिंग साउंड या आवाज गूंजना टिनिटस (Tinnitus) कहलाता है। ये थोड़े समय या फिर लंबे समय तक बना रह सकता है। कान में अंदर बनने वाली ये ध्वनि बहरेपन का भी लक्षण होता है। जर्नल के मुताबिक, संक्रमित लोगों में से कुछ ने थोड़े वक्त के लिए पूरी तरह से सुनने की क्षमता खो देने का अनुभव किया। स्टडी के अनुसार, कोविड प्रभावितों में से करीब 7.6 प्रतिशत लोगों ने किसी ने किसी रूप में सुनने की क्षमता से जुड़ी समस्या का सामना किया। पेट से जुड़ी समस्या (​Gastrointestinal conditions) COVID-19 शरीर के ऊपरी हिस्सों के अंगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, जिससे कई लोग पेट में होने वाली समस्या को इससे नहीं जोड़ते। आपको यह चौंका सकता है, लेकिन कई मामलों में उल्टी और दस्त भी कोरोना संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं। एक बार फिर कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के बीच मेडिकल साइंस एक्सपर्ट्स ने लोगों को चेताया है कि वे इन लक्षणों को भी हल्के में न लें। स्टडीज के मुताबिक, कोविड-19 रेस्पिरेटरी सिस्टम के साथ ही किडनी, लिवर और आंतों को भी प्रभावित कर सकता है। कोरोनावायरस के लक्षण कोरोनावायरस के आम लक्षण में बुखार, सूखी खांसी और थकान शामिल हैं। अन्य लक्षण में खुजली और दर्द होना, गले में खराश, दस्त लगना, आंख आना, सिरदर्द, स्वाद और गंध का पता न चलना, त्वचा पर चकत्ते बनना या हाथ व पैर की उंगलियों के रंग बदल जाना शामिल हैं। संक्रमण प्रभावित लोगों में कुछ गंभीर लक्षण भी देखने को मिलते हैं, जिससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत, सांस फूलने की समस्या, सीने में दर्द या दबाव का अनुभव होना, बोलने या चलने-फिरने तक में समस्या आ सकती है।
स्वाद और गंध महसूस न होना कोरोना का कॉमन लक्षण है, जिसे ज्यादातर लोगों ने महसूस किया है। मरीज ठीक होने के बाद भी इस परेशानी से गुजर रहे हैं। अफसोस की बात ये है कि इस समस्या से निपटने के लिए कोई दवा नहीं बनी, इसलिए मरीजों को ठीक होने में लंबा वक्त लग सकता है। अध्ययनों के अनुसार, जो लोग कोरोना पॉजिटिव हैं, उनमें से 60 प्रतिशत से ज्यादा लोगों में ये समस्या देखी गई है। इसके अलावा ऐसे और भी मौखिक लक्षण हैं, जिनकी तरफ लोगों का ध्यान नहीं जाता। क्‍या कहती है रिसर्च नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (National Institute of Health) द्वारा किए गए अध्ययन को नेचर मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार, संक्रमण के दौरान लगभग आधे मरीज मौखिक लक्षणों से पीडि़त होते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि इनमें से बहुत सारे लक्षण ऐसे हैं, जो संक्रमण की वजह हैं। लेकिन लोग इन्हें हल्की-फुल्की समस्या मानने की गलती कर बैठते हैं। यहां हम आपको कुछ ऐसे मौखिक लक्षणों के बारे में बता रहे हैं, जिनसे आप अब तक अंजान है। ये लक्षण दिखें, तो समझ लीजिए कि ये कोरोना की शुरूआत है। बदबूदार सांस सांस से बदबू आना भी कभी-कभी मुंह सूखने का आम संकेत है, जिसे व्यक्ति आसानी से समझ नहीं पाता। इससे भोजन चबाने और बोलने में कठिनाई पैदा हो सकती है। कोरोना महामारी में ऐसे असामान्य लक्षण दिखें, तो आपको एक बार जांच जरूर करानी चाहिए। ​कोविड जीभ- सार्स कोविड-2 जैसे वायरस निश्चित तौर पर जीभ को प्रभावित कर सकते हैं। अध्ययन के अनुसार, वायरस से संक्रमित होने पर मरीज को जीभ की सतह पर जलन और सूजन महसूस हो सकती है। कुछ डॉक्टर इस बात से सहमत हैं कि जीभ में महसूस होने वाली जलन त्वचा पर दिखने वाले चकत्तों से जुड़ी हुई है। इसलिए अगर त्वचा पर बिना किसी वजह के हल्के रैशेज दिखें, तो नजरअंदाज करने के बजाए एक बार अपने डॉक्टर को जरूर दिखा लें। ​जीभ का रंग बदलना- कोविड-19 एक अन्य ओरल कैविटी को प्रभावित कर सकता है और वे है जीभ के रंग का बदलना। मुंह की जलन और सूजन से आपको अजीब सी फीलिंग हो सकती है। यह ऐसा समय है जब होठों में झुनझुनी और व्यवहार में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है। यह भी कोविड-19 के मौखिक लक्षणों की निशानी है। अगर आप वास्तव में वायरस से संक्रमित हैं, तो इस दौरान आप जीभ पर सफेद दाग, लालपन और गहरे रंग की जीभ का अनुभव करेंगे। ​सूखा हुआ मुंह- ड्राई माउथ सिंड्रोम का सीधा कनेक्शन वायरल संक्रमण, ऑटोइम्यून विकारों और अब कोविड -19 से है। सूखे मुंह का अनुभव करने का मतलब है लार के उत्पादन में कमी आना। इससे मुंह में चिकनाहट में कमी आती है। बता दें कि लार पाचन, मुंह को खराब बैक्टीरिया और रोगजनकों से बचाता है। जब आपका मुंह सूखा हुआ रहेगा, तो आप मुंह में सूखापन और चिपचिपाहट महसूस कर सकते हैं। इसके लिए बेशक आप कितना भी पानी पी लें, लेकिन ये स्थिति वैसी ही बनी रहेगी। ​दर्दभरे घाव - कोविड -19 से ग्रस्त होने पर आपको सूजन आ सकती है। ऐसा तब होता है, जब वायरल मसल फाइबर पर अटैक करता है। ऐसे में संभव है कि यह सूजन आपको जीभ पर घावों के रूप में दिखाई दे। हालांकि कुछ लोगों में वायरल इंफेक्शन अल्सर, जलन और एलर्जी के रूप में सामने आ सकता है। फिलहाल, इन घावों को भरने का कोई तरीका नहीं है। खाना खाते समय इस दर्द को आपको झेलना पड़ सकता है। ​किसी भी लक्षण को नजर अंदाज न करें- विशेषज्ञों का मानना है कि जरूरी नहीं कि मुंह और जीभ में आए बदलाव कोविड -19 के ही लक्षण हों। ध्यान रखें कि ये हर किसी को प्रभावित नहीं करते। हालांकि, वायरस के बदलते व्यवहार और मामलों में वृद्धि के साथ लक्षणों को अनदेखा भी नहीं करना चाहिए। यदि इन दिनों आपको कुछ भी असामान्य लगे, तो देर न करें। समय रहते जांच जरूर कराएं।
नई दिल्‍ली । कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में विकराल और खौफनाक रूप ले लिया है। फरवरी से कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वो रुकना तो दूर कम होने का भी नाम नहीं ले रहा है। कोरोना के बढ़ते मामले लोगों के दिलों में दहशत पैदा कर रहे हैं। मंगलवार की रात तक देश में संक्रमण के 185,248 नए मामले सामने आए हैं, जो हर किसी के लिए चिंता की बात है। जिन राज्‍यों में सबसे अधिक मामले सामने आए हैं उनमें महाराष्‍ट्र सबसे ऊपर है। ऐसे में आयुष मंत्रालय ने लोगों को इससे बचाव के लिए पारपंरिक नुस्‍खा इस्‍तेमाल करने की हिदायत दी है। मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि लोग जितना अधिक हो सके घर में काढ़ा बनाकर पिएं और हल्‍दी का प्रयोग करें। साथ लोगों को च्‍यवनप्राश खाने की भी सलाह दी गई है। आयुष मंत्रालय का ये भी कहना है कि पिछले वर्ष जब कोरोना महामारी चरम पर थी, तब भारतीयों ने बड़ी संख्‍या में इन पारंपरिक चीजों का सेवन किया था और महामारी के प्रति अपनी इम्‍यूनिटी को बूस्‍ट किया था। ऐसे में अब भी लोगों को वही उपाय अपनाकर इस महामारी को हराने के लिए प्रयास करने होंगे। हम सभी ये बात बेहतर तरीके से जानते हैं कि आयुष ने जो उपाय सुझाए हैं, वो सभी वास्‍तव में इम्‍यूनिटी बूस्‍टर हैं। अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर घर में अपना इम्‍यूनिटी बूस्‍टर बनाएं कैसे। इसका जवाब हम आपको देते हैं, लेकिन इससे पहले आपको बता देते हैं कि मंत्रालय ने जिस हल्‍दी के सेवन की बात कही है वो आयुर्वेद के नुस्‍खों में बड़ी कारगर चीज है। ये न सिर्फ इम्‍यूनिटी बूस्‍टर होती है, बल्कि ये एक नेचुरल लिवर डिटॉक्सीफायर भी है। कई तरह के शरीर में होने वाले इंफेक्‍शन से लड़ने में ये कारगर है। भारत में पैदा होने वाली हल्‍दी में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला रासायनिक पदार्थ करक्यूमिन की मात्रा अधिक होती है। इसलिए इसको हर जगह पसंद किया जाता है। इंसान को करक्‍यूमिन की दिन में करीब 500 से 1000 मिलीग्राम की जरूरत होती है, जिसको ये पूरा करती है। ये न सिर्फ शरीर में होने वाले दर्द और थकान को दूर करती, बल्कि सांस संबंधी परेशानियों को दूर करने में भी काफी कारगर भूमिका निभाती है। इसके एक नहीं कई फायदे हैं। ये एंटीसेप्टिक भी है। आयुष मंत्रालय के साथ हुए एक वेबिनार में मशहूर सेलिब्रिटी शेफ संजय कपूर ने बताया था कि इसको दूध में मिलाकर पीने से कई तरह के फायदे होते हैं। उनके मुताबिक, दूध में यदि एक चुटकी पिसी हुई काली मिर्च डाल दी जाए तो न सिर्फ उसका स्‍वाद बढ़ जाता है, बल्कि ये आपकी इम्‍यूनिटी को भी बूस्‍ट करने में सहायक साबित होती है। अब बात करते हैं घर में बनाए काढ़े की। आयुष के मुताबिक, इसके लिए आप घर में मौजूद कुछ चीजों का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। जैसे जीरा, अजवायन, पीपल, काला नमक, हल्‍दी, लौंग, गिलोय, अदरक, सौंठ, तुलसी के पत्‍ते और काली मिर्च। इन सभी को डेढ़ से दो लीटर पानी में कूटकर या ऐसे भी डालकर अच्‍छे से उबाल लिजिए। जब पानी पक जाएगा तो उसका रंग हल्‍का ब्राउन हो जाएगा। इस पानी को ठंडा कर लीजिए और दिन में चार पांच बार थोड़ा-थोड़ा करके पी लिजिए। साधारण से दिखाई देने वाले इस पानी में ऐसे लाभकारी गुण मौजूद हैं जो आपको कोरोना वायरस से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता प्रदान कर सकते हैं।
हमारे घरों में ज्‍यादातर लोग सुबह उठकर दूध या काली चाय पीना पसंद करते हैं। जबकि रेगुलर वाली चाय के बजाए यदि लौंग वाली चाय पी जाए तो उसके स्‍वास्‍थ्‍य लाभ कहीं ज्‍यादा होंगे। जी हां, हमारे किचन में मौजूद कई मसाले हैं, जिसमें से लौंग का अपना ही महत्‍व है। लौंग के सेवन से वजन कम करने में मदद मिलती है। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण पाचन को बढ़ावा देने और अन्य बीमारियों से राहत प्रदान करने में मदद कर सकते हैं। लौंग में विटामिन ई, विटामिन सी, फोलेट, राइबोफ्लेविन, विटामिन ए, थायमिन और विटामिन डी जैसे आवश्यक विटामिन भी होते हैं। आप चाहें तो लौंग को करी बनाते वक्‍त उसमें प्रयोग कर सकते हैं या फिर चाय बनाते वक्‍त लौंग के पाउडर को उसमें डालकर लाभ उठा सकते हैं। ​लौंग की चाय बनाने का तरीका: सामग्री: 2 कप पानी 4-5 लौंग 1/2 इंच दालचीनी 1/2 इंच अदरक गुड़ नींबू का रस बनाने की विधि- एक गहरे पैन में पानी डालें और एक उबाल आने दें। गैस बंद कर दें, पानी में लगभग 4-5 लौंग, कसा हुआ अदरक और दालचीनी डालें। इन सब चीजों को पानी में लगभग 15 से 20 मिनट तक रहने दें। एक कप में पानी छान लें और इसमें 1 चम्मच शहद और 1 बड़ा चम्मच नींबू का रस मिलाएं। अपनी मसालेदार हर्बल चाय का आनंद लें। ​इससे आपको वजन कम करने में मदद मिल सकती है यह मसालेदार चाय आपके पाचन को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। चाय में इस्तेमाल होने वाले लौंग और मसालों में मौजूद यौगिक आपकी पाचन प्रक्रिया को बेहतर बना सकते हैं, जिससे आपको वजन कम करने में मदद मिल सकती है क्योंकि दोनों प्रक्रियाएं एक-दूसरे से निकटता से जुड़ी हुई हैं। मसालों को आपके चयापचय दर में सुधार करने के लिए भी जाना जाता है, जो फैट बर्निंग प्रक्रिया को तेज कर देता है। फैट बर्न करने के मामले में क्‍या कहता है शोध USDA नेशनल न्यूट्रिएंट डेटाबेस के अनुसार, लौंग कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और डाइट्री फाइबर सहित कई पोषक तत्वों से भरपूर है। वैज्ञानिकों ने लौंग के मोटापे पर संभावित प्रभाव के बारे में अध्ययन किया है। pubmed.ncbi में छपी एक रिसर्च के मुताबिक चूहों के एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि लौंग का अर्क मोटापे के प्रभाव को कम कर सकता है, जो कि हाई-फैट डाइट की वजह से होता है। अन्‍य चूहों कि तुलना में, वे चूहे जिन्हें लौंग का अर्क दिया गया था, उनके शरीर का न सिर्फ वजन कम था बल्‍कि, एबडॉमिनल और लिवर फैट भी कम था। ​ब्‍लड शुगर कंट्रोल करे रिसर्च से पता चलता है कि लौंग में पाए जाने वाले यौगिक ब्‍लड शुगर को नियंत्रण में रखने में मदद कर सकते हैं। ncbi में छपी जानवरों के ऊपर किए गए एक अध्ययन के अनुसार पाया गया कि लौंग का अर्क मधुमेह से पीड़ित चूहों में रक्त शर्करा को मीडियम गति से बढ़ाने में मदद करता है। इंसुलिन एक हार्मोन है जो आपके रक्त से शर्करा को आपके कोशिकाओं में ले जाने के लिए जिम्मेदार होता है। स्थिर रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने के लिए इंसुलिन का उचित कार्य आवश्यक है। संतुलित आहार के संयोजन में, लौंग आपके ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद कर सकती है। ​स्किन इन्फेक्शन से राहत दिलाए यह आपको कई तरह के स्किन इन्फेक्शन से राहत दिलाएगा। लौंग की चाय में एंटीसेप्‍टिक गुण होता है जो शरीर से टॉक्सिन निकालता है। अगर इसे किसी घाव पर लगाया जाए तो वह जल्दी ठीक हो जाता है। यह फंगल इन्फेक्शन, दाद, झुर्रियों और झाइयों से भी छुटकारा दिलाता है। ​साइनस का इलाज करे यह स्‍पेशल चाय छाती में जमे बलगम को निकालने में मदद कर सकती है और साइनस से राहत दिलाती है। मसाले में यूजेनॉल पाया जाता है, जो कंजेशन को साफ करता है और रिलीफ दिलाता है। लौंग में विटामिन ई और विटामिन के होता है, जो बैक्टीरिया के संक्रमण से लड़ने में मदद कर सकता है। यह चाय बुखार के इलाज में भी कारगर है। ​मसूड़ों और दांतों के दर्द से राहत दिलाए लौंग में एंटी-इंफ्लेमेटरी कंपाउंड पाया जाता है, जो दांत दर्द और मसूड़ों की सूजन से राहत प्रदान करने में मदद कर सकता है। हर्बल चाय आपके मुंह से बैक्टीरिया को हटाने में मदद कर सकती है, जिससे दंत समस्याओं से त्वरित राहत मिलती है। ​लौंग की चाय के साइड इफेक्‍ट भी जानें वैसे तो मसाले खाने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित माने जाते हैं, लेकिन जब अधिक मात्रा में सेवन किया जाता है, तो इसके कुछ सामान्य दुष्प्रभाव भी देखने को मिल जाते हैं। इस लौंग की चाय को दिन में एक या दो बार पीना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। यदि आप इसका अधिक सेवन करते हैं तो आपको गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिस्‍ट्रेस, मांसपेशियों में दर्द और थकान से जूझना पड़ सकता है। गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लौंग की चाय लेते वक्‍त विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। मसालेदार चाय का अधिक सेवन भी उनके शिशुओं के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। यदि आप इस चाय को पीने के बाद उल्टी और मतली महसूस करते हैं, तो इसे न पिएं। सांस फूलने, बुखार या ठंड लगने की स्थिति में तुरंत अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
डायबिटीज के मरीजों को अपने खाने-पीने का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। उनके लिए कुछ खाद्य पदार्थ प्रतिबंधित होते हैं। कार्बोहाइड्रेट एडिटिव्स और ग्लासेमिक स्तर के कारण कुछ खाद्य पदार्थों को खाने की मनाही होती है। जिनमें से चावल एक है। सफेद चावल अपने हाई ग्लासेमिक इंडेक्स के लिए जाने जाते हैं, जिसे खाने से शुगर लेवल बढ़ता है। इसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, फाइबर और पॉलीफेनॉल्स की मात्रा बहुत कम होती है, इसलिए डायबिटिक पेशंट ने अगर भूल से भी चावल खा लिए, तो उसके परिणाम बहुत बुरे होते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि सफेद चावल का अधिक मात्रा में सेवन करने से मधुमेह का खतरा 11 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। वहीं एक अन्य अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि जिन व्यक्तियों ने सफेद चावल के बजाय ब्राउन राइस खाएं, उनमें टाइप-2 डायबिटीज का खतरा काफी कम हो गया। लेकिन अगर आप चावल लेना ही चाहते हैं, तो डायबिटिक फ्रेंडली चावल का विकल्प चुन सकते हैं। आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि डायबिटीज में चावल खाने से क्या हो सकता है । कार्बोहाइड्रेट डायबिटीज के मरीजों को कैसे प्रभावित करता है? कार्बोहाइड्रेट डायबिटीज के मरीज के लिए हानिकारक है। जब मरीज द्वारा चावल का सेवन किया जाता है, तो भोजन के बाद ग्लूकोज लेवल एकदम से बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में शरीर इंसुलिन बनाना बंद कर देता है। इसलिए अगर आपको डायबिटीज है, तो देखना जरूरी है कि आप कितना कार्बोहाइड्रेट ले रहे हैं। टाइप - 1 डायबिटीज वाले लोगों के लिए अग्राशय इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता, इसलिए भोजन में काब्र्स इंटेक का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों के लिए शरीर इंसुलिन के लिए प्रतिरोधी है और रक्त शकर्रा में वृद्धि के लिए पर्याप्त उत्पादन नहीं कर सकता, इसलिए इन लोगों को एक समय में बहुत सारे कार्ब लेने के बजाए पूरे दिन कार्बोहाइड्रेट खाने की सलाह दी जाती है। मधुमेह में चावल का सेवन किया तो मधुमेह में चावल का सेवन किया जाए, तो यह समझना बेहद जरूरी है कि शरीर कैसी प्रतिक्रिया करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, एक कप सफेद चावल में 53.4 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है। जब डायबिटिज से ग्रसित व्यक्ति कार्बोहाइड्रेट युक्त पेय या खाद्य पदार्थों का सेवन करता है, तो यह ग्लूकोज में टूट जाता है और शरीर के ब्लड शुगर लेवल में वृद्धि हो जाती है। रिसर्च पॉपुलेशन हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट, हैमिल्टन हेल्थ साइंसेस और मैक मास्टर यूनिवर्सिटी कनाडा ने मिलकर एक रिसर्च की है। 10 साल की रिसर्च के बाद सामने आया है कि दक्षिण एशियाई लोग एक दिन में 630 ग्राम तक चावल खाते हैं, जो डायबिटीज का खतरा कई गुना बढ़ाता है। डायबिटीज में सफेद चावल न खाएं, तो क्या खाएं डायबिटीज के मरीज को भूलकर भी चावल नहीं खाना चाहिए। खासतौर से सफेद चावल। दरअसल, सफेद चावल को चमकदार बनाने के लिए इसमें पॉलिशिंग की जाती है। जिससे इसमें मौजूद विटामिन बी जैसे कई पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। यदि संभव हो, तो ब्राउन राइस का ऑप्शन चुनें। ब्राउन राइस उच्च सामग्री (फाइबर, विटामिन , मिनरल , मल्टीपल न्यूट्रिएंट्स) के कारण टाइप टू के मधुमेह के जोखिम को कम करने के लिए जाना जाता है। जहां सफेद चावल में कैलोरी की अधिक मात्रा सेहत को नुकसान पहुंचाती है, वहीं ब्राउन राइस लेने से शरीर को पर्याप्त कैलोरी मिलती है। इसके अलावा आप वाइल्ड राइस, जैसमीन राइस और बासमती राइस का विकल्प भी चुन सकते हैं।
भारतीय किचन में तरह-तरह के मसाले न केवल खाने का स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अच्छे हैं। उन्हीं मसालों में से एक है जायफल। यह भोजन का स्वाद और सुगंध दोनों बढ़ाता है। यह मसाला पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर है, जो जायफल के पेड़ मिरिस्टिका फ्रेग्रेंस से मिलता है। मिरिस्टिका के बीज को जायफल कहा जाता है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी कल इंफॉर्मेशन (National Center for Biotechnology Information) (NCBI) की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई एक शोध के अनुसार, जायफल को हजारों वर्षों से दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। जायफल का सेवन बहुत कम लोग करना पसंद करते हैं। क्योंकि इसका स्वाद गर्म और थोड़ा अखरोट जैसा होता है। लोग अक्सर इसका उपयोग डेसर्ट या करी में करते है। जायफल में ऐसे बहुत सारे यौगिक होते हैं, जो बीमारी को रोकने और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको जायफल के विज्ञान आधारित स्वास्थ्य लाभों के बारे में बताने जा रहे हैं। ​सूजन से दिलाए राहत जायफल एंटी इंफ्लेमेटरी यौगिकों से समृद्ध है, जिसे मोनोटेरेप्स कहा जाता है। इसमें साबिनिन, टेरपिनोल और पिनीन शामिल है । ये आपके शरीर में पुरानी सूजन वाली स्वास्थ्य स्थिति जैसे दिल के रोग, मधुमेह और गठिया से राहत दिलाने में कारगार है। एक अध्ययन में सूजन वाले चूहों को इंजेक्शन लगाया गया । उनमें से कुछ को जायफल का तेल दिया गया। तेल का सेवन करने वाले चूहों ने सूजन और सूजन संबंधी दर्द का कम अनुभव किया। ​एंटीऑक्सीडेंट में समृद्ध- जायफल में एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जिसमें फेनोलिक यौगिक और प्लांट पिगमेंट्स शामिल हैं, जो सेल्यूलर डैमेज को रोककर पुरानी बीमारियों से आपका बचाव कर सकते हैं। दरअसल, जिन बीजों से जायफल निकाला जाता है, वे पौधों के यौगिक से भरपूर होते हैं, जो आपके शरीर में एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करते हैं। ये एंटीऑक्सीडेंट कोशिकाओं को मुक्त कणों से होने वाले सेल्यूलर डैमेज को रोकते हैं। ​सेक्स ड्राइव बढ़ाए जायफल आपकी सेक्स लाइफ को मजेदार बनाने में मदद करता है। इसे महिलाओं के लिए वियाग्रा के रूप में जानते हैं। क्लीनिकल इंवेस्टीगेशन्स से पता चला है कि जायफल का नियमित रूप से सेवन यौन गतिविधि को तेज करता है, जिससे निरंतर तरीके से सेक्स की इच्छा में वृद्धि होती है। पशु अनुसंधानों की एक रिसर्च में पता चला है कि नर चूहों को जायफल का अर्क की अच्छी खुराक देने से उनकी यौन गतिविधि में काफी वृद्धि हुई। आपको बता दें कि दक्षिण एशिया में यूनानी चिकित्सा पद्धति में यौन विकारों के इलाज के लिए जायफल का उपयोग महत्वपूर्ण रूप से किया जाता है। ​एंटीबैक्टीरियल गुणों का खजाना जायफल में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। कभी-कभी स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटन्स और एग्रिगेटिबेक्टेरिन, एक्टिनोमाइसेटेमकोमिटन्स जैसे बैक्टीरिया मसूडों को खराब करते हैं। टेस्ट ट्यूब रिसर्च से पता चला है कि जायफल ई-कोलाई नामक बैक्टीरिया के विकास को रोकते हैं, जो मनुष्य में गंभीर बीमारी के साथ मौत का भी कारण बन सकता है। ​कई स्वास्थ्य स्थितियों में लाभकारी जायफल- जायफल दिल की सेहत को फायदा पहुंचा सकता है। पशु अध्ययन बताते हैं कि जायफल की खुराक लेने से दिल के रोग के जोखिम कारक कम हो जाते हैं। जायफल ब्लड शुगर कंट्रोल करने में फायदेमंद साबित होता है। चूहों में किए गए एक अध्ययन से इस बात का पता चला है कि अच्छी खुराक वाले जायफल के अर्क सेरक्त शर्करा का स्तर काफी कम हो जाता है। पशु अनुसंधान के अनुसार, जायफल मूड को बढ़ावा देने, रक्त शर्करा को नियंत्रित करने और हृदय रोगों के जोखिम कारकों को कम करने में मददगार है। इन संभावित स्वास्थ्य लाभों की जांच के लिए मनुष्यों में जांच की जरूरत है। गर्म ओर मीठा स्वाद होने की वजह से इसे अलग-अलग मीठे और नमकीन खाद्य पदार्थों के साथ मिलाया जाता है। इस लोकप्रिय मसाले को आप अकेले या फिर मसालों जैसे इलायची, दालचीनी और लौंग के साथ मिला सकते हैं। हल्की सी मिठास के कारण इसे पाई, केक, कुकीज, ब्रेड और कस्टर्ड में खासतौर से जोड़ा जाता है। जायफल को यदि स्टार्च वाली सब्जियों पर छिड़का जाए, तो स्वाद और भी दिलचस्प हो जाता है। यदि आप पूरे जायफल का उपयोग कर रहे हैं, तो बेहतर है कि इसे ग्राइंडर से पीस लें। डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें। ​जायफल के नुकसान कम मात्रा में जायफल का सेवन करने से कोई नुकसान नहीं है, लेकिन इसकी उच्च मात्रा आपको नुकसान पहुंचा सकती है। जायफल गंभीर लक्षण पैदा कर सकता है। जैसे दिल की धड़कन तेज होना,मतली और उल्टी महसूस होना। अन्य दवाओं के साथ लेने पर ये मौत का कारण भी बन सकता है। लंबे समय तक जायफल की ज्यादा खुराक से अंगों को नुकसान होता है। इन संभावित हानिकारक साइड इफेक्टस से बचने के लिए बड़ी मात्रा में जायफल का सेवन करने से बचें।
नई दिल्ली इलेक्ट्रिक वाहनों के बाद अब इलेक्ट्रिक हाइवे पर भी सरकार का पूरा फोकस है। लोकसभा में गुरुवार नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार दिल्ली- मुंबई के बीच बनने जा रहे नए हाइ वे को इलेक्ट्रिक हाइवे के तौर पर विकसित करने जा रही है। इस पर बस 120 किलोमीटर की रफ्तार से चलेगी। इस ओर काम चल रहा है और जर्मनी की कंपनी प्रेजेंटशन भी दिया है। लोकसभा में मनीष तिवारी के एक सवाल के जवाब में नितिन गडकरी ने कहा कि देश में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसको लेकर एक बड़ी समस्या है कि देश का 85 फीसदी ट्रैफिक रोड पर है। पीएम मोदी ने हमें रोपवे, इलेक्ट्रिक वे, मेट्रो और मोनो रेल के काम सौंपे हैं। जिस पर तेजी से काम चल रहा है। वहीं उन्होंने ई रिक्शा के बाद अब ई साइकिल को बढ़ावा देने के जरूरत की बात कही। उन्होंने कहा कि आस- पास के इलाकों में खाने और दूसरे सामान की डिलीवरी में इसके इस्तेमाल से खर्च में कमी आएगी। उन्होंने कहा कि डिलीवरी बॉय के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले सप्ताह ही टोल प्लाजा को लेकर बड़ा ऐलान किया था। लोकसभा में नितिन गडकरी ने कहा था कि अगले एक साल में देश से सभी टोल प्लाजा खत्म कर दिया जाएगा। अब गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम लगाया जाएगा जिसकी मदद से टोल शुल्क वसूलने की तैयारी है।
बढ़ती उम्र के साथ ही हेल्दी और फिट बने रहने के लिए हमारे शरीर की जरूरतें भी बदलती रहती हैं। जैसे ही हम 30 प्लस के हो जाते हैं तो हमारे शरीर को हेल्दी रहने के लिए प्रोटीन, मिनरल्स, विटामिंस, फाइबर जैसी चीजों के अलावा कुछ और न्यूट्रिएंट्स जैसे कि Omega-3 Fatty Acid की भी जरूरत होती है। Omega-3 में DHA और EPA होता है। यह दिल की बीमारियों को दूर रखता है। ब्लड प्रेशर को ठीक रखता है। यह हड्डी से जुड़ी बीमारियों, आंखों, बालों से जुड़ी परेशानियों, कई तरह के कैंसर को रोकने में फायदेमंद होता है। इसके साथ ही यह डिप्रेशन, टेंशन, सुस्ती, थकान को भी दूर करता है और आपके मूड को ठीक रखता है। 5 ब्रांड्स के Omega 3 Fatty Acid Neuherbs Omega 3 Fish Oil : इस Omega 3 Fatty Acid के 2,500 Mg के एक कैपसूल में 892 mg. EPA और 594 mg. DHA होता है। इसके अलावा इसमें विटामिन ई और विटामिन डी3 भी भरपूर मात्रा में है। यह हार्ट, ब्रेन और जोड़ों की समस्याओं से लिए बेहतरीन सप्लीमेंट है। इसका Softgel Capsule इस्तेमाल करने में काफी आसान है। इसके 60 Capsules पैक की एमआरपी 1,099 रुपए है। HealthKart Fish oil : यह बेहद किफायती कीमत में मिल रहा Omega 3 Fatty Acid है। यह अल्ट्रा प्योर, रिफाइंड फिश ऑयल है जिसे Cold water fishes से एडवांस टेक्नोलॉजी के जरिए तैयार किया जाता है। यह हार्ट, ब्रेन फंक्शन और आंखों को हेल्दी रखता है। इसके 60 Softgels पैक की एमआरपी 699 रुपए है TrueBasics Omega-3 Fish Oil : इस Omega 3 Fatty Acid मर्करी जैसे हैवी मेटल और कोलेस्ट्रॉल फ्री है। यह Enteric coated है जिससे इसे लेने के बाद आपको Fish जैसी स्मेल नहीं आती। यह आपके दिल, दिमाग और हड्डियों के हेल्थ के लिए काफी अच्छा है। इस Omega-3 Capsules के 60 कैपसूल्स के पैक की एमआरपी 899 रुपए है BBETTER Omega 3 Fish Oil : यह Omega 3 Fatty Acid हार्ट, ब्रेन और जोड़ों की समस्याओं से लिए बेहतरीन सप्लीमेंट है। एक 1,000mg ओमेगा 3 फैटी एसिड कैपसूल में 180 mg EPA और 120 mg DHA है। आंखों, ब्रेन, दिल, जोड़ों और हड्डियों के साथ ही स्किन-बालों के लिए यह काफी बढ़िया है। इसके 60 Capsules पैक की एमआरपी 899 रुपए है। WOW Omega-3 Fish Oil Capsules : यह अल्ट्रा प्योर, रिफाइंड फिश ऑयल है। इस 1,000mg के हर Omega-3 कैपसूल में 350 mg. DHA, 550 mg. EPA और 100mg अन्य ओमेगा 3 फैटी एसिड मौजूद है। यह किसी भी तरह की अशुद्धि और मर्करी से फ्री है। यह जोड़ों के दर्द और बोन हेल्थ, दिल के लिए काफी अच्छा है। इसके 60 Capsules पैक की एमआरपी 899 रुपए है।
नई दिल्ली, आमलकी रसायन दिल के फंक्शन को सुधारने में कारगर हो सकता है। इस बात का दावा आईआईटी गुवाहटी के वैज्ञानिकों ने किया है। आईआईटी के वैज्ञानिकों ने मॉडर्न ड्रग डेवलपमेंट मैथड का प्रयोग कर इस बात की पुष्टि की है। उनका यह अध्ययन हाल ही में सिस्टम बायोलॉजी एंड एप्लीकेशन में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने अपने अध्ययन में बताया है कि अम्लकी रसायन उच्च रक्तचाप की वजह से दिल में होने वाले फंक्शनल बदलावों को कम कर सकता है। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने मॉडर्न ड्रग डेवलपमेंट मैथड भी विकसित किया है, जो आयुर्वेदिक दवाओं की चिकित्सीय क्रियाओं और फॉर्मूलों को समझने में भी खासा मददगार साबित हो सकता है। प्रोफेसर रामाकृष्णन और प्रोफेसर कारथा ने स्टडी में पाया था कि लंबे समय तक आमलकी रसायन को लेने से दिल की मांसपेशियों की थिकनिंग कम होती है और इससे दिल का फंक्शन सुधरता है। यही नहीं उन्होंने नेटवर्क फॉर्मेकोलॉजी और कीमोइंफॉर्मेटिक्स से यह दिखाया कि यह मानव शरीर में कैसे काम करता है। नेटवर्क फॉर्मेकोलॉजी एक-जीन-एक-लक्ष्य-एक-दवा दृष्टिकोण की बजाय रोगों पर दवाओं के प्रभाव का विश्लेषण करती है। नेटवर्क फॉर्मेकोलॉजी मल्टी कंपोनेंट थैरेपी में काफी प्रभावशाली है। यह परंपरागत सिस्टम आर्युवेदिक और चाइनीज मेडिसिन की तरह ही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आयुर्वेदिक दवाओं का लंबे समय से प्रयोग हो रहा है, पर मॉडर्न मेडिसिन के लोग साइंटिफिक तथ्यों जैसे कि ड्रग की प्रभावशीलता और सुरक्षा के आधार पर ही उसे मानते हैं। आयुर्वेदिक दवा शरीर को पूर्ण तौर पर सही करती है। हमने मॉडर्न मेडिसिन की टूल और तकनीक से इसे सच साबित किया है।
क्या आप भी बाथरूम में मोबाइल फोन साथ लेकर जाते हैं। अगर ऐसा है, तो अपनी इस आदत को आज से बदल लीजिए। क्योंकि आपकी ये बुरी आदत आपको कई तरह से संक्रमित रोगों का शिकार बना सकती है। इतना ही नहीं, आपको गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से भी गुजरना पड़ सकता है। अब तक लोग अपना समय बचाने के लिए बाथरूम में अखबार या मैग्जीन पढ़ते थे। लेकिन इन दिनों दोनों की जगह स्मार्टफोन ने ले ली है। अब लोग मोबाईल फोन के साथ बाथरूम में घंटों बिता देते हैं। फेसबुक चैक करना, इंस्टाग्राम फीड देखना, व्हॉट्सऐप पर चैट करना , यहां तक की लोग दुनियाभर की खबरें भी फोन पर ही पढ़ लेते हैं। जो लोग वाकई इस चीज के आदी हो चुके हैं, उन्हें नहीं पता कि वे ऐसा करके खुद बीमारियों को न्यौता दे रहे हैं। अगर आपको यकीन न हो, तो हमारा ये आर्टिकल जरूर पढ़ें। यहां हम आपको बताएंगे कि शौचालय में स्मार्टफोन ले जाना कैसे आपको संक्रमित कर सकता है। कैसे संक्रमित हो सकते हैं लोग घर के सभी जगहों में से बाथरूम में सबसे ज्यादा कीटाणु पाए जाते हैं। यहां नल, हैंड ड्रायर, दरवाजों की कुंडी पर सबसे ज्यादा कीटाणु होते हैं, जो आपको कभी नजर नहीं आते। जब आप फ्रेश होने के दौरान फोन साथ ले जाते हैं, तो आपका फोन भी मल बैक्टीरिया के संपर्क में आ जाता है। ऐसा ज्यादातर तब होता है, जब आप फ्लश यूज करते हैं, खुद को पोंछते हैं या फिर डोर लॉक को छूते हैं और फिर फोन को छूने पर इसमें बैक्टीरिया की ग्रांड एंट्री हो जाती है। हालांकि, आपको इस बात का बिल्कुल अहसास नहीं होगा। जर्नल एनल्स ऑफ क्लीनिकल माइक्रोबायोलॉजी एंड एंटीमाइक्रोबायल्स में छपे एक अध्ययन के मुताबिक लोगों के मोबाईल फोन में 95 प्रतिशत संक्रमण वाले बैक्टीरिया साल्मोनेला, ई-कोली और सी-डिफिसाइल थे। टॉयलेट सीट से 10 गुना ज्यादा कीटाणु फोन पर बाथरूम में फोन ले जाना कितना खतरनाक हो सकता है, ये आप सोच भी नहीं सकते। एरिजोना यूनिवर्सिटी के शोकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आया है कि स्मार्टफोन में टॉयलेट सीट से 10 गुना ज्यादा बैक्टीरिया पनपते हैं। हम मल त्याग के बाद हाथ धोते हैं, लेकिन स्मार्टफोन को साफ करना भूल जाते हैं। नतीजतन रोग पैदा करने वाले कीटाणु और बैक्टीरिया उन पर चिपके रह जाते हैं, जो आसानी से संक्रमण का कारण बनते हैं। इसके बाद फोन पर मौजूद बैक्टीरिया और वायरस आपके शरीर और सतहों के कई हिस्सों के संपर्क में आते हैं। हो सकता है तनाव टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन को कितना भी आसान क्यों न बना दिया हो, लेकिन हर वक्त इसका उपयोग आपको तनाव देने का बहुत बड़ा कारण है। बाथरूम में भी अगर आप फोन का इस्तेमाल करते रहेंगे, तो तनाव और अवसाद होना स्वभाविक है। फोन को बाथरूम में ले जाकर आप अपने दिमाग और स्वास्थ्य दोनों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। गुदा पर पड़ता है दबाव बाथरूम में स्मार्टफोन का उपयोग करने का एक और हेल्थ रिस्क है बवासीर। जो लोग यहां भी अपने फोन को पास रखते हैं, जाहिर है वे यहां औसत से ज्यादा समय बिताते हैं। लंबे समय तक शौचालय में बैठने से भी रक्तस्त्राव की समस्या हो सकती है। इससे गुदा पर अधिक प्रभाव पड़ता है, जिससे आपको पेल्विक हिस्से में दर्द , सूजन या रक्तस्त्राव महसूस हो सकता है। क्या हो सकता है विकल्प हर व्यक्ति को बाथरूम में पाए जाने वाले कीटाणुओं से संक्रमित होने का खतरा ज्यादा रहता है। अगर आप बाथरूम में अपना फोन यूज करते हैं, तो आपके लिए सुरक्षित रहना और स्वच्छता बनाए रखना बहुत जरूरी है। सबसे अच्छा विकल्प है कि जब आप टॉयलेट जाएं, तो फोन को बाहर ही छोड़ दें। अगर ले जाना जरूरी है, तो बाद में इसे अल्कोहल बेस्ड सैनिटाइजर से अच्छी तरह साफ करें। इसके अलावा कोशिश करें, कि बहुत ज्यादा समय शौचालय में न बिताएं। विशेषज्ञों के अनुसार, किसी को मल त्याग के दौरान 10 मिनट से ज्यादा नहीं बैठना चाहिए।
बहुत से लोग कोलेस्ट्रॉल के बारे में तो जानते हैं। लेकिन यह नहीं जानते कि असल में यह होता क्या है। आपको बता दें कि कोलेस्ट्रॉल एक तरह का फैट होता है जो खून में मौजूद होता है। कोलेस्ट्रॉल शरीर के अंदर बहुत से कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है, जैसे सेल्स को लचीला बनाए रखने के लिए, और विटामिन डी के संशलेषण आदि के लिए। ज्ञात हो कि दो तरह के कोलेस्ट्रॉल होते हैं एक होता है एलडीएल और दूसरा होता है एचडीएल। एलडीएल कोलेस्ट्रॉल रक्त धमनियों में बाधा उत्पन्न कर हृदय को नुकसान पहुँचाता है। जबकि एचडीएल कोलेस्ट्रॉल आपके दिल का ख्याल रखने का कार्य करता है। कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का कारण केवल खराब जीवनशैली या बेकार खान पान ही नहीं. बल्कि इसके लिए फैमिली हिस्ट्री भी जिम्मेदार होती है। लेकिन स्वस्थ्य भोजन, हल्की एक्सरसाइज और जीवनशैली में बदलाव के जरिए इससे राहत पाई जा सकती है। हल्दी है गुणकारी घर से चिटियों को भगाना हो या फिर चोट को जल्दी ठीक करना हो। इन सभी कार्यो में हल्दी का उपयोग किया जाता है। उसी तरह यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करने का कार्य भी करती है। दरअसल हल्दी के अंदर पाए जाने वाले तत्व रक्त की धमनियों से कोलेस्ट्ऱॉल हटाने का कार्य करते हैं। इसके लिए आप चाहें तो हल्दी वाला दूध पी सकते हैं। या फिर आप सुबह गर्म पानी के अंदर आधा चम्मच हल्दी पाउडर डालकर सेवन कर सकते हैं। ग्रीन टी या कैप्सूल आज कल के समय में वजन कम करने से लेकर, मेटाबॉलिज्म बेहतर बनाने तक के लिए ग्रीन टी का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा हाल ही में हुई एक रिसर्च बताती है कि ग्रीन टी के अंदर पाए जाने वाले तत्व बैड कोलेस्ट्रॉल को तेजी से कम करने का कार्य करते हैं। अगर आपको इसका स्वाद पसंद नहीं है तो आप ग्रीन टी कैप्सूल का सेवन कर सकते हैं। जड़ी बूटी की तरह असर करता है लहसुन लहसुन को पहले के समय में बहुत सी बीमारियों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता था। वही मॉर्डन जेनरेशन के लोगों के लिए यह कोलेस्ट्रॉल कम करने का एक बेहतरीन तरीका भी है। लेकिन इसके लिए आपको सुबह के समय या रात को सोने से पहले इसे कच्चा खाना होगा। दरअसल इसके अंदर एलिसन पाया जाता है जो कुल एलडीएल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में सक्षम होता है। अलसी पाउडर का उपयोग अलसी के बीज या फ्लैक्स सीड्स आपकी पाचनक्रिया से लेकर आपके हृदय के लिए भी फ़ायदेमंद होता है। इसके अंदर लिनोलेनिक एसिड और ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है। यह आपके एलडीएल कोलेस्ट्रॉल पर सीधा वार कर इसे कम करता है। ऐसे में आप इसका सेवन दूध या गर्म पानी के साथ कर सकते हैं। इसके लिए आप अलसी के बीज के पाउडर का उपयोग कर सकते है। फिश ऑयल या कैप्सूल फिश ऑयल को ओमेगा 3 फैटी एसिड का एक बेहतरीन श्रोत माना जाता है। आपको बता दें कि ओमेगा 3 फैटी एसिड एलडीएल कोलेस्ट्राल की मात्रा को कम करने का कार्य करता है. इसके लिए आप फिश का तरह तरह की फिश का सेवन कर सकते हैं, जैसे लेक, सैलमोन, ट्राउट आदि। अब अगर आप वेजिटेरअन है तो दुखी मत हो। आप फिश ऑयल के 100 एमजी कैप्सूल का सेवन कर सकते हैं। धनिया है बढ़िया सूखा धनिया या कोरिएंडर का इस्तेमाल अक्सर बहुत से पकवानों में किया जाता है। लेकिन बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो इसके फ़ायदों और इसके पोषक तत्वों के बारे में जानते हैं। आपको बता दे कि इसके अंदर विटामिन ए, विटामिन सी, फोलिक एसिड और कई एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं। यह तत्व बैड कोलेस्ट्रॉल को शरीर से बाहर का रास्ता दिखाते हैं। अगर आप धनिए का लाभ उठाना चाहते हैं, तो आप रोजाना एक चम्मच धनिया या धनिया पाउडर को दो मिनट तक पानी में उबाले और फिर इसे पियें। यह उपाय बैड कोलेस्ट्रॉल कम कर देगा। आंवला है सही आंवला के फायदे बालों को ही नहीं बल्कि हृदय पर भी देखे जाते हैं। दरअसल आंवला के अंदर अमीनो एसिड और एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं जो बैड को कोलेस्ट्रॉल को कम करने का कार्य करते हैं। आप चाहें तो इसके लिए ताजा आंवले का सेवन करें या फिर एक चम्मच पाउडर गुनगुने पानी में डालकर पीए। यह आपको हृदय समस्याओं से बचा कर रखेगा। सेब का सिरका सेब का सिरका कोलेस्ट्रॉल समेत कई समस्याओं का अंत करने में सक्षम है। इसके लिए आप एक चम्मच सेब का सिरका लें और इसे पानी में अच्छी तरह मिला कर पियें। इससे आपका कोलेस्ट्रॉल की समस्या भी हल होगी और आपके सेहतमंद भी बने रहेंगे।
-हर दिन जब भी आप अपने बाल संवारते हैं और एक साथ कई बाल आपके हाथ में आ जाते हैं तो आपका दुखी होना स्वाभाविक है। अपने झड़ते बालों को देखकर भी के मन में यह खयाल आता है कि काश कोई ऐसा तरीका होता, जिसके जरिए हम अपने बालों का झड़ना रोक पाते। -कई लोग दुखी होकर केमिकल प्रॉडक्ट्स की तरफ मुड़ जाते हैं। उन्हें उम्मीद होती है कि शायद वहां उनकी समस्या का कोई समाधान उन्हें मिल जाएगा। लेकिन अफसोस ज्यादातर केसेज में रिजल्ट सिर्फ परेशानी बढ़ानेवाला होता है। इसलिए आज हम आपके लिए यहां एक ऐसा देसी नुस्खा लेकर आए हैं, जिसे सुंदर और घने बालों के लिए हमारी पुरानी पीढ़ियां उपयोग किया करती थीं। सिर्फ 10 से 15 पत्तियां चाहिए -जब भी नीम की पत्तियों से बाल धोने की बात आती है जो ज्यादातर लोगों को लगता है कि पता नहीं इतनी ढेर सारी पत्तियां हम कहां से लेकर आएंगे। लेकिन आप बिल्कुल परेशान ना हों। बालों को धोने का पानी तैयार करने के लिए आपको नीम की सिर्फ 10 से 15 पत्तियां चाहिए। -समस्या यह है कि हमारे यहां लोगों को नुस्खा तो पता होता है। लेकिन उसी नुस्खे से कम मेहनत के साथ अधिक लाभ कैसे पाया जाए इस बारे में ज्यादातर लोग जानते नहीं हैं। इस तरह तैयार करें पानी -नीम की 10 से 15 पत्तियां लेकर पहले उन्हें धो लें। इसके बाद एक बर्तन में एक बड़ा गिलास पानी लेकर गर्म होने के लिए रख दें। जब पानी गर्म हो जाए तो उसमें नीम की पत्तियां डाल दें और धीमी गैस पर इस पानी को पकने दें। -आप पानी को तब तक पकाएं जब तक यह आधा ना हो जाए। पानी जब आधा रह जाए तो गैस बंद कर दें और पानी को ठंडा होने दें। इस पानी को छानने के बाद आप शैंपू के दौरान इस आधा-पौना गिलास पानी का उपयोग करें। ध्यान रखें कि इस थोडे़-से पानी को आपको बाल्टीभर पानी में नहीं मिलाना है। यह है नीम का पानी उपयोग करने की सही विधि -नीम की पत्तियों से बाल धोने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप शैंपू के दौरान जितने भी पानी का उपयोग करें, वह पूरा का पूरा नीम की पत्तियों का पानी होना चाहिए। -बल्कि पूरी तरह शैंपू करने के बाद आपको नीम की पत्तियों का एक मग पानी अपने बालों पर उपयोग करना होता है। ताकि नीम के गुणों आपके सिर की त्वचा और बालों को पोषण दे सकें। इसके बाद आपको अन्य पानी या शैंपू का उपयोग नहीं करना होता है। फेंके नहीं पत्तियों को -नीम के पानी को छानने के बाद बची हुई पत्तियों को फेंके नहीं। बल्कि इन्हें मैश करके यानी मसलकर अपने चेहरे पर लगा लें। इन पत्तियों में बहुत गुण होते हैं। ये आपके चेहरे पर दाने, घमौरी और वाइट तथा ब्लैकहेड्स जैसी समस्याओं को होने से रोकती हैं। आप चाहें तो इन पत्तियों का उपयोग अपने फेस पैक को तैयार करने में भी करत सकते हैं। इन्हें बेसन या चंदन पाउडर में मिक्स करके फेस पैक बना लें। इतनी बार करें उपयोग -नीम बालों को या सिर की त्वचा को बिल्कुल नुकसान नहीं करता है। इसलिए आप अपनी सुविधा के अनुसार इसका उपयोग कर सकते हैं। हालांकि सुंदर और घने बालों के लिए सप्ताह में कम से कम 2 बार इस पानी से बाल जरूर धोएं। -नीम में औषधीय गुणों के अतिरिक्त ऐंटिफंगल, ऐंटिबैक्टीरियल और ऐंटिवायरल गुण होते हैं। यह बालों की जड़ों में डैंड्रफ, फंगस और अधिक तेल आने की समस्या को रोकता है। यह बालों में पिग्मेंटेनश को भी रोकता है। उनकी चमक को बनाए रखता है और उनके प्राकृतिक रंग को बरकरार रखने में सहायता करता है। जरूर बरतें ये सावधानी -नीम के पानी का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखें कि यह पानी आपकी आंखों में ना जाए। हालांकि यह आंखों के लिए खतरनाक नहीं होता है लेकिन आंखों में जलन पैदा कर सकता है। इसलिए किसी भी तरह की असुविधा से बचने के लिए बेहतर है कि आप इस पानी का उपयोग करते समय थोड़ी-सी सतर्कता रखें।
अगर आप कई दिनों से वजन कंट्रोल करने के चक्‍कर में अपनी देसी दूध वाली चाय को अलविदा कह चुके हैं तो यह खबर आपके लिए है। वजन घटाने के लिए हम में से बहुत से लोग चाय पीना छोड़ देते हैं, क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि इसे पीकर वह कभी भी अपना वेट लॉस नहीं कर पाएंगे। यदि आप वेट लॉस जर्नी पर हैं तो चाय को बनाने का तरीका जरूर लें। यहां बताई जा रही विधि से अगर आप चाय बनाकर पिएंगे तो न सिर्फ आपका वजन ही कम होगा बल्‍कि कब्‍ज, हाई बीपी और स्‍ट्रेस भी कंट्रोल में रहेंगे। यदि आपको दिनभर थकान महसूस होती है, तो इसे पीने के बाद आप पूरे दिन एक्‍टिव और फ्रेश बने रहेंगे। चाय पीने का समय जान लें चाय को पीने का समय भी देखना बहुत जरूरी है। चाय को कभी भी खाली पेट न पिएं। साथ ही इसे कभी भी खाना खाने के तुरंत बाद न पिएं। चाय को तब पिएं जब आप पूरी तरह से थका हुआ महसूस कर रहे हों। क्‍योंकि तब जा कर आप इसका पूरा फायदा उठा सकते हैं। वेट लॉस चाय बनाने की सामग्री चाय की पत्‍ती- स्‍वादअनुसार लेमनग्रास स्‍टेम- 1-2 इंच का टुकड़ा कोकोआ पाउडर- 1-2 छोटा चम्‍मच दूध- थोड़ा सा शुगर फ्री या ब्राउन शुगर- 1-2 छोटा चम्‍मच पानी- 1 कप चाय बनाने का तरीका सबसे पहले एक सॉस पैन में पानी उबलने के लिए चढ़ा दें। अब लेमनग्रास को अच्‍छी तरह से कूंट लें और पानी में मिला दें। एक अलग कप में कोको पाउडर और चीनी मिलाएं। जब पानी उबलने लगे तब उसमें चाय की पत्‍ती डालें। फिर दूध डालें और अच्‍छी तरह से पकाएं। अब चाय को उसी कप में छान लें जिसमें आपने कोको पाउडर और चीनी मिक्‍स की थी। इसे चम्‍मच से चलाएं और पी लें। लेमन ग्रास की खासियत यह एक औषधीय गुणों वाला पौधा है, जिसमें ढेर सारा एंटी-ऑक्सिडेंट, एंटी-इंफ्लेमेंटरी और एंटी-सेप्टिक गुण शामिल हैं। इसकी चाय के नियमित इस्तेमाल से डायबीटीज, मोटापा, पेट की बीमारियों, नींद की समस्या और सांस संबंधी बीमारियों में भी राहत मिलती है। लेमन ग्रास खून को साफ करता है और एक्‍ने की समस्‍या को दूर करता है। लेमनग्रास के सेवन से वजन भी कम किया जा सकता है, क्योंकि इसमें सिट्रोल पाया जाता है जो पेट में वसा के संचय को रोक देता है। कोकोआ पाउडर कोकोआ के बीजों से डार्क चॉकलेट बनाई जाती है। इसे दवा के रूप में भी इस्‍तेमाल किया जाता है। इसका नियमित सेवन शरीर के मेटाबॉलिज्‍म को बढ़ाता है, जिससे फैट तेजी से बर्न होता है। कई रिसर्च में यह भी सामने आया है कि कोको में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो मूड अच्छा करके डिप्रेशन के लक्षणों को दूर करते हैं। चाय की पत्‍ती करे ये कमाल चाय की पत्‍ती में ढेर सारा एंटीऑक्‍सीडेंट पाया जाता है, जो चेहरे के रिंकल्‍स को दूर करती है। इसके अलावा यह स्‍ट्रेस लेवल को भी कम करता है। कई अध्ययनों से पता चला है कि चाय की एक किस्म आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा दे सकती है, सूजन से लड़ सकती है, और यहां तक कि कैंसर और हृदय रोग को भी दूर कर सकती है। दूध यह कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन-B, पोटेशियम और विटामिन-डी जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह प्रोटीन का एक उत्कृष्ट स्रोत है। दूध में उच्च-प्रोटीन होने की वजह से आपका पेट लंबे समय तक भरा हुआ महसूस होता है, जिससे आप अधिक खाने से खुद को रोक सकते हैं। यह वजन कम करने और वजन को रोकने में मदद करता है।
जब हमारे शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा जब ज्यादा बढ़ जाती है तो गठिया यानी गाउट की बीमारी हो जाती है। जब हमारी बॉडी अपशिष्ट पदार्थों को पूरी तरह से बाहर नहीं निकाल पाती है तो बॉडी में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने लगती है, जो धीरे-धीरे क्रिस्टल में बदलने लगते हैं और हम गठिया की चपेट में आ जाते हैं। गठिया जोड़ों के दर्द और सूजन की समस्या लेकर आता है। बॉडी में यूरिक एसिड के लेवल को कंट्रोल में रखें तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। इसके लिए हमें अपने खानपान पर खास ध्यान देने की जरूरत है। आज हम आपको बता रहे हैं कि बॉडी में यूरिक एसिड किन चीजों को खाने से बढ़ता है और अगर गठ‍िया की समस्या हो गई हो या शुरुआती लक्षण हैं तो खाने में क‍िन चीजों से करना होगा परहेज। फूलगोभी, पत्तागोभी और मशरूम न खाएं यूरिक एसिड की परेशानी से बचने के लिए डॉक्टर फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रसेल्स, स्प्राउट्स और मशरूम नहीं खाने की सलाह देते हैं। इनमें प्यूरीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, इसलिए इन चीजों को खाने से परहेज करना चाहिए। ​मांस और सी-फूड को अपनी डाइट में न करें शामिल नॉनवेज में प्यूरिन की मात्रा ज्यादा होती है, जिसके कारण इनके इस्तेमाल से बॉडी में यूरिक एसिड बढ़ने का खतरा होता है और गठिया का दर्द बढ़ सकता है। इसलिए मीट खाने पर उसके कुछ अंगों जैसे लिवर (कलेजी), गुर्दा (किडनी) और भेजा आदि को नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा तीतर और हिरन का मांस भी खाने से बचें। हेरिंग, ट्राउट, मैकेरल, टूना जैसी मछलियों का भी सेवन न करें। सी-फ़ूड में केकडा, झींगा (प्रॉन) भी न खाएं। यह सभी चीजें बॉडी में यूरिक एसिड के लेवल को बढ़ाने का काम करती हैं। ​जंक फूड बढ़ा देंगे आपकी मुश्क‍िलें यूरिक एसिड के मरीज जंक फूड, फास्ट फूड, तली-भूनी चीजें, चटपटे खाद्य पदार्थ, सफेद ब्रेड, केक, बिस्कि‍ट, कोको, आइसक्रीम, खमीर युक्त भोजन, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और अधिक फैट वाले पदार्थ न खाएं। इन्हें खाने से यूरिक एसिड का लेवल बढ़ता है, जिससे ये समस्या और ज्यादा बढ़ सकती है। ​प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ भी हैं आपके दुश्मन अपनी डाइट में प्रोटीन की ज्यादा मात्रा लेना यूरिक एसिड के मरीजों के लिए नुकसानदेह होता है। इसलिए प्रोटीन और प्यूरीन की मात्रा से भरपूर खाद्य पदार्थों, जैसे - दूध, दही, राजमा, हरा मटर, पालक, दाल आदि का सेवन करने से परहेज करें। प्रोटीन वाले 100 ग्राम खाद्य पदार्थों में 200 मिलीग्राम प्यूरीन होता है। यूरिक एसिड के मरीजों को दही खाने से भी बचना चाहिए। इसमें मौजूद ट्रांसफैट शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा को और बढ़ा देते हैं। ​हाई शुगर वाले ड्रिंक्स को कहें न कोल्डड्रिंक, सॉफ्टड्रिंक्स, सोडा, शिकंजी और ज्यादा चीनी वाले पैक्ड फ्रूट जूस से बचें। साथ ही शहद, सोया मिल्क, कॉर्न सिरप और हाई फ्रूक्टोज वाले खाद्य पदार्थों को भी अपने डाइट में शामिल न करें। इन सभी चीजों के खाने से यूरिक एसिड की मात्रा बॉडी में बढ़ जाती है जिससे यूरिक एसिड के मरीज को प्रॉब्लम हो सकती है। अल्कोहल, काली चाय और कॉफी समेत जिन फलों में शुगर की मात्रा ज्यादा होती है, उनका जूस पीने से भी दूर ही रहें। ​रात को सोते समय दाल-चावल खाने से करें परहेज यूरिक एसिड के मरीजों के अपने डिनर में सोने से पहले दाल-चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। ये यूरिक एसिड को बढ़ाने का काम करते हैं जिससे अंगुलियों और जोड़ों में होने वाला गठिया का दर्द ज्यादा बढ़ जाता है। छिलके वाली दालों को भी अपने भोजन में शामिल करने से पूरी तरह परहेज करें। थोड़ा-थोड़ा करके संतुलित मात्रा में ही खाएं। एक बार में ज्यादा खाना खाने से वजन बढ़ेगा, जिससे गाउट की समस्या का खतरा भी बढ़ेगा।
सर्द‍ियों में आमतौर पर हर घर में गुड़ का इस्तेमाल काफी बढ़ जाता है। गुड़ विषैले पदार्थों को शरीर से साफ करने वाले डिटॉक्सिफाइंग एजेंट के तौर पर काम करता है। स्टडीज के मुताब‍िक, प्रोसेस्ड चीनी के बजाय गुड़ का इस्तेमाल डायब‍िटीज के रोगियों के लिए भी सुरक्षित है। गुड़ से कई देशों में अलग-अलग तरह की म‍िठाइयां भी बनाई जाती हैं। वहीं दूध में बहुत सारा कैल्शियम, विटामिन-ए और बी, प्रोटीन और कई अन्य पोषक तत्व होते हैं। तो आइए जानते हैं गर्म दूध और गुड़ से म‍िलने वाले हेल्थ बेनेफ‍िट्स के बारे में। प्रेग्नेंसी के दौरान खासतौर पर फायदेमंद गर्म दूध और गुड़ में भरपूर मात्रा में आयरन होता है। अगर इसका सेवन रोजाना क‍िया जाए तो ये खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाता है। इसल‍िए यह एनीमिया को रोकने में कारगर है और प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए तो खासतौर पर फायदेमंद है। इसमें मौजूद सुक्रोज बॉडी में एनर्जी के लेवल बढ़ा देते हैं और शरीर की थकान और कमजोरी को म‍िटाते हैं। त्वचा को बनाता है और भी खूबसूरत और जवान गुड़ और दूध में कई पोषक तत्व होते हैं जो हमारी स्क‍िन में कोलेजन बनने में मदद करते हैं। जिससे स्क‍िन नर्म और कोमल होती है। गुड़-दूध का अमीनो एसिड स्क‍िन में मॉश्चराइज का लेवल बनाए रखता है। दूध में पाए जाने वाले एंटीऑक्सिडेंट हमें वक्त से पहले बूढ़ा होने से रोकता है। इसमें मौजूद लैक्टिक एसिड एक्सफ़ोलीएटिंग एजेंट के रूप में काम करता है और एंजाइम का उत्पादन करता है, जो आपकी त्वचा को और भी खूबसूरत बनाता है। दूध और गुड़ डायजेशन को करता है बेहतर गुड़ और दूध आंतों के कीड़े, अपच, कब्ज, पेट फूलना जैसी और भी कई समस्याओं को रोकने में भी कारगर है। गुड़ और दूध डायजेशन स‍िस्टम को बेहतर कर हाजमे से जुड़ी समस्याओं को कम करता है। इसल‍िए खाना खाने के बाद थोड़ा-सा गुड़ खाने की सलाह दी जाती है। यह इम्यूनिटी सिस्टम को भी बूस्ट करने में मददगार है। जोड़ों की समस्याओं के जोखिम को कम करता है गुड़ और दूध दोनों ही हड्डियों के लिए फायदेमंद होते हैं, इसलिए दूध में गुड़ म‍िलाकर पीने से हड्डियां सेहतमंद होती हैं, मांसपेशियों को पोषण मिलता है, साथ ही हड्डियों के जोड़ों से संबंध‍ित बीमार‍ियों जैसे- गठिया का खतरे भी कम हो जाता है। हड्डियों और दांतों में सुधार करता है दूध के सेवन से कैविटीज और दांतों की सड़न को रोका जा सकता है। दूध में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है। बच्चों को खासतौर पर अपने व‍िकास के दौरान कैल्शियम की काफी जरूरत होती है और दूध पीने से जरूरत पूरी हो सकती है। वहीं, बड़ों में भी बढ़ती उम्र के साथ ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों को रोकने के लिए दूध पीने की सलाह दी जाती है। पीरियड की समस्याओं से दिलाता है निजात गुड़ में पाए जाने वाले कई पोषक तत्वों के कारण यह पीर‍ियड्स से जुड़ी समस्याओं में भी काफी कारगर है। यह पीर‍ियड के दौरान होने वाली ऐंठन और पेट दर्द को कम करने में मदद करता है। वजन घटाने में है फायदेमंद गुड़ में पोटेशियम की उच्च मात्रा पाई जाती है जो शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स को बैलेंस करता है और शरीर में मांसपेशियों के निर्माण में भी मदद करता है। वहीं, वेट लॉस करने की कोशिश के दौरान आप पानी की कमी का श‍िकार हो सकते हैं । ऐसे में गुड़ में मौजूद पोटेशियम शरीर में पानी की कमी को पूरा करने में मदद करता है। ज‍िसके चलते गुड़ और दूध वजन घटाने में मददगार हैं।
दूषित पानी और अधपके मांस में पाया जाने वाला एक साधारण परजीवी लोगों में ब्रेन कैंसर (Brain Cancer) की समस्या से जुड़ा हो सकता है. सोमवार को शोधकर्ताओं ने एक रिपोर्ट में ऐसा दावा किया है. उन्हें इस बात के साक्ष्य मिले हैं कि टोक्सोप्लाज्मा गोंडी या टी गोंडी परजीवी से संक्रमित लोगों में बेहद घातक ग्लायोमा (एक प्रकार का ट्यूमर) विकसित होने का खतरा ज्यादा रहता है. एक स्टडी के मुताबिक, दुनिया की 20 से 50 फीसदी आबादी इस परजीवी से संक्रमित हो चुकी है. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कैंसर में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक, यह परजीवी दिमाग में अल्सर के रूप में हो सकते हैं और इन्फ्लेमेशन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. 'अमेरिकन कैंसर सोसायटी के डिपार्टमेंट ऑफ पॉपुलेशन' के एपिडेमायोलॉजिस्ट जेम्स हॉज के नेतृत्व में उनकी टीम और कैंसर सेंटर एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट (फ्लोरिडा) की एच. ली मॉफिट ने ब्लड सैंपल में टी गोंडी परजीवी के एंटीबॉडीज और ग्लायोमा (ट्यूमर) के जोखिम के बीच संबंध की जांच की. इसके लिए उन्होंने लोगों को दो समूहों में बांटा. इस स्टडी के लिए 'अमेरिकन कैंसर प्रिवेंशन स्टडी- II न्यूट्रिशन कोहॉर्ट' में पंजीकृत 111 लोगों और 'नॉविजन कैंसर रजिस्ट्री' में सूचीबद्ध 646 लोगों को शामिल किया गया था. शोधकर्ताओं ने बताया कि ग्लायोमा का खतरा उन लोगों में ज्यादा देखा गया जिनमें टी. गोंडी एंटीबॉडी का स्तर ज्यादा था. शोधकर्ताओं ने कहा, 'इस स्टडी के निष्कर्ष टी गोंडी इंफेक्शन और ग्लायोमा के जोखिम के बीच संबंध के पहले संभावित प्रमाण हैं, जिसकी पुष्टि किसी स्वतंत्र शोध में की जानी चाहिए.' प्रमुख शोधकर्ता हॉज ने कहा, 'इसका मतलब यह नहीं है कि टी गोंडी सभी स्थितियों में निश्चित रूप से ग्लायोमा (दिमाग में होने वाला एक प्रकार ट्यूमर) का कारण बनता है. ग्लायोमा वाले कुछ रोगियों में कोई टी गोंडी एंटीबॉडी नहीं होती है.' एक शोधकर्ता ने कहा, 'यह स्टडी दर्शाती है कि जिन लोगों में टी. गोंडी परजीवी के संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है, उनमें ही ग्लायोमा के विकसित होने की संभावना ज्यादा रहती है. हालांकि, इस स्टडी को बड़े और विविध समूह में दोहराने की जरूरत है.' स्टडी में शामिल शोधकर्ताओं ने कहा, 'यदि अध्ययन के निष्कर्षों को दोहराया जाता है तो इंसान के दिमाग पर हमला करने वाले फूड बॉर्न पैथोजन (रोगाणु) को पहली बार रोकने में कामयाबी मिल सकेगी.'
हमारे देश में 70 मिलियन के करीब लोग डायबिटीज की समस्या से परेशान हैं, जो कि एक चिंता का विषय है। डायबिटीज स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करती है। डायबिटीज के मरीजों में जिस तेजी से इजाफा हो रहा है, वह थोड़ा चिंताजनक है, लेकिन अच्छी बात यह है कि लाइफस्टाइल में कुछ जरूरी बदलाव करके इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके लिए बस करना ये होगा कि आपको अपनी डाइट में कुछ बदलाव करना होगा और अपनी दिनचर्या में एक्सरसाइज को शामिल करना होगा। डायबिटिक्स को अपनी डाइट में फाइबर और प्रोटीन शामिल करने की सलाह दी जाती है। साथ ही ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने के लिए खाने में शुगर और कार्ब्स की मात्रा भी नियंत्रित कर दी जाती है। हालांकि, जब बात खाने में बदलाव की आती है तो कई लोगों को समझ नहीं आता कि डायबिटीज के मरीज को खाने में किस तरह के बदलाव करने चाहिए। खासकर रोटी, हम आमतौर पर गेहूं के आटे की बनी रोटी खाते हैं। लेकिन, डायबिटीज के मरीजों के लिए रोटियों में और भी बेहतर ऑप्शन मौजूद हैं। तो चलिए बताते हैं आपको डायबिटीज के मरीजों के लिए खास रोटियों के बारे में- ​राजगिरा के आटे की रोटी राजगिरा अपने एंटी-डायबिटिक और एंटी-ऑक्सीडेटिव गुणों के चलते डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहतरीन ऑप्शन है। राजगिरा को कई तरह से आप खाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही खाने में आप अपनी रोटी को राजगिरा के आटे की रोटी से रिप्लेस कर सकते हैं। यह ना सिर्फ स्वास्थ्य बल्कि स्वाद के हिसाब से भी काफी बेहतरीन होती है। राजगिरा में भारी मात्रा में विटामिन्स, प्रोटीन और लिपिड होता है। जो डायबिटीज के मरीजों में ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने का काम करता है। ज्वार के आटे की रोटी ज्वार का आटा हार्मोन को बढ़ाने और मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करने का काम करता है। गेहूं की तुलना में यह आपके शरीर को स्वस्थ रखने और अलग-अलग तरह की बीमारियों से बचाने में भी मदद करता है। ज्वार में भारी मात्रा में आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, प्रोटीन और डायट्री फाइबर्स होते हैं, जो शरीर को जरूरी पोषण पहुंचाने में मदद करता है और ब्लड शुगर लेवल को भी कंट्रोल करता है। ​रागी के आटे की रोटी रागी, फाइबर का सबसे बेहतर स्त्रोत होता है। डायबिटीज के मरीजों को खाने में गेहूं के आटे की रोटी की जगह रागी के आटे की रोटी बेहतरीन ऑप्शन हो सकती है। फाइबर आपकी भूख को भी कंट्रोल करता है और ओवरईटिंग से बचाता है। वजन कंट्रोल करने में रागी के आटे की रोटी काफी मददगार होती है। फाइबर को पचने में लगने वाला लंबा समय ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल करने का कारण होता है। यही कारण है कि डॉक्टर अक्सर शुगर के मरीजों को खाने में फायबर युक्त भोजन करने की सलाह देते हैं। जौ के आटे की रोटी खाने में गेहूं की रोटी की जगह जौ (बिना छिले गेहूं) के आटे की रोटी भी आप अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। सामान्य तौर पर बिना छिले गेहूं का ग्लाइसेमिक सूचकांक लगभग 30 होता है। लेकिन पिसाई की प्रक्रिया तक गेहूं के आटे में ग्लाइसेमिक सूचकांक 70 तक पहुंच जाता है। जो कि डायबिटीज के रोगियों के लिए एक स्वस्थ विकल्प नहीं रह जाता। इसलिए खाने में गेहूं के आटे की रोटी की जगह जवा के आटे की रोटी खाएं। ​चने के आटे की रोटी चने के आटे में घुलनशील फाइबर होता है जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कंट्रोल करने में मदद करता है। इसके साथ ही शुगर के अवशोषण को धीमा करता है, जो ब्लड शुगर लेवल को धीरे-धीरे बढ़ने से रोकने में मदद करता है। तो अगर आप भी अपनी या अपनों की सेहत का ख्याल रखना चाहते हैं और डायबिटीज से दूरी बनाए रखना है तो आम रोटी की जगह चने के आटे की रोटी अपनी डाइट में शामिल करें।
आपका दिल कितना सेहतमंद है, इसका पता अब आप खुद भी आसानी से लगा सकते हैं. स्पेन के शोधकर्ताओं का कहना है कि सीढ़ियों से दिल की सेहत के बारे में जाना जा सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर आप एक मिनट के अंदर 60 सीढ़ियां चढ़ लेते हैं तो इसका मतलब है कि आपका दिल पूरी तरह से स्वस्थ है. स्पेन के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजिस्ट और इस स्टडी के लेखक डॉक्टर जीसस पेटेइरो ने हेल्थलाइन वेबसाइट को बताया, 'स्टेयर्स टेस्ट दिल की सेहत की जांच करने का एक आसान तरीका है. अगर आपको 60 सीढ़ियां चढ़ने में डेढ़ मिनट से अधिक का समय लगता है, तो इसका मतलब है कि आपका दिल पूरी तरह से स्वस्थ नहीं है और और आपको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.' ये स्टडी यूरोपियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी की वैज्ञानिकों की एक बैठक में प्रस्तुत की गई. इस बैठक में लैब में की जाने वाली एक्सरसाइज टेस्टिंग की तुलना स्टेयर्स टेस्ट से की गई. 165 लोगों पर की गई इस स्टडी में मेटाबॉलिक इक्विवेलेंट (METs) मापने के लिए पहले लोगों को अपनी एक्सरसाइज क्षमता के अनुसार ट्रेडमिल पर तब तक चलने या दौड़ने के लिए कहा गया जब तक कि वो थक ना जाएं. थोड़ी देर आराम के बाद इन लोगों को तेज गति से 60 सीढ़ियां चढ़ने को कहा गया और इनका मेटाबॉलिक इक्विवेलेंट फिर मापा गया. 40 से 45 सेकंड से भी कम समय में सीढ़ियां चढ़ने वाले प्रतिभागियों का मेटाबॉलिक इक्विवेलेंट 9 से 10 METs था. पिछली स्टडीज में एक्सरसाइज टेस्ट के दौरान 10 METs हासिल करने वालों में मृत्यु दर कम पाई गई है. जिन प्रतिभागियों को सीढ़ियों को चढ़ने में 1.5 मिनट या उससे अधिक का समय लिया, उनका METs 8 से भी कम आया. वहीं एक मिनट से भी कम समय में सीढ़ियां चढ़ने वाले 32 फीसदी लोगों की तुलना में जिन 58 फीसदी प्रतिभागियों ने सीढ़ियां चढ़ने में 1.5 मिनट से अधिक का समय लिया, एक्सरसाइज के दौरान उनकी हृदय कार्यक्षमता अनियमित पाई गई. हालांकि इस स्टडी पर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं. लोगों का कहना है कि हर 3 में से 1 स्टडी में पाया गया है कि जिन प्रतिभागियों ने जल्दी सीढ़ियां चढ़ लीं, उनकी भी हृदय कार्यक्षमता पूरी तरह से ठीक नहीं पाई गई जो बताता है कि उनमें भी दिल की बीमारियां हो सकती हैं. न्यू जर्सी की महिला हार्ट सेंटर की डायरेक्टर और प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर रेनी बुलॉक कहती हैं कि स्टेयर्स टेस्ट को व्यापक मूल्यांकन के विकल्प के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'स्टडी के आधार पर, सीढ़ियां चढ़ने की क्षमता से किसी फिजिकल फंक्शन का पता लगाना पूरी तरह गलत है और इस आधार पर पूरी तरह दिल की सेहत का पता नहीं लगाया जा सकता है.'
आमतौर पर सभी घरों में तिल का इस्तेमाल होता है. कई अलग तरह की डिश और डेजर्ट फूड का जायका बढ़ाने के लिए इसे प्रयोग में लाया जाता है. क्या आप जानते हैं सर्दी में इसे खाना सेहत के लिए बड़ा फायदेमंद होता है. दरअसल तिल में मौजूद पॉलीसैचुरेटेड फैटी एसिड, ओमेगा-6, फाइबर, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और फासफॉरस जैसे तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर को बड़ा फायदा पहुंचाते हैं. दिल की बीमारियों से राहत- तिल में पाए जाने वाला मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड हमारी बॉडी में कोलेस्ट्रोल लेवल को कम करता है. दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए भी यह बेहद फायदेमंद है. ये हमारा ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल रखता है. दिल की मांसपेशियों को रखे दुरुस्त- तिल में कई तरह के लवण जैसे कैल्श‍ियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम होते हैं जो हृदय की मांसपेशि‍यों को सक्रिय रूप से काम करने में मदद करते हैं. हड्डियों की मजबूती के लिए- तिल में कैल्श‍ियम, फॉस्फोरस और मैगनीशियम जैसे तत्व पाए जाते हैं,‍ जिनसे हड्डियों का निर्माण होता है. ऐसे में यदि आप सर्दी के मौसम में तिल खाने की आदत डाल लें तो आपको इस मौसम में हड्डियों का दर्द परेशान नहीं करेगा. दिन में यदि एक बड़ा चम्मच तिल खाया जाए तो इससे दांत भी मजबूत होते हैं. तिल में फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट का स्तर ऊंचा होता है, इसलिए इसे खाने से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. बीमारियों से छुटकारा- तिल में सेसमीन नाम का एन्टीऑक्सिडेंट पाया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है. अपनी इस खूबी की वजह से ही यह लंग कैंसर, पेट के कैंसर, ल्यूकेमिया, प्रोस्टेट कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर होने की आशंका को कम करता है. इसके अलावा भी तिल के कई फायदे हैं
वास्तु शास्त्र (Vastu shastra) में दिशाओं का विशेष महत्व माना जाता है. सोते समय सिर और पैरों का सही दिशा में होना आवश्यक है. जिस प्रकार अच्छी सेहत के लिए पौष्ट‍िक आहार लिया जाता है, उसी तरफ नियमित दिनचर्या के लिए सही तरीके से नींद लेना भी जरूरी है. कई लोग किसी भी दिशा में पैर और सिर करके सो जाते हैं, ऐसे में मानसिक परेशानी और अन्य नुकसान हो सकते हैं. वास्तु के अनुसार उत्तर या पश्‍चिम द‍िशा की ओर स‍िर करके सोने से निगेटिव‍िटी और स्‍ट्रेस बढ़ाता है. इसलिए हमेशा दक्षिण या पूर्व की ओर सिर करके ही सोना चाहिए. जबकि अविवाहित लड़कियों को सोने के लिए उत्तर-पश्चिम की द‍िशा का चुनाव करना चाहिए. उन्‍हें भूल कर भी दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं सोना चाहिए. विवाह योग्य लड़के-लड़कियों के लिए उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोना भी ठीक रहता है. घर के वायव्य कोण में विवाहित महिलाओं को नहीं सोना चाहिए. इस दिशा में सोने से वो अलग घर बसाने का सपना देखने लगती हैं. वास्तु के अनुसार कुंवारी कन्याओं को उत्तर-पश्चिम दिशा में सोना चाहिए, इससे विवाह का योग मजबूत होता है. सुबह-शाम कपूर जलाकर सभी कमरों में दिखाने से घर की नकारात्मकता खत्म होती है. अग्नि कोण यानी दक्षिण-पूर्व दिशा में रोज शाम को कपूर जलाने से धन की वृद्धि होती है. घर के अंदर सोने के स्थान पर प्लास्टिक के फूल व पेड़-पौधे ना रखें, इससे दरिद्रता आती है. प्रत्येक पूर्णिमा के दिन घर की चौखट पर हल्दी से स्वास्तिक बनाना शुभ माना जाता है.
अगर आपका स्टमक बार-बार डिस्टर्ब हो जाता है और पेट की खराबी का असर आपके जीवन पर पड़ रहा है तो आपको एक बार अपने इटिंग पैटर्न पर जरूर नजर डालनी चाहिए। यदि आपका इटिंग पैटर्न सही होता है तो पाचन बिल्कुल सही रहता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता छोटे-मोटे रोगों को आपके शरीर पर हावी ही नहीं होने देती। यानी आपको पता ही नहीं चल पाता है कि आप पर किसी बैक्टीरिया या वायरस का अटैक भी हुआ था... सही इटिंग पैटर्न में कुछ खास आदतें शामिल होती हैं। इनके बारे में यहां बताया जा रहा है। आप देख लीजिए कि यदि आपका पेट अक्सर खराब हो जाता है तो आपके इटिंग पैटर्न में कहां गड़बड़ी है... दिन में एक बार कच्चा भोजन अवश्य खाएं -स्वस्थ पेट और पाचन के लिए दिन में कम से कम एक समय ऐसा जरूर होना चाहिए जब आप कच्ची सब्जियों की सलाद, फल या सिर्फ ड्राई फ्रूट्स खाएं। आप चाहें तो इन्हें नाश्ते में खाए या फिर दोपहर के नाश्ते में। ऐसा करने से पाचन सही रहता है और पेट साफ। हर दिन 1 फल जरूर -आपको जो भी फल पसंद हो, मौसम के अनुसार हर दिन एक फल का सेवन अवश्य करें। ऐसा करने से आपके शरीर को पोषक तत्व और फाइबर्स की प्राप्ति होती है। दिन में एक बार एक कटोरा मौसमी फलों की सलाद खाना आंतों को स्वस्थ और त्वचा को ग्लोइंग बनाता है। लंच में सलाद का उपयोग -दोपहर के खाने में एक कटोरी गाजर और खीरा का सेवन अवश्य करना चाहिए। इसके साथ ही थोड़ी-सी कच्ची प्याज जरूर खाएं। ऐसा करने से आपको अपनी सेहत संवारने में मदद मिली है। पर्याप्त पानी -हर दिन सही मात्रा में पानी का सेवन जरूर करना चाहिए। साफ पेट और स्वस्थ त्वचा के लिए जरूरी है कि आप हर दिन कम से कम 2 से 3 लीटर पानी जरूर पिएं। यह विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करता है। अनहेल्थी फूड से बचाव -दिन में कितनी बार ऐसा होता है, जब आप मैदा से बना या बहुत अधिक मसालेदार भोजन करते हैं? अपने आपसे यह सवाल करें और फिर ऐसे फूड को लाइफस्टाइल से हटा दें। आपको लाभ साफ समझ में आएगा।
आयुर्वेद रोग के उपचार से ज्यादा उससे बचाव पर ध्यान देता है, ताकि जीवन में कभी कोई रोग हो ही नहीं। दरअसल, आयुर्वेद जीवन को सही तरीके से जीने की एक विधि है। जबकि ज्यादातर लोग इसे सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति के रूप में जानते हैं। आप चाहे किसी भी रोग से ग्रसित क्यों ना हों, अगर आप आयुर्वेद के माध्यम से अपना इलाज करा रहे हैं तो आपका पूरा ट्रीटमेंट तीन बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है... आयुर्वेद के तीन महत्वपूर्ण बिंदु -आयुर्वेद में जिन तीन बातों का सबसे अधिक महत्व है या कहिए कि जिन तीन बातों पर पूरा आयुर्वेद आधारित है, दरअसल वे स्वास्थ्य से जुड़े तीन दोष हैं। इन्हें वात-पित्त और कफ कहते हैं। हमारा शरीर इन्हीं तीन कारकों पर पूरी तरह आधारित होता है। यदि शरीर के अंदर इनमें से किसी एक की भी कमी या अधिकता होती है तो स्वास्थ्य का संतुलन गड़बड़ा जाता है और आप बीमार पड़ जाते हैं। अलग-अलग प्रकृति के होते हैं शरीर -आयुर्वेद के अनुसार वात-पित्त और कफ के आधार पर ही हर व्यक्ति के शरीर की अलग प्रकृति होती है। किसी का शरीर वातज प्रकृति का होता है तो किसी का पित्तज प्रकृति का। यानी शरीर के अंदर जिस दोष की अधिकता होती है, उसी के आधार पर इसकी प्रकृति निर्धारित होती है। -इन तीन दोषों को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेद के अनुसार रोगी का उपचार किया जाता है। खास बात यह है कि अपने शरीर और व्यवहार के गुण और दोषों के आधार पर आप स्वयं भी इस बात का पता लगा सकते हैं कि आपका अपना शरीर किस प्रकृति का है, आइए अब इस बात को समझ लेते हैं... क्या होता है वात दोष? -वात का अर्थ वायु से भी लिया जाता है। वात हमारे शरीर को गति देने का कार्य करता है। यह शरीर के अंदर पाचन और उत्सर्जन में सहायता करता है। -आयुर्वेद के तीनों दोषों में वात को प्रमुख दोष माना जाता है क्योंकि यह अन्य दो दोषों को नियंत्रित भी करता है। वात हमारे शरीर की हर कोशिका में होता है लेकिन मुख्य रूप से यह हमारी रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क में पाया जाता है। -यह एक बड़ी वजह है कि हॉर्मोन और न्यूरॉट्रांसमीटर्स के स्त्राव में वात की अहम भूमिका होती है। यदि वात का संतुलन गड़बड़ा जाए तो मानसिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। वात क्यों गड़बड़ाता है? -जो लोग समय पर शौच के लिए नहीं जाते हैं, उन्हें अक्सर वायु संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए प्रेशर आने पर तुरंत फ्रेश हो जाना चाहिए। -जो लोग बहुत अधिक चिंता में रहते हैं, अपने शरीर और दिमाग को हर समय थकाए रखते हैं, उनके शरीर में भी वात असुंतुलन की समस्या हो जाती है। पित्त दोष से जुड़ी बातें -पित्त हमारे शरीर में ऊर्जा और गर्माहट को नियंत्रित करता है। इसके साथ ही मेटाबॉलिजम का संचालन भी पित्त पर निर्भर करता है। भूख, प्यास, मानसिक शांति ये सभी पित्त से ही संबंधित होते हैं। -यदि शरीर में पित्त की मात्रा गड़बड़ा जाए तो शरीर की कार्यक्षमता पर सीधा असर पड़ता है। जो लोग बहुत अधिक मिर्च-मसाले का भोजन करते हैं, उनके शरीर में पित्त संबंधी समस्या हर समय बनी रहती है। पित्त की गड़बड़ी के लक्षण -पित्त का संतुलन गड़बड़ाने पर व्यक्ति को बहुत अधिक क्रोध आता है। कई बार क्रोध का कोई कारण ना होने पर भी मूड खराब होता है और आप बिना किसी कारण भड़क पड़ते हैं। -पित्त बढ़ने पर लगातार बेचैनी का अनुभव होता है। मानसिक अशांति के चलते किसी भी काम पर फोकस नहीं बन पाता है। इससे कार्यक्षमता सीधे तौर पर प्रभावित होती है। कफ से जुड़ी बातें -कफ शरीर में भारीपन बनाए रखने का कार्य करता है। जिन लोगों का शरीर कफज प्रकृति का होता है, उनकी शारीरिक संरचना अन्य लोगों की तुलना में अधिक ठोस होती है। जिसे बोल-चाल की भाषा में गठीला शरीर होना कहते हैं। -इन लोगों की त्वचा में एक प्राकृतिक चमक होती है और तैलीय होती है। इन लोगों में आत्मविश्वास को अधिक होता है लेकिन इनकी गतिशीलता में कमी देखी जाती है। शरीर में कफ की स्थिति गड़बड़ाने पर ये लोग जल्द ही अवसाद की चपेट में आ जाते हैं। -जब शरीर के अंदर कफ बहुत अधिक बढ़ जाता है तो भूख में वृद्धि हो जाती है। शारीरिक थकान बनी रहती है। किसी से बात करने का मन नहीं होता है और भावनात्मक रूप से कई तरह के उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। उपचार से जुड़ी बातें -आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज के दौरान सबसे पहले वैद्यजी और चिकित्सक यह जानने का प्रयास करते हैं कि आपके शरीर की प्रकृति क्या है। इसके साथ ही आपके रोग और लक्षणों के आधार पर यह भी जान लेते हैं कि आपके शरीर में किस दोष का असंतुलन है। इसके बाद अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर आपका उपचार करते हैं। -जिन चिकित्सकों को आयुर्वेद की गहरी जानकारी होती है, वे आमतौर पर आपको लैब टेस्ट की सलाह तब तक नहीं देते,जब तक बेहद जरूरी ना हो। क्योंकि अपने ज्ञान और पढ़ाई के आधार पर ये आपकी जीभ, नाक, आंखें और नाड़ी देखकर ही आपके रोग के बारे में सब कुछ पता लगा लेते हैं। तभी तो आयुर्वेदिक चिकित्सक होना कोई आसान बात नहीं है! -आयुर्वेदिक चिकित्सा के दौरान आपको दवाओं के साथ ही खान-पान से जुड़ी जानकारी दी जाती है। ताकि आप जल्दी स्वस्थ हो सकें। दरअसर, मौसम के हिसाब से खान-पान को अपनाकर भी निरोग रहा जा सकता है। इसलिए आयुर्वेद में हर भोजन को उसकी प्रकृति और मौसम को ध्यान में रखकर खाने का परामर्श दिया जाता है।
शरीर को सेहतमंद रखने के लिए खाने-पीने की चीजों पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है. हेल्दी फूड खाते समय कुछ खास बातों पर गौर करना जरूरी है वरना ये फायदे की जगह शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है. आइए जानते हैं इन चीजों के बारे में. चेरी बीज- चेरी दिल के बीमारियों को कम करने और पाचन क्रिया को सही रखता है लेकिन इसका बीज बहुत हानिकारक होता है. चेरी का बीज बहुत कठोर होता है और इसमें प्रूसिक एसिड होता है जो बहुत जहरीला माना जाता है. अगर आपने गलती से चेरी का बीज निगल लिया है तो कोई बात नहीं ये आपके बॉडी सिस्टम से किसी ना किसी तरह बाहर आ जाएगा. चेरी खाते समय इसके बीज चबाने से बचें. हरा आलू- हरे या अंकुरित आलू में ग्लाइकोसाइड नाम का विषाक्त पदार्थ होता है. हरा आलू खाना सुरक्षित नहीं माना जाता है. ग्लाइकोसाइडयुक्त हरा आलू खाने से मितली, दस्त, भ्रम और सिरदर्द की समस्या हो सकती है. सेब के बीज- सेब के बीज में कुछ मात्रा में साइनाइड होता है, जो शरीर को नुकसान पहुंचाता है. इसकी वजह से सांस लेने से लेकर दौरे आने तक की समस्या हो सकती है. हालांकि, अगर आपने इसे गलती से खा लिया है तो परेशान होने की कोई बात नहीं है. सेब के बीज पर एक सुरक्षात्मक कोटिंग होती है जो साइनाइड को बॉडी सिस्टम में प्रवेश करने से रोकती है. सेब खाते समय सावधान रहें और इसके बीज को हटाकर ही खाएं. कड़वे बादाम- कड़वे बादाम में एमिगडलिन नाम का केमिकल बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है. ये कमिकल शरीर में साइनाइड बनाने का काम करता है. इसे खाने से पेट में दर्द, उल्टी और दस्त हो सकते हैं. इसलिए कड़वे बादाम खाने से बचें. जायफल- जायफल की थोड़ी से मात्रा खाने का स्वाद बढ़ा देती है लेकिन इसे एक चम्मच भी खाना आपकी बॉडी के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता है. जायफल में मिरिस्टिसिन नाम का रसायन उच्च मात्रा में पाया जाता है और इसकी वजह से चक्कर आना, मतिभ्रम, सुस्ती और दौरे आने तक की समस्या हो सकती है. कच्चे काजू- आमतौर पर दुकानों पर पैकेट मिलने वाले काजू कच्चे नहीं होते हैं. बाजार में बेचने से पहले से काजू को उबालकर उरूशिओल नाम का विषाक्त पदार्थ निकाल दिया जाता है. बिना उबला काजू खाने से एलर्जी की समस्या हो सकती है. मशरूम- मशरूम खाने में स्वादिष्ट होते हैं और शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं लेकिन मशरूम खाते समय इसकी पहचान जरूरी है. जंगली मशरूम खाने से पेट में दर्द, दस्त और उल्टी, डिहाइड्रेशन और लिवर की दिक्कत हो सकती है. कच्चे आम- कच्चे आम, इसके छिलकों और पत्तियों में भी विषाक्त पदार्थ पाया जाता है. अगर आपको एलर्जी की समस्या है कच्चा आम खाने से आपको रैशेज या सूजन की समस्या हो सकती है. कच्चा राजमा- बीन्स की सारी किस्मों में सबसे अधिक लैक्टिन कच्चे राजमा में पाया जाता है. लैक्टिन एक ऐसा टॉक्सिन है जो पेट खराब कर सकता है. इसके सेवन से उल्टी या दस्त की समस्या हो सकती है. राजमा खाने से पहले हमेशा उसे अच्छे से उबाल लें. स्टार फ्रूट- स्टार फ्रूट को कमरख भी कहा जाता है. अगर आपको किडनी की बीमारी है तो स्टार फ्रूट खाने से बचें. सामान्य किडनी स्टार फ्रूट में पाए जाने वाले विषाक्त पदार्थों को फिल्टर कर सकती है, लेकिन किडनी खराब होने पर इसके विषाक्त बॉडी में ही रह जाते हैं जिसकी वजह से मानसिक भ्रम और दौरे की स्थिति आ सकती है.
सर्दी के मौसम में खांसी होना, बहुत अधिक कफ आना, सीने में जकड़न का अहसास होना जैसी समस्याएं बहुत सामान्य हैं। ज्यादातर लोगों को पूरे सीजन में एक से दो बार इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर आप उन लोगों में शामिल हैं जिन्हें सीने में कफ जमा होने की समस्या और जकड़न की समस्या बहुत अधिक होती है। तो आप इस स्वादिष्ट फूड के माध्यम से सर्दियों में अपनी इस समस्या को दूर कर सकते हैं... क्या है मीठा आलू? -मीठा आलू नाम से शकरकंद को भी जाना जाता है। वैसे आलू अपनी प्रकृति और जहां उनकी खेती हुई है, उसके हिसाब से अलग-अलग तरह के गुणों से भरपूर होते हैं। लेकिन कुछ हिस्सों में शकरकंद को भी मीठा आलू ही कहा जाता है। इसलिए इसका अंग्रेजी नाम भी स्वीट पोटैटो (Sweet Potato) है। असेंशियल ऑइल-सा असर -आपने यदि असेंशियल ऑइल का उपयोग किया है तो आपको जरूर पता होगा कि लौंग का तेल, सौंफ का तेल, यूके लिपटिस का तेल, जैसमिन ऑइल इत्यादि के जो प्योर तेल होते हैं, किसी रोग के निदान में ये तेल जितने प्रभावी होते हैं, उतनी ही प्रभावी होती है इनकी खुशबू। -असेंशियल ऑइल्स में कुछ तेल बहुत ही लाइट होते हैं और इन तेलों की खुशबू के रूप में जो प्लांट के वोलाटाइल कंपाउंड्स (फिनॉलिक और टैरपीनॉइड्स) उड़ते हैं उन्हें हम सांस के साथ अंदर लेते हैं। ये हमें मानसिक और शारीरिक सुकून देते हैं और दर्द, तनाव और हॉर्मोन्स से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं। शकरकंद भी करता है ऐसा असर - शकरकंद की खुशबू भी रोगों के निदान में बहुत प्रभावी भूमिका निभाती है। खासतौर से श्वसनतंत्र और ब्रेन से जुड़े रोगों में शकरकंद की खुशबू बहुत प्रभावी होती है। जब शकरकंद को गुड़ के साथ उबालकर इसका सेवन किया जाता है तो इसका स्वाद और खुशबू दोनों ही तन और मन को पुष्ट करने का कार्य करते हैं। अस्थमा के रोगियों के लिए भी जरूरी है शकरकंद -यदि आपको अस्थमा की समस्या है तो आपको सर्दियों के सीजन में शकरकंद का सेवन अवश्य करना चाहिए। यह आपके इंफेक्शन को कम करने और खांसी की समस्या में राहत देने का कार्य करती है। क्योंकि इसमें ऐंटिऑक्सीडेंट्स और विटमिन-सी की मौजूदगी एक ऐंटिएलर्जिक फूड के गुणों से भरपूर बनाती है। दर्द दूर करता है शकरकंद का पानी -जिन लोगों को गठिया और जोड़ों में दर्द की समस्या रहती है, उनके लिए शकरकंद का पानी बहुत अधिक लाभकारी होता है। शकरकंद उबालने के बाद आप जिस पानी को फालतू समझकर फेंक देते हैं, वह पानी गठिया जैसे भयानक दर्द को दूर करने में पेनकिलर जैसा काम करता है। -शकरकंद में जिंक, मैग्नीशियम, बीटा कैरोटीन, आयरन फॉस्फोरस और विटमिन-बी कॉम्प्लेक्स जैसे गुण पाए जाते हैं। ये सभी तत्व हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए जरूरी होते हैं। जब शकरकंद को पानी में उबाला जाता है तो उबालने के बाद बचा पानी शकरकंद ऑइल की तरह ही गुणों से युक्त हो जाता है।
इस समय मौसम का कोई भरोसा नहीं है, ऊपर से कोरोना वायरस भी फैल रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो इस समय इम्‍यूनिटी मजबूत होना बहुत जरूरी है लेकिन यहां एक बात को समझें कि बच्‍चों की इम्‍यूनिटी बहुत कमजोर होती है। इसलिए इस समय उनके स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर अधिक सजग रहना बहुत जरूरी है। बच्‍चों में सर्दी जुकाम या खांसी होने पर दवाओं की बजाय घरेलू नुस्‍खों या काढे का इस्‍तेमाल करना चाहिए। यहां हम आपको घर पर काढा बनाने की विधि के बारे में बता रहे हैं। ये काढा बच्‍चों में खांसी और जुकाम का इलाज करने में असरकारी है। ​तुलसी काढा तुलसी की चार पत्तियों, एक चम्‍मच काली मिर्च, अदरक का एक छोटा टुकडा और शहद स्‍वादानुसार। तुलसी की पत्तियों , काली मिर्च और अदरक को एक कटोरी में एक साथ पीस लें। इसे एक कप पानी में उबालें और फिर शहद मिलाकर बच्‍चे को दें। ​दालचीनी का काढा दालचीनी की दो छोटी स्टिक और तीन लौंग एवं शहद स्‍वादानुसार। दालचीनी का काढा बनाने के लिए कप पानी में आधा चम्‍मच दालचीनी के पाउडर को लौंग के साथ उबालें। इसमें शहद मिलाकर बच्‍चों को पिलाएं। इस काढे से बच्‍चों में सर्दी जुकाम ठीक होगा। ​घी और अदरक का काढा आधा चम्‍मच घी, एक चुटकी काली मिर्च और अदरक का छोटा टुकडा, तुलसी की चार पत्तियां और चीनी। एक पैन लें और उसे गैस पर रख कर उसमें थोडा घी डालें। घी गर्म होने पर काली मिर्च, अदरक और तुलसी को कूटकर डाल दें। अब दो कप पानी और तीन चम्‍मच चीनी डालकर पानी को उबाल लें। आपका काढा तैयार है। ​सौंफ का काढा आधा चम्‍मच सौंफ, अदरक का एक छोटा टुकडा, पांच लौंग, पांच तुलसी की पत्तियां और चीनी की जरूरत होगी। दो कप पानी को सौंफ के साथ उबालें और इसमें लौंग और चार चम्‍मच चीनी डालें। पानी के उबलने पर अदरक और तुलसी के प‍त्‍तों को मसल कर डालें और पानी उबाल लें। ​मोटी इलायची का काढा इस काढे को बनाने के लिए चार मोटी इलायची, आधा चम्‍मच जीरा, एक चौथाई चम्‍मच अजवायन, एक दालचीनी की स्टिक, एक चुटकी हल्‍दी पाउडर, चार तुलसी की पत्तियां चाहिए। दो कप पानी में मोटी इलायची, जीरा, अजवायन, दालचीनी और हल्‍दी पाउडर डालकर उबालें। पानी के उबलने पर उसमें तुलसी की पत्तियां डालें और फिर कुछ मिनट तक उबालें।
अब ठंड का मौसम शुरू हो गया है और चूंकि, बच्चों की इम्यूनिटी कमजोर होती है इसलिए उन्‍हें आसानी से सर्दी-जुकाम पकड़ लेता है। नवजात शिशुओं या 0 से 6 महीने के शिशुओं की इम्‍यूनिटी तो विकसित तक नहीं हुई होती है इसलिए इन्‍हें बहुत जल्‍दी सर्दी-जुकाम हो जाता है। इतने छोटे बच्‍चों को दवाई नहीं दी जा सकती है इसलिए कुछ सुरक्षित घरेलू नुस्‍खों से शिशु को जुकाम, सर्दी और बहती नाक की समस्‍या से छुटकारा दिला सकते हैं। लेकिन उससे पहले 0 से 6 माह के शिशु में जुकाम के कारण जान लेते हैं। यदि सर्दी-जुकाम या खांसी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति छोटे बच्‍चे के पास छींकता, खांसता या बात करता है तो उससे बच्‍चे को भी इंफेक्‍शन हो सकता है। जुकाम से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति शिशु को छूता है तो इससे भी बच्‍चे को वायरस पकड़ सकता है। संक्रमित व्‍यक्‍ति के शिशु के आंख, नाक या मुंह को छूने पर बच्‍चे को भी इंफेक्‍शन हो सकता है। कुछ वायरस जमीन, पर्दों, खिलौनों या चीजों पर दो या इससे ज्‍यादा घंटे तक रहते हैं। इन्‍हें छूने पर भी बच्‍चा वायरस के संपर्क में आ सकता है। ​कैसे बनाएं अजवाइन की पोटली सबसे पहले गैस पर तवा रख दें और एक चौथाई अजवाइन लें। तवा लेने 6 से 7 लहसुन की कलियां लें। लहसुन को भी अजवाइन पर डाल दें। इन दोनों चीजों को तवे पर भुनने दें और तब तक चलाते रहें। जब अजवाइन भुनने लगेगी, तब इसमें चट की आवाज आने लगेगी। अजवाइन भुन जाए तो गैस बंद कर दें। एक प्‍लेट लें और उस पर सूती कपड़ा बिछा दें। फिर इस कपड़े की पोटली बना लें। ​0 से 6 महीने के बच्‍चे के लिए उपयोग अगर आपके नवजात शिशु को जुकाम हो गया है या उसके सीने में कफ जम गया है तो सरसों या नारियल तेल को हल्‍का गुनगुना कर लें। इस तेल से शिशु की मालिश करें और पोटली को हल्‍के-हल्‍के से बच्‍चे के सीने पर लगाएं। ​पोटली के इस्‍तेमाल से पहले क्‍या करें यहां इस बात का ध्‍यान रखें कि पोटली बहुत हल्‍की गर्म होनी चाहिए क्‍योंकि बच्‍चा ज्‍यादा गर्म सिकाई सहन नहीं कर पाएगा। शिशु की नाक बह रही है या जुकाम तेज हो रहा है तो गुनगुनी अजवाइन की पोटली शिशु के तकिए के नीचे रख दें। इस तरह अजवाइन की खुशबू से शिशु की बंद नाक खुल जाती है और जुकाम भी ठीक हो जाता है। शिशु को सर्दी-जुकाम और कफ जमने या नाक बहने पर इस अजवाइन की पोटली से पीठ, छाती, पसलियों और पेट की सिकाई करें। इस बात का पूरा ध्‍यान रखें कि पोटली बहुत ज्‍यादा नहीं बल्कि हल्‍की गर्म होनी चाहिए।
चुकंदर मीठी जड़ वाली सब्जी है जिसका स्वाद हर किसी को पसंद नहीं आता है. चुकंदर सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. इसके गुणों की वजह से ही इसे सुपरफूड भी कहा जाता है. चुकंदर का जूस भी शरीर को कई तरीके से फायदा पहुंचाता है. आइए जानते हैं इसके बारे में. ब्लड प्रेशर कम करता है- चुकंदर का जूस हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो लोग रोजाना 250 मिलीलीटर चुकंदर का जूस पीते हैं, उनका सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर दोनों कम होता है. चुकंदर के रस मे नाइट्रेट होता है जो रक्त वाहिकाओं को फैलाता है जिससे खून का दबाव कम पड़ता है. मांसपेशियों की शक्ति बढ़ाता है- चुकंदर में प्राकृतिक तौर पर नाइट्रेट होता है जो शरीर की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है. 2015 की एक स्टडी से पता चला है कि हार्ट फेल की शिकायत वालों ने चुकंदर का जूस पीने के बाद 2 घंटे बाद मांसपेशियों की शक्ति 13 फीसदी तक बढ़ जाने का अनुभव किया. डिमेंशिया में कारगर- चुकंदर का जूस डिमेंशिया की बीमारी में बहुत कारगर है. 2011 की एक स्टडी के अनुसार, चुकंदर में पाया जाने वाला नाइट्रेट बुजुर्गों के मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बढ़ाने का काम करता है जिससे यादाश्त सही रहती है. वजन करता है कंट्रोल- चुकंदर के जूस में कैलोरी बहुत कम होती है और फैट बिल्कुल भी नहीं होता है. ये वजन को बढ़ने नहीं देता है. सुबह की शुरूआत चुकंदर के जूस से करने से आप पूरे दिन एक्टिव रहते हैं. कैंसर से बचाता है- चुकंदर के जूस में बेटालेन (Betalain) होता है जो एक घुलनशील एंटीऑक्सीडेंट हैं. 2016 की एक स्टडी के अनुसार, बेटालेन में कीमो-निवारक प्रभाव होते हैं जो कैंसर की घातक कोशिकाओं को फैलने से रोकते हैं. बेटालेन फ्री रेडिकल्स पर भी काम करता है. पोटेशियम का अच्छा स्रोत- चुकंदर का जूस पोटेशियम से भरपूर होता है जो तंत्रिकाओं और मांसपेशियों को ठीक से काम करने में मदद करता है. सही मात्रा चुकंदर का जूस पीने से शरीर में पोटेशियम का स्तर अच्छा बना रहता है. शरीर में पोटेशियम कम होने से थकान, कमजोरी और मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है. पोटेशियम ज्यादा कम हो जाने पर दिल की बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है. अन्य मिनरल्स का अच्छा स्रोत- जरूरी मिनरल्स के बिना शरीर सही ढंग से काम नहीं कर पाता है. चुकंदर के जूस में आयरन, मैग्नीशियम, मैंगनीज, सोडियम, जिंक, कॉपर और सेलेनियम पाया जाता है. ये सारे मिनरल्स शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाते हैं और दांतों और हड्डियों को स्वस्थ रखते हैं. फोलेट की अच्छी मात्रा- फोलेट की कमी से न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट और स्पाइना बिफिडा जैसी बीमारियां हो जाती हैं. गर्भवती महिला में इसकी कमी होने से प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है. चुकंदर के जूस में फोलेट की अच्छी मात्रा पाई जाती है. लिवर को ठीक रखता है- खराब लाइफस्टाइल, शराब के अत्यधिक सेवन से और ज्यादा जंक फूड खाने से लिवर खराब हो डाता है. चुकंदर में बीटेन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो लिवर में फैट जमा होने से रोकता है. ये लिवर को विषाक्त पदार्थों से भी बचाता है. कोलेस्ट्रॉल को कम करता है- अगर आपका कोलेस्ट्रॉल ज्यादा रहता है तो अपनी डाइट में चुकंदर का जूस जरूर शामिल करें. चुकंदर के जूस में फ्लेवोनोइड्स और फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं जो बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं और गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं.
दुनियाभर में रूस और अमेरिका की कोरोना वैक्सीन को लेकर सबसे अधिक उम्मीदें बनी हुई हैं। इन दोनों ही देशों की वैक्सीन जल्द से जल्द आने के कयास लगाए जा रहे हैं। आपको बात बता दें कि अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम ने उन कारणों को भी खोजना शुरू कर दिया है, जिनके चलते कोरोना की वैक्सीन का असर कम हो सकता है। इन कारणों में आपकी रसोई के कुछ खास बर्तन और आपके कुछ खास तरह के कपड़े भी शामिल हैं... वैक्सीन का असर कर कम सकता है यह कैमिकल -कोरोना वैक्सीन से जुड़ी रिसर्च पर काम कर रहे अमेरिकी वैज्ञानिकों का मानना है कि पॉलीफ्लूरोएल्किल Polyfluoroalkyl (PFAS)एक ऐसा कैमिकल है, जो कोरोना वैक्सीनेशन के बाद भी किसी व्यक्ति के शरीर में कोरोना संक्रमण का कारण बन सकता है। क्योंकि यह कैमिकल वैक्सीन में उपयोग किए जा रहे कैमिकल्स के असर को कम करता है। इन बर्तनों और कपड़ों में होता है उपयोग -आपको बता दें कि पॉलीफ्लूरोएल्किल कैमिकल का उपयोग नॉन स्किकी कुकवेयर (nonstick products),वॉटर प्रूफ कपड़े बनाने, कई तरह की फूड और प्रोडक्ट पैकेजिंग के दौरान उपयोग किया जाता है। -शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि कोरोना वैक्सीन लगवाने के बाद कोई व्यक्ति नॉन स्टिक कुकवेयर में बना खाना खाता है और वॉटर प्रूफ कपड़ों का उपयोग करता है तो उसके शरीर पर वैक्सीनेशन का असर कम हो सकता है और वह वायरस की चपेट में आ सकता है। इन स्थितियों में होगा घातक -रिसर्च से जुड़े एक्सपर्ट्स का कहना है कि पॉलीफ्लूरोएल्किल कैमिकल कोरोना वैक्सीन के असर को उसी स्थिति में कम कर सकता है, अगर यह फेफड़ों तक पहुंच जाए। क्योंकि कोरोना सबसे पहले किसी स्वस्थ व्यक्ति के फेफड़ों पर ही असर करता है। -आपको बता दें कि डिप्थीरिया और टिटनेस की वैक्सीन से जुड़ी कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जहां ये वैक्सीन अपना पूरा असर नहीं दिखा पाईं वे लोग किसी ना किसी रूप में इस कैमिकल के संपर्क में थे। यही वजह है कि इस आशंका से भी पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता है कि पॉलीफ्लूरोएल्किल कैमिकल कोरोना वैक्सीन की संरक्षण क्षमता को कम कर सकता है। इतने रोग बढ़ाता है पॉलीफ्लूरोएल्किल -सबसे पहली बात तो यह साफ हो चुकी है कि नॉन स्टिकी बर्तनों में बना खाना अधिक उपयोग करनेवाले लोगों के शरीर पर कई तरह की वैक्सीन का असर कम करने के पीछे पॉलीफ्लूरोएल्किल जिम्मेदार हो सकता है। -इसके साथ ही इस रसायन का अधिक उपयोग करने से कई तरह के कैंसर का खतरा बढ़ता है।, इस कैमिकल के कारण लिवर डैमेज हो जाता है।, यह कैमिकल महिलाओं और पुरुषों की प्रजनन क्षमता को कम करता है। साथ ही शरीर में थायरॉइड के स्तर को असंतुलित करता है। यहां होता है सबसे अधिक उपयोग -शरीर को बुरी तरह नुकसान पहुंचानेवाले पॉलीफ्लूरोएल्किल कैमिकल का उपयोग नॉन स्टिकी बर्तनों और वॉटरप्रूफ कपड़ों के साथ ही पिज्जा पैकेजिंग के लिए उपयोग होनेवाले डिब्बों, स्टेनलेस फैब्रिक तैयार करने और कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तैयार करने में होता है। यह भी एक कारण है कि इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों को सावधानी पूर्वक उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
आज यहां बात करते हैं अपने फेफड़ों की। क्योंकि अगर एक बार खांसी शुरू हुई तो ऐसा कम ही होता है, जब वो पूरे परिवार में फैले बिना घर से विदाई ले ले। खांसी का यह सर्कल शुरू होने से पहले ही खत्म करने के लिए अपनी डायट में इन चीजों को शामिल करें... लहसुन और प्याज -लहसुन और प्याज दोनों ही ऐसी सब्जियां हैं, जो फेफड़ों यानी लंग्स को मजबूत भी बनाती हैं। प्याज और लहसुन ऐंटीऑक्सीडेंट्स और ऐंटीफंगल एस्ट्रिजेंट के रूप में काम करते हैं। जो फेफड़ों में सांस के जरिए पहुंची पलूशन पार्टिकल्स, डस्ट पार्टिकल्स और बैक्टीरिया आदि को जमा नहीं होने देते। इससे लंग्स साफ और सुरक्षित रखने में मदद मिलती है। ओमेगा थ्री फैटी एसिड -फैट या फैटी शब्द देखकर परेशान ना हों। हर फैटी चीज और फैट बुरा नहीं होता। फैटी एसिड एक ऐसा एलिमेंट है, जो हमारी फिटनेस और हेल्थ के लिए बेहद जरूरी है। यह हमें लंग्स में दिक्कत के कारण होनेवाली अस्थमा की बीमारी से भी बचाता है। -ओमेगा थ्री फैटी एसिड के लिए आपको खासतौर पर हरी फलियां, सेम की फली, दूध, पनीर, दही और अलसी के बीजों का सेवन करना चाहिए। अनार और सेब -अनार हमारे शरीर में खून बढ़ाने का काम करने के साथ ही फेफड़ों की क्लीनिंग में बड़ा रोल प्ले करता है। वहीं सेब में विटमिन ई और सी दोनों होते हैं। ये दोनों ही फल हमें लंग्स कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचाने में भी बड़ा रोल प्ले करते हैं। -अगर आप किसी ऐसे जॉब में हैं, जिसमें ट्रैवलिंग अधिक होती है या आप पूरा दिन ओपन एरिया में रहते हैं तो अपने लंग्स की सेहत के लिए आपको अपनी डेली डायट में एक अनार और एक सेब शामिल करना चाहिए। -आप इनका जूस भी पी सकते हैं। यह जूस ताजे फलों से तैयार किया हुआ होना चाहिए। बॉटल बंद या पैक्ड जूस की बात यहां नहीं हो रही है।
कैंसर अब बीमारी नहीं बल्कि महामारी बन चुका है। छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों और युवाओं, सभी में इस बीमारी का खतरा लगातार बना हुआ है। कैंसर की मुख्य वजह वंशानुगत कारण और खान-पान में बढ़ते पैस्ट्रिसाइट्स हैं। आज की स्थितियों को ध्यान में रखते हुए अगर बात करें तो हमारा इन दोनों स्थितियों पर ही कोई नियंत्रण नहीं है। लेकिन एक बात जो पूरी तरह हमारे कंट्रोल में है, वह है अपनी सेहत का ध्यान रखना। अपने शरीर और उसके संकेतों को समझना। आइए, आज हम बात करते हैं कोलन यानी मलाशय और बाउअल यानी बड़ी आंत में यदि कैंसर हो जाता है तो शुरुआती स्तर पेशंट को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है... आंत और मलाशय में कैंसर के लक्षण -जिस व्यक्ति की बड़ी आंत या उसके मलाशय में कैंसर की स्थिति बन रही होती है, उसे लगातार आंत से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे कभी कब्ज तो कभी दस्त हो जाना। पॉटी की स्थिति में लगातार बदलाव होते रहना आदि शामिल हैं। -मलाशय से खून आना, पॉटी करते समय ब्लीडिंग होना या पॉटी के साथ ब्लड का आना जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। पॉटी के बाद भी पेशंट को अक्सर लगता है कि उसका पेट अभी पूरी तरह साफ नहीं हुआ है। अभी अंदर मल अटका हुआ है। -कोलन और बाउअल कैंसर की स्थिति में पेशंट को हर समय पेट से संबंधित कोई ना कोई समस्या बनी रहती है। जैसे गैर, अपच, खट्टी डकार आना, पेट में मरोड़ होना आदि। ऐसा कभी नहीं होता कि पेट को लेकर सहज महसूस कर पाए। -कोलन और बाउअल कैंसर की स्थिति में व्यक्ति को हर समय थकान बनी रहती है। जबकि वह सही डायट ले रहा होता है और उसे अक्सर अपने थकने की वजह पता नहीं होती है। ऐसे लोगों का वजन तेजी से कम होने लगता है। जिसका कोई प्रत्यक्ष कारण नजर नहीं आता है। यह भी है एक स्थिति -हर पेशंट के साथ ऐसा नहीं होता है कि कोलन कैंसर या बड़ी आंत में कैंसर होने की स्थिति में उसे अपने शरीर में शुरुआती लक्षण जरूर दिखाई दें। कई केसेज में ऐसा देखने को मिला है कि मरीजों में कैंसर के लक्षण काफी बाद में सामने आते हैं। -और जब ये लक्षण सामने आते हैं, उस वक्त उनकी स्थिति की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि कैंसर आकार में कितना बड़ा है और यह बड़ी आंत के किस हिस्से में स्थित है। डॉक्टर की सलाह -अगर आपको यहां बताए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण अपने आपमें नजर आ रहा है तो तुरंत आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। अगर आपकी फैमिली में किसी को कैंसर रहा है तो आपको अधिक जागरूक रहने की जरूरत है। -आमतौर पर कोलन कैंसर की स्क्रीनिंग 50 साल की उम्र के आस-पास होती है। लेकिन जिन पेशंट्स के पारिवारिक इतिहास में किसी को कैंसर रहा होता है, उनमें स्क्रीनिंग की संभावना कम उम्र में भी हो सकती है। इसलिए आपकी स्थिति के अनुसार आपके डॉक्टर आपको बेहतर सलाह दे सकते हैं।
यहां हम उन मुख्य कारणों के बारे में जानेंगे जिनके चलते पेट फूलने की समस्या सबसे अधिक होती है। पेट फूलने की समस्या से हम सभी कभी ना कभी जरूर परेशान होते हैं। ऐसा कई अलग-अलग वजहों के चलते होता है। इनमें से 4 मुख्य वजह इस प्रकार हैं... हॉर्मोन्स में बदलाव -शरीर में हॉर्मोनल बदलाव होने का असर हमारे मूड के साथ ही पाचनतंत्र पर भी पड़ता है। खासतौर पर अगर हमारे सोने-जागने और खाने-पीने का समय निश्चित ना होने पर हॉर्मोन्स की गड़बड़ी सबसे अधिक होती है। इस कारण भी बार-बार पेट फूलने की समस्या का सामना करना पड़ जाता है। अगर आप पेट फूलने की समस्या से परेशान हैं तो एक बार अपने हॉर्मोन्स की सुध अवश्य लें। ओवरी में कैंसर होना -पेट बार-बार फूलने की समया ओवरी में कैंसर के कारण भी हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ओवरी का कैंसर जब विकसित हो रहा होता है तो वह आपके पाचन पर बुरा असर डाल रहा होता है। लेकिन समस्या की बात यह है कि ओवरी कैंसर आमतौर पर बहुत देरी से डायग्नॉज होता है। ऑटोइम्यून डिसऑर्डर - ऑटोइम्यून डिसऑर्डर्स के कारण अपने शरीर की कोशिकाएं अपने ही शरीर की दूसरी स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगती हैं। इसी तरह की एक बीमारी है सीलिएक डिजीज (Coeliac disease)इसके कारण व्यक्ति को अक्सर पेट में दर्द की समस्या होती है। हर समय थकान रहती है और वजन बिना किसी प्रयास के तेजी से घटने लगता है। -ऐसा आमतौर पर उन लोगों को होता है जिन्हें गेहूं में पाए जानेवाले ग्लूटन से एलर्जी होती है। गेहूं, बार्ले और इनसे बने फूड्स जैसे पास्ता, मैगी, बन, ब्रेड इत्यादिक को खाने के बाद इन लोगों को पेट फूलने की समस्या हो जाती है। आपकी उम्र के हिसाब से इस समस्या का समाधान डॉक्टर्स ही आपको सुझा सकते हैं। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम इरिटेबल बाउल सिंड्रोम और आईबीएस एक ऐसी समस्या है जिसमें आपके पाचन तंत्र के साथ किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती है। लेकिन आपकी आंतों के गट बैक्टीरिया बहुत अधिक सेंसेटिव होने के कारण आपको पेट फूलने की समस्या का सामना करना पड़ता है। हालांकि इसके कई अन्य लक्षण और कारण भी हो सकते हैं।
बरसात के मौसम में अधिकतर लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इसकी वजह मुख्य रूप से लगातार घटता-बढ़ता तापमान होता है, जिसके साथ हमारे शरीर को संतुलन बनाने करने में दिक्कत होती है। इस स्थिति में शरीर को एक्स्ट्रा सपॉर्ट की जरूरत होती है, जो उसे एजेस्टमेंट के लिए एनर्जी दे सके। मुलेठी एक ऐसी ही आयुर्वेदिक औषधि है, जो हमारी बॉडी में पॉवर बूस्टर की तरह काम करती है... ऐसा नहीं है कि मुलेठी का सेवन तभी करना चाहिए, जब हम किसी रोग के शिकार हो चुके हों। अगर आप चाहते हैं कि आप हमेशा हेल्दी और फिट रहें तो आप निश्चित मात्रा में मुलेठी का सेवन नियमित रूप से कर सकते हैं। इसके सेवन से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। कोरोना से बचने में लाभकारी हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस हमारे शरीर पर जल्दी से अटैक नहीं कर पाते हैं। यही वजह है कि कोरोना वायरस बचने के लिए भी हेल्थ एक्सपर्ट मुलेठी के सेवन की सलाह दे रहे हैं। इसे लिक्यॉरस (Liquorice) और लिकरिस (liquorice) नाम से भी जाना जाता है। एलर्जी नहीं बढ़ने देते मुलेठी का नियमित सेवन हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मुलेठी में जो एंजाइम्स पाए जाते हैं वे शरीर में लिंफोसाइट्स (lymphocytes) और (macrophages) का उत्पादन करने में मदद करते हैं। लिंफोसाइट्स और मैक्रोफेज शरीर को बीमार बनानेवाले माइक्रोब्स, पॉल्यूटेंट, एलर्जी और उन हानिकार सेल्स को शरीर में विकसित होने से रोकते हैं, जो हमें ऑटोइम्यून सिस्टम से संबंधित बीमारियां दे सकते हैं। गले के इंफेक्शन से बचाती है मुलेठी मुलेठी गले, कान, आंख और नाक में होनेवाले लोगों से बचाती है। आमतौर पर हमें कोई भी संक्रमण सांस और गले के जरिए होता है। जैसे खांसी, फ्लू, छींके आना आदि। ऐसे में अगर आपको लगता है कि आप किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आ गए हैं और गले या नाक में तकलीफ हो सकती है तो मुलेठी के छोटे से टुकड़े पर शहद लगाकर उसे टॉफी की तरह चूसते रहें। गले में आए हुए बैक्टीरिया पनप नहीं पाएंगे। खांसी और सीजनल फ्लू से बचाए सीजनल फ्लू से भी बचाने में मददगार है मुलेठी। यह खांसी में बहुत अधिक लाभकारी होती है। खासतौर पर गीली खांसी में। गीली खांसी यानी वह स्थिति जब खांसते वक्त कफ आता है। इस खांसी में मुलेठी को शहद में मिलाकर चाटने से लाभ होता है। आप एक छोटी चम्मच से आधा चम्मच मुलेठी लें और उसे एक चम्मच शहद में मिला लें। इस मिश्रण को धीरे-धीरे चाटकर खाएं। आप यह प्रक्रिया दिन में अधिक से अधिक तीन बार अपना सकते हैं। डायजेशन ठीक रखती है मुलेठी -मुलेठी में ग्लाइसीरहिजिन (glycyrrhizin) और कार्बेनेक्सोलोन (carbenoxolone) जैसे ऐक्टिव कंपाउंड्स (सक्रिय यौगिक) होते हैं। ये ऐक्टिव कंपाउंड्स हमारी आंतों में किसी भी तरह के वेस्ट को जमा नहीं होने देते हैं। इस कारण हमें कब्ज से राहत मिलती है। -पेट दर्द, पेट में भारीपन, अनइजीनेस, खट्टी डकारें, एसिड बनने की समस्या नहीं होती है। यह एक हल्के रेचक (mild laxative) के रूप में काम करता है, जो पेट में किसी भी तरह के वेस्ट के जमा होने पर प्रेशर क्रिएट करता है और शरीर में मौजूद अपशिष्ट पदार्थ मल के रूप में बाहर निकल जाते हैं। गठिया से बचाए गठिया यानी ऑर्थराइटिस (arthritis)एक ऐसी समस्या है, जिससे ज्यादातर लोग बढ़ती उम्र में परेशान रहते हैं। या फिर कई केसेज में पोषक तत्वों की कमी, कैल्शियम का अभाव भी इस बीमारी की वजह बन जाता है। लेकिन मुलेठी में मौजूद सूजन और दर्द को कम करनेवाले गुण होते हैं। -इन्हें सूजन निरोधी गुणों (anti-inflammatory properties) के रूप में जाना जाता है। इन गुणों के कारण मुलेठी शरीर में अंदरूनी या बाहरी किसी भी तरह की सूजन को पनपने नहीं देती है। दिल के रोगों से बचाए -आयुर्वेद के जानकार और दिशा में प्रमुखता से काम करने वाले बाबा रामदेव का कहना है कि सही तरीके से मुलेठी और शहद का सेवन किया जाए तो यह हृदय के रोगों से बचाता है। बस जरूरी है कि आप अच्छे वैद्य जी से सही मात्रा और खाने के सही तरीके की जानकारी प्राप्त करें। अस्थमा जैसे रोगों से बचाए मुलेठी का नियमित सेवन अस्थमा जैसे रोगों से बचाए रखता है। क्योंकि इसमें कफोत्सारक (Expectorant) गुण होते हैं। ये शरीर के वायु मार्ग में कफ के उत्सर्जन को संतुलित बनाए रखने का काम करते हैं। इसके सेवन से व्यक्ति ब्रोंकाइटिस (Bronchitis), गले में सूजन और अस्थमा जैसे रोगों से बचा रहता है।
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए मार्केट में कई तरह के मास्क उपलब्ध हैं। इनमें सर्जिकल मास्क, हैंडमेड मास्क, केएन-95 मास्क के अतिरिक्त बांधनी मास्क भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त जिस व्यक्ति को जो रंग और कपड़ा अच्छा लगता है, उसका मास्क बनाकर पहन लेता है। किसी भी कपड़े का मास्क पहनने के में कोई बुराई नहीं है, अगर आप इस बात को लेकर पूरी तरह श्योर हैं कि इस कपड़े के महीन छिद्रों से कोरोना वायरस आपको सांसों में नहीं जा पाएगा... कपड़े और कोरोना के साइज को समझें -जब किसी कपड़े को बनाया जाता है तो उसमें दो तरफ से बुनाई के थागे चलते हैं। इनमें एक को ताना और दूसरे को बाना कहते हैं। ताना- बाना से तैयार की गई गूथ से जब कपड़ा बन जाता है तो कपड़े के बीच बहुत महीन छेद दिखाई पड़ते हैं। ये छेद वही गैप होता है, जो ताने से बाने को गूथते वक्त दो गूथ के बीच रह जाता है। इन छिद्रों की चौड़ाई आमतौर पर 1 मिलीमीटर से लेकर 0.1 मिलीमीटर तक होती है। जबकि कोरोना वायरस युक्त हवा में तैरनेवाली ड्रॉपलेट्स का साइज इन छिद्रों से हजार गुना छोटा होता है। यानी इन कपड़ों की सिंगल लेयर के बीच से कोरोना ड्रॉपलेट्स बहुत ही आराम के साथ संक्रमित व्यक्ति के शरीर से बाहर जा सकती हैं और बाहर से किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर सकती हैं। कोरोना वायरस के पार्टिकल्स का साइज हेल्थ एक्सपर्ट्स द्वारा 0.08 माइक्रोमीटर्स बताया जा रहा है। - सांस के अतिरिक्त जब खांसी और छींक के साथ ये ड्रॉपलेट्स संक्रमित व्यक्ति के शरीर से बाहर निकलती हैं तो इनकी गति सांस के जरिए बाहर आनेवाली ड्रॉपलेट्स की गति से कहीं अधिक होती है। पिछले दिनों हेल्थ एक्सपर्ट्स की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि मौसम में अगर नमी हो तो कोरोना ड्रॉपलेट्स बिना हवा के भी 13 फीट दूर तक जा सकती हैं। -इस स्थिति में 13 फीट तक की दूरी में स्थित लोगों के संक्रमित होने की संभावना बहुत अधि बढ़ जाती है। साथ ही अगर इस दौरान हवा भी चल रही हो तो जब तक कोरोना की ड्रॉपलेट्स हवा के द्वारा अवशोषित की जाएंगी, तब तक वे 13 फीट से भी अधिक दूरी का सफर तय कर चुकी होगीं। इस स्थिति में इस संक्रमण के फैलने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए क्या करना चाहिए? -कोरोना से संक्रमण से बचन के लिए हेल्थ एक्सपर्ट्स द्वारा बार-बार इस बात की सलाह दी जा रही है कि यदि आप घर पर बने किसी मास्क का उपयोग कर रहे हैं तो इस मास्क को सूती कपड़े से तैयार करें। साथ ही मास्क बनाते समय इसमें 4 से 5 लेयर रखें। मास्क ऐसा हो जो आपकी नाक और मुंह दोनों को कवर कर सके। क्या है मोमबत्ती टेस्ट? - मोमबत्ती टेस्ट के जरिए घर बैठे ही बहुत आराम से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि आप जो मास्क पहन रहे हैं, वह कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में प्रभावी है या नहीं। इसके लिए आप एक मोमबत्ती को जलाकर रख लें। अब अपने चेहरे पर मास्क पहनकर इस मोमबत्ती को फूंक मारकर बुझाने की कोशिश कीजिए। यदि आपके मुंह से निकली हवा इस मास्क को पारकर मोमबत्ती को बुझा देती है तो समझ जाइए कि आपका मास्क कोरोना वायरस को रोक पाने में सक्षम नहीं है। -यदि आपके मास्क से हवा नहीं निकलती है और मोमबत्ती की लौ एकदम सामान्य तरीके से जलती रहती है तो समझ जाइए कि आपका मास्क आपको कोरोना से संक्रमण से पूरी तरह बचा रहा है। -यदि मास्क को पार कर हवा इतने ही वेग से आगे जा पाती है कि मोमबत्ती की लौ को हल्का-सा झटका लगता है या लो डिस्टर्ब होती है, इस स्थिति में बेहतर होगा कि आप अपना मास्क बदल लें। क्योंकि यह मास्क कोरोना से पूरी तरह प्रोटेक्शन देने में समर्थ नहीं है। क्या है लॉजिक? -आपके मन में यह सवाल आ सकता है कि आखिर मोमबत्ती को बुझा पाने या ना बुझा पाने से मास्क की उपयोगिता कैसे सिद्ध होती है? तो इसका उत्तर यह है कि यदि आपकी सांसों की हवा मास्क को भेदकर बाहर जा सकती है तो सांस लेने और बातचीत करने के दौरान बाहर की हवा आपके मास्क के अंदर भी आ सकती है। ऐसे में यदि उस हवा में कोरोना वायरस युक्त ड्रॉपलेट्स हुईं तो मास्क पहनने के बावजूद आपको कोरोना संक्रमण होने का रिस्क बना रहेगा।
कोरोना वायरस का कहर एक बार फिर बढ़ रहा है। खासतौर पर अगर देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां स्थिति एक बार फिर से इनती विकट हो चुकी है कि दोबारा लॉकडाउन की स्थितियां बन रही हैं। यहां कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। हेल्थ एक्सपर्ट्स दिल्ली में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर (सेकंड वेव) मान रहे हैं। अगर आपके घर-परिवार या बिल्डिंग में कोई भी कोरोना संक्रमित मरीज है तो आपको उस मरीज की देखभाल और अपनी सुरक्षा के लिए कुछ खास बातों का ध्यान अवश्य रखना होगा। अन्यथा यह संक्रमण आस-पास के सभी लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है। क्वारंटाइन के दौरान ध्यान रखें ये बातें -जब किसी व्यक्ति में कोरोना वायरस के माइल्ड लक्षण दिखते हैं तो डॉक्टर्स ऐसे मरीजों को घर पर ही सेल्फ क्वारंटाइन में रहने की सलाह देते हैं। जबकि जिन लोगों की स्थिति अधिक गंभीर होती है, उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया जाता है। -यदि आप होम क्वारंटाइन हो रहे हैं तो आपको आमतौर पर 14 दिन के लिए क्वरांटाइन में रहने की सलाह दी जाती है। क्योंकि इतने समय में इलाज के दौरान यह वायरस या तो पूरी तरह खत्म हो जाता है या फिर इसके लक्षण अधिक तेजी से उभरकर सामने आ जाते हैं। -स्थिति बिगड़ने पर आपको डॉक्टर्स की टीम हॉस्पिटल में भर्ती कर लेती है। लेकिन यदि आपके लक्षण दवाओं से नियंत्रित हो जाते हैं तो आपको क्वारंटाइन का 14 दिन का समय पूरा होने के बाद भी अपनी सेहत को लेकर सतर्कता बरतनी चाहिए। -बेहतर होगा कि 14 दिन के बाद भी आप कम से कम 1 और सप्ताह के लिए खुद को पब्लिक प्लेस और फैमिली गेट-टु-गेदर से दूर रखें। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कई स्टडीज में यह बात सामने आ चुकी है कि कोरोना के लक्षण ठीक होने के बाद भी यह वायरस कई दिनों तक शरीर के अंदर जीवित रहता है। इस स्थिति में यह परिवार के अन्य लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है। -अमेरिकन थोरेसिस सोसायटी पर जारी किए गए एक अध्ययन में इस पर पूरी जानकारी दी गई है कि कैसे क्वारंटाइन के 14 दिनों के बाद भी कोरोना वायरस किसी स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। -यह रिसर्च डायग्नोसिस ऐंड मैनेजमेंट ऑफ कोविड-19 डिजीज के नाम से पब्लिश की गई की गई है। रिपोर्ट में कहा गया कि किसी भी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति को ठीक हो जाने के बाद केवल 14 दिनों तक का क्वॉरेंटाइन टाइम ठीक नहीं होगा बल्कि इससे संक्रमण के फैलने का खतरा भी रहता है। दोनों तरफ के बढ़ते नंबर्स - हालांकि जैसे-जैसे कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही है। उसी के अनुपात में इस वायरस से ठीक होनेवाले मरीजों की संख्या का रेकॉर्ड और भी अच्छा है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से हालात एक बार फिर बदलने लगे हैं। क्योंकि कोरोना के ताजा मामलों में अचानक से बड़ा उछाल देखने को मिल रहा है। हॉस्पिटल से आने के बाद -अमेरिकन एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमण के मात देकर हॉस्पिटल से घर आ गया है तो इस स्थिति में भी उसे कम से कम 21 दिनों तक पब्लिक एक्सपोजर से बचना चाहिए और क्वारंटाइन के नियमों का पालन करते हुए घर में ही रहना चाहिए। ताकि उसके परिवार और आस-पास के लोगों में उसके कारण संक्रमण ना फैले।
देश के कई राज्यों में एक बार फिर लॉकडाउन लग गया है। तो कहीं लॉकडाउन लगाने की तैयारी चल रही है। यह स्थिति सिर्फ भारत में ही नहीं है बल्कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर को देखते हुए दुनिया के कई देश फिर से लॉकडाउन का सहारा ले रहे हैं। ताकि इस वायरस को कम से कम समय में सीमित किया जा सके। यहां हम आपको उन गाइडलाइन्स के बारे में बता रहे हैं जो भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई हैं... -सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार कोरोना से संक्रमित व्यक्ति दो स्थितियों में होम क्वारंटाइन हो सकते हैं। पहली स्थिति यह है कि किसी व्यक्ति का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव नहीं आया है लेकिन उसमें कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं। -दूसरी स्थिति यह है कि जिस व्यक्ति का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आ चुका हो यानी वह कोरोना पेशंट बन चुका है, वह भी ट्रीटमेंट करनेवाले हॉस्पिटल की देखरेख में होम क्वारंटाइन हो सकते हैं। वायरस के कॉन्टेक्ट में आने का मतलब -कोई व्यक्ति मुख्य रूप से तीन तरीके से कोरोना वायरस के कॉन्टेक्ट में आ सकता है। इनमें पहली स्थिति है, किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना। इसमें यदि आप संक्रमित व्यक्ति से बिना मास्क और उचित दूरी के फेस-टु-फेस बात कर लेते हैं। तो हवा और श्वांस के माध्यम से कोरोना आपके शरीर में प्रवेश कर जाता है। -दूसरी स्थिति है कोरोना वायरस से कंटेमिनेटेड वातावरण में जाना। जैसे किसी कमरे में या किसी स्थान पर कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति है तो वहां की हवा में 3 से 13 फीट की दूरी तक कोरोना वायरस हवा में मौजूद हो सकता है, जो हवा के माध्यम से श्वांस के जरिए किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर सकता है। -तीसरी स्थिति है किसी उस वस्तु को छू लेना या उपयोग करना, जिसे कोरोना संक्रमित व्यक्ति ने उपयोग किया हो और उसे सैनिटाइज ना किया गया हो। इस स्थिति में हाथों के जरिए वायरस आपके मुंह और नाक में प्रवेश कर सकता है। इस उलझन को दूर करें -आमतौर पर 14 दिन के क्वारंटाइन पीरियड के बाद यह मान लिया जाता है कि व्यक्ति कोरोना से पूरी तरह मुक्त है। जबकि आपको पूरे 21 से 28 दिन की सावधानी बरतनी चाहिए। यानी क्वारंटाइन पूरा होने के बाद भी परिजनों से उचित दूरी बनाए रखें और घर के सैनिटाइजेशन का पूरा ध्यान रखें। -ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि अलग-अलग रिसर्च में कोरोना का संक्रमण किसी व्यक्ति के शरीर में 0 से 28 दिन तक रह सकता है। हालांकि उपचार के बाद इस वायरस का लोड कम हो जाता है और इसकी संक्रमण क्षमता भी घट जाती है। लेकिन खतरा पूरी तरह खत्म नहीं होता है। इसलिए होम क्वारंटाइन के 14 दिन और दूसके बाद अगले 14 दिन तक आपको खास ध्यान रखना चाहिए। - संक्रमित व्यक्ति को घर के किसी एक ही कमरे में रहना चाहिए। उसके लिए भोजन, पानी और सभी जरूरी वस्तुओं की व्यवस्था वहीं की जानी चाहिए। इस स्थिति में परिवार के सदस्यों को भी उचित दूरी बनाए रखनी चाहिए। -घर के सभी सदस्य उचित दूरी और मास्क का उपयोग करें। हर दिन घर की सभी चीजों को सैनिटाइज करें। -जितना हो सके किसी भी वस्तु को छूने के बाद हाथ साबुन से धुलें या सैनिटाइज करें। अपने मुंह और चेहरे पर बार-बार हाथ ना लगाएं। -घर में जो कोरोना संक्रमित व्यक्ति है, उसकी देखरेख का काम कोई एक ही व्यक्ति करे और उस दौरान वह पूरी सावधानी बरते। डॉक्टर्स द्वारा बताई गई बातों का पूरी तरह पालन करें। -कोरोना संक्रमित व्यक्ति द्वारा उपयोग की जा रही वस्तुओं को घर के अन्य सदस्य काम में ना लें। बेहतर होगा कि पेशंट की तौलिया, उसके कपड़े, बर्तन और बाथरूम सब अलग हो। यदि बाथरूम अलग करना संभव ना हो तो पेशंट द्वारा उपयोग किए जाने के बाद पूरी सावधानी के साथ बाथरूम को सैनिटाइज करें। इसके बाद ही परिवार का कोई और व्यक्ति इस बाथरूम का उपयोग करे।
कोरोना वायरस (Coronavirus) से संबंधित कई अलग-अलग रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि जिन लोगों के शरीर में विटमिन-डी की कमी होती है, वे लोग कोरोना वायरस की चपेट में जल्दी आ जाते हैं। अब एक बार फिर कोरोना ने विकराल रूप ले लिया है और हेल्थ एक्सपर्ट्स इसे कोरोना वायरस की दूसरी लहर का नाम दे रहे हैं। ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि आप संक्रमण से बचाव के लिए अपने भोजन में उन चीजों को शामिल करें, जिनसे आपके शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटमिन-डी की प्राप्ति हो सके। आपको याद दिला दें कि हमारे देश में आधी से अधिक आबादी विटमिन-डी की कमी से जूझ रही है। अंतर सिर्फ इतना है कि किसी में इसकी बहुत अधिक कमी है और किसी में कम। लेकिन बहुत ही कम लोग ऐसे हैं, जिनके शरीर में विटमिन-डी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो। शरीर कैसे मिलता है विटमिन डी? -शरीर को विटमिन-डी की प्राप्ति आमतौर पर सूर्य की रोशनी और मीट के सेवन से अधिक मात्रा में मिलता है। लेकिन जो लोग शाकाहारी हैं और जो लोग धूप में बैठने के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं, उन्हें अपने भोजन में यहां बताई गई कुछ खास चीजों को शामिल करना चाहिए। ताकि वे इस विटमिन की कमी को बिना दवाइयों के पूरा कर सकें। मीट और सब्जी से मिलता अलग विटमिन-डी -आपको बता दें कि मीट से जो विटमिन-डी प्राप्त होता है। वह विटमिन-डी 3 है और प्राकृतिक रूप से विटमिन-डी से युक्त फूड्स जैसे मशरूम और शकरकंद से प्राप्त होनेवाला विटमिन-डी 2 होता है। -जबकि एक व्यक्ति को स्वस्थ जीवन जीने के लिए विटमिन-डी 2 और विटमिन-डी 3 दोनों की ही सख्त जरूरत होती है। क्योंकि डी2 रक्त का प्रवाह संतुलित बनाए रखने का काम करता है तो डी3 हड्डियों को मजबूती देने का काम करता है। फोर्टिफाइड दूध के जरिए -कई देशों में गाय का दूध और प्लांट बेस्ड मिल्क जैसे सोया दूध इत्यादि को विटमिन-डी के साथ फोर्टिफाइड किया जाता है। अगर आप बाजार से डिब्बाबंद दूध या पैकेट दूध खरीद रहे हैं तो उसकी पैकिंग पर दी गई जानकारी के माध्यम से यह जान सकते हैं कि क्या आपके द्वारा खरीदे जा रहे दूध में विटमिन-डी है। फोर्टिफाइड ऑरेंज जूस -मार्केट में जो पैक्ड ऑरेंज जूस आते हैं, उनमें से आप संतरे के जूस का चुनाव यह देखकर करें कि किस जूस में विटमिन-डी मिलाया गया है। फोर्टिफाइड ऑरेंज जूस का एक गिलास आप अपने नाश्ते में ले सकते हैं। यह विटमिन-डी की आपकी जरूरत को 10 से 12 प्रतिशत तक पूरा कर सकता है। सिरीयल और ओटमील्स -सिरीयल और इंस्टंट ओटमील्स को विटमिन-डी के साथ फॉर्टिफाइड किया जाता है। इसलिए इन फूड्स को अपने नाश्ते और स्नैक्स टाइम में लेकर आप अपने शरीर में विटमिन-डी की कमी को पूरा कर सकते हैं। -हालांकि इन दोनों ही भोज्य पदार्थों से आपको इतना विटमिन-डी नहीं मिलता है कि एक दिन की जरूरत पूरी हो जाए। लेकिन इन्हें खाकर आप अपने शरीर में इस विटमिन की मात्रा को बढ़ा सकते हैं। अंडे की जर्दी (Egg Yolks) -अंडे के अंदर मौजूद पीला भाग बहुत ही अधिक पौष्टिक और प्रोटीन से भरपूर होता है। इसका मुख्य काम Embryo के विकास के लिए फूड की सप्लाई करना होता है। जब अंडे के इस भाग का सेवन किसी मनुष्य द्वारा किया जाता है तो यह शरीर को विटमिन-डी के साथ ही कई दूसरे जरूरी पोषक तत्व प्रदान करता है। कामेच्छा बढ़ाने का काम करती हैं ये तीन चीजें, महिलाएं भी कर सकती हैं सेवन मछली का सेवन -सेलमन, डिब्बाबंद टूना फिश, कोड लिवर ऑइल, हेरिंग फिश इत्यादि नॉनवेज लोगों के लिए विटमिन-डी पाने के खास विकल्प हैं। जो लोग अपनी डायट में नियमित रूप से इन चीजों का सेवन करते हैं, उन्हें कभी भी विटमिन-डी की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है।
ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है कि कोई जाने अनजाने किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आ जाए। यदि आपको किसी व्यक्ति के लक्षणों के आधार पर उसके कोरोना संक्रमित होने का शक हो तो आप तुरंत माउथवॉश करके खुद को सुरक्षित कर सकते हैं। ऐसा हाल ही एक रिसर्च में साबित हुआ है कि मार्केट में मिलनेवाले माउथवॉश का यदि समय पर उपयोग कर लिया जाए तो कोरोना को मुंह के अंदर ही मात्र 30 सेकंड्स में खत्म किया जा सकता है। कोरोना पेशंट्स पर की जा रही अपनी रिसर्च में यूनाइडेट किंगडम के वेल्स स्थित यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल (University Hospital of Wales)के डॉक्टर्स की टीम ने यह पाया है कि यदि एक स्वस्थ व्यक्ति किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आ जाए और कोरोना वायरस उसके मुंह में प्रवेश कर जाए तो इस वायरस को माउथवॉश के जरिए तुरंत खत्म किया जा सकता है। बस इस बात का ध्यान रखें कि आप अपने मुंह में स्थित लार को निगले नहीं बल्कि थूक दें और तुरंत माउथवॉश का उपयोग कर लें। शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि माउथवॉश के जरिए कोरोना को तभी तक खत्म किया जा सकता है, जब तक कि वह मुंह के अंदर सलाइवा में उपस्थित है। यदि व्यक्ति इस सलाइवा को निगल लेता है और कोरोना वायरस उसके श्वसनतंत्र में प्रवेश कर जाता है तो फिर माउथवॉश का उस पर कैसा असर होता है, इस बारे में अभी पुख्ता रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन यह बात साफ है कि उस स्थिति में माउथवॉश कोरोना पर बहुत अधिक प्रभावी नहीं होगा क्योंकि यह मुंह तक ही सीमित रहता है। इस रिसर्च से यह बात तो साफ है कि हाथों को सैनिटाइज करने के साथ ही यदि टाइम-टाइम पर माउथवॉश किया जाए तो कोरोना के संक्रमण की संभावना को और अधिक कम किया जा सकता है। आपको ध्यान दिला दें कोरोना वायरस को निष्प्रभावी करने के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर्स भी बार-बार गर्म पानी का सेवन करने की सलाह दे रहे हैं। दिन में एक बार काढ़ा पीना भी इसी सुझाव का हिस्सा है। माउथवॉश में होनी चाहिए यह खूबी -शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना को मुंह में ही खत्म करने के लिए जरूरी है कि आप जिस माउथवॉश का उपयोग कर रहे हैं, उसमें कम से कम 0.07% सेटाइपिराइडनियम क्लोराइड (cetypyridinium chloride-CPC) होना चाहिए। पिछले दिनों हुए एक और शोध में यह बात सामने आई थी की CPC आधारित माउथवॉश वायरस लोड को कम करते हैं। हालांकि इन स्टडीज पर अभी अन्य वैज्ञानिकों की राय और उनकी समीक्षा का इंतजार है। लेकिन लैब में यही बात साबित हुई है कि मुंह सफाई और मसूड़ों की सेहत को ध्यान में रखते हुए जो माउथवॉश उपयोग किए जाते हैं, वे मुंह के अंदर कोरोना वायरस को खत्म करने में प्रभावी साबित हो सकते हैं।
फूलोगभी की सब्जी हो या पराठे... इनका स्वाद लाजवाब होता है। यदि कारण है कि हमारे देश में ज्यादातर त्योहारों और शादियों में गोभी की सब्जी जरूर शामिल होती है। या कहिए कि उत्सव के दौरान मेन्यू का अहम हिस्सा होती है गोभी की सब्जी। यह तो हुई स्वाद की बात, अब सेहत पर ध्यान लगा लेते हैं। अगर आप अपने मोटापे को नियंत्रित करना चाहते हैं तो गोभी की सब्जी इस काम में आपकी खासी मदद कर सकती है। यहां जानिए कैसे... फूलगोभी में इंडोल्स नामक तत्व पाए जाते हैं। ये ऐंटिओबेसिटी घटकों के रूप में कार्य करते हैं। इनकी उपस्थिति के कारण गोभी आपके शरीर में जमा वसा को तेजी से पिघलाने का काम करती है। जिससे आपके शरीर में गैरजरूरी चर्बी का जमाव नहीं हो पाता है और आप अपने बढ़ते वजन को नियंत्रित कर पाते हैं। यहां जानें, किन 5 कारणों से आपको फूलगोभी का नियमित सेवन करना चाहिए... शरीर को गर्म रखती है फूलगोभी -प्राकृतिक रूप से फूलगोभी सर्दियों की सब्जी है। इसलिए गर्मी के मौसम से स्टोरेज फूलगोभी खाने से बचना चाहिए। जबकि सर्दी के मौमस में आपको इसका नियमित सेवन करना चाहिए। फूलगोभी की तासीर गर्म होती है और यह शरीर में प्राकृतिक ऊष्मा पैदा करके आपको गर्माहट देने के काम करती है। गोभी सुपाच्य होती है। इसलिए नाश्ते से लेकर रात के भोजन तक किसी भी समय फूलगोभी की सब्जी का सेवन किया जा सकता है। शुगर को नियंत्रित रखने के लिए -फूलगोभी में पोटैशियम और विटमिन- बी6 पाया जाता है। ये दोनों ही खूबियां रक्त में इंसुलिन की मात्रा को सही बनाए रखने का काम करती हैं। यदि शरीर के अंदर पोटैशियम कम हो जाए तो शुगर के रोगी के ब्लड में ग्लूकोज का स्तर तुरंत बढ़ जाता है। इसलिए शुगर को मरीजों को फूलगोभी का सेवन अवश्य करना चाहिए। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए -स्वादिष्ट फूलोगोभी में विटमिन-सी पाया जाता है। यह विटमिन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कितना जरूरी है इस बारे में हम समय-समय पर आपको बताते रहते हैं। खासतौर पर कोरोना संक्रमण के दौर में तो सभी को विटमिन-सी की बहुत जरूरत है। इसलिए इस समय पर आपको फूलगोभी का सेवन जरूर करना चाहिए। अल्जाइमर का खतरा कम करने के लिए -उम्र बढ़ने के साथ ही हमारी याददाश्त भी कम होने लगती है। यदि समय रहते इस समस्या पर ध्यान ना दिया जाए तो यह आगे चलकर अल्जाइमर का रूप ले लेती है। इसमें व्यक्ति कुछ समय के लिए अपने आपको और अपने आस-पास के लोगों को पूरी तरह भूल जाता है। -लेकिन फूलगोभी का सेवन करनेवाले लोगों के अल्जाइमर के चपेट में आने की संभावना काफी कम हो जाती है। क्योंकि फूलगोभी में पाए जानेवाले सल्फोराफेन और इंडोल्स ब्रेन की आंतरिक चोटों को ठीक करने और कोशिकाओं को रिपेयर करने का काम करते हैं। मसल्स को फ्लैग्जिबल बनाए रखे -पोटैशियम आपके शरीर की मांसपेशियों को सिकुड़न से बचाता है। इसके साथ ही उनमें प्राकृतिक लचीलापन बनाए रखने का काम करता है। पोटैशियम आपकी मांसपेशियों के लिए एक प्रमुख इलैक्ट्रोलाइट के रूप में काम करता है, जो तंत्रिकाओं में होनेवाले आवेगों को नियंत्रित करने का काम करता है।
आजकल मौसम तेजी से बदल रहा है। कभी अचानक तेज गर्मी हो जाती है तो कभी बारिश के कारण तुरंत ठंड बढ़ जाती है। इसके साथ सार्स कोरोना वायरस-2 के कारण पूरे देश में कर्फ्यू लगा है तो घर से बाहर निकलकर जिम या पार्क जाना भी संभव नहीं है। ऐसे में पेट और पाचन से जुड़ी कई समस्याओं का सामना परिवार के सदस्यों को करना पड़ रहा है। यहां जानिए कि हरड़ कैसे पेट से जुड़ी लगभग सभी सामान्य बीमारियों को दूर कर सकती है... क्या होती है हरड़? हरड़ एक आयुर्वेदिक औषधि है और इसकी कई प्रजातियां हैं, जो अलग-अलग गुणों से भरपूर हैं। लेकिन आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर्स पर मिलनेवाली दवाइयों में छोटी हरड़ या शोधित हरड़ के नाम से आप इसकी पाचक गोलियां खरीद सकते हैं। इसका स्वाद कुछ-कुछ सूखे हुए आंवले जैसा होता है। हरड़ की खूबियां आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार, हरड़ करीब 7 प्रकार की होती है और अलग-अलग साइज में होती है। हरड़ के पौधे की जड़ से लेकर इसके फल तक हर चीज का उपयोग होता है। हरड़ में ऐंटिबैक्टीरियल और ऐंटिइंफ्लामेट्री गुण होते हैं। जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। हरड़ के टेस्ट से हमारे टेस्ट बड्स शांत होते हैं। इसलिए प्रभावी है हरड़ हरड़ में कई तरह के पौषक तत्व पाए जाते हैं। इसके सेवन से हमारे शरीर को आयरन,कॉपर, मैग्नीज, पोटैशियम, प्रोटीन्स और विटमिन्स की प्राप्ति होती है। ये सभी हमारे पाचन तंत्र को रेस्परेट्री सिस्टम यानी श्वसन तंत्र को मजबूत बनाए रखते हैं। जिससे गले और पाचन संबंधी बीमारियां हम पर हावी नहीं हो पातीं। इन स्थितियों में है अधिक लाभकारी बदलते मौसम में खांसी, जुकाम, छींके आना या कफ की समस्या से हरड़ बचाव करती है। पेट में दर्द, गैस बनना, अपच की समस्या होना, खट्टी डकारें आना जैसी दिक्कतों में हरड़ का सेवन करने से कुछ ही मिनट में लाभ होता है। यदि स्वस्थ व्यक्ति नियमित रूप से हरड़ का सेवन रे तो बबासीर, हृदय रोग, पीलिया और डायबीटीज जैसी बीमारियों से जीवनभर बचा रह सकता है। यहां मिलेगी मजेदार स्वाद में अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर हरड़ आपको मिलेगी कहां? तो जान लीजिए कि किसी भी आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर पर आपको हरड़ की स्वादिष्ट गोलियां या चूर्ण आराम से मिल जाएगी। अगर आपके आस-पास कोई ऐसी शॉप ना हो तो पतंजलि स्टोर तो जरूर होगा...वहां जाइए और शोधित हरड़ ले आइए। इतना-सा ध्यान रखना है जरूरी हरड़ की तासीर गर्म होती है। इसलिए बहुत अधिक तेज गर्मी के मौसम यानी मई और जून में बिना चिकित्सक की सलाह के इसका सेवन ना करें। यदि आपको खून से संबंधित कोई बीमारी है, शरीर में सूखापन है तब भी बिना चिकित्सक की सलाह के इसे ना लें। गर्भवती महिलाओं को भी इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
अगर आप भी उन लोगों में शामिल हैं जिन्हें भोजन करने के तुरंत बाद पेट में भारीपन की समस्या सताती है। तो यहां आपकी समस्या के 5 आसान समाधान बताए जा रहे हैं। इनमें से किसी भी एक तरीके को अपनाकर आप अपनी समस्या से तुरंत राहत पा सकते हैं... खाना खाने के बाद यदि आपको पेट का आकार बढ़ा हुआ महसूस होता है और आप असहज हो जाते हैं या बेचैनी अनुभव करते हैं तो आपको भोजन के तुरंत बाद - हरड़ - सौंफ के साथ मिश्री - हरी इलायची जैसी हर्बल चीजों का उपयोग करना चाहिए। ये आपके पेट को फूलने से रोकती हैं और आपको भोजन पचाने में भी सहायता करती हैं। इससे आपको पेट में भारीपन की समस्या नहीं होगी। ये तीन तो ऐसे उपाय हैं जिन्हें अपनाकर आप अपनी समस्या से तुरंत राहत पा सकते हैं। इनके अतिरिक्त दो और सामान्य उपाय हैं, जिन्हें लंबे समय तक अपनाकर आप अपनी इस समस्या को जड़ से खत्म कर सकते हैं। शहद का सेवन करें -शहद बहुत अच्छी और सर्वगुण संपन्न औषधि मानी जाती है। शहद जितना स्वादिष्ट होता है, सेहत के लिए उतना ही लाभकारी भी होता है। पेट में भारीपन की समस्या को दूर करने के लिए भी आप शहद का उपयोग कर सकते हैं। -इस समस्या से बचने के लिए आप दिन में दो बार और अधिक से अधिक तीन बार यानी तीनों प्रहर (सुबह-दोपहर-शाम) में दो-दो चम्मच शहद का सेवन करें। मात्र 7 से 15 दिन के अंदर आप अपनी सेहत और पाचन में कई तरह के सुधारों का अनुभव करेंगे। -ध्यान रखें कि यदि आपको डायबिटीज की समस्या है तो इस उपाय को ना अपनाएं। बल्कि अपनी समस्या के समाधान के लिए इलायची या हरड़ का सेवन करें। लाभ ना होने पर डॉक्टर से परामर्श करें। अलसी के बीजों का सेवन -अलसी के बीज 3 से 4 घंटे भिगोने के बाद सोने से पहले पी लें। इससे आपका पेट के सुबह के समय ठीक से साफ होगा। जब आपका पेट ठीक से साफ होने लगेगा तो पाचन अपने आप बेहतर हो जाएगा। -जिन लोगों की पाचन शक्ति सही तरीके से काम करती है, उन्हें भोजन के बाद पेट में भारीपन की समस्या नहीं होती है। इसलिए आप अपनी पाचन शक्ति को बेहतर करने के लिए अलसी के बीजों का उपयोग यहां बताई गई विधि से कर सकते हैं।
कोरोना वायरस का कहर एक बार फिर बढ़ रहा है। खासतौर पर अगर देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां स्थिति एक बार फिर से इनती विकट हो चुकी है कि दोबारा लॉकडाउन की स्थितियां बन रही हैं। यहां कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। हेल्थ एक्सपर्ट्स दिल्ली में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर (सेकंड वेव) मान रहे हैं। अगर आपके घर-परिवार या बिल्डिंग में कोई भी कोरोना संक्रमित मरीज है तो आपको उस मरीज की देखभाल और अपनी सुरक्षा के लिए कुछ खास बातों का ध्यान अवश्य रखना होगा। अन्यथा यह संक्रमण आस-पास के सभी लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है। क्वारंटाइन के दौरान ध्यान रखें ये बातें -जब किसी व्यक्ति में कोरोना वायरस के माइल्ड लक्षण दिखते हैं तो डॉक्टर्स ऐसे मरीजों को घर पर ही सेल्फ क्वारंटाइन में रहने की सलाह देते हैं। जबकि जिन लोगों की स्थिति अधिक गंभीर होती है, उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया जाता है। -यदि आप होम क्वारंटाइन हो रहे हैं तो आपको आमतौर पर 14 दिन के लिए क्वरांटाइन में रहने की सलाह दी जाती है। क्योंकि इतने समय में इलाज के दौरान यह वायरस या तो पूरी तरह खत्म हो जाता है या फिर इसके लक्षण अधिक तेजी से उभरकर सामने आ जाते हैं। -स्थिति बिगड़ने पर आपको डॉक्टर्स की टीम हॉस्पिटल में भर्ती कर लेती है। लेकिन यदि आपके लक्षण दवाओं से नियंत्रित हो जाते हैं तो आपको क्वारंटाइन का 14 दिन का समय पूरा होने के बाद भी अपनी सेहत को लेकर सतर्कता बरतनी चाहिए। -बेहतर होगा कि 14 दिन के बाद भी आप कम से कम 1 और सप्ताह के लिए खुद को पब्लिक प्लेस और फैमिली गेट-टु-गेदर से दूर रखें। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कई स्टडीज में यह बात सामने आ चुकी है कि कोरोना के लक्षण ठीक होने के बाद भी यह वायरस कई दिनों तक शरीर के अंदर जीवित रहता है। इस स्थिति में यह परिवार के अन्य लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है। -अमेरिकन थोरेसिस सोसायटी पर जारी किए गए एक अध्ययन में इस पर पूरी जानकारी दी गई है कि कैसे क्वारंटाइन के 14 दिनों के बाद भी कोरोना वायरस किसी स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। -यह रिसर्च डायग्नोसिस ऐंड मैनेजमेंट ऑफ कोविड-19 डिजीज के नाम से पब्लिश की गई की गई है। रिपोर्ट में कहा गया कि किसी भी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति को ठीक हो जाने के बाद केवल 14 दिनों तक का क्वॉरेंटाइन टाइम ठीक नहीं होगा बल्कि इससे संक्रमण के फैलने का खतरा भी रहता है। हॉस्पिटल से आने के बाद -अमेरिकन एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमण के मात देकर हॉस्पिटल से घर आ गया है तो इस स्थिति में भी उसे कम से कम 21 दिनों तक पब्लिक एक्सपोजर से बचना चाहिए और क्वारंटाइन के नियमों का पालन करते हुए घर में ही रहना चाहिए। ताकि उसके परिवार और आस-पास के लोगों में उसके कारण संक्रमण ना फैले।
मिर्गी (Epilepsy) एक न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर है, जिससे दिमाग में असामान्य तरंगें पैदा होती हैं. दिमाग में गड़बड़ी के चलते इंसान को बार-बार दौरे पड़ने लगते हैं. दौरा पड़ने पर दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है और शरीर लड़खड़ाने लगता है. इस भयंकर बीमारी के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए भारत में हर साल 17 नवंबर को 'नेशनल एपिलेप्सी डे' (National Epilepsy Day 2020) मनाया जाता है. हेल्थलाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 10 में से 6 रोगियों में मिर्गी के वास्तविक कारण का पता लगा पाना मुश्किल होता है. इंसान कई कारणों से इस बीमारी की चपेट में आ सकता है. दिमाग पर चोट लगने या चोट के निशान रह जाने की वजह से भी अक्सर लोगों को मिर्गी का दौरा पड़ने लगता है. हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि किसी गंभीर बीमारी, तेज बुखार या कार्डियोवस्क्युलर डिसीज (हृदय रोग) की वजह से भी इंसान को ये बीमारी हो सकती है. किसी भी कारण से हुआ तेज बुखार हमारे दिमाग पर बुरा असर डाल सकता है. 35 साल से ज्यादा उम्र के लोग अक्सर स्ट्रोक की वजह से इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं. ब्रेन के एक खास हिस्से तक ब्लड सप्लाई के बंद होने पर स्ट्रोक की समस्या होती है. ये बीमारी इस बात पर निर्भर करती है कि दिमाग के कौन से हिस्से में खून की सप्लाई बंद हुई है. दिमाग में ऑक्सीजन की कमी होने पर भी मिर्गी का दौरा पड़ सकता है. कई बार ब्लड में ऑक्सीजन की कमी के कारण दिमाग तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है. ऐसी कंडीशन में मिर्गी का खतरा बढ़ सकता है. डॉक्टर्स कहते हैं कि ब्रेन ट्यूमर या दिमाग में फोड़ा, डेमेंशिया या अल्जाइमर जैसी बीमारियों की वजह से भी मिर्गी का दौर पड़ सकता है. इसके अलावा एड्स या मैनिंजाइटिस जैसी बीमारियों की चपेट में आने के बाद भी इंसान इसका शिकार हो सकता है. नशीली दवाओं का सेवन, ब्रेन मैलइंफॉर्मेशन, डेवलपमेंटल डिसॉर्डर, न्यूरोलॉजिकल डिसीज या अनुवांशिक कारणों से भी इंसान को यह बीमारी हो सकती है. 20 साल से कम उम्र में मिर्गी होने का खतरा 1 प्रतिशत से भी कम होता है. जबकि 2 से 5 प्रतिशत लोगों में यह बीमारी जेनेटिक कारणों से भी हो सकती है. मिर्गी का दौरा मुख्य तौर पर दो प्रकार का होता है. पहला जनरलाइज्ड एपिलेप्सी (generalized epilepsy) जिसमें दौरा पूरे दिमाग में पड़ता है. ये तब तक पड़ता है जब तक इंसान बेहोश न हो जाए. और दूसरा फोकल एपिलेप्सी (focal epilepsy), जिसमें दिमाग के कुछ हिस्सों में इलेक्ट्रिकल तरंगे दौड़ती हैं. इस बीमारी के लक्षण इसके प्रकार पर ही निर्भर करते हैं. फोकल एपिलेप्सी में इंसान के सूंघने या चखने की शक्ति में बदलाव आ सकता है. मरीज देखने, सुनने या स्पर्श महसूस करने की क्षमता भी खो सकता है. इसके अलावा चक्कर आना, शरीर में झनझनाहट और अंगों में अचानक मरोड़ आना भी इसके लक्षण हैं. जनरलाइज्ड एपिलेप्सी में इंसान का शरीर एकदम सख्त पड़ जाता है. शरीर में भारी कंपन महसूस होने लगता है. मूत्राशय और आंतों से नियंत्रण खोने लगता है. जुबान दांतों तले दबने लगती है. इसमें इंसान बेहोश भी हो सकता है. इस न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर से बचाव के लिए कई बातें ध्यान रखना जरूरी हैं. पर्याप्त नींद लें. स्ट्रेस मैनेजमेंट सीखें. नशीली दवाओं और एल्कोहल से दूरी बनाएं. तेज चमकती रोशनी से बचें. संभव हो तो टीवी या कंप्यूटर के सामने ज्यादा देर तक न बैठें. मेडिटेशन या कोई एक्सरसाइज जरूर करें.
17 नवंबर को हर साल नेशनल एपिलेप्सी डे (National Epilepsy Day 2020) मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को एपिलेप्सी (Epilepsy) यानी मिर्गी के प्रति जागरूक करना है. मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर Neurological Disorders) यानी तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारी है. इसमें तंत्रिका कोशिका (Nerve Cell) की गतिविधि में रुकावट आने लगती है जिसके वजह से मरीज को दौरे पड़ने लगते हैं. वैसे तो मिर्गी का इलाज एंटी-सीजर दवाओं से किया जाता है हालांकि कुछ मरीजों पर ये दवाएं भी काम नहीं करती हैं. इसके अलावा इन दवाइयों के कुछ साइड इफेक्ट भी हो जाते हैं. बहुत कम लोग जानते हैं कि कुछ प्राकृतिक तरीकों से भी मिर्गी का उपचार (Natural Treatments for Epilepsy) किया जा सकता है. आइए जानते हैं इनके बारे में. मिर्गी का हर्बल उपचार- हर्बल उपचार की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है. कुछ जड़ी बूटियों से मिर्गी की बीमारी पर भी काबू पाया जा सकता है. मिर्गी के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटियों में कुछ खास झाड़ियां, देहली, ब्राम्ही, घाटी की कुमुदिनी, अमर बेल, सफेद तेजपत्ता, पीअनी, स्कलकैप प्लांट, कल्पवृक्ष और वेलेरियन हैं. विटामिन- कुछ विटामिन मिर्गी के दौरे को कम करने में मददगार होते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि अकेले विटामिन (Vitamins) काम नहीं करता है. विटामिन मिर्गी की अन्य दवाओं के साथ प्रभावी ढंग से काम करता है. मिर्गी के इलाज में सबसे असरदार विटामिन B-6 है. कुछ लोगों के शरीर में सही ढंग से विटामिन B-6 नहीं बन पाता है. इसलिए विटामिन B-6 सप्लीमेंट मिर्गी के दौरों कम करने का काम करते हैं. हालांकि अभी इस पर और शोध किए जाने की जरूरत है. विटामिन E- कुछ लोगों में विटामिन E की कमी से भी दौरे पड़ने लगते हैं. विटामिन E शरीर में एंटीऑक्सीडेंट गुणों को बढ़ाता है. 2016 की एक स्टडी के अनुसार, विटामिन E मिर्गी के लक्षणों को कंट्रोल करता है और इसे मिर्गी की अन्य दवाओं के साथ लिया जा सकता है. इसके अलावा मिर्गी के इलाज के लिए उपयोग किए जाने वाले दवा से बायोटिन या विटामिन D की कमी भी हो सकती है, जिससे लक्षण और बिगड़ सकते हैं. ऐसी स्थिति में आपके डॉक्टर इन विटामिन की गोलियां दे सकते हैं. मैग्नेशियम (Magnesium)- मैग्नीशियम की ज्यादा कमी से भी मिर्गी के दौरे का खतरा बढ़ सकता है. एक शोध के अनुसार मैग्नेशियम सप्लीमेंट मिर्गी के लक्षण को कम करते हैं. हालांकि मिर्गी और मैग्नेशियम के बीच के संबंध को समझने के लिए और स्टडी की जाने की जरूरत बताई गई है. एक्यूपंक्चर और काइरोप्रेक्टिक ट्रीटमेंट- कभी-कभी एक्यूपंक्चर और काइरोप्रेक्टिक (chiropractic treatments) को मिर्गी के उपचार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इसमें शरीर के कई हिस्सों में सुइयों को चुभोकर दर्द कम करने की कोशिश की जाती है. ऐसा कहा जाता है एक्यूपंक्चर (Acupuncture) से दिमाग में एक तरह का बदलाव होता है जिससे दौरे कम आते हैं. वहीं काइरोप्रेक्टिक ट्रीटमेंट में रीढ़ की हड्डियों के इलाज के जरिए मिर्गी का उपचार किया जाता है. हालांकि मिर्गी के इलाज में इन दोनों तरीकों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है. डाइट में बदलाव- खान-पान में बदलाव के जरिए भी मिर्गी पर काबू पाया जा सकता है. इसके लिए कीटोजेनिक डाइट सबसे सही मानी जाती है. कीटो डाइट में कम कार्ब्स और कम प्रोटीन होता है. ये डाइट फॉलो करने वाले मरीजों में मिर्गी के दौरे कम पड़ते हैं. जिन बच्चों को मिर्गी के दौरे पड़ते हैं उन्हें आमतौर पर डॉक्टर कीटोजेनिक डाइट पर ही रखते हैं. खुद पर नियंत्रण रखना- मिर्गी के मरीजों को अपने दिमाग को कंट्रोल में रखने की कोशिश करनी चाहिए. कई मरीजों को धुंधला दिखना, चिंता, डिप्रेशन, थकान और तेज सिर दर्द की शिकायत होने लगती है. ऐसे में मेडिटेशन करें, टहलें, खुद को किसी काम में व्यस्त रखें. इन सबके साथ अपनी दवाएं जारी रखें.
14 नवंबर को हर साल वर्ल्ड डायबिटीज डे (World Diabetes Day) मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मकसद लोगों के बीच इस बीमारी को लेकर जागरुकता फैलाना है ताकि इससे बचा जा सके. बदलते लाइफस्टाइल में डायबिटीज एक आम बीमारी हो चुकी है और कोई भी आसानी से इसकी चपेट में आ रहा है. कोरोना वायरस के लिहाज से भी डायबिटीज को ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है. डायबिटीज से बचने के लिए इसके संकेतों को पहचानना जरूरी है. डायबिटीज के लक्षण- डायबिटीज के मरीजों के खून में ग्लूकोज की मात्रा सामान्य स्तर से ज्यादा बढ़ जाती है. इसके लक्षण सामान्य से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं. टाइप 1 डायबिटीज में लक्षण तुरंत दिखाई देने लगते हैं जबकि टाइप 2 डायबिटीज के लक्षण कई दिनों के बाद नजर आते हैं और टाइप 2 की तुलना में टाइप 1 डायबिटीज को ज्यादा गंभीर माना जाता है. इन दोनों टाइप के मरीजों में कुछ ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं जिन्हें चेतावनी के तौर पर देखा जा सकता है. भूख और थकान लगना- डायबिटीज के मरीजों को बहुत जल्दी-जल्दी भूख और थकान लगती है. हमारा शरीर खाने को ग्लूकोज में बदल देता है जिससे हमें ताकत मिलती है लेकिन कोशिकाओं को ग्लूकोज लेने के लिए इंसुलिन की जरूरत पड़ती है. डायबिटीज में शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता है जिसकी वजह से शरीर में हर समय थकान रहती है और मरीज को बहुत जल्दी-जल्दी भूख लगती हैं. बार-बार पेशाब और प्यास लगना- डायबिटीज के मरीजों को बार-बार वॉशरूम जाना पड़ता है. ग्लूकोज किडनी के रास्ते शरीर में अवशोषित हो जाता है लेकिन डायबिटीज के मरीजों ब्लड शुगर बढ़ जाने की वजह से किडनी सही तरीके से काम नहीं कर पाती है और मरीज को बार-बार पेशाब लगती रहती है. जल्दी-जल्दी वॉशरूम जाने की वजह से मरीज को बहुत प्यास लगती है. मुंह सूखना और खुजली होना- डायबिटीज के मरीजों का मुंह बहुत जल्दी-जल्दी सुखता है और स्किन में खुजली होने लगती है. बार-बार पेशाब लगने की वजह से शरीर में तरल पदार्थ की मात्रा कम होने लगती है जिसकी वजह से मुंह सूखने लगता है. शरीर में नमी की वजह से त्वचा में खुजली होने लगती है. धुंधला दिखना- शरीर में तरल पदार्थों के बदलावों का असर आंखों पर भी पड़ता है. डायबिटीज के मरीजों की आंखों में सूजन आने लगती है और उन्हें धुंधला दिखाई देने लगता है. इंफेक्शन होना- डायबिटीज के कुछ मरीजों में स्किन इंफेक्शन भी होने लगता है. इसके अलावा कहीं कट या घाव लगने पर इसे भरने में भी समय लगता है. कभी-कभी पैरों में दर्द भी होने लगता है. वजन कम होना- डायबिटीज के मरीजों को खाने से ऊर्जा नहीं मिलती है जिसकी वजह से उनका वजन तेजी से घटने लगता है. भले ही आप अपने खाने में किसी तरह का बदलाव ना करें लेकिन आपके वजन में अपने आप कमी आने लगेगी. कब करें डॉक्टर से संपर्क- अगर आपको पेट में दिक्कत महसूस होती है, बार-बार प्यास और पेशाब लगती है, सांस तेजी से चलती है तो अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें. अगर आपकी उम्र 45 साल से ज्यादा है या आपमें डायबिटीज होने की संभावना ज्यादा है तो अपना टेस्ट जरूर कराएं.
जिस तरह पेट दर्द होने की हमेशा एक वजह नहीं होती है। कई अलग-अलग कारणों के चलते पेट दर्द की समस्या हो सकती है। ठीक इसी तरह पेट दर्द का उपचार भी कोई एक नहीं है। पेट दर्द के दौरान उपचार करते समय इस बात का भी पूरा ध्यान रखा जाता है कि दर्द पेट के किस हिस्से में हो रहा है। ताकि दर्द के कारणों को समझकर सही निदान किया जा सके... पेट दर्द के सामान्य और असामान्य कारण -पेट दर्द मुख्या रूप से दो तरह की समस्याओं के कारण होता है। पहली समस्या होती है, खान-पान और लाइफस्टाइल से जुड़ी हुई। तथा दूसरी तरह के पेट दर्द की वजह होती है शरीर में पल रही कोई बीमारी। पेट दर्द के सामान्य कारण -अपच के कारण पेट में दर्द होना -गैस के कारण पेट दर्द की समस्या -अत्यधिक एसिड बनने पर -कब्ज होने पर पेट दर्द होना -कोई संक्रमित फूड खा लेने पर पेट दर्द होना असामान्य कारण -जब किसी खास बीमारी के कारण पेट में दर्द की समस्या होती है तो इसे पेट दर्द के असामान्य कारण के रूप में देखा जाता है। यहां उन बीमारियों के नाम दिए गए हैं, जिनके कारण पेट दर्द की समस्या होती है... -यूरिन इंफेक्शन यानी मूत्र संबंधी संक्रमण -हर्निया का रोग -पेट में अल्सर होना या आंतों में अल्सर होना -गुर्दे में पथरी होने की समस्या -अपेंडिसाइटिस इंफेक्शन के कारण होनेवाला पेट दर्द -यदि आपको कोई फूड खाने के 10 से 15 मिनट के अंदर ही दर्द होने लगा है या कुछ घंटे बाद आपको लगता है कि आपने फलां चीज खाई थी इसलिए आपको पेट दर्द हो रहा है, तो समझ जाइए कि आपने जो भी फूड खाया है, वह संक्रमित हो सकता है। -संक्रमित भोजन के कारण पेट में अचानक से तेज दर्द उठता है। साथ ही आपको पॉटी जाने की जरूरत महसूस होती है। इसे आप संक्रमित भोजन के कारण होनेवाले पेट दर्द के लक्षण के रूप में भी समझ सकते है। -पेट में इस तरह का दर्द होने पर आप अदरक का उपयोग कर सकते हैं। सबसे पहले अदरक के छोटे पीस को धुलकर बारीक काट लें। अब एक कप पानी गर्म होने के लिए गैस पर रखें और जब पानी गर्म हो जाए तो इसमें महीन कटे हुए अदरक के पीस डाल दें। -अदरक डालने के बाद इस पानी को 2 से 3 मिनट के लिए ढंककर रखा रहने दें। अब इस पानी को छानकर कप में कर लें और इसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर इसे चाय की तरह धीरे-धीरे पिएं। आपको पेट दर्द में राहत मिलेगी और संक्रमण भी नहीं फैलेगा। -आप दिन में दो से तीन बार इस तरह अदरक का पानी बनाकर सेवन करें। यदि इसके बाद भी आपको पेट दर्द की शिकायत हो तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
कोरोना वायरस (Corona virus) के इलाज के लिए बनाई जा रही दवा में काली मिर्च काफी मददगार साबित हो सकती है. भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम का दावा है कि काली मिर्च (Black pepper) में पाए जाने वाला पाइपराइन (Peperine) तत्व कोरोना वायरस का नाश कर सकता है जो कोविड-19 (Covid-19) की बीमारी का कारण है. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (धनबाद) के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स के शोधकर्ताओं ने एक स्टडी में इसका खुलासा किया है. प्रमुख शोधकर्ता उमाकांत त्रिपाठी ने कहा, 'किसी भी अन्य वायरस की तरह SARS-CoV-2 हम्यून बॉडी के सेल्स में दाखिल होने के लिए सरफेस के प्रोटीन का इस्तेमाल करता है. उन्होंने और उनकी टीम ने एक ऐसा प्राकृतिक तत्व खोज निकाला है जो इस प्रोटीन को बांधकर रखेगा और वायरस को हम्यूमन सेल्स में प्रवेश करने से रोकेगा.' कोरोना वायरस की प्रणाली को बाधित करने वाले संभावित तत्वों की पहचान के लिए वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर की अत्याधुनिक मॉलिक्यूलर डॉकिंग और मॉलिक्यूलर डायनेमिक्स सिमुलेशन तकनीक का इस्तेमाल किया था. इसके लिए शोधकर्ताओं ने किचन के सामान्य मसालों में मौजूद 30 अणुओं का प्रयोग किया और उनमें छिपे औषधीय गुणों का पता लगाया. इस स्टडी में एक्सपर्ट ने पाया कि काली मिर्च में मौजूद एक एल्कोलॉयड जिसे पेपराइन कहा जाता है और जो इसके तीखेपन की वजह होता है, कोरोना वायरस का मजबूती से सामना कर सकता है. उमाकांत त्रिपाठी 'इंडियन साइंस वायर' के हवाले से कहा, 'ये परिणाम बहुत आशाजनक है. इस स्टडी में कोई संदेह नहीं है. हालांकि आगे की पुष्टि के लिए लैबोरेटरी में अधिक शोध की आवश्यक्ता है.' ओडिशा की एक बायोटेक कंपनी IMGENEX India Pvt Ltd के डायरेक्टर ऑफ बायोलॉजिक्स अशोक कुमार के सहयोग से इस खास तत्व का लैबोरेटरीज में परीक्षण किया जा रहा है. शोधकर्ताओं ने बताया कि कंप्यूटर बेस्ड स्टडीज लैब में टेस्ट से पहले का चरण होता है. यदि यह परीक्षण सफल होता है तो ये एक बड़ी सफलता होगी. बता दें कि काली मिर्च एक नेचुरल प्रोडक्ट है जिसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है. बता दें कि इस वक्त कोरोना की तबाही से पूरी दुनिया में 3 करोड़ 95 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं. साथ ही 11 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
नई दिल्ली 120/80 नहीं, अब बीपी 140/90 तक भी नो टेंशन। यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी की गाइडलाइन के बाद अब भारत में भी हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर (Hypertension or High Blood Pressure) की यही बेस लाइन मान कर इलाज किया जा रहा है। ऐसे में अगर आपका ब्लड प्रेशर 120/80 से ज्यादा है, तो टेंशन नहीं लें, आपका बीपी कंट्रोल में है। ब्लड प्रेशर की बेस लाइन (New base line for blood pressure) में हुए बदलाव को लेकर भारतीय डॉक्टरों का कहना है आइडियल बीपी भले 120/80 ही है, लेकिन अगर किसी का 130/90 भी हो जाता है, तो घबराने की बात नहीं है। उन्हें किसी प्रकार के इलाज की जरूरत नहीं है। इस बेस लाइन से ज्यादा होने पर ही इलाज की जरूरत होती है। डॉक्टरों का कहना है कि बुजुर्गों में 140/90 तक यह सेफ है। 60 साल के बाद 150/90 के बाद ही इलाज की जरूरत है। एम्स के कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर डॉक्टर संदीप मिश्रा ने बताया कि 120/80 को मान कर चलें, तो फिर दो तिहाई दिल्ली वाले बीपी के मरीज होंगे। इस गाइडलाइन के पहले से ही हम ब्लड प्रेशर के मानक को थोड़ा ऊपर रख कर इलाज कर रहे थे। जब से यह स्टडी आई है, उसके बाद से नई बेस लाइन को मान कर इलाज कर रहे हैं। डॉक्टर संदीप ने कहा कि पुरानी बेस लाइन को स्टिक्ट होकर फॉलो करना संभव नहीं था। डॉक्टर संदीप मिश्रा ने बताया कि वेस्टर्न कंट्रीज में जिस प्रकार की गाइडलाइन दी हैं, उसके आधार पर यहां ब्लड प्रेशर मरीज को लेना भी संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि इस स्टडी में शामिल लोगों को पता नहीं चलता था कि उनका बीपी क्यों लिया जा रहा है। स्टडी में शामिल लोगों को शांत रूम में लेकर ऑटोमेटिक बीपी मशीन से कनेक्ट कर 5 मिनट तक छोड़ दिया जाता था। उसके बाद जो रीडिंग आती थी, उसे लिया गया। हमारे यहां संभव नहीं है। हम इतना स्ट्रिक्ट नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि आज हमलोग हर मरीज में डायस्टोलिक यानी नीचे वाला बीपी का इलाज 90 से ज्यादा होने पर ही करते हैं। अडल्ट हो या फिर बुजुर्ग, हर मरीज में नीचे वाला बीपी 90 से ज्यादा नहीं होना चाहिए। मैक्स हॉस्पिटल के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर विवेका कुमार ने बताया कि हम लोग भी अब इसी गाइडलाइन के अनुसार इलाज कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रैक्टिकली ब्लड प्रेशर लो होने पर वीकनेस होती है, चक्कर आता है। लेकिन, अगर मरीज नॉर्मल है, अडल्ट है तो बीपी ऊपर वाला यानी सिस्टोलिक 130 तक भी नॉर्मल है। हां! मरीज में पहले से कोई दूसरी बीमारी है, तो हम ऐसी स्थिति में थोड़ा अलर्ट रहते हैं। डॉक्टर ने कहा कि बुजुर्गों में वैसे भी ऊपर वाला बीपी 140 से 150 तक नॉर्मल मान कर इलाज होता है, खासकर 60 साल की उम्र के बाद 150 से ज्यादा होने पर ही इलाज की जरूरत होती है। अगर 150/90 है, तो चिंता वाली बात नहीं है। वयस्कों के लिए नॉर्मल- 120/80 पहले ट्रीटेबल- 130/90 से ऊपर होने पर अब ट्रीटेबल- 140/90 से ऊपर होने पर बुजुर्गों के लिए नॉर्मल- 130/90 पहले ट्रीटेबल- 140/90 से ऊपर होने पर अब ट्रीटेबल- 150/90 से ऊपर होने पर\B जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी सेंटर के कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर अनिल ढल ने बताया कि हमारे यहां जिस प्रकार ब्लड प्रेशर लिया जाता है, वह सही तरीका नहीं है। इसे समझना सबसे ज्यादा जरूरी है। हमें भी ब्लड प्रेशर लेने का तरीका बदलना होगा। मरीज को रिलेक्स करें। उन्हें स्ट्रेस न हो। एंजायटी न हो। कुछ देर इंतजार करें, तब ब्लड प्रेशर लें। यहां तो लोग जिस प्रकार बच्चे का रिजल्ट देखने के लिए जल्दबाजी में होते हैं, उसी प्रकार बीपी भी। सच तो यह है कि ब्लड प्रेशर कम ज्यादा होता रहता है। यह निर्भर करता है कि आप कैसे और किस प्रकार नाप ले रहे हैं। जहां तक नई गाइडलाइन की बात है, तो इलाज तो अब इस गाइडलाइन के अनुसार ही हो रहा है। बहुत हद तक इससे फायदा भी है।
किडनी हमारे शरीर को डिटॉक्सीफाई (kidney detoxify) करने का काम करती है. ये अपशिष्ट, जहरीले और अतिरिक्त तरल पदार्थों को यूरीन के रास्ते शरीर से बाहर निकालती है. शरीर में खून को प्योरीफाई (Blood purify) करने वाली किडनी की अगर को साफ ना रखा जाए तो यूरीनरी डिसॉर्डर समेत पेट दर्द, बुखार, जी मिचलाना और उल्टी जैसी गंभीर समस्याएं बढ़ सकती हैं. इतना ही नहीं, किडनी में जमा जहरीले पदार्थ ब्लड प्योरीफिकेशन में बाधा पैदा कर इंसान की मौत का कारण तक बन सकते हैं. अगर आप खाने में सावधानी बरतने के साथ डाइट में तीन बेहतरीन चीजों को शामिल कर लें तो बड़ी आसानी से किडनी की सफाई हो सकती है. इन चीजों को आप कुकिंग या ड्रिंक किसी भी रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. आमतौर पर हर रसोई में धनिये का इस्तेमाल खाने का जायका बढ़ाने के लिए किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि धनिये में मौजूद डिटॉक्सीफिकेशन के गुण शरीर से अपशिष्ट और जहरीले पदार्थों को बाहर करने में मददगार हैं. आप डिनर डाइट या जूस में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. दाल आदि में छोंक या तड़के के लिए इस्तेमाल होने वाला जीरा भी किडनी की सफाई में बड़ा फायदेमंद है. नींबू के 4-5 स्लाइड के साथ जीरा और धनिया मिलाकर घर में एक डिटॉक्सीफाई ड्रिंक तैयार किया जा सकता है. किडनी की तेजी से सफाई करने के लिए ये ड्रिंक बेहद कारगर है. एक लीटर पानी को हल्की आंच पर उबालें. इसके बाद धनिये की कुछ पत्तियों को धोकर पानी में डालें और 10 मिनट तक उबलने दें. अब उबले हुए पानी में नींबू के कटे हुए स्लाइस और एक चम्मच जीरा मिलाएं. तीनों चीजों को पांच मिनट तक उबलने दें और फिर छानकर पीएं. इस ड्रिंक को रोजाना पीने से आपकी किडनी एकदम साफ हो जाएगी. साथ ही इससे पेट के कई बड़े रोग भी कटेंगे. अक्सर आपने लोगों को मक्का यानी भुट्टे के दाने खाते देखा होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं भुट्टे के दानों पर नजर आने वाले गोल्डन कलर के रेशे आपकी किडनी को डिटॉक्सीफाई कर सकते हैं. ये किडनी और ब्लैडर को डिटॉक्सीफाई करने के साथ ब्लुड शगर को रेगुलेट और इम्यूनिटी को बूस्ट करने में भी कारगर है. भुट्टे के बाल का ड्रिंक बनाने के लिए दो ग्लास पानी अच्छी तरह उबालें. इसके बाद पानी में एक कटोरी भुट्टे के बाल डालें और हल्की आंच पर उबालें. इस पानी में नींबू के दो कटे हुए हिस्सों को निचोड़ें और तब तक उबालें जब तक पानी एक ग्लास ना रह जाए. इस ड्रिंक को रोजाना सुबह-शाम पीने से जल्द ही आपको फायदे दिखने शुरू हो जाएंगे. जिन लोगों को पथरी की शिकायत रहती है, उनके लिए भी ये ड्रिंक बड़ा फायदेमंद है. एक्सपर्ट की मानें तो जब इंसान की किडनी शरीर में पर्याप्त खून को फिल्टर करना बंद कर दे तो इसे किडनी फेलियर कहते हैं. हाई ब्लड प्रेशर (डायबिटीज), ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (ब्लड को फिल्ट करने वाले हिस्से का डैमेज होना) या किडनी स्टोन यानी पथरी (kidney stone) होने पर इंसान की किडनी खराब हो सकती है.
पेट में एसिडिटी की समस्या होने की कई वजह हो सकती हैं। लेकिन एसिडिटी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यह कभी भी और कहीं भी आपको परेशान कर सकती है। यहां जानें, एसिडिटी से बचने के घरेलू तरीकों के बारे में.. सबसे आसान और कारगर उपाय -एसिडिटी को शांत करने का सबसे आसान और प्रभावी तरीका है ठंडा दूध। आप एक गिलास ठंडा और फीका दूध पी लीजिए। यानी दूध में शुगर ना मिलाएं और इसे पी लें। आपको तुरंत राहत मिलेगी। थोड़ा-सा गुड़ खाएं -पेट में गर्मी होने पर आप गुड़ खा लें आपको गुड़ खाते-खाते ही राहत का अहसास होने लगेगा। गुड़ खाने के बाद एक गिलास ताजा पानी पी लें। -ध्यान रखें कि गुड़ खाने के बाद यदि आप एक सामान्य गिलास से कम पानी पिएंगे तो खांसी हो सकती है। इसलिए गुड़ खाकर एक गिलास पानी पिएं। पेट को तुरंत ठंडक मिलेगी और एसिडिटी दूर हो जाएगी। जीरा और अजवाइन है प्रभावी -अजवाइन की तासीर गर्म होती है लेकिन जीरा महादिल होता है। यानी शरीर और रोग की प्रकृति देखते हुए प्रतिक्रिया करनेवाला फूड। -एसिडिटी या पेट में जलन होने पर एक-एक चम्मच जीरा और अजवाइन लेकर इन्हें तवे पर भून लें। जब ये दोनों ठंडे हो जाएं तो इनकी आधी मात्रा लेकर चीनी के साथ खा लें। -आधे बचे हुए तैयार मिश्रण को अगले समय के भोजन के बाद ले लें। आपको एसिडिटी से एक ही डोज में आराम मिलेगा। लेकिन अगले समय के भोजन को सही तरीके से पचाने के लिए बाकी बचे मिश्रण का इसी तरह सेवन करें। -भुना हुआ जीरा और अजवाइन चीनी के साथ खाने के बाद आप जरूरी होने पर ताजा पानी पी सकते हैं। लेकिन ताजा पानी 10 मिनट बाद ही पिएं। यदि आपको तुरंत पानी पीना है तो सिर्फ एक घूंट गुनगुना पानी पी सकते हैं। आपको लाभ होगा। आंवला खाएं -यदि घर में आंवला है तो आप काला नमक लगाकर आंवले का सेवन कर सकते हैं। आपको तुरंत राहत मिलेगी। यदि आंवला ना हो और आंवला कैंडी हो तो आप इसका भी सेवन कर सकते हैं। इस तरीके से आपको 2 से 3 मिनट के अंदर आराम मिल जाएगा।
घर के बड़े हों, टीचर्स हों या हेल्थ एक्सपर्ट्स, बचपन से लेकर आज तक कई अलग शुभचिंतकों ने आपको हर दिन एक सेब खाने की सलाह दी होगी। यह अलग बात है कि आप ऐसा करते हैं या नहीं... लेकिन इतना तो जरूर जानते हैं कि सेब हमारी सेहत को सही बनाए रखने के लिए बहुत लाभकारी फल है। आइए, यहां जानते हैं सेब खाने का सही समय और साथ ही यह भी कि किन बीमारियों से जीवनभर बचाकर कर सकता है सेब का सेवन... दिमाग से करते हैं शुरुआत - सेब के गुणों को विस्तार से जानने की शुरुआत सबसे पहले इस बात से करते हैं कि आखिर सेब खाने से हमारे दिमाग पर कैसा असर होता है। हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, हर दिन एक सेब खाने से हमारा दिमाग अधिक ऐक्टिव और कुशाग्र बनता है। -हमारे दिमाग पर तनाव हावी नहीं हो पाता है। क्योंकि सेब के अंदर मौजूद पोषक तत्व हमारे दिमाग में प्लेजर हॉर्मोन्स का स्तर बनाए रखने में सहायता करते हैं। जो लोग हर दिन नियमित रूप से एक सेब का सेवन करते हैं, उन्हे याददाश्त की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। दिल की सेहत के लिए गुणकारी -नियमित रूप से सेब का सेवन हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य बनाए रखने में सहायता करता है। कॉलेस्ट्रॉल की बढ़ी हुई मात्रा हमारे हृदय के लिए सबसे अधिक हानिकारक होती है। इस तरह दिल की सेहत ठीक रखने का काम भी सेब बखूबी करता है। श्वांस संबंधी रोगों से बचाए -जो लोग नियमित रूप से 1 सेब खाते हैं, उन्हें सांसों से संबंधी रोग जल्दी से नहीं होते हैं। क्योंकि सेब में पाए जानेवाले ऐंटिपैथोजेन गुण गले और लंग्स में किसी भी तरह के वायरस को हावी नहीं होने देते हैं। -सेब खानेवाले लोगों को खासतौर पर अस्थमा का रोग कभी नहीं हो पाता है। बशर्ते वे नियम से सेब खाते हों और सही प्रकार से सेब खाते हों। एक दिन के लिए 1 सेब खाना पर्याप्त होता है। कैंसर रोधी गुणों से भरपूर -नियमित रूप से सेब खानेवाले लोगों के शरीर में कैंसर सेल्स आसानी से नहीं पनप पाती हैं। क्योंकि सेब में मौजूद पोषक तत्व हमारे शरीर को लगातार डिटॉक्स करते रहते हैं। इससे विषैले तत्व हमारे शरीर को संक्रमित नहीं कर पाते हैं। लिवर को दुरुस्त रखे -लिवर की समस्या से जूझ रहे लोग यदि नियमित रूप से एक सेब का सेवन शुरू कर दें तो उन्हें बहुत अधिक लाभ होगा। यदि वे किसी तरह का ट्रीटमेंट इस समस्या के लिए ले रहे हैं तो इस उपचार का असर भी उन्हें अपने शरीर पर जल्दी दिखाई देगा। सेब का सिरका भी लिवर को ठीक करने में सहायक होता है। मोटापे से बचाए -सेब का सेवन शरीर में अतिरिक्त वसा के संचय को रोकता है। इससे की नसों में फैट जमा नहीं हो पाता है और ब्लड का फ्लो बना रहता है। इसके साथ ही सेब का सेवन करने से हमारी बॉडी में एक्स्ट्रा चर्बी जमा नहीं हो पाती है। जो लोग अपना वजन कम करना चाहते हैं, वे भी नियमित रूप से सेब का सेवन कर सकते हैं। सेब खाने का सही तरीका सेब को हमेशा छिलके सहित खाना चाहिए। सेब खाते समय इसे अच्छी तरह से चबाना चाहिए ताकि मुंह में ही इसका अच्छी तरह रस बन जाए और इसका छिलका गले में ना चिपके। -सेब का जूस पीने से बचना चाहिए। क्योंकि इसमें शुगर मिलाई जाती है और साथ ही इसके रेशे अलग हो जाते हैं तो इसमें फाइबर की मात्रा नहीं रहती है। सेब खाना, सेब का जूस पीने से कहीं अधिक लाभकारी है। सेब खाने का सही समय -सेब कभी भी खाली पेट नहीं खाना चाहिए। खाली पेट यानी जब सुबह उठकर आपने कुछ ना खाया हो और सबसे पहले सेब ही खा लें। ऐसा करने से आपको पेट में जलन, गैस या बेचैनी हो सकती है। -सुबह नाश्ते के 1 घंटे बाद या लंच करने के 1 से 2 घंटे बाद सेब का सेवन करना सबसे अधिक लाभकारी होता है। आप नियमित रूप से इस समय पर 1 सेब खा सकते हैं।
'न्यू नॉर्मल' के साथ अपने जीवन को जीने की कला हम सभी सीख रहे हैं। काफी कुछ नया हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका है, जैसे मास्क पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग, बिना जरूरी काम के बाहर ना जाना, हाथ सैनिटाइज करना आदि। इसके अलावा खान-पान संबंधी कुछ खास चीजों को हम अपनी लाइफ में शामिल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। ताकि कोरोना संक्रमण के बीच इस नए माहौल में सामान्य जीवन जी सकें। कोरोना वायरस सबसे पहले हमारे फेफड़ों पर असर करता है और ठीक होने के बाद यह संक्रमण हमारे दिल की हालत को खराब बनाए रखता है। इन दोनों ही समस्याओं से बचने में बादाम हमारी बहुत सहायता कर सकते हैं। क्योंकि हमारी कार्डियोवस्कुलर हेल्थ के लिए बादाम का सेवन बेहद लाभकारी होता है। खुद को अंदर से संवारने का समय -हम सभी को 2020 का बहुत समय से इंतजार था। हम सभी इस साल को लेकर बहुत-सी उम्मीद संजोए हुए थे। लेकिन कोरोना वायरस ने इन सभी उम्मीदों को पूरा 360 डिग्री घुमा दिया। लेकिन परेशान होने से बेहतर है कि हम एक प्यारी-सी मुस्कान के साथ इन सबका स्वागत करें। -यह समय बाहरी जीवन से थोड़ा कटकर खुद अपनी सेहत पर और अपनी अंदरूनी खूबसूरती पर ध्यान देने की जरूरत है। ताकि हम अंदर से मजबूत और खुश बन सकें। तो इन सभी चाहत को पूरा करने के लिए आप अपने दैनिक जीवन में बादाम खाना शुरू करें। बादाम खाने से आपको किस तरह अपनी इनर हेल्थ को संवारने में मदद मिलेगी यहां जानें... एलडीएल को कम करे -दैनिक जीवन में बादाम का सेवन करने से आपके शरीर में बैड कॉलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है। भीगे हुए बादाम का छिलका उतारकर खाने से हृदय को नुकसान पहुंचानेवाली आंतरिक सूजन की समस्या भी नहीं होती है। मानसिक सेहत को बेहतर करे -यदि आप शाम के समय स्नैक्स टाइम में अन्य फ्राइड स्नैक्स को हटाकर बादाम का सेवन करते हैं, बादाम मिल्क का सेवन करते हैं या बादाम युक्त फ्रूट चाट खाते हैं तो ये सभी आपकी मानसिक सेहत को बेहतर बनाने का काम करते हैं। क्योंकि बादाम के नियमित सेवन से मानसिक तनाव का स्तर तेजी से कम होता है। कार्डियोवस्कुलर सेहत को बेहतर करे -नियमित रूप से बादाम का सेवन दिल की धड़कनों के लिए भी लाभकारी होता है। पिछले दिनों लंदन के किंग्स कॉलेज में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि हृदय की पंप करने की गति और रक्त के संचार को सही बनाए रखने में बादाम का सेवन बहुत लाभ पहुंचाता है।

Top News