राजनीती शास्त्र विभाग द्वारा महात्मा गाॅंधी निमार्ण में भुमिका पर सेमीनार आयोजित

हनुमानगढ़ 7 नवंबर।श्री खुशालदास विश्वविद्यालय मे राजनीती शास्त्र विभाग द्वारा महात्मा गाॅंधी निमार्ण में भुमिका पर सेमीनार आयोजित किया गया। जिसमे मुख्य वक्ता राजनीती विभाग से प्रो. सतीश कुमार ने अपने विचार रखे। विश्वविद्यालय के दिनेश जुनेजा, कुलपति प्रो. एम. के. घड़ोलिया, कुलसचिव डाॅ. राजेश कस्वाॅ, डाॅ. कोविद कुमार, डाॅ. पवन कुमार द्वारा प्रो. सतीश कुमार का स्वागत किया किया। प्रो. सतीश कुमार ने सभागार मंे उपस्थित छात्र छात्राओ को सम्बोधित करते हुये कहा की गांधी क राष्ट्रवाद का शंखनाद सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह आंदोलन से प्रारंभ हुआ। उसके बाद उन्होंने भारत आकर चम्पारन आंदोलन (1916-17 ई.), खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन (1918 ई.), वायकोम सत्याग्रह (1924 ई.), प्रथम राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह (1920-22 ई.), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-31 ई.), भारत छोड़ों आंदोलन (1942 ई.) चलायें। गांधी ने सत्याग्रह कार्यक्रम में हडताल, धरना, असहयोग, बहिष्कार, उपवास और अनषन एव ं हिजरत आदि तरीकों को अपनाया। इन समस्त आंदोलन ने देष की स्वतंत्रता का मार्ग प्रस्तुत किया। गांधी ने अपने राष्ट्रवादी विचारों में राष्ट्रभाषा, राष्ट्रीय षिक्षा, साम्प्रदायिक एकता, स्वदेशी, स्वराज्य एवं स्वतंत्रता पर बल दिया। उन्होंने अपने राष्ट्रवाद में छुआछूत उन्मुलन, मद्य निषेध, षिक्षा, स्वदेषी आंदोलन, महिला सषक्तिकरण आदि रचनात्मक कार्यक्रम अपनाये, जिसमें उनको लोकप्रियता और जनसमर्थन मिला। गांधी के राष्ट्रवाद में उनका सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि चिंतन परिलक्षित होता है। गांधी भारतीय समाज का नवनिर्माण करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अस्पृष्यता का विरोध कर हरिजनों को मंदिर प्रवेष की वकालत की। उनका राष्ट्रवाद विष्व को एक सूत्र में बांधने हेतु समग्र विष्व के व्यक्तियों के जातीय, क्षेत्रीय, सामाजिक-आर्थिक भिन्नता से दूर स्वतंत्रता तथा समानता प्रदान करने के साथ-साथ स्वतंत्र गतिषीलता पर बल देता है। उन्होंने विष्व को ‘वसुधैव कुटुम्बकम‘ की भावना के प्रचार-प्रसार के माध्यम से मानव अधिकारों की प्रस्थापना पर बल दिया है। उनके सामाजिक राष्ट्रवाद से सम्बन्धित दर्षन मानव के विकास, उसकी गरिमा एव ं प्रतिष्ठा एव ं स्वतंत्रता के इर्द-गिर्द घूमता नजर आता है। उन्होंने तानाषाही, अत्याचार, रंगभेद, पूंजीवाद को नकारते हुए सत्य, अहिंसा, साधन और साध्य, अपरिग्रह आदि पर बल देते हुए विष्व में शांति स्थापना हेतु व्यावहारिक एवं सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। गांधी के राष्ट्रवाद में उनका राजनीतिक चिंतन भी परिलक्षित होता है। गांधी का राजनीतिक चिंतन का मूल उद्देश्य मानवहित है। उनके लिए राष्ट्रीयता और मानवता दोनों एक ही चीज है। उनके मतानुसार, राष्ट्रवाद त्याग, बलिदान, सहिष्णुता, सदाचार एवं विश्व के कल्याण के आदर्ष पर आधारित है। इस आधार पर उनका राष्ट्रवाद पष्चिम के राष्ट्रवाद से भिन्न है। गाधी ने ऐसे राष्ट्रवाद को अस्वीकार कर दिया, जिसकी बुनियाद हिंसा पर आधारित है। कार्यक्रम के अतं मे प्रो- सती‘श कुमार द्वारा उपस्थित छात्र छात्राओ की महात्मा गांधी का लेके जिज्ञासाओ का समाधान किया। कार्यक्रम का मचं संचालन डाॅ कोविद कुमार द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रो. एम. के. घड़ोलिया, डाॅ. कोविद कुमार, डाॅ. राजेश कस्वा, डाॅ. स्वाति जोशी, डाॅ. कबीर शर्मा, आदित्य शर्मा, रूपाली अग्रवाल, डाॅ. पवन कुमार, डाॅ. आस्था, डाॅ. सतीस त्रिवेदी, डाॅ. संजय दिक्षीत, डाॅ. संजीव अग्रवाल, डाॅ. विक्रम औलख, डाॅ. रविद्र, डाॅ. राधेश्याम, डाॅ. राखी, डाॅ. आशा रानी, अनु पुनीया, प्रियकंा ढालिया, स. अमरजीत सिंह, मनीष कौशिक, दीपक कुमार, कुलवन्त सिंह, कृष्ण नै.ण, उपस्थित रहे।

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