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तालिबानी दोस्ती से ब्रिक्स में चीन अकेला, QUAD में नया मोर्चा, मोदी यूं ही नहीं जा रहे अमेरिका

नई दिल्ली कोरोना महामारी के चलते दो साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश दौरे पर अमेरिका जा रहे हैं। पीएम का यह दौरा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि 25 सितंबर को वह संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे। इससे एक दिन पहले वह क्वाड देशों के नेताओं के साथ शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। पड़ोसी देश अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं के पूरी तरह से निकलने और तालिबान की हुकूमत आने के बाद जिस तरह से पाकिस्तान और चीन की सक्रियता काबुल की ओर बढ़ी है, उसने दुनिया में एक नए गठजोड़ की तरफ इशारा किया है। आइए समझते हैं। अफगानिस्तान में तालिबान और पाक-चीन पाकिस्तान पूरी तरह तालिबान के साथ मिलकर काम कर रहा है, यहां तक कि पाक खुफिया एजेंसी के प्रमुख काबुल जाते हैं और 'शेरों का गढ़' कहे जाने वाले पंजशीर पर पाक एयरफोर्स हवाई हमले करती है। इसके बाद ही तालिबान पंजशीर पर जीत हासिल कर पाता है। मतलब साफ है, तालिबान को पाकिस्तान का पूरी तरह से समर्थन प्राप्त है। उधर, चीन तालिबान से हमदर्दी दिखा रहा है। काबुल में तालिबान राज आए कुछ घंटे ही बीते थे, चीन उससे दोस्ती की बातें करने लगा। वैसे भी, चीन के वरिष्ठ मंत्रियों से तालिबान नेताओं की मुलाकातें होती रही हैं। अब अमेरिका के काबुल से निकलने के बाद चीन को बड़ा मौका हाथ लगता दिख रहा है। अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर चीन की नजर है। वह अपने कई प्रोजेक्ट अफगानिस्तान में शुरू करना चाहता है। दुनिया के कई देशों को लोन या दूसरे तरीके से अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में लगा चीन शिनजियांग क्षेत्र को शांत रखने और भारत के बिल्कुल करीब अफगानिस्तान में एक स्ट्रैटिजिक बेस हासिल करना चाहता है। पाकिस्तान में पहले से ही उसने अरबों रुपये झोंक रखे हैं। अफगानिस्तान में भी उसका दबदबा बढ़ा तो भारत के लिए टेंशन हो सकती है। कुछ दिन पहले ही बिक्स समूह की ऑनलाइन बैठक हुई थी जिसमें पीएम मोदी, रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल हुए थे। इस दौरान अफगानिस्तान और आतंकवाद का भी मुद्दा उठा था। संयुक्त घोषणा पत्र में इस बात को शामिल किया गया कि अफगानिस्तान आतंक की एक और पनाहगाह न बने। अब क्वाड समिट में टेबल के आमने सामने बैठकर चर्चा के लिए पीएम मोदी अमेरिका जा रहे हैं। ब्रिक्स के ठीक बाद क्वाड के अपने मायने हैं। बिक्स समूह में चीन भी शामिल है जबकि चार देशों का समूह क्वाड का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समुद्री रास्तों पर चीन के दबदबे को खत्म करना है। वैसे तो, इस समूह की रूपरेखा 2004 में आई सुनामी के बाद ही बन गई थी लेकिन यह आगे चलकर हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर के देशों से लगे समंदर में फ्री ट्रेड को बढ़ावा देना था। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आर्थिक और सैन्य ताकत को बढ़ने से रोकने के लिए बने क्वाड समूह की इस बैठक की अहमियत और भी बढ़ गई है। काबुल में खाली हुए स्ट्रैटिजिक स्पेस को चीन भरना चाहेगा। ऐसे में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन एक नए मकसद से क्वाड के नेताओं के साथ बैठक करेंगे। इस दौरान अफगानिस्तान का मुद्दा छाए रहने की संभावना है। भारत ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका) और क्वाड (अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) दोनों का सदस्य है। बाइडेन के क्वाड समिट से पहले 9 सितंबर को मोदी ने वर्चुअल रूप से ब्रिक्स समिट की अध्यक्षता की थी। अफगानिस्तान के हालात के चलते इस बैठक पर अमेरिका ज्यादा ध्यान नहीं गया। अब व्हाइट हाउस की मानें तो बाइडेन-हैरिस प्रशासन क्वाड को प्राथमिकता में रखना चाहता है। अब तक क्वाड बैठक का जो एजेंडा सामने आया है उसमें कोविड-19 से निपटने, जलवायु संकट, तकनीकी पर साझेदारी, साइबर स्पेस और स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देना शामिल है। क्वाड और चीन क्वाड के विस्तार की भी चर्चा चल रही है। इसमें दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और वियतनाम जैसे कुछ और देशों को जोड़ा जा सकता है। क्षेत्र में चीन का कई देशों से विवाद है और उनके साथ आने से चीन के खिलाफ समूह की ताकत बढ़ेगी। खास बात यह है कि इस ग्रुप में शामिल हर देश की चीन को खतरा समझने की अपनी-अपनी वजह है और वह अपने राष्ट्रीय हितों के लिए बीजिंग की क्षेत्रीय ताकत को सीमित करना चाहते हैं। दरअसल, अमेरिका ही नहीं दुनियाभर के देश इस बात को लेकर आशंकित हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद चीन, पाकिस्तान के साथ उसका नया गठजोड़ उभर सकता है। इसमें कतर, तुर्की जैसे मुस्लिम देशों की भी अहम भूमिका होगी जो सीधे तौर पर तालिबान को सपोर्ट कर रहे हैं। ऐसे में क्या चीन के रवैये के चलते ब्रिक्स की भूमिका घटेगी और क्षेत्र में क्वाड का दबदबा बढ़ने वाला है?

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