तालिबान की मदद को लेकर घिरा पाक, US ने कहा- तालिबान को मान्यता देने की जल्दबाजी नहीं करें इमरान, होगी रिश्तों की समीक्षा
वाशिंगटन,तालिबान और इमरान सरकार के रिश्ते उजागर होने के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। बाइडन प्रशासन ने पाकिस्तान के साथ रिश्तों की नए सिरे से समीक्षा करने का फैसला किया है। इस समीक्षा से अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंध और खराब हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो यह तंग पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी होगी। बता दें कि तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंधों को लेकर इमरान सरकार लगातार छूट बोलती रही है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अमेरिकी सदन में यह जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि तालिबान शासित सरकार को मान्यता या कोई मदद चाहिए तो उसे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा। इसके साथ उन्होंने पाकिस्तान को भी आगाह किया कि वह तालिबान को मान्यता देने में जल्दबाजी नहीं दिखाए।
पाक का दोहरा चरित्र आया सामने
प्रो. हर्ष पंत ने कहा कि तालिबान के मामले में पाकिस्तान का दोहरा चरित्र सामने आया है। पाकिस्तान एक ओर जहां तालिबान की मदद करता रहा है, वहीं दूसरी ओर दुनिया के समक्ष नापाक होने का दावा करता रहा है। पाकिस्तान हर बार कहता रहा है कि वह अफगानिस्तान सरकार की मदद कर रहा है। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद पाकिस्तान की कलई खुल गई है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद जिस तरह से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने तालिबान सरकार के गठन में दिलचस्पी दिखाई है उससे वह पूरी तरह से बेनकाब हो गया है।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने तालिबान को लेकर दुनिया को गुमराह किया है। इसको देखते हुए अमेरिका, पाकिस्तान के साथ संबंधों की दोबारा समीक्षा कर रहा है। पाकिस्तान के इस दोहरे चरित्र को लेकर अमेरिकी संसदों ने भी सख्त नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की दगाबाजी को लेकर अमेरिका में बाइडन प्रशासन कटघरे में खड़ा हो गया है। तालिबान और पाकिस्तान के संबंधों को लेकर बाइडन प्रशासन ने पहली बार माना है कि पाक के हक्कानी नेटवर्क के साथ संपर्क था। पाक ने हक्कानी नेटवर्क को अपने देश में शरण दी।
उन्होंने कहा कि 9/11 हमलों के बाद से अमेरिका ने पाकिस्तान को करीब 23 अरब डालर की सुरक्षा सहायता और अतिरिक्त राशि प्रदान की है। प्रो पंत ने कहा कि अमेरिका द्वारा दी जा रही ये मदद एक सहयोगी पाकिस्तान के लिए थी, लेकिन अब पाक आइएसआइ और तालिबान के रिश्ते उजागर हो गए हैं। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि क्या अमेरिका, अब पाकिस्तान को वित्तीय मदद देगा।
अमेरिकी सीनेट में पाक को लेकर हंगामा
अमेरिकी सांसदों ने पाकिस्तान के दोगले रवैये को लेकर उस पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। सीनेट के कुछ सदस्यों ने उसका गैर-नाटो सहयोगी के तौर पर दर्जा खत्म करने की अपील की है। उसे मिलने वाली वित्तीय मदद को रोकने के लिए भी कहा है। पाकिस्तान ने अमेरिका की पीठ पर छुरा भोंका है। अफगानिस्तान में बड़ी संख्या में अमेरिकी सैनिकों की कुर्बानी हुई। पाकिस्तान अमेरिका को मदद देने के नाम पर अरबों डालर डकारता रहा है। पाकिस्तान को यह भी चेतावनी दी गई है कि वह तालिबान सरकार को मान्यता देने में जल्दी न दिखाए।
बाइडन की रेटिंग 50 फीसद से नीचे
उधर, अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद राष्ट्रपति जो बाइडन की लोकप्रियता में भी गिरावट आई है। अफगानिस्तान के मामले में राष्ट्रपति बाइडन को सेना के दिग्गज अधिकारियों और अपनी ही पार्टी के सदस्यों का विरोध झेलना पड़ रहा है। बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार उनकी रेटिंग 50 फीसद से नीचे गिर गई है। इसके चलते अगले साल होने वाले महत्वपूर्ण मिड टर्म चुनाव में पार्टी की स्थिति कमजोर हो सकती है।
अफगान समस्या को निपटाने में राष्ट्रपति बाइडन से हुई चूक
अमेरिका में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि अफगानिस्तान की समस्या को निपटाने में राष्ट्रपति बाइडन से चूक हुई है। यह कहा जा रहा है कि इस समस्या का निस्तारण और बेहतर ढंग से किया जा सकता था। राष्ट्रपति बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी के कई सदस्य उनके फैसले के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने आश्वासन दिया था कि सैनिकों के जाने से पहले कोई भी अमेरिकी अफगानिस्तान में नहीं फंसेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अभी भी सौ से अधिक अमेरिकी नागरिक फंसे हैं। इसके अलावा कई अन्य देशों के नागरिक अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं।
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