चार धाम यात्रा 2018: बदरीनाथ धाम के बारे में ये बातें जान लें
अक्षय तृतीय के साथ ही 18 अप्रैल को चारधाम तीर्थयात्रा का क्रम शुरू हो जाएगा और बदरीनाथ धाम मंदिर के कपाट 30 अप्रैल की सुबह 4.30 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। चारधाम की यात्रा में बदरीनाथ धाम काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे बसा यह मंदिर भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। आइए जानते हैं बदरीनाथ मंदिर के बारे में यह जरूरी बातें..
बदरीनाथ मंदिर को आदिकाल से स्थापित और सतयुग का पावन धाम माना जाता है। बड़ी बात यह है कि बदरीनाथ के दर्शन से पूर्व केदारनाथ के दर्शन करने की बात कही जाती है। बदरीनाथ मंदिर के कपाट भी साल में सिर्फ छह महीने के खुलते हैं जो अप्रैल के अंत या मई के प्रथम पखवाड़े में दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं। लगभग 6 महीने तक पूजा-अर्चना चलने के बाद नवंबर के दूसरे सप्ताह में मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
बदरीनाथ मंदिर में एक कुंड है, जिसे तप्त कुंड कहा जाता है, जिसमें से गर्म पानी निकलता है। इस कुंडों में स्नान का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही इससे स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। इसी कुंड से निकलने वाली गर्म पानी की धारा दिव्य शिला से होते हुए दो तप्त कुंडों तक जाती है, जिसमें यात्री स्नान करते हैं। माना जाता है गर्म पानी के कुंड में स्नान से करने से शरीर की थकावट के साथ ही चर्म रोगों से भी निजात मिलती है। इस पानी में गंधक की मात्रा काफी ज्यादा है। यही कारण है कि चारधाम यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्री इन तप्त कुंडों में स्नान के लिए भीड़ जुटती है।
तमिल पंडितों के अनुसार, बदरीनाथ भगवान विष्णु के 108 प्रमुख प्रमुख मंदिरों में से एक हैं। जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं।
कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देखकर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
बदरीनाथ धाम के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने कहा है की कलियुग में वे अपने भक्तों को बद्रीनाथ में मिलेंगे। पुराणों में बदरीनाथ धाम को पृथ्वी पर बैकुंठ की उपमा दी गई है क्योंकि यहां साक्षात् भगवान विष्णु विराजमान हैं। बदरीनाथ के बारे यह भी माना जाता है कि यह कभी भगवान शिव और देवी पार्वती का निवास हुआ करता था। रोते हुए बाल रुप में आए विष्णु भगवान ने इस स्थान को शिव से मांग लिया था। इस तरह शिव और पार्वती वो जगह छोडकर चले गए और विष्णु का वास वहां हो गया।
बदरीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है। इसे नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं यहां पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण हुए। बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं जो रावल कहलाते हैं। यह जब तक रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। रावल के लिए स्त्रियों का स्पर्श भी पाप माना जाता है।
कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देखकर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
बदरीनाथ धाम के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने कहा है की कलियुग में वे अपने भक्तों को बद्रीनाथ में मिलेंगे। पुराणों में बदरीनाथ धाम को पृथ्वी पर बैकुंठ की उपमा दी गई है क्योंकि यहां साक्षात् भगवान विष्णु विराजमान हैं। बदरीनाथ के बारे यह भी माना जाता है कि यह कभी भगवान शिव और देवी पार्वती का निवास हुआ करता था। रोते हुए बाल रुप में आए विष्णु भगवान ने इस स्थान को शिव से मांग लिया था। इस तरह शिव और पार्वती वो जगह छोडकर चले गए और विष्णु का वास वहां हो गया।
इस मंदिर में बहुत से उत्सव मनाए जाते हैं लेकिन इनमें सबसे महत्वूर्ण माता मूर्ति मेला है, जो गंगा नदी के तट पर होता है। बदरीकाश्रम क्षेत्र में माता मूर्ति मंदिर नारायण पर्वत की तलहटी पर स्थित है। तब भगवान बदरीनाथ ने प्रतिवर्ष बामन द्वादशी को माता मूर्ति से मिलने के लिए आने का वचन दिया था। आज भी बदरीनाथ अपनी माता को दिए वचन का निर्वहन करते आ रहे हैं। बदरीनाथ के प्रतिनिधि के रुप में भगवान उद्धव जी महाराज उत्सव डोली में बैठकर माता मूर्ति से मिलने के लिए जाते हैं। दिनभर माता के साथ रहकर शाम को बदरीनाथ धाम में विराजमान हो जाते हैं।.
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