कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश में फेल हुए राहुल गांधी और सोनिया गांधी, कमलनाथ सरकार के अस्तित्व पर संकट
नई दिल्ली
कर्नाटक में सरकार गंवाकर सबक नहीं सीखने वाली कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व एक बार फिर मध्य प्रदेश में फेल होता नजर आ रहा है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। 15 साल बाद मध्य प्रदेश में सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व पिछले कई दिनों से चले आ रहे इस संकट को संभालने में बुरी तरह से असफल साबित हुआ।
बताया जा रहा है कि इस पूरे संकट की नींव विधानसभा चुनाव के दौरान ही पड़ गई थी। सिंधिया को विधानसभा चुनाव 2013 और फिर 2018 के दौरान शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की कोशिश हुई, पर सफल नहीं रही। करीब सवा साल पहले हुए चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सिंधिया को बड़े चेहरे के रूप में प्रचारित किया गया था। कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष तो सिंधिया को चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था।
सरकार में ज्योतिरादित्य हाशिए पर डाल दिए गए
ज्योतिरादित्य को उम्मीद थी कि सत्ता में आए तो उन्हें भी मजबूत हिस्सेदारी मिलेगी, लेकिन सत्ता में आते ही सिंधिया हाशिए पर डाल दिए गए। कमलनाथ की सरकार में उनकी किसी बात को तवज्जो नहीं मिली। आरोप है कि दिग्विजय और कमलनाथ की जोड़ी ने हर पल सिंधिया समर्थक मंत्रियों को भी परेशान किया। इसी उपेक्षा के चलते कई बार सिंधिया ने अपनी नाराजी को सार्वजनिक भी किया। उन्होंने सड़क पर उतरने की चेतावनी तक दी। सिंधिया समर्थकों ने मांग की कि उनके नेता को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद दिया जाए लेकिन इस पर कांग्रेस आलाकमान तैयार नहीं हुआ।
सिंधिया की इस उपेक्षा पर कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत शीर्ष नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया। बताया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सोनिया गांधी से मिलकर अपना पक्ष रखना चाह रहे थे लेकिन उन्हें समय नहीं दिया गया। ज्योतिरादित्य के बगावती रुख से मध्य प्रदेश सरकार पर मंडराते खतरों को देखते हुए सोनिया ने कमलनाथ को समाधान के सभी विकल्पों का रास्ता खोले रखने को कहा। कांग्रेस की ओर से संकेत यह भी दिया गया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा उम्मीदवार बनाने में हाईकमान को कोई दिक्कत नहीं है।
दिग्विजय सिंह ने सिंधिया पर कसा तंज
सोनिया गांधी के इस संकेत के बाद भी सिंधिया चुप रहे और अचानक उन्होंने सोमवार को पीएम मोदी से मुलाकात की। इसके बाद उनके बीजेपी में आने की अटकलें तेज हो गईं। दरअसल सोनिया गांधी ने सिंधिया को मनाने में काफी देरी की। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार हाईकमान ने कमलनाथ से साफ कहा कि राज्यसभा चुनाव को लेकर शुरू हुआ मौजूदा संकट सूबे के तीनों वरिष्ठ नेताओं के आपसी अविश्वास का नतीजा है। इसीलिए समाधान का रास्ता निकालने की जिम्मेदारी भी खासतौर पर मुख्यमंत्री कमलनाथ और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की है। जिस दिग्विजय सिंह को यह जिम्मेदारी दी गई, उन्होंने सिंधिया पर तंज कसा कि उनको स्वाइन फ्लू हो गया है।
इस विवाद से पहले मध्य प्रदेश में राज्यसभा की दो सीटें कांग्रेस को मिलनी तय थीं। इसमें एक पर दिग्विजय की उम्मीदवारी इस लिहाज से तय मानी जा रही थी कि कमलनाथ और उनकी गोलबंदी है। इन दोनों की गोलबंदी की वजह से सिंधिया को दूसरी सीट पर अपनी दावेदारी पुख्ता नजर नहीं आ रही थी। सिंधिया के इस्तीफे की वजह भी यही मानी जा रही है। मध्य प्रदेश में अंदरूनी गोलबंदी के इस खेल में कांग्रेस की सरकार दांव पर लगाने के दोनों वरिष्ठ नेताओं के रुख से कांग्रेस हाईकमान काफी असहज था। बाद में सिंधिया को बगावती तेवर छोड़ने के लिए राज्यसभा सीट या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद दोनों विकल्प का फॉर्म्यूला दिया गया। कांग्रेस ने यह ऑफर देने में काफी देरी कर दी और सिंधिया ने इस्तीफा दे दिया।
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