क्या बिहार विधानसभा चुनाव के पहले जेडीयू और बीजेपी छोड़ देंगे एक दूसरे का साथ?

नई दिल्ली, 05 जून 2019,बिहार में जारी राजनीतिक हलचल के बीच पटना के चौक चौराहों पर पुरानी चर्चा एक बार फिर जिंदा हो उठी है कि क्या बीजेपी और जेडीयू के बीच एक बार फिर से सियासी तलाक होने वाला है? क्या अक्टूबर-नवंबर 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश और बीजेपी की राहें जुदा होने वाली हैं? 30 मई से लेकर अब तक रोजाना कुछ न कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिससे नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच की दूरी बढ़ती ही दिख रही है. इस घटनाक्रम में नीतीश को आरजेडी की ओर से बार-बार किया जा रहा इशारा शामिल है. सोमवार यानी कि 3 जून को आरजेडी के सीनियर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह आगे आए और नीतीश को महागठबंधन में शामिल होने का न्यौता दिया. पूर्व केंद्रीय मंत्री और आरजेडी के उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा बिहार में हालात अब ऐसे बन गए हैं कि सबको एकजुट होना होगा और नीतीश को भी वापस हमारे महागठबंधन में आ जाना चाहिए. आरजेडी के उदार चेहरों में शामिल रघुवंश प्रसाद ने कहा कि अगर बीजेपी को हटाना है तो सभी गैर भाजपा दल साथ आएं, उन्होंने कहा कि सभी का मतलब निश्चित रूप से नीतीश भी हैं. पत्रकारों ने लगे हाथ रघुवंश प्रसाद को तेजस्वी यादव की वो बात याद दिलाई, जहां तेजस्वी अक्सर कहते थे कि नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन के सारे रास्ते बंद हैं. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि राजनीति में कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है. रघुवंश प्रसाद ने कहा कि तेजस्वी ने क्या स्टाम्प पेपर पर लिखकर दिया था कि नीतीश कुमार नहीं आ सकते? रघुवंश को आरजेडी का उदार चेहरा माना जाता है. ऐसा भी कहा जा रहा है कि पार्टी ने जानबूझकर उन्हें आगे किया है. ताकि नीतीश को वापस लाया जा सके. जेडीयू के नेता और नीतीश कुमार रघुवंश प्रसाद के इस ऑफर पर चर्चा ही कर रहे थे कि कुछ घंटे-बीतते-बीतते बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी का एक बड़ा बयान आया. राबड़ी ने नीतीश कुमार को स्पष्ट ऑफर दिया और कहा कि अगर वो महागठबंधन में आते हैं तो उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी. राबड़ी के बाद आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी भी नीतीश के लिए एक ऑफर लेकर आए. उन्होंने नीतीश का गुणगान किया और कह कि भगवान ने नीतीश कुमार को सेकुलर चेहरा बनने का एक और मौका दिया है. एक मौका पहले महागठबंधन में मिला था जिसे उन्होंने एनडीए में फिर जाकर गंवा दिया. नीतीश कुमार को जहां आरजेडी से बार-बार पुचकार मिल रही है वहीं बीजेपी से उनकी दूरी बढ़ती ही जा रही है. अपने सांसदों को मोदी कैबिनेट में ताजपोशी कराने के लिए 30 मई को दिल्ली पहुंचे नीतीश कुमार खाली हाथ लौटे. लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी 17 में से 16 सीटें जीती थीं. नीतीश कुमार ने इसका जवाब 2 जून को दिया जब उन्होंने बिहार मंत्रिमंडल का विस्तार किया. नीतीश के मंत्रिमंडल में 8 नए मंत्री शामिल हुए लेकिन बीजेपी के एक भी विधायक को जगह नहीं मिली. नीतीश और बीजेपी के बीच रिश्तों में तो खटास चल रही रही थी, तभी बिहार में इफ्तार का सीजन आ गया. बीजेपी और जेडीयू दोनों ने अपनी अपनी इफ्तार पार्टियां दी, लेकिन न तो नीतीश बीजेपी के इफ्तार पार्टी में गए और न ही नीतीश के इफ्तार में सुशील मोदी आए. हां, नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की इफ्तार पार्टी में जरूर पहुंचे थे. इस पार्टी में बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी भी पहुंचे. इस इफ्तार पार्टी की एक तस्वीर बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों को और भी कड़वा कर गई. अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले गिरिराज सिंह ने इस तस्वीर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कितनी खूबसूरत तस्वीर होती जब इतनी ही चाहत से नवरात्रि पर फलाहार का आयोजन करते और सुंदर सुदंर फोटो आते? अपने कर्म-धर्म में हम पिछड़ क्यों जाते और दिखावा में आगे रहते हैं. गिरिराज सिंह की इस टिप्पणी ने आग में घी का काम किया. उनकी इस टिप्पणी पर जेडीयू के नेता सिरे से उबल पड़े. खुद नीतीश ने कहा कि वो खबरों में बने रहने के लिए ऐसा करते हैं. जेडीयू प्रवक्ता संजय कुमार सिंह ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा बयान कोई मानसिक तौर पर बीमार व्यक्ति ही दे सकता है. आरजेडी द्वारा नीतीश को लुभाने की ये कवायद अभी लंबी चलने वाली है. बीजेपी बिहार में बैकफुट पर है. अमित शाह ने गिरिराज को फटकार लगाई है और कहा है कि ऐसे बयानों से परहेज करें. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो नीतीश कुमार भले ही बीजेपी के लिए जरूरी नहीं हो, लेकिन वे एनडीए के खेमे के ऐसे सेकुलर चेहरे हैं जिसे बीजेपी की सख्त जरूरत रहती है. वहीं आरजेडी के लिए नीतीश कुमार वो नेता हैं जो पार्टी को एक बार फिर बिहार की सत्ता में साझीदार बना सकते हैं.

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