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दिल्ली में 2014 के मुकाबले 5% कम वोटिंग, जानें क्या हैं इस जनादेश के मायने

नई दिल्ली, 13 मई 2019,लोकसभा चुनाव में छह दौर का मतदान पूरा हो गया है. रविवार को सात राज्यों की 59 सीटों पर मतदान हुआ. राजधानी दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर भी इस दौर में ही मतदान कराया गया, जहां वोटिंग प्रतिशत 2014 के मुकाबले काफी कम रहा. पिछले चुनाव में दिल्ली के 65.1 फीसदी मतदाताओं ने अपने वोट का इस्तेमाल किया था, जबकि इस बार यह घटकर 60 फीसदी रह गया है. चुनावी विश्लेषण में यह माना जाता है कि ज्यादा वोटिंग सत्ता के विरोध का प्रतीक होती है. तो ऐसे में दिल्ली की कम वोटिंग के क्या मायने हैं ये समझना भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक जो परंपरा रही है, उसके तहत दिल्ली की लोकसभा सीटें जिस पार्टी को मिलती हैं, उसी पार्टी को केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिलता रहा है. हालांकि, दिल्ली में 60 प्रतिशत वोटिंग भले ही 2014 से कम है, लेकिन उससे पहले हुए लोकसभा चुनावों की वोटिंग का ट्रेंड देखा जाए तो आंकड़े थोड़ा हैरान करने वाले हैं. 1977 से लेकर 2009 तक ऐसे तीन ही मौके आए हैं जब दिल्ली में वोटिंग प्रतिशत 60 पार कर पाया हो. साल 1977 में यहां सबसे ज्यादा 71.3 फीसदी वोटिंग हुई थी. इसके बाद 1980 में 64.9 और 1984 में 64.5 फीसदी वोटिंग हुई. यह चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ था. लेकिन 1989 से लेकर 2009 तक हुए सात लोकसभा चुनावों में एक बार भी वोटिंग प्रतिशत 60 का आंकड़ा नहीं छू पाया. कई बार तो यह 50 फीसदी भी नहीं पहुंच सका. अब तक यह रहा वोटिंग प्रतिशत 1989- 54.3% 1991- 48.5% 1996- 50.6% 1998- 51.3% 1999- 43.5% 2004- 47.1% 2009- 51.9% इसके बाद दिल्ली में अन्ना आंदोलन हुआ. केंद्र की कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. लोकपाल आंदोलन के बीच कांग्रेस के खिलाफ लोगों में गुस्सा नजर आया. जिसका नतीजा ये हुआ कि 2014 में दिल्ली की जनता ने 65 फीसदी मतदान किया और सातों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलाई. हालांकि, दिल्ली से जुड़ा एक दिलचस्प आंकड़ा ये भी है कि कम वोटिंग प्रतिशत में भी यहां की जनता एक चुनाव में किसी एक पार्टी को ही प्रमुखता से चुनती रही है. मसलन, 2009 में सभी सात सीटें कांग्रेस को मिलीं, 2004 में कांग्रेस को 6 सीटें मिलीं, 1999 में बीजेपी को सातों सीट मिलीं, 1998 में बीजेपी को 6 सीटें मिलीं. इससे पहले भी कभी ऐसे चुनाव नतीजे नहीं आए, जिसमें कांग्रेस या बीजेपी दोनों में आधी-आधी सीटें बंट गई हों. यहां तक कि 1989 में तो बीजेपी महज 26 फीसदी पाकर भी चार सीट जीत गई और कांग्रेस 43 फीसदी वोटर लेकर भी 2 सीटों पर ही जीत सकी. जबकि एक सीट जनता दल को मिली थी. पीएम नरेंद्र मोदी भले ही 2014 में सत्ता विरोधी लहर की बात करते हुए 2019 में सत्ता समर्थन लहर का दावा कर रहे हों, लेकिन आकंड़ों पर गौर किया जाए तो दिल्ली के मतदाता कम वोट करके भी किसी एक पार्टी को ही बहुमत देते रहे हैं. aajtak

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