शिंदे, हिमंत, माणिक... बदल चुकी है मोदी की बीजेपी, इन 3 कारणों से खिंचे चले आ रहे हैं नेता
एकनाथ शिंदे, हिमंत बिस्व सरमा और माणिक साहा... इन तीनों में एक चीज कॉमन है। ये या तो गैर-भाजपाई हैं या फिर इनकी हाल में भगवा पार्टी में एंट्री हुई है। इन्हें देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) , सर्बानंद सोनोवाल (Sarbananda Sonowal) और बिप्लब देब (Biplab Deb) जैसे पुराने बीजेपी दिग्गजों की कीमत पर टॉप पोस्ट दी गई। पिछले साल कर्नाटक सीएम के तौर पर बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) की जगह लेने वाले बसवराज बोम्मई (Basavaraj Bommai) की जड़ें भी जनता दल से जुड़ी हैं। हालांकि, पार्टी के कई दिग्गजों के ऊपर उन्हें वरीयता दी गई। यह सही है कि हर एक मामले में राजनीतिक संदर्भ बिल्कुल अलग रहा है। लेकिन, ये भारतीय जनता पार्टी (BJP) की बदली तस्वीर की ओर भी इशारा करता है। इससे पता चलता है कि वह दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करने के लिए किस कदर फ्लेक्सिबल है। सिर्फ यही नहीं, वह उन्हें बढ़ने के मौके भी देने को तैयार है। यह पहले जैसा नहीं है। पुरानी बीजेपी विधारधारा के लिहाज से बाहर से आए शख्स को सरकार में मुखिया का पद देने से कतराती थी। असम में सरमा के प्रमोशन ने यह ट्रेंड तोड़ा है।
महाराष्ट्र की ही बात कर लेते हैं। यहां बीजेपी और शिवसेना वैचारिक स्तर पर एक जैसी रही हैं। हालांकि, दोनों का गठबंधन पहले सिर्फ सीएम पद को लेकर टूट चुका है। संख्या बल को देखते हुए बीजेपी सीएम पद के लिए स्वाभाविक दावेदार थी। लेकिन, उसने कदम पीछे खींच लिए। इस तरह पार्टी ने शिंदे के लिए रास्ता खोल दिया। उसे इस बात का पूरी तरह एहसास था कि उसका यह कदम शिवसेना पर ठाकरे परिवार की पकड़ को पूरी तरह कमजोर कर देगा।
महाराष्ट्र में यह कदम उठाकर बीजेपी ने अंदरखाने बड़ा मैसेज दिया। संदेश यह था कि बीजेपी वंशवादी पार्टियों में ऐसे होनहार नेताओं को समर्थन देगी जो हाथ में कमान रखने वालों को चुनौती दे सकते हैं। यही कारण है कि पार्टी ने शिंदे को सीएम बन जाने दिया। इसने शिवसेना में ठाकरे की पकड़ को ढीला कर दिया।
विचारधारा की बंदिशें नहीं
विचारधारा के चश्मे से बीजेपी को देखना गलत नहीं है। लेकिन, 2014 से उसकी राजनीतिक सफलता में सिर्फ यही एक बात नहीं है। बीजेपी ने दिखाया है कि उससे जुड़ने के लिए विचारधारा की बंदिशें नहीं हैं। वह दूसरी विचारधारा से जुड़ी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं और लोगों को भी अपने साथ जोड़ने के लिए तैयार है। बेशक, एंट्री करने वाले को पार्टी के राजनीतिक एजेंडे को अपनाना होगा। इस तरह से जुड़ने वाले लोग सीनियरिटी लिस्ट में कहां फिट होंगे, यह बंधन भी टूट गया है। बीजेपी में आज बहुत सारे मॉडल हैं जो लोगों को जुड़ने और उन्हें पार्टी के भीतर बढ़ने का मौका देते हैं। यह पूरी तरह से पार्टी की जरूरत पर निर्भर करता है।
हरियाणा और मध्यप्रदेश में मनोहर लाख खट्टर और शिवराज सिंह चौहान के तौर पर बीजेपी के दो पुराने सिपहसालार हैं। हालांकि, दुश्यंत चौटाला और ज्योतिरादित्य सिंधिया को जोड़कर उसने फ्लेक्सिबिलिटी, मोबिलिटी और अपॉर्चुनिटी के मॉडल को पेश किया है। हरियाणा में सरकार बनाने में मदद करने वाले चौटाला को पार्टी ने डिप्टी सीएम बनाया। वहीं, एमपी के पूर्व सीएम कमलनाथ की कुर्सी हिलाने वाले सिंधिया को केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया गया।
बीजेपी 2.0 का मॉडल तीन स्तंभों पर खड़ा
यह मॉडल बीजेपी के भीतर भी काम करता है। गुजरात और उत्तराखंड में चुनाव से पहले सत्ता विरोधी लहर को थामने के लिए उसने चुनाव से ऐन पहले मुख्यमंत्रियों को बदला। उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी के मामले में पार्टी ने दिखाया कि पार्टी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भरपूर अवसर देती है।
यह सब कुछ क्यों महत्वपूर्ण है? इसका जवाब है कि गतिशीलता और अवसर बेहद जरूरी हैं। बिल्कुल इन्हीं कारणों से कांग्रेस का बुरा हाल हुआ। उसके नेता भाग रहे हैं। पार्टी को विभाजन और बगावत का सामना करना पड़ा। शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने क्षेत्रीय पार्टियां बना लीं।
बीजेपी मोबिलिटी, फ्लेक्सिबिलिटी और अपॉर्चुनिटी तीनों की पेशकश कर रही है। उसकी सोच बहती नदी सी है। उसने जड़ता को खत्म किया है। उसे टैलेंट और होनहार नेताओं की जरूरत है। इसके लिए उसने अपने दरवाजे खुले रखे हैं। अवसर और तरक्की के लिहाज से ये सभी बातें बीजेपी को आकर्षक बनाती हैं।nbt
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