इंदिरा की 1971 की जीत जैसी है मोदी की 2019 की जीत

नई दिल्ली बीजेपी को मिली बंपर जीत ने राजनीतिक पंडितों को अपने 'समीकरणों' पर फिर से विचार करने पर मजबूर कर दिया है। बीजेपी ने भी इस जीत के लिए कई नए कदम उठाए। बीजेपी ने इस बार राज्यवार इलाकों पर ध्यान दिया और मजबूत पकड़ बनाई। बीजेपी शुरू से ही इस रणनीति पर काम कर रही थी कि राज्य के स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करेंगे तो केंद्र में बड़ी जीत मिल सकती है। पहली बार ऐसा हुआ है कि जब किसी गैर-कांग्रेसी सरकार को इतना बड़ा जनादेश मिला हो। बीजेपी की यह जीत इंदिरा गांधी की 1971 की जीत के लगभग बराबर है। बीजेपी ने 13 राज्यों में खुद के दम पर और तीन राज्यों (यूपी, महाराष्ट्र और बिहार) में सहयोगियों दम पर 50 प्रतिशत से भी ज्यादा वोट हासिल किए हैं। जैसी जीत बीजेपी को मिली है, वैसी जीत अब तक इतिहास में सिर्फ तीन बार देखने को मिली। 1971 में, जब कांग्रेस को 12 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले और पार्टी 518 में से 352 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रहीं। 1980 में, इंदिरा कांग्रेस ने 542 में से 353 सीटें हासिल की और 13 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किए थे। इसके बाद 1984 में, जब राजीव गांधी के नेतृत्व में आज तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की। इस चुनाव में कांग्रेस 404 सीटों पर विजयी रही थी और 17 राज्यों में उसे 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। अब स्थिति काफी उलट नजर आ रही है। बीजेपी इस बड़ी जीत के साथ अपने अब तक के राजनीतिक शीर्ष पर है, वहीं कांग्रेस की हालत 1990 की बीजेपी जैसी हो गई है। जिन क्षेत्रीय दलों ने 1990 से 2014 तक काफी दबदबा कायम किया, अब संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि उनके पुराने समीकरण अब काम करते नजर नहीं आ रहे हैं। बीजेपी के लिए जादू बीजेपी को 2019 में पूरे देश से समर्थन मिला। ऐसा समर्थन कांग्रेस को 1984 में मिला था, जबकि उस दौरान बीजेपी महज 2 सीट जीत पाई थी। पार्टी को 6 राज्यों में 10% वोट मिला था, जो इस बात का इशारा था कि यदि पार्टी मेहनत करे तो इन राज्यों में होने वाले चुनाव में उसे बढ़त मिल सकती है। 1989 में बीजेपी को पहला बड़ा टर्निंग पॉइंट मिला और पार्टी को देश भर में 85 सीटें मिलीं। राज्यों पर ध्यान देते हुए देश में बड़ा समर्थन हासिल करने का फॉर्म्युला बीजेपी को तभी मिला था। पार्टी ने 1993 में नारा भी दिया था, 'आज चार प्रदेश, कल सारा देश'। उस दौरान बीजेपी को एमपी, यूपी, राजस्थान और हिमाचल में जीत हासिल की थी। क्षेत्रीय अपेक्षाएं इसमें अब कोई संदेह नहीं रह गया है कि एसपी-बीएसपी गठबंधन अब अपने खात्मे पर आ गया है। दोनों पार्टियां वोटरों पर अपनी पकड़ खत्म कर चुकी हैं। महागठबंधन का पहला प्रयोग लालू प्रसाद यादव ने बिहार में किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 39 प्रतिशत वोट मिले, जिसमें बीजेपी को 30 प्रतिशत, एलजेपी 6% और आरएलएसपी को 3% वोट मिले। यूपी को 28 प्रतिशत वोट मिले, जिसमें आरजेडी को 20 प्रतिशत और कांग्रेस को 8 प्रतिशत वोट मिले। उस चुनाव में जेडीयू अकेले मैदान में उतरी थी और 16 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। लालू यहां थोड़े आगे निकले और अपने साथ जेडीयू को मिलाकर वोट प्रतिशत के मामले में एनडीए से आगे हो गई। इस फॉर्म्यूले ने 2015 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त काम किया और आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस के महागठबंधन में 243 में से 178 पर जीत दर्ज की है। एनडीए ने 30 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 58 सीटें जीतीं। 2019 के चुनाव ने इन सभी समीकरणों को हिलाकर रख दिया और क्षेत्रीय पार्टियों को अलग हटकर रणनीति पर विचार करने को मजबूर कर दिया। सबसे पुरानी पार्टी के लिए संदेश हालांकि 2019 में कांग्रेस ने 52 सीटें जीतीं हैं, जो 2014 में जीती 44 सीटों से ज्यादा है। माना जा रहा है कि कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर में गुजर रही है। 2014 की तरह 2019 में भी कांग्रेस का वोट शेयर 19.5% के आसपास ही रहा। हालांकि देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस देश भर के कई राज्यों में खाता भी नहीं खोल पाई। कांग्रेस को 52 सीटों में से सबसे ज्यादा 31 सीटें केरल, पंजाब और तमिलनाडु से मिली हैं। इन्हीं तीन राज्यों ने कांग्रेस को 50 सीटों का आंकड़ा पार करने में मदद दी। इसके अलावा तेलंगाना में कांग्रेस को 2014 में 2 और 2019 में 3 सीटें मिली हैं, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को 2 सीटें मिली हैं। 2018 में कांग्रेस ने एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव जीते थे। कांग्रेस को जीत के बावजूद कांग्रेस और बीजेपी का वोट प्रतिशत लगभग बराबर था। 1989 से 2014 तक कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे राज्यों और केंद्र में सत्ता के करीब रही है।

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