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वेदों पर आस्था और धर्म पर चलने वाले लोग थे आर्य

यह पुस्तक विश्व के प्रथम सभ्य मानव समूह अर्थात आर्यों की प्रामाणिक कथा है। निरंतर शोध व संदर्भित ग्रंथों के अध्ययन के बाद ही ऐसे ग्रंथ की रचना संभव है। लेखक मनोज सिंह ने आत्मकथ्य शैली का संबल लिया है और आर्य व आर्या के चुटीले संवादों के माध्यम से सतयुग, सरस्वती, सिन्धु सभ्यता से लेकर आर्य संस्कृति के प्रभाव, पशुपालन, अर्थव्यवस्था, जीवन शैली, समाज, शासन, दर्शन आदि सभी बिंदुओं को समेटा है। पुस्तक में कहा गया है कि वेदों पर आस्था और धर्म पर चलने वाले लोग आर्य थे। लेखक ने कहा है कि वेद हमारी पहचान हैं, इसलिए हम श्रेष्ठ हैं व स्वयं को आर्य कहते हैं। पुस्तक में आर्यों को लेकर भ्रमों का निवारण भी किया है। इस उपक्रम में उन्होंने एजेंडा लेखकों व वामपंथी छद्म इतिहासकारों के कुतर्कों का सटीक जवाब दिया है। वह कहते हैैं, आर्यों को बाहरी कहना विश्व इतिहास लेखन का सबसे बड़ा झूठ है। इस उपक्रम में उन्होंने विदेशी इतिहासकारों के संदर्भ दिए हैं, जिनमें वे भारत की प्राचीनता एवं महत्ता को स्वीकार करते हैं। जैसे विलियम जोन्स संस्कृत भाषा पर कहते हैं 'प्राचीन संस्कृत भाषा का गठन अद्भुत है और वह ग्रीक भाषा से अधिक निर्दोष, लैटिन से अधिक सक्षम और परिमार्जित है। लेखक के अनुसार, आर्यों ने राज नहीं किया, अपितु संस्कृति को पूरे विश्व में प्रचारित किया। संस्कृत भाषा के अनेक शब्द अन्य भाषाओं में पाए जाते हैं, जो कि संस्कृति विस्तार का जीवंत प्रमाण है। दर्शन, आध्यात्म, धर्म, आस्था, ज्ञान नामक अध्याय में लेखक आर्यों के दर्शन में प्रारंभ से ही समृद्धि को रेखांकित करते हैं। सृजन में नारी व पुरुष तत्व की महत्ता को स्वीकार करते हुए देवों के युग्म की कल्पना को विस्तार प्रदान करते हैं। अंत में लेखक कहते हैं कि 'मैं अपनी अनंत यात्रा का विश्लेषण करता हूं तो पाता हूं कि अब भी कुछ बचा है, जो सतयुग से शुरू होकर त्रेता, द्वापर होते हुए कलयुग में भी जिंदा है। मुझे गर्व है कि वैदिक आर्य मेरे पूर्वज थे। काश मैं भी उनकी तरह बन सकूं, व्यवहार कर सकूं। उनकी तरह धर्म धारण कर आदर्श को पुन: स्थापित कर सकूं। पुस्तक : मैं आर्यपुत्र हूं लेखक : मनोज सिंह प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन मूल्य : 300 रुपये

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