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राज द्रोह की धारा को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज, प्रभावित पक्ष आए तो सुनवाई पर होगा विचार

नई दिल्ली,सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज द्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा (124-ए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता प्रभावित पक्ष नहीं हैं। याचिका में कहा गया था कि औपनिवेशिक काल के इस प्रविधान का इस्तेमाल नागरिकों के बोलने की आजादी को कुचलने के लिए किया जा रहा है। प्रधान न्यायाधीश एएस बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमणियन की पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि इस पर सुनवाई करने की कोई वजह नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता प्रभावित पक्ष नहीं हैं। तीन वकीलों की तरफ से यह याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वकील अनूप जॉर्ज चौधरी ने संक्षिप्त सुनवाई के दौरान कहा कि यह जनहित से जुड़ा मामला है और लोगों को इस प्रविधान के तहत आरोपित किया जा रहा है। अगर कोई जेल में हो तब हम करेंगे विचार: पीठ इस पर पीठ ने कहा कि किसी भी कानून को बिना किसी उचित कारण के चुनौती नहीं दी सकती है। पीठ ने चौधरी से कहा, 'आपके खिलाफ इस धारा के तहत कोई अभियोग नहीं चल रहा है। कार्रवाई का कारण क्या है? हमारे सामने भी इसको लेकर कोई मामला नहीं है। हम ऐसे किसी भी मामले पर सुनवाई भी नहीं कर रहे हैं, जिसमें कोई व्यक्ति जेल में सड़ रहा हो। अगर कोई जेल में हो तब हम विचार करेंगे। खारिज।' याचिका में कहा गया था कि आइपीसी की धारा 124-एक (राज द्रोह) का उपयोग ब्रिटिश हुकूमत द्वारा महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया जाता था। देश में अब सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वालों के खिलाफ इस प्रविधान के तहत कार्रवाई की जा रही है। मीडिया ऐसे लोगों को देशद्रोही बताने लगती है। जबकि सरकार की नीतियों का विरोध करना देशद्रोह नहीं, बल्कि राज द्रोह है। देशद्रोह और राज द्रोह में बराबरी नहीं की जा सकती।

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