भारत और जापान ने किया ऐसा समझौता जिससे बढ़ेगी चीन की टेंशन
भारत और जापान ने ऐसा समझौता किया है जिसकी वजह से चीन को मिर्ची लग सकती है. क्योंकि इस समझौते के बाद चीन कोई भी हरकत करने से पहले कई बार सोचेगा. भारत और जापान की यह डील सैन्य बलों की आपूर्ति और सेवाओं के आदान-प्रदान को लेकर है. यानी युद्ध की स्थिति में भारत और जापान एक दूसरे को सैन्य सहायता मुहैया कराएंगे. इससे पहले भी भारत ने अमेरिका, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया से ऐसी डील कर चुका है.
भारत के रक्षा सचिव अजय कुमार और जापान के राजदूत सुजूकी सतोशी ने म्यूचुअल लॉजिस्टिक सपोर्ट अरेंजमेंट (MLSA) इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इससे पहले साल 2016 में भारत और अमेरिका ने जो डील की है, उसका नाम है- द लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (The Logistics Exchange Memorandum of Agreement - LEMOA). इस डील के तहत भारत को अमेरिकी सैन्य बेस जिबौती, डिएगो गार्सिया, गुआम और सुबिक बे में ईंधन और आवाजाही की अनुमति है.
सीमा विवाद को लेकर एलएसी पर चल रहे टकराव के बीच भारत ने हिंद महासागर में भी चीन की घेराबंदी तेज कर दी है. भारत और जापान के बीच हुए ऐतिहासिक रक्षा समझौते को बेहद अहम माना जा रहा है. समझौते के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे से फोन पर बात भी की. मोदी और आबे दोनों ने रक्षा सौदे के लिए एकदूसरे का आभार जताया.
ऐसा समझौता पहली बार हुआ है जब जापान के साथ सशस्त्र बलों को परस्पर सेवाएं मुहैया कराई जाएंगी. भारत और जापान के बीच रणनीतिक संबंध पहले से हैं, लेकिन चीन से मौजूदा टकराव के बीच हुई इस डील से हिंद महासागर में चीन की घेराबंदी को तोड़ा जा सकता है. या रोका जा सकता है. इस डील के बाद भारत हिंद महासागर में भी रणनीतिक बढ़त ले सकता है.
समझौते के बाद भारतीय सेनाओं को जापानी सेनाएं अपने अड्डों पर जरूरी सामग्री की आपूर्ति कर सकेंगी. साथ ही भारतीय सेनाओं के रक्षा साजो सामान की सर्विसिंग भी देंगी. यह सुविधा भारतीय सैन्य अड्डों पर जापानी सेनाओं को भी मिलेंगी. युद्ध की स्थिति में ये सेवाएं बेहद अहम मानी जाती हैं. मोदी और आबे दोनों ने उम्मीद जताई कि यह डील दोनों देशों के रक्षा सहयोग को और गहराई देगा. हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और सुरक्षा में मदद करेगा.
जापान के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं के बीच घनिष्ठ सहयोग को बढ़ावा देगा. ऐसी उम्मीद है कि इस डील से जापानी और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच आपूर्ति और सेवाओं के सुचारू और शीघ्र आदान-प्रदान की सुविधा मिलेगी. भारतीय रक्षा मंत्रालय ने भी कहा कि भारत और जापान के सशस्त्र बलों के बीच आपसी सहयोग बढ़ने के साथ-साथ दोनों देशों के मध्य विशेष रणनीतिक और वैश्विक भागीदारी के तहत द्विपक्षीय रक्षा गतिविधियों में और बढ़ोतरी होगी.
साल 2018 में भारत ने फ्रांस के साथ समझौता किया था. जिसके तहत भारतीय नौसेना फ्रांस के नौसैनिक अड्डों पर रीयूनियन आइलैंड्स, मैडागास्कर और जिबौती पर रुक सकती है और वहां की सैन्य सेवाएं ले सकती है. ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए MLSA समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया और भारत अपने युद्धपोत इंडियन ओशन रीजन और पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग करेंगे. साथ ही सुविधाओं का आदान-प्रदान करेंगे.
चीन के पास पाकिस्तान के कराची और ग्वादर बंदरगाह पर आने-जाने की अनुमति है. इसके अलावा चीन ने कंबोडिया, वानुआतु जैसे कई देशों के साथ सैन्य समझौते कर रखे हैं. ताकि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी धमक बनाए रखे. लेकिन इसके विरोध में अमेरिका, फ्रांस, भारत, ऑस्ट्रेलिया और कुछ यूरोपियन देश भी रहे हैं.
चीन किसी भी समय इंडियन ओशन रीजन में भारत के आसपास 6 से 8 युद्धपोत तैनात करके रखता है. वह लगातार अपनी नौसेना को अत्याधुनिक बना रहा है. परमाणु बैलिस्टिक मिसाइें और एंटी-शिप क्रूज मिसाइलें बना रहा है. चीन ने पिछले 6 सालों में 80 युद्धपोतों को अपनी नौसेना में शामिल किया है.
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