कश्मीर पर भारत के फैसले का जवाब देने के लिए पाकिस्तान के पास सीमित विकल्प: अमेरिकी थिंक टैंक

वॉशिंगटन कश्मीर को लेकर पाकिस्तान लाख हाथ-पैर पटक ले, लेकिन दुनिया में कोई उसे गंभीरता से नहीं लेता है। एक अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर पर भारत के फैसले का जवाब देने के लिए पाकिस्तान के पास विकल्प बेहद सीमित हैं। कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (CRS) की रिपोर्ट में कई विशेषज्ञों ने कहा है कि इस मुद्दे पर पाकिस्तान की साख खराब है, क्योंकि वह आतंकी समूहों का साथ देता रहा है। कश्मीर पर छह महीने से कम समय में अपनी दूसरी रिपोर्ट में CRS ने कहा कि सैन्य ऐक्शन से यथा-स्थिति बदलने के लिए पाकिस्तान की क्षमता हाल के सालों में कम हुई है। इसका मतलब है कि वह कूटनीतिक रास्ते से ही जवाब देगा। 13 जनवरी की इस रिपोर्ट में CRS ने कहा कि 5 अगस्त के बाद पाकिस्तान 'कूटनीतिक रूप से अकेला दिखा' है, एकमात्र देश तुर्की ने उसका साथ देने की बात कही। नई दिल्ली द्वारा 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने और इसे केंद्रशासित प्रदेश बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहद खराब हो गए। पाकिस्तान इस मुद्दे पर भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, भारत ने साफ किया है कि यह पूरी तरह आंतरिक मामला है। UNSC में चर्चा हुई पर बयान नहीं 25 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान ने चीन की मदद से UNSC में एक सत्र बुलवाया। 5 दशक में पहली बार कश्मीर पर चर्चा के लिए 16 अगस्त को काउंसिल की बैठक हुई। बैठक बंद दरवाजों में हुई और इसका कोई आधिकारिक बयान भी नहीं जारी किया गया। 'पाक नेतृत्व के पास विकल्प सीमित' इसमें कहा गया है, 'अधिकतर विशेषज्ञ मानते हैं कि कश्मीर पर इस्लामाबाद की साख बहुत कम है, क्योंकि उसका इतिहास वहां आतंकी समूहों को चोरी-छुपे मदद पहुंचाने का है। पाकिस्तान के नेतृत्व के पास भारत के ऐक्शन का जवाब देने के लिए विकल्प बहुत कम हैं और कश्मीर में आतंकवाद को पाकिस्तान का समर्थन वैश्विक रूप से महंगा पड़ेगा।' रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान और इसके दोस्त चीन की साख मानवाधिकार के मामले में भी कम है। 'भारत संग रिश्ता मजबूत, पाक पर भरोसा नहीं' CRS के मुताबिक, कश्मीर पर अमेरिका का स्टैंड लंबे समय से यह रहा है कि इसका समाधान भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी बातचीत से हो, जिसमें कश्मीरी लोगों की राय को शामिल किया जाए। CRS ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले कुछ दशकों में वॉशिंगटन की भारत के साथ नजदीकी बढ़ी है, जबकि पाकिस्तान को अविश्वास की नजर से देखा जा रहा है।

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