कभी 93 फीसदी से ज्यादा था इनकम टैक्स, सबसे कम चिदम्बरम के दौर में

नई दिल्ली, 30 जनवरी 2020, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शनिवार 1 फरवरी को 2020-21 का बजट पेश करने जा रही हैं. मिडल क्लास की सबसे बड़ी अपेक्षा यह है कि वित्त मंत्री इनकम टैक्स में कटौती करें. अभी सरचार्ज वगैरह जोड़कर सबसे ज्यादा इनकम टैक्स 42.7 फीसदी का लगता है. लेकिन यह जानकार आपको हैरानी होगी कि आजादी के बाद देश ने ऐसा दौर भी देखा है जब इनकम टैक्स की उच्चतम सीमा 93 फीसदी से ज्यादा हो गई थी. इसके बाद इसे 30 से 40 फीसदी के दायरे में आने में कई दशक लग गए. अभी क्या है टैक्स स्लैब अभी 60 साल से कम उम्र के लोगों के लिए व्यक्तिगत आयकर तीन आय स्लैब में 5, 20 और 30 फीसदी लिया जाता है.यानी अध‍िकतम सीमा 30 फीसदी है और इस पर 4 फीसदी का सेस लगता है. इसके अलावा कई तरह के सरचार्ज हैं. हालत यह है कि 5 करोड़ रुपये से ज्यादा की सालाना आमदनी पर सेस बढ़कर 37 फीसदी तक हो जाता है. इसके बाद प्रभावी टैक्स रेट 42.7 फीसदी तक हो जाता है. कब था 93 फीसदी से ज्यादा इनकम टैक्स कभी इस देश में ज्यादा पैसा कमाना भी अपराध की तरह देखा जाता था. ज्यादातर उद्योग सरकारी थे और निजी क्षेत्र को बहुत प्रोत्साहन नहीं था. शायद इसीलिए 1970 के दशक तक देश में 93 फीसदी से ज्यादा इनकम टैक्स था. साल 1971 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार में यशवंत राव चव्हाण वित्त मंत्री थे तो उन्होंने अध‍िकतम टैक्स रेट 85 फीसदी कर दिया. इस पर 10 फीसदी सरचार्ज भी लगता था यानी प्रभावी टैक्स रेट 93.5 फीसदी तक पहुंच गया. सोचिए 100 रुपये कमाने वाले किसी अमीर व्यक्ति के हाथ में महज 6.50 रुपये बचते थे और बाकी उसे टैक्स के रूप में सरकारी खजाने में देना होता था. पहली बार कब हुई इनकम टैक्स में बड़ी कटौती टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इसके बाद 1974 में यशवंत राव चव्हाण के कार्यकाल में ही इनकम टैक्स दर को थोड़ा घटाया गया, लेकिन तब भी मैक्सिमम दर 70 फीसदी रही. 10 फीसदी सरचार्ज के साथ अधिकतम टैक्स 77 फीसदी तक हो गया था. एक डायरेक्ट टैक्स इनक्वायरी कमिटी की सिफारिश पर इनकम टैक्स रेट में कटौती की गई. फिर घटा इनकम टैक्स रेट 1976 में जब वित्त मंत्री सी.सुब्रमण्यम थे तब इनकम टैक्स रेट को घटाकर 60 फीसदी कर दिया गया. 10 फीसदी के सरचार्ज के बाद टैक्स की प्रभावी दर 66 फीसदी हो गई. देश में टैक्स के अनुपालन को बेहतर करने के लिए टैक्स रेट में कटौती की गई. वीपी सिंह के दौर में फिर कटौती 1984 और 1985 में जब कांग्रेस के दिग्गज नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह वित्त मंत्री थे तो उनके कार्यकाल में इनकम टैक्स दरों में और कटौती की गई. वीपी सिंह ने 1984 में इनकम टैक्स की उच्चतम दर घटाकर 55 फीसदी कर दी गई. 12.5 फीसदी सरचार्ज लगाने के बाद इनकम टैक्स की प्रभावी दर 61.9 फीसदी हो गई. इसके बाद फिर 1985 में उन्होंने इनकम टैक्स की उच्चतर दर फिर घटाकर 50 फीसदी कर दिया. सरचार्ज को भी घटाकर शून्य फीसदी कर दिया गया. इस तरह प्रभावी अध‍िकमत उच्चतम दर 50 फीसदी थी. मनमोहन सिंह के दौर की शुरुआत 1991 में जब नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे तो देश का वित्त मंत्री मनमोहन सिंह का बनना इकोनॉमी के इतिहास के लिहाज से एक बड़ी घटना थी. मनमोहन सिंह ने चेल्ल‍िया कमिटी की सिफारिश को मानते हुए अध‍िकतम टैक्स की सीमा को घटाकर 40 फीसदी कर दिया. सरचार्ज 12 फीसदी तय किया गया और इस तरह अध‍िकतम प्रभाव दर 44.8 फीसदी हो गई. पी. चिदम्बरम का दौर टैक्स के लिहाज से 1997 में कांग्रेस के शासन के दौरान वित्त मंत्री रहे पी. चिदम्बरम के दौर को सबसे अच्छा माना जा सकता है. चिदम्बरम ने टैक्स की दर को काफी घटाकर नरम कर दिया. उन्होंने दूसरे एश‍ियाई देशों की तरह ही कम टैक्स रखने की नीति अपनाई. इनकम टैक्स की अध‍िकतम दर को 30 फीसदी तय किया गया और तब कोई सरचार्ज या सेस भी नहीं था. इसी वजह से अध‍िकतम प्रभावी टैक्स दर 30 फीसदी ही रही. आया निर्मला सीतारमण का जमाना मौजूदा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल जुलाई में अपना पहला बजट पेश किया. तब उन्होंने भी इनकम टैक्स की अध‍िकतम सीमा 30 फीसदी ही रखी. लेकिन कई तरह के सरचार्ज और सेस की वजह से अध‍िकतम प्रभावी दर 42.7 फीसदी तक पहुंच गई. ज्यादा सेस रखने के पीछे सरकार की सोच यह है कि जो लोग हायर टैक्स ब्रैकेट में आते हैं, उन्हें देश के विकास में ज्यादा योगदान करना चाहिए

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