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स्वदेशी हथियारों से लैस होगी हमारी सर्वश्रेष्ठ सेना, डरेंगे दुश्मन और दहलेंगे दिल

नई दिल्ली, आज भारत की सरजमीं, समंदर और आसमान अजेय हैं, क्योंकि उनकी सुरक्षा की कमान हमारी 14 लाख की विशाल जल-थल-नभ सेना के पास है। एक ऐसी सेना जिसके पास आतंकिस्तान बन चुके पाकिस्तान के साथ चीन से भी लगभग हर दिन टकराने का 7 दशकों का अनुभव है। आजादी के तुरंत बाद 1947 में ही जंग शुरू हो गई। सेना ने इस पहले कश्मीर युद्ध को जीता और रियासतों का विलय कराने में भूमिका अदा की। फिर सेना ने 1962, 1965 और 1971 की जंग में महा शौर्य का परिचय दिया। 1990 के दशक में कारगिल की चोटियों पर फतह हासिल की तो 2000 में अफ्रीका की जमीन पर ऑपरेशन खुखरी को अंजाम दिया। 2016 में ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक की कि दुश्मन पाकिस्तान अभी तक सदमे में है। तो आइए स्वतंत्रता दिवस के इस मौके पर सुनते हैं अपनी महान सेना की शौर्य की कहानियां। तीन सैन्य नायकों जी. डी. बख्शी, पी. के. सहगल, मोहन भंडारी और वीर चक्र से सम्मानित कर्नल (रिटायर्ड) अशोक कुमार तारा की जुबानी और जानते हैं कि अगले पांच सालों में हमारी सेना की तस्वीर कैसी होगी। अगले कुछ वर्षों में भारत ने अपने तीनों सेनाओं को दुनिया की आधुनिक हथियारों के लैस करने का लक्ष्य रखा है। तो साथ मेक इन इंडिया के तहत रक्षा उत्पादन के मामले में देश को आत्मनिर्भर भी बनाने का मिशन है। फिलहाल भारत अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिये 70 फीसदी आयात पर निर्भर है। जाहिर है इसमें देश का बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार खर्च होता है। वर्तमान में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का फोकस है भारत को डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। साथ ही भविष्य में भारत खुद एक बड़ा रक्षा साजो सामान का निर्यातक देश बने यह सुनिश्चित करना है। अभी दुनिया के डिफेंस एक्सपोर्ट्स में भारत की हिस्सेदारी केवल 0.17 फीसदी है। 2014 के बाद से मोदी सरकार ने डिफेंस एक्सपोर्ट पर बल देना शुरू किया। पांच साल में होंगे रक्षा क्षेत्र में पांच बदलाव 1. रक्षा के लिए आयात पर निर्भर नहीं रहेंगे 2014 में भारत का डिफेंस इक्विपमेंट एक्सपोर्ट सालाना केवल 2,000 करोड़ रुपये का था। रक्षा साजो सामान के निर्यात को लेकर सरकार की कोई नीति भी नहीं थी। लेकिन डिफेंस एक्सपोर्ट्स पर सरकार ने बल देना शुरू किया। सितंबर 2014 में रक्षा सचिव की अध्यक्षता में डिफेंस एक्सपोर्ट के बढ़ावा देने के लिये कमेटी बनाई गई जिसमें निजी और सरकारी दोनों कंपनियों की भागीदारी थी। 5 फरवरी 2020 को लखनऊ में हुए डिफेंस एक्सपो को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि “ डिफेंस एक्सपोर्ट 2014 में 2,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 17,000 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा। और अगले 5 सालों में ये 5 अरब डॉलर यानि 35,000 करोड़ रुपये तक जा पहुंचेगा। प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत अपनी रक्षा के लिए आयात पर निर्भर नहीं रह सकता।” 2. स्वदेशी हथियारों का करेंगे निर्यात भारत हल्का लड़ाकू विमान तेजस, हल्के हेलीकॉप्टर, पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश मिसाइल डिफेंस सिस्टम, एस्ट्रा एयर टू एयर मिसाइल, के साथ ऐसे अनेक हथियार जो पूरी तरह भारत में उनका निर्यात पर फोकस कर रहा है। 3. राफेल और एस-400 से वायु सेना में बढ़ेगा दमखम अगले 5 सालों में भारत के वायुसेना की ताकत में जबरदस्त इजाफा हो जाएगा क्योंकि 2022 तक फ्रांस से आ रहे 36 राफेल लड़ाकू विमानों की डिलीवरी पूरी हो जाएगी। वहीं रूस से मिलने वाला एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 की डिलिवरी इस वर्ष अक्टूबर से दिसंबर के बीच शुरू हो जाएगी। 2018 में भारत ने रूस के साथ एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की 5 यूनिट 5 अरब डॉलर में खरीदने का फैसला लिया था। इसकी पूरी डिलिवरी 2025 तक पूरी होगी। यह एयर डिफेंस सिस्टम देश में होने वाले किसी भी संभावित हवाई हमले का पता लगाएगा। सिस्‍टम अत्याधुनिक रडारों से लैस है। उपग्रहों की जरिए यह दुश्मनों की तमाम जानकारी जुटाता है। इसके आधार पर यह बताया जा सकता है कि लड़ाकू विमान कहां से हमला कर सकते हैं। इसके अलावा यह एंटी-मिसाइल दागकर दुश्मन विमानों और मिसाइलों को हवा में ही खत्म कर सकता है। 4. विक्रांत से होगा समंदर पर राज भारत ने अपनी समुद्री ताकत बढ़ाने के लिये देश में निर्मित पहले एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत का परीक्षण कर लिया है जो जल्द नौसेना को बड़ी ताकत देगा। 23,000 करोड़ रुपये की लागत से इसे तैयार किया गया है। लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि विक्रांत समुद्री जहाज को पानी में उतरता देखकर पूरे देश का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। 5. हथियारों की घरेलू डिजाइन और रिसर्च पर जोर सरकार ने देश में रक्षा विनिर्माण से 2025 तक 1.75 लाख करोड़ रुपये के कारोबार का लक्ष्य रखा है। सरकार का मानना है कि इस क्षेत्र में कोविड-19 के चलते कई चुनौतियों से जूझ रही पूरी अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूंकने की क्षमता है। रक्षा मंत्रालय ने देश में रक्षा विनिर्माण के लिए ‘रक्षा उत्पादन एवं निर्यात संवर्द्धन नीति 2020’ का मसौदा रखा है। इसमें मेक इन इंडिया के तहत जो भी रक्षा उत्पाद देश में तैयार होंगे, उसके लिए घरेलू डिजाइन पर ही जोर दिया जाएगा। कोशिश होगी कि नए सिरे से बेहतर उत्पाद तैयार किया जा सके। इसके लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर ज्यादा फोकस दिया जाएगा। एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन से भी इसे जोड़ा जाएगा। 75 सालों में सेना के सफर के 8 पड़ाव 1. 1947 से पहले- आजादी में सेना का योगदान मेजर जनरल (रिटायर्ड) जी डी बख्शी कहते हैं कि 1857 की लड़ाई से लेकर आजादी हिंद फौज ने जो दबाव बनाया उसके बाद अंग्रेज सरकार के हौसले पस्त हो गए। वह कहते हैं कि हमेशा छवि ये बनाई जाती है कि अंग्रेज केवल अहिंसा के चलते गए यह मानना ऐतिहासिक भूल होगी। नेवी और एयरफोर्स में विद्रोह हुआ थे जिससे अंग्रेजों पर दबाव मजबूत हुआ। वहीं वीर चक्र से सम्मानित कर्नल (रिटायर्ड) अशोक कुमार तारा बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ तो वे बस पांच साल के थे, लेकिन उन्होंने अपने परिवार के साथ अंग्रेजों के साथ प्रदर्शन में हिस्सा लिया। वह कहते हैं कि ये आजादी आसानी से नहीं मिली है। लोगों ने आजादी के लिए बेखौफ होकर अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया। हथियारों की बात करें तो स्वतंत्रता से पहले, रक्षा क्षेत्र के निर्माण में भारत दुनिया के कई देशों से आगे था। यहां कई आयुध कारखाने हुआ करते थे। अंग्रेजों के जमाने में देश में 18 ऐसे आयुध कारखाने स्थापित किए गए, जिनका उपयोग विश्व युद्ध के दौरान किया गया था। ब्रिटिश काल ही में दो प्रमुख रक्षा इकाइयां भी स्थापित की गईं - गार्डन रीच और मझगांव डॉक्स। 2. 1947 में रियासतों का विलय और कश्मीर में चुनौती अगस्त में आजादी मिलते ही भारत-पाक युद्ध, जिसे प्रथम कश्मीर युद्ध भी कहा जाता है, अक्टूबर 1947 में शुरू हो गया। कबाइलियों के हमले के नापाक मंसूबे को चकनाचूर करते हुए हमारी सेना ने पूरे कश्मीर पर कब्जा कर लिया। इस युद्ध में भारत को कश्मीर के दो तिहाई हिस्से (कश्मीर घाटी, जम्मू और लद्दाख) पर नियंत्रण हासिल हुआ। वहीं उस दौर में भारतीय सेना के सामने एक और चुनौती थी। 1947 से 1948 के बीच त्रावणकोर, भोपाल, हैदराबाद, जोधपुर और जूनागढ़ को छोडक़र 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दे दी। लेकिन इन पांच बाकी रिसायतों को भारत में मिलाना बड़ी चुनौती थी लेकिन सेना के शौर्य से ये आसानी से संभव हो गया। खासकर जूनागढ़ में भारतीय सेना की ताकत काम आई। उधर, आजादी मिलने के बाद सेना का आधुनिकीकरण शुरू किया गया। स्वतंत्रता मिलने के बाद 1947 से भारत में आयुध कारखानों का आधुनिकीकरण किया गया। देश में 21 और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री की स्थापना की गई। 1956 में एचएएल कंपनी ने भारत के पहले फाइटर, HF-24 Marut को प्रसिद्ध जर्मन डिजाइनर कर्ट टैंक के नेतृत्व में डिजाइन करना शुरू किया था। एचएएल ने लाइसेंस के तहत फोलैंड ग्नैट का भी निर्माण किया, और जो पाकिस्तान के खिलाफ 1965 के युद्ध के दौरान अमेरिकी मूल के एफ - 86 सबर्स पर अपनी श्रेष्ठता के लिए प्रसिद्ध हुआ, जिसे उस युग का सबसे अच्छा डॉगफाइटर माना जाता था। 3. 1962 की वीरता और 1965 में पाकिस्तान का विनाश 1962 में हिंदी चीनी भाई भाई का नारा देने वाले चीन ने भरोसे को तोड़ते हुए भारत पर हमला बोल दिया। भारतीय सैनिकों ने मुश्किल परिस्थितियों में यह जंग वीरता के साथ लड़ी। मेजर जनरल (रिटायर्ड) जी डी बख्शी कहते हैं 1962 में हमें चीन के साथ बहुत बड़ा झटका लगा। तत्कालीन सरकार की अहिंसा वाली सोच के चलते नुकसान हुआ। लेकिन इसके बाद हम जाग्रत हुए। सेनाओं के आधुनिकीकरण अभियान की शुरुआत की गई। इससे पाकिस्तान घबरा गया। उसने सोचा भारत काफी ताकतवर हो रहा है। उसने 1965 में कश्मीर में हमला बोल दिया, लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी। 4. 1971 का पराक्रम और 1974 में पोखरण मेजर जनरल (रिटायर्ड) जी डी बख्शी कहते हैं कि 1971 में भारत की सेना ने 14 दिनों में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये। 92000 पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था। इस युद्ध के बाद एक नया देश बांग्लादेश अस्तित्व में आया। यह भारत के लिए एक बड़ी जीत थी। इसके बाद 1974 में भारत ने पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया और दुनिया को अपनी ताकत का एहसास करा दिया। मेजर जनरल ( रिटायर्ड) पी के सहगल कहते हैं कि 1971 में केवल दिन के युद्ध में भारत ने एक नया देश खड़ा कर दिया। देशवासियों को फौज के ऊपर भरोसा है ये सबसे बड़ी उपलब्धि है। 5. 1980 का दशक...बोफोर्स आई दुश्मन पाकिस्तान ने 80 के दशक में पहले पंजाब में फिर उसके बाद कश्मीर में आतंकियों के जरिये छद्म युद्ध छेड़ दिया। पर जल्द ही भारत ने दोनों छद्म युद्ध जीत लिए। पंजाब से खालिस्तान समर्थकों और कश्मीर से आतंकियों का सफाया हुआ। वहीं दूसरे ओर 1983 में मिसाइल कार्यक्रम पर तेजी से काम हुआ। 1983 में डीआरडीओ के तत्वावधान और पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) में विभिन्न भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों को एक साथ लाया गया। लंबी दूरी की मिसाइल अग्नि को 1989 में अलग से विकसित किया गया। 24 मार्च, 1986: भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ। इस सौदे के तहत भारतीय थल सेना को 155 एमएम की 400 होवित्जर तोप मिली। 6. 90 के दशक का तोहफा-दूसरा परमाणु परीक्षण और कारगिल की जीत 2 मई 1998 में भारत ने पांच परमाणु बमों का परीक्षण कर एक बार फिर पूरी दुनिया में मजबूत संदेश दिया। भारत की कामयाबियों से चिढ़ कर एक साल बाद ही 1999 में पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ कर दी। हमारे शूरवीरों ने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। कारगिल में हमने सभी घुसपैठियों को खदेड़ दिया। इस जंग की शौर्य गाथा पूरी दुनिया ने सुनी। 7. ऑपरेशन खुखरी और भारतीय सेना को मिले नए हथियार अफ्रीका के सियेरा लियोन में गृह युद्ध चल रहा था। एक मई 2000 को रिवोल्यूशनरी यूनाइटेड फ्रंट के विद्रोहियों ने बैठक के बहाने भारतीय शांति सेना के 223 भारतीय जवानों को बंधक बना दिया। पर भारतीय जवानों ने ऑपरेशन खुखरी को अंजाम देकर अपने जवानों को छुड़ा लिया। 2000 के दशक के मध्य में मगर-क्लास टैंक लैंडिंग शिप्स के विशाल शार्दूल-क्लास वेरीअंट को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। वही वर्ष 2007 में आईएनएस जलाश्व का अधिग्रहण किया गया। इसके बाद IGMDP को 2008 में पृथ्वी की सतह से सतह, त्रिशूल और आकाश की सतह से हवा में, और नाग एंटी टैंक मिसाइलों के विकास चरण के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद बंद कर दिया गया था। 8. 2016 में की सर्जिकल स्ट्राइक-दुश्मन लाशें गिनता रह गया 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक की। ये ऐसा हमला था जिसमें दुश्मन बस आतंकियों की लाशें गिनता रह गया। फिर 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद हमारे वायु सेना के शूरवीरों ने पाकिस्तान में घुसकर बालाकोट में चल रह आतंक के फैक्ट्री की तबाह कर दिया। इस बार भी पाकिस्तान बिलबिला उठा लेकिन कुछ कर न सका। वहीं धारा 370 हटने के बाद सेना ने कश्मीर ने आतंकियों का करीब-करीब सफाया कर दिया है और उनकी मदद करने वालों की भी कमर तोड़ दी है। मौजूदा वक्त की बात करें तो HAL वर्तमान में DRDO के स्वदेशी तेजस हल्के लड़ाकू विमान का उत्पादन कर रहा। देश में आयुध कारखानों ने कई हथियार बनाए, जिसमें रूस की मदद से बनाये गये टी-92 टैंक, अर्जुन टैंक, बख्तरबंद वाहन शामिल है। देश में कई युद्धपोत, विध्वंसक, पनडुब्बियां का भी लाइसेंस के तहत निर्माण किया गया तो भारत के स्वदेशी रूप से एक परमाणु-संचालित पनडुब्बी भी है। अभी हाल ही में स्वदेशी विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत का समुद्र में परीक्षण किया गया, जिसमें 76 फीसदी स्वदेशी उपकरण का इस्तेमाल किया गया है। तो भारत को फ्रांस से राफेल विमान की डिलीवरी जारी है अंबाला के बाद हाशिमारा में भी राफेल की तैनाती कर दी गई है जिससे चीन पर नजर रखी जा सके। रक्षा पर कितना खर्च हो रहा पैसा विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 1960 के बाद से भारत ने लगातार अपने सैन्य खर्च में वृद्धि की है। यही नहीं गौरव की बात यह है कि विश्व के इतिहास में पहली बार भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले चोटी के तीन देशों की सूची में शामिल हो गए हैं। सैन्य खर्च की यह रिपोर्ट स्टॉकहॉम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) ने बनाई है। ऐसा पहली बार हुआ है जब रिपोर्ट में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले तीन देशों में दो देश एशिया के ही हैं। अनुमान है कि 2019 में भारत का सैन्य खर्च लगभग 71 अरब डॉलर रहा, जो 2018 में किए गए खर्च से 6.8 प्रतिशत ज्यादा था। विश्व बैंक की सैन्य खर्च की परिभाषा कहती है कि आर्म्ड फोर्स पर सभी तरह के खर्च, पीस कीपिंग फोर्स का बजट, रक्षा मंत्रालय और रक्षा के काम से जुड़ी एजेंसी का बजट, मिलिट्री स्पेस एक्टिविटी, पेंशन, वेतन खर्च आदि को सैन्य खर्च में शामिल किया जाता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की रिपोर्ट के अनुसार भारत अपनी जीडीपी का 2.4 फीसद सैन्य बजट में खर्च करता है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में कुल सैन्य खर्च 3.6 फीसद बढ़ा है। यह 1988 से अब तक अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच चुका है। सऊदी अरब अपनी जीडीपी का आठ फीसदी सैन्य बजट पर खर्च करता है। अमेरिका का कुल सैन्य खर्च 732 बिलियन डॉलर है जो सूची में नीचे दिए दस देशों के कुल संयुक्त खर्च के बराबर है। इतना अधिक खर्च करने के बाद भी यह अमेरिका की जीडीपी का 3.4 प्रतिशत है। 2019 में भारत और चीन का सैन्य खर्च एशिया में सबसे अधिक रहा। दुनिया में सैन्य खर्च के मामले में यह दोनों क्रमश: दूसरे और तीसरे नंबर पर है। चीन का सैन्य खर्च 2019 में 261 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। 2018 के मुकाबले इसमें 5.1 फीसद की बढ़ोतरी हुई। चीन ने लगातार 25वीं बार अपने सैन्य खर्च में वृद्धि की है। भारत का 2019 में सैन्य खर्च बढ़कर 71.1 बिलियन डॉलर हो गया जिसमें 2018 के बनिस्पत 6.8 फीसद की वृद्धि हुई। ऐसी है भारतीय सेना की ताकत चीन की सेना में 21.83 लाख सैनिक हैं। जबकि भारत के पास कुल 14.44 लाख जवान हैं। इस तरह ये दोनों देश मिलिट्री मैन पॉवर के लिहाज से दुनिया के सबसे बड़े देश हैं। ग्लोबल फायरपावर रैंकिंग 2020 में यह खुलासा हुआ है। ये संस्था दुनिया की सैन्य शक्तियों की रैंकिंग जारी करती है। यह रैंकिंग कुल सैन्य ताकत (जमीन, जल और आसमान में जंग करने की क्षमता), मिलिट्री मैनपॉवर, हथियार, वित्त, प्राकृतिक संसाधन और भौगोलिक स्थिति की अलग-अलग श्रेणी में समय-समय पर जारी की जाती है। थल सेना- एक शक्तिशाली और बड़ी फोर्स ग्लोबल फायरपावर की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय थल सेना के पास कुल 4292 टैंक हैं। इसके अलावा कुल 8686 हथियारबंद वाहन हैं। 4060 तोपें हैं। राकेट प्रोजेक्टर की संख्या 266 बताई गई है। लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि भारत में सेनाओं का विस्तार 1971 के बाद शुरू हुआ। आज हम दुनिया की एक शक्तिशाली और बड़ी फोर्स है। आज भारतीय सेना की गिनती 13 लाख, एयरफोर्स एक लाख 40 हजार और नेवी 68 हजार के करीब है। तीनों सेनाओं की गिनती दुनिया में उत्कृष्ट सेनाओं में होती है। वायु सेना-राफेल और मिराज से भारत का परचम आई वर्ल्ड एयर फोर्स रिपोर्ट 2021 रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2119 युद्धक हैं। इस तरह हमारा देश वायुसेना के लिहाज से चौथा सबसे ताकतवर देश बन जाता है। भारत के बेड़े में एचएएल तेजस, सुखोई-30, मिग-21, मिग-29, फ्रांस के राफेल और मिराज जैसे शक्तिशाली विमान शामिल हैं। वहीं हिंदुस्तान के पास ब्रिटेन-फ्रांस के जगुआर, पी-8 पेट्रोलिंग एयरक्राफ्ट और अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर भी हैं। नौसेना की ताकत भारतीय नौसेना पर नजर डालें तो ग्लोबल फायरपावर रिपोर्ट के मुताबिक हमारे पास कुल 285 जहाज हैं। इसमें एक विमानवाहक पोत, 10 डेस्ट्रायर, 13 युद्धपोत हैं। वहीं 16 पनडुब्बियां, 139 पेट्रोलिंग नौकाएं हैं। इसके अलावा 19 जंगी जहाज और 3 माइन वारफेयर हैं।

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