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भारतीय दबाव के आगे झुका नेपाल, विवादित नक्‍शे वाली किताब पर लगाई रोक

काठमांडू चीनी राजदूत के इशारे पर चल रही नेपाल की केपी ओली सरकार ने देश के विवादित नक्‍शे वाली किताब के वितरण पर रोक लगा दिया है। नेपाल के विदेश मंत्रालय और भू प्रबंधन मंत्रालय ने श‍िक्षा मंत्रालय की ओर से जारी इस किताब के विषयवस्‍तु पर गंभीर आपत्ति जताई थी। इसके बाद नेपाली कैबिनेट ने श‍िक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह न केवल इस किताब का वितरण रोके बल्कि उसके प्रकाशन पर भी रोक लगाए। नेपाली कैबिनेट के इस फैसले से शिक्षा मंत्री गिरिराज मणि पोखरल को करारा झटका लगा है। काठमांडू पोस्‍ट की रिपोर्ट के मुताबिक विदेश मंत्रालय और भू प्रबंधन मंत्रालय ने कहा था कि इस किताब में कई तथ्‍यात्‍मक गल्तियां और 'अनुचित' कंटेंट है, इस वजह से किताब के प्रकाशन पर रोक लगाई गई है। कानून मंत्री श‍िव माया ने कहा, 'हमने यह निष्‍कर्ष निकाला है कि किताब के वितरण पर रोक लगा दी जाए।' माया ने माना कि कई गलत तथ्‍यों के साथ संवेदनशील मुद्दों पर किताब का प्रकाशन गलत कदम था। द्विपक्षीय बातचीत को झटका पहुंचने की थी आशंका बता दें कि भारत और नेपाल के बीच मई में सीमा विवाद पैदा हो गया था। बातचीत के जरिए इसका समाधान होने का दरवाजा भी दिखने ही लगा था कि यह ताजा विवाद खड़ा हो गया था। नेपाल सरकार ने बच्चों की एक किताब में विवादित नक्शा प्रकाशित किया है। यही नहीं, इसमें भारत के साथ सीमा विवाद का भी जिक्र है। नेपाल के इस कदम से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत को झटका पहुंचने की आशंका पैदा हो गई थी। कालापानी पर नेपाल का दावा देश के शिक्षा मंत्री गिरिराज मणि पोखरल के मुताबिक किताब का प्रकाशन भारत की कार्रवाई के जवाब में किया गया है। उनका कहना है कि भारत ने पिछले साल कालापानी को अपनी सीमा में दिखाते हुए नक्शा जारी किया था। नेपाल कालापानी को अपना बताता है। नेपाल की नई किताब में बच्चों को नेपाल के क्षेत्र के बारे में पढ़ाया जा रहा है और सीमा विवादों का जिक्र भी किया गया है। अपने फायदे के लिए किया? किताब में पोखरल ने खुद लिखा है कि कैसे उन्होंने 24 साल पहले भारतीय सेना को नेपाल से बाहर करने के लिए अभियान चलाया था। नेपाल में एक्सपर्ट्स ने भी इस कदम का विरोध किया है। उनका कहना है कि अकैडमिक किताब में मंत्री की भूमिका नहीं होनी चाहिए और पोखरल ने अपनी छवि बनाने के लिए ऐसा किया है। वहीं, सेंटर फॉर नेपाल ऐंड एशियन स्टडीज के असोसिएट प्रफेसर का कहना है कि ऐसी किताबों से नई पीढ़ी का ज्ञान नहीं बढ़ता है बल्कि दो देशों में तनावपूर्ण संबंधों के बीच बातचीत का रास्ता भी बंद हो जाता है।

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