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जीडीपी के 26% के बराबर अकेले रिजर्व बैंक के बहीखाते में, 13 साल का सबसे बड़ा उछाल

नई दिल्ली ,25 अगस्त 2020,करीब 13 साल में पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बहीखाते में 30.02 फीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई है. साल 2019-20 में रिजर्व बैंक का बहीखाता बढ़कर 53.34 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया जो देश की कुल जीडीपी का करीब 26 फीसदी था. गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक जुलाई से जून तक का लेखाजोखा पेश करता है और उसके बहीखाते में करेंसी (लायबिलिटी) और विदेशी मुद्रा भंडार (एसेट) दोनों को जोड़ा जाता है. साल 2018-19 में यह 41.02 लाख करोड़ रुपये था. इससे पहले कब हुई थी ज्यादा बढ़त भारत की जीडीपी का आकार करीब 200 लाख करोड़ रुपये का माना जाता है, इसके हिसाब से रिजर्व बैंक का बैलेंस सीट जीडीपी का करीब 26 फीसदी है. इससे पहले की सबसे बड़ी बढ़त साल 2007-08 में हुई थी, जब रिजर्व बैंक का बहीखाता 46 फीसदी बढ़कर 14.62 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था. साल 2011-12 में रिजर्व बैंक के बहीखाते में 22 फीसदी की बढ़त हुई थी. क्यों है महत्वपूर्ण गौरतलब है कि रिजर्व बैंक का बहीखाता भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी मायने रखता है, क्योंकि यह करेंसी जारी करता है, नकदी का प्रबंधन करता है और विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव को कम करता है. पिछले कुछ वर्षों से रिजर्व बैंक का बहीखाता हर साल 10 से 12 फीसदी की दर से बढ़ता जा रहा है. गोल्ड में 53 फीसदी की बढ़त रिजर्व बैंक के अनुसार, साल 2019-20 में उसके घरेलू और विदेशी निवेश में क्रमश: 18.40 और 27.28 फीसदी की बढ़त हुई. इसी तरह लोन और कर्ज में 245.76 फीसदी तथा गोल्ड में 52.85 फीसदी की बढ़त हुई है. 30 जून तक के आंकड़ों के मुताबिक रिजर्व बैंक के एसेट में 28.75 फीसदी हिस्सा घरेलू एसेट का, जबकि 71.25 फीसदी हिस्सा विदेशी करेंसी और गोल्ड का है. दुनियाभर के बैंकों का ये है हाल वैसे दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों का बहीखाता बढ़ रहा है क्योंकि सरकारों की तरफ से नकदी बढ़ाने वाली नीतियां चलाई जा रही हैं. इसी तरह से यूरोपीय केंद्रीय बैंक का बहीखाता तो बढ़कर यूरो क्षेत्र के 50 फीसदी से ज्यादा तक पहुंच गया है. इसी तरह अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व का बहीखाता भी वहां के जीडीपी के 32 फीसदी तक पहुंच गया है. ​केंद्रीय बैंकों के बहीखातों में तेज बढ़त साल 2008-09 से शुरू हुई, जब दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने के लिए नकदी का प्रवाह शुरू किया. इसके बाद से केंद्रीय बैंकों का बहीखाता कम होने की बजाय बढ़ता ही गया है. कोरोना संकट के बाद तो इसमें और विस्तार ही होने के आसार हैं.

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