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लद्दाख MP नामग्याल बोले- मोदी के सत्ता में आने के बाद एक इंच ज़मीन भी चीन को नहीं लेने दी

नई दिल्ली, 11 जून 2020,भारत और चीन के बीच ताजा सीमा गतिरोध फिलहाल कम हो गया है. लेकिन लद्दाख के बीजेपी सांसद जामयांग शेरिंग नामग्याल ने दावा किया है कि नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से भारत ने चीन को एक इंच भी जमीन नहीं खोई है. आजतक/इंडिया टुडे से एक विशेष इंटरव्यू में नामग्याल ने सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत की ओर से बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता पर जोर दिया. साथ ही कहा कि सुरक्षा को मजबूत करने का यह एकमात्र तरीका है. उन्होंने कहा कि सीमा के पास रहने वाले लोग किसी पड़ोसी देश के साथ टकराव नहीं चाहते, लेकिन जैसी जरूरत होगी वो वैसे देश के साथ खड़े होंगे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से इस मुद्दे पर सरकार पर चुप्पी बरतने का आरोप लगाने पर नामग्याल ने कहा, “मैं एक ऐसे नेता के बारे में क्या कह सकता हूं, जो अपनी सरकार के लागू अध्यादेश को फाड़ देता है? भय फैलाना उनके लिए एक राजनीतिक मुद्दा है. मैं केवल यह चाहता हूं कि राहुल गांधी यहां सीमा मुद्दे को समझने का प्रयास करें, मैंने ट्विटर पर उनके साथ एंगेजमेंट किया है, जहां मैंने एक सूची देकर बताया कि यूपीए के कार्यकाल में चीन ने कहां कहां जमीन पर कब्जा किया.” सांसद नामग्याल ने कहा, मैंने इन सभी क्षेत्रों का दौरा किया है और मेरे पास फोटोग्राफिक सबूत है. जब से नरेंद्र मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आई है, तब से एक इंच जमीन भी चीन के हाथ नहीं खोई है.” सीमा क्षेत्रों पर बुनियादी ढांचे का विकास लद्दाख के बीजेपी सांसद के मुताबिक अगर भारत अपनी सीमा को मजबूत करना चाहता है, तो सरकार को बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा. उन्होंने कहा, "जब तक नागरिक आबादी को बढ़ावा नहीं दिया जाता है, तब तक हमारी सीमा सुरक्षा को मजबूत नहीं किया जा सकता है." यह पूछे जाने पर कि चीन की सीमा पर इस वक्त आक्रामकता के पीछे क्या मानसिकता हो सकती है जबकि वो महामारी को लेकर चारों तरफ से आलोचना का सामना कर रहा है? इस सवाल के जवाब में नामग्याल ने कहा, 'नेहरू जी (जवाहरलाल नेहरू) की ओर से भारत के लिए लागू की गई फॉरवर्ड पॉलिसी अब सिर्फ एक कागजी पॉलिसी रह गई है. हम (भारत) एक समय में एक कदम पीछे हटते रहे और चीन उस का फायदा उठाता रहा और आगे बढ़ता रहा.' उन्होंने आगे कहा, 'दिल्ली में बैठे नीति निर्माताओं को एक बात समझनी होगी. सीमावर्ती क्षेत्रों के गांवों में रहने वाले सभी नागरिकों को बिजली, मोबाइल नेटवर्क, स्कूलों जैसा मजबूत बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने के साथ स्थायी रूप से बसने के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इससे हमें लैंडमार्क और स्थायी गांव बनाने में मदद मिलेगी. हालांकि हमारे पास अब भी गांव हैं लेकिन वो लोगों के स्थायी रूप से रहने के लिए उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि न वहां चिकित्सा सुविधाएं हैं और न ही शैक्षणिक संस्थान या दूरसंचार के साधन.' नामग्याल ने सवाल किया कि जब 21वीं सदी में दुनिया 4G और 5G की ओर बढ़ रही है तो लद्दाख में रहने वाले शिक्षित युवा बिना किसी सुविधा के क्यों रहें?' चरागाह जमीन पर चीन का कब्जा बीजेपी सांसद ने स्थानीय लोगों की चरागाह भूमि पर चीनी सेना के कब्जे के मुद्दे पर कहा, 'हां, 1962 के युद्ध के बाद से दशकों से ऐसा हो रहा है जब चीन ने 37,244 वर्ग किलोमीटर अक्साई चिन पर कब्जा किया, जिसे मैं चीन के कब्जे वाला लद्दाख कहता हूं. चीनी सेना (PLA) ने चीनी बंजारों (खानाबदोशों) की आड़ में चरागाह भूमि पर इंच-इंच कर कब्जा कर लिया है. यह चीन की नीति रही है. न केवल पैंगोंग त्सो झील और चुशुल में बल्कि कई अन्य क्षेत्रों में भी अतिक्रमण हुआ है. हमारे बंजारे हर क्षेत्र में रहते हैं. उनकी गर्मियों और सर्दियों की चरागाह जमीन अलग-अलग हैं. सर्दियों में वो ऊंचाई से नीचे आ जाते हैं. वे जलवायु के अनुसार चलते हैं. हमने कई चरागाह जमीन खो दी हैं, क्योंकि हमारे लोग अब आगे नहीं बढ़ सकते.' अक्साई चिन को फिर हासिल करना चीनी मीडिया में एक धारणा बन रही है कि जब से भारत ने लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया है, चीन ने इसे उकसावे के रूप में देखा. इस धारणा के मुताबिक मौजूदा सीमा तनाव का प्रमुख कारण यही है और साथ ही गृह मंत्री अमित शाह का अक्साई चिन को भारत का क्षेत्र बताना है. इस मुद्दे पर नामग्याल ने कहा, 'गृह मंत्री ने सही कहा है मैं जोड़ना चाहता हूं कि अक्साई चिन सिर्फ हमारा नहीं है बल्कि CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) जो शक्सगाम घाटी से होकर गुजरता है और जिसे पाकिस्तान चीन को दिया, वो भी हमारा है. हमें सभी को फिर हासिल करना चाहिए.' यह पूछे जाने पर कि क्या इतने लंबे अंतराल के बाद क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करना संभव होगा, नामग्याल ने कहा, 'यह मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं.' क्या लद्दाख में भारत का बुनियादी ढांचा विकास, जैसे दौलत बेग ओल्डी सड़क का निर्माण, चीन को सिरदर्द दे रहा है? इस सवाल पर नामग्याल ने कहा, 'चीन को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह भारत का क्षेत्र है.' स्थानीय लोगों का मनोबल लद्दाख में स्थानीय आबादी के मनोबल के बारे में पूछे जाने पर, नामग्याल ने कहा, 'ऐसे हालात सीमा की आबादी के लिए सामान्य है क्योंकि वे पिछले कई वर्षों से इसे देख रहे हैं. लोग राष्ट्र के साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं. स्थानीय लोगों का मनोबल ऊंचा है. लेकिन उनका साफ तौर पर कहना है कि वे वर्तमान में युद्ध में नहीं जाना चाहते हैं. कोई भी टकराव उनकी विकासात्मक गतिविधियों और उनके जीवन को प्रभावित करता है. वे किसी भी पड़ोसी देश के साथ टकराव नहीं चाहते हैं. सीमावर्ती निवासियों का मनोबल बढ़ाने के लिए हमें उन्हें बुनियादी ढांचा देना चाहिए.' क्या आप सलाह देते हैं कि लद्दाख के लोगों को दूरदराज के गांवों में ले जाया जाए और उनका पुनर्निर्माण किया जाए. क्या चीन का मुकाबला करने के लिए यह एक नागरिक रणनीति हो सकती है? इस सवाल पर नामग्याल ने कहा, 'डेमचोक हमेशा ख़बरों में बना रहता है. मूल डेमचोक भारत के साथ है. इसके करीब, चीन ने अपनी तरफ एक नया डेमचोक गांव बनाया, जिसका पहले कहीं वजूद नहीं था. उन्होंने 13 निर्माण, विकसित सड़कें, दूरसंचार सुविधाएं समेत बुनियादी ढांचा बनाया है. उन्होंने स्थायी रूप से वहां के आसपास के क्षेत्रों से बंजारों को बसाया और सभी सुविधाएं दी जा रही हैं.' उन्होंने आगे, 'हमें समझना चाहिए कि सीमा को मजबूत करने के लिए, चीन स्थायी रूप से अपने लोगों को स्थापित कर रहा है. हमारे जो गांव हैं वहां एक प्राथमिक विद्यालय भी नहीं खोल सके, टेलीकॉम या कोई अन्य सुविधा नहीं दे सके. हमें शहरों से सीमावर्ती क्षेत्रों में लोगों को स्थानांतरित करने की आवश्यकता नहीं है. सीमा के मूल निवासियों को सभी सुविधाएं मिलनी चाहिए और स्थायी रूप से बसाया जाना चाहिए.' UT बनने के फायदे क्या लद्दाख के यूटी बनने के बाद से बुनियादी ढांचे की उम्मीद पूरी हो गई है? इस पर नामग्याल ने कहा, 'लद्दाख के यूटी बनने के बाद से कई विकास कार्यों में तेजी आई है, चाहे वह सरकारी योजनाएं हों, शिक्षा या स्वास्थ्य सुविधाएं हों, कार्यकारी एजेंसियों में मानव संसाधन बढ़ाने की आवश्यकता है. उसके बाद हम अपने बुनियादी ढांचे के काम को रफ्तार दे पाएंगे.' तिब्बत मुद्दे पर बीजेपी सांसद ने कहा, 'भू-राजनीतिक आयाम को देखते हुए, तिब्बत भारत-चीन समस्या का समाधान दे सकता है.

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