लॉकडाउन ने भारत को कोरोना के कहर से बचा दिया? जानें, क्या कहती है ICMR की ताजा स्टडी

नई दिल्ली लॉकडाउन के दौरान घर में बंद रहकर एक सवाल तो आपके मन में भी आता होगा कि इसका कुछ फायदा भी हो रहा है? क्या लॉकडाउन ने कोरोना वायरस से संक्रमण पर रोक लगाने में सफलता दिलाई है और दिलाई है तो किस हद तक? भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) का ताजा अध्ययन इन सवालों का जवाब 'हां' में देता है। समझें 2.5 बनाम 406 का समीकरण संस्था की स्टडी के रिजल्ट्स बताते हैं कि लॉकडाउन नहीं हो और सोशल डिस्टैंसिंग का ख्याल नहीं रखा जाए तो कोविड-19 का एक मरीज 30 दिन में औसतन 406 लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित कर सकता है। लेकिन, अगर लोगों को सामाजिक मेल-मिलाप में 75% की कटौती कर दी जाए तो एक संक्रमित व्यक्ति 30 दिन में औसतन 2.5 लोगों को ही संक्रमित कर पाएगा। स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अगरवाल ने मंगलवार को यह खुलासा किया। 'सोशल वैक्सीन है सोशल डिस्टैंसिंग' अगरवाल ने इसका हवाला देकर लोगों से लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों का पालन करते हुए घरों में रहने की अपील की। उन्होंने कहा, 'हमें समझना होगा कि कोविड-19 पर काबू पाने के लिहाज से यह बहुत जरूरी है।' उन्होंने बताया कि अभी के समीकरण से स्पष्ट है कि एक संक्रमित व्यक्ति 1.5 से 4 लोगों के बीच कोविड-19 फैला सकता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन का यह कहना है बिल्कुल सही है कि कोरोना को नियंत्रण में रखने के लिहाज से 'सोशल डिस्टैंसिंग सोशल वैक्सीन' का काम करती है। चीन, अमेरिका के पैटर्न से बड़ा खुलासा हालांकि, ताजा रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि नोवल कोरोना वायरस अक्सर पारिवारिक सदस्यों और संगी-साथियों के क्लस्टरों को संक्रमित करता है। चीन में करीब-करीब 80% ट्रांसमिशन परिवारों के अंदर ही हुआ। अमेरिका में भी इसी तरह का पैटर्न सामने आ रहा है। इन ट्रेंड्स का सामने आना भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां पूरा परिवार साथ रहता है जिसमें हर आयु वर्ग के लोग होते हैं। इस कारण हमारे देश में सोशल डिस्टैंसिंग कायम रख पाना बहुत कठिन है। परिवार के बुजुर्गों में वायरस के संक्रमण से बड़ी कठिनाई पैदा हो सकती है जबकि कम उम्र को लोगों में संक्रमण के बाद भी कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ सकता है। इस कारण उनके वायरस का बड़ा वाहक बनने का खतरा रहता है।

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