बेंगलुरु वाले घर में रखे लैपटॉप में ऐसी कौन सी जानकारी है, जिसे दिखाने से बच रहे मोहम्मद जुबैर?
नई दिल्ली: फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट Alt News के लिए काम करने वाले मोहम्मद जुबैर एक पत्रकार हैं, ट्विटर पर उनके अच्छे खासे फॉलोअर्स हैं और वह खुलकर अपनी बात रखते हैं। जुबैर को उनके काम के लिए टारगेट किया जा रहा है। वह कई प्रभावशाली लोगों के लिए चुनौती हो सकते हैं लेकिन यह उनके उत्पीड़न की वजह नहीं बन सकता। पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है। वे जुबैर के लैपटॉप को बरामद करना चाहते हैं क्योंकि उसमें कई संवेदनशील जानकारियां हैं... कोर्ट में मोहम्मद जुबैर की ओर से पेश वकील वृंदा ग्रोवर ने यह कहते हुए जुबैर का लैपटॉप पुलिस को देने का विरोध किया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बेंगलुरु वाले जुबेर के घर में मौजूद उस लैपटॉप में क्या है, जिसे देने से मना किया जा रहा है। जुबैर के वकील ने कहा है कि पुलिस लैपटॉप चाहती है जबकि उसका इस केस से कोई लेनादेना नहीं है। उन्होंने आशंका जताई है कि लैपटॉप जब्त करने के बाद मामले से अलग इधर-उधर के सवाल पूछे जाने शुरू हो जाएंगे।
किस बात का है डर!
माना जा रहा है कि दिल्ली पुलिस लैपटॉप इसलिए भी हासिल करना चाहती है जिससे 50 लाख के कथित ट्रांजैक्शन और कुछ अन्य जानकारियों तक पहुंचा जा सके। पुलिस के मुताबिक, चूंकि जुबैर अब तक सवालों के गोलमोल जवाब देते आ रहे हैं, ऐसे में उनके गैजेट्स जैसे- फोन और लैपटॉप से पुलिस सबूत इकट्ठा करना चाहती है। उनका फोन भी फॉर्मेट किया हुआ मिला, ऐसे में पुलिस लैपटॉप को खंगालना चाहती है। जुबैर और उनकी कानूनी टीम को डर है कि लैपटॉप से जानकारियां इकट्ठा करने के बाद कुछ और मामले न खुल जाएं। शायद यही वजह है कि वकील ने इस कदम का विरोध किया। पुलिस का दावा है कि जुबैर ने मोबाइल और लैपटॉप से डेटा मिटाया है, उपकरण जब्त होने पर उसे फॉरेंसिक एवं अन्य जांच के लिए भेजा जा सकता है।
मंगलवार को जुबैर की वकील ने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया के समक्ष 6 दलीलें रखीं और लैपटॉप देने का विरोध किया। जुबैर की ओर से अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा:
1. आरोपी ने ट्वीट में जिस तस्वीर का इस्तेमाल किया था वह 1983 में आई ऋषिकेश मुखर्जी की हिंदी फिल्म ‘किसी से ना कहना’ की है और उस फिल्म पर रोक नहीं लगी थी।
2. एजेंसी ने जुबैर को किसी और मामले में पूछताछ के लिए बुलाया था लेकिन उसे हड़बड़ी में इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया।
3. गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के अंदर यह अदालत उपलब्ध होती, फिर भी जुबैर को एक ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जहां पुलिस ने उसकी सात दिन की हिरासत की मांग की।
4. जिस ट्वीट की बात हो रही है, वह जुबैर ने 2018 में किया था। किसी ने पिछले दिनों 2018 के जुबैर के ट्वीट को पोस्ट कर दिया और यह मामला दायर किया गया। किसी गुमनाम ट्विटर हैंडल से यह पहला ट्वीट था जिसमें जुबैर के ट्वीट का उपयोग किया गया। एजेंसी गड़बड़ कर रही है।
5. वे दावा कर रहे हैं कि जुबैर ने कथित तस्वीर के साथ छेड़छाड़ की। ट्वीट 2018 से है। 2018 से इस ट्वीट ने कोई बखेड़ा खड़ा नहीं किया। अनेक ट्विटर यूजर्स ने इस तस्वीर को साझा किया है। प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता।
6. पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है। वे जुबैर के लैपटॉप को बरामद करना चाहते हैं क्योंकि वह एक पत्रकार हैं और उसमें कई संवेदनशील जानकारियां हैं।
वहीं, पुलिस ने कहा है कि आरोपी की प्रवृत्ति ही कुछ ऐसी रही है कि उसने प्रसिद्धि पाने के लिए धार्मिक ट्वीटों का इस्तेमाल किया। पुलिस ने कहा, ‘यह सामाजिक वैमनस्य पैदा करने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने का उसका जानबूझकर किया गया प्रयास था।’ वह जांच में तो शामिल हुआ लेकिन सहयोग नहीं किया। उसके फोन से अनेक सामग्री हटा दी गई है।
दिल्ली की अदालत ने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर से पूछताछ के लिए हिरासत की अवधि चार दिन के लिए बढ़ा दी। पुलिस ने अदालत से कहा कि आरोपी जांच एजेंसी के साथ सहयोग नहीं कर रहा और उस उपकरण के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उससे हिरासत में पूछताछ जरूरी है जिससे आरोपी ने ट्वीट किया था।
बेंगलुरु में रखा फोन और लैपटॉप देगा प्रूफ?
जज ने तीन पन्नों के आदेश में कहा, ‘कथित ट्वीट को पोस्ट करने के लिए आरोपी मोहम्मद जुबैर द्वारा इस्तेमाल उसके मोबाइल फोन या लैपटॉप को उसके बताए अनुसार उसके बेंगलुरु आवास से बरामद करना है और आरोपी ने अब तक सहयोग नहीं किया है, इसे ध्यान में रखते हुए आरोपी की चार दिन की पुलिस हिरासत की अनुमति दी जाती है क्योंकि आरोपी को बेंगलुरु लेकर जाना है।’ जुबैर को लेकर आज ही पुलिस की एक टीम बेंगलुरु के लिए रवाना होगी। जुबैर को अब 2 जुलाई को अदालत में पेश किया जाएगा।
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