एक्सक्लूसिवरोहिंग्या ने बनवाए फर्जी आधार, गाड़ियां भी खरीद रहे:सरकार-सेना ने बताया खतरा, लेकिन जम्मू में बढ़ रहीं बस्तियां
जम्मू,बीते 8 नवंबर को नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी यानी NIA ने 10 राज्यों में छापेमारी की। टारगेट पर रोहिंग्या बस्तियां थीं। NIA की एक टीम जम्मू के भटिंडी भी पहुंची और रोहिंग्या समुदाय के जफर आलम को हिरासत में ले लिया। ये छापेमारी ह्यूमन ट्रैफिकिंग से जुड़े एक रैकेट को ट्रैक करते हुए की गई थी।
हालांकि, इस छापेमारी में NIA को ये भी पता चला कि बांग्लादेश के रास्ते लाए गए लोगों को देश के अलग-अलग हिस्सों में बसाया जा रहा है। इनमें ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान हैं।
जम्मू में रोहिंग्याओं के डोमिसाइल सर्टिफिकेट और फर्जी आधार कार्ड बनने के मामले आ चुके हैं। NIA की छापेमारी के बाद दैनिक भास्कर भटिंडी और छन्नी रामा की रोहिंग्या बस्ती पहुंचा। दोनों बस्तियां बगल में ही हैं। हमने यहां रह रहे रोहिंग्या और आसपास के लोगों से बात की।
बस्ती में हमने देखा कि कई लोगों के पास अपनी बाइक हैं। ई-रिक्शा चला रहे हैं। मोबाइल पर बात कर रहे हैं। सवाल था कि ये कैसे हो रहा है, क्योंकि बिना वैलिड डॉक्यूमेंट के तो न सिम मिल सकती है और न ही बाइक का रजिस्ट्रेशन हो सकता है। हमने इसकी पड़ताल की। पढ़िए ये रिपोर्ट…
एफिडेविट देकर सेकेंड हैंड व्हीकल खरीद रहे रोहिंग्या
जम्मू के भटिंडी इलाके में खाली प्लॉट पर झुग्गियां बनाई गई हैं। ज्यादातर प्लॉट जम्मू के बाहरी इलाकों में हैं। इन जमीनों के मालिक कश्मीर घाटी में रहते हैं। वे रोहिंग्या परिवारों से हर महीने किराया लेते हैं। बिजली और पानी की सप्लाई प्लॉट मालिक ही करवाता है, बिल भी उनके नाम पर ही आते हैं।
बस्ती में करीब हर झुग्गी के सामने बाइक या स्कूटी खड़ी है। हमने पड़ताल शुरू की तो, पता चला कि रोहिंग्या आसानी से एक एफिडेविट देकर ये व्हीकल खरीद रहे हैं।
छन्नी रामा एरिया के एक प्लॉट में हमें अनवर हुसैन मिले। वे बाइक से जा रहे थे। हमने रोककर पूछा कि कब से ये बाइक चला रहे हैं। अनवर एफिडेविट दिखाते हुए कहते हैं, ‘26 मई, 2014 को ये बाइक जम्मू में खरीदी थी। तभी से चला रहा हूं।’
पड़ताल में पता चला कि अनवर हुसैन अकेले रोहिंग्या नहीं हैं। उनके जैसे कई लोग बिना लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन बाइक और ई-रिक्शा चला रहे हैं। हमने कुछ रजिस्ट्रेशन नंबर की जांच की। पता चला कि 2013 में खरीदी गई एक स्कूटी रोहिंग्या बच्चों के मदरसे में पढ़ाने वाले मौलवी भी चला रहे हैं।
रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस की वेबसाइट पर दी जानकारी के मुताबिक, जुलाई 2013 में रजिस्टर्ड स्कूटी JK02BC 4616 दिव्या नाम की लड़की के नाम थी। 2014 के बाद से उसका इंश्योरेंस जमा नहीं हुआ है।
जम्मू-कश्मीर में बिना जांच सिम नहीं मिलती, पर रोहिंग्या चला रहे मोबाइल
जम्मू-कश्मीर में सिक्योरिटी रीजंस की वजह से बिना जांच और वैलिड डॉक्यूमेंट के सिम कार्ड नहीं दिए जा सकते। इसके बावजूद रोहिंग्या बस्ती में कई लोग मोबाइल यूज करते दिख जाते हैं। यहां बच्चों के हाथों में भी मोबाइल दिखे। हालांकि, इनके लिए सिम कैसे मिली, इस बारे में कोई बात नहीं करता।
जम्मू-कश्मीर के 5 जिलों में 39 जगहों पर रोहिंग्या आबादी
2018 की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह विभाग की रिपोर्ट में बताया गया था कि यहां के 5 जिलों में 39 जगहों पर 6,523 रोहिंग्या रह रहे हैं। मार्च, 2021 के पहले हफ्ते में सरकार ने जम्मू में अवैध तरीके से रह रहे 155 रोहिंग्या को कठुआ जिले के हीरानगर में बने होल्डिंग सेंटर भेज दिया था। पुलिस के मुताबिक, रोहिंग्या परिवारों के पास पासपोर्ट एक्ट के तहत वैलिड ट्रैवल डॉक्यूमेंट्स नहीं थे।
इससे पहले अगस्त 2017 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से कहा था कि रोहिंग्या जैसे अवैध अप्रवासी सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन सकते हैं, क्योंकि आतंकी उन्हें भर्ती कर सकते हैं। केंद्र ने राज्य सरकारों से उनकी पहचान करने और उन्हें डिपोर्ट करने के लिए भी कहा था।
इन सबके बावजूद जम्मू के भटिंडी, सुंजवां, छन्नी रामा, नरवाल, बरी ब्राह्मण, नगरोटा और सांबा में बड़ी संख्या में रोहिंग्या रह रहे हैं। ये बेरोकटोक काम भी कर रहे हैं।
भटिंडी की रोहिंग्या बस्ती में रहने वाले मोहम्मद रमजान मछली बेचते हैं। वे महीने में दो बार दिल्ली से मछली खरीद कर लाते हैं और भटिंडी में बेचते हैं। इसी इलाके में किराना, साइकिल और मोबाइल रिपेयर की दुकाने चल रहीं हैं।
भटिंडी में ही जुबैदा बेगम बेटी के साथ रहती हैं। वे टूटी-फूटी हिंदी बोल लेती हैं। आसपास के घरों में बर्तन साफ करने का काम करती हैं। इसी से गुजारा होता है। जुबैदा के पति हाफिज अहमद को हीरानगर के होल्डिंग सेंटर में रखा गया है।
जुबैदा की तरह जाहिद हुसैन के दो जवान बेटे तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में बनिहाल गए थे। वे भी लौटकर नहीं आए। दोनों होल्डिंग सेंटर में हैं।
जाहिद हुसैन बताते हैं, ‘होल्डिंग सेंटर में जबसे रोहिंग्या और पुलिस के बीच झड़प हुई है, तब से ज्यादा सख्ती है। मेरी बीवी बहुत बीमार रहती है। वो अपने बच्चों से मिलना चाहती है, लेकिन हमे मिलने नहीं देते।'
जुबैदा और जाहिद हुसैन जिस होल्डिंग सेंटर की बात कर रहे हैं, वो जम्मू के कठुआ जिले में है। यहां जम्मू में अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्याओं को 2 साल से रखा गया है। इन्हें म्यांमार भेजा जाना है। फिलहाल यहां 273 रोहिंग्या हैं। ये रिहाई की मांग कर बार-बार प्रदर्शन करते हैं। जुलाई, 2023 में उन्होंने पुलिस अफसरों पर पथराव कर दिया था।
बांग्लादेश के रास्ते भारत आए, अलग-अलग शहरों में बसे
मोहिबुल्ला का परिवार 2017 से जम्मू में रह रहा है। वे म्यांमार से आए हैं। मोहिबुल्ला बताते हैं, ‘हमारे देश में हालत खराब हुए, तो हम बांग्लादेश से होते हुए कोलकाता पहुंचे। अलग-अलग ट्रेनों में सफर करते रहते। हमें तो मालूम भी नहीं था कि कहां जाना है। हममें से कई लोग हैदराबाद गए, कुछ अलीगढ़ चले गए। हम लोग जम्मू पहुंच गए। यहां रहते हुए छह साल हो गए हैं। मुझे आज तक किसी ने परेशान नहीं किया।’
आसपास के लोग बोले- चोरियां बढ़ गईं, डर लगता है
रोहिंग्या बस्ती के ठीक सामने दुकान चलाने वाले शख्स ने पहचान न जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘पिछले 15 साल से रोहिंग्या हमारे इलाके में रह रहे हैं। पुलिस और प्रशासन ने पहले तो इन लोगों को बसने दिया, पर अब हालात खराब हो रहे हैं। हमें बहुत डर लगता है। मोहल्ले में चोरियां होती रहती हैं। पुलिस को कई बार इसकी खबर देते हैं। पुलिसवाले आते हैं, कुछ लोगों को पकड़कर ले जाते हैं फिर छोड़ देते हैं।
नाला गैंग में काम कर रहे रोहिंग्या, 300 से 400 रुपए रोज कमाई
जम्मू में बसे ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। कुछ स्क्रैप का काम कर रहे हैं। रोहिंग्या महिलाएं दूसरों के घरों में काम करती हैं। इसके अलावा जम्मू नगर निगम के लिए काम करने वाले ठेकेदारों ने बड़ी संख्या में रोहिंग्याओं को काम पर रखा है। लोकल में लोग इन्हें ‘नाला गैंग’ कहते हैं। ये लोअवैध तरीके से रह रहे विदेशियों की पहचान करेगा पैनल
जम्मू-कश्मीर एडमिनिस्ट्रेशन ने भी 13 अक्टूबर, 2023 को एक पैनल बनाया है, जो 1 जनवरी 2011 से अवैध तरीके से रह रहे विदेशियों की पहचान करेगा।
ये पैनल जम्मू-कश्मीर में लापता विदेशियों की मंथली रिपोर्ट बनाएगा और हर महीने की 7 तारीख तक गृह मंत्रालय को देगा। इसका मकसद जम्मू-कश्मीर में अवैध तरीके से रह रहे विदेशियों की बसाहट रोकना है। सरकार के मुताबिक, जम्मू में अभी 6,523 रोहिंग्या रह रहे हैं।
ग नालियां साफ करते हैं और कूड़ा उठाते हैं।