कोटा, जोधपुर, बूंदी... अब बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में दिसंबर में 162 बच्चों की मौत
बीकानेर/कोटा
कोटा के जेके लोन अस्पताल में 110 से ज्यादा बच्चों की मौत से किरकिरी झेल रही राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पर हमले का नया मोर्चा खुलता दिख रहा है। अब बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में भी एक महीने के अंदर 162 बच्चों की मौत का मामला सामने आया है। हालांकि अस्पताल प्रशासन ने लापरवाही से मौतों के आरोप को खारिज करते हुए पल्ला झाड़ लिया है। इससे पहले बूंदी के अस्पताल में भी दिसंबर में 10 नवजात बच्चों की मौत का खुलासा हुआ था।
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अस्पताल ने झाड़ा पल्ला- लापरवाही से मौतें नहीं
बीकानेर के पीबीएम अस्पताल से संबद्ध सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने बच्चों की मौत की बात मानी है लेकिन उन्होंने अस्पताल प्रशासन की तरफ से किसी तरह की कमी से इनकार किया है। प्रिंसिपल एचएस कुमार ने कहा, 'दिसंबर महीने में अस्पताल के आईसीयू (सघन चिकित्सा कक्ष) में 162 बच्चों की मौत हुई है। लेकिन अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कोई लापरवाही नहीं बरती गई। बच्चों की जिंदगी बचाने की पूरी कोशिश की जा रही है।'
जेके लोन में अब तक 110 बच्चों की मौत
कोटा के जेके लोन अस्पताल में दिसंबर 2019 से अब तक 110 नवजात दम तोड़ चुके हैं। हालांकि, हजारों माता-पिता ने यह भी देखा कि उनके बच्चों की मौत महज इसलिए हो रही है क्योंकि नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टरों को जो प्राथमिक चीजें या उपकरण मुहैया कराए जाने चाहिए, वे अस्पताल में उपलब्ध ही नहीं हैं। 2018 में एक सोशल ऑडिट में खुलासा हुआ था कि अस्पताल के 28 में से 22 नेबुलाइजर्स काम ही नहीं कर रहे हैं। इनफ्यूजन पंप, जिनका इस्तेमाल नवजात बच्चों को दवा देने में किया जाता है, उनमें 111 में से 81 काम ही नहीं कर रहे थे। लाइफ सपॉर्ट मशीनों में 20 में से सिर्फ 6 ही इस्तेमाल लायक बची थीं।
पायलट ने अपनी ही सरकार पर उठाए थे सवाल
राजस्थान में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को लेकर अशोक गहलोत सरकार बैकफुट पर है। डेप्युटी सीएम सचिन पायलट ने एक महीने में 110 बच्चों की मौत से सुर्खियों में आए कोटा के जेके लोन अस्पताल का दौरा करने के बाद अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा किया था। पायलट ने अस्पताल के दौरे के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा, 'हमें आंकड़ों के जाल में नहीं फंसना है। हम लोगों का रेस्पॉन्स रहा है इस पूरे मामले को लेकर वह किसी हद तक संतोषजनक नहीं है।'
उन्होंने आगे कहा, 'आंकड़ों के जाल में हम चर्चा को ले जाएं यह उन लोगों को स्वीकार्य नहीं है जिन्होंने अपने बच्चे खोए हैं। जिस मां ने अपने बच्चे को कोख में 9 महीने रखा है, उसका कोख उजड़ता है तो उसका दर्द वही जानती है। हमें लोगों को विश्वास दिलाना होगा कि हम इस तरह की घटना स्वीकार नहीं करेंगे। हमें जिम्मेदारी तय करनी होगी। यदि इतने बच्चों की मौत हुई है तो कोई ना कोई कमी तो जरूर रही होगी।' साफ है कि उनका इशारा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान की ओर था जिसमें उन्होंने कहा था कि इस वर्ष बच्चों की मौतों का आंकड़ा कम हुआ है।
जोधपुर के 2 अस्पतालों में 146 बच्चों की मौत
आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2019 में अस्पताल में 16,915 नवजात भर्ती हुए, जिसमें से 963 की मौत हो गई। वर्ष 2018 की बात की जाए तो 16,436 बच्चों में 1005 नवजात की मौत हो गई थी। 2014 से यह संख्या लगभग 1,100 प्रति वर्ष रही। जोधपुर के उम्मेद अस्पताल और एमडीएम हॉस्पिटल की हालत बहुत ज्यादा बेहतर नहीं है। यहां दिसंबर महीने में एनआईसीयू और पीआईसीयू में बच्चों की कुल मौतों की संख्या 146 है। एसएन मेडिकल कॉलेज से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, इन दोनों ही अस्पतालों में दिसंबर महीने में 4,689 बच्चों को भर्ती कराया गया था। इनमें से 3,002 नवजात थे। इलाज के दौरान कुल 146 बच्चों, जिनमें से 102 नवजात थे, की मौत हो गई।
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