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ऑपरेशन गुलमर्ग के 73 साल बाद भी नहीं सुधरा पाकिस्तान, अब भी कश्मीर को रौंद रहा: यूरोपियन थिंक टैंक

एम्स्टर्डम कश्मीर को लेकर पाकिस्तान किसी भी मंच पर चाहें कितना भी चिल्ला ले, लेकिन पूरी दुनिया उसकी हकीकत को जानती है। अब एक यूरोपीय थिंक टैंक ने भी कहा है कि आजादी के तुरंत बाद कश्मीर पर कब्जे को लेकर पाकिस्तान के ऑपरेशन गुलमर्ग को लॉन्च किए अब 73 साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन उसकी नापाक हरकत अब भी जारी है। बता दें कि 21-22 अक्टूबर, 1947 की मध्यरात्रि को पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों के वेश में कश्मीर पर कब्जा जमाने के लिए इस ऑपरेशन को शुरू किया था। कश्मीरी पहचान पर सबसे पहला और सबसे भीषण हमला थिंकटैंक ने कहा कि यह दिन कश्मीरी पहचान को खत्म करने के सबसे पहले और सबसे भारी दिन के रूप में याद रखा जाएगा। इसी के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र द्वारा तैयार की गई नियंत्रण रेखा (LoC) अस्तित्व में आई थी। थिंक टैंक के अनुसार, मेजर जनरल अकबर खान के आदेश के तहत ऑपरेशन गुलमर्ग की कल्पना अगस्त 1947 में की गई थी। कश्मीर पर हमले में शामिल थीं 22 पश्तून जनजातियां पाकिस्तानी सेना के साथ इस हमले में 22 पश्तून जनजातियां शामिल थीं। वाशिंगटन डीसी में रहने वाले राजनीतिक और रणनीतिक विश्लेषक शुजा नवाज ने 22 पश्तून जनजातियों को सूचीबद्ध किया है जो इस हमले में शामिल थे। मेजर जनरल अकबर खान के के अलावा इस हमले की योजना बनाने वालों में पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना के करीबी सरदार शौकत हयात खान भी शामिल थे। सरदार शौकत ने स्वीकारी सच्चाई सरदार शौकत हयात खान ने बाद में एक किताब द नेशन दैट लॉस्ट इट्स सोल में स्वीकार किया कि उन्हें कश्मीर ऑपरेशन का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था। इस ऑपरेशन के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री गुलाम मुहम्मद ने 3 लाख रुपये भी दिए थे। मेजर जनरल अकबर खान ने तय किया था कि 22 अक्टूबर, 1947 को जम्मू कश्मीर पर हमला शुरू किया जाएगा। सभी लश्कर (कबायली लड़ाकों) को 18 अक्टूबर तक एबटाबाद में इकट्ठा होने को कहा गया था। पहले ही दिन 11 हजार कश्मीरियों का किया नरसंहार EFSAS ने कहा कि उन्हें रात को सिविल बसों और ट्रकों में ले जाया गया था। ताकि कोई खुफिया जानकारी लीक ना हो जाए। घुसपैठियों ने 26 अक्टूबर, 1947 को बारामूला के लगभग 11,000 निवासियों का नरसंहार किया और श्रीनगर में बिजली की आपूर्ति करने वाले मोहरा बिजली स्टेशन को नष्ट कर दिया। जिसके बाद शेख अब्दुल्ला ने 1948 में संयुक्त राष्ट्र में आक्रमण का वर्णन करते हुए कहा था कि हमलावरों ने हमारे हजारों लोगों को मार दिया।

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