हनुमानगढ़ का विकास या अभिशाप
मदन अरोड़ा ,आगामी विधानसभा चुनाव में विकास एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आ रहा है।सभापति गणेशराज बंसल को शहर को मिनी चंडीगढ़ बनाने का श्रेय देते हुए उनके समर्थक उन्हें विकासदूत की पदवी से नवाज वोट मांग रहे हैं।गणेशराज बंसल गांवों में घूम-घूम कर दावा कर रहे हैं कि उन्होंने चार सवाल में शहर में विकास की गंगा बहा उसे मिनी चंडीगढ़ बना दिया है और मौका दिया गया तो वे हर गांव में उसी तरह विकास की गंगा बहा देंगे।कुछ लोग उनकी बातों पर विश्वास भी कर रहे हैं।पर पलट कर उनसे ये नहीं पूछा जा रहा है कि वे गांवों का विकास कैसे करेंगे।पैसा कहां से लाएंगे।क्या गांवों की सरकारी जमीन को बेच कर विकास करवाएंगे।जिसे बेचने की शक्ति विधायक के पास नहीं होती।
शहर और ग्रामीण विकास करने के अपने अलग अलग स्त्रोत हैं।शहर के विकास के लिए उससे जुड़ी स्थानीय निकाय के पास आमदनी का अपना जरिया होता है।आमदनी का सबसे बड़ा जरिया उसकी स्थायी सम्पति से होने वाली आय और अस्थाई सम्पति को बेच उससे से आर्थिक स्त्रोत जुटाया जाता है।इसके साथ ही सम्पति टैक्स की वसूली के जरिये भी आमदनी होती है।सरकार स्थानीय निकायों को पूर्व में हो रही चुंगी टैक्स के अनुपात में कुछ राशि देती है।केंद्र सरकार भी सीवरेज जैसी योजनाओं के लिए आर्थिक मदद देती है।ग्रामीण विकास मुख्यतः पूरी तरह से सरकार की ओर से करवाये जाते हैं।जिस पार्टी की सरकार होती है ,उस पार्टी के विधायक की कार्य क्षमता, उसकी सरकार में पहुंच के हिसाब से पूरे विधान सभा क्षेत्र में कार्य होते हैं।विपक्षी पार्टी के विधायक के काम नाममात्र के होते हैं।निर्दलीय विधायक वाले क्षेत्र हमेशा पिछड़ जाते हैं।हर सरकार में उसी की पार्टी के विधायक और जहां पार्टी चुनाव हारती है,वहां हारे हुए उम्मीदवार की इच्छानुसार काम होते हैं।अधिकारियों-कर्मचारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग में भी उन्हीं की चलती है।अधिकारी भी निर्दलीय विधायक से ज्यादा सत्ताधारी पार्टी के नेताओं की ही सुनवाई करते हैं।ऐसे में हनुमानगढ़ से गणेशराज बंसल चुनाव जीत भी गए तो क्षेत्र का काम कैसे करवा पाएंगे।कैसे गांवों में विकास की गंगा बहाएंगे।कैसे कर्मचारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग करवाएगें।सबसे बडी बात आम आदमी के काम कैसे करवाएंगे।
1952 से 1985 के दौरान कामरेड शौपत सिंह विधायक रहे।सर्वाधिक जनप्रिय और ईमानदार नेता रहे।मुख्यमंत्री कोई भी रहा हो उनकी सुनवाई होती थी।लेकिन उनके कार्यकाल में विकास को ग्रहण लग जाता था।1993 तक विकास के नाम पर कोई उल्लेखनीय काम कांग्रेस के विधायक भी नहीं करवा पाए।1993 में डॉ. रामप्रताप के मंत्री बनने के बाद विकास की गंगा बहनी शुरू हुई।उन्हीं के प्रयासों से हनुमानगढ़ जिला बना।दो बड़े फ्लाईओवर ब्रिज बने।दर्जनों अंडरपास बने।गांवों में सड़क,पानी,बिजली,शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाएं पहुंची।किसानों को आखिरी छोड़ तक सिंचाई पानी नसीब होना शुरू हुआ।फतेहगढ़ माइनर के साथ ही सेम समस्या का समाधान हुआ। उन्हीं के कार्यकाल में ही शहर की तंग और बदबूदार गलियों में रहने वालों को पहली बार सीसी रोड बनवा बदबूदार माहौल से राहत दिलाने का काम भी हुआ।सीसी रोड भी होती है,यह शहर वालों ने पहली बार देखा।इसी की बदौलत डॉ. रामप्रताप को विकासदूत कहा जाने लगा।
4 साल पूर्व एक दूसरे विकासदूत अवतरित हुए।शहर की सारी सम्पति को बेच डाला ।सेंट्रल पार्क,भारतमाता चौक,भगतसिंह चौक का पुनर्निर्माण,सड़कों को चौड़ा कर लाईट लगवा 400 करोड़ खर्च करने का दावा किया।यह अलहदा बात है कि इसमें से सीधा आधा उसकी जेब में गया।कुछ सम्पति को सार्वजनिक रूप से नीलाम किया तो कभी उसी के साथी वार्ड नम्बर 56 के पार्षद द्वारा कलेक्टर को लिखित में दी गई शिकायत के अनुसार 80 प्लाटों को आधी रात को अधिकारियों को बुला फर्जी नीलामी दिखा डीपीसी से लाख दो लाख ऊपर दिखा अपने परिचितों के नाम करवा करोडों का घोटाला कर लिया।अधिकारियों ने बारम्बार उसे सरकारी सम्पति नहीं बेचने के लिए आगाह किया।ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग किया जा सके और विकास के लिए नीलम कर पैसा जुटाया जा सके।लेकिन नए अवतरित विकासदूत गणेशराज बंसल ने अपनी जेब भरने के लिए शहर की सारी सम्पति को नीलाम कर डाला।टाउन में राजा की कोठी की जगह पड़ी थी ताकि वक्त जरूरत वहां कोई सरकारी कार्यालय या डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के लिए आवास बनाये जा सकें।इसने वहां भी पार्क बना डाला।आज हालात ये हैं कि विकास के लिए कोई पैसा नहीं है। परिषद का खजाना खाली है।ठेकेदारों के 20 करोड़ फंसे हुए हैं।नगरपरिषद के सामने बन रहे महाराणा प्रताप चौक सहित कई निर्माण कार्य अधूरे पड़े हैं। शहर के लिए कोई बड़ा प्रोजेक्ट आ जाये तो उसका निर्माण नहीं हो सकता।क्योंकि उसके लिए जगह ही नहीं छोड़ी गई है।मजबूरी में वह जिले के किसी दूसरे कस्बे में जहां जगह उपलब्ध होगी लगेगा। इससे शहर में युवाओं को रोजगार मिलता जिसके आसार अब खत्म हो गए हैं।बड़ी सहभागिता वाली कोई योजना क्रियान्वित नहीं हो सकेगी क्योंकि उसमें तय हिस्सा जमा कराने के लिए पैसा नहीं है।ऐसा मिनी चंडीगढ़ बनाया है जहां मानसून में बारिश आते ही शहर की गलियां गंगा नदी बन जाती हैं। सड़कों पर विकास की गंगा नदी नहीं गंदे पानी के साथ बरसाती पानी की नदियां बहती दिखती हैं।ऐसा शानदार विकास कि सड़कें नीची और नाले ऊँचें हैं।गलियों में बहती नदियों से छुटकारा तभी मिल सकता है जब नालों और सड़कों पर करोड़ों रुपये दुबारा खर्च कर उन्हें सही किया जाए । पर अब पैसा कहां है।सो ये नदियां अब आपको हर मानसून में बहती मिलेंगी।दुकानदार परेशान हैं ।वहां से गुजरने वाले परेशान होते हैं तो होते रहे क्योंकि ये नए विकासदूत का मिनी चंडीगढ़ मॉडल है।इस मॉडल में सभापति के साथ नगर पार्षदों,कर्मचारियों ने भी खूब माल कमाया है।वे खुश हैं।जेबें जो गर्म हैं।पर कल क्या होगा जब रिटायरमेंट के समय मिलने वाला पैसा नहीं मिलेगा क्योंकि परिषद का खजाना तो आपने खत्म कर दिया है।आपको देने के लिए पैसा कहां से आएगा। राज्य की सबसे धनाढ्य नगर परिषद को बीमारू परिषद बनाने का काम कथित विकासदूत ने किया है।
विकास का एक और बड़ा काम विकासदूत ने किया है।टाउन के बाजार का बेड़ा गर्क कर दिया है।आम आदमी चाहे वह टाउन का हो या जंक्शन का उसकी जिंदगी से खिलवाड़ किया ताकि अपनी जमीनों की कीमत बढ़ा वारे न्यारे कर सके।एक गम्भीर रोगी की जान बचाने के लिए एक एक मिनट काफी कीमती होता है।इस विकासदूत ने सतीपुरा में बनने वाले मेडिकल कॉलेज को नवां बाईपास के पास बनवा दिया ताकि उसकी जमीन की कीमतें ऊंची हो सके और वहां वह एक जमीन के टुकड़े को और खरीदकर करोड़ों कमा सके।सतीपुरा में मेडिकल कॉलेज के लिए सहमति बनते देख विकासदूत ने नगरपरिषद की जमीन को पार्क की जमीन बता उसकी जगह नवां बाईपास के पास जमीन आवंटित करवा दी।इससे उसका तो करोड़ों का फायदा हो गया लेकिन वहां मेडिकल कॉलेज के साथ जिला अस्पताल बनने से न केवल टाउन स्थित जिला अस्पताल का विस्तार रुक गया।अब शहर के साथ साथ जिले के मरीजों को भी करीब 7 से 8 किलोमीटर का सफर तय कर चिकित्सा के लिए नवां जाना पड़ेगा।इसका परिणाम सीधेतौर पर टाउन के मार्केट पर भी पड़ेगा।जिले के मरीज जो पहले टाउन आते थे ,खरीदारी करते थे ।पैसा टाउन के बाजार में आता था। वह अब नवां के पास बने दुकानदारों के पास जाएगा या फिर वे अपने ही नजदीक के कस्बों में खरीदारी करेंगे।इसका नुकसान टाउन के साथ जंक्शन के कारोबारियों को भी होगा।सतीपुरा में यदि मेडिकल कॉलेज बनता तो उसकी दूरी दोनों ही कस्बों टाउन जंक्शन के लिए बराबर पड़ती और जिला अस्पताल ही मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध अस्पताल होता ।इससे टाउन के अस्पताल के आसपास वाले व्यापारियों का तो फायदा होता ही आमजन को भी भारी सुविधा मिलती।लेकिन गणेशराज की चांदी के टुकड़ों की चाहत का खामियाजा व्यापारियों और आमजन को भुगतना पड़ेगा।अब शहर का विकास ही उसका सबसे बड़ा अभिशाप बनेगा। गणेशराज ने विकास के नाम पर शहर के विनाश की पटकथा लिख दी है।भविष्य में शहरवासियों को पैसों के अभाव में महाराणा प्रताप चौक जैसे आधे अधूरे,गंदगी से पटे मंजर ही दिखाई देंगे।गलियों में बरसाती और गंदे पानी की नदियां बहती दिखेंगी। कोई नया विकास की बात तो छोड़िए ,किसी नाली,सड़क की मरम्मत के लिए भी महीनों इंतजार के बाद यदि काम हो जाये तो गनीमत मानिएगा।इसके बाद भी यदि आपको गाना है तो गाते रहिए गणेशराज मेरी आवाज ।
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