अलवर गैंगरेप: चल रही थी वोटिंग, सीनियर अफसरों से केस छिपाते रहे पुलिसवाले

जयपुर लोकसभा चुनाव के लिए जब राजस्‍थान में वोट डाले जा रहे थे, उस समय अलवर पुलिस दलित महिला के साथ तीन घंटे तक हुए गैंगरेप पर पर्दा डालने में लगी थी। अलवर पुलिस ने राज्‍य के आला पुलिस अधिकारियों को भी इस दरिदंगी के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी, जबकि घटना का विडियो जंगल में आग की तरह सोशल मीडिया में फैल गया था। इस बीच गैंगरेप के खिलाफ जयपुर में जोरदार विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। ये लोग सभी आरोपियों की जल्द गिरफ्तारी और दोषी पुलिसवालों के खिलाफ सख्त ऐक्शन की मांग कर रहे हैं। पुलिस की इस लापरवाही की अब आईजी स्‍तर के अधिकारी जांच कर रहे हैं, जबकि सूत्रों ने बताया कि जिले के एसपी डॉक्‍टर राजीव पचार को इस पूरे मामले को ठीक ढंग से नहीं संभालने और गैंगरेप की गंभीरता का आकलन करने में असफल रहने पर प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया है। वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि डॉक्‍टर पाचर को रेंज के आईजी और पुलिस मुख्‍यालय को घटना के दिन 30 अप्रैल को ही इस बारे में बता देना चाहिए था। साथ ही जिम्‍मेदार पुलिस अधिकारियों की एक टीम को अपराधियों को पकड़ने के लिए तत्‍काल रवाना कर देना चाहिए था। 'पूरे मामले में हरेक जरूरी प्रोटोकॉल का पालन किया' पुलिस अधिकारी ने कहा, 'एसपी डॉक्‍टर पाचर इस पूरे मामले और उसकी जटिलता को समझने में असफल रहे।' उधर, डॉक्‍टर पाचर ने दावा किया है कि उन्‍होंने इस पूरे मामले में हरेक जरूरी प्रोटोकॉल का पालन किया था। डॉक्‍टर पाचर ने कहा, 'इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई और मैंने साइबर सेल को अलर्ट करने और फोन नंबर को ट्रैक करने समेत सभी जरूरी कदम उठाए थे।' डॉक्‍टर पाचर कुछ भी दावा करें लेकिन इस गैंगरेप की जांच कर रहे अधिकारियों ने अब तक की जांच में पाया है कि कई स्‍तरों पर गड़बड़‍ियां की गईं। उन्‍होंने कहा कि गैंगरेप 26 अप्रैल को हुआ था और एफआईआर दो मई को दर्ज हुई। शुरू में ऐसी खबरें आई थी कि चुनाव की वजह से पुलिस पर काफी ज्‍यादा काम का दबाव था लेकिन जांच में इस दावे की हवा निकल गई। पुलिस मुख्‍यालय के सूत्रों ने बताया कि बड़ी संख्‍या में आरक्षित पुलिस बल अलवर में मौजूद था और पुलिस की कोई कमी नहीं थी। 'पुलिस की नहीं थी कोई कमी' अधिकारी ने कहा, 'सबसे पहली बात एसएचओ को चुनाव ड्यूटी में नहीं लगाया गया था। दूसरी बात अगर वह कानून और व्‍यवस्‍था के काम में लगे हुए थे तो कुछ अन्‍य अधिकारियों को इस जांच में लगाया जा सकता था या अलवर पुलिस राज्‍य के पुलिस मुख्‍यालय से मदद मांग सकती थी। सीकर अपहरण की तरह हम एटीएस के विशेष अभियान दल को जांच में लगा सकते थे।' उधर, राज्‍य पुलिस ने उन खबरों को खारिज कर दिया है कि अलवर पुलिस ने चुनाव के बीच इस पूरे मामले के राजनीतिक असर को देखते हुए उसे छिपाने की कोशिश की। अधिकारी ने कहा, 'चुनाव को देखते हुए कई वीआईपी और वीवीआईपी अलवर के दौरे पर थे। सुरक्षा व्‍यवस्‍था प्राथमिकता थी लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस तरह के गंभीर मामले को अनदेखा कर दिया जाए। यह संवेदनशीलता की कमी और एफआईआर दर्ज करने की अनिच्‍छा का संकेत है।'

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