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40 साल में पंजाब में बंद हो गए 83 संस्कृत कालेज, आतंकवाद के दौर से पहुंचा कई भाषाओं की जननी को नुकसान

अमृतसर । कई भाषाओं की जननी संस्कृत (Sanskrit) पंजाब में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है। सरकार ने इसके उत्थान व प्रचार-प्रसार से अपने हाथ पूरी तरह खींच लिए हैं। पंजाब में किसी वक्त 90 गैर सरकारी संस्कृत कालेज या संस्थान थे, जिनकी संख्या अब महज सात तक सिमट गई है। इनकी भी आर्थिक दशा दयनीय है। अमृतसर के श्री लक्ष्मी नारायण संस्कृत कालेज में पिछले दो वर्षो से कोई दाखिला नहीं हुआ है, इतना ही नहीं एडिड (सरकारी सहायता प्राप्त) स्कूलों में भी संस्कृत अध्यापकों के पद खत्म कर दिए गए हैं। इस वक्त एडिड स्कूलों में सिर्फ अमृतसर में ही एक संस्कृत अध्यापक है। अमृतसर स्थित हिंदू सभा स्कूल में कार्यरत संस्कृत अध्यापक हेमराज शर्मा डेढ़ साल बाद सेवानिवृत्त होने वाले हैं। इन स्कूलों में संस्कृत भाषा की पढ़ाई का विकल्प भी खत्म कर दिया गया है। संस्कृत का कोई भी अध्यापक भर्ती नहीं किया जा रहा। पंजाब में साल 1980 से पहले ज्यादातर स्कूलों में संस्कृत पढ़ाई जाती थी। 1980 के बाद आतंकवाद के दौर में इस भाषा को काफी नुकसान पहुंचा। साल 2009 के बाद से संस्कृत कालेजों के लिए पंजाब सरकार व स्कूल शिक्षा विभाग (डीपीआइ) से कोई ग्रांट नहीं दी गई। कभी अमृतसर जिले में ही संस्कृत पढ़ाने वाले 20 संस्थान थे, जो अब सिर्फ दो ही रह गए हैं। इन कालेजों में शास्त्री, प्रभाकर और आचार्य की पढ़ाई होती थी। अभी गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग तो है, लेकिन यहां विद्यार्थी नाममात्र ही हैं। जीएनडीयू में एमए संस्कृत व पीएचडी की व्यवस्था है, लेकिन विद्यार्थी नहीं हैं। स्वयंसेवी संस्थाएं उठा रहीं खर्च पंजाब में अमृतसर में दो, दीनानगर में एक, होशियारपुर में एक, खन्ना में एक, सरहिंद (फतेहगढ़ साहिब) में एक और करतारपुर में एक कालेज है, जिसका खर्च स्वयंसेवी संगठन उठा रहे हैं। इन कालेजों में दो से तीन विद्यार्थी ही हैं। अखिल भारतीय संस्कृत विकास परिषद की कोशिशों से शास्त्री को ग्रेजुएशन और आचार्य को एमए के बराबर मान्यता मिल गई है, लेकिन विद्यार्थियों का इस ओर कोई रुझान नहीं है, क्योंकि रोजगार के अवसर नहीं हैं। सुनियोजित तरीके से कम किए गए संस्कृत के विद्यार्थी: पुष्पराज शास्त्री श्री लक्ष्मी नारायण संस्कृत कालेज के प्रिंसिपल पुष्पराज शास्त्री कहते हैं, 'सरकारों ने सुनियोजित तरीके से संस्कृत के विद्यार्थी कम किए। सरकार अगर स्कूलों में संस्कृत के अध्यापकों की भर्ती शुरू कर दे, तो संस्कृत दोबारा अपना खोया सम्मान पा सकती है। संस्कृत कालेजों को प्रति वर्ष 26 हजार रुपये की मामूली ग्रांट दी जाती थी। वह भी बंद है। शास्त्री अध्यापकों के पदों को बहाल किया जाना चाहिए। संस्कृत भाषा के अंकों को कुल अंकों में जोड़ा जाए, न कि इन्हें आप्शनल अंकों के रूप में लिया जाए। आज बीएएमएस की मेडिकल पढ़ाई करने के लिए संस्कृत जरूरी होती है, लेकिन विद्यार्थियों को संस्कृत का पूरा ज्ञान न होने के कारण उनको आयुर्वेद में डिग्री हासिल करने में मुश्किल आती है। हम 16 संस्कारों की शिक्षा प्रदान कर रहे: डा. प्रेम अध्यक्ष अखिल भारतीय संस्कृत विकास परिषद व हिंदू महासभा के राज्य प्रभारी डा. शिव कुमार प्रेम के अनुसार परिषद का गठन साल 1841 में लाहौर में हुआ था। इसका कार्यालय अमृतसर में है। संस्कृत को जीवंत रखने के लिए परिषद हर स्तर पर कोशिश करती रही है, लेकिन सरकारें ही गंभीर नहीं हैं। संस्कृत में शास्त्री को ग्रेजुएशन व आचार्य को एमए के बराबर करवाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। हम भाषा को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ 16 संस्कारों की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

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