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पालघर के बाद नांदेड़.. महाराष्ट्र में आखिर क्यों निशाना बन रहे साधु-संत?

सवाल मुंबई महाराष्ट्र के पालघर में भीड़ द्वारा दो साधुओं की हत्या के एक महीने के बाद प्रदेश के नांदेड़ जिले में लिंगायत साधु की बेरहमी से हत्या कर दी गई। साधु को उसके आश्रम में घुसकर जान से मार दिया गया। ऐसे में निरपराध साधुओं पर जानलेवा हमले को लेकर महाराष्ट्र की कानून व्यवस्था पर जमकर सवाल उठाए जा रहे हैं। दोनों घटनाओं पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि प्रदेश में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। कानून का डर न होने की वजह से अपराधी बेखौफ वारदात को अंजाम दे रहे हैं। साधु-संतों की हितैषी होने का दावा करने वाली शिवसेना अपनी ही सरकार में साधुओं की हत्या पर लगाम नहीं लगा पा रही है। मामले में सामुदायिक ऐंगल न लें तब भी एक नागरिक के बतौर उनकी सुरक्षा राज्य सरकार की जिम्मेदारी थी, जिस पर राज्य सरकार बुरी तरह फेल होती नजर आ रही है। पुलिस भी लाचार? पालघर मॉब लिंचिंग के दौरान तो पीड़ितों के साथ पुलिस भी थी। फिर भी उन्हें जान गंवानी पड़ी। इतना ही नहीं, घटना के वायरल वीडियो में पुलिस अपनी जान बचाकर भागती नजर आई। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि प्रदेश की पुलिस भीड़ द्वारा किए गए हिंसात्मक अपराधों के आगे लाचार हो गई है और लोगों के जानमाल की हिफाजत के लिए अब उससे उम्मीद करना व्यर्थ है? नांदेड़ के मामले में हत्यारोपी ने आश्रम में घुसकर संत की हत्या की और फरार होने में कामयाब रहा। अपराध के 12 घंटे बीतने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली हैं और अभी तक आरोपी का पता नहीं लगाया जा सका है। पुलिस प्रशासन प्रदेश में ऐसी घटनाओं को रोकने में पूरी तरह विफल नजर आ रहा है। लॉकडाउन में है यह हाल ध्यान देने की बात यह भी है कि दोनों हत्याएं ऐसे समय में हुई हैं जब देशभर में लॉकडाउन लागू है और लोगों को अपने घर से बाहर निकलने पर मनाही है। लॉकडाउन में भी अगर ऐसे अपराध नहीं रोके जा पा रहे हैं तो सामान्य दिनों के लिए क्या उम्मीद की जा सकती है? दोनों ही घटनाओं में एक बात और कॉमन है कि ये दोनों धार्मिक भावनाओं से जुड़ी हैं। पालघर में मारे गए साधु देश के सबसे बड़े जूना अखाड़े से जुड़े थे। अखाड़ों से लोगों की आस्थाएं जुड़ी हैं। ऐसे में इसके किसी सदस्य की हत्या लोगों को आक्रोश से भर सकती थी। ऐसे ही नांदेड़ के मामले में भी संत की हत्या पर समुदाय के लोगों की प्रतिक्रिया सार्वजनिक तनाव का रूप ले सकती है। दोनों मामलों में अभी तक इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है तो इसके पीछे लॉकडाउन का बड़ा हाथ है। लोग घरों में कैद हैं। सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा जमकर निकल रहा है। इन घटनाओं पर सख्ती से कार्रवाई नहीं की गई तो प्रदेश की उद्धव सरकार को कई मुश्किल सवालों से गुजरना पड़ सकता है। राजनैतिक संकट भी ला सकती हैं ऐसी घटनाएं लोगों की जान-माल की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा करने वाले महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे के लिए ये घटनाएं राजनीतिक संकट साबित हो सकती हैं। उनकी पुरानी सहयोगी और फिलहाल विपक्ष में बैठने वाली भारतीय जनता पार्टी इसे राज्य सरकार पर हमले के अवसर के रूप में भी ले सकती है। बीजेपी का यह कम्फर्ट जोन है। ऐसे में अगर वह आक्रामक होती है तो प्रदेश सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

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