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उद्धव सरकार को मिला था ऑक्सीजन प्लांट लगाने का सुझाव, यदि ध्यान दिया होता तो संकट से न जूझना पड़ता

मुंबई, इन दिनों ऑक्सीजन की कमी से जूझ रही महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को आठ माह पहले ही राज्य के हर जनपद में एक ऑक्सीजन प्लांट लगाने का सुझाव विधान परिषद में दिया गया था। यदि सरकार ने तब इस सुझाव पर ध्यान दिया होता, तो उसे आज ऑक्सीजन के गहरे संकट से न जूझना पड़ता। देश में कोविड-19 की शुरुआत के बाद महाराष्ट्र विधानमंडल का पहला सत्र सितंबर, 2020 में आयोजित किया गया था। सिर्फ दो दिन के लिए बुलाए गए इस सत्र में फड़नवीस सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे डा. रंजीत पाटिल ने देर रात सदन को संबोधित करते हुए राज्य सरकार को आगाह किया था कि कोविड-19 के दौरान ऑक्सीजन आपूर्ति की स्थित विकट होने वाली है। यदि हर जिले में सरकार ने ऑक्सीजन का कम से कम एक प्लांट नहीं लगाया तो भविष्य में स्थिति और गंभीर हो सकती है, क्योंकि निजी अस्पतालों को भी ऑक्सीजन आपूर्ति की जिम्मेदारी सरकार की ही होगी। इसके बिना वेंटिलेटर और दवाइयों से भी काम नहीं चल पाएगा, इसलिए कम से कम राज्य के 15 जिलों में एक-एक ऑक्सीजन प्लांट लगाया जाना चाहिए, जिससे सरकार को भविष्य में आक्सीजन की कमी से न जूझना पड़े। उस समय डा. पाटिल के सुझाव से सहमति जताते हुए राज्य के वित्तमंत्री अजीत पवार ने राज्य के विभिन्न जिलों में कम से कम 10 ऑक्सीजन प्लांट लगाने की घोषणा भी की थी, लेकिन यह घोषणा अमल में नहीं लाई जा सकी। इसका परिणाम आज राज्य को भुगतना पड़ रहा है। डा. पाटिल के अनुसार उनके द्वारा यह सुझाव देने के बाद वित्तमंत्री अजीत पवार व स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे, दोनों ने कहा था कि राज्य में ऑक्सीजन की कोई किल्लत नहीं होने दी जाएगी। जरूरत पड़ने पर उद्योगों के काम आने वाली 70 फीसद ऑक्सीजन का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए किया जाएगा, लेकिन आज यह ऑक्सीजन कहीं उपयोग होती नहीं दिखाई दे रही है। ऑक्सीजन प्लांट लगाने का खर्च लगभग 55 लाख पेशे से स्वयं डॉक्टर रंजीत पाटिल आज आक्सीजन की देशव्यापी समस्या की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि किसी भी राज्य सरकार या जिला प्रशासन के लिए ऑक्सीजन प्लांट लगाना कोई बड़ी बात नहीं है। वह महाराष्ट्र के अकोला जनपद स्थित 150 बिस्तरों वाले एक निजी अस्पताल के संचालक मंडल में हैं। इस अस्पताल में करीब पांच साल पहले सिर्फ 35 लाख रुपये खर्च करके एक आक्सीजन प्लांट लगाया गया था जो अब कोविड के दौरान इस अस्पताल की ऑक्सीजन जरूरतों को पूरा करने में काम आ रहा है। इस प्लांट में प्रतिदिन 300 जंबो सिलेंडर भरे जा सकते हैं। अब ऐसा ही एक और ऑक्सीजन प्लांट उसी अस्पताल में तैयार होने के करीब है। इस पर करीब 55 लाख का खर्च आ रहा है। उनके अनुसार आज की तारीख में 55 लाख रुपये का निवेश देश के किसी भी अस्पताल के लिए कोई बड़ा खर्च नहीं है, जबकि 100 बिस्तरों से अधिक का अस्पताल खोलने जा रहे किसी भी समूह के लिए कम से कम इतना बड़ा ऑक्सीजन प्लांट लगाना तो अनिवार्य कर देना चाहिए। यहां तक कि स्थानीय नगर निगम भी अपने नागरिकों के लिए इतना खर्च तो आसानी से कर सकते हैं। डा. पाटिल कहते हैं कि मनुष्य की जिंदगी के लिए सबसे जरूरी ऑक्सीजन का प्लांट लगाने के लिए यदि आवश्यकता पड़े तो विधायक व सांसद निधि का भी उपयोग किया जाना चाहिए।

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