शुक्र है संविधान दिवस पर कोर्ट,सोनिया और पवार ने बचा लिया लोकतंत्र

संविधान दिवस पर लोकतंत्र का चीरहरण होते होते बच गया।भगवान का लाख लाख शुक्रिया।लोकतंत्र को बचाने के लिए देश को सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ शरद पवार,सोनिया गांधी और उद्धव ठाकरे का ऋणी होना चाहिए कि उन्होंने लोकतंत्र को बचाने के लिए लंबा जद्दोजहद किया ।ये लड़ाई सता हासिल करने के लिए नहीं,पूरी तरह से लोकतंत्र को बचाने के लिए पूरी शिद्दत और देशहित में लड़ी है।सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी को झतका देते हुए फैसला दे लोकतंत्र को बचा लिया,अगर उसने कहीं बीजेपी को कोई राहत दे दी होती तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता।शिवसेना,कांग्रेस और एनसीपी का इसके लिए आभार जताया जाना चाहिए कि उन्होंने सता के लिए नहीं देश हित में अपनी अपनी दुश्मनी और विचार धारा को तिलांजलि देते हुए बीजेपी को सत्ता से दूर कर लोकतंत्र को बचा लिया,अगर ये सता हासिल करने में नाकाम हुए होते तो लोकतंत्र का चीरहरण हो जाता ।हमारे देश की विडम्बना है कि जब कोई फैसला हमारे पक्ष में जाता है तो लोकतंत्र और संविधान की रक्षा होती है और ये देश हित में होता है और जब मनमाफिक कोई चीज नहीं होती तो भले ही वह पूरी तरह संवैधानिक क्यों न हो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है।ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है कि हम हर चीज को अपने तरीके से देख और व्यक्त कर सकते हैं।मानवाधिकार को देखने का हमारा नजरिया अनेकता में एकता वाला है।जब सुरक्षाबलों पर आतंकवादी,नक्सलवादी और बदमाश हमला करते हैं और हमारे जवान शहीद होते हैं तो कोई हमलावरों पर मानवाधिकार की बात नहीं करता लेकिन अगर कोई आतंकवादी,नक्सलवादी या बदमाश मारा जाता है तो उसके मानवाधिकार का मुद्दा उठा कोर्ट तक में याचिकाएं दायर कर दी जाती हैं।हमारे देश में बदमाशों ,अपराधियों को जीने का अधिकार है लेकिन देश को बचाने में लगे सुरक्षा बलों के जवानों को जीने का नहीं केवल अपराधियों राष्ट्रद्रोहियों के हाथों मारे जाने का अधिकार हैं क्योंकि वे मरने के लिए ही तो सुरक्षा बलों में आते हैं।यही वजह है कि जब सुरक्षा बलों के जवान शहीद होते हैं तो जेएनयू जैसे शिक्षण संस्थानों में जश्न मनाया जाता है और जब कोई आतंकवादी मारा जाता है तो उसे श्रद्धांजलि दी जाती है।उसकी मौत को लेकर कोर्ट में याचिकाएं तक लगाई जाती हैं,पर शहीद परिवार को न्याय दिलाने के लिए कथित मानवाधिकारवादी कभी आगे नहीं आते।ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि हम मोब्लिंचिंग को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं।कोई अपराधी अगर हिन्दू भीड़ के हाथों मारा जाए तो मोब्लिंचिंग होती है और अगर कोई हिन्दू पिता दूसरे धर्म के लोगों की भीड़ से अपनी बेटी की इज्जत बचाते हुए मार दिया जाए तो न ही ये मोब्लिंचिंग हैं और न ही इससे देश असहिष्णु होता है।मंदिरों पर हमला कर उसमें तोड़फोड़ सही है लेकिन यदि किसी गिरजाघर में उसके ही पूर्व कर्मचारी चोरी कर लें,कोई शराबी उसका कोई कांच तोड़ दे तो देश अल्पसंख्यकों के रहने लायक नहीं रह जाता।हमने धर्मनिरपेक्षता को भी बहुत ही खूबसूरती के साथ परिभाषित किया है।जो हिन्दुओं की बात करे,जो देश में संविधान के अनुरूप समान नागरिकता कानून बनाने की बात करे,जी देश से अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालने की बात करे,जो देश में नागरिकों की पहचान के लिए एनआरसी लागू करे,जो प्रलोभन देकर धर्मपरिवर्तन के खिलाफ कानून लाने,जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून की बात करे वो सांप्रदायिक और जो संविधान की भावनाओं की हत्या कर वोटों के लिए एक धर्म विशेष के तुष्टिकरण कर लाभ पहुंचाए,जो आंख बन्द कर प्रलोभन देकर धर्मपरिवर्तन को सही ठहराए,जो संविधान की भावनाओं को रोंद समान नागरिक कानून बनाने,घुसपैठियों को वोटों के लिए बसाए रखने की वकालत करे,जो एक धर्म विशेष की राजनीति करे वे धर्मनिरपेक्ष बाकी सब सांप्रदायिक।हमारे लोकतंत्र ने भी अभिव्यक्ति की आजादी को भी अपने तरीके से व्यक्त करने की पूरी छूट दी है।आप देश के खिलाफ नारे लगाए,आप देश के खिलाफ कुछ भी लिखें ये अभिव्यक्ति की आजादी है।आप जेएनयू जैसे शिक्षण संस्थानों में विचारधारा विशेष से जुड़े हैं तो आपको वहां आपको अपने भाषण पिलाने की पूरी छूट है पर अगर आप उस विचारधारा यानी वामपंथी नहीं है तो आपको बोलने का कोई अधिकार नहीं है।आपके खिलाफ प्रदर्शन,धक्कमुकी सब अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किए जा सकते हैं।ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि कल तक जिसे धुर सांप्रदायिक और हिंदूवादी पार्टी बता निंदा की जाती थी ,वह शिवसेना अब सता हासिल करने के लिए कांग्रेस और एनसीपी की गंगा में डुबकी लगा धर्मनिरपेक्ष हो गई है।अब वह न हिंदूवादी पार्टी है और न ही बाबरी मस्जिद विध्वंस की दोषी।शिवसेना को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण पत्र कोई और नहीं वहीं कांग्रेस और एनसीपी दे रही है जो उस पर इसका दोषारोपण करती थी।सता में भागीदारी मिलते ही कांग्रेस और एनसीपी के लिए शिवसेना वाशिंग मशीन से धुलने के बाद निर्विवाद रूप से एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी हो गई है।मंगलवार को शिवसेना को पिछले तीस सालों से सांप्रदायिक पार्टी बताने वाले एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा,शिवसेना कभी सांप्रदायिक पार्टी नहीं थी,वह तो बनी ही महाराष्ट्र के विकास के लिए है।उस पर बीजेपी के साथ रहने की वजह से ही साम्प्रदायिकता का आरोप लगता रहा।लोकतंत्र की खूबसूरती के चलते ही हिंदुत्व भी अब सच्चा और झूठा हो गया है।महाराष्ट्र विकास अघाडी का नेता चुने जाने के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा कि उनके हिंदुत्व में झुठापन नहीं है वे अब भी हिंदूवादी है।उनके बयान से यह आभास मिलता है कि जब वे रामलला हम आएंगे,मन्दिर वहीं बनाएंगे का नारा लगाते थे,जब वे समान नागरिकता कानून,जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने,बाबरी मस्जिद गिराने का श्रेय लेते थे।एनआरसी की वकालत करते थे ,तब वे झूठे हिंदुत्व की बात करते थे।तब भी वे झूठे हिंदुत्व की बात करते थे जब वीर सावरकर को भारतरत्न की मांग करते थे।अब इन सब मुद्दों को तिलांजलि देने के बाद उनके हिंदुत्व में झुठापन नहीं रहा है।लोकतंत्र में हर चीज को अपने नजरिए से देखना और बयां करना ही तो इसकी खूबसूरती है।जो शिवसेना कभी कांग्रेस और एनसीपी के लिए अछूत थी एक दूसरे को पानी पी पीकर कोसा करते थे ,आज सता के लिए गलबहियां हो रहे हैं तो ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती ही तो है।इसी से ही तो लोकतंत्र की सुरक्षा सुरक्षित होती है।अगर ये तीनों दल सता में न आए होते तो लोकतंत्र की हत्या हो गई होती।मदन अरोड़ा

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