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कोरोना वायरस को हराने में ये 6 वैक्सीन दिखा सकती हैं सबसे ज्यादा असर

कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है और ऐसे में उस वैक्सीन का इंतजार किया जा रहा है जो पूरी तरीके से कोरोना वायरस के संक्रमण को खत्म करने के लिए कारगर साबित हो। वैज्ञानिकों की टीम लगातार इस पर काम कर रही है लेकिन फिलहाल अभी तक कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है। लेकिन इस दौरान कुछ ऐसी भी वैक्सीन तैयार हो रही हैं जो कोरोना वायरस के मरीजों पर बेहतरीन तरीके से कार्य कर सकती हैं। इसके बारे में आपको यहां पूरी जानकारी दी जा रही है…. ​वैक्सीन को बनाने में लगता है कितना समय वैज्ञानिकों की मानें तो किसी भी बीमारी के लक्षण को पता करने के बाद उस पर पूरी रिसर्च की जाती है। किसी भी बीमारी या संक्रमण के छोटे से छोटे लक्षण और बड़े से बड़े जोखिम कारक को समझने के बाद उस पर वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। इस दौरान सबसे मुश्किल काम यह होता है कि जिस बीमारी या संक्रमण को खत्म करने के लिए वैक्सीन बनाई जा रही है, वह प्रभावी तरीके से उस संक्रमण को रोकने के लिए कार्य करे। इसके लिए सबसे पहले वैक्सीन का ट्रायल जानवरों पर किया जाता है और उसके बाद ह्युमन ट्रायल होता है। इन दोनों चरणों में पास होने के बाद ही यह वैक्सीन इस्तेमाल करने के लिए जारी की जाती है। यही वजह है कि एक वैक्सीन को तैयार करने में लगभग साल भर का समय लग जाता है। ​ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने बनाई यह वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में डॉक्टरों की एक विशेष टीम के द्वारा कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए एक वैक्सीन बनाई गई है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने तीन महीने में “ChAdOx1 nCoV-19 नाम की वैक्सीन को बनाया है।” यह एक सामान्य कोल्ड वायरस, एडेनो वायरस के एक लक्षण से संबंध रखता है। जिसे SARS-CoV-2 यानी कि जिसके कारण कोरोना वायरस रोग फैला, उस के अनुवांशिक लक्षणों के साथ रखा गया है। यह बॉडी में कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन की पहचान करने में सक्षम करेगा। यह वैक्सीन अब परीक्षण के अंतिम चरण में है। मैसाचुसेट्स पर आधारित वैक्सीन अमेरिका में, मैसाचुसेट्स स्थित बायोटेक कंपनी मॉडर्ना नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (NIAID) के साथ मिलकर RNA पर आधारित एक वैक्सीन बना रही है। यह वैक्सीन mRNA-1273 के पहले चरण का परीक्षण करने के बाद दूसरे चरण के सफल परीक्षण की ओर आगे बढ़ रही है। आरएनए वैक्सीन मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने के बाद काम करती है और वायरल प्रोटीन बनाने के लिए बॉडी टिश्यू को प्रेरित करती है। जब यह वायरल प्रोटीन शरीर द्वारा पहचान लिया जाता है तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली शुरू हो जाती है और फिर संक्रमण को रोकने में मदद मिल सकती है। ​बीजिंग स्थित सिनोवैक बायोटेक चीनी वैज्ञानिक के द्वारा बंदरों पर एक वैक्सीन के सफल परीक्षण का दावा किया जा रहा है। शोधकर्ताओं ने वैक्सीन PiCoVacc को बंदरों में इंजेक्ट किया जो कि एक चीनी बायोफार्मास्युटिकल कंपनी "सिनोवैक बायोटेक" द्वारा बनाया गया है। बंदरों को बाद में कोरोनो वायरस के संपर्क में लाया गया और यह पाया गया कि जिन बंदरों को इस वैक्सीन का टीका दिया गया था वे काफी हद तक वायरस से सुरक्षित थे। इस समय इस टीके का परीक्षण जारी है। ​फाइजर और बायोएनटेक वैक्सीन अमेरिका स्थित और उसके जर्मन पार्टनर बायोएनटेक चार आरएनए वैक्सीन पर एक साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने अपने इस वैक्सीन "BNT162" के परीक्षण भी शुरू किए। यह वैक्सीन विशेष रूप से डिजाइन किए गए मैसेंजर आरएनए (मॉडर्न वैक्सीन के समान) पर आधारित है और वैक्सीन के परीक्षण करने के स्थान पर अमरीका को सोचा जा रहा है और वहां 360 स्वस्थ वालंटियर पर इस वैक्सीन का ट्राय करने पर विचार किया जा रहा है। भारत में कोरोना वायरस वैक्सीन पर अपडेट रिपोर्ट की मानें तो भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (BBIL) के साथ मिलकर COVID-19 वैक्सीन विकसित की है। यह वैक्सीन पुणे में में वायरस का उपयोग करेगा। इसे NIV से BBIL में सफलतापूर्वक स्थानांतरित कर दिया गया है। इसके अलावा, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII), जो वॉल्यूम के आधार पर वैक्सीन बनाने में दुनिया की सबसे बड़ी निर्माता कंपनी है, ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ एक वैक्सीन की 60 मिलियन डोज का उत्पादन करने के लिए साझेदारी की है। फिलहाल देश के अलग बड़े रिसर्च संस्थानों में वैक्सीन तैयार करने का काम तेजी से चल रहा है।nbt

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