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जवाहरलाल नेहरू के दौर में असम में आया था पहला NRC, अब 5 और राज्यों में लागू करने की मांग

नई दिल्ली, 02 सितंबर 2019, सम में एनआरसी की आखिरी लिस्ट जारी होने के बाद 19 लाख लोगों के सामने पहचान का संकट पैदा हो गया है. ये संख्या उन लोगों की है जिनका नाम एनआरसी की आखिरी लिस्ट में नहीं है. एनआरसी यानी कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस. ये वो सरकारी दस्तावेज है जो बताता है कि असम में रहने वाले कौन से लोग भारतीय हैं कौन नहीं? आसान भाषा में कहें तो एनआरसी वो प्रक्रिया है जिसके जरिए देश में गैर-कानूनी तौर पर रह रहे विदेशी व्यक्तियों को खोजने की कोशिश की जाती है. देश के गृह मंत्री अमित शाह ने ऐसे अवैध लोगों को देश से बाहर करने का वादा किया है. नेहरू के राज में आया देश का पहला NRC एनआरसी की जड़ें, ब्रिटिश राज, भारत के बंटवारे, आजादी के बाद हुए दंगे, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से जुड़ी हुई हैं. लेकिन देश का पहला नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में 1951 में असम में बना था. 1905 में ब्रिटिश सत्ता ने अपने हित में बंगाल का बंटवारा कर दिया. अंग्रेजों ने पूर्वी बंगाल और असम के रूप में नये राज्य का गठन किया. 1947 में जब देश का बंटवारा हो रहा था तो असम के लोगों में ये डर पैदा हो गया कि कहीं पूर्वी पाकिस्तान के साथ जोड़कर असम को भी देश से अलग न कर दिया जाए. असम के नेता गोपीनाथ बर्दोलोई के नेतृत्व में असम में विद्रोह शुरू हो गया. इधर आजादी के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और मौजूदा बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग असम में आने लगे. देश की आजादी के बाद बंटवारे की वजह से कई इलाके दंगे और हिंसा के दौर से गुजर रहे थे. इस दौरान असम में बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से लोग आए. असम में इनका विरोध शुरू हुआ और जल्द ही यहां पर कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो गई. तत्कालीन नेहरू सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान से आए अवैध आप्रवासियों को भारतीय नागरिकों से अलग करने के लिए असम में पहले राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) की प्रक्रिया शुरू की. एनआरसी रजिस्टर बनाने से पहले जनगणना का काम शुरू हुआ और जनगणना के आंकड़े से ही राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर तैयार किया गया. 9 फरवरी 1951 को जनगणना की प्रक्रिया शुरू की गई. इसे पूरा करने के लिए 20 दिन की समयसीमा दी गई. 9 फरवरी 1951 को असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीआर मेढ़ी ने जनगणना की शुरूआत करने जा रहे कर्मचारियों के एक समूह को संबोधित करते हुए कहा था कि जनगणना के जो आंकडे वो इकट्ठा कर रहे हैं उससे भारत के गणतंत्र का पहला नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स बनाया जाएगा. जनगणना फॉर्म में 14 सवाल थे जिनमें से 11 सवालों के जवाब से NRC तैयार किया गया. 24 मार्च 1971 है NRC का निर्धारण बिंदु लगभग 70 साल बाद एक बार फिर से असम फिर NRC को अपडेट कर रहा है. निश्चित रूप से ये प्रक्रिया राजनीतिक, सामाजिक और नागरिकता पहचान से जुड़े कई विवादों की वजह बन गई है. इस नई एनआरसी लिस्ट में शामिल होने के लिए डेडलाइन के तौर पर जो तारीख दी गई थी वो थी 24 मार्च 1971. जो लोग 24 मार्च 1971 की आधी रात से पहले भारत में प्रवेश कर चुके थे वे इस सूची में शामिल हो सकते थे. बता दें कि 25 मार्च 1971 को बांग्लादेश युद्ध शुरू हो चुका था. इसके बाद लाखों की संख्या में बांग्लादेशी नागरिक भारत में आने शुरू हो गए थे. निश्चित रूप से भारत इन्हें अपना नागरिक मानने को तैयार नहीं है. 1961 के बाद तेजी से बढ़ी असम की आबादी दरअसल 1951 से 1961 के बीच असम की आबादी 36 फीसदी बढ़ गई थी. जबकि 1961 से 71 के बीच असम की आबादी 35 फीसदी बढ़ी थी. इसके लिए युद्धग्रस्त पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थियों की आमद को जिम्मेदार माना गया. इन्ही दशकों में जनसंख्या की राष्ट्रीय वृद्धि दर 22 और 25 प्रतिशत थी. 1971 में जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम शुरू हुआ तो असम में अवैध आप्रवासियों की बाढ़ आ गई. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1971 से 1991 के बीच असम में मतदाताओं की संख्या में 89 प्रतिशत का इजाफा हुआ, जबकि 1991 से 2011 के बीच 53 फीसदी वोटर असम में बढ़े. 15 अगस्त 1985 को राजीव गांधी ने किया असम समझौता इस बीच असम अस्थिरता के दौर से गुजरता रहा. असम में शांति की स्थापना 15 अगस्त 1985 को हुई जब राजीव गांधी सरकार ने अवैध आप्रवासियों को राज्य से बाहर करने की मांग कर रहे आंदोलनकारियों से असम समझौता किया. इसके तहत 1951 से 1961 के बीच असम में आए सभी लोगों को नागरिकता दी गई और उन्हें वोट देने का अधिकार दिया गया. 1 जनवरी 1961 से 24 मार्च 1971 के बीच असम में आए लोगों को नागरिकता तो दी गई, लेकिन उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया. 25 मार्च 1971 के बाद आए लोगों को वापस भेजने का फैसला लिया गया. अब तक NRC के चार ड्राफ्ट हुए जारी साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद NRC को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू हुई. कई पड़ाव से गुजरने के बाद 31 दिसंबर 2017 को NRC का पहला ड्राफ्ट प्रकाशित हुआ. इसमें इसमें 3.29 करोड़ लोगों में से केवल 1.9 करोड़ को ही भारत का वैध नागरिक माना गया. 30 जुलाई 2018 को असम सरकार ने दूसरा ड्राफ्ट जारी किया. इसमें कुल 2.89 करोड़ लोगों को वैध नागरिक माना गया. इस तरह से कुल लगभग 40 लाख लोग NRC की सूची से बाहर हो गए. 26 जून 2019 को एक और लिस्ट जारी की गई. इस लिस्ट के आने के बाद NRC से लगभग 1 लाख 2 हजार लोग और भी बाहर हो गए. इसके बाद NRC से बाहर हुए लोगों की तादाद 41 लाख 10 हजार हो गई. आखिरकार 31 अगस्त, 2019 को एनआरसी की आखिरी लिस्ट जारी हुई. इस लिस्ट के मुताबिक 19 लाख से ज्यादा लोग NRC की सूची से बाहर हैं. NRC के आंकड़े हमेशा से राजनीतिक विवाद के साये में रहे. जैसे ही असम के आंकड़े सामने आए देश के कई राज्यों में NRC की मांग होने लगी. दिल्ली दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि दिल्ली में भी एनआरसी की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए क्योंकि दिल्ली में बड़ी संख्या में घुसपैठिए बस गए हैं. तेलंगाना तेलंगाना से बीजेपी विधायक राजा सिंह ने तेलंगाना में NRC बनाने की मांग की है. राजा सिंह ने ट्वीट कर कहा कि वे गृह मंत्रालय से अपील करते हैं कि NRC को तेलंगाना में भी लागू किया जाए. राजा सिंह ने कहा कि हैदराबाद के सांसद ने अनेक बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को अपने वोट बैंक के लिए शरण दी है. ऐसे लोगों को बाहर करने के लिए हैदराबाद लिबरेशन डे यानी 17 सितंबर से लागू से NRC लागू किया जाना चाहिए. पश्चिम बंगाल भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल में भी एनआरसी लागू करने की मांग कर रही है. पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बांग्लादेशियों को बाहर निकाला जाए और एनआरसी लागू की जाए. केरल पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने केरल में एक चुनावी रैली में कहा था कि उनकी पार्टी की सरकार एनआसी लागू करेगी और सभी घुसपैठियों को बाहर करेगी. मिजोरम मिजोरम में भी कांग्रेस को छोड़कर सभी स्थानीय पार्टियां राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने की मांग कर रही हैं. नवंबर में विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि वह असम की तरह यहां भी एनआरसी लागू करेगी.

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