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पालमपुर प्रस्ताव, जब BJP ने पहली बार उठाई मंदिर निर्माण की आवाज

नई दिल्ली, 04 अगस्त 2020, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए दशकों लंबी लड़ाई लड़ी गई. यह सिर्फ कानूनी तौर पर नहीं बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से भी कई मायनों में अहम है. राम मंदिर के आंदोलन ने देश की राजनीति की धारा को ही पलट दिया. राम मंदिर आंदोलन से निकली पार्टी बीजेपी आज केंद्र में सत्ताधारी है और मंदिर आंदोलन से निकले कई नेता संसद में बैठकर देश की नीतियां निर्धारित कर रहे हैं. अब जाकर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो चुका है और 5 अगस्त को अयोध्या में मंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है. यह संयोग ही है कि भूमि पूजन का कार्यक्रम ऐसे वक्त में हो रहा है जब केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों ही जगह बीजेपी की सरकार है. साथ ही दोनों ही सरकार की अगुवाई करने वाले नेता कट्टर हिदुत्व के समर्थक माने जाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि पहली बार बीजेपी के एजेंडे में राम मंदिर कब शामिल हुआ था? आंदोलन के समर्थन का प्रस्ताव यह साल 1989 की बात है. हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में बीजेपी का अधिवेशन हुआ था. तब लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष हुआ करते थे. उस दौरान आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी की जोड़ी भारतीय राजनीति की अहम कड़ी मानी जाती थी. इसी अधिवेशन में राम मंदिर के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया था. उसके बाद से यह मुद्दा बीजेपी के घोषणापत्र का अहम बिन्दु बन गया. इस साल जून के महीने में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में फैसला हुआ कि अब पार्टी राम जन्मभूमि आंदोलन का खुले तौर पर समर्थन करेगी. इससे पहले विश्व हिन्दू परिषद (VHP) इस आंदोलन की अगुवाई कर रही थी. इसी के बाद से 25 सितंबर 1990 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक अपनी रथ यात्रा शुरू की थी. इस यात्रा में लाखों कार सेवक उनके साथ अयोध्या के लिए रवाना हुए थे. आडवाणी की रण यात्रा रथ यात्रा को 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन लालू यादव की सरकार ने रोका था और तब आडवाणी को हिरासत में भी लिया गया था. उनके अलावा विहिप नेता अशोक सिंघल को भी हिरासत में लिया गया था लेकिन वह पुलिस कस्टडी से छूटकर निकल गए थे. बिहार में लाल कृष्ण आडवाणी को रोके जाने के बावजूद लाखों की संख्या में कार सेवक अयोध्या के लिए कूच कर चुके थे. तब यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी जिसने कार सेवकों की गिरफ्तारी के आदेश जारी कर दिए थे. हालांकि जुलाई 1991 के यूपी चुनाव में बीजेपी को बड़ी बढ़त हासिल हुई और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री चुने गए थे. वहीं राजीव गांधी की हत्या के बाद केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी और नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने. 6 दिसंबर को बाबरी विध्वंस इसके बाद 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया और देशभर में दंगे भड़क गए. कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. तब कल्याण सिंह ने अपने एक बयान में कहा था कि उनकी सरकार का मकसद अब पूरा हो गया और राम मंदिर के लिए सरकार की कुर्बानी कोई बड़ी बात नहीं है. राम मंदिर आंदोलन से जुड़ने के साथ ही बीजेपी का राजनीतिक उत्थान होता चला गया. बाबरी विध्वंस के बाद हुए 1996, 1998 और 1999 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. अटल बिहार वाजपेयी पहले 13 दिन फिर 13 माह के लिए प्रधानमंत्री बने. आखिर में वाजपेयी साढ़े चार साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे और 2004 के आम चुनाव में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था.

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