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नेपाल के 'नक्शे' बाजी की निकली हवा, ठोस सबूत के बिना ही किया था दावा

पटना, 12 जून 2020,भारत के कुछ हिस्से को अपना होने का दावा करते हुए नेपाल सरकार ने जो नक्शाबाजी का जो पैंतरा दिखाया था उसकी हवा सरकार के ही फैसले से निकल गई है. नेपाल की कैबिनेट ने गुरुवार को एक निर्णय किया कि जिसमें भारत के जिन भूभाग पर वह दावा कर रहा है उसका प्रमाण संकलन करने के लिए 9 लोगों की एक समिति का गठन किया गया है. नेपाल सरकार के प्रवक्ता युवराज खतिवडा ने कैबिनेट बैठक का फैसला सुनाते हुए पत्रकार सम्मेलन में कहा कि सरकार ने भारत के साथ सीमा विवाद पर ठोस प्रमाण और दस्तावेज जुटाने के लिए 9 सदस्यों वाली विशेषज्ञों की एक टीम का गठन किया गया है. खतिवडा के मुताबिक नेपाल सरकार की आधिकारिक थिंकटैंक संस्था नीति अनुसंधान प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉक्टर विष्णुराज उप्रेती को इसका संयोजक बनाया गया है. इस समिति में सीमा विशेषज्ञ, भूगोल विज्ञान, अंतरराष्ट्रीय कानून के ज्ञाता, पुरातत्वविद् आदि को रखा गया है. हालांकि सरकार के इस फैसले पर कूटनीतिक मामलों के जानकार हैरानी में हैं. नेपाल के जाने माने कूटनीतिक विशेषज्ञ डॉक्टर अरुण सुवेदी ने कहा कि यह आश्चर्य कि बात है कि जो काम पहले करना चाहिए वो काम अब किया जा रहा है. पहले नक्शा प्रकाशित कर फिर संसद में उस पर सरकार संशोधन प्रस्ताव लेकर आई और अब प्रमाण ढूंढने का काम कर रही है. जबकि पहले प्रमाण जमा कर कूटनीतिक वार्ता करनी चाहिए थी. सरकार के इस फैसले से एक बात तो तय हो गई है कि नेपाल अब तक भारत के जिन हिस्सों पर दावा कर रहा था उसका ठोस प्रमाण या दस्तावेज उसके पास नहीं हैं. यानी नेपाल अब तक जो नक्शेबाजी कर रहा था वह बिना किसी सबूत या प्रमाण के ही कर रहा था. सवालों के घेरे में नेपाल सरकार नेपाल की ओली सरकार के इस फैसले से कई सवालों के घेरे में आ गई है. पहला सवाल- जब नेपाल के पास जमीन का दस्तावेज है ही नहीं तो उसने नक्शा निकालने में इतनी जल्दबाजी क्यों की? दूसरा सवाल- बिना प्रमाण और दस्तावेज के नेपाल ने किसके उकसाने पर यह हरकत की है? तीसरा सवाल- क्या नेपाल के द्वारा जानबूझकर इस समय‌ सीमा विवाद किसी और को खुश करने और भारत को परेशान किए जाने के भारतीय सेना प्रमुख के आरोप को इससे बल मिला है? चौथा सवाल- क्या नेपाल की ओली सरकार ने अपनी नाकामी, आंतरिक कलह और डगमगाती सत्ता को बचाने के लिए यह कदम उठाया था?

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