रियाज नाइकू के खात्मे के साथ ही पूरा हुआ डोभाल के ऑपरेशन 'जैकबूट' का बड़ा मकसद

नई दिल्ली राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) को भारत का जेम्स बॉन्ड यूं ही नहीं कहा जाता है। हिज्बुल मुजाहिदीन के चीफ कमांडर रियाज नाइकू के खात्मे डोभाल की जेम्स बॉन्ड वाली छवि को और भी मजबूत कर दी है। यह उन्हीं के ऑपरेशन 'जैकबूट' का कमाल है कि आतंक के पोस्ट बॉय बुरहान वानी की जगह लेने वाला रियाज नाइकू भी आज इस दुनिया में नहीं है। नाइकू, ऑपरेशन जैकबूट की लिस्ट का आखिरी बड़ा आतंकवादी था जिसे उसके पैतृक गांव में ही घेर मार दिया गया है। क्यों पड़ी ऑपरेशन जैकबूट की दरकार डोभाल ने ऑपरेशन जैकबूट तब लॉन्च किया जब दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा, कुलगाम, अनंतनाग और शोपियां जिलों को आतंकियों की ओर से 'आजाद इलाका' घोषित किया जाने लगा। बुरहान वानी के ग्रुप में सबजार भट्ट, वसीम माला, नसीर पंडित, इशफाक हमीद, तारिक पंडित, अफाकुल्लाह, आदिल खांडे, सद्दाम पद्दार, वसीम शाह और अनीस जैसे कश्मीरी युवा थे। इन सभी ने मिलकर कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को नया रंग-रोगन दे डाला था। विदेशी आतंकवादियों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया गया क्योंकि ये कश्मीरी आतंकी स्थानीय युवाओं को आतंकवाद के रास्ते पर ले जाने में लगातार कामयाबी हासिल करने लगे थे। कई पढ़े-लिखे कश्मीरी युवकों के लिए आतंक की राह चुनना एक शगल से बनने लगा। ये स्थानीय पुलिस कर्मियों को टॉर्चर करने लगे, उनके परिवारों को तंग करने लगे और कई बार उन्हें मार भी दिया जाने लगा ताकि वो आतंकवादी अभियानों में हिस्सा नहीं लें। बुरहान का यह ग्रुप कई बार अलग-अलग गावों में बिना किसी डर-भय के पार्टियां मनाने लगा था। ग्रुप ने मुखबिरों की ताकतवर फौज खड़ी ली थी। लोग उसे सुरक्षा बलों की गतिविधियों की हर खबर इसलिए भी देते क्योंकि वो सभी उनके बीच के ही लड़के थे। क्यों पड़ी ऑपरेशन जैकबूट की दरकार डोभाल ने ऑपरेशन जैकबूट तब लॉन्च किया जब दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा, कुलगाम, अनंतनाग और शोपियां जिलों को आतंकियों की ओर से 'आजाद इलाका' घोषित किया जाने लगा। बुरहान वानी के ग्रुप में सबजार भट्ट, वसीम माला, नसीर पंडित, इशफाक हमीद, तारिक पंडित, अफाकुल्लाह, आदिल खांडे, सद्दाम पद्दार, वसीम शाह और अनीस जैसे कश्मीरी युवा थे। इन सभी ने मिलकर कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को नया रंग-रोगन दे डाला था। विदेशी आतंकवादियों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया गया क्योंकि ये कश्मीरी आतंकी स्थानीय युवाओं को आतंकवाद के रास्ते पर ले जाने में लगातार कामयाबी हासिल करने लगे थे। कई पढ़े-लिखे कश्मीरी युवकों के लिए आतंक की राह चुनना एक शगल से बनने लगा। ये स्थानीय पुलिस कर्मियों को टॉर्चर करने लगे, उनके परिवारों को तंग करने लगे और कई बार उन्हें मार भी दिया जाने लगा ताकि वो आतंकवादी अभियानों में हिस्सा नहीं लें। बुरहान का यह ग्रुप कई बार अलग-अलग गावों में बिना किसी डर-भय के पार्टियां मनाने लगा था। ग्रुप ने मुखबिरों की ताकतवर फौज खड़ी ली थी। लोग उसे सुरक्षा बलों की गतिविधियों की हर खबर इसलिए भी देते क्योंकि वो सभी उनके बीच के ही लड़के थे। इजरायली सरकार के ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड जैसा ही ऑपरेशन जैकबूट डोभाल का यह 'ऑपरेशन जैकबूट' भी इजरायली सरकार के 'ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड' जैसा ही था। इजरायल गवर्नमेंट ने म्यूनिक में आयोजित 1972 के समर ओलिंपिक में मारे गए अपने लोगों का बदला लेने के लिए फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) के खिलाफ यह बेहद रहस्यमयी अभियान छेड़ा था। डोभाल ने भी इजरायल की सरकार की तर्ज पर ही उन सभी कश्मीरी आतंकवादियों के खात्मे की रूपरेखा तैयार कर दी। बुरहान के ग्रुप 11 का खात्मा बुरहान ग्रुप से और जिन लोगों को खत्म किया जा चुका है, उनमें सबजार अहमद भट्ट (मई, 2017), वसीम माला (अप्रैल, 2015), नसीर अहमद पंडित (अप्रैल, 2016), अफाकुल्ला भट्ट (अक्टूबर, 2015), आदिल अहमद खांडे (अक्टूबर 2015), सद्दाम पद्दार (मई, 2018) के अलावा वसीम शाह और अनीस शामिल हैं। मोहम्मद रफी भट्ट भी पद्दार के साथ ही मारा गया था। बुरहान ग्रुप का एक और आतंकी तारिक पंडित 2016 में ही गिरफ्तार किया जा चुका था। सीन में आया रियाज नाइकू और फिर... बुरहान के मारे जाने के बाद हिज्बुल को जल्द-से-जल्द एक तेज-तर्रार कश्मीरी युवक की दरकार थी जिसे वह घाटी में आतंक के नए पोस्ट बॉय के रूप में पेश कर सके। उसी वक्त उसके हाथ रियाज नायकू लग गया। नायकू एक शिक्षित स्कूल टीचर था जिसे गणित की अच्छी समझ थी। वह गुलाबों पर अच्छी पैंटिंग किया करता था। वह बुरहान की तरह का ही चश्मा लगाता था। जाकिर मूसा ने 2017 में हिज्बुल का साथ छोड़ दिया तो यह नायकू ही था जिसने संगठन को टूटने से बचा लिया। मूसा ने तब अंसार गजवातुल हिंद नाम की आतंकी संस्था बनाई थी जिसे अल-कायदा का इंडियन विंग माना जाता था। मूसा को 23 मई, 2019 को पुलवामा के त्राल सेक्टर स्थित दर्दसारा गांव में मार गिराया गया था। प्रॉपगैंडा फैलाने में माहिर था नाइकू तब से नायकू ऑपरेशन जैकबूट का एकमात्र हाई वैल्यू टेररिस्ट बन गया। उस पर 12 लाख रुपये का ईनाम भी घोषित किया गया। बुरहान के मारे जाने के आठ महीने बाद नाइकू को हिज्बुल का चीफ घोषित किया गया था। उसके खात्मे से न केवल 3 मई को सुरक्षा बलों की हुई शहादत का बदला पूरा हुआ बल्कि घाटी में आतंकी गतिविधियों पर बड़ा विराम लगने की उम्मीद जगी। दरअसल, मूसा के हिज्बुल छोड़ने के बाद नाइकू ने जम्मू-कश्मीर के पुलिस बलों से सरकारी नौकरी छोड़कर आतंकवाद में शामिल होने का आह्वान करने लगा था। उसी ने मारे गए आतंकवादियों के सम्मान में बंदूकों की सलामी देने की प्रथा पुनर्जीवित की थी। नाइकू उन पुलिस वालों का अपहरण भी कर रहा था जिन्होंने उसकी अपील पर पुलिस की नौकरी नहीं छोड़ी थी। वह प्रॉपगैंडा फैलाने में बहुत माहिर था। इस वजह से अच्छी-खासी संख्या में कश्मीर युवक आतंकवाद के रास्ते पर जाने लगे थे। आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी किए जाने के बाद उसने न केवल युवाओं बल्कि किशोर उम्र के बच्चों को भी आतंकवाद में शामिल करने का अभियान छेड़ चुका था। 35 वर्षीय नाइकू पिछले 8 सालों से भागते-भागते आखिरकार बुधवार को डोभाल के ऑपरेशन जैकबूट का शिकार बन ही गया। LoC के अंदर डोभाल की 'उड़ी: द सर्जिकल स्ट्राइक' नाइकू के साथ ही बुरहान के ग्रुप 11 और उसकी विरासत का अंत हो चुका है। यह डोभाल का ही कमाल है कि कश्मीर घाटी इन पाकिस्तानी गुर्गों से मुक्त हो चुकी है। ऑपरेशन जैकबूट के तहत डोभाल ने आतंकियों के खात्मे की जो पटकथा तैयार की थी, वह कुछ-कुछ विकी कौशल की फिल्म 'उड़ी: द सर्जिकल स्ट्राइक' जैसी ही लगती है।

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