दस वर्ष के बाद काबुल पहुंचा तालिबान का बड़ा नेता अब्दुल गनी बरादर, आने वाले दिनों में दिखाई देंगे कई बड़े चेहरे
काबुल ।काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान के ऐसे नेता अब यहां का रुख कर चुके हैं जो करीब एक दशक पहले इस देश को छोड़ चुके थे। उनके यहां से भागने की वजह उनके ऊपर होने वाले अमेरिकी हमले थे। तालिबान के एक ऐसे ही नेता का नाम अब्दुल गनी बरादर है। बरादर का नाम तालिबान की यहां पर बनने वाली सरकार के शीर्ष के तौर पर भी सामने आ चुका है। हालांकि अब तक किसी भी नाम पर तालिबान की तरफ से अंतिम मुहर नहीं लगी है। इस मुद्दे पर दोहा में बैठक भी चल रही है।
आपको बता दें कि बरादर तालिबान को गठित करने वाले कुछ चुनिंदा लोगों में से एक है। तालिबान के नेता का यहां तक कहना है कि बरादर इतने समय तक खुफिया जगहों पर रहा, जहां तक कोई नहीं पहुंच सका। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि आने वाले दिनों में दुनिया उनके सभी नेताओं को भी देखेगी। इसमें अब छिपाने की कोई बात नहीं होगी। काबुल पर कब्जे के बाद अपनी पहली न्यूज ब्रीफिंग में मुजाहिद ने ये भी कहा कि अब उनका देश के अंदर और बाहर कोई दुश्मन नहीं है। तालिबान ने अफगान जवानों को भी आम माफी देने की घोषणा की है।
मुजाहिद ने इस दौरान ये भी कहा कि इस बार की उनकी सरकार पिछली तुलना में काफी अलग होगी। महिलाओं को काम करने की आजादी होगी और समाज में उनकी भूमिका अहम होगी। लेकिन ये सभी कुछ इस्लामी नियम कानूनों के दायरे में होगा। मुजाहिद ने ये भी साफ कर दिया है कि देश में इस्लामिक कानून के तहत सरकार काम करेगी। अब आपको किसी तरह का डर नहीं होना चाहिए। कोई आपका दरवाजा नहीं खटखटाएगा। तालिबान पिछली सरकार के अंतर्गत काम करने वाले कॉन्ट्रैक्टर्स और ट्रांसलेटर्स को भी माफ कर रहा है।
अफगानिस्तान में तालिबान की बात करें तो करीब तीन दशकों से लगातार ये आतंकी संगठन कभी यहां की लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ तो कभी अमेरिका के खिलाफ तो कभी रूस के खिलाफ लड़ता ही रहा है। लेकिन अब अमेरिका की वापसी के बाद उसकी इस लड़ाई में जबरदस्त तेजी आई है। यही वजह है कि महज चार माह के अंदर ही उसने अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया। आपको बता दें कि 1996-2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का ही शासन था। हालांकि उस वक्त पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई के अलावा इस आतंकी संगठन की सरकार को किसी देश ने स्वीकृति नहीं दी थी।
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